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How to Recognize Your Tendencies?

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1.अपनी प्रवृत्तियों को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Tendencies?),अपनी प्रवृत्तियों को पहचानें और सुधार करें (Identify and Improve Your Tendencies):

  • अपनी प्रवृत्तियों को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Tendencies?) क्योंकि यदि अच्छी प्रवृत्तियां हैं तो उन्हें बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि भविष्य का निर्माण ठीक तरह,शानदार तरीके से किया जा सके और बुरी प्रवृत्तियां हैं तो उन्हें पहचान कर दूर करें ताकि पतन के मार्ग से जाने पर रोक लगे।
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2.प्रवृत्तियों से स्वभाव का निर्माण (Creating Dispositions from Tendencies):

  • हमारी प्रवृत्ति ही हमारे स्वभाव-संस्कार का निर्माण करती है।उसी के अनुसार हमें प्रतिष्ठा व उत्कर्ष की ओर ले चलती है अथवा अपमान व पतन के दलदल में ढकेल देती है।हमारी प्रवृत्ति ही मूलतः हमारे भाग्य का निर्माण करती है,यह तथ्य है और यदि यह तथ्य है तो निश्चय ही हम अपनी प्रवृत्तियों की ओर से आंखें बंद नहीं रख सकते,न ही उनके निर्माण को परिस्थिति और संयोग पर छोड़ सकते हैं।
  • जिस धुरी पर हमारा संपूर्ण वर्तमान और भविष्य घूम रहा है,अपनी उस प्रवृत्ति के निर्माण पर सबसे पहले ध्यान देने की आवश्यकता हमें अनुभव करनी चाहिए।यह विचार हमारे मन में निरंतर उठना चाहिए कि शरीर की सफाई तो आवश्यक है ही किंतु उससे सौ गुना अधिक आवश्यक है मन की सफाई करना,दुष्प्रवृत्तियों से मुक्त होना।
  • धन और स्वास्थ्य की कमाई भी आवश्यक है,पर उससे ज्यादा हजार गुना आवश्यक है मन को सुगंधित विचारों से भरना,सत्प्रवृत्तियों से युक्त होना।जो अधिक महत्त्वपूर्ण है उसकी चिंता पहले करने की आवश्यकता है हमें निरंतर याद रखना चाहिए।
  • इसलिए हमारी सबसे पहली आवश्यकता यह है कि अपनी असली प्रवृत्तियों को पहचानने के उपाय हम जानें।यह भी जानें की अपनी प्रवृत्तियों की निम्नता अथवा उच्चता की दृष्टि से हम आज किस स्तर पर खड़े हैं,हम किस स्तर के व्यक्ति हैं।हमारी दूसरी आवश्यकता यह है कि हम विचार करें और अनुमान लगाएँ कि यदि यही प्रवृत्तियां हम आगे भी जारी रखेंगे तो कैसा वर्तमान और कैसा भविष्य हमें अपने सामने खड़ा मिलेगा।
  • जैसी हमारी प्रवृत्तियां आज है वैसे ही कर्म हम कर रहे हैं,यह हमारा वर्तमान है।जैसे कर्म हम आज कर रहे हैं,वैसा ही उत्कर्ष और आनंद देने वाला अथवा पतन और पीड़ा देने वाला कर्मफल हम अपने लिए गढ़ते जाते हैं,यह हमारा भविष्य है।
  • जैसे किसी विद्यार्थी की प्रवृत्ति है अध्ययन करना,परीक्षा की तैयारी के लिए कठिन परिश्रम,समय का अधिकांश समय अध्ययन में व्यतीत करना,चरित्र का निर्माण करने हेतु सत्साहित्य का अध्ययन करना,स्वाध्याय करना तथा अच्छे लोगों की संगत करना तो जाहिर सी बात है कि उसका भविष्य उज्जवल ही होगा।परंतु यदि किसी विद्यार्थी की प्रवृत्तियां मौज-मस्ती करना,समय का दुरुपयोग करना,मादक द्रव्यों का सेवन करना,परीक्षा में नकल करने की तरकीब भिड़ाना,धन देकर अंक तालिका में नंबर बढ़वाना,येन केन प्रकारेण उत्तीर्ण होने का प्रयास करना,गुंडागर्दी करना,अय्याशी करना आदि तो जाहिर सी बात है कि ऐसे विद्यार्थी का भविष्य उज्जवल नहीं हो सकता है।कभी ना कभी खोटे और बुरे कर्मों और प्रवृत्तियों का दंड भुगतना ही पड़ता है।कर्म के सिद्धांत का यह अटल नियम है कि जो जैसा करेगा उसे उसका वैसा ही परिणाम भुगतना पड़ेगा।

