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How to Be Creator of Your Own Destiny?

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1.अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How to Be Creator of Your Own Destiny?),छात्र-छात्राएँ अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How Can Students Become Makes of Their Own Destiny?):

  • अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How to Be Creator of Your Own Destiny?) कुछ विद्यार्थी अथवा अभ्यर्थी इस अवसर की प्रतीक्षा में रहते हैं की स्वत: वे परीक्षा में सफल हो जाएंगे।वे इस कहावत का अनुसरण करते हैं कि ‘भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है।’हो सकता है अपवादस्वरूप कोई विद्यार्थी अथवा अभ्यर्थी सफल हो जाता हो परंतु अंततः हमें परिश्रम तथा उपयुक्त रणनीति के आधार पर ही सफलता मिलती है।
  • अनायास सफलता पाने की कामना आलसी,कामचोर अथवा इसी कोटि के विद्यार्थी करते हैं।यदि सभी लोग तथा छात्र-छात्राएं इसी सूत्र का पालन करने लगें तो न आने वाली पीढ़ी को हम कुछ दे सकते हैं और न स्वयं के लिए कुछ कर सकते हैं।रोटी-रोटी का जाप करने से मुंह में रोटी नहीं चली आती है,उसके लिए स्वयं को प्रयत्न करना ही पड़ता है।
  • ऐसी बात नहीं है कि भाग्य काम नहीं करता है,अवश्य करता है परंतु पुरुषार्थ और सद्बुद्धि से उसे उचित दिशा में नियंत्रित किया जा सकता है।कहा गया है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि अर्थात् विनाश के समय बुद्धि उल्टी हो जाती है अथवा बुद्धि उल्टी हो तो विनाश काल आ जाता है।
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2.कर्म के अनुसार प्राप्ति (Attainment According to Deed):

