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How Can Student Be Free From Prejudice?

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1.छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Student Be Free From Prejudice?),गणित के छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Mathematics Students Be Free From Prejudice?):

  • छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Student Be Free From Prejudice?) क्योंकि पूर्वाग्रह से किंचित लाभ के बजाय इससे इतनी अत्यधिक हानि होती है कि इसकी रोकथाम करना सभी के लिए हितकर है। रूढ़िवादी (stereotypes),भेदभाव (discrimination),प्रजातियता (racism) तथा यौनवाद (saxcism) पूर्वाग्रह से मिलते जुलते पद हैं।इन पदों का उपयोग कभी-कभी पूर्वाग्रह के पर्याय के रूप में किया जाता है।परंतु उनके बीच भिन्नता है अतः पूर्वाग्रह को समझने के लिए इन्हें भी समझना आवश्यक है।
  • पूर्वाग्रह से तात्पर्य है कि वह निर्णय जो तथ्यों को अपेक्षित परीक्षा से पूर्व कर लिया गया हो,एक अपरिपक्व या जल्दी में लिया गया निर्णय।यह केवल अपरिपक्व निर्णय ही नहीं है बल्कि इसमें प्रतिकूल मनोवृत्ति भी होती है।एक ऐसी पूर्ववृत्ति (धारणा) जो दूसरे व्यक्ति या समूह के पक्ष में होने की अपेक्षा विरोधी तरीकों से देखें,उसके विरुद्ध कार्य करें,विपरीत ढंग से सोचे और महसूस करें।
  • पूर्वाग्रह एक ऐसी मनोवृत्ति है जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति,एक व्यक्ति को दूसरे समूह के व्यक्तियों तथा एक समूह के सदस्यों को दूसरे समूह के सदस्यों को एक खास ढंग से देखने तथा उनके प्रति खास भाव रखने तथा व्यवहार करने के लिए प्रवृत्त करती है।वस्तुतः पूर्वाग्रह एक ऐसी नृजातीय (ethnic) मनोवृत्ति है जिसमें प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति मुख्य रूप से नकारात्मक होती है।
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2.पूर्वाग्रह के लक्षण (Symptoms of Bias):

  • यह एक निराधार निर्णय होता है।हम उपयुक्त तथ्यों के बिना ही किसी निर्णय पर पहुँचते हैं।बहुत से पूर्वाग्रह मुख्यतया हमारे बचपन के उन अनुभवों पर आधारित होते हैं जिनका हमें आभास नहीं होता है।वे व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित नहीं होते हैं।
  • उदाहरणार्थ हमारे भीतर जाति संबंधी पूर्वागृह प्रवेश हो गए हैं,वे बचपन में ही घर कर गए थे क्योंकि हमें ऐसे वातावरण में पाला जाता है जिसमें हमें हिदायतें दी जाती है कि यदि कुछ निश्चित जातियों के बच्चों के साथ खेलेंगे या उन्हें अपने घर में लाएंगे तो हमें दंड दिया जाएगा; जब हम कुछ निश्चित जातियों के बच्चों को अपने भोजन कक्ष,पूजागृह या रसोईघर में ले जाते हैं तो हमें दण्ड मिल सकता है।इन सब तरीकों से बालक में दूसरी जातियों के सदस्यों के प्रति सामाजिक अंतर विकसित होता है।
  • हमारे माता-पिता तथा घर के दूसरे लोग बड़ी जाति के बच्चों को बतलाया जाता है कि छोटी जातियों के लोग गन्दे,बेईमान और निषिद्ध पदार्थों का सेवन करते हैं आदि।यही वह तरीका है जिससे बच्चों में दूसरी जाति के बच्चों के प्रति पूर्वाग्रह का विकास होता है।शूद्र,अस्पृश्य,निम्न इत्यादि इन समूहो के बारे में प्रयोग किए जाते हैं।
