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Anything Done for Its Own Sake Without Concern for the Result

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1.निष्काम कर्म (Anything Done for Its Own Sake Without Concern for the Result),भगवद्गीता में अनासक्त कर्म (Unattached Karma in Bhagavad Gita):

  • निष्काम कर्म (Anything Done for Its Own Sake Without Concern for the Result)
    श्रीमद्भगवद्गीता में अनूठा,अद्वितीय और हमे समस्त दुखों,कष्टों,विपत्तियों में प्रेरणा देने वाला कर्म सिद्धांत है।अक्सर निष्काम कर्म करने के बारे में यह प्रश्न उठाया जाता है कि फल प्राप्ति के बिना,निष्प्रयोजन,बिना उद्देश्य,बिना लक्ष्य कर्म किया ही क्यों जाएगा? कर्म करने के लिए प्रेरणा कैसे प्राप्त होगी? वस्तुतः अध्ययन कार्य हो अथवा अन्य कार्य उसके साथ तीन चीजें जुड़ी हुई रहती है।काम करने का उद्देश्य (लक्ष्य),काम करने का ढंग और काम करने का परिणाम।जाहिर सी बात है कि कोई अपना कार्य करने का लक्ष्य निर्धारित करेगा तो फल प्राप्ति की इच्छा भी होगी ही।
  • छात्र-छात्राओं को अध्ययन कार्य लक्ष्य प्राप्ति,उद्देश्य व प्रयोजन के लिए ही करना चाहिए,फल (परिणाम) प्राप्ति के लिए कर्म करना चाहिए परंतु अक्सर हम इसमें एक गड़बड़ कर देते हैं और वह गड़बड़ है लक्ष्य या परिणाम के प्रति आसक्ति का होना।फल (परिणाम) के प्रति आसक्तिरहित (Unattached) अर्थात् अनासक्त भाव से कर्म करते हैं तो जो भी परिणाम मिले उसे सहज भाव से स्वीकार कर सके और दुःखी होने से बच सकें।
  • यदि हम अध्ययन अथवा अन्य कार्य फल के प्रति आसक्ति रखकर करेंगे अध्ययन कार्य को एकाग्रता से करने के बजाय उसके फल के बारे में विचार करते रहेंगे।जब अध्ययन कार्य को पूरी निष्ठा,एकाग्रता के साथ नहीं करेंगे तो उसका परिणाम भी अच्छा नहीं होगा।दूसरा कारण यह है कि फल (परिणाम) हमारे हाथ में होता ही नहीं है वह तो भगवान के विधि-विधान के अनुसार मिलता है फिर उसके प्रति आसक्ति रखने का कोई औचित्य नहीं है।हमारे हाथ में कर्म करना है,अध्ययन करना है उसे पूजा समझकर,समर्पण भाव के साथ करेंगे तो जो भी फल होगा उसे दुःखी नहीं होंगे क्योंकि हमने कर्म पूरी निष्ठापूर्वक किया है।अतः फल के प्रति आसक्ति रखने से किसी भी प्रकार से लाभप्रद और उचित नहीं है।
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2.अनासक्त कर्म (Unattached Deeds):

