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Math Student Become Behavior Efficient

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1.गणित के विद्यार्थी व्यवहार कुशल बनें (Math Student Become Behavior Efficient),गणित के विद्यार्थी के लिए व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने की 3 टिप्स (3 Tips for Gaining Practical knowledge for a Mathematics Student):

Math Student Become Behavior Efficient

Math Student Become Behavior Efficient

  • गणित के विद्यार्थी व्यवहार कुशल बनें (Math Student Become Behavior Efficient) इसके लिए कुछ बातों पर अमल करना होगा।जिस प्रकार गणित के अध्ययन से छात्र-छात्राओं में चिंतन-मनन करने,समझने,तर्क करने,निर्णय लेने,नियमितता,क्रमबद्धता इत्यादि गुणों का विकास होता है।उसी प्रकार यह भी सत्य है कि छात्र-छात्राओं में एकाग्रता,अनुशासन,समय का उचित उपयोग,व्यवहार कुशलता,चिंतन-मनन करने,तर्क करने,निर्णय लेने इत्यादि गुण हों तो गणित का अध्ययन निपुणता एवं पूर्ण दक्षता के साथ कर सकते हैं।दोनों अन्योन्याश्रित है अर्थात् आपमें गुण हैं तो गणित का अध्ययन कर सकते हैं तथा यदि आप गणित का अध्ययन करते हैं तो विभिन्न गुणों का विकास धीरे-धीरे होता जाता है।
  • यदि छात्र-छात्राएं व्यवहार कुशल हैं अर्थात् आपमें व्यावहारिक  ज्ञान है तो गणित का ज्ञान धीरे-धीरे अर्जित करते जाएंगे तथा एक समय ऐसा आएगा कि आपके पास गणित के ज्ञान का भंडार हो जाएगा।
  • विद्यार्थी का व्यवहार उसके व्यक्तित्व का दर्पण होता है।कोई विद्यार्थी कितना ही होशियार हो,प्रखर हो,तेजस्वी हो यदि उसका व्यवहार अच्छा नहीं है तो वह गणित का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है।यदि विद्यार्थी मृदु है,सौम्य है,मन निर्विकार है तो अन्य छात्र-छात्राएं ऐसे छात्र-छात्रा की मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं।परंतु जो विद्यार्थी दुर्जन हैं,दुष्ट हैं उस विद्यार्थी से अन्य विद्यार्थी घृणा करते हैं,न तो कोई उसको गणित के सवाल बताते हैं,न गणित में सफल होने की कोई रणनीति बताते हैं।
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2.छात्र छात्राओं को गणित का ज्ञान कैसे प्रदान करें? (How to Impart mathematics Knowledge to Students?):

