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How to Improve Tendency to See Faults?

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1.दोष देखने की प्रवृत्ति में सुधार कैसे करें? (How to Improve Tendency to See Faults?),दोष-दर्शन के दुष्प्रभाव क्या-क्या हैं? (What are Side Effects of Fault Finding?):

  • दोष देखने की प्रवृत्ति में सुधार कैसे करें? (How to Improve Tendency to See Faults?) क्योंकि जिन व्यक्तियों में त्रुटियां दृष्टिगोचर होती है,धीरे-धीरे उनके खिलाफ आप एक अंधविश्वास मन में रख लेते हैं।फिर आपको उनमें दोष ही दोष नजर आने लगते हैं।इन दोषों का कारण केवल उस व्यक्ति में ही नहीं स्वयं आपमें भी है।खुद आपके दोष उस व्यक्ति में प्रतिबिंबित होते हैं।
  • परदोष-दर्शन एक मानसिक रोग है।जिसके मन में यह रोग उत्पन्न हो गया है,वह दूसरों में अविश्वास,भद्दापन,मानसिक नैतिक कमजोरी देखा करता है।अच्छे व्यक्तियों में भी उसे त्रुटि और दोष का प्रतिबिंब मिलता है।अपनी असफलताओं के लिए भी वह दूसरों को दोषी ठहराता है।
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2.दोष देखने की प्रवृत्ति को पहचाने (Recognize the Tendency to See Faults):

