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What Are Reasons for Use of Abuses?

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1.गालियों के प्रयोग के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Use of Abuses?),गालियों का धड़ल्ले से प्रयोग करने के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Using Abuses Indiscriminately?):

  • गालियों के प्रयोग के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Use of Abuses?) जिन्हें अक्सर युवावर्ग,पढ़े-लिखे छात्र-छात्राएं तथा अन्य प्रबुद्ध व्यक्ति,राजनीतिक नेता तक भी इस्तेमाल करते हैं।उच्चशिक्षा,कॉलेज एवं विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं रैंगिंग या बोलचाल के समय जिन अपशिष्ट,असभ्य,फूहड़,बेतुके,गँवारू शब्दों या भाषा का प्रयोग करते हैं उन्हें गालियां कहा जाता है।
  • आइए जानते हैं कि गालियों का इतिहास क्या है,गालियां क्यों दी जाती है,गालियों का अनुवाद कैसे किया जाता है और फिल्मों में गालियों का प्रयोग क्यों व किस प्रकार किया जाता है।
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2.गालियों का इतिहास (History of Abuses):

  • टेबू-जैसा कोई खराब शब्द नहीं है।टेबू का इस्तेमाल कई स्थितियों में तो बेहद गंदा है।विश्व की चाहे कोई भाषा या कोई बोली हो,उसमें गालियां (स्लैंग,slang) मिल ही जाती हैं और परस्पर बातचीत में तो गालियों का उपयोग जैसे समाज का हिस्सा बन गई हैं।
  • गालियों का इतिहास काफी पुराना है।देश के हर कोने में गालियां वहां की स्थानीय भाषा और बोलियों में प्रचलित हैं।यही स्थिति देश के बाहर है,जहां अलग-अलग बोली और भाषा में अलग-अलग गालियां दी जाती है।एक गाली तब तक गाली रहती है,जब तक उसका उपयोग होता है।यह प्रथा तभी समाप्त हो सकती है जब उसे बिल्कुल निषिद्ध कर दिया जाए,लेकिन यह मुश्किल कार्य है,क्योंकि गालियां ‘टैबू’ के रूप में देखी जाती हैं।
  • आज के आधुनिक और अत्याधुनिक समाज में तो युवा पीढ़ी बिना गालियों के बात ही नहीं करती।इतना ही नहीं,बड़े लोग भी गाली देते हैं।बड़े लोगों का विचार है कि हिंदी में जो लोग आजकल गालियां दे रहे हैं,उन गालियों के शब्द अंग्रेजी से लिए गए हैं।पढ़े-लिखे लोग और अंग्रेजी बोलने वाले लोगों में,तो अंग्रेजी की गालियों का प्रयोग बहुतायत देखा जा सकता है।कुछ वर्ष पहले,तो पश्चिमी देशों की गालियां लोगों के समूहों में बातचीत का एक अहम हिस्सा होती थीं।धीरे-धीरे पढ़े-लिखे,अंग्रेजी जानने वालों से निकली वे गालियां-मध्यवर्ग के बीच पहुंच गयीं और बाद में तो पुरुषों के अतिरिक्त महिलाओं के बीच भी बातचीत में वे गालियां आम हो गयीं।

3.गालियां क्यों दी जाती हैं? (Why are Abuses Given?):

