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How to Increase Knowledge From Study?

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1.अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How to Increase Knowledge From Study?),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How Do Mathematics Students Gain Knowledge from Studies?):

  • अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How to Increase Knowledge From Study?) छात्र-छात्राओं को अक्सर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता है।किसी विद्यार्थी का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है तो इसके कई कारण हो सकते हैं।जैसे माता-पिता द्वारा बच्चों को समय न देना,अध्यापक द्वारा ठीक से न पढ़ाना,बालक में आत्मविश्वास की कमी,विद्यार्थी में कुंठा या हीन भावना का होना,घर-परिवार में पढ़ाई का माहौल न होना,बालक की योग्यता,क्षमता और बौद्धिक सामर्थ्य के अनुसार ऐच्छिक विषय का चयन न करना,माता-पिता व अभिभावक द्वारा बच्चों को कठोर अनुशासन में रखना इत्यादि कारणों से बालक-बालिकाएं पढ़ाई से जी चुराने लगते हैं।छात्र छात्राओं में पढ़ाई के प्रति अन्तःप्रेरणा और रुचि के अभाव में अध्ययन की ओर मन को एकाग्र नहीं कर पाते हैं।शिक्षकों द्वारा विषय के अनुसार उचित शिक्षण विधि का प्रयोग न करने के कारण भी बच्चों का मन पढ़ाई से उचट जाता है।
  • छात्र-छात्राओं को केवल परीक्षा उत्तीर्ण कर लेना,परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर लेना या प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर लेना अथवा जाॅब प्राप्त कर लेने मात्र से अध्ययन की इतिश्री नहीं समझ लेनी चाहिए।छात्र-छात्राएं चाहे कोई भी क्षेत्र का चुनाव करें तो उसमें भी अध्ययन से नई-नई बातें,जाॅब में आगे बढ़ने की तकनीक जान सकते हैं।
  • आधुनिक युग में कदम-कदम पर ज्ञान की आवश्यकता होती है।ज्ञान बड़े-बुजुर्गों से,साथियों से,सोशल मीडिया,अध्यापकों से और अध्ययन से तथा अनेक अन्य माध्यमों से प्राप्त होता है।इनमें अध्ययन से प्राप्त ज्ञान श्रेष्ठ माध्यम है इसलिए अध्ययन के प्रति लगन और रुचि उत्पन्न नहीं करेंगे तो ज्ञान में वृद्धि नहीं कर सकते हैं।
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2.अध्ययन से ज्ञान में बाधाएं और निवारण (Barriers and Prevention of Knowledge from the Study):