  • छात्र-छात्राओं को गणित का ज्ञान प्रदान करना माता-पिता व शिक्षकों के लिए टेढ़ी खीर है। छात्र-छात्राओं को यदि गणित में निपुण व होशियार बनाना है तो शिक्षकों को अपना व्यवहार सरल,सर्वश्रेष्ठ और उत्तम रखना होगा।छात्र-छात्राएं ऐसे शिक्षक से ही अपनी समस्याएं पूछते हैं जो शिक्षक व्यवहार कुशल हो,विनम्र हो तथा सरल हो।ऐसे शिक्षकों से छात्र-छात्राएं कन्नी काटते हैं जो खूँसट हो,अपना रौब-दाब जमाता हो और छात्र-छात्राओं को बात-बात पर झिड़कता हो,ताने मारता हो।
  • छात्र-छात्राओं को गणित में की जाने वाली हर गलती के लिए बार-बार न टोकें।जिन विद्यार्थियों को बार-बार टोका जाता है वे विद्यार्थी नकारात्मक होते जाते हैं।उनमें आत्मविश्वास की कमी होती जाती है। ऐसे विद्यार्थी गणित में अपने आपको कमतर समझते हैं और उनमें हीन भावना आ जाती है।
  • विद्यार्थी यदि गणित के जटिल सवालों को हल करते हैं तो उनकी प्रशंसा करनी चाहिए तथा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे विद्यार्थियों का मनोबल बढ़ता है।
  • यदि विद्यार्थी गणित में छोटी-छोटी गलतियां करता है तथा उन गलतियों की पुनरावृत्ति करता है तो प्रेम और स्नेह से उन्हें समझाना चाहिए।विद्यार्थियों का मन कोमल होता है अतः उन्हें आज्ञापालन और विनम्रता का पाठ प्रेम और स्नेह से सीखाया जा सकता है।
  • छात्र-छात्राएं यदि गलती करता है तो उसे सबके सामने दंडित करना और गलती का एहसास कराना लाभ के बजाय हानिकारक होता है।ऐसे विद्यार्थी अपने आपको अपमानित महसूस करते हैं और उनमें गणित में सुधार होने के बजाय बिगड़ जाते हैं।कई विद्यार्थी तो गणित से जी चुराने लगते हैं,तो कई विद्यार्थी शर्म,संकोच के कारण दब्बू बन जाते हैं।
  • यह ठीक बात है कि छात्र छात्राओं को व्यवहार कुशलता से गणित का ज्ञान शीघ्रता तथा तीव्रता से सीखाया जा सकता है।परंतु यह भी एक व्यावहारिक युक्ति है कि क्रोध,आलोचना तथा दंड से विद्यार्थी गणित को हल करने के बजाय गणित से नफरत करने लगते हैं।
  • विद्यार्थियों में आत्मविश्वास की वृद्धि करने के लिए उसके अच्छे कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए अर्थात् यदि वे गणित में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं, गणित की समस्याओं अथवा जटिल प्रश्नों को हल करते हैं,कक्षा में कमजोर छात्र-छात्राओं की मदद करते हैं तो उनकी प्रशंसा करनी चाहिए।परंतु इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अत्यधिक प्रशंसा से अथवा अनावश्यक प्रशंसा से उनमें अहंकार उत्पन्न हो सकता है।इसलिए उचित समय पर,उचित तरीके से तथा उपर्युक्त बताई परिस्थितियों में,सफलता प्राप्त करने पर,सर्वोच्च अंक प्राप्त करने पर ही उनकी प्रशंसा करनी चाहिए।विद्यार्थी के साथ-साथ उसकी सफलता में सहयोगी मित्रों व माता-पिता की भी प्रशंसा करनी चाहिए जिससे उनमें अहंकार उत्पन्न न हो।
  • गणित में रुचि उत्पन्न करने के लिए छात्र छात्राओं को रोचक तरीके से बताना चाहिए जिससे गणित के अध्ययन को विद्यार्थी बोझ या भार न समझे।गणित को हल करने में बोरियत महसूस न करें।
  • छात्र-छात्राओं को लक्ष्य केंद्रित अध्ययन करने पर प्रेरित करना चाहिए।परंतु साथ में उन्हें यह भी बताते रहना चाहिए कि लक्ष्य लचीला होना चाहिए क्योंकि बाल्यावस्था,युवावस्था प्रौढ़ावस्था में उद्देश्य परिवर्तित होता रहता है।कोई भी उद्देश्य स्थाई नहीं होता है।जैसे दसवीं कक्षा तक परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करने का लक्ष्य रह सकता है,12वीं में इंजीनियरिंग व जेईई-मेन व जेईई-एडवांस तथा गेट प्रवेश परीक्षा को उत्तीर्ण करने का लक्ष्य रहता है। आईआईटी तथा इंजीनियरिंग करने के बाद जाॅब प्राप्त करने का लक्ष्य रहता है।जाॅब प्राप्त करने के बाद घर-गृहस्थी अर्थात् शादी करने का लक्ष्य रहता है।बाल-बच्चे होने पर उनको शिक्षित करने का लक्ष्य रह सकता है।बच्चों को शिक्षित करने तथा शादी करने के बाद आत्मोन्नति व मोक्ष प्राप्त करने का लक्ष्य हो सकता है।इस प्रकार अवस्था तथा विभिन्न स्तरों पर लक्ष्य बदलता रहता है।जिस स्तर पर जो भी लक्ष्य निश्चित कर लिया हो उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
  • विद्यार्थी को गणित में आने वाली कठिनाइयों,समस्याओं को हल करने के लिए उनका मुकाबला व समाधान करने हेतु उनके सामने ऐसे आदर्श व्यक्तित्त्व का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए जो संकटों व कष्टों का सामना करके अपने लक्ष्य को प्राप्त किया हो।
  • विद्यार्थियों को जाॅब केवल धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए नहीं करना चाहिए बल्कि दूसरों का सहयोग,अपनी आत्मोन्नति,शांति व संतोष के लिए भी करना चाहिए।जिस जाॅब को करने से आत्म-संतुष्टि व शांति नहीं मिलती हो केवल धनार्जन करना श्रेष्ठ उद्देश्य नहीं कहा जा सकता है। उपर्युक्त रणनीति को अपनाने पर गणित का विद्यार्थी व्यावहारिक ज्ञान व व्यवहार कुशल बन सकता है।

