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4 Tips to Maintain Mental Balance

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1.मानसिक संतुलन बनाए रखने की 4 टिप्स (4 Tips to Maintain Mental Balance),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए मानसिक सन्तुलन कैसे बनाएं? (How Do Students Develop Mental Balance for Study of Mathematics?):

  • मानसिक संतुलन बनाए रखने की 4 टिप्स (4 Tips to Maintain Mental Balance) के आधार पर छात्र-छात्राएं परीक्षा में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकते हैं।छात्र-छात्राओं को अध्ययन करने के दौरान तथा परीक्षा के समय मानसिक संतुलन हर स्थिति में बनाए रखने की जरूरत है।कई छात्र-छात्राएं गणित के पाठ्यक्रम कठिन होने के कारण तथा परीक्षा में कठिन प्रश्न-पत्र आ जाता है तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं।मानसिक संतुलन वे छात्र-छात्राएं ही रख सकते हैं जो स्थिर मन और शांत चित्त से विचार करने तथा गम्भीर अभ्यास किया हो।यदि स्थिर बुद्धि और शांत चित्त होने के लिए अभ्यास न किया हो तो वह गणित के सिलेबस (Syllabus) और परीक्षा प्रश्न-पत्र को देखकर निराशा के झूले में झूलने लगता है।ऐसी स्थिति में उसे जो कुछ याद रहता है अथवा जिन प्रश्नों के उत्तर आसानी से दे सकता है उनको भी गलत कर बैठता है।
  • असंतुलित और उद्विग्न मन एक प्रकार का पागलपन है।पागल व्यक्ति वे ही नहीं होते हैं जो पागलखाने में बंद है,कपड़े फाड़ते,दूसरों पर पत्थर मार देते हैं या गाली बकते रहते हैं।जो निराश,हताश,खिन्न और चिंतित बने रहते हैं वे भी पागल ही हैं।मानसिक संतुलन खोना एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसके कारण छात्र-छात्राओं के समक्ष प्रस्तुत गणित के सवाल व समस्याएं तथा गणित का प्रश्न-पत्र सुलझने के बजाय ओर अधिक उलझता चला जाता है।
  • मानसिक संतुलन खोने पर मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं।जितना वह नकारात्मक चिंतन करने लगता है स्थिति अधिक से अधिक बिगड़ती चली जाती है।मानसिक संतुलन खोने पर अनेक ओर समस्याएं खड़ी हो जाती है।परीक्षा प्रश्न-पत्र को देखकर आप मानसिक संतुलन खो देते हैं तो परीक्षा प्रश्न-पत्र को हल करने में अधिक समय लेंगे।यदि अधिक समय लेंगे तो परीक्षा प्रश्न-पत्र को पूरा हल कर नहीं पाएंगे।परीक्षा प्रश्न-पत्र पूरा हल न होने की बात मस्तिष्क में आते ही प्रश्न-पत्र को हल करने की गति बढ़ा देंगे ताकि परीक्षा में सफल होने लायक सवालों को आप बचे हुए समय में हल कर सकें।जब सवालों और प्रश्नों को बिना विचार किए हल करेंगे तो उनके गलत होने की संभावना बढ़ जाएगी।
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2.मानसिक संतुलन का महत्त्व (Importance of Mental Balance):

