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4 Tips to Develop Art of Reading Maths

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1.गणित पढ़ने की कला विकसित करने के 4 टिप्स (4 Tips to Develop Art of Reading Maths),छात्र-छात्राएं गणित पढ़ने की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Reading Mathematics?):

  • गणित पढ़ने की कला विकसित करने के 4 टिप्स (4 Tips to Develop Art of Reading Maths) के आधार पर गणित को पढ़ने में छात्र-छात्राएं सिद्धहस्त हो सकेंगे।हम गणित तथा अन्य विषयों का अध्ययन करना चाहते हैं परंतु केवल चाहने से कुछ नहीं होता है।हम अध्ययन करने के लिए सोचते तो है परन्तु उसके अनुसार कर नहीं पाते हैं।कई गलत आदतों के कारण जैसे आलस्य,लापरवाही,अध्ययन का महत्त्व न समझने के कारण अध्ययन नहीं करते हैं।हालांकि गुरुजनों,माता-पिता,अभिभावकों,शुभचिंतकों का परामर्श व उपदेश भी गणित जैसे विषयों पर अधिक फोकस करने तथा अध्ययन करने के मिलते रहते हैं तथा हमें सुधरने-संभलने को कहा जाता है।सुनने में वे परामर्श व उपदेश हितकर लगते हैं किंतु बुरी आदतों को छोड़ने की बात आती है तो मन मुकर जाता है।रोजाना जैसे जीने का ढर्रा रहता है उसको छोड़ने के लिए मन सहमत नहीं होता है। उपदेशों से प्रभावित हुए मन की वह सज्जनता समय आते ही बालू के ढेर की तरह खिसक जाती है।पत्ते की तरह उड़ जाती है।
  • सत परामर्श व उपदेश पर टिकने की पृष्ठभूमि ही नहीं होती है।जिस संकल्प शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है उसका अभाव रहने से अध्ययन नहीं कर पाते हैं।स्थिति ज्यों की त्यों अर्थात् पढ़ाई करने में ढील पोल बनी रहती है।ज्योंही परीक्षा निकट आती है तो इसका अनुभव भी होता है,सब कुकृत्यों को छोड़ने को जी भी करता है,पर जब पुराना ढर्रा याद आता है तो सोचा-समझा बेकार हो जाता है।पुरानी आदतें (न पढ़ने की) उभर आती है और अपना काम करने लगती है।बार-बार अपने आपमें सुधार करने,सोचने तथा समय आने पर उसे न करने पर मनोबल टूटता है।बार-बार मनोबल टूटने पर वह इतना दुर्बल हो जाता है कि छात्र-छात्राएं गणित तथा अन्य विषयों का अध्ययन करने में अपने आपको असमर्थ समझ लेते हैं।वे यह धारणा बना लेते हैं कि अध्ययन करना उनके वश की बात नहीं है और जिंदगी कष्टों और कठिनाइयों में गुजरेगी।इन घटिया आदतों से छुटकारा मिल सकेगा।परंतु सभी के साथ ऐसा होता तो फिसड्डी छात्र-छात्राएं प्रयास करना छोड़ देते।इसलिए प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि ऐसा क्या किया जाए जो दुर्बल मन पर तथा गलत आदतों पर पार पाया जाए।
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2.कठिनाइयों से बुद्धि का विकास (Development of Wisdom from Difficulties):