  • माता-पिता व अभिभावक की लापरवाही तथा बच्चों पर ध्यान न दे पाने के कारण बालक-बालिकाएं कुसंगति में पड़ जाते हैं।वे विद्यालय में न जाकर कहीं ओर समय व्यतीत करने लग जाते हैं।यदि प्रारंभ में रोकथाम नहीं लगाई जाए तो बालक-बालिकाएं हाथ से निकल जाते हैं।अभिभावकों को चाहिए कि समय-समय पर विद्यालय से सम्पर्क करके विद्यार्थी के अध्ययन से संबंधित बातों की जानकारी प्राप्त करते रहें।
  • माता-पिता को न केवल बच्चों के अध्ययन के प्रति जागरूक रहें बल्कि उनके ज्ञान में भी वृद्धि करते रहें।उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरित करें।अध्ययन में आनेवाली रुकावटों व बाधाओं को दूर करते रहें।
  • छात्र-छात्राओं को अध्ययन के लिए शर्म,संकोच व झिझक को त्याग देना चाहिए क्योंकि अध्ययन में शर्म,संकोच व झिझक ज्ञान प्राप्ति में बाधक है।यदि आप ऐसा करेंगे तो गणित तथा अन्य विषय में आनेवाली बाधाओं से घिरे रहेंगे और तनावग्रस्त हो जाएंगे।अध्ययन में समस्याओं का समाधान होने पर ही आपके ज्ञान में वृद्धि हो सकेगी।तनाव की स्थिति में अध्ययन के प्रति एकाग्रता भंग हो जाएगी और आप ज्ञान प्राप्ति से वंचित हो जाएंगे।
  • नियमित रूप से अभ्यास करें,व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करें,यदि आपके प्रैक्टिकल विषय भी है तो प्रयोगशाला का सदुपयोग करें तथा पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर अध्ययन करें जिससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी।
  • अध्ययन तथा करियर से संबंधित बातों के बारे में दूसरों से सुझाव जरूर लें परन्तु निर्णय स्वयं ही लें।क्योंकि अपने आपके बारे में आपसे बेहतर कोई नहीं जानता है।अध्ययन करने के लिए कोई बहाना नहीं बनाएं क्योंकि यही समय है जिसमें पूरे जीवन की बुनियाद टिकी हुई है।इस समय जितना ज्ञान अर्जित कर लेंगे तो यह ज्ञान पूरे जीवन भर काम आने वाला है।नियमित रूप से गृह कार्य करें और स्वास्थ्य की अनदेखी न करें।
  • पढ़ाई के समय पढ़ाई करें,घर के कार्य में अपने आपको न उलझायें।यदि अभिभावक घर के काम बता दें तो प्रेमपूर्वक उन्हें कहें कि इस समय मैं पढ़ाई कर रहा हूं।घर के कार्यों तथा अन्य कार्यो के कारण अध्ययन के प्रति अपनी एकाग्रता को भंग न करें।
    समय पर पुस्तकें तथा नोटबुक खरीद लें क्योंकि यदि आप समय पर पुस्तकें तथा नोटबुक नहीं खरीदेंगे तो अध्ययन तथा अभ्यास कार्य नहीं कर सकेंगे और न ही गृह कार्य कर सकेंगे।गृहकार्य को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि गृहकार्य से भी ज्ञान में वृद्धि होती है।गृहकार्य एक प्रकार से नोट्स तैयार करने की प्रारंभिक स्थिति है।गृह कार्य से नोट्स तैयार करने की कला सीखी जा सकती है।
  • समय-समय पर हर कार्य की महत्ता है।घर के कार्य,दैनिक जीवन की घटनाओं तथा बाजार से सामान खरीदने के माध्यम से ज्ञानार्जन में वृद्धि होती है।अतः किसी भी कार्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।घर में किसी कार्य,शादी,जन्मदिन तथा अन्य छोटे-छोटे कार्यो के कारण विद्यालय तथा कोचिंग संस्थान से छुट्टी लेने का प्रयास न करें क्योंकि इस स्थिति में अध्ययन का तारतम्य भंग हो जाता है और आप अध्ययन में पिछड़ सकते हैं क्योंकि अगला पाठ आपके समझ में नहीं आएगा।
  • अध्ययन योजनाबद्ध और समय सारणी के अनुसार करें।पढ़ने के समय पढ़े,खेलने के समय खेलें,घर का कार्य करने के समय घर का कार्य निपटाएं और मनोरंजन के समय मनोरंजन करें।अवकाश के दिनों में भी अध्ययन कार्य को विराम नहीं देना चाहिए जिससे अध्ययन करने की आदत बनी रहेगी।यदि अध्ययन में मन नहीं लग रहा है तो उसके कारण को जानकर दूर करें।छात्र-छात्राओं को मन न लगने का कारण समझ में नहीं आ रहा है तो अभिभावकों व शिक्षकों की मदद से कारण को जान-समझकर दूर किया जा सकता है।

3.घर पर अध्ययन करने की टिप्स (Tips for Studying at Home):