  • गालियों का प्रचलन कब से हुआ और गालियां क्यों दी जाती हैं? देखा जाए तो बदलते समाज में हिंदी गालियां,जो अंग्रेजी गालियों से अधिक चोट पैदा करती हैं,का इस्तेमाल होने लगा।रूढ़िवादी महिलाओं के बीच,जो पहले गालियां नहीं दिया करती थीं,अब अंग्रेजी गालियां उनकी बातचीत में इस्तेमाल होने लगीं।
  • जब आप अपनी भाषा के बजाय दूसरी भाषा में प्रयोग होने वाली गालियों का इस्तेमाल करते हैं,तो वे अपनी भाषा की गालियों से अपेक्षाकृत कम चोट पहुंचाती हैं।जैसे आजकल आमतौर पर ‘शिट’ का प्रयोग खूब होने लगा है।गाली का यह शब्द उस वक्त तुरंत चोट पहुंचाता है जब सामने वाला व्यक्ति हिंदी में इसी के समान गाली देता है।इसी तरह के उदाहरण अन्य भाषाओं में भी हैं।बांग्लाभाषियों अथवा तमिलभाषियों में,हिंदी की गालियां उन भाषाओं में दी गई गालियों से अपेक्षाकृत कम चोट पहुंचाती हैं।
  • इस तरह की गालियों के शब्द वास्तव में पश्चिमी देशों की देन है।आजकल परस्पर बातचीत के दौरान जो लोग इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल गालियों के रूप में नहीं करते,उन्हें लगता है कि उन्हें मध्यवर्गीय समाज में इस्तेमाल होने वाले शब्दों का अर्थ नहीं पता है।भारत के तथाकथित अत्याधुनिक समाज में पहले लड़कियां और महिलाएं ‘यार’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करती थीं।आजकल न केवल उन लड़कियों और महिलाओं के बीच ‘यार’ शब्द का इस्तेमाल आम हो गया है,बल्कि वे लड़कों और पुरुषों के साथ बातचीत में भी इस शब्द का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं।हकीकत यह है कि उन्हें इस शब्द का अर्थ ही नहीं पता होता और न ही उन्हें यह ज्ञात है कि ‘यार’ शब्द कहां से आया और इसका कैसे-कहां-किसने इस्तेमाल किया।
  • हमारा समाज ही किसी शब्द को अच्छा या खराब बनाता है।अपने आप में कोई शब्द अथवा उसका भाव खराब नहीं होता।शब्द का इस्तेमाल कैसे और किस मानसिकता के साथ किया गया,यह मुख्य बात है।पश्चिम में कोई भी सभ्य व्यक्ति इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करेगा।बहुत ही निम्न मध्यम वर्ग का व्यक्ति ही,जहां संस्कृति में घालमेल हो गया है,इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करता है।’एस’, ‘बॉटम’ अथवा ‘फॅक’ जैसे शब्दों का आमतौर पर निम्न मध्यवर्गीय समाज ही इस्तेमाल करता है,क्योंकि ये सब उनके बीच इस कदर प्रचलित हैं कि उन्हें इस तरह के शब्दों से जरा-सी भी चोट नहीं पहुंचती।
  • कुछ लोग गालियों का इस्तेमाल वाद-विनोद के रूप में अथवा उत्तेजना के लिए करते हैं।जहां तक उच्चवर्गीय परिवारों की बात है,तो उनके बीच पहले इस तरह की गालियों का इस्तेमाल ‘कामुक-भाषा’ के संदर्भ में किया जाता था,किंतु कुछ समय से इन गालियों को दूसरे रूप में देखा जाने लगा और जब ऐसी गालियों को किसी को लक्ष्य में रखकर इस्तेमाल किया गया,तो उसकी प्रतिक्रिया भी हुई।
  • यद्यपि यह पश्चिम से संस्कृति परिवर्तन का एक हिस्सा है,किंतु लोग सकारात्मक चीजों की तुलना में नकारात्मक चीजों को जल्दी सीख जाते हैं,क्योंकि मानव स्वभाव ही ऐसा है।एक समाज में जब लोग परस्पर बातचीत के दौरान ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं,तो वे अपने को उस समाज से,समाज के उन लोगों से जुड़ा हुआ पाते हैं।’यार’ शब्द का उल्लेख करें तो सुशिक्षित समाज में ‘यार’ शब्द का इस्तेमाल अच्छा नहीं माना जाता,यहां तक कि ‘बिच’ जैसा शब्द भी अपने आप में उस समय गाली है जब वह एक महिला के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है,किंतु अब इस शब्द का समाज में बिना किसी झिझक के इस्तेमाल हो रहा है।

4.शब्दों का अनुवाद (Translation of Words):