  • क्या कभी आपने यह सोचा कि आप पग-पग पर खिन्न,असंतुष्ट,उद्विग्न अथवा उत्तेजित क्यों रहते हैं? क्यों आपको समाज,संसार,मनुष्यों,मित्रों,वस्तुओं,परिस्थितियों यहां तक कि अपने से शिकायत रहती है? आप सब कुछ करते,बरतते और भोगते हुए भी वह मजा,आनंद और प्रसन्नता नहीं पाते जो मिलनी चाहिए,जो संसार के अन्य असंख्य लोग पा रहे हैं।आप विचारक,आलोचक,शिक्षित और सभ्य भी है,किंतु आपकी यह विशेषता भी आपको प्रसन्न नहीं कर पाती।भाई-बहन,माता-पिता,घर सब कुछ आपको उपलब्ध है,फिर भी आप अपने अंदर एक अभाव और एक असंतोष अनुभव ही करते रहते हैं।घर,बाहर,मेले-ठेले,सफर,यात्रा,सभा-समितियों,भाषणों,वक्तव्यों किसी में भी कुछ मजा नहीं आता।हर समय एक नाराजगी,नापसंदगी एवं नकारात्मक ध्वनि परेशान ही रखती है।संसार की किसी भी बात,वस्तु और व्यक्ति से आपका तादात्म्य ही स्थापित नहीं हो पाता है।
  • साथ ही आप पूर्ण स्वस्थ हैं।मस्तिष्क का कोई विकार आपमें नहीं है।आपका अंतःकरण भी सामान्य दशा में है और आसपास में ऐसी कोई घटना भी नहीं घटी,जिससे आपकी रुचि एवं प्रसादत्व विक्षत हो गया हो।ऐसा भी नहीं हुआ है की विगत दिनों ही किसी ऐसे अप्रिय संयोग से सामंजस्य स्थापित करना पड़ा है,जिसकी अनुभूति आज भी आपको विक्षुब्ध बनाए हुए है।
  • वास्तव में बात बड़ी विचित्र और अजूबी-सी मालूम होती है।जब प्रत्यक्ष में इस स्थायी अप्रियता का कोई कारण नहीं दीख पड़ता,फिर ऐसा कौन-सा चोर,कौन-सा ठग आपके पीछे अप्रत्यक्ष रूप से लगा हुआ है,जो हर बात के आनंद से आपको वंचित किए हुए,आपके जन्मसिद्ध अधिकार प्रसन्नता का अपहरण कर लिया करता है।इसको खोजिए,गिरफ्तार करिए और अपने पास से मार भगाइए।जीवन में सदा दुःखी और खिन्नावस्था में रहने का पाप न केवल वर्तमान को ही,बल्कि आगामी शत-शत जीवनों तक को प्रभावित कर डालता है।
  • देखिए और जरा ध्यान से देखिए कि आपके अंदर दोष दर्शन करने की दुर्बलता तो नहीं घर कर बैठी है,क्योंकि “दोष दर्शन” का दृष्टिकोण भी जीवन को कुछ-कुछ ऐसा ही बना देता है।दोष-दर्शन और संतोष,दोष-दर्शन और प्रसन्नता,दोष-दर्शन और सामंजस्य का नैसर्गिक विरोध है।
  • दोष-दर्शन से दूषित व्यक्ति जब किसी व्यक्ति के संपर्क में आता है तब अपने मनोभाव के अनुसार उसके अंदर बुराइयां ढूंढने लगता है और हठात कोई न कोई बुराई निकाल ही लेता है।फिर चाहे वह व्यक्ति कितना ही अच्छा क्यों न हो।उदाहरण के लिए किसी विद्वान गणितज्ञ को ले लीजिए।प्राचार्य व शिक्षक उसे बुलाते,आदर करते और उसके व्याख्यान से लाभ उठाते हैं।विद्वान गणितज्ञ का व्याख्यान सुनकर सारे लोग पुलकित,प्रसन्न व लाभान्वित होते हैं।
  • उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते और अपने उतने समय को बड़ा सार्थक मानते हैं।अनेक दिनों,सप्ताहों और मासों तक उसे सुखद घटना का स्मरण करते और ऐसे संयोग की पुनरावृत्ति चाहने लगते हैं।अधिकांश विद्यार्थी उस व्याख्यान का लाभ उठाकर अपना ज्ञान बढ़ाते,साथ ही कोई गुण ग्रहण करते और किसी दुर्गुण से मुक्ति पाते हैं।वह उनके लिए ऐसा सुखद संयोग होता है,जो गहराई तक अपनी छाप छोड़ जाता है,ऐसे व्यक्ति गुणग्राही कहे जाते हैं।
  • अब दोष-द्रष्टा को ले लीजिए।उसकी स्थिति बिलकुल विपरीत होती है।जहां अन्य विद्यार्थी उक्त विद्वान गणितज्ञ में गुण ही देख सके,वहाँ उसे केवल दोष ही दिखाई दिए।उसका हृदय महान गणितज्ञ के प्रशंसकों के बीच,उनकी खामियों को देखने के लिए बेचैन हो जाता है।जब अवकाश अथवा अवसर नहीं मिलता तो प्रशंसा में सम्मिलित होकर उनके बीच बोलने का अवसर निकाल कर कहना प्रारंभ कर देता है:”हाँ महान गणितज्ञ जी का व्याख्यान तो अच्छा था,लेकिन उतना प्रभावोत्पादक नहीं था,जितना कि विद्यार्थी प्रभावित हुए और प्रशंसा कर रहे हैं।कोई मौलिकता तो थी नहीं।यही सब बातें अमुक नेता ने भी अपनी प्रचार-स्पीच में शामिल करके देशकाल के अनुसार उसमें धार्मिकता का पुट दे दिया था अजी साहब क्या गणितज्ञ,क्या नेता,क्या महंत सबके सब अपने रास्ते छात्र-छात्राओं,लोगों पर नेतृत्व करने के सिवाय ओर कोई उद्देश्य नहीं रखते।यह सब पूजा,प्रतिष्ठा व पेट का धंधा है।
  • यदि लोग सच्चाई से विमुख होकर उससे सहमत न हुए,तब तो वह वाद-विवाद के लिए मैदान पकड़ लेता है और अंत में अपना दोषदर्शी चित्र दिखाकर,लोगों की हीन दृष्टि का आखेट बनकर,प्रसन्नता खोकर और विक्षुब्ध होकर लौट आता है।जहाँ गुणग्राहकों ने उस दिन महीनों काम आने वाली प्रसन्नता प्राप्त की,वहाँ दोष-द्रष्टा ने जो कुछ टूटी-फूटी प्रसन्नता,उस समय पास में थी,वह भी गँवा दी।