  • विश्व में कार्य-कारण का जो नियम लागू होता है वह भाग्य के निर्माण पर भी लागू होता है।विद्यार्थी जैसा कर्म करेंगे वैसे ही फल की प्राप्ति होगी।किसी विद्यार्थी के अधिक परिश्रम करने पर भी प्राप्तांक कम प्राप्त होते हैं अथवा अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं जबकि कुछ विद्यार्थी कम प्रयास करने पर अधिक प्राप्तांक अर्जित कर लेते हैं।
  • ऐसा इसलिए होता है क्योंकि विद्यार्थी परिश्रम के साथ अध्ययन की सही रणनीति नहीं अपनाते हैं तो उन्हें अपेक्षित सफलता से वंचित होना पड़ता है।जो विद्यार्थी चिंतन पद्धति एवं कार्यशैली के गुण-दोष पर विचार करते हुए अपने कर्त्तव्य पालन में संलग्न रहता है उसे सफलता अंततः मिल ही जाती है।जिन छात्र-छात्राओं अथवा अभ्यर्थियों को सफलता नहीं मिलती है उन्हें अपनी अध्ययन पद्धति एवं रणनीति का अवलोकन करना चाहिए कि कहां त्रुटि रह गई,उन कमियों को ढूंढकर सुधार कर लेना चाहिए।
  • कई सफल छात्र-छात्राओं अथवा अभ्यर्थियों से आप मिलेंगे तो पता चलेगा कि सभी को प्रथम प्रयास में ही सफलता हासिल नहीं हो जाती है।कईयों को दो-दो या तीन प्रयासों में सफलता मिली है।
  • प्रारंभ से ही अपनी अध्ययन पद्धति इस प्रकार बना लेनी चाहिए कि कोई कमी-कसर बाकी न रहे।आप अपनी अध्ययन पद्धति में लगातार सुधार करते रहेंगे तो आपकी योग्यता में वृद्धि होती जाएगी फिर चाहे आपकी शैक्षणिक परीक्षा हो,प्रवेश परीक्षा हो अथवा प्रतियोगिता परीक्षा हो उसमें आप एक तराशे हुए पत्थर की तरह शामिल होंगे।
  • वर्तमान समय प्रतियोगिता का समय है अतः आपको केवल कठिन परिश्रम से ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए बल्कि आपको अन्य प्रतियोगियों से श्रेष्ठ प्रदर्शन करने जैसी तैयारी करनी चाहिए।
  • कई अभ्यर्थियों की सफलता देखकर कुछ अन्य अभ्यर्थियों के मन में ईर्ष्या पैदा हो जाती है।परंतु वस्तुनिष्ठ तरीके से उनके किए गए प्रयासों पर विचार करेंगे तो आपको मालूम होगा कि उन्होंने कितने वर्षों पूर्व अपना लक्ष्य तय कर लिया था और तभी से उसके लिए कठिन परिश्रम करते रहे हैं।उन्होंने बहुत पहले ही रणनीति तय कर ली थी और उसको कार्यान्वित करने के लिए अपनी पूरी सामर्थ्य का उपयोग किया है।
  • उज्जैन के राजा भोज का वाकया है।एक दिन उन्होंने विचार किया की लक्ष्मी तो चंचला है तो वह आज मेरे पास है तो कल किसी ओर के पास होगी।यह सोचकर उन्होंने जरूरतमंदों को दान देना प्रारंभ कर दिया।यह देखकर जनता प्रसन्न हुई परंतु राजा भोज के मंत्री को चिंता हुई।उसने सोचा कि इस तरह धन का दान करने से तो खजाना खाली हो जाएगा इसलिए उन्होंने दीवार पर ऐसी जगह लिखा जहाँ राजा की नजर पड़े कि “आपत्ति के समय के लिए धन को सुरक्षित रखना चाहिए।”
  • अगले दिन जब राजा भोज दान देने आए तो उन्होंने उक्त वाक्य पढ़ा और उसके नीचे लिखा भाग्यशाली के लिए आपत्ति का महत्त्व नहीं है।मंत्री ने जब राजा भोज के प्रत्युत्तर को पढ़ा तो उसके नीचे लिख दिया कि “भाग्य विपरीत हो जाए तो?”अगले दिन राजा ने पुनः उसके नीचे लिखा कि “पुरुषार्थी विपरीत समय को अनुकूल करने में समर्थ होता है।” छात्र-छात्राओं को राजा भोज के इस अंतिम उत्तर से प्रेरणा लेनी चाहिए।जो छात्र-छात्राएं दृढ़ संकल्प,उचित रणनीति और पुरुषार्थ के साथ अपने अध्ययन में लग जाता है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

3.कर्म संस्कारों की गति (Effects of Karma-Mental Impression):