  • कई छात्र-छात्राएं विद्यालय तथा कोचिंग संस्थान में तो अध्ययन करते हैं परन्तु घर पर अध्ययन नहीं करते हैं।विद्यालय तथा कोचिंग संस्थान में तो अध्ययन का सैद्धान्तिक ज्ञान ही प्राप्त होता है।उसकी प्रैक्टिस तो घर पर ही की जाती है।घर पर छात्र-छात्राएं शिक्षा संस्थानों में पढ़ाए गए पाठ को पढ़ता है तभी उसे मालूम होता है कि कितना समझ में आया है और कितना समझ में नहीं आया है।जो बातें समझ में नहीं आई है उन्हें मित्रों और शिक्षकों से विचार-विमर्श करते हैं तभी आपके ज्ञान में वृद्धि होती है।
  • अभिभावकों को थोड़ा-सा समय निकाल कर बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए तथा उनके सामने अध्ययन में आने वाली रुकावटों को दूर करना चाहिए।बचपन से ही बच्चों की हर बात जानने की जिज्ञासा होती है।वह हर नई बात को जानने के लिए उत्सुक रहता है।छोटी उम्र से ही अध्ययन को नियमित रूप से करने की आदत डाल दी जाए तो उनमें पढ़ने का अनुशासन आ जाएगा।
  • घर पर ट्यूटर (Tutor) की व्यवस्था करने पर भी माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई के प्रति जागरूक रहना चाहिए तथा उनके ज्ञान में वृद्धि हो रही है या नहीं इसका मूल्यांकन करते रहना चाहिए।
  • छात्र-छात्राओं को पढ़ाई न करने पर मारने-पीटने के बजाय उसे समझाना चाहिए।उन्हें पढ़ाई न करने पर उसके नुकसान बताए जाने चाहिए।मारपीट से बालक-बालिकाएं ढीठ हो जाते हैं।माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने लगते हैं।
  • छात्र-छात्राओं को सोचना चाहिए कि जैसे शरीर की भूख रोटी से मिटती है उसी प्रकार आत्मा की खुराक ज्ञान है।ज्ञान से आत्मा तृप्त होती है।अतः ज्ञानार्जन अवश्य करना चाहिए।
  • घर पर ऐसे कमरे में अध्ययन करना चाहिए जिसमें वातावरण शांत हो और शोरगुल न हो।विचार-विमर्श तथा वार्ता से ज्ञान में वृद्धि होती है।अतः पढ़े हुए पाठ को अपने मित्रों तथा सहपाठियों से चर्चा करनी चाहिए।
  • ज्ञान से ज्ञान बढ़ाने का सर्वोत्तम माध्यम है नियमित रूप से अध्ययन-मनन-चिंतन करना।नियमित अध्ययन से श्रेष्ठ लेखकों के विचारों से घर पर ही लाभ उठाया जा सकता है।लेकिन हमेशा अध्ययन ही अध्ययन न करते रहें।अध्ययन के साथ-साथ खेलकूद व मनोरंजन भी करना चाहिए।
  • हर छात्र-छात्रा की सामर्थ्य अलग-अलग होती हैं अतः अपने ग्रहण करने तथा समझने की क्षमता को पहचानकर उतने समय तक पढ़ना चाहिए।अध्ययन करने के साथ-साथ उसकी पुनरावृत्ति भी समय-समय पर करते रहना चाहिए।विद्या एक ऐसी चीज है जिसकी पुनरावृत्ति न करने पर विस्मृत हो जाती है और हमारा किया गया परिश्रम बेकार चला जाता है।
  • अध्ययन,मनन-चिंतन या पुनरावृत्ति में माता-पिता या परिवार के सदस्य सहयोग कर सकते हैं तो यह सबसे उत्तम है अन्यथा अपने मित्रों के साथ भी किया जा सकता है।विचार-विमर्श तथा वार्ता से हमारी कई शंकाओं का समाधान हो जाता है।
  • हमेशा सुखासन में बैठकर पढ़ना चाहिए।लेटकर पढ़ने पर आंखों पर दुष्प्रभाव पड़ता है तथा पढ़ा हुआ भी ठीक से याद नहीं रहता है।कुर्सी या स्टूल पर बैठकर पढ़ने से नींद या ऊब पैदा होती हो तो कुछ समय टहलकर भी पढ़ा जा सकता है।यदि नींद का प्रभाव ज्यादा महसूस हो रहा हो तो कुछ समय झपकी ले लेना ठीक रहता है।अच्छी पुस्तकों तथा सद्ग्रन्थों का अध्ययन करने से हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है।
  • घर पर साप्ताहिक,मासिक रूप से पढ़े हुए विषय का मूल्यांकन करते रहें और आवश्यक सुधार करें।याद रखिए कि अच्छे अंक से उत्तीर्ण होने पर पराए भी अपने हो जाते हैं और अच्छे अंक अर्जित न करने पर अपने भी पराए हो जाते हैं।माता-पिता भी अपमानित करने से नहीं चूकते हैं।हालांकि परीक्षा परिणाम तो हमारे हाथ में नहीं होता परंतु अध्ययन करने के लिए कठिन परिश्रम करना तथा नियमित रूप से अध्ययन करते रहना,सत्रारम्भ से ही अध्ययन करना,समय-समय पर अपना मूल्यांकन करते रहना इत्यादि कार्य तो अपने हाथ में ही है।