  • साहित्य के क्षेत्र में अनुवादकों की उल्लेखनीय भूमिका है।उनके लिए शब्दों का अनुवाद अथवा उन शब्दों के बदले दूसरा शब्द खोजना कोई आसान कार्य नहीं है।अफ्रीका,यूरोप और कनाडा के जाने-माने लेखकों के गंभीर साहित्य का हिंदी में अनुवाद मुश्किल भरा कार्य है।भारत में जाने-माने अंग्रेजी लेखकों- जैसे मुल्कराज आनंद,रस्किन बॉन्ड,उपमन्यु चटर्जी,अमिता मेहता,खुशवंत सिंह एवं अशोक की कृतियों का अनुवाद में अनुवाद की समस्या का सामना करना पड़ा है।’टेबू’- जैसे शब्दों का हिंदी में अनुवाद करते समय लेखकों को अनुवाद की समस्या का सामना करना पड़ा है।जिन शब्दों का अनुवाद करने का पाला पड़ा है,वे शब्द या तो शरीर के किसी हिस्से से संबंधित थे अथवा निश्चित ‘काम-क्रिया’ अथवा पारिभाषिक शब्दावली से जुड़े थे।उनके विचार में,अनेक संभावनाएं ऐसी भी थी कि जहां वह इस तरह के शब्दों से बच सकते थे,किंतु जहां वह ऐसे शब्दों से बच नहीं सकते थे,वहाँ उन्हें अंग्रेजी के अथवा हिंदी के वैसे समान शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा।इस तरह के अंग्रेजी अथवा हिंदी के अशिष्ट शब्दों का इस्तेमाल वहां आवश्यक हो जाता है,जहां अनुवादक को लेखक की कृति के साथ न्याय करना होता है,ताकि लेखक का उद्देश्य भ्रमित ना हो।
  • लेखक के लिए उस समय अजीब स्थिति उत्पन्न हो गयी जब खुशवंत सिंह की पुस्तक में प्रयुक्त ‘बॉटम पिंचर’ के लिए उनके समान उचित शब्द उन्हें नहीं मिला।यद्यपि उसके समान ही हिंदी में अशिष्ट शब्द उपलब्ध थे,पर वे शब्द हिंदी पाठकों के लिए चोट पहुँचाने वाले होते।अंततः उन्हें एक शब्द ‘हस्तक्षेप’ मिला जिसका साहित्यिक अर्थ ‘पिंचर’ से मेल खाता था।यद्यपि अनुवाद करते समय कई बातों को ध्यान में रखना पड़ता है,क्योंकि किसी भाषा को दूसरी भाषा में परिवर्तित करना होता है।ऐसा करते समय साहित्यिक अर्थ बदल सकता है,फिर भी भावार्थ वही रहना चाहिए।
  • यह पूछने पर की हिंदी लेखक ऐसे शब्दों का अपने साहित्य में किस तरह से उल्लेख करते हैं,उन्होंने बताया कि हिंदी लेखक तुरंत अंग्रेजी मानक शब्द का इस्तेमाल कर लेते हैं।किंतु कई लेखक ऐसे भी हैं जिन्होंने बिना किसी झिझक के हिंदी के अशिष्ट शब्दों का भी इस्तेमाल किया है।ऐसे लेखकों में विशेषकर- कृष्णा सोबती तथा मृदुला गर्ग-जैसी महिला हिंदी लेखिकाएं प्रमुख हैं।इन्होंने क्रमशः अपनी-अपनी ‘यारों के यार’ और ‘पचपन खम्भे लाल दीवारें’ कृतियों में गाली कहे जाने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया।
  • स्पष्ट है कि हिंदी लेखकों ने ऐसी स्थितियों का सामना वस्तुतः कैसे किया।निश्चित रूप से इससे उन्हें अनुवाद करते समय काफी मदद भी मिली,जब उन्होंने उन पुस्तकों को पढ़ा जिनमें गाली जैसे शब्दों के लिए अशिष्ट शब्दों का इस्तेमाल उन लेखकों ने कैसे किया।उनके विचार में,हिंदी लेखकों ने बहुत आवश्यक होने पर ही ऐसे शब्दों का,वह भी झिझकते हुए इस्तेमाल किया है,किंतु ‘अपने-अपने पिंजरे’ के लेखक मोहनदास नैमिष्यराय अथवा ‘जूठन’ के लेखक ओमप्रकाश बाल्मीकि जैसे कई लेखकों ने ही सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए निम्नस्तरीय गालियों की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल किया है।वह भाषा के लेखक के लिए हो अथवा एक अनुवाद के लिए हो,समाज उसी भाषा से चलता है,लेखक भी समाज के मानकों द्वारा ही अनुशासित होते हैं।
  • खुशवंत सिंह की प्रकाशित पुस्तक ‘इन द कंपनी ऑफ वूमेन’ में खुशवंत सिंह इस उम्र में सारी सीमाएं लांघ गए।खुशवंत सिंह की समाज के प्रति बड़ी जिम्मेदारी है और आने वाले सहस्राब्दी में वह समाज को देना चाहते हैं,यह बेहद चोट पहुंचाने वाला है।खुशवंत सिंह की उक्त पुस्तक असभ्यऔर कुंठित व्यक्ति की कृति की तरह है।

