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To Learn From Experiences of Others

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1.दूसरों के अनुभवों से सीखना (To Learn From Experiences of Others),दूसरों के अनुभवों से गणित का ज्ञान प्राप्त करने की टिप्स (Tips to Gain Knowledge of Mathematics From Experiences of Others):

  • दूसरों के अनुभवों से सीखना (To Learn From Experiences of Others) भी एक अनुभव है।सीखने के कई तरीके हैं।महात्मा कम्फ्यूशियस ने कहा है कि ज्ञानी गहन चिंतन-मनन से,साधारण मनुष्य अनुभव से तथा दूसरों का अनुकरण करके,अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं।समय (आयु) बहुत थोड़ा है तथा ज्ञान अनंत है।इसलिए स्वयं अनुभव करने से बहुत कम सीखा जा सकता है।कई बातें दूसरों के अनुभव से ही सीखी जा सकती है,उसे स्वयं अनुभव करके देखने की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे जहर खाने से मौत हो जाती है,अग्नि में हाथ देने से हाथ जल जाता है।इसी प्रकार के कड़वे अनुभवों को खुद करके सीखने की आवश्यकता नहीं है।इस प्रकार के अनुभवों को तथा अन्य सकारात्मक अनुभवों को दूसरे से सीख सकते हैं।
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2.मनुष्य से ही नहीं पशु पक्षियों से भी सीखें (Learn not only from Humans but also from Animals and Birds):