4.अध्ययन से ज्ञान में वृद्धि का दृष्टांत (Parable of Increasing Knowledge from Studies):

  • प्रायः छात्र-छात्राएं अपनी मौलिक प्रतिभा तथा क्षमता से अनभिज्ञ रहते हैं।उन्हें यह पता नहीं होता है कि वे क्या कर सकते हैं,उनकी क्षमताएँ क्या-क्या है? लेकिन छात्र-छात्राओं को ज्ञात होना चाहिए कि मानव शरीर विशेषकर मस्तिष्क में अपार क्षमताएं विद्यमान है।इस मस्तिष्क में विलक्षण एवं अद्भुत क्षमताएँ हैं यदि मस्तिष्क का उपयोग किया जाए।यदि छात्र-छात्राएं मस्तिष्क का उपयोग करना नहीं जानते हैं तो वे क्षमताएँ सोई पड़ी रह जाती है।जीवन में सफलता प्राप्त करना मस्तिष्क को उपयोग लेने पर निर्भर करती है।
  • एक गणित के अध्यापक थे।वे नगर के किनारे ही छोटी-सी कुटिया में रहते थे।उनके पास अनेक छात्र-छात्राएं अध्ययन करके ज्ञान लाभ प्राप्त करते थे।धीरे-धीरे उनकी ख्याति आसपास के क्षेत्र में फैलने लगी।दूर-दूर से उनके पास गणित का अध्ययन करने और ज्ञान ग्रहण करने के लिए छात्र-छात्राएं आते थे।
  • एक दिन एक युवक उनकी प्रसिद्धि सुनकर उनके पास आया और उनसे गणित पढ़ने लगा।गणित विषय पर उनकी मजबूत पकड़ देखकर वह प्रतिदिन उनसे गणित पढ़ने के लिए आने लगा।
  • वह बड़ी श्रद्धा से उनसे गणित का ज्ञान ग्रहण करता और गंभीर रूप से गणित का अभ्यास करता।श्रद्धापूर्वक उनसे गणित का ज्ञान ग्रहण करने के कारण वह उच्च कोटि का विद्वान बन गया।परंतु कुछ वर्षों के बाद उसने महसूस किया कि गुरुजी को केवल गणित का ही ज्ञान है।आध्यात्मिक ज्ञान तक उनकी पहुंच नहीं है।युवक ने पुस्तकों के अध्ययन-मनन-चिंतन से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया।गणित शिक्षा प्राप्त करने के बाद युवक अपने गांव चला गया।एक दिन उसने गणित के ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के बल पर श्रेष्ठ गणितज्ञ का दर्जा प्राप्त कर लिया।
  • कुछ वर्षों के बाद वह युवक अपने गुरु से मिलने आया।युवक और गुरु के बीच आपस में ज्ञान चर्चा हुई।ज्ञान चर्चा के दौरान युवक ने गुरु को संकेत किया कि उनकी पकड़ गणित के ज्ञान तक ही है तथा आध्यात्मिक ज्ञान से वे शून्य हैं।
  • यह सुनकर गुरु का अहंकार जाग गया।गुरु ने युवक से कहा कि तुमने गणित विद्या मुझसे सीखी है और आज मुझे ही आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश परोस रहे हो।
  • युवक ने विनम्रतापूर्वक उनका आभार प्रकट किया कि गणित का ज्ञान उनसे मिला है।युवक ने आगे कहा कि उसका इरादा आपके स्वाभिमान को चोट पहुंचाना नहीं है।मेरा तो इतना ही तात्पर्य है कि किसी भी व्यक्ति में लौकिक और आध्यात्मिक ज्ञान से ही पूर्णता आती है।
  • वस्तुतः यदि शिष्य से भी सीखने को कुछ मिल रहा है तो उससे भी ज्ञान ग्रहण कर लेना चाहिए।अधूरा ज्ञान प्रत्येक के लिए दुखदायी होता है।ज्ञान कहीं से भी मिले छोटे अथवा बड़े से तो ग्रहण कर लेना चाहिए तभी उसके ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How to Increase Knowledge From Study?),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How Do Mathematics Students Gain Knowledge from Studies?) के बारे में बताया गया है।