3.अपनी प्रवृत्ति को पहचानने की तकनीक (Techniques to recognize your tendencies):

  • हमारी असली प्रवृत्तियां ही हमारी असली पहचान हैं।इसलिए हमें अपनी उस नकली प्रवृत्तियों को छांटकर अलग कर देना होगा जिन्हें हम अक्सर ही लोगों को दिखाया करते हैं।ऐसी छँटनी कर देने के बाद ही हम अपनी असली प्रवृत्तियों को,अपनी असली रूझानों को जान पाएंगे।
  • हम सभी का अनुभव है कि परिवार में,समाज में,ऑफिस या व्यवसाय में हमें अपनी वाणी और व्यवहार को परिस्थितियों के अनुरूप मोड़ना-बदलना पड़ता है।हमारी इच्छा तो नहीं होती,फिर भी अपनी स्थूल क्रियाओं को और मन में उठ रही प्रतिक्रियाओं को मर्यादा में रखना पड़ता है।अधिकारी और ग्राहक से शिष्टता ही बरतनी पड़ती है,भले ही वे अशिष्ट हो जाएँ।हम जानते हैं कि हमारा नकली शिष्टाचार है,पर अपनी परिस्थिति के कारण वैसा करना हमारी मजबूरी है।
  • यदि नौकरी या व्यापार करके धन कमाने की हमारी मजबूरी ना होती,यदि हम पर सामाजिक या कानूनी बंधन ना होते,तब हमारा स्वतंत्र मन हमें कैसी वाणी बोलने और कैसा व्यवहार करने के लिए उकसाता? अधिकारी द्वारा दुर्व्यवहार करने पर या ग्राहक द्वारा अनुचित मीन-मेख निकालने पर हमारा बंधन रहित मन तत्काल कैसे प्रतिक्रिया करता? हम इस बात पर गहराई से विचार करें और अनुमान लगाएँ कि यदि हमारी मजबूरी ना होती तो हम इस अधिकारी को या उस ग्राहक को क्या जवाब देते? कैसा व्यवहार करते? तब हमारी उस स्वच्छंद वाणी-व्यवहार में तीखापन घुला होता या सौम्यता? क्रोध घुला होता या शांतता?
  • यह सरल सा प्रयोग है,पर इससे जो जानकारी मिलेगी अपने तीखेपन व क्रोध की अथवा सौम्यता व शांतता की,वही हमारी असली प्रवृत्ति है।हमारे जीवन में प्रायः प्रतिदिन ऐसे अवसर आते हैं जब किसी मजबूरी के कारण हमें नकली शिष्टाचार या नकली क्रोध आदि दर्शाना पड़ता है।मजबूरी ना होती तो हम कैसी वाणी बोलते,कैसा व्यवहार करते,इसे हम खोज करें,तो हमें अपनी असली प्रवृत्ति की,रूझान की जानकारी होने लगेगी।
  • एक उदाहरण से इसे समझने का प्रयास करें।मान लें कि हम किसी व्यक्ति के घर पर अथवा किसी सभा में अन्य स्त्री पुरुषों के साथ बैठे हैं,बात कर रहे हैं या सुन रहे हैं।वहाँ हमने कोई आकर्षण देखा अथवा कोई अनैतिकता देखी,अथवा असुरक्षित रखी हुई कोई श्रेष्ठ वस्तु देखी।पर हम शांत दिखते से बैठे रहते हैं।लोग हमारे बारे में नीची धारणा न बना लें,इस आशंका से और इस मजबूरी के कारण हम उस आकर्षण या श्रेष्ठ वस्तु की ओर बार-बार नहीं देखते।ऐसी मुख मुद्रा बनाए बैठे रहते हैं मानों हमारा ध्यान उस ओर है ही नहीं।सामाजिक मर्यादाओं का पालन करते हुए हम यह दिखाने का प्रयत्न करते हैं कि हम शिष्ट और संयमी व्यक्ति हैं।पर भीतर मन में जहां लोगों की निगाहों की पहुंच नहीं है,वहां क्या हो रहा है?