  • छात्र-छात्राओं की समस्त अध्ययन गतिविधियों,परीक्षा की तैयारियों तथा अन्य क्रियाकलापों का संचालन मन के द्वारा होता है।अतः मानसिक संतुलन बनाए रखने पर ही इनको कुशलतापूर्वक हल किया जा सकता है।मानसिक संतुलन की स्थिति में ही छात्र-छात्राएं अपने जीवन को सुचारू रूप से संचालित कर सकते हैं।मानसिक संतुलन की वजह से ही व्यक्ति संस्कारयुक्त और स्वस्थ रहने में सक्षम हो सकता है।मानसिक संतुलन का न केवल अध्ययन-अध्यापन तथा परीक्षा देने में ही महत्त्व है बल्कि जीवन के हर कार्य को दक्षता से करने में भी इसका महत्त्व है।
  • जीवन को सुख-शान्ति,प्रसन्नतापूर्वक गुजारने,हँसते-खेलते गुजारने,जीवन को विकसित करने में भी मानसिक संतुलन का अतुलनीय योगदान है।जीवन का संपूर्ण अस्तित्त्व,जाॅब को कुशलतापूर्वक कार्यान्वित करने,जीवन में प्रगति,उन्नति और विकास करने तथा जाॅब में उन्नति,प्रगति और विकास करना मानसिक संतुलन बनाए रखने पर ही निर्भर है।सांसारिक कार्यों,जाॅब में कोई कार्य करने,अध्ययन करने तथा परीक्षा देने में प्रत्यक्ष रूप से शरीर की गतिविधि ही नजर आती है परंतु शरीर को संचालित,नियंत्रित करने का समस्त कार्य मन ही करता है।महाभारत के बारहवें अध्याय में भगवान कृष्ण ने भी मानसिक संतुलन (उद्विग्न मन) की महत्ता बताई हैः
  • “यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
    हर्षामर्षभयोद्वगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः”।।
  • अर्थात् जिस व्यक्ति से संसार (प्राणिसमूह) भय तथा शंका के कारण मानसिक सन्तुलन (उद्वेग) को नहीं प्राप्त होता है और जो व्यक्ति संसार से व्यग्रता (मानसिक सन्तुलन) को नहीं प्राप्त होता है एवं जो व्यक्ति हर्ष,अमर्ष (क्रोध,तिरस्कार आदि से उत्पन्न क्षोभ),भय,उद्वेग (चित्त की अस्थिरता,चिन्ता,भय,परेशानी) से मुक्त है वह व्यक्ति मुझे प्रिय होता है।

3.मानसिक असंतुलन के कारण (Causes of Mental Imbalance):

  • (1.)तत्काल सफलता प्राप्त करने के सपने का पूरा न होना,दूसरों से जल्दी-जल्दी आगे निकलने का प्रयास करना,दूसरों से प्रतिस्पर्धा करना तथा आगे न निकल पाने से परेशान,चिंतित,खिन्न हो जाते हैं।
  • (2.)योग्यता,दक्षता तथा कौशल न होने पर भी अध्ययन तथा परीक्षा में अच्छे अंक तथा सफलता प्राप्त करने की इच्छा करना और उस इच्छा के पूरी न होने पर तनावग्रस्त होने लगते हैं और सारी महत्वाकांक्षाएं धरी की धरी रह जाती है।
  • (3.)दूसरों की प्रगति,उन्नति को देखकर ईर्ष्या करना मानसिक तनाव उत्पन्न कर देता है।
  • (4.)अस्त-व्यस्त दिनचर्या,जल्दबाजी करना,रात-दिन अध्ययन करने में व्यस्त रहना,उचित विश्राम न करना,हर क्षण काम में लगे रहने से मानसिक असंतुलन पैदा हो जाता है।
  • (5.)सबको राजी रखने का प्रयास करना,दूसरे व्यक्तियों तथा छात्र-छात्राओं को अपनी इच्छा के अनुसार चलाने का प्रयास करना,दूसरों पर हावी होने का प्रयास करने से मन में अशांति,चिंता और क्षुब्धता बढ़ती है।
  • (6.)लगातार परीक्षाओं में असफलता मिलना,प्रश्न-पत्र कठिन आ जाना,जाॅब न मिल पाना,किसी प्रवेश परीक्षा में असफलता मिलने से छात्र-छात्राएं उद्विग्न,खिन्न और निराश हो जाते हैं।
  • (7.)ओछे,निकम्मे,धूर्त व चालाक लोगों के जाल में फँस जाना तथा उनके चंगुल से छूटने का कोई उपाय दिखाई न देना।
  • (8.)प्रतिकूल परिस्थितियों के दबाव को सहन न कर पाना,अध्ययन तथा गणित के अध्ययन के लिए साधन-सुविधाएं न मिलना,अनुकूल स्थिति न मिलने पर कदम-कदम पर उद्विग्न एवं निराश होना पड़ता है।
  • (9.)अपना स्वार्थ सिद्ध न हो पाना,जाॅब के लिए बहुत अधिक प्रयास करने पर भी न मिलना,व्यवसाय,जाॅब में घाटा होने पर मन असंतुलित हो जाता है।
  • (10.)केवल भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने में ही लगे रहना,मानसिक शांति के उपाय न करना,विध्वंसात्मक,विनाशात्मक विचार प्रणाली के कारण मन अशांत हो जाता है।
  • (11.)पारिवारिक कुटुम्बीजनों,मित्रों और संबंधियों का अध्ययन में असहयोग करना और रुकावट डालना।गुण,कर्म,स्वभाव तथा वैचारिक भिन्नता के कारण आपस में सिर-फुटौव्वल की स्थिति पैदा हो जाना।
  • (12.)वासनाओं,तृष्णाओं,इच्छाओं,लोभ,लालच इत्यादि पर नियंत्रण न रख पाना।संयमित जीवनशैली न अपना पाना।