3.गणित के अध्ययन के अतिरिक्त व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त करें (Gain Practical Knowledge in Addition to Studying Mathematics):

  • माता-पिता,अभिभावक,शिक्षकों और छात्र छात्राओं को चाहिए कि केवल गणित का ज्ञान प्राप्त करने,अध्ययन का दाब-दबाव ही नहीं बनाएं बल्कि उन्हें सामाजिक व पारिवारिक तौर-तरीके सीखाने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।सांसारिक व व्यावहारिक ज्ञान नहीं सीखता है तो ऐसा छात्र-छात्रा समाज व परिवार में हंसी-मजाक का पात्र बन जाता है।
    विचारों में स्पष्टता तथा ईमानदारी होनी चाहिए। विचारों को घुमा-फिराकर न बोलें क्योंकि विचारों को घुमा-फिराकर बोलने से अन्य लोग ऐसे छात्र-छात्राओं को चालाक समझने लगते हैं।
  • किसी भी व्यक्ति से बातचीत करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई व्यक्ति यदि छात्र-छात्रा से बड़ा है तो उसे सम्मानपूर्वक भाईसाहब,चाचाजी,अंकलजी जो भी आपका उससे संबंध हो उसी प्रकार बोलें तथा छोटों को भैया,अमित,चंचल,नमन इत्यादि नामों से संबोधित करके बोलें।
  • कई बार रिश्तेदारी में कोई शादी,पार्टी या अन्य रश्मोरिवाज हो तथा माता-पिता,अभिभावक का जाना संभव नहीं होता है ऐसी स्थिति में आपमें ऐसा व्यावहारिक कौशल होना चाहिए जिससे माता-पिता को आपके व्यवहार के कारण शर्मिंदा न होना पड़े। यदि कोई दुख का अवसर है तो परिस्थिति के अनुकूल दुःख तथा यदि खुशी का अवसर हो तो खुशी प्रकट करें।केवल खानापूर्ति करने के लिए न जाएं।
  • आपस में तालमेल करना भी आना चाहिए।तालमेल का अर्थ है छात्र-छात्राओं को इस प्रकार के व्यवहार में पटु होना चाहिए कि यदि परिवार में किन्हीं भाई-बहनों,भाई-भाई या बहिन-बहनों में लड़ाई-झगड़ा हो जाए तो उनको समझा-बुझाकर उन्हें राजी करें और वातावरण को खुशहाल बनाकर रखें।
  • वस्तुतः छात्र-छात्राएं अन्दर से कितने ही अच्छे हो जब तक आप अपने विचारों,भावनाओं और अपने कौशल को ठीक प्रकार से प्रकट नहीं करेंगे तब तक अन्य लोगों की भावनाएं आपके प्रति अच्छी व अनुकूल नहीं हो सकती है।कई बार छात्र-छात्राएं कोचिंग में कम फीस देने,बाजार में पुस्तकें व अन्य वस्तुएँ खरीदते समय कम कीमत देने के लिए बहस करते हैं।ऐसी स्थिति में छात्र-छात्राएं अच्छे ग्राहक नहीं बन सकते हैं।हर कहीं हमें व्यवहार करना आना चाहिए तभी हम जीवन में ठीक प्रकार से सफल हो सकेंगे।
  • गणित में छात्र-छात्राएं कितने ही होशियार,निपुण व प्रखर हों,ज्ञान,बुद्धि और विवेक तथा व्यवसाय में कितने ही पारंगत हों परंतु सांसारिक व्यवहार और लेन-देन में यदि सफल न हों तो वास्तविक रूप में हमें असफल ही समझा जाएगा।व्यावहारिक ज्ञान और कुशलता प्राप्त करना भी उतना ही जरूरी है जितना शिक्षा व व्यवसाय का ज्ञान और कुशलता प्राप्त करना जरूरी है।
  • आधुनिक युग में ज्यों-ज्यों सोशल मीडिया का दायरा बढ़ता जा रहा है त्यों-त्यों हम वास्तविक रूप में अव्यावहारिक होते जा रहे हैं अर्थात् एकांगी,अपने आप तक ही सीमित होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया आज के युग में प्रयोग करना जीवन का अंग बनता जा रहा है परंतु इसका यह अर्थ यह नहीं है कि हम प्रैक्टिकल लाइफ में व्यावहारिक तौर-तरीकों,परिवार व समाज के नीति-नियमों का बिल्कुल पालन ही न करें।बहुत सी बातें हम सोशल मीडिया से नहीं सीख सकते हैं बल्कि बड़े-बुजुर्गो की छांव में भी बहुत कुछ सीख सकते हैं यदि हम उनके संपर्क में रहें।परंतु आज के युग की युवा पीढ़ी का हाल ये हो गया है कि बड़े-बुजुर्गों को आउट-डेटेड समझते हैं।इस धारणा को बदलना होगा।