  • विद्यार्थी के पांच लक्षणों में भी पशु-पक्षियों का उदाहरण दिया गया है।विद्यार्थी के ये पांच लक्षण हैं:
    “काकचेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
    अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्च लक्षणम्।।”
  • कौए जैसा प्रयत्न,बगुले जैसी एकाग्रता,कुत्ते जैसी नींद,अल्प भोजन करना और घर का त्यागना।कौए जैसी चेष्टा से तात्पर्य है कि कौआ भोजन प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयत्न करता है।इधर-उधर भटकता है,हमेशा प्रयास करता रहता है।बगुले जैसी एकाग्रता का तात्पर्य है कि अपने लक्ष्य अर्थात् मछली को प्राप्त करने के लिए वह बिना हिले-डुले एक टांग पर खड़ा रहकर एकाग्रचित्त होकर रहता है और ज्योंही मछली आती है उसको पकड़ लेता है। कुत्ते जैसी नींद अर्थात् जरा सा खटका होते ही जाग जाता है और तुरंत सो भी ज्यादा है।अल्प भोजन करने से आलस्य नहीं आता,नींद नहीं आती है।घर त्याग का अर्थ है कि घर-परिवार का मोह त्याग कर जहां भी विद्या ग्रहण करने के लिए जाना पड़े वहां जाए।आजकल छात्र-छात्राओं में होम सिकनेस की बीमारी पाई जाती है।ऐसी स्थिति में वे विद्या ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
  • इस प्रकार इस श्लोक के द्वारा भी पशु-पक्षियों से सीख लेने की शिक्षा दी गई है।इसी प्रकार एक ओर उदाहरण प्रस्तुत है:
    एक बार राजा यदु ने ऋषि दत्तात्रेय से पूछा आपने जीवन मुक्त अवस्था कैसे प्राप्त की? तब ऋषि दत्तात्रेय ने बताया कि उन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की है।ये 24 गुरु हैं पृथ्वी,वायु,आकाश,जल,अग्नि,चंद्रमा,सूर्य,कबूतर,अजगर,समुद्र,पतंगा, भौंरा,हाथी,मधुमक्खी,हिरण,मछली,पिंगला वेश्या,कुरर पक्षी,बालक,कुमारी कन्या,बाण बनाने वाला,सर्प,भृंगी कीट इत्यादि।
    पृथ्वी से धैर्य और क्षमा,वायु से अनासक्ति,आकाश से आत्मा सर्वत्र व्याप्त है,जल से स्वच्छता,शुद्धता,मधुरता और पवित्रता,अग्नि से तेजस्विता,इन्द्रिय निग्रह तथा विषयों में लिप्त न होना,चंद्रमा काल के प्रभाव से घटता-बढ़ता दिखाई देता है वस्तुतः वह न तो घटता है और न बढ़ता है इसी प्रकार शरीर की जन्म से मृत्यु तक विभिन्न अवस्थाएं दिखाई देती है परंतु आत्मा का उससे कोई संबंध नहीं है,सूर्य पृथ्वी से पानी सोखकर समय पर वर्षा करता है,उसी प्रकार योगी पुरुष भी समय पर विषयों को ग्रहण और त्याग करता है परंतु आसक्त नहीं होना,सीखा।
  • अजगर से संतुष्ट रहना,समुद्र से सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति पर प्रसन्न नहीं होना तथा नष्ट होने पर खिन्न न होना,पतंगा से अपनी इंद्रियों को वश में न रखने वाला नष्ट हो जाता है,सीखा।भौंरे से सीखा कि शास्त्रों से सार ग्रहण करे।हाथी से सीखा कि साधक काष्ठमूर्ति में भी आसक्ति पतन का कारण बन जाती है।मधुमक्खी के संचय मधु को अन्य ही ले जाते हैं इसी प्रकार लोभी के संचित धन को अन्य लोग ही ले उड़ते हैं।हरिण वादक यंत्रों के कारण श्रवणेन्द्रिय के विषय में आसक्त होकर प्राण गंवाता है उसी प्रकार साधक को श्रवणेन्द्रिय की आसक्ति पतन की ओर ले जाती है।मछली कांटे में फंसे हुए मांस के टुकड़े में अपने प्राण गवा देती है वैसे ही स्वाद का लोभी मनुष्य भी अपनी जिव्हा के वश में होकर मारा जाता है।पिंगला वेश्या से सीख मिली कि दूसरों से आशा न करके अपने प्रयत्नों पर निर्भर करना सबसे बड़ा सुख है।
  • कुमारी कन्या से सीख मिली कि साधक को चित्त में एक ही ध्येय रखना चाहिए।बाण बनाने वाले से शिक्षा मिली कि अपने लक्ष्य में तन्मय रहे तो उसे संसार में होने वाली उथल-पुथल अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती।कुरर पक्षी से शिक्षा मिली कि अनावश्यक संग्रह ही दूसरों के मन में ईर्ष्या को जन्म देता है और दूसरों को ईर्ष्या के कारण कष्ट पहुंचता है।सांप से शिक्षा मिली कि सन्यासी को मठ या मण्डली बनाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। मकड़ी बिना किसी सहायता के अपना जाल बुनती है।इसी प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान बिना किसी सहायक अपनी माया से इस ब्रह्मांड की रचना करते हैं उसमें लीला करते हैं और अपने आप को लीन करके अंत में अकेले ही शेष रह जाते हैं।भृंगी किसी कीट को पकड़कर अपने रहने के स्थान में बंद कर देता है और कीड़ा भय से उसी का चिंतन करते-करते उसके जैसा हो जाता है।साधक को भी परमात्मा का चिंतन करके परमात्म स्वरूप हो जाना चाहिए।व्यक्ति का शरीर भी एक गुरु है यद्यपि यह अनित्य है परंतु इससे परम पुरुषार्थ का लाभ हो सकता है।
  • तात्पर्य यह है कि छात्र-छात्राओं में ज्ञान प्राप्ति की तीव्र उत्कंठा,लगन,जिज्ञासा तथा साध हो तो वह मनुष्यों से,अपने साथियों से,शिक्षकों से,पशु-पक्षियों से,यहां तक कि निर्जीव प्रकृति से भी सीख सकता है।
  • चाणक्य नीति में भी पशु-पक्षियों से सीख लेने की प्रेरणा दी गई है:
  • विद्यार्थी जो भी छोटा बड़ा कार्य करे उसे पूर्ण शक्ति लगाकर करे यह शिक्षा सिंह से लेनी चाहिए।बुद्धिमान छात्र-छात्राओं को अपनी इंद्रियों को वश में और चित्त को एकाग्र करके तथा देश,काल और अपने बल को जानकर अपने सारे कार्यों को सिद्ध करे।समय पर जागना,युद्ध के लिए तैयार रहना,बंधुओं को हिस्सा देना और आक्रमण करके भोजन करना इन चार बातों को मुर्गे से सीखना चाहिए।छिपकर मैथुन करना,धृष्टता (ढीठपन),समय-समय पर संग्रह करना,निरंतर सावधान रहना और किसी पर विश्वास न करना इन पांच बातों को कौए से सीखना चाहिए।बहुत खाने की शक्ति रखना,न मिलने पर थोड़े में ही संतोष कर लेना,गाढ़ निद्रा में सोना,तनिक सी आहट से ही जाग जाना,स्वामी भक्ति और शूरवीरता ये छह गुण कुत्ते से सीखना चाहिए।अत्यन्त थक जाने पर भी बोझ ढोते जाना,सर्दी-गर्मी की परवाह न करना और सदा संतोष से जीवन बिताना इन तीन गुणों को गधे से सीखना चाहिए।जो छात्र-छात्राएं उपर्युक्त गुणों को धारण करेगा तो गणित या अन्य विषय कितना ही कठिन हो उसको सरलता से हल कर सकेगा।