  • साधारणतः छात्र-छात्राएं आसक्ति के कारण ही अध्ययन कार्य या अन्य कोई कर्म करता है।आसक्ति कर्म को करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।छात्र-छात्राएं परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने,अच्छा परिणाम प्राप्त करने अथवा सुख प्राप्ति व दुःखों से बचने के लिए ही कोई कर्म करते हैं।अतः कर्म के मूल में आसक्ति को ही माना जाता है।परन्तु गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि हमें आसक्ति से मुक्त होकर कर्म करना है,आसक्ति पर विजय प्राप्त करनी है और अनासक्त होकर कर्म करना है।कर्मयोगी को सुख-दुख,हानि-लाभ,जय-पराजय,शुभ-अशुभ,न्याय-अन्याय इत्यादि द्वन्द्वों से ऊपर उठकर कर्म करना चाहिए।
  • परंतु अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि इन द्वन्द्वों से ऊपर उठकर साधारण छात्र-छात्रा के लिए अध्ययन कार्य अथवा अन्य कार्य करना संभव नहीं है।साधारण छात्र-छात्रा लाभ के लिए,अच्छा परिणाम प्राप्त करने के लिए ही कोई कार्य करता है।
    परंतु उनका यह सोचना सही नहीं है कि अनासक्त होकर कोई कार्य नहीं किया जा सकता है।हम कई कार्य बिना इच्छा के,अनासक्त होकर कार्य करते हैं।जैसे मजबूरी के कारण,किसी के दबाव से,किसी की आज्ञापालन करने के लिए जो कर्म करते हैं वे बिना इच्छा के ही कर्म करते हैं।इसलिए यह सोचना और कहना ठीक नहीं है कि बिना इच्छा के कोई कार्य किया ही नहीं जा सकता है।
  • इसी प्रकार इच्छा के बिना,आसक्ति के बिना कर्त्तव्यपालन को ध्यान में रखकर छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति कर्म करता है तो फल प्राप्ति में आसक्ति होने या न होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है।फल में आसक्ति नहीं रखने से छात्र-छात्राएं दुखी होने से बच जाता है क्योंकि फल (परिणाम) तो जो होना होता है वही होता है।यदि हम फल के प्रति अनासक्त होकर कर्म करते हैं तो हर हाल में,हर परिणाम में,हर स्थिति में अच्छा या बुरा कैसा भी परिणाम मिले तो उसमें राजी रहते हैं और दुःख से बचने का यही उपाय है।
  • कर्मयोगी के लिए स्वकर्म ही स्वधर्म है,गीता में बतलाया गया है कि सभी वर्णों के कर्म निश्चित हैं।ये निश्चित कर्म ही उनके स्वकर्म कहे जाते हैं।ये स्वकर्म ही उनके स्वधर्म है।स्वकर्म का आचरण ही मनुष्य का परम कर्त्तव्य है।स्वकर्म,स्वधर्म तथा अनासक्त कर्म मनुष्य तथा छात्र-छात्राओं के संकल्प स्वातन्त्रय का विरोधी नहीं है।विगत कर्मों के परिणाम हम वर्तमान में भोगते हैं तो वर्तमान कर्मों (संकल्प स्वातन्त्रय) के आधार पर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

3.गीता में निष्काम कर्म (Anything Done for Its Own Sake Without Concern for the Result in Gita):