4.मानसिक संतुलन के लिए उपाय (Remedies for Mental Balance):

  • (1.)अध्ययन,गणित का अध्ययन,जाॅब अथवा कोई कार्य योजना बनाकर यह निर्धारित किया जाए कि कौनसा कार्य ज्यादा जरूरी है उसे सबसे पहले किया जाए।
  • (2.)किसी भी कार्य को पूर्ण शक्ति और समय लगाकर मनोयोग पूर्वक किया जाए।आधे-अधूरे मन से कार्य करने पर असफलता ही हाथ लगती है जिससे मानसिक तनाव उत्पन्न होता है।
  • (3.)एक-एक कार्य को पूर्ण करने का क्रम अपनाया जाए।एक साथ बहुत से कार्य निपटाने के चक्कर में कोई भी कार्य पूरा नहीं हो पाता है तथा परिश्रम व समय की बर्बादी होती है वह अलग।जैसे विद्यार्थी के लिए अध्ययन कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण है इसलिए अध्ययन कार्य को पहले पूरा किया जाए।बाद में घर-परिवार के कार्यों तथा अन्य कार्यों को निपटाया जाए।
  • (4.)उन महत्वाकांक्षाओं और प्रगतिशील कार्यों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए जिनको करने की आपमें योग्यता,दक्षता तथा कुशलता है।केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति करने वाली महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में नहीं लगना चाहिए बल्कि समाज-कल्याण और परोपकार की भावना से प्रेरित कार्यों को भी कुछ समय देकर पूरा करना चाहिए।
  • (5.)महत्वाकांक्षाओं को पूरी करते समय इन बिंदुओं पर विचार करेंःमेरे में योग्यता कितनी है? मेरी परिस्थितियाँ कैसी हैं? मेरे पास साधन कितने हैं? मैं अपनी योग्यता,दक्षता,कुशलता,साधन-सुविधाओं और परिस्थितियों के आधार पर कौनसे कार्य और कितनी मात्रा में करने में सक्षम हूँ? जैसे आपने एमएससी प्रथम श्रेणी में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण किया है।आपके माता-पिता आपको आगे अध्ययन कराने में समर्थ हैं।आपके नगर में अथवा आसपास विश्वविद्यालय स्थित है।आपके लिए गणित में कोचिंग संस्थान की सुविधाएं आपके नगर में उपलब्ध है।इस आधार पर आप पीएचडी तथा शोध कार्य कर सकते हैं।इस प्रकार सोच-विचार करके निर्णय से असफलता नहीं मिलती है तथा महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने से मानसिक संतुलन बना रहता है।
  • (6.)दूसरों की उन्नति,प्रगति देखकर उनकी बराबरी करने,प्रतिस्पर्धा करने के बजाय स्वयं की योग्यता,क्षमता तथा विशेषताओं के अनुसार आगे कदम बढ़ाया जाए।