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3.दूसरों के अनुभवों से सीखने का सारांश (Conclusion of Learning from the Experiences of others):

  • प्रतियोगिता परीक्षा हो अथवा शैक्षिक परीक्षा हो छात्र-छात्राओं को यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि वे छात्र-छात्राएं ही असफल होते हैं जो किसी से सीखने के लिए तैयार नहीं होते हैं।अपनी कमजोरियों को पहचान कर उनमें सुधार नहीं करते हैं।कोई विद्यार्थी ऐच्छिक विषय का चयन सही नहीं करते हैं,कई विद्यार्थी सत्रारम्भ से परीक्षा की तैयारी प्रारंभ नहीं करते हैं,प्रतियोगी कैंडिडेट्स रिक्तियां निकलने तक इंतजार करते हैं और अपनी तैयारी विलम्ब से प्रारंभ करते हैं।किन्हीं छात्र-छात्राओं का पढ़ने का निश्चित कार्यक्रम नहीं होता है।कई छात्र-छात्राएं परीक्षा में नकल करते हुए अथवा अनुचित साधनों का प्रयोग करते हुए पकड़े जाते हैं।
  • यदि परीक्षार्थी अपने से पूर्व छात्र-छात्राओं को पकड़े जाने पर एवं उनके दुष्परिणामों से शिक्षा लें तो उनको सफलता मिल सकती है।वे आगे तरक्की और उन्नति के मार्ग पर बढ़ सकते हैं।यदि कीचड़ में रुपए-पैसे गिर जाते हैं तो हम कीचड़ में से रुपए-पैसों को ही उठाते हैं,कीचड़ को नहीं।इसी प्रकार दूसरे छात्र-छात्राओं,व्यक्तियों के बुरे कार्यों की ओर ध्यान न देकर अच्छे गुणों को धारण करें तो छात्र-छात्राएं विकास कर सकते हैं।अपने परीक्षा के प्राप्तांकों में वृद्धि कर सकते हैं।छात्र-छात्राएं अपनी कमजोरियों,कमियों व दूसरे छात्र-छात्राओं की कमजोरियों व कमियों को देखकर अपने अंदर सुधार करता है उसकी बुद्धि दिनोंदिन बढ़ती जाती है।दूसरों के गुणों को देखकर अपने में सुधार कर सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में दूसरों के अनुभवों से सीखना (To Learn From Experiences of Others),दूसरों के अनुभवों से गणित का ज्ञान प्राप्त करने की टिप्स (Tips to Gain Knowledge of Mathematics From Experiences of Others) के बारे में बताया गया है।