  • गणित तथा अन्य विषयों के अध्ययन करने के लिए छात्र-छात्राओं को पुस्तकों का अभाव,योग्य प्रशिक्षक का अभाव,अच्छे शिक्षण संस्थान का अभाव,अच्छे मित्रों का अभाव,पढ़े-लिखे माता-पिता का अभाव,अच्छे वातावरण का अभाव,इंद्रियों पर नियन्त्रण न कर पाना,मन को काबू न कर पाना आदि अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।इन समस्याओं तथा इनकी गुत्थी को सही तरीके से सुलझाना पड़ता है।
  • यदि छात्र-छात्राएं इनका उचित समाधान न कर सके और उत्तीर्ण होने के अनैतिक तरीके नकल करना,परीक्षा से पूर्व परीक्षा प्रश्न-पत्र प्राप्त करने की कोशिश करना आदि में संलग्न हो जाए तो ऐसे छात्र-छात्राएं को देर-सबेर असफलता प्राप्त करते हैं अथवा सही मार्ग से भटककर अपने लिए आगे से आगे विपत्तियाँ खड़ी करते जाते हैं।
  • अध्ययन को संतत्व की संज्ञा दी जा सकती है।संत बड़ा होता है और अध्येता (विद्यार्थी) छोटा होता है पर गुत्थियां दोनों की एक सी हैं।विद्यार्थी छोटा है तथा शिक्षक बड़ा है परन्तु अध्ययन करने की कला दोनों को ही समान रूप से सोचनी पड़ती है और अध्ययन करने में आनेवाली रूकावटों का समाधान करने के लिए दोनों को ही समान रूप से प्रयास करना पड़ता है।छोटे या बड़े हर किसी को कठिनाइयों व समस्याओं का हल खोजना पड़ता है और अपना रास्ता स्वयं साफ करना पड़ता है।
  • संसार में जितने भी महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक और महापुरुष हुए हैं उनमें एक भी ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अध्ययन करने के लिए दौड़-धूप न करनी पड़ी हो तथा सीधा,सरल और शांतिपूर्ण अध्ययन-अध्यापन की सुविधा मिली हो।यदि ऐसा होता तो मानवीय बुद्धि का विकास ही सम्भव नहीं होता।बर्तनों की चमक तभी कायम रहती है जब उन्हें रोज साफ किया और धोया जाता है,निष्क्रिय पड़े रहने पर तो उन पर भी धूल-मिट्टी जमा हो जाती है।
  • कठिनाइयों और समस्याओं से रहित अध्ययन निर्जीव और आनंद रहित ही होगा,उसमें जड़ता,अनुत्साह और अवसाद ही कायम रहेगा। भगवान ने सभी को प्रगति,विकास,शक्ति,चतुर,साहसी,पराक्रमी बनने की क्षमताएं इसीलिए दी है कि उसके सामने आने वाली समस्याओं व कठिनाइयों के अंबार को अपने स्तर पर हल कर सके।
  • शिक्षक,छात्र-छात्राओं को कुछ सवाल समझाते हैं,बाकी के सवाल छात्र-छात्राओं को हल करने के लिए छोड़ देते हैं।छात्र-छात्राएं उन्हें हल करने की कोशिश करते हैं,उनमें से बहुत से सवाल हल कर लेते हैं।इस प्रकार उन्हें सवालों को हल करने का अनुभव हो जाता है।सभी सवालों को हल करके तो शिक्षक दे सकते हैं परन्तु छात्र-छात्राओं को सवालों को हल करना सिखाना तो बड़ा प्रश्न था।इसके बिना छात्र-छात्राओं की प्रतिभा का विकास ही नहीं हो सकता।इसलिए गणित तथा अन्य विषयों का अध्ययन करते समय एक समस्या व सवाल को हल करते हैं तो एक के बाद एक समस्याओं व सवालों का ताँता लगा ही रहता है।

3.समस्याओं से पलायन उचित नहीं (Migration from Problems is not Advisable):

  • अर्जुन की प्रतिज्ञा थीःअर्जुनस्य प्रतिज्ञेद्वै न दैन्यं न पलायनम् यानी न तो दीनता (हार) स्वीकार करना है और न मैदान छोड़कर भागना।यह सोचना उचित नहीं है कि हमें समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा। विद्या प्राप्त करने और जीवन जीने की व्यवस्था उलझनों से रहित नहीं हुई है।इसलिए उसे बच निकलने की कल्पना करने के बजाय यह सोचना चाहिए कि अध्ययन करने में आने वाली अड़चनों का समाधान करने का तरीका क्या हो? छाता से तेज धूप और वर्षा से सहज ही बचाव हो जाता है।यदि हमारे उलझनों को सुलझाने का सही दृष्टिकोण हो तो कठिन से कठिन सवालों और समस्याओं को तत्काल हल किया जा सकता है।
  • आमतौर पर छात्र-छात्राएं सोचते हैं और चाहते हैं कि कोई भी सवाल उनसे हल हो जाए।अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप ही सवाल और समस्याओं को देखना चाहते हैं।मानों सवाल व समस्याएं गीली मिट्टी की तरह है।यह आकांक्षा भी इसी प्रकार असफल रहने वाली है जैसे अध्ययन में समस्याओं व कठिनाइयों से मुक्त रहने की कल्पना करना।इसके बजाय यह सोचने व करने की आवश्यकता है कि सवालों व समस्याओं को किस युक्ति से हल किया जाए।सवालों व समस्याओं को हल करने की क्षमता अपने अन्दर उत्पन्न करें।सुनार स्वर्ण को आभूषणों में परिवर्तित करने के लिए आग में तपाकर उसे नरम करता है तब मनचाहा आभूषण तैयार करता है।
  • अध्ययन में आनेवाली रुकावटों,समस्याओं से घबराकर हिम्मत हार जाना या अध्ययन छोड़ देना कायरता है।कायर और अकर्मण्य होने से उनका समाधान नहीं किया जा सकता है।सफल होने के लिए निष्ठा,बुद्धिमत्ता,सहनशीलता,धैर्य,एकाग्रता,दृढ़ संकल्पशक्ति,तीव्र उत्कंठा,उत्साह इत्यादि गुणों को धारण करने की आवश्यकता है।बिना संघर्ष के सफलता अर्जित करना नमक रहित रोटी खाने के समान है।संघर्ष की भट्टी में तैयार होकर छात्र-छात्राओं की प्रतिभा निखरती,उभरती है।