  • उस श्रेष्ठ को असुरक्षित पड़ी जानकर अथवा उस आकर्षण को देखकर भी हमारे मन में क्या सचमुच शांतता और शालीनता ही छाई हुई है,अथवा लोभ और निकृष्ट इच्छाओं के ज्वार उठना आरंभ हो गए हैं? उस अनैतिकता को देखकर भीतर हमारे मन में विरोध और क्रोध उठ रहा है या हमारी भी उसमें रुचि और उमंग जगने लगी है? अपने दैनिक जीवन की घटनाओं में यदि हम मन के इन रहस्यों को खोजने का अभ्यास किया करें तो हम सहज ही जान लेंगे कि हम किस प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं।
  • ऐसे अवसर भी हमारे दैनिक जीवन में आते रहते हैं जब हमारे मन पर सचमुच कोई बंधन नहीं होता,कोई मजबूरी नहीं होती,जब लोगों के वाणी व व्यवहार पर हम स्वतंत्रतापूर्वक अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त किया करते हैं,तो आयु में या सामर्थ्य में हमसे अधिक नहीं है अथवा जिनसे हमारी कोई गरज नहीं अटकी रहती,उनकी बात सुनकर या व्यवहार देखकर हम अक्सर ही किस प्रकार की प्रतिक्रिया करते हैं? क्या हमारी प्रतिक्रियाओं में स्वार्थ-संकीर्णता-आवेश आदि ही प्रायः घुले रहते हैं या सहयोग-सौम्यता आदि? इन प्रतिक्रियाओं में क्या घुला रहता है इस पर हम ध्यान दें तो हमें अपनी असली प्रवृत्तियों की जानकारी हो जाएगी।
  • आकर्षणों को देखकर भीतर छुपे मन में निम्न स्तर की कल्पनाओं और कामनाओं का जागना,वस्तुओं को बिना दाम मेहनत पाने का लाभ उठाना,अनैतिक चर्चा करने की अथवा अश्लील चित्रों व दृश्यों को देखने की ललक होना आदि दर्शाते हैं कि हमारा मन दुष्प्रवृत्तियों से घिर चुका है।इसके विपरीत,यदि आकर्षण हमारे मन में ऊँचे भाव जगाता हो,यदि अनैतिकता-अश्लीलता के विरुद्ध विरक्ति उठती हो,मन्यु जागता हो,तो अपने को सत्प्रवृत्ति संपन्न मानकर हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं।छत्रपति शिवाजी ने सैनिकों द्वारा पकड़कर लाई गई सुंदर मुगल कन्या को देखा और भाव विभोर होकर उससे बोले, “यदि तुम मेरी मां होती तो,मैं भी तुम जैसा सुंदर होता।”
  • जिनका अंतःकरण सत्प्रवृत्तियों से जितना-जितना भरता जाता है उतना ही उतना उनके भीतर तृष्णा और वासना के,लोभ और संकीर्णता के ज्वार मंद पड़ते जाते हैं,उतनी ही उतनी पवित्रता और शालीनता उनके वाणी व्यवहार में समाती जाती है।आवेश तो उन्हें भी आता है,मन्यु भी जागता है,पर वह सदैव निकृष्टताओं के विरुद्ध ही होता है।