  • कर्म दो प्रकार के होते हैंःसकाम कर्म और निष्काम कर्म।सकाम कर्म किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं और कर्मों की यह श्रृंखला बनती चली जाती है।अर्थात् सकाम कर्मों के कारण हम बन्धन में बँधते चले जाते हैं और सुख और दुःखों को भोगते रहते हैं।जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा नहीं मिलता है।हम किसी कामना (इच्छा) से प्रेरित होकर शारीरिक व मानसिक कर्म करते रहते हैं।उदाहरणार्थ छात्र-छात्राएं धन-संपत्ति अर्जित करने,अच्छा जाॅब प्राप्त करने,अच्छी शिक्षा अर्जित करने इत्यादि कर्म इच्छा या कामना से प्रेरित होकर करते हैं तो ये सकाम कर्म हैं।
  • जब हम कामना या फल प्राप्ति की इच्छा से कर्म करते हैं तो उसके फल भोगते हैं।इस प्रकार कर्म की अनन्त धारा चलती रहती है।इस कर्म के बन्धन के कारण ही हम विभिन्न योनियों में जन्म ग्रहण करते हैं।
  • दूसरे प्रकार का कर्म है निष्काम कर्मःइसमें किसी भी कर्म को करने के फल के प्रति आसक्ति नहीं रहती है।निष्काम कर्म से बन्धन नहीं होता है क्योंकि बंधन का मूल कारण कर्मफल प्राप्ति में आसक्ति का अभाव रहता है।
  • गीता का कर्मयोग निष्काम कर्म से ही है।निष्काम कर्म तृष्णा रहित कर्म है।तृष्णा के अभाव में छात्र-छात्राएं तथा मनुष्य कर्म करते हुए कर्मफल का कारण नहीं बनते हैं।श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सैतालीसवाँ श्लोक में कहा गया है कि:
  • “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।।”
  • अर्थात (हे अर्जुन!) निष्काम कर्मों के करने का ही तुम्हें अधिकार है,कर्मफलों में तुम्हारा अधिकार नहीं है,तुम कर्मफलों के अभिलाषी अथवा सत्कर्मों के परतंत्र मत बनो,साथ ही साथ अकर्मण्य भी न बनो अर्थात् जो कुछ भी कर्म करो,फलाशा छोड़कर निष्काम भाव से करो।
  • छात्र-छात्राओं तथा मनुष्य के कौन-कौनसे कर्म के क्या-क्या फल हैं और फल उसे किस जन्म में किस प्रकार प्राप्त होंगे इसका ज्ञान उनको नहीं हैं।फल का विधि-विधान भगवान् के अधीन है।कई बार छात्र-छात्राओं को बहुत कठिन परिश्रम से अध्ययन करने पर भी अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं होती है अथवा असफल हो जाते हैं जबकि कुछ छात्र-छात्राओं को थोड़ी सी मेहनत करने पर भी बहुत अधिक सफलता मिल जाती है।इस प्रकार के परिणाम प्राप्त होने पर छात्र-छात्राएं भ्रमित हो जाते हैं।अतः उन्हें निष्काम कर्म अर्थात् फलाशा में आसक्ति न रखकर निरंतर अपने कर्त्तव्य का पालन (अध्ययन) करते रहना चाहिए।

4.निष्काम कर्म के महत्त्वपूर्ण बिन्दु (Important Points of Selfless Action):