  • हर विद्यार्थी जीवन में सफलता,सुख की आकांक्षा करता है,खुशियों को तलाशता है।सही भी है,आखिर जीवन में सुख का आना,सफलता प्राप्त करना,खुशियों का भर जाना ही तो सार है,परंतु ऐसा शायद ही हो पाता है।विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होने,सफलता प्राप्त करने में लगा रहता है परंतु असफलता,निराशा,हताशा,दुःख,कुंठाओ जैसी प्रवृत्तियों से उसका जीवन भर जाता है।यह सभी विद्यार्थियों का नहीं,अधिकांश का सच है।हम प्रयास करें सफलता की,बीज बोएँ अच्छे प्राप्तांक के और हमारे हिस्से आए असफलता,कम प्राप्तांक,अनेक पीड़ाओं की फसल ऐसा कैसे हो सकता है? आम बोने पर बबूल कैसे उग सकता है? प्रकृति और परमात्मा का विधि-विधान गलत नहीं होता।अवश्य हमसे कहीं चूक हो रही है।सफलता,सुख,खुशियों के भ्रम में असफलता,दुःख-क्लेश के बीज बोए जा रहे हैं।
  • जिंदगी के इस भ्रम से,ऐसे विरोधाभास से बाहर आने के लिए एक ही मार्ग है:वह है,संस्कारों की शुद्धि।जहाँ हम सुख,आनंद,सफलता की फसल उगा सकते हैं,उस स्थान का नाम है:अंतरात्मा।इस अंतरात्मा पर चित्त कर्मों की खेती करता है।चित्त की झोली में जैसे बीज मौजूद रहते हैं; वह जस-का-तस बो देता है।यदि चित्त की पोटली में शुभ कर्म,शुभ सुविचारों,अच्छी वृत्तियों के संस्कारबीज होंगे तो जीवन में चारों ओर खुशहाली की फसल लहराएगी।
  • हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारा प्रत्येक कर्म,विचार,भाव एक संस्कार को जन्म देता है।ये संस्कार जहां एकत्र रहते हैं,उसी का नाम चित्त है।यह असंख्य अच्छे-बुरे संस्कारों का जखीरा है।ये संस्कार ही हमारे भाग्य और भविष्य के,सुख-दुःख,सफलता और असफलता के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।चित्त में बीज रूप में ये संस्कार ही समय आने पर सुनिश्चित परिणाम देते हैं,फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा।हम अपने लिए जिन सुखों की,खुशियों की कामना करते हैं,उनका सारा रहस्य इन संस्कारबीजों में मौजूद है।अतः सुख-सुकून की इच्छा-कल्पना कर लेने मात्र से हम इसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं।केवल इच्छाओं-आकांक्षाओं के सहारे खुशियों को नहीं तलाशा जा सकता है।ऐसा कभी नहीं हुआ है।जीवन में जहां भी सफलता है,सुख है,खुशियां है,वह सिर्फ और सिर्फ शुभ विचारों,पुण्य कर्मों और श्रेष्ठ भावों से निर्मित संस्कारबीजों का ही सुफल है।
  • हमारे साथ यही एक विडंबना जुड़ी है कि इसी क्षण वर्तमान को तो हम असंख्य कामनाओं,वासनाओं व स्वार्थ-अहंमजन्य वृत्तियों के अधीन कर देते हैं और इच्छा-आकांक्षा सुखद भविष्य की करते हैं।यह समझ ही नहीं पाते हैं कि अभी इस क्षण से ही हमारे भाग्य-भविष्य की डोर बँधी है।हम वर्तमान के पल को संकल्पपूर्वक शुभ संस्कार उत्पन्न करने वाले कर्मों से भर दें,विचारों में सकारात्मक हों और ऊंचा उठे।भावनाओं में पवित्रता लाएँ और सरलता का संचार होने दे क्योंकि वर्तमान में जैसे संस्कार बोएंगे,भविष्य भी वैसा ही फलित होगा।

4.भाग्य के निर्माता बनें (Be the Creator of Destiny):

How to Be Creator of Your Own Destiny?

How to Be Creator of Your Own Destiny?