  • (7.)दूसरों के कार्य में अडंगा न डालें।दूसरों से यह अपेक्षा करना कि वह हमारे कहे अनुसार चलेंगे इसके बजाय स्वयं के अध्ययन कार्य पर ध्यान दें और मनोयोगपूर्वक अपने कार्य को निपटाने का प्रयास करें।दूसरों को अपने अनुसार चलने दें तथा उन पर हावी होने की कोशिश न करें।सभी को खुश करने के चक्कर में न रहे और ऐसा करके आप न केवल समय और शक्ति का बचाव ही करेंगे बल्कि मानसिक तनाव से मुक्त भी रहेंगे।दूसरों से सीमित अपेक्षाएँ ही पूरी की जा सकती हैं।हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति का दृष्टिकोण,रुचि,योग्यता,क्षमता,मान्यता,आदतें तथा संस्कार भिन्न-भिन्न हैं इसलिए वे उन्हें (रुचि इत्यादि को) हमारे चाहने मात्र से नहीं बदल देंगे।दूसरों पर कम से कम आश्रित रहें।दूसरों पर अपनी रुचि,मान्यताएं,आदतें लादना गलत है।
  • (8.)व्यवस्थित दिनचर्या का पालन करें,किसी भी कार्य में जल्दबाजी न करें,धैर्य धारण करें।हमेशा अध्ययन कार्य में व्यस्त न रहें बल्कि मनोरंजन,खेलकूद-व्यायाम,योग साधना,स्वाध्याय के लिए भी समय दें।ये कार्य प्रत्यक्ष रूप से उपयोगी तथा लाभदायक प्रतीत नहीं होते हैं।परंतु मानसिक संतुलन बनाने,धैर्य धारण करने,मन को एकाग्र करने तथा जीवन को सुखद बनाने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।मन को हल्का-फुल्का रखने तथा तनाव रहित करने में अत्यंत लाभदायक हैं।
  • (9.)विद्यार्थी जीवन तथा जॉब करते समय अच्छी और बुरी,अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति,हानि तथा लाभ इत्यादि आते रहते हैं अतः इनसे प्रभावित होकर विचलित नहीं होना चाहिए।इसी प्रकार सफलता तथा असफलता भी मिलती रहती है।कई बार बहुत-सी असफलताओं के बाद सफलता मिलती है।असफलता को भुलाकर पुनः प्रयास करते रहना चाहिए।जो असफलताओं से टकराए बिना सफलता प्राप्त करने की कामना करते हैं उन्हें हर कदम पर निराश एवं उद्विग्न होना पड़ता है।
  • (10.)पारिवारिक सदस्य,मित्र तथा अन्य लोग आपके लक्ष्य में रुकावट डालते हों तो उनके अनुकूल होने तक धैर्य धारण करना चाहिए तथा अध्ययन कार्य,जाॅब को अथवा अन्य कार्य को करते रहना चाहिए।
  • (11.)अनुकूल परिस्थितियों में अहंकार और प्रसन्न होकर डूब नहीं जाना चाहिए और प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर विचलित नहीं होना चाहिए बल्कि धैर्यपूर्वक प्रतिकूल परिस्थिति को सुधारने का प्रयास करना चाहिए।प्रतिकूल अथवा बिगड़ी परिस्थिति में हाथ पर हाथ धरकर बैठ नहीं जाना चाहिए बल्कि पूरी शक्ति एवं सामर्थ्य के साथ सुधारने का प्रयास करना चाहिए।लेकिन परिस्थिति को सुधारने की सूझबूझ उसी मस्तिष्क में उत्पन्न होती है जो उद्विग्न और असंतुलित न हो।
  • (12.)किसी से किसी विषय में झगड़ा-फसाद,विरोध होने पर उत्तेजित न हो और अशिष्टता न बरतें।

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5.मानसिक संतुलन का दृष्टांत (A Parable of Mental Balance):