  • (1.)निष्काम कर्म में दो बातों का पालन करना चाहिएःपहला कर्त्तापन का अभाव तथा दूसरा फल प्राप्ति में आसक्ति या तृष्णा का त्याग। 
  • (2.)अध्ययन अथवा किसी कर्म को करते समय यह भाव रहता है कि मैं इस कार्य को करता हूं या मैं ही इस कार्य को संपन्न करता हूं यह भाव ही कर्त्तापन है।किसी कार्य अध्ययन इत्यादि को करने के समय या बाद में फल में आसक्ति अर्थात् मुझे 90% प्रतिशत अंक प्राप्त होने ही चाहिए ऐसी कामना या आसक्ति रखना आसक्ति या तृष्णा है।
  • (3.)अनासक्त कर्म या निष्काम कर्म कर्त्तव्य पालन की दृष्टि से कर्म करना है तथा कर्त्तव्य पालन की दृष्टि से कर्म करने पर हम उसके परिणाम को सहज भाव से स्वीकार करते हैं तथा दुःखों से बचे रहते हैं।
  • (4.)जैसे भुँजे हुए चने या बीज में पौधा या वृक्ष बनने की शक्ति नहीं होती है उसी प्रकार राग-द्वेष से रहित कर्म में सुख-दुःख की अनुभूति नहीं होती है क्योंकि इस प्रकार के कर्म में कर्त्ता का अभाव रहता है।
  • (5.)कर्त्तापन का अभाव कैसे संभव है? यदि छात्र-छात्राएं और मनुष्य यह समझे कि सभी कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं।प्रकृति के तीन गुण हैंःसत्त्व,रज और तम।इन तीन गुणों से मन,बुद्धि,अहंकार,दस इन्द्रियाँ और शब्दादि पाँच विषय उत्पन्न होते हैं।इन गुणों के कारण ही अन्तःकरण (मन,बुद्धि,अहंकार,चित्त) और इन्द्रियों का विषय ग्रहण करना आदि कार्य होते हैं।
  • (6.)बुद्धि किसी भी कर्म को करने या न करने का निश्चय करती है।मन मनन करता है,कान सुनता है,आंखें देखती है इत्यादि।इस प्रकार सभी कार्य प्रकृति के गुणों द्वारा संपन्न किए जाते हैं।ज्ञानी तो यही समझता है परंतु अज्ञानी अपने आपको कर्म का कर्त्ता मानता है।जैसे:मैं निर्णय लेता हूं,मैं देखता हूं,मैं सुनता हूं आदि।वस्तुतः निश्चय करना,देखना,सुनना इत्यादि शरीर,मन,बुद्धि,इंद्रियों द्वारा किए जाते हैं।अतः छात्र-छात्राएं और मनुष्य में कर्त्तापन का अभिमान (घमंड) केवल अज्ञान ही है।
  • (7.)आसक्ति के त्याग के लिए हमें समस्त कर्म भगवान् को अर्पण कर देना चाहिए।कर्म में ममता या आसक्ति रखने के बजाय भगवान् को कर्म अर्पण करने से आसक्ति का अभाव होगा।सब कुछ भगवान् का है,मैं भी भगवान का हूं,मेरे द्वारा जो भी कर्म किए जाते हैं वे सभी भगवान् के हैं,भगवान ही मुझ कठपुतली से सब कर्म करवा रहे हैं।इस प्रकार की भावना से,भगवान की आज्ञा से,भगवान की प्रसन्नता के लिए शुभ कर्म किए जाते हैं।
  • (8.)निष्काम कर्म का अर्थ काम्य कर्मों का त्याग नहीं है।उदाहरणार्थ धन-संपत्ति,जाॅब प्राप्त करने,परीक्षा में सफलता अर्जित करने आदि के लिए यज्ञ,दान,तप आदि काम्य कर्म हैं।निष्काम कर्म का अर्थ निषिद्ध कर्मों का त्याग भी नहीं है।जैसे चोरी करने,झूठ बोलने,परीक्षा में नकल करने,मारपीट इत्यादि को न करना।गीता में निष्काम कर्म का अर्थ है संसार के सभी कर्मों में ममता व आसक्ति का त्याग।
  • (9.)निष्काम कर्म का अर्थ कोई कार्य न करना,फालतू बैठे रहना,आलसी,निकम्मापन,अकर्मण्यता नहीं है अर्थात् निष्क्रियता या नैष्कर्म्य नहीं है बल्कि निष्काम कर्म का सार यह है कि भगवदर्थ कर्म करना।

5.निष्काम कर्म का दृष्टांत (The Parable of Selfless Action):