  • पूर्वाग्रह निराधार निर्णय पर निर्भर होता है या व्यक्तिगत निर्णय से रहित होता है इसके अतिरिक्त पूर्वाग्रह में समूह के प्रति प्रतिकूल मनोवृत्ति भी शामिल रहती है।दूसरे समूह के प्रति विरोध की भावना होती है।यह विरोध दूसरे समूह के व्यक्तियों में भेदभाव की भावना को जन्म दे सकता है।उदाहरणार्थ हमारे ग्रामों तथा नगरों में भिन्न-भिन्न जाति तथा अलग-अलग संप्रदाय वाले लोगों के लिए अलग-अलग निवास क्षेत्र हैं।हम देखते हैं कि सारे देश में हरिजनों व मुसलमानों के मकान अलग बने होते हैं तथा अन्य बाकी लोगों के निवास ग्रामों या नगरों के केंद्रीय स्थान में बने होते हैं।इसके पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि इस प्रकार की पृथकता किसी प्रकार के विरोध के कारण नहीं है बल्कि सभी वर्गों ने अलग-अलग क्षेत्र में निवास करना स्वीकार किया है जो कि बिल्कुल सामान्य स्थिति है।
  • यह केवल भिन्न-भिन्न संस्कृतियों,जातियों के लोगों और भिन्न-भिन्न तौर-तरीकों का सामंजस्यपूर्ण ढंग से इकट्ठा होकर रहने का एक व्यावहारिक तरीका है।यह सत्य है कि जब तक पृथक करने वाले जाति या समूह पृथक रहना स्वीकार करते रहते हैं तब तक उनमें किसी प्रकार की प्रतिकूल मनोवृत्ति या विरोध की भावना देखने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है लेकिन ज्योंही पृथक जाति या समूह का कोई व्यक्ति दूसरे जाति या समूह (उच्च) में प्रवेश करना चाहता है त्योंही विरोध शुरू हो जाता है।
  • वस्तुतः किसी जाति या समूह को ग्राम या नगर के बाहर अलग क्षेत्र में रहने का यह तथ्य इस अनुभूति पर निर्भर है कि कमजोर वर्ग की ओर विरोधात्मक व्यवहार सामंजस्यपूर्ण संबंध की ओर अग्रसर नहीं होता है बल्कि वे इसलिए सहमत हो जाते हैं क्योंकि वे लाचार हैं।
  • पूर्वाग्रह प्राथमिक मनोवृत्तियाँ हैं।वे सारे समूह द्वारा स्वीकृत होते हैं।ऐसा प्रतीत होता है पूर्वाग्रह सारे समूह द्वारा स्वीकार्य है क्योंकि दूसरे व्यक्तियों की भी वैसी ही मनोवृत्तियाँ होती है।प्रत्येक व्यक्ति में इसका मेल होता है।चूँकि समूह के दूसरे व्यक्तियों में धमकी देने की भावना बनी रहती है,अतः पूर्वाग्रह प्रत्येक व्यक्ति में बढ़ता रहता है।इसीलिए हम व्यक्ति को किसी व्यक्ति के रूप में निर्णीत नहीं करते।हम उसे किसी जातीय या समूह का सदस्य मानते हैं,ऐसी जाति या समूह का सदस्य जो त्याज्य होता है चूँकि वह त्याज्य होता है अतः समूह का प्रत्येक सदस्य भी त्याज्य होता है।
  • जब कभी किसी पूर्वाग्रह वाले व्यक्ति से यह पूछा जाता है कि वह दूसरे समूह के प्रति पूर्वाग्रह क्यों रखता है तो वह सदैव अपने विचारों के अनुकूल कारण बतलाता है।वह कुछ ऐसे मूर्त उदाहरण देगा जब दूसरे समूह के व्यक्तियों द्वारा एक खास प्रकार का व्यवहार किया जाता है।इसी प्रकार से व्यक्ति के अनुभव पूर्वाग्रह का मेल करते हैं।अस्वीकृत समूह के सदस्य द्वारा यदि कोई विरोधी या अमैत्रीपूर्ण कार्य हो जाते हैं तो उन्हें सदैव याद रखा जाता है जबकि पूर्वाग्रह का पक्ष न लेने वाली घटनाएं या तो भुला दी जाती है अथवा अपवाद समझ ली जाती है।इसका स्पष्ट परिणाम यह होता है कि पूर्वाग्रह बना रहता है तथा ओर अधिक बढ़ जाता है।

3.पूर्वाग्रह का विकास (Development of Bias):