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5.खोयी हुई गणित की पुस्तक (हास्य-व्यंग्य) (A Lost Mathematics Book) (Humour-Satire):

  • राहगीर (एक युवक से):क्यों बेटा अभी तक तुम अपनी गणित की पुस्तक ही ढूंढ रहे हो क्या?
  • युवक:जी नहीं,गणित की पुस्तक तो मेरे छोटे भाई को मिल गई।
  • राहगीर:फिर क्या ढूंढ रहे हो?
  • युवक:जी,मैं अपने छोटे भाई को ढूँढ रहा हूँ।

6.अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Increase Knowledge From Study?),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How Do Mathematics Students Gain Knowledge from Studies?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.शिक्षित होने से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Being Educated?):

उत्तर:शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना नहीं है।डिग्री प्राप्त करने से कोई भी युवक-युवतियाँ पूर्णतः शिक्षित नहीं होगा।शिक्षा का उद्देश्य वस्तुतः सामाजिक,राष्ट्रीय और व्यक्तिगत कर्त्तव्यों का बोध कराना और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना है।अपने कर्त्तव्यों एवं दायित्वों का पालन करना शिक्षित होना है।अपने हितों की रक्षा करें और दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं।कमजोर,निर्बल,अशक्त लोगों को ऊँचा उठाने में अपनी योग्यता एवं क्षमताओं का उपयोग करें।शिक्षा मानवीय गुणों को धारण करना सिखाती है,उसे सही दिशा देती है और उच्च स्तरीय सामाजिक जीवन मूल्यों को जीने के लिए प्रेरित करती है।

प्रश्न:2.अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ता है? (How does Study Enhance Knowledge?):

उत्तर:अध्ययन करने से हमें हमारे मानसिक विकारों का ज्ञान होता है जिससे हम उनसे मुक्त होने का प्रयास करते हैं।अध्ययन हमें ज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है।जितने भी महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक तथा महापुरुष हुए हैं वे अध्ययन के बल पर ही महान् बने हैं।अध्ययन में केवल अपने कोर्स की पुस्तकें पढ़ना ही शामिल नहीं है बल्कि रामायण,महाभारत,गीता,वेद,उपनिषद इत्यादि धर्मग्रंथों का अध्ययन करना भी शामिल है।इन धर्मग्रंथों का अध्ययन करने से हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है।

प्रश्न:3.बालकों के बचपन में माता-पिता को अधिक सतर्क क्यों रहना चाहिए? (Why Should Parents be more Cautious in Children’s Childhood?):

उत्तर:बचपन में बालक-बालिकाओं की बुद्धि अपरिपक्व होती है।उनको हर नई बात को जानने की जिज्ञासा या मन में कौतूहल रहता है।यदि उस समय बच्चों को सही दिशा नहीं दी जाए तो वे राह से भटक जाते हैं।राह से भटकने के बाद पुनः रास्ते पर लाना तथा सही दिशा व ज्ञान मार्ग पर लाना बहुत कठिन होता है।एक बार जो आदतें व संस्कार पड़ जाते हैं उनको मिटाना बहुत मुश्किल होता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How to Increase Knowledge From Study?),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How Do Mathematics Students Gain Knowledge from Studies?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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अध्ययन से ज्ञान कैसे बढ़ाएं? (How to Increase Knowledge From Study?)
छात्र-छात्राओं को अक्सर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता है।
किसी विद्यार्थी का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है तो इसके कई कारण हो सकते हैं।

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