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4.व्यवहार से ही शत्रु-मित्र होते हैं (There are Enemies and Friends Only by Behavior):

  • रामनगर में दो अभिन्न मित्र विनीत और विनय रहते थे।दोनों छात्रों ने गणित विषय ऐच्छिक विषय के रूप में ले रखा था।दोनों रामनगर में किराए का कमरा लेकर प्रेमपूर्वक रहते थे।आपसी मेलजोल से भोजन बनाकर खाते थे।कोई भी वस्तु मिल-बांटकर खाते थे।एक दिन उनकी काॅलेज का दुर्योधन नाम का छात्र विनीत की अनुपस्थिति में विनय के पास आया।दुर्योधन का जैसा नाम था वैसे ही उसमें अवगुण थे।वह विनीत के गणित के नोट्स चुराने आया था।विनीत पढ़ने में कक्षा में सबसे अव्वल और प्रवीण था।वह गणित के सवालों,समस्याओं और कठिनाइयों को चुटकियों में हल कर देता था। विनय ने दुर्योधन से पूछा कि तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए हो? दुर्योधन विनय के शरीर को देखकर डर गया।उसने सोचा कि कहीं यह मुझसे मारपीट व लड़ाई-झगड़ा तो नहीं कर लेगा।परंतु फिर उसने सोचा कि एक बार यहां रहने के लिए प्रयास करने में क्या दिक्कत है? अब यदि मैं खाली हाथ लौटूंगा तो भी ठीक नहीं है।साथ ही यह पकड़ लेगा इसलिए भाग भी नहीं सकता हूं।अतः दुर्योधन ने सोचा कि जो होना है,वह होगा।अतः विनय के मन में विश्वास उत्पन्न करने का प्रयास करना चाहिए।यह सोचकर उसने विनय से दुआ-सलाम की।उसने कहा कि मैं दुर्योधन हूँ और कॉलेज में पढ़ता हूं।विनय ने कहा कि तुम जल्दी से यहाँ से रफू-चक्कर हो जाओ वरना तुम्हारी पिटाई कर दूंगा।दुर्योधन ने कहा कि पहले मेरी बात तो सुनिए फिर यदि मेरी पिटाई करनी हो तो पिटाई कर देना क्योंकि कहा गया है कि व्यक्ति की पहचान नाम से नहीं बल्कि उसके गुणों से होती है।विनय ने कहा कि बोलो यहां क्यों आए हो?
  • दुर्योधन ने कहा कि मैं भी रामनगर में किराए के मकान में रहता हूं।मेरे अंदर कोई दुर्गुण नहीं है।मैं बिल्कुल शाकाहारी और सद्गुणों को धारण करने में विश्वास रखता हूं।मुझे मालूम हुआ है कि तुम गणित में बहुत होशियार हो।आपकी प्रशंसा बहुत से छात्र-छात्राओं से सुनी है।अतः आप जैसे ज्ञानी और गणित में निपुण छात्र से मेरा भी भला हो जाएगा। वेदव्यासजी ने दो वचन कहें हैं कि “परोपकाराय पापाय पर पीडनम्” अर्थात् परोपकार करना और दूसरों के दुख दर्द को दूर करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा ध्येय है।इस प्रकार दुर्योधन ने मीठे-मीठे और मधुर वचनों से विनय के मन में जगह बना ली और विश्वास उत्पन्न कर लिया।विनय ने कहा कि तुम्हारे नाम से तो ऐसा जान पड़ता है जैसे तुम्हारे ह्रदय में हलाहल विष भरा हुआ हो।तब दुर्योधन ने प्रणाम करते हुए कहा कि मेरे अंदर ऐसे कोई दुर्गुण नहीं है।जिसमें ऐसे दुर्गुण हों वह विद्यार्थी के वेश में चोर,डकैत,लुटेरा है।इस प्रकार विनय के मन में विश्वास उत्पन्न करके वह रोजाना विनीत की अनुपस्थिति में विनय के पास आने लगा।धीरे-धीरे उसके कमरे की पूरी टोह ले ली।
  • एक दिन विनय शौच के लिए चला गया।पीछे से दुर्योधन ने विनीत की आलमारी खोलकर गणित व अन्य विषयों के सारे नोट्स चुरा लिए तथा विनीत की पुस्तकों को फाड़कर विनय की अलमारी में रखकर फरार हो गया।जब विनीत कमरे पर आया और अध्ययन करने के लिए अलमारी खोली तो उसने देखा कि सभी विषयों के नोट्स व पुस्तके गायब थी।उसने विनय की अलमारी जांच की तो उसने अपनी फटी हुई पुस्तके देखी।उसने सोचा कि मैंने विनय पर इतना विश्वास किया था और उसने विश्वासघात किया है।पहले तो विनय की पिटाई की और पुलिस में चोरी का मुकदमा दर्ज करा दिया और उसका साथ छोड़ दिया।पुलिस ने विनय को गिरफ्तार कर लिया।नीति में कहा है कि “न कश्चित्कस्यचिन्मित्रं न कश्चित्कस्य चिद्रिपुः। व्यवहारेण मित्राणि जायन्ते रिपवस्तथा।।” अर्थात् कोई किसी का मित्र नहीं है और न कोई किसी का शत्रु है।व्यवहार से ही मित्र और शत्रु बन जाते हैं।
    उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के विद्यार्थी व्यवहार कुशल बनें (Math Student Become Behavior Efficient),गणित के विद्यार्थी के लिए व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने की 3 टिप्स (3 Tips for Gaining Practical knowledge for a Mathematics Student) के बारे में बताया गया है।