4.सफलता का सूत्र (The Formula of Success):

  • गणित पढ़ने की कला में मुख्य रूप से दो बातें ध्यान में रखनी होती है।पहली गणित के सवालों और समस्याओं को हल करने की सामर्थ्य उत्पन्न करना और दूसरी जटिल समस्याओं से घबराकर मानसिक सन्तुलन न खोना।ये दोनों गुण होंगे तो अध्ययन करने में असफल नहीं होंगे।कठिनाई और समस्याएं हमारे लिए वरदान स्वरुप है।उनसे घबराना,दुखी होना,चिंतित व परेशान होना अपने लिए असफलता का दरवाजा खोलना है।समस्याओं और परेशानियों से निराश,हताश होने पर विकास का मार्ग रुक जाता है।
  • अध्ययन करने में कष्ट और कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है जिसका धैर्य,साहस और निष्ठापूर्वक सामना करना ही चाहिए।
  • छात्र-छात्राओं के सामने कई कठिनाइयां आ धमकती हैं।एक कठिनाई से पीछा छूटता ही नहीं और दूसरी समस्या आ धमकती है।गणित के शिक्षक ठीक से पढ़ाते हैं तो विज्ञान के शिक्षक ठीक से नहीं पढ़ाते हैं।विज्ञान के शिक्षक ठीक से पढ़ाने वाले आए नहीं कि स्वास्थ्य खराब हो गया।स्वास्थ्य ठीक हुआ नहीं कि घर में कोई दुर्घटना घटित हो गई।एक से एक मुसीबत सामने आकर खड़ी हो जाती हैं।ऐसे समय में छात्र-छात्राओं के हौसले पस्त हो जाते हैं,हाथ-पाँव ठंडे पड़ जाते हैं।बुद्धि काम नहीं देती है।हमेशा यही आशंका रहती है कि कोई नई मुसीबत खड़ी न हो जाए,इस चिन्ता के कारण अधमरे हो जाते हैं।परन्तु भाग्य अटल है उससे भयभीत होने से डर क्यों?
  • बुरी आदतों में फँसने के बाद व्यक्ति का पतन चालू हो जाता है तो रुकने का नाम नहीं लेता है।जैसे पृथ्वी किसी वस्तु को गुरुत्वाकर्षण बल से अपनी ओर खींचती है उसी प्रकार बुरी आदतें चुम्बक की तरह व्यक्ति को खींचती है और घिसटता हुआ चला जाता है।एक बार बुरी आदतों के चंगुल में फँसने के बाद न चाहते हुए भी उसका पतन इतना होता जाता है कि जहाँ जाने के लिए उसका विवेक इजाजत नहीं देता है।
  • जैसे कोई छात्र नकल करने की कोशिश करता है।धीरे-धीरे वह नकल करने की कला सीख जाता है तो अपने साथियों को प्रेरित करता है।जब नकल करने वाले का गुट तैयार हो जाता है तो वह परीक्षक को डरा-धमकाकर खुलेआम नकल करने लगता है।आगे उसका पतन होता है तो वह परीक्षा से पूर्व प्रश्नपत्र प्राप्त करने की कोशिश करता है।फिर भी असफल हो जाता है तो पुनर्मूल्यांकन में बोर्ड के कर्मचारियों-अधिकारियों को घूस देकर अंक तालिका में अंक बढ़ाकर उत्तीर्ण हो जाता है।इस प्रकार ऐसे विद्यार्थियों का पतन ऊपर से नीचे की ओर होता जाता है।
  • जबकि उचित तरीके अपनाने वाले छात्र-छात्राएं कठिन परिश्रम करते हैं।असफल हो जाते हैं तो परीक्षा की पुनः कठिन तैयारी करते हैं।असफलता के कारणों को खोजकर उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं।

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5.गणित पढ़ने की कला का दृष्टान्त (A Parable of the Art of Reading Mathematics):