  • यदि हम नियति (भगवान या प्रकृति का विधान जो स्थिर और नियत होता है,भाग्य) का खिलौना मात्र न बनकर जिंदगी के मालिक बनना चाहते हैं तो हमें अपने कर्मों पर पैनी नजर रखनी चाहिए।जीवन में घटित होने वाली अच्छी-बुरी घटनाओं,सफलता-असफलता से विचलित होकर अपना आत्म-विश्वास नहीं खोना चाहिए।कारण यह है कि भाग्य के लेख मानकर,चुप हो बैठते हैं,वे लोग अपनी सफलता का मार्ग स्वयं बंद कर लेते हैं,अपना आत्मविश्वास खो देते हैं।
  • जब तक आपका आत्मविश्वास जागृत है,तब तक आप निरंतर प्रयत्नशील और गतिशील रहेंगे।वास्तव में अपने भाग्य के निर्माता तो स्वयं हैं? भाग्य के रूप में भगवान हमें अवसरों और शक्ति-सामर्थ्य की मिट्टी देता है।यह हम पर निर्भर करता है कि उससे हम कैसी और किसकी प्रतिभा का निर्माण करते हैं और उसके अनुरूप ही फल पाते हैं।इसीलिए विचारक-चिंतक कहते रहते हैं कि आप स्वयं अपने भाग्य का स्वरूप निर्धारण करते हैं,अपने कर्मों द्वारा।
  • अगर आपको अपने आप पर विश्वास है तो आप उस सारथी के समान है जिसका अपने रथ के घोड़े पर पूरा नियंत्रण होता है।दूसरे शब्दों में आत्म-विश्वास के द्वारा हम अपनी तमाम शक्तियों को अपने नियंत्रण में रख सकते हैं।भाग्य हमारे कर्मों का फल ही तो होता है।
  • आप जब भी अपने भाग्य को कोसते हैं,जब भी स्वयं को असमर्थ,अशक्त और दूसरों की अपेक्षा कहीं निर्बल व बुद्धिहीन समझते हैं,तब अपने सिर पर कठिनाइयों का बोझ लाद लेते हैं।कारण यह है कि आपके हीन विचारों से उन तत्वों को बल मिलता है,जो आपकी सुख-शांति नष्ट करते हैं।विचार यदि आनंद देने वाले हैं तो सफलता आपकी ओर खिंची चली आएगी।
  • एक बार ही सही यदि विद्यार्थी कुसंस्कारों,कामनाओं,वासनाओं,तृष्णाओं के चक्र में फँस गया तो फिर उत्थान के सारे मार्ग स्वतः बंद होते चले जाते हैं और ऐसी स्थिति में संस्कारों से उबरने के लिए जन्म-जन्मान्तरों का समय भी कम पड़ जाता है।
  • इनके होने से अनेक दुष्परिणाम उत्पन्न करने वाले कामनाओं का संक्रमण होता है,अनेक तरह की इच्छाएं-वासनाएं इनका सिंचन करती है और अहंकार इनकी सुरक्षा की चेष्टा करता है।

5.भाग्य के निर्माण का दृष्टांत (The parable of the Creation of Fate):

  • एक विद्यार्थी था।उसमें प्रतिभा थी तथा कठिन परिश्रम भी करता था।हर वर्ष प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होता था तो उसके उत्साह में वृद्धि होती जाती थी।वह हर विषय को समान महत्त्व देता था तथा अपने गुरु का सम्मान भी करता था।
  • वह अपना काम पूरी ईमानदारी तथा मनोयोग से करता था।उसके अध्ययन से घर वाले भी खुश थे।कम महत्त्वपूर्ण तथा अधिक महत्त्वपूर्ण विषय पर उसकी सतर्क दृष्टि रहती थी और पूर्ण तन्मयता से अध्ययन करता था।एक कक्षा में उसके द्वारा पूरी मेहनत करने के बावजूद असफल हो गया।
  • विद्यार्थी बहुत परेशान हुआ और उसके घर वाले भी चिंतित हुए।घरवालों ने विद्यार्थी का हौसला बढ़ाया क्योंकि वे जानते थे कि मेहनत तो उसने की थी।वह विद्यार्थी गुरुजी से मिला,गुरु जी ने सुझाव दिया कि पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन कर दो और इस वर्ष पुनः परीक्षा की तैयारी आरंभ कर दो।
  • पुनर्मूल्यांकन का परिणाम आ गया परंतु उसमें कोई फेर-बदल नहीं हुआ।उसी कक्षा की तैयारी उसने आरंभ कर दी थी।उसने अपनी त्रुटियों का मूल्यांकन किया और उसमें सुधार किया।हर विषय की पूर्ण तैयारी की,हौसला बनाए रखा तथा निराश नहीं हुआ।
  • अगले वर्ष में वह अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ।इसके बाद उसने कभी भी परीक्षा में असफलता का सामना नहीं किया।दृढ़ आत्मविश्वास,सकारात्मक सोच,कठोर परिश्रम और लगन के बल पर आगे हर परीक्षा में सफल होता रहा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How to Be Creator of Your Own Destiny?),छात्र-छात्राएँ अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How Can Students Become Makes of Their Own Destiny?) के बारे में बताया गया है।