  • पहले यह समझा जाता था कि एक समूह के सदस्यों के प्रति कोई विशिष्ट वैरभाव की अन्तर्वृत्ति या विरोध की भावना होती है।जब कभी हम किसी लक्षण को किसी समूह विशेष के समस्त सदस्यों में व्यापक रूप से विद्यमान पाते हैं तो हमारी प्रवृत्ति उस समूह को कुछ ‘प्राकृत’ या कुछ ‘स्वाभाविक’ की भाँति देखने की होती है।ज्ञानवर्द्धन से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि किसी समूह में पाए जाने वाले किसी गुण की व्यापक उपस्थिति के लिए कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं।यह निःसंदेह सत्य है कि पशुओं की तरह मानव प्राणी भी दूसरों से प्रेम करने का अभिलाषी होता है और वह जब यह अनुभव करता है कि उसे जो कुछ लक्ष्यों की प्राप्ति करने के प्रयत्नों से रोका जा रहा है या उसकी अवहेलना की जा रही है तो वह लड़ने के लिए भी तैयार हो जाता है।
  • इस दृष्टि से यह बात सत्य है कि मानव में वैरभाव या विरोधी बनने की मूलप्रवृत्ति (instict) होती है।लेकिन यह बात सत्य नहीं है कि मानव प्राणियों का कोई समूह मानव प्राणियों के किसी अन्य समूह के प्रति मूलतः (essentially) वैरी या विरोधी होता है।यही वह है जहाँ त्रुटि उत्पन्न होती है।
  • बालक जन्म से पूर्वाग्रही नहीं होते हैं परन्तु ज्यों-ज्यों वे बड़े होते हैं तो बड़ों से तथा समाज से अनुभव प्राप्त करते हैं इसलिए वे अन्य समूह के बच्चों से पूर्वाग्रह रखने लगते हैं।बच्चों को माता-पिता द्वारा पारिवारिक व सामाजिक प्रथाओं के अनुसार व्यवहार करना सीखाया जाता है।किसी हरिजन बालक के साथ जब कोई सवर्ण हिन्दु बालक खेलता है तो उसे कपड़े उतारने के लिए कहा जा सकता है तथा संभवतः उसे घर में घुसने से पहले नहाना भी पड़ सकता है।इस प्रकार माता-पिता समझाकर,धमकी देकर और वास्तविक दण्ड द्वारा अपने बच्चों में दूसरे के प्रति पूर्वाग्रहों का निर्माण करते हैं।
  • इसका कारण वे सामाजिक प्रथा व रीति-रिवाज या कुरीतियाँ हैं जो समूह में व्याप्त रहते हैं।जो माता-पिता अपने बच्चों में पूर्वाग्रहों का निर्माण नहीं करता,वह स्वयं भी अपने समूह के दूसरे सदस्यों के विरोध का शिकार हो जाएगा।इसलिए वयस्क व्यक्ति को अपने समूह के सदस्यों से अपने आपको बचाने के लिए दूसरे समूहों के सदस्यों के प्रति सामाजिक रीति-रिवाजों व प्रथा के अनुसार व्यवहार करना पड़ता है।चूँकि यह स्थिति सामाजिक प्रथा व रीति रिवाज के अनुसार होती है अतः बच्चा इस व्यवहार को पूर्वाग्रहित व्यवहार नहीं समझता।
  • फ्रांसीसी,स्कैंडिनेवियन तथा रूसी लोगों में अश्वेत लोगों के प्रति पूर्वाग्रह बहुत कम होता है।दक्षिण अफ्रीका में श्वेत लोग अश्वेत लोगों के प्रति अत्यधिक असहिष्णु होते हैं।इसलिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भिन्न-भिन्न प्रजातियों को पृथक रखने के लिए प्रजाति पार्थक्य कानूनों का निर्माण किया।इस प्रकार अश्वेत प्रजातियों के प्रति पूर्वाग्रह की मात्रा राष्ट्रीयता के साथ भिन्न-भिन्न होती है।
  • इसके अतिरिक्त किसी समूह के सदस्यों में विभिन्न समूह के सदस्यों के प्रति भेद करने की योग्यता में वैयक्तिक अंतर पाए जाते हैं।कुछ हिंदू सदैव सचेत रहते हैं कि अमुक व्यक्ति मुसलमान है।इसी प्रकार से कुछ मुसलमान भी सचेत रहते हैं कि अमुक व्यक्ति हिन्दु है।दूसरी प्रकार से बहुत से हिन्दू दूसरे लोगों से मेलजोल करते समय उनके धर्म को महत्त्व नहीं देते हैं।वे उन्हें केवल मानव प्राणी समझते हैं,किसी समूह विशेष का सदस्य नहीं मानते।