  • पतन के मार्ग पर चलने के लिए ज्यादा प्रयत्न और प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है।परंतु सही तरीका अपनाने,सही तरीके से पढ़ने और उत्तीर्ण होने,ऊँचा उठने में ओर भी अधिक अड़चने हैं।महान् गणितज्ञ,वैज्ञानिक ऐसी मिट्टी के बने हुए होते हैं जो अपने गुण,कर्म और स्वभाव को ऐसा बना लेते हैं कि वे अवरोधों,मुश्किलों से जूझते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं।उनकी उपलब्धियां,सम्मान,मान-प्रतिष्ठा को देखकर अनेक लोगों का वैसा ही बनने का मन करता है।लेकिन महानता के पद पर कदम बढ़ाते हुए इतना आसान नहीं होता है।कई लोग सोचते हैं,मन मारते ही अपनी जिंदगी व्यतीत कर देते हैं।उन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई अवरोधक उनके बीच रास्ते में आकर खड़ा हो गया है और उनकी कल्पना,इच्छा,योजना धरी की धरी रह जाती है।
  • वस्तुतः ऐसा कुछ नहीं है,महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महापुरुष बनने में विशेष अड़चन नहीं है।अड़चने तभी दूर हो सकती है जबकि वह दुष्प्रवृत्तियों को छोड़े तब भी सही मार्ग में भी अड़चने तो आती ही हैं।अड़चनें जीवन का अंग है।जो छात्र-छात्राएं अड़चनों को दूर करने की कला सीख जाता है वह आगे से आगे बढ़ता जाता है।
  • एक नगर में गणित अध्यापक गणित को पढ़ाने में अपनी कला और ज्ञान के बल पर ऐसा पढ़ाते थे कि छात्र-छात्राएं मन्त्र मुग्ध और मस्त होकर पढ़ते थे।एक बार गणित अध्यापक विश्वजीत ज्यामिति का पाठ पढ़ा रहे थे।ज्यामितीय आकृतियों को ऐसा उकेरा गया था कि छात्र-छात्राओं की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा।उसी दिन औचक निरीक्षण पर जिला शिक्षा अधिकारी आ गए।ऐसा अनुपम कला-कौशल उन्होंने आज तक नहीं देखा था।वे एकटक उन आकृतियों को देख रहे थे।आकृतियां जैसे जीवंत हो।जिला शिक्षा अधिकारी ने कहा कि तुम्हें इन आकृतियों को बनाने में इतना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।गणित शिक्षक ने कहा कि गणित  विज्ञान के साथ-साथ कला भी है।जो शिक्षक गणित को पढ़ाने में जितना दक्ष और कलाकार होता है छात्र-छात्राओं को गणित उतनी ही रोचक लगती है।इसमें समय बर्बाद होने जैसी बात ही नहीं है।जिला शिक्षा अधिकारी ने कहा कि तुम्हारे हाथ भले स्वर्ग का निर्माण कर दें परंतु तुम्हारी जीभ तुम्हें रसातल की तरफ ले जाने वाली है।तुम्हें नौकरी भी गंवानी पड़ सकती है।
  • गणित अध्यापक ने कहा कि श्रीमान एक सच्चे गणित शिक्षक की वाणी और हाथ अलग-अलग नहीं होते।उसका मस्तिष्क और हृदय भी अलग-अलग नहीं होते।
  • अधिकारी और शासक भले ही कुछ भी कहें परंतु गणित का सच्चा अध्यापक सत्य का पुजारी होता है और सत्य एक ही है और वह है आत्मा के प्रकाश में विकसित होना।जिला शिक्षा अधिकारी के तन-बदन में आग लग गई।उन्होंने आदेश दिया कि गणित की इन आकृतियों को अपने हाथों से मिटाओ।शिक्षक ने मना कर दिया और बोले अभी इस टॉपिक को पढ़ाने का कार्य पूरा नहीं हुआ।जिला शिक्षा अधिकारी ने कहा कि तुम्हें नौकरी से हटा दिया जाएगा।गणित अध्यापक बोले हृदय गंवाने के बजाय नौकरी गंवाना मुझे मंजूर है।
  • शिक्षा अधिकारी ने कहा कि क्या तुम इन्हें कभी नहीं मिटाओगे।शिक्षक बोले मैं गणित के हर टाॅपिक में ऐसी आकृतियाँ बनाता हूं जिनमें मेरी कला पूर्णतया प्रकट हो जाती है और फिर उसी खूबसूरती के साथ टाॅपिक को पढ़ाता हूँ।छात्र-छात्राओं के टाॅपिक पूरी तरह समझ में आ जाता है और टाॅपिक पूरा हो जाता है तब उन आकृतियों को मिटाता हूँ।
  • सभी छात्र-छात्राएं सोच रहे थे कि गुरुजी को दण्ड अवश्य मिलेगा।परन्तु शिक्षा अधिकारी बोले तुम्हारी इन सजीव आकृतियों ने मुझे पराजित कर दिया है। तुम्हारे स्वाभिमान ने मेरे अंदर के अहंकार को नष्ट कर दिया है।तुम्हें स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित किया जाएगा और सच में ही स्वयं जिला शिक्षा अधिकारी ने शिक्षक को पुरस्कृत और सम्मानित किया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित पढ़ने की कला विकसित करने के 4 टिप्स (4 Tips to Develop Art of Reading Maths),छात्र-छात्राएं गणित पढ़ने की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Reading Mathematics?) के बारे में बताया गया है।