3.दोष दर्शन का दुष्प्रभाव (Side Effects of Defect Vision):

  • दोषदर्शी कितने ही सुंदर स्थान,वस्तु और व्यक्ति के संपर्क में क्यों न आए,अपने अवगुण के प्रभाव से उससे मिलने वाले आनंद से वंचित ही रहते हैं।निदान इस लंबे-चौड़े संसार में न तो उसे कहीं आनंद दीखता है और न किसी वस्तु में सामंजस्य का सुख प्राप्त होता है।उसे हर व्यक्ति,हर वस्तु और हर वातावरण अपनी रुचि के साथ असामंजस्य उत्पन्न करती ही दीखती है।जबकि गुण-ग्राहक हर व्यक्ति,वस्तु और वातावरण में सामंजस्य और सुंदरता ही खोज निकालता है।यही कारण है कि गुण-ग्राहक सदैव प्रसन्न और दोषान्वेषक सदा खिन्न बना रहता है।
  • वस्तुतः बात यह है कि संसार में प्रत्येक वस्तु गुण-दोषमय ही है।कोई वस्तु एवं व्यक्ति ऐसा नहीं हो सकता कि जिसमें या तो गुण ही गुण भरे हों अथवा दोष ही दोष।अपनी दृष्टि के अनुसार हर व्यक्ति उसमें गुण या दोष देखकर प्रसन्न अथवा खिन्न हुआ करता है।
  • बुद्धिमान व्यक्ति अपने लाभ और हित के लिए हर बात के अच्छे-बुरे दो पहलुओं में से केवल गुण पक्ष पर ही ध्यान देता है।बुराई ही देखते रहने से मन को अशांति के अतिरिक्त ओर कुछ हाथ न लगेगा,क्योंकि वह जानता है कि विपक्ष पर दृष्टि रखने और दोषान्वेषण करने से घृणा तथा द्वेष का ही प्रादुर्भाव होता है,जिसका परिणाम कलह-क्लेश अथवा अशांति-असंतोष के सिवाय ओर कुछ नहीं होता।इसमें वस्तु अथवा व्यक्ति की तो कुछ हानि होती नहीं,अपना हृदय कलुषित और कलंकित होकर रह जाता है।
  • अपने दृष्टि-दोष के कारण प्रायः अच्छी चीजें भी बुरी और गुण भी अवगुण होकर हानिकारक बन जाते हैं।जैसे स्वाति जल का ही उदाहरण ले लीजिए।स्वाति बूंद जब सीप के मुख में पड़ जाती है,तब मोती बनकर फलीभूत होती है और यदि वही बूंद सांप के मुख में पड़ जाती है तो विष का रूप धारण कर लेती है।वस्तु एक ही है,किंतु वह उपयोग और संपर्क के गुण-दोष के कारण सर्वथा विपरीत परिणाम में फलीभूत हुई।
  • किसी में गुण की कल्पना न कर सकने के कारण दोषदर्शी अविश्वासी भी होता है।वह किसी की सद्भावना एवं सहानुभूति में भी कान खड़े करने लगता है।प्रेम एवं प्रशंसा में भी स्वार्थपूर्ण चाटुकारिता का दोष देखता है।इसलिए संपर्क में आने और स्नेहपूर्ण बर्ताव करने वाले हर व्यक्ति से भयाकुल और शंकाकुल रहा करता है।उसे विश्वास ही नहीं होता कि संसार में कोई निःस्वार्थ और निर्दोष भाव से मिलकर हितकारी सिद्ध हो सकता है।विश्वास,आस्था,श्रद्धा,सराहना से रहित व्यक्ति का खिन्न,असंतुष्ट और व्यग्र रहना स्वाभाविक ही है,जैसा कि दोषदर्शी रहता भी है।