5.पिछली कक्षा की गणित का अध्ययन (हास्य-व्यंग्य) (Study Previous-Grade Mathematics) (Humour-Satire):

  • मिंकू (पिताजी से):पिताजी,गुरुजी की आज्ञा का पालन हमेशा करना चाहिए ना।
  • पिता:हां बेटा,जरूर करना चाहिए।
  • मिंकुःतो फिर गुरु जी ने कहा है कि तुम्हें पिछली कक्षा के गणित की पुस्तकों के सवालों को हल करना चाहिए।

6.गणित के विद्यार्थी व्यवहार कुशल बनें (Math Student Become Behavior Efficient),गणित के विद्यार्थी के लिए व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने की 3 टिप्स (3 Tips for Gaining Practical knowledge for a Mathematics Student) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.उदारचित्त वालों की क्या धारणा होती है? (What is the Perception of Liberals?):

उत्तर:नीति में कहा है किः
“अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।”
अर्थात् यह अपना है,यह पराया है ऐसी अल्प बुद्धि वालों की सोच होती है।उदारचित्त वालों के लिए तो सारी पृथ्वी ही कुटुंब है।

प्रश्नः2.अल्प बुद्धि वालों का कब सम्मान होता है? (When are Those with Low Intellect Respected?):

उत्तरःनीति में कहा है किः
” यत्र विद्वज्जनों नास्ति श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि।
निरस्त पादपे देशे एरण्डपोपि द्रुमायते।।”
अर्थात् जहां विद्वान नहीं होते हैं वहां अल्पबुद्धि की बड़ाई होती है।जैसे जिस प्रदेश में वृक्ष नहीं होते वहां अरण्ड भी वृक्ष कहलाता है।

प्रश्नः3. मरने पर क्या साथ जाता है? (What Goes with Death?):

उत्तरःएक एवं सुहृदर्मो निधनेप्यनुयातियः।
शरीरे न समं नाशं सर्वमन्यतु गच्छति।।
एक धर्म ही मित्र होता है जो मरने पर भी साथ जाता है अन्य सबकुछ तो शरीर के साथ ही नष्ट हो जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के विद्यार्थी व्यवहार कुशल बनें (Math Student Become Behavior Efficient),गणित के विद्यार्थी के लिए व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने की 3 टिप्स (3 Tips for Gaining Practical knowledge for a Mathematics Student) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

गणित के विद्यार्थी व्यवहार कुशल बनें (Math Student Become Behavior Efficient)
इसके लिए कुछ बातों पर अमल करना होगा।जिस प्रकार गणित के अध्ययन से
छात्र-छात्राओं में चिंतन-मनन करने,समझने,तर्क करने,निर्णय लेने,
नियमितता,क्रमबद्धता इत्यादि गुणों का विकास होता है।

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