5.फिल्म और कामुकता (Film and Sexuality):

  • आजकल फिल्मों में द्विअर्थी संवाद के साथ-साथ उनमें गालियों और अश्लील भाषा का इस्तेमाल आम हो गया है।उदाहरणार्थ दादा कोंडके की फिल्म ‘अँधेरी रात में दिया तेरे हाथ में’ द्विअर्थी है।इसी प्रकार दीपा मेहता,जिनका एक पांव भारत में रहता है और दूसरा कनाडा में,को अच्छी फिल्में बनाने वाली माना जाता है।इसका अंदाजा इन दो मिसालों से लगाये।एक,’जुरेसिक पार्क’ और ‘शिंडलियर्सलिस्ट’ जैसी बड़ी फिल्में बनाने वाले स्टीवन स्पिलबर्ग ने अपनी एक अन्य फिल्म ‘कैमिला’ के निर्देशन की जिम्मेदारी दीपा मेहता को सौंपी थी।उन्होंने ‘फायर’ फिल्म पहले अंग्रेजी में बनायी फिर तीन-चार साल बाद हिंदी में डब होने पर इसको 14 अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।इनमें से दो शबाना आजमी को सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए मिले।फायर की कथा इस्मत चुगताई की 1936 की कहानी ‘लिहाफ’ से प्रेरित है।इस फायर फिल्म में भारत को ‘शिट’ की संज्ञा देना निंदनीय,अनुचित और शर्मनाक है।लगता है दीपा मेहता भारतीयता से परिचित नहीं है।क्या विदेशी सिनेदर्शकों और समीक्षकों के मिजाज से वाकिफ दीपा की मंशा यही थी की पहले भारतीय परिवेश को अपमानित करने वाली फिल्म बनाओ,पुरस्कार बटोरो और फिर उसे हिंदी में डब कर भारत के संवेदनशील बाजार में उछाल दो?
  • निश्चित रूप से गालियों और अश्लील भाषा का समाज पर प्रभाव पड़ता है।फिल्मों की भी हमारे समाज में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है,लेकिन फिल्मों ने समाज को विनाश के गर्त में धकेल दिया है।फिल्में तथाकथित अत्याधुनिक समाज में कामुकता संबंधी दुष्प्रचार के लिए जिम्मेदार हैं।अधिसंख्य हिंदी फिल्में पश्चिमी समाज की नकल हैं जिन्होंने देश की संस्कृति को नष्ट किया,क्योंकि ये फिल्में ही हैं जिनका समाज पर सीधा और तत्काल प्रभाव पड़ता है।हमारे समाज में सेक्स को लेकर खुली बातचीत करने पर लगा प्रतिबंध ही संभवतः इस तरह की गालियाँ और शब्दों के लिए अधिक जिम्मेदार है।
  • कुछ विद्वानों का कहना है कि वह चाहे लड़का हो या लड़की,जिसे सेक्स से जितना दूर किया जाएगा,उसमें उत्सुकता उतनी ही ओर बढ़ेगी।कभी-कभी खुली पोशाक भी इस तरह के गलत शब्दों को आमंत्रण देती है।अक्सर अधनंगी पोशाक पहने लड़कियों पर लोग फब्ती कसते हैं और गंदे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।अधिक से अधिक बदन दिखाने वाली पोशाकें लोगों को ज्यादा से ज्यादा आकृष्ट करती है और फिर उसी के साथ लोगों का छींटाकशी करना,फब्तियां कसना अथवा गंदे शब्दों का इस्तेमाल भी सर्वमान्य होता जा रहा है।
  • वैसे अधिसंख्य गालियां शरीर के किसी अंग अथवा ‘कामुक-क्रिया’ से जुड़ी हैं।हमारे समाज में सेक्स और ‘काम-संबंधों’ को निषिद्ध माना गया है।उन्हें सभ्य समाज के नियमों और उसकी परंपराओं से बाहर माना जाता है,किंतु जब इनका इस्तेमाल सभी लोग आमतौर पर अपने वार्तालाप में करने लगते हैं,तो मुश्किल से उन शब्दों के शाब्दिक अर्थों पर किसी का ध्यान जाता हो।बहरहाल,आज भी अधिसंख्य गालियां महिलाओं के शरीर को लेकर दी जाती हैं,जो हमारे पुरुष प्रधान समाज की भावनाओं को ही दर्शाती है।आज की संस्कृति व्यक्तिवादी की है।समाज अथवा व्यक्ति में इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गालियों के प्रयोग के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Use of Abuses?),गालियों का धड़ल्ले से प्रयोग करने के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Using Abuses Indiscriminately?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित कितनी तरह की होती है? (हास्य-व्यंग्य) (How Many Types of Math Are There?) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र से):गणित कितने प्रकार की होती है?
  • छात्र:दो प्रकार की,शुद्ध और अशुद्ध गणित।
  • गणित अध्यापक:अशुद्ध गणित कैसे?
  • छात्र:जिस गणित को हल करने से छात्र-छात्राएं बोर हो जाते हैं,दिमाग खराब हो जाता है और छात्र-छात्राओं में डर पैदा हो जाता है वह अशुद्ध गणित होती है।