  • एक गणितज्ञ थे।वे छात्र-छात्राओं को गणित पढ़ाते थे।हालांकि गणितज्ञ छात्र-छात्राओं को गणित के साथ-साथ नीति,सदाचार,संयम,ब्रह्मचर्य का पालन इत्यादि की बातें भी पढ़ाते थे।परंतु एक छात्र-छात्रा आपस में गुपचुप प्रेमालाप करने लग गए।विपरीत लिंग के आकर्षण तथा मन सधा हुआ न होने के कारण दोनों सहवास करने लगे।फलस्वरूप छात्रा गर्भवती हो गयी।गणितज्ञ को जब पता चला तो वे बहुत दुखी हुए।छात्र को शादी करने के लिए उन्होंने कहा तो उसने साफ मना कर दिया तथा कहा कि मुझे पहले अपना भविष्य बनाना है।उन्होंने (गणितज्ञ) कोचिंग संस्थान को बंद कर दिया।छात्रा को समझाया और उससे शादी कर ली।हालांकि उन्होंने लोक दिखावन के लिए शादी की थी परन्तु वास्तव में वे उसे अपनी शिष्या ही मानते थे।शादी इसलिए की थी ताकि लड़की की बदनामी न हो।उन्होंने छात्र-छात्रा की बदनामी अपने सिर पर ले ली।
  • नगर के सभी लोग एकत्रित हुए तथा गणितज्ञ को खूब खरी-खोटी सुनाई।उन्होंने छात्रा के साथ दुष्कर्म करने के लिए खूब लानत-मनालत की।उन्होंने (गणितज्ञ ने) लोगों को सच्ची बात नहीं बताई।भर्त्सना,निंदा,खरी-खोटी तथा कड़वी बातों से उन्होंने अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया।
  • एकत्र सभी लोगों ने कहा कि नगर में एकमात्र तुम्ही दुष्ट और पापी व्यक्ति हो।तुमने शिक्षक का केवल चोला पहन रखा है।भगवान तुम्हें इस पाप की सजा अवश्य देंगे।तुम्हें इस नगर में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
  • गणितज्ञ को ऐसी-ऐसी बातें कहने पर छात्रा अंदर ही अंदर रोने लगी।गणितज्ञ ने छात्रा को ढांढस बंधाया और कहा कि सब ठीक हो जाएगा।तुम बिल्कुल भी चिंता फ्रिक्र मत करो।धीरे-धीरे लोगों की भीड़ छँट गई क्योंकि अधिकांश लोग तमाशा देखने और मजा लेने के लिए इकट्ठे हुए थे।उनमें से कोई भी उसकी गहराई में नहीं गया।
  • गणितज्ञ अपने अलग कक्ष में रहते थे और छात्रा अलग कक्ष में रहती थी।समय पर छात्रा के लड़का हो गया और धीरे-धीरे बड़ा हो गया।उसने शिक्षा अर्जित कर ली।एक दिन ऐसा आया कि उस छात्रा के पुत्र का बहुत बड़े पद पर चयन हो गया।वह नौकरी करने लग गया।छात्रा के लड़के की अच्छे पद पर नौकरी लग जाने के कारण लोग उससे अपना काम करवाने आने लगे।वे धीरे-धीरे समय के साथ इस घटना को भूलने लगे।गणितज्ञ की वृद्धावस्था आ गई।और एक दिन उनका स्वर्गवास हो गया।
  • नगर के लोग पुनः एकत्रित हुए तो उस छात्रा ने रहस्योद्घाटन किया कि गणितज्ञ ने उसके साथ कोई दुष्कर्म नहीं किया था।उन्होंने तो मेरी और छात्र की लोकलाज बचाने के लिए शादी की थी।यह सुनकर लोग अवाक् रह गए।उन्होंने बहुत पश्चाताप किया कि एक ऋषि तुल्य मनीषी को उन्होंने कितना गलत समझ लिया था।इस प्रकार मानसिक संतुलन,सजगता और धैर्य से गणितज्ञ ने बहुत बड़ी दुर्घटना होने से बचा लिया।वरना उस छात्र-छात्रा के पाप कर्म का पहले पता चल जाता तो क्या पता,क्या अनहोनी घटना घटित हो सकती थी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में मानसिक संतुलन बनाए रखने की 4 टिप्स (4 Tips to Maintain Mental Balance),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए मानसिक सन्तुलन कैसे बनाएं? (How Do Students Develop Mental Balance for Study of Mathematics?) के बारे बताया गया है।