  • इसी प्रकार अल्पसंख्यकों में पूर्वाग्रह पाए जाते हैं या उनके प्रति अपनी मनोवृत्ति का निर्माण करते हैं,उस पर पूर्वाग्रहों का प्रभाव पड़ता है।यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे समूह के साथ हमारे जो अनुभव होते हैं,उनसे हमारे पूर्वाग्रहों का मेल हो जाएगा तथा वे हमारे प्रत्यक्ष ज्ञान,विश्वासों एवं मनोवृत्तियों को प्रभावित करेंगे।
  • समूह व्यक्तियों को पूर्वाग्रही बनाता है।यह उन्हें इस तरह से पूर्वाग्रही बनाता है कि लोग यह नहीं समझते हैं कि उन्हें भी पूर्वाग्रही बनाया गया है।वे इसे एक सामान्य व्यवहार की भाँति समझते हैं।यह सामाजिकता का एक ऐसा आश्चर्यजनक लक्षण है कि इस प्रक्रिया के द्वारा किसी भी विचार,भावना या क्रिया-कलाप को इस प्रकार का बनाया जा सकता है जैसे कि वह पूर्णतया सामान्य हो और स्वाभाविक भी हो।
  • इसका अर्थ यह नहीं हैं कि एक ही समूह के अन्दर आपस में पूर्वाग्रह नहीं होते हैं।वस्तुतः कोई कितना ही महान् हो परंतु सामाजिक प्रथाएं या कुप्रथाएँ,रीति-रिवाज या कुरीतियों का पालन नहीं करता है तो उसे दण्ड भुगतना पड़ता है।उदाहरणार्थ महात्मा सुकरात को जहर पिलाने वाला उसका अपना देशवासी ग्रीक व्यक्ति था।अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को स्वयं उसके देशवासी एक अमेरिकी ने गोली से मारा था और इसी प्रकार वह एक हिन्दू व्यक्ति ही था जिसने गांधीजी की हत्या की थी।अतः एक ही समूह का सदस्य होना इस बात का परिचायक नहीं है कि एक ही समूह के प्रत्येक सदस्य में संबंध की एक जैसी समान भावना विद्यमान है।उन्हीं लोगों में सर्वाधिक शत्रुता होती है जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं।कोई भी दो व्यक्ति एक-दूसरे के इतने अधिक शत्रु नहीं हो सकते जितने पति-पत्नी,भाई-भाई या भाई-बहन अथवा माता-पिता और बच्चे एक दूसरे के शत्रु हो सकते हैं।अतः एक ही समूह की सदस्यता का आशय केवल यह नहीं है वे सदस्य स्पर्धा और ईर्ष्या से मुक्त हों।
  • चोर को पुलिस के किसी सदस्य की अपेक्षा अपने गिरोह के सदस्य का अधिक डर रहता है जो उसका भेद खोल सकता है।इसी प्रकार से जो श्रमिक संगठन हड़ताल पर होते हैं,उन्हें बाहरी खतरे की अपेक्षा भीतरी तोड़-फोड़ का अधिक भय रहता है।आज प्रत्येक देश बाहरी शत्रु की अपेक्षा भीतरी गद्दारों से अधिक भयभीत है।
  • इसलिए यह गलत धारणा नहीं बना लेनी चाहिए कि किसी एक ही समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे को सभ्यक दृष्टि से देखेंगे तथा आपस में प्रेम का व्यवहार करेंगे।समूह के सदस्यों में स्पर्धाओं तथा ईर्ष्याओं के कारण बड़ी शत्रुता उत्पन्न हो सकती है।

4.पूर्वाग्रह को कम करने के उपाय (Measures to Reduce Bias):

  • पूर्वाग्रह प्रतिकूल मनोवृत्तियों के बनने से उत्पन्न होते हैं।अतः पूर्वाग्रह को नियंत्रण की समस्या स्वयं मनोवृत्ति परिवर्तन की समस्या के रूप में बदल जाती है।यह ध्यान रखने योग्य है कि पूर्वाग्रह किसी व्यक्ति या समूह के जीवन में काफी लंबे अरसे का परिणाम होते हैं।पूर्वाग्रह परंपरागत होते हैं तथा सामाजिक रूप से स्वीकृत होते हैं।फलतः पूर्वाग्रहित मनोवृत्तियाँ व्यक्ति के समाजीकरण का एक अंग होती है।यही कारण है कि पूर्वाग्रहीत व्यक्ति शायद ही अपने आपको पूर्वाग्रहीत समझता है।वह अपने व्यवहार को सामान्य रूप से स्वाभाविक मानता है।यही कारण है कि किसी व्यक्ति के लिए पूर्वाग्रहों का परित्याग करना कितना कठिन होता है।इसलिए पूर्वाग्रह को नियंत्रित करने का कोई भी धीमी गति का प्रयास सफल नहीं हो सकता है।