  • एक बार एक गणित का छात्र बेरोजगारी से पीड़ित अपने गांव को छोड़कर एक शहर में चला गया।एक कोचिंग के निदेशक ने उसकी अच्छी तरह से जांच-परख करके अपने कोचिंग संस्थान में गणित शिक्षक के पद पर नियुक्त कर दिया।साथ ही उसे कोचिंग में स्थित लाइब्रेरी का अतिरिक्त दायित्व दे दिया।वह ईमानदारी पूर्वक शिक्षक का कार्य सम्हालने के साथ-साथ लाइब्रेरी का दायित्व भी बखूबी निभाता था।
  • शिक्षक के कर्त्तव्यनिष्ठा,ईमानदारी और कठिन परिश्रम से कोचिंग के निदेशक को पूर्ण संतुष्टि थी।उस शिक्षक ने कोचिंग में कई वर्ष गुजार दिए।जितना वेतन मिलता था उसी से अपना और परिवार का भरण-पोषण करता था तथा उसी से सन्तुष्ट रहता था।
  • कुछ वेतन बचता तो आसपास की बस्ती में रहने वाले निर्धन छात्र-छात्राओं की फीस चुकाने के लिए बांट देता था ताकि वे भी शिक्षा अर्जित कर सकें।वह बस्ती के लोगों से कहता कि मैं भी बहुत निम्न स्तर से उठकर यहां तक पहुंचा हूँ,अब जितना सम्भव है उतना निर्धन व अक्षम छात्र-छात्राओं की सहायता-सहयोग करता रहूंगा।वह छात्र-छात्राओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए भी प्रेरित करता रहता।
  • उस शिक्षक के पढ़ाने की कला से प्रेरित होकर एक दिन कुछ छात्र-छात्राएं कोचिंग के निदेशक के पास आए।छात्र-छात्राओं ने कहा कि हम गणित में अपनी कमजोरी को दूर करना चाहते हैं तथा हमारे पास पुस्तक नहीं है।कृपया हमें कोई सरल तथा अच्छी सी गणित की पुस्तकें दिखाओ जिससे हम गणित का अध्ययन कर सकें।
  • कोचिंग के निदेशक ने उस गणित के शिक्षक को बुलाया और कहा कि कुछ छात्र-छात्राएं पढ़ने के लिए आएं हैं इन्हें अपनी लाइब्रेरी में से कुछ सरल व अच्छी सी गणित की पुस्तकें लाकर दिखा दो।शिक्षक लाइब्रेरी में गया और कुछ गणित की पुस्तकें लाकर दे दी।छात्र-छात्राओं ने गणित की पुस्तकों को देखा तो उनके होश उड़ गए।क्योंकि वे गणित की पुस्तकें बहुत ही जटिल,कठिन थी,उन्हें देखकर वे छात्र-छात्राएं बहुत निराश हुए।
  • निदेशक ने गणित शिक्षक से कहा कि तुम्हें इतने वर्ष हो गए हैं और लाइब्रेरी में यह भी पता नहीं है कि किस लेखक की व कौनसी पुस्तक सरल है और इन छात्र-छात्राओं को समझ में आ सके।शिक्षक ने विनम्र भाव से कहा कि श्रीमन् मैं तो लाइब्रेरी की पुस्तकों की रखवाली करता हूं।आप द्वारा निर्देश दिया हुआ है कि बिना इजाजत किसी भी छात्र-छात्राओं को पुस्तकें मत देना।पुस्तकों की सुरक्षा का पूर्ण उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है।मैं पुस्तकों की चोरी छात्र-छात्राओं को नहीं करने देता और न ही बिना इजाजत तथा रजिस्टर में एंट्री किए किसी को पुस्तक देता हूं तो स्वयं बिना अधिकार के पुस्तकों को कैसे ले सकता हूं और पढ़ सकता हूँ।
  • निदेशक ने कहा कि मैंने ईमानदार शिक्षक तो बहुत देखे हैं परंतु तुम जैसा कर्मनिष्ठ,निर्लोभी मैंने पहली बार देखा है।कोचिंग में पूर्ण निष्ठा के साथ छात्र-छात्राओं को पढ़ाना तथा लाइब्रेरी का दायित्व निभाने में पुस्तकों की संभाल व सुरक्षा रखने का कार्य बखूबी एक कर्मयोगी ही कर सकता है।जो इसमें सफल होता है,वह सम्मान पाता है।निष्काम कर्मयोगी होता है और अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में निष्काम कर्म (Anything Done for Its Own Sake Without Concern for the Result),भगवद्गीता में अनासक्त कर्म (Unattached Karma in Bhagavad Gita) के बारे में बताया गया है।

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6.युवती ने युवक को चांटा मारा (हास्य-व्यंग्य) (Young Woman Slap Young Man) (Humour-Satire):