6.गणित का अध्ययन और काम (हास्य-व्यंग्य) (Study of Mathematics and Work) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र से):तुम गणित के किसी सवाल और समस्या को हल करने में इतना समय क्यों लगा देते हो? क्या तुम्हें गणित को समझने में दिक्कत होती है?
  • छात्र (गणित अध्यापक से):सर (sir),आप ही तो कहते हो कि सवाल हल नहीं हो और समझ में नहीं आ रहा हो तो बार-बार उसका अभ्यास करो।सवाल हल नहीं होता है इसलिए मैं उसका बार-बार अभ्यास करता रहता हूं।

7.मानसिक संतुलन बनाए रखने की 4 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4 Tips to Maintain Mental Balance),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए मानसिक सन्तुलन कैसे बनाएं? (How Do Students Develop Mental Balance for Study of Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मानसिक संतुलन से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Mental Balance?):

उत्तर:छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों को जीवन में कड़वे और मीठे अनुभव चखने होते हैं।असफलता,कठिन परिस्थितियाँ,प्रतिकूलताएँ मिलती है तो सफलता,अनुकूल परिस्थितियाँ,मृदुल बातें भी मिलती है।सभी को उद्विग्न,खिन्न और चिन्ता के बिना चखना है।यदि सुख,शांति तथा मानसिक संतुलन चाहते हो तो अपने को बदलो क्योंकि यही तुम्हारे वश में है।जो तुम्हारे वश में नहीं है उस पर व्यर्थ चिन्तन करने,लड़ने-झगड़ने,अड़ने और क्रोध करने से कोई लाभ नहीं है।साथ ही अपनी असफलता,बीती हुई कड़वी बातें,हानि,दुःख,कष्टों को याद करने से कोई फायदा नहीं है।ये सब हमारे मनोबल और मानसिक संतुलन को नष्ट करने वाले हैं।

प्रश्न:2.मानसिक चिंताओं से कैसे बचा जा सकता है? (How Can Mental Worries be Avoided?):

उत्तरःयदि हम जैसा चाहते हैं वैसी ही परिस्थितियां बने तो हमें दुःख,निराशा और असफलता के अलावा कुछ भी मिलने वाला नहीं है।दुनिया में बिखरे कांटों को नहीं हटाया जा सकता है परन्तु अपने पैरों में जूते पहनकर कांटों से बचा जा सकता है।इसी प्रकार दूसरों को बदलने के बजाय अपने आपको बदलने से,अपना दृष्टिकोण बदलने से,मानसिक चिंताओं से मुक्त हुआ जा सकता है।जो संसार की समस्त परिस्थितियों को अपने अनुकूल करना चाहते हैं उन्हें संसार के सभी लोग यहां तक कि भगवान भी दुश्मन नजर आते हैं।परंतु अपना दृष्टिकोण बदलते ही सब कुछ बदल जाता है।

प्रश्न:3.मन को स्वस्थ कैसे रखें? (How to Keep the Mind Healthy?):

उत्तर:मन में शुभ का चिंतन,मनन,अभ्यास करके स्वस्थ रखा जा सकता है।यदि शुभ विचारों का चिन्तन करते रहने पर भी मन की चंचलता,भागदौड़,अस्त-व्यस्तता,आवेश,उद्वेग और उच्छृंखलता कायम रहती है तो अपने लक्ष्य में अर्थात् अध्ययन,जाॅब में अपने आपको संलग्न कर देना चाहिए।अपने मन को अपने लक्ष्य की धुन सुनाएं तो धीरे-धीरे मन हमारे वश में होता जाएगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र छात्र मानसिक संतुलन बनाए रखने की 4 टिप्स (4 Tips to Maintain Mental Balance),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए मानसिक सन्तुलन कैसे बनाएं? (How Do Students Develop Mental Balance for Study of Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Tips to Maintain Mental Balance

मानसिक संतुलन बनाए रखने की 4 टिप्स
(4 Tips to Maintain Mental Balance)

4 Tips to Maintain Mental Balance

मानसिक संतुलन बनाए रखने की 4 टिप्स (4 Tips to Maintain Mental Balance)
के आधार पर छात्र-छात्राएं परीक्षा में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकते हैं।
छात्र-छात्राओं को अध्ययन करने के दौरान तथा परीक्षा के समय
मानसिक संतुलन हर स्थिति में बनाए रखने की जरूरत है।

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