  • यह भी ध्यान में अवश्य रखना चाहिए कि व्यक्तियों तथा सम्पूर्ण समूह की अभिवृत्ति में परिवर्तन के लिए बहुत समय लगेगा।यदि इस बात को ध्यान में नहीं रखा जाएगा तो पूर्वाग्रह कम होने की अपेक्षा अधिक बढ़ जाएंगे।उदाहरणार्थ हरिजन तथा विशेष रूप से शिक्षित हरिजन यह महसूस कर रहे हैं कि उनके विरुद्ध पूर्वाग्रह अब भी उसी तरह व्यवहार में है।दूसरी ओर गैर-हरिजन यह समझते हैं कि समस्त पुरातन परंपराओं को तोड़ा जा रहा है।तथा बड़ी तेजी से परिवर्तन किया जा रहा है।इस प्रकार से दोनों समूहों के बीच सामाजिक प्रत्यक्ष ज्ञान में भिन्नता पाई जाती है।जहाँ एक समूह इसे परिवर्तन की तीव्रता समझता है वहाँ दूसरा समूह इसे बड़ा धीमा परिवर्तन कहता है।यह हमारे सामयिक प्रत्यक्ष ज्ञान की समानान्तर स्थिति है।जब हम बड़ी उत्सुकता के साथ किसी की प्रतीक्षा करते हैं तो मिनट,घंटों की तरह मालूम पड़ती है।लेकिन जब किसी सामाजिक क्रियाकलाप में हँसी-खुशी से लगे रहते हैं तो घंटों का समय मिनटों की तरह व्यतीत हो जाता है।
  • यह एक सामान्य धारणा है कि दो पूर्वाग्रहीत समूहों में अधिक से अधिक संपर्क बना रहता है,परिचय से मित्रता बढ़ती है तथा एक-दूसरे के मूल्यों की प्रशंसा की जाती है।लेकिन यह केवल थोथा सत्य है।संपर्कों की वृद्धि से यदि पारस्परिक सौहार्द की भावना उत्पन्न हो सकती है तो उससे प्रतिरोध भी जन्म ले सकता है।अतः यह केवल सम्पर्कों की आवृत्ति पर ही निर्भर नहीं होता है।वह उन स्थितियों पर भी निर्भर होता है जिसमें सम्पर्क स्थापित होते हैं।यहां तक कि जब स्थितियां बड़ी अनुकूल होती है तो सम्भव है कि पूर्वाग्रहीत व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपवाद के रूप में देखने लगे और इस प्रकार से वह सम्पूर्ण समूह के प्रति अपनी मनोवृत्ति में कोई परिवर्तन लाना स्वीकार न कर सके।प्रायः अनेक बार यह सुनने में आता है कि यद्यपि यह ब्राह्मण है लेकिन बड़ा अच्छा साथी है तथा यद्यपि वह हरिजन है लेकिन बड़ा ज्ञानी व्यक्ति है।
  • भारत में सामाजिक रुप से बाधाग्रस्त समूहों के लिए शिक्षा तथा रोजगार की सुविधाओं में वृद्धि करके पूर्वाग्रह कम करने के प्रयत्न किए गए हैं।ये मापदण्ड उनके सामाजिक न्याय के अंग बन गए हैं।जब एक के लिए सामाजिक न्याय ठीक चलता है तो यह सम्भव है कि दूसरे के लिए वही सामाजिक अन्याय बन जाता हो।दक्षिणी भारतीय राज्यों में विद्यालय में प्रवेश तथा नौकरियां पाने के लिए वहाँ गैर-ब्राह्मणों को सुविधाएं दी जा रही हैं वहाँ दूसरी ओर इससे ब्राह्मण समुदाय पर इसका असर उल्टा पड़ रहा है।चूँकि भिन्न-भिन्न जातियों के बच्चे इकट्ठे पढ़ते हैं इसलिए आजकल पहले से अधिक सहनशीलता बरती जाने लगी है।
  • लेकिन इससे हमें यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि सभी पूर्वाग्रहों का अंत हो गया है।जबकि पूर्वाग्रह की संक्रिया एक क्षेत्र में समाप्त हो जाती है तो यह संभव है कि वही दूसरे क्षेत्रों में क्रियान्वित होती रहे।उदाहरणार्थ उच्च जाति का बालक निम्न जाति के बालक से स्कूल,रेस्टोरेंट्स तथा दूसरे स्थानों में स्वतंत्र रूप से मिल सकता है।लेकिन जब वह घर जाता है तो पूर्वाग्रहीत तरीके से व्यवहार करता है।यह इसलिए होता है क्योंकि वह अब दो प्रकार के सामाजिक प्रतिमानों (norms) का पालन करता है।वह स्कूल या कॉलेज में उदारतापूर्वक इसलिए व्यवहार करता है वहां पर वह सामाजिक प्रतिमान समझा जाता है।