7.गालियों के प्रयोग के क्या कारण हैं? (Frequently Asked Questions Related to What Are Reasons for Use of Abuses?),गालियों का धड़ल्ले से प्रयोग करने के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Using Abuses Indiscriminately?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गालियों की स्वीकार्यता क्यों होती जा रही है? (Why are Abuses Becoming Acceptable?):

उत्तर:गलियों को पहले अभिजात्य वर्ग गंदी और संस्कारहीनता का प्रमाण मानता था।लेकिन आज पश्चिमी समाज का गुलाम बन चुके इस वर्ग की बड़ी-बूढ़ी महिलाओं के साथ किशोरियां और युवतियां भी अपशब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल करती हैं क्योंकि इनके प्रयोग से अपनी बात को मनवाया जा सकता है,सामने वाला वाले पर दबाव बनाया जा सकता है,सामने वालों को मूर्ख सिद्ध किया जा सकता है,ऐसी मानसिकता बन गई है।

प्रश्न:2.क्या नारी को स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए? (Shouldn’t Women Have Freedom?):

उत्तर:नारी को स्वतंत्रता मिलना ,अपने विचारों का प्रकट करना,नारी की अहमियत को समझना और नारी आंदोलन का पुरुष प्रधानता को चुनौती देना स्वाभाविक है,किंतु अगर वह पुरुष विहीनता में अपने ‘चरम’ की खोज करती हैं,पुरुष की पोशाक पहनने (नकल करने),पुरुष की तरह गाली-गलौज का प्रयोग करने में अपने ‘चरम’ की खोज करती है,तो यह ढकोसले व पाखंड के सिवाय कुछ नहीं है।

प्रश्न:3.क्या फिल्मों में कोई विषय वर्जित हो सकता है? (Can There Be a Taboo Subject in Films?):

उत्तर:फिल्मों में ऐसे वर्जित विषय का चित्रण किया जाता रहा है,जिसे अब से पूर्व प्रबुद्ध वर्ग,समाज के चिंतनशील व्यक्ति तथा कई निर्माता-निर्देशक अनुचित मानते आए थे।इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कलाकार के लिए कोई विषय वर्जित नहीं होता।परंतु गालियों,कामुकता,अश्लीलता,कुंठा,वर्जित विषय का विवेचन प्रतीकों से भी हो सकता है और यदि अभिव्यक्ति के अधिकार की कोई सीमा रेखा नहीं है तथा लोकमर्यादा कहीं मायने नहीं रखती तो फिर कल ऐसा भी सिनेदौर आ सकता है जब ‘बोल्डनेस’ के नाम पर गालियों की भरमार,फूहड़ता की भरमार,शौच और संभोग के दृश्य ही दिखाई देंगे और उन पर प्रश्न चिन्ह लगाना दकियानूसी और पोंगापंथी बात मानी जाएगी।ऐसी फिल्मों से धन तो कमाया जा सकता है,पब्लिसिटी भी हासिल की जा सकती है परंतु लोगों को,जनमानस को,समाज को कोई स्वस्थ,शिक्षाप्रद संदेश नहीं दिया जा सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गलियों के प्रयोग के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Use of Abuses?),गालियों का धड़ल्ले से प्रयोग करने के क्या कारण हैं? (What Are Reasons for Using Abuses Indiscriminately?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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