6.गणित का ज्ञान खींचना (हास्य-व्यंग्य) (Drawing Knowledge of Mathematics) (Humour-Satire):

  • कमलेशःयार!सुबह-सुबह गणित पढ़ने में बहुत परेशानी होती है,क्या कारण है?
  • विक्रमःपरेशानी तो होगी ही,क्योंकि सुबह-सुबह कोचिंग के गणित सर (sir) तथा उनके छात्र-छात्राएं पूरे गणित के ज्ञान को खींच लेते हैं।

7.गणित पढ़ने की कला विकसित करने के 4 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4 Tips to Develop Art of Reading Maths),छात्र-छात्राएं गणित पढ़ने की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Reading Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.दुष्प्रवृत्तियों से कैसे पीछा छुड़ाएं? (How to Get Rid of Evil Tendencies?):

उत्तरःदुष्प्रवृत्तियों में लिप्त रहने का लम्बा अभ्यास,कुमार्ग पर ले जाने वाले संगी-साथियों द्वारा उपहास उड़ाने का भय तथा दुष्प्रवृत्तियों की निरर्थकता को न समझने के कारण छात्र-छात्राएं इनके चंगुल से मुक्त नहीं हो पाते हैं।इसके लिए छात्र-छात्राओं के आत्मविश्वास को जागृत करके उसमें संकल्प शक्ति को भरने से छुटकारा दिलाया जा सकता है।संकल्प शक्ति और दृढ़ इच्छा शक्ति के समक्ष कोई भी बुराई टिक नहीं सकती है।जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उसके जीवन में नया उल्लास भर सकता है।

प्रश्न:2.छात्र-छात्राएं ड्रग्स की आदत को क्यों नहीं छोड़ पाते हैं? (Why can’t Students Quit the Habit of Drugs?):

उत्तर:ड्रग्स की आदत को छोड़ने के लिए जिस संकल्प शक्ति और साहस की जरूरत होती है उसका छात्र-छात्राओं में अभाव पाया जाता है।हालांकि ड्रग्स के आदी छात्र-छात्राएं आर्थिक तंगी,बदनामी,शरीर की बर्बादी,परिवार में मनोमालिन्य जैसी हानियों का सामना करते हैं।इसलिए उनका छोड़ने को जी भी करता है परन्तु जब तलब लगती है तब सोचा-समझा बेकार हो जाता है।आदत सवार हो जाती है और अपना काम करने लगती है।

प्रश्नः3.कला और कलाकार से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Art and Artist?):

उत्तर:कला (Art):कला केवल यथार्थ की नकल का नाम नहीं है।कला दीखती तो यथार्थ है यथार्थ होती नहीं।उसकी खूब यही है कि वह यथार्थ मालूम हो।कलाकार (Artist):जो अन्तर को देखता है बाह्य को नहीं,वही सच्चा कलाकार है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित पढ़ने की कला विकसित करने के 4 टिप्स (4 Tips to Develop Art of Reading Maths),छात्र-छात्राएं गणित पढ़ने की कला कैसे विकसित करें? (How to Develop Art of Reading Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Tips to Develop Art of Reading Maths

गणित पढ़ने की कला विकसित करने के 4 टिप्स
(4 Tips to Develop Art of Reading Maths)

4 Tips to Develop Art of Reading Maths

गणित पढ़ने की कला विकसित करने के 4 टिप्स (4 Tips to Develop Art of Reading Maths)
के आधार पर गणित को पढ़ने में छात्र-छात्राएं सिद्धहस्त हो सकेंगे।हम गणित तथा
अन्य विषयों का अध्ययन करना चाहते हैं परंतु केवल चाहने से कुछ नहीं होता है।

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