हम इस समस्या के एक दूसरे पहलू का सन्दर्भ भी दे सकते हैं।विगत दो या तीन दशकों में,दक्षिण भारतीय राज्यों में बहुत सी जातियां तथा मतावलम्बियों ने अपने निजी निःशुल्क छात्रावास खोले क्योंकि उन्होंने यह महसूस किया कि शिक्षा के बिना उनकी जाति उन्नति नहीं कर सकती।उन्होंने तत्परता के साथ दान दिया ताकि जातीय बच्चों को शिक्षण संबंधी सुविधाएं प्राप्त हो सके लेकिन इससे दूसरे समूहों के प्रति पूर्वाग्रह उत्पन्न हो गए।विशेष रूप से हाल के वर्षों में स्वयं राज्य सरकारों ने भी हरिजनों के लिए अनेक निःशुल्क छात्रावासों के खोलने में सहायता प्रदान की।
  • जबकि एक ओर हरिजन युवकों को शिक्षित बनाने के लिए सुविधाएं प्रदान की जा रही है तो दूसरी ओर उन्हें अन्य जातियों के युवकों के साथ उन्मुक्त रूप से घुल-मिलकर रहने में बाधा उत्पन्न की जा रही है।फलतः यह प्रयत्न किया जा रहा है कि अब राज्य सरकार द्वारा जातीय आधार पर छात्रावास न खोले जाएं।इस प्रकार के नियम बनाए गए हैं कि 10-20% स्थान छात्रावास प्रवेश के लिए जाति और धर्म को ध्यान में न रखकर अन्य सभी समुदायों के लिए सुरक्षित रखे जाएं।इस व्यवस्था से आगे चलकर जातीय तथा धार्मिक समूहों के धार्मिक समूहों के सामाजिक संबंधों में सौहार्द अभिवृत्ति का उदय हो सकेगा।
  • अब आवासी क्षेत्र अलग-अलग न बनाएं जाएं।अब सब समुदायों के लोग एक आवासी क्षेत्र में रहेंगे तो पूर्वाग्रह में कमी होगी।सामाजिक कानून बनाकर भी पूर्वाग्रह समाप्त करने के प्रयत्न किए गए हैं।स्वयं संविधान में यह लिखा गया है कि जाति तथा लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति की हानि नहीं होनी चाहिए।लेकिन केवल सामाजिक कानून बना देने मात्र से ही पूर्वाग्रहों की समाप्ति या कमी नहीं होगी।यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि कानून की सफलता सीमित होती है।कानून समाज को तभी प्रभावित कर सकता है जबकि वह सामाजिक प्रथा,रीति-रिवाजों का एक अंग बन गया हो।यदि कोई वैधानिक प्रतिमान सामाजिक प्रतिमान नहीं बनता तो वह बिल्कुल असफल हो जाएगा।लेकिन यह अवश्य महसूस की जानी चाहिए कि हरिजनों के साथ भेदभाव की समाप्ति जैसे कानून के पीछे एक लंबा इतिहास है।
  • बुद्ध,रामानुज,विश्वेश्वर तथा दूसरे सामाजिक नेताओं ने इस संबंध में जो कुछ कार्य किया है वह तो है ही,इसके अतिरिक्त महात्मा गांधी ने सामाजिक कानून के लिए भली प्रकार से पथ प्रशस्त किया।फिर भी इस सामाजिक कानून को प्रभावशाली बनाने के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं की आवश्यकता है जो इस कार्य को हाथ में लेकर जनता को शिक्षित करें ताकि विभिन्न जाति में व्याप्त पूर्वाग्रहों तथा मुख्य रूप से हरिजनों के प्रति पूर्वाग्रहों की समाप्ति हो सके।
  • अन्त में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि पूर्वाग्रह के नियंत्रण का एकमात्र तरीका स्वयं सामाजिक प्रतिमान (norms) में परिवर्तन लाना है।हरिजनों के प्रति पूर्वाग्रहों की समाप्ति तभी हो सकती है जब इस प्रकार के पूर्वाग्रहीत व्यवहार की सामाजिक रुप से अवमानना की जाए।दूसरे शब्दों में सामाजिक प्रतिमान में भिन्नता होनी चाहिए।जो सामाजिक प्रतिमान पहले था उसके स्थान पर नया विरोधी प्रतिमान बनना चाहिए।जब कोई हरिजन प्रशासनिक अधिकारी बन जाता है तो उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा स्वतः बढ़ जाती है।