4.गणित में पुरस्कार किसे मिलेगा? (हास्य-व्यंग्य) (Who will Get the Prize in Mathematics?):

  • एक बार मैथेमेटिक्स प्रतियोगिता में बहुत से छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।
  • हरीश (मनीश से):क्या तुम बता सकते हो कि गणित के इस कंपटीशन में पुरस्कार किसे मिलेगा?
  • मनीश (हरीश से):जो छात्र-छात्रा इस मैथेमेटिक्स की प्रतियोगिता में सबसे अधिक अंक प्राप्त करेगा उसे मिलेगा।
  • हरीश (मनीश से):तो बाकी छात्र-छात्राएं इसमें हिस्सा क्यों ले रहे हैं।

5.दूसरों के अनुभवों से सीखना (To Learn From Experiences of Others),दूसरों के अनुभवों से गणित का ज्ञान प्राप्त करने की टिप्स (Tips to Gain Knowledge of Mathematics From Experiences of Others) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सबसे बड़ा कौन होता है? (Who is the Eldest?):

उत्तर:आयु वृद्ध से ज्ञानवृद्ध बड़ा होता है।ज्ञानवृद्ध से अनुभववृद्ध बड़ा होता है।अनुभववृद्ध से बड़ा वह होता है जो आयु,ज्ञान व अनुभव तीनों में बड़ा हो।

प्रश्न:2.छात्र-छात्राओं पर संगति का क्या प्रभाव पड़ता है? (What is the Effect of Consistency on Students?):

उत्तर:सज्जनों की संगति से मूर्ख व्यक्ति भी सज्जन बन जाता है जैसे निर्मली के बीज से गंदा पानी साफ हो जाता है।
विद्वानों में दोष भी गुण हो जाता है जबकि अच्छा गुण भी दुष्ट व्यक्ति में दोष हो जाता है।जैसे गायों को घास खिलाने पर भी घास दूध बन जाता है जबकि सर्प द्वारा पीया गया दूध भी विष बन जाता है।

प्रश्न:3.छात्र-छात्राएं शिक्षा कैसे प्राप्त कर सकते हैं? (How Students Get Education?):

उत्तर:शिक्षा (विद्या) और सुख-सुविधाओं दोनों को एक साथ प्राप्त करना असंभव है।शिक्षा और सुख-सुविधाओं का मिलन उसी प्रकार नहीं हो सकता है जैसे अंधकार और प्रकाश आपस में नहीं मिल सकते हैं।जिन छात्र-छात्राओं को विद्या प्राप्ति की अभिलाषा है उन्हें सुख-सुविधाओं का त्याग करना ही होगा।विद्या प्राप्त करना एक साधना है,कठोर तपस्या है।आजकल के छात्र-छात्राएं इस खुशफहमी में रहते हैं कि उन्होंने सुख-सुविधाओं का भोग करते हुए डिग्री प्राप्त कर ली है।परन्तु ऐसी शिक्षा प्राप्त करने के बाद छात्र-छात्राओं में किसी प्रकार के सद्गुण विकसित होते हुए नहीं देखे जाते हैं।वास्तविक रूप में यह शिक्षा है ही नहीं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा दूसरों के अनुभवों से सीखना (To Learn From Experiences of Others),दूसरों के अनुभवों से गणित का ज्ञान प्राप्त करने की टिप्स (Tips to Gain Knowledge of Mathematics From Experiences of Others) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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दूसरों के अनुभवों से सीखना
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दूसरों के अनुभवों से सीखना (To Learn From Experiences of Others) भी एक अनुभव है।
सीखने के कई तरीके हैं।महात्मा कम्फ्यूशियस ने कहा है कि ज्ञानी गहन चिंतन-मनन से,
साधारण मनुष्य अनुभव से तथा दूसरों का अनुकरण करके,
अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं।

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