4.प्रवृत्ति पहचानने का अन्य तरीका (Another way to identify a trend):

  • अपनी असली प्रवृत्ति को पहचानने का और भी एक उपाय है।यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हम जब एकांत में होते हैं तब हमारे मन में एक आश्वासन अपने आप जाग उठता है,यह आश्वासन कि “इस समय हमें कोई नहीं देख रहा है।इसलिए अभी कहीं कुछ छिपाने की आवश्यकता नहीं है।” एकांत की स्वच्छंदता इस आश्वासन के आते ही हमारा अवचेतन मन हिलोरें लेने लगता है।उसमें संचित पुरानी यादें और रुचियाँ उठने लगती हैं।इसलिए अनुभव और सोए पड़े संस्कार भी जाग उठते हैं और चेतन मन की ओर बहने लगते हैं।इन यादों-अनुभवों के पहुंचते ही हमारा चेतन मन भी वैसी ही रुझानों व संस्कारों को उसके असली स्वरूप को वाणी-व्यवहार और चिंतन के माध्यम से अभिव्यक्त करने लगता है।तब हमारे हाथ व अन्य कर्मेन्द्रियां कुछ असामान्य से कार्य करने लगते हैं जो लोगों के बीच रहते हुए हम नहीं कर सकते।
  • हमारे वस्त्र इधर-उधर हो जाते हैं,पर हम इसकी परवाह नहीं करते।उचित-अनुचित की चिंता किए बिना कल्पनाएं और योजनाएं घुमड़ने लगती हैं,पर हम उन पर कोई रोक नहीं लगाते।कभी कोई घटना घटी थी,उस समय हम अपने आवेश को,क्रोध या स्नेह को अथवा रुचि या विरक्ति को,किसी मजबूरी के कारण व्यक्त नहीं कर पाए थे।अब इस एकांत में उस घटना की याद आने पर कुछ स्वच्छंद विचार,स्वच्छंद प्रतिक्रिया उठ रही हैं इन्हें भी हम नहीं रोकते।एकांत हमारे असली स्वरूप को,असली प्रवृत्ति को उघाड़ कर सामने ले आता है।इस उघाड़े जाने पर चेतन-अचेतन दोनों मन को भी कोई हिचक नहीं होती,क्योंकि अकेले होने और नहीं देखे जाने का आश्वासन उनके साथ है।
  • यही वह उपयुक्त अवसर है जब हम अपनी उघड़ी हुई प्रवृत्ति को स्पष्ट रूप से देखकर उसकी सही-सही पहचान कर सकते हैं।अतः जब कभी एकान्त में हमारा शरीर और मन अपने स्वच्छन्द व्यवहार और विचार कर रहे हों,तब हम यह करें कि (1.)उस व्यवहार या विचार को एकाएक रोक दें और (2.)ध्यान दें,खोजें कि उस व्यवहार-विचार में कौन सा भाव घुला हुआ था,उस व्यवहार-विचार में कौन सी प्रवृत्ति झलक रही थी,ईर्ष्या? क्रोध? लोभ? या वासना? अथवा प्रसन्नता? शांतता? संतोष? या पवित्र स्नेह? यह बहुत महत्त्वपूर्ण क्रिया है कि हम ऐसे अवसर पर तत्काल अपने भीतर जाकर झांके और अपनी प्रवृत्ति को खोज निकालें।यह खोजें कि “जब हम अकेले होते हैं तब हम अक्सर ही किस बारे में सोचा करते हैं? किन कल्पनाओं में और कौन से ख्याली पुलाव पकाने में रमे रहना पसंद करते हैं? किस घटना की याद आने पर हमारी प्रतिक्रिया किस विशेष ढर्रे पर ही दौड़ा करती है? जब हम अकेले होते हैं तब क्या करने की इच्छा अक्सर ही उठा करती है?
  • यदि हम अपने मन की इन एकान्तिक गतिविधियों पर ध्यान देने लगें और उन गतिविधियों में छुपे भावों को,छिपी इच्छाओं को खोज करें तो हमें अपनी असली प्रवृत्तियों की जानकारी सहज ही होने लगेगी।इसलिए अपना सुधार करने की आकांक्षा करने वाले विद्यार्थी को सबसे पहला अभ्यास यह करना चाहिए कि “मैं अपने आपको जानूँ।अपने अन्तर्मन की प्रवृत्तियों को जानूँ।जानूँ कि दुष्प्रवृत्तियों के दलदल ने कितने नीचे तक मुझे डुबा दिया है,अथवा सत्प्रवृत्तियों ने मेरे दृष्टिकोण को,व्यवहार को,कितना उजला बना दिया है।जानूँ कि मैं आज किस मानसिक स्तर पर हूं,जहाँ से मुझे अपने आप को उठाना है और अभीष्ट उन्नति को प्राप्त करना है।”यही वास्तविक स्वाध्याय है,अपने आपका अध्ययन है,अपने आपको जानना है।

5.प्रवृत्ति ही हमारे वर्तमान और भविष्य की निर्माता है (Instincts are the creators of our present and future):