वह उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति होता है।वह प्रभावशाली तथा सम्मान्य व्यक्ति समझा जाता है।उसकी आय अब बहुत ज्यादा होती है।यह सब उसको सामाजिक प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति बना देते हैं।दूसरी ओर,जब लोगों में अपनी जाति का ध्यान आता है तो वे इस व्यक्ति के प्रति दो रुखा रवैया अख्तियार कर कर सकते हैं।हरिजन प्रशासन अधिकारी को अधिकारी वर्ग तथा नागरिकों के दिमागों में व्याप्त संघर्षों को समझना चाहिए।अतः उसे दूसरे लोगों के मस्तिष्कों के संघर्ष तथा उन कुछ अभिव्यक्तियों के प्रति संवेदनशील नहीं होना चाहिए।इन बातों की परवाह न करता हुआ तथा संवेदनशीलता से दूर रहकर वह लोगों की अधिक सहायता कर सकता है तथा अपने प्रशासनिक कार्य में भी सफलता प्राप्त कर सकता है।दूसरी ओर यदि वह अधिक संवेदनशील बन जाता है तो उसका जीवन दुःखदायी तथा दयनीय हो जाता है।
  • अंतर्दृष्टि व सहिष्णुता का भाव (feelings of insight and interpersonal):पूर्वाग्रह व्यक्तियों तथा समूह को व्यक्तिगत तथा समूह मनःचिकित्सा पद्धतियों के सहारे आपस में एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता पैदा करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।उनमें ऐसी अंतर्दृष्टि पैदा की जा सकती है ताकि वे अपने पूर्वाग्रह के बारे में समझ सके तथा प्रयास के द्वारा इसमें कमी कर सके।इस उद्देश्य की प्राप्ति में वैयक्तिक मनःचिकित्सा पद्धति को अत्यधिक प्रभावी पाया गया है।सहिष्णुता की शिक्षा द्वारा प्रारंभ से ही बच्चों को पूर्वाग्रहीत होने से बचाया जा सकता है।अभिभावकों तथा शिक्षकों की भूमिका इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है।वे अपने विचार तथा व्यवहार के द्वारा बच्चों में राष्ट्रीयता की भावना भर सकते हैं तथा उन्हें भाईचारा एवं सद्भावना के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
  • शिक्षाःलोगों को औपचारिक शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा के द्वारा अर्थात् शिक्षित करके पूर्वाग्रह से मुक्त कर सकते हैं।
    सामाजिकरण पद्धति में परिवर्तन (change in the method of socialization):साधारणतः वैसे लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते हैं जिन्हें अपने समाजीकरण के दौरान अपने माता-पिता अथवा शिक्षकों से कठोर अनुशासन का सामना करना पड़ता है।
  • कठोर अनुशासन के परिणामस्वरुप व्यक्ति निराशा का अनुभव करता है,जो बाद में विद्वेष एवं आक्रोश तथा पूर्वाग्रह के रूप में अभिव्यक्त होती है।अतः पूर्वाग्रह को रोकने का एक उपाय यह हो सकता है कि सामाजिकरण की कठोर पद्धति की जगह बच्चों के लालन-पालन के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित सौहार्दपूर्ण पद्धति का उपयोग किया जाए,उन्हें अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान की जाए।किन्तु अधिक लाड़-प्यार भी कभी-कभी विकास की दृष्टि से बाधक सिद्ध होते हैं क्योंकि यह बच्चों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास नहीं होने देता।फलतः वह अच्छे व बुरे में अंतर करने में असमर्थ हो जाता है।अतः इसे रोकने का सुगम तरीका यह है कि बच्चों को न तो अधिक लाड़-प्यार दिया जाए और न ही बच्चों के लालन-पालन में अत्यधिक कठोर अनुशासन का उपयोग किया जाए और न ही उन्हें सदा अभिभावकों व बुजुर्गों की आज्ञा मानने के लिए बाध्य किया जाए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Student Be Free From Prejudice?),गणित के छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Mathematics Students Be Free From Prejudice?) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित के छात्र द्वारा वचन का पालन (हास्य-व्यंग्य) (Adherence to Promise by Mathematics Student) (Humour-Satire):