4.दोष दर्शन की पड़ोसन है नकारात्मकता (Negativity is the Neighbor of the Defect Vision):

  • दोष-दर्शन का बढ़ना हानिकारक है।दुनिया में नकारात्मक लोगों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है।नकारात्मक लोगों की बहुत भारी तादाद के लिए दोष-दर्शन काफी हद तक जिम्मेदार है।दोष-दर्शन में एक प्रतिशत,नकारात्मकता को दो प्रतिशत बढ़ा देता है।
  • इस संदर्भ से यह सवाल उठ सकता है कि दोष-दर्शन से नकारात्मकता कैसे बढ़ती है,इस सवाल के जवाब में यही कहा जा सकता है कि सज्जन लोगों में नकारात्मकता मौजूद रहती है तथा बढ़ती है तो उससे कई गुणा सकारात्मकता में बढ़ोतरी हो जाती है।लेकिन साधारण लोगों एवं युवाओं के साथ ऐसा नहीं होता।मान लीजिए सज्जन व्यक्ति अपने क्षेत्र में काम कर रहा है और उसमें 80% गुणग्राहकता है।अब उसमें दोष-दर्शन 1% बढ़ जाता है तो उसकी गुणग्राहकता बढ़कर 85% हो जाती है मगर साधारण व्यक्ति तथा युवाओं के साथ ऐसा नहीं होता है,इससे होता यह है कि दोष-दर्शन तो बढ़ जाता है लेकिन ऐसे लोगों का ध्यान गुणग्राहकता बढ़ाने की ओर नहीं होता है।
  • भारत तथा विश्व में बहुत थोड़े लोग ऐसे हैं जो सज्जन है।इसका मतलब यह है कि बहुत अधिक संख्या में दोष-दर्शन करने वाले लोग हैं जिनकी कोई निश्चित विचारधारा नहीं होती है।What are Side Effects of Fault Finding? लोगों की विचारधारा अपने आसपास जमघट लोगों की विचारधारा से मेल खाती है।
  • अब मान लीजिए किसी व्यक्ति में दोष-दर्शन करने की मात्रा में वृद्धि हुई तो वह अपने आसपास के लोगों को भी प्रभावित,प्रेरित और दूषित विचारधारा वाला कर देता है फलस्वरूप दोष-दर्शन करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ परंतु सज्जनों के सत्संग से इजाफा बहुत कम होता है क्योंकि गुणों को ग्रहण करना तथा सद्मार्ग पर चलना एक कठिन कार्य है।
  • दोष-दर्शन का नकारात्मकता से सीधा संबंध होता है।दोष-दर्शन से खुशहाली तथा सकारात्मकता में कमी आती है।
    दोष-दर्शन के चलते सज्जनों के व्याख्यानों को सुनने वालों,टीवी पर अच्छे कार्यक्रम देखने वालों,सत्साहित्य पढ़ने वालों,प्रवचन सुनने वालों,स्वाध्याय सत्संग मंडल में शामिल होने वालों आदि में कटौती होती है।इससे इन क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के काम में कमी आती है।देश में काफी लोगों को इसे सकारात्मकता का जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।दोष-दर्शन के कारण इनके दर्शकों,ग्राहकों,सुनने वालों,पढ़ने वालों आदि में कमी आती है।
  • दोष-दर्शन करने से बच्चे अध्यापकों से रुचि पूर्वक नहीं पढ़ते हैं,कालांश में बंक मारते हैं,स्कूल में जाने से कतराते हैं,प्रवचन व व्याख्यान सुनने से कतराते हैं जिससे उनमें नकारात्मकता बढ़ती है।
  • दोष-दर्शन करने से गली-मोहल्ले,गांव,शहरों में घूम-घूम कर गुण-ग्राहकता बढ़ाने वालों की संख्या में कमी होती है फलतः बच्चों और लोगों में बेठे-ठाले नकारात्मक सोच विकसित होती है।स्पष्ट है कि दोष-दर्शन व नकारात्मकता का चोली दामन