  • यह स्वाध्याय सहज ही बता देगा कि इन प्रवृत्तियों के रहते हम किस प्रकार का अपना वर्तमान ढाल रहे हैं।परिवार और समाज से मिल रही उपेक्षा और अपमान हमारी दुष्प्रवृत्तियों के ही तो फल हैं अथवा मिल रही प्रतिष्ठा और सम्मान हमारी सत्प्रवृत्तियों की ही तो देन है।यह हमारी प्रवृत्ति का तत्काल प्राप्त होने वाला कर्मफल है।यह कर्मफल संसार देता है,जिसे हमारा यह स्थूल शरीर और हमारा यह जीवन भोगता है।यह हमारा वर्तमान है।
  • पर इतना भोगकर ही छुट्टी कहां मिलती है? अभी तो कर्माध्यक्ष का हिसाब भी साफ करना बाकी है।मन में उठने वाली प्रतिक्रियाएं और हृदय में उठने वाले भाव भी तो कर्म हैं न।इनके द्वारा जैसा स्वभाव अपना बनाया है,जीवात्मा पर जैसे संस्कार चढ़ाते जा रहे हैं,वैसे ही तो कर्म भी हमारे द्वारा हो रहे हैं।इन सभी मानस कर्मों का,भाव कर्मों का और स्थूल कर्मों का एक-एक कण अंततः लौटाना है और हम पर बरसना है।सृष्टि संचालक की यह अपरिवर्तनीय व्यवस्था है।हमारी रोकड़ जमा की निकले या नामे की निकले,यह हिसाब भी हमें ही साफ करना है।यह कर्मफल कर्माध्यक्ष भगवान देते हैं,जिसे हमारा जीवात्मा और हमारे अगले जीवन भोगेंगे।यह हमारा भविष्य है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अपनी प्रवृत्तियों को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Tendencies?),अपनी प्रवृत्तियों को पहचानें और सुधार करें (Identify and Improve Your Tendencies) के बारे में बताया गया है।

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6.पुस्तकें ढूंढने का तरीका (हास्य-व्यंग्य) (How to Find Books) (Humour-Satire):

  • जगन:मेरी पुस्तकें खो गई हैं।
  • रोहन:यार तुम अखबार में इश्तिहार दे दो,तो तुम्हारी पुस्तकें मिल सकती हैं।
  • जगन:पर यार मेरी पुस्तकों को पढ़ना नहीं आता।

7.अपनी प्रवृत्तियों को कैसे पहचानें? (Frequently Asked Questions Related to How to Recognize Your Tendencies?),अपनी प्रवृत्तियों को पहचानें और सुधार करें (Identify and Improve Your Tendencies) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या बुरी प्रवृत्ति को बदला जा सकता है? (Can bad tendencies be changed?):

उत्तर:(1.)मनुष्य संपत्ति प्राप्त हो जाने पर भी उसका उपभोग नहीं जानता अर्थात् जैसी प्रवृत्ति रहती है उसी के अनुसार खर्च करता है।जैसे गर्दन भर पानी में डूबा हुआ कुत्ता जीभ से चाट कर ही पानी पीता है।
(2.)नीम गुड़ के साथ खाने पर भी अपनी कड़ुवाहट नहीं छोड़ती,इसी तरह नीच सज्जनों के साथ रहकर भी अपनी आदत से बाज नहीं आता।
इन दो दृष्टान्तों से यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए की बुरी प्रवृत्ति को छोड़ा नहीं जा सकता है।सुदृढ़ संकल्प तथा इच्छाशक्ति के बल पर बुरी प्रवृत्ति को छोड़ा जा सकता है।परन्तु इसके लिए बुरी संगत का त्याग भी करना होगा।

प्रश्न:2.आदतों और प्रवृत्ति में क्या संबंध है? (What is the relation between habits and tendencies?):

उत्तर:आदतों से प्रवृत्ति (स्वभाव) बनता है और स्वभाव (प्रवृत्ति) के अनुसार आदतें पड़ती जाती है यानी इनमें परस्पर अन्योन्याश्रय का संबंध होता है।ये दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं।

प्रश्न:3.बुरी आदतें कैसे सीखते हैं? (How do you learn bad habits?):

उत्तर:विवेक के अभाव और बुरी संगति के प्रभाव से बुरी आदतें ग्रहण की जाती हैं। बुरी आदत के गिरफ्त में आने पर उसका छोड़ना मुश्किल होता है क्योंकि जो मन और विवेक हमें अच्छे मार्ग पर चला सकता था वही बुरी आदत का गुलाम हो जाएगा तो फिर सही रास्ते पर चलने की बात सोचेगा ही कैसे?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अपनी प्रवृत्तियों को कैसे पहचानें? (How to Recognize Your Tendencies?),अपनी प्रवृत्तियों को पहचानें और सुधार करें (Identify and Improve Your Tendencies) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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