  • छात्रःआज मैं गणित के सवाल को हल नहीं कर पाऊंगा।
  • गणित शिक्षकःयही बात तुम रोज कहते रहते हो।
  • छात्र:तो क्या हुआ,मैं अपना वचन ही तो निभा रहा हूं।वचन का पालन करना तो अच्छा गुण समझा जाता है।

6.छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (Frequently Asked Questions Related to How Can Student Be Free From Prejudice?),गणित के छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Mathematics Students Be Free From Prejudice?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.त्रुटिपूर्ण निर्णय और पूर्वाग्रह में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Flawed Judgment and Prejudice?):

उत्तर:यदि निर्णय करने की त्रुटिमात्र है तो व्यक्ति विषय पर बहस करने के लिए तैयार रहेगा तथा अपने निर्णय में सुधार कर सकेगा।परंतु पूर्वाग्रह के मामले में इसे दूर करने वाले सभी प्रमाणों के प्रति प्रबल विरोध की भावना बनी रहती है तथा अपने मत या विश्वास को नहीं बदलेगा।

प्रश्न:2.भेदभाव से क्या तात्पर्य है? (What Do You mean by Discrimination?):

उत्तर:जहाँ पूर्वाग्रह एक नकारात्मक मनोवृत्ति है वहाँ भेदभाव को किसी समूह अथवा उसके सदस्यों के प्रति नकारात्मक व्यवहार के रूप में जाना जाता है।यद्यपि व्यवहार पूर्वाग्रह से उत्पन्न होते हैं तथापि पूर्वाग्रह से उत्पन्न व्यवहार का भेदभाव पूर्ण होना आवश्यक नहीं है।एक दूसरे से संबंधित रहते हैं।परन्तु व्यवहार मात्र मनोवृत्ति से ही प्रभावित नहीं होते हैं बल्कि परिस्थिति से भी प्रभावित होता है।पूर्वाग्रहीत मनोवृत्ति सदा आक्रामक व्यवहार को ही जन्म नहीं देती है और न ही सारे आक्रामक व्यवहार पूर्वाग्रह से उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न:3.क्या पूर्वाग्रह को संपूर्ण रूप से समाप्त किया जा सकता है? (Can Prejudice be Eliminated Altogether?):

उत्तर:यद्यपि भिन्न-भिन्न देशों तथा भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के लोग पुरानी परंपराओं को,संकीर्ण सीमाओं को उखाड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं फिर भी वे एक सांसारिक दृष्टिकोण का विकास नहीं कर सके।पुरातन भारतीय विचारकों ने स्वयं यह अनुभव किया है कि इतनी उच्चता तक बहुत थोड़े ही व्यक्ति पहुंच सकते हैं जहां पर वे समूची मानवता को एक समूह के रूप में देखने लगे।जो समूह,वर्ण,धर्म,संस्कृति के आधार पर खड़ा है उसके लिए सार्वभौमिक अभिव्यक्ति को अपनाना संभव नहीं है।How Can Student Be Free From Prejudice?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Student Be Free From Prejudice?),गणित के छात्र-छात्राएं पूर्वाग्रह से मुक्त कैसे हों? (How Can Mathematics Students Be Free From Prejudice?): के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।How Can Student Be Free From Prejudice?
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