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6.अजीब मेहमान छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Funny Guest Student) (Humour-Satire):

  • मेजबान (मेहमान छात्र से):पिछले तीन महीने रहकर तुम यही अध्ययन कर रहे हो।क्या तुम्हें तुम्हारे माता-पिता की याद नहीं आती।
  • मेहमान छात्र:श्रीमन आपने अच्छा याद दिलाया,मैं आज ही माता-पिता को फोन करके यहां बुला लेता हूं।

7.अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (Frequently Asked Questions Related to How to Be Creator of Your Own Destiny?),छात्र-छात्राएँ अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How Can Students Become Makes of Their Own Destiny?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आशावाद से सफलता में किस प्रकार सहायता मिलती है? (How Does Optimism Help in Success?):

उत्तर:आशावादी विद्यार्थी का जीवन ही सार्थक होता है।आशावादी ही निर्माता है।आशावाद ही किसी विद्यार्थी का मानसिक सूर्योदय या भाग्योदय है।इसी से जीवन का निर्माण होता है।आशावाद से हमारी समस्त मानसिक योग्यताओं और शक्तियों का विकास होता है।अगर तुम आशावादी नहीं बन सकते तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ है।भाग्य का रोना रोकर या निराशा की डोर पड़कर भला कोई जीवन की सीढ़ियां चढ़ सकता है? निराशा तो जीवन का मार्ग अवरुद्ध करती है,विकास को रोकती है।

प्रश्न:2.भाग्य के निर्माण में एकाग्रता का क्या महत्त्व है? (What is the Importance of Concentration in the Formation of Destiny?):

उत्तर:आज के अत्यधिक केंद्रित जमाने में जो अपने प्रयासों को बिखेरता है,वह सफल होने की आशा नहीं कर सकता है।मानसिक चंचलता ही अनेक असफलताओं का कारण है।अस्थिर उद्देश्य,डगमगाते ध्येय इनके लिए कोई स्थान नहीं है।नवयुवकों के परीक्षा या जॉब में असफल होने का एक बड़ा कारण यह है कि वह अपने मन को एकाग्र नहीं कर पाते।यदि आप उन लोगों का जीवन देखें जो महान् बने हैं तो पाएंगे कि उन्होंने सफलता और महानता तभी पायी जब उन्होंने अपने मन को एकाग्र किया,अपनी शक्तियों को समेटकर एक ही धारा में प्रभावित किया।इसलिए जो काम करो,पूरे ध्यान से करो।पूरी एकाग्रता से करो।

प्रश्न:3.सरल शब्दों में भाग्य से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Luck in Simple Terms?):

उत्तर:सरल शब्दों में आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य है।विद्यार्थी मात्र का भाग्य एक है,वह कठोर परिश्रम है।जो विद्यार्थी सही दिशा में जितना पुरुषार्थ करेगा,देने वाला उसको उसी अनुपात में देगा।जो विद्यार्थी अथवा लोग पुरुषार्थ और भाग्य के समीकरण में विश्वास करते हैं उनको अपने जीवन में न अपने प्रति निराशा होती है और न किसी अन्य के प्रति ईर्ष्या परंतु जो लोग भाग्य को अधिक महत्त्व देते हैं,उसे इस कथन पर विचार करना चाहिए:भाग्य एक बाजार है; जहाँ कुछ देर ठहरने के बाद आमतौर पर भाग्य का भाव गिर जाता है तथा भाग्य जिसे प्यार करता है,उसे मूर्ख बना देता है।जो विद्यार्थी यह सोचते हैं कि भाग्य उनका साथ नहीं दे रहा है उन्हें सोचना चाहिए कि भाग्यचक्र लगातार घूमता रहता है,कौन कह सकता है कि आज मैं शिखर पर पहुंच जाऊंगा।
How to Be Creator of Your Own Destiny?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How to Be Creator of Your Own Destiny?),छात्र-छात्राएँ अपने भाग्य के निर्माता कैसे बनें? (How Can Students Become Makes of Their Own Destiny?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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