  • दो युवक कक्षा में गणित के सवाल हल कर रहे थे।पास में एक युवती बैठी थी।तभी युवती ने एक छात्र के थप्पड़ मारा और कहा कि तुमने मेरे पैर पर पैर रखा और चिकोटी काटी।
  • पहला छात्र अपने मित्र की तरफ देखकर बोलाःमैंने पैर पर पैर नहीं रखा और चिकोटी नहीं काटी।
  • मित्रःजानता हूं तुम्हें अच्छी तरह से।सुंदर सी लड़की को देखकर तुम फिसल जाते हो,अपने आपका नियंत्रण खो देते हो।

7.निष्काम कर्म (Frequently Asked Questions Related to Anything Done for Its Own Sake Without Concern for the Result),भगवद्गीता में अनासक्त कर्म (Unattached Karma in Bhagavad Gita) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गीता के निष्काम कर्म का क्या महत्त्व है? (What is the Significance of The Gita’s Selfless Deeds?):

उत्तर:सामान्य छात्र-छात्राओं के लिए निष्काम कर्म का पालन करना कठिन है।प्रायः छात्र-छात्राएं एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं और उसे प्राप्त करना चाहते हैं।छात्र-छात्राओं के इस प्रकार के कर्म ऐच्छिक कर्म होते हैं और उसे प्राप्त करने के परिणाम और फल की आकांक्षा रखते हैं।वस्तुतः अधिकांश छात्र-छात्राओं को फल की यह आकांक्षा ही अध्ययन करने,परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने,जाॅब प्राप्त करने या अन्य कोई कार्य करने की मूल प्रेरणा है जिसके अभाव में उनके लिए निष्काम कर्म करना संभव प्रतीत नहीं होता है।ऐसी स्थिति में उपर्युक्त कर्म (ऐच्छिक कर्म) साधारण छात्र-छात्रा के लिए असंभव प्रतीत होता है।परंतु यह अवश्य है कि एक बार अपना लक्ष्य निर्धारित करने के पश्चात कर्म करते समय छात्र-छात्राएं उसके परिणाम पर अधिक ध्यान न दें और यथासंभव अधिकतम प्रयास करने पर भी सफलता न मिलने से अधिक विचलित न हो।इस दृष्टि से सामान्य छात्र-छात्रा के लिए भी गीता के निष्काम कर्म के सिद्धांत का बहुत महत्त्व है।जीवन में अंशत इस सिद्धान्त का पालन करने पर भी छात्र-छात्राओं को पर्याप्त शान्ति एवं संतोष की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न:2.अनासक्त से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Unattached?):

उत्तरःशरीर,मन,बुद्धि और अन्तःकरण को भगवान के अर्पण करना या भगवान् में रखना और फिर अंतःकरण से या भगवत प्रेरणा से कर्म करना ही गीता का अनासक्त कर्म योग है।अनासक्त कर्मयोग का आधार समर्पण भाव है।

प्रश्न:3.गीता में मिथ्याचारी किसे कहा गया है? (Who is Called a Hypocrite in the Gita?):

उत्तर:जो मनुष्य कर्मेंद्रियों (मुख,हाथ-पांव,गुदा और लिंग) पर तो नियंत्रण कर लेता है परन्तु मन में इन्द्रियों के विषय-भोग की सोचता रहता है वह पाखण्डी होता है।जैसे कोई व्यक्ति कर्मेन्द्रिय (लिंग) के द्वारा सहवास (सम्भोग) तो न करें परन्तु मन में किसी सुन्दर युवती या महिला के साथ संभोग (सहवास) करने का चिन्तन करे,कामवासना को तृप्त करने का चिन्तन करे।ऐसा व्यक्ति बाहर से दिखाने के लिए ब्रह्मचर्य को धारण करता है ऐसे व्यक्ति को गीता में मिथ्याचारी या पाखण्डी कहा गया है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा निष्काम कर्म (Anything Done for Its Own Sake Without Concern for the Result),भगवद्गीता में अनासक्त कर्म (Unattached Karma in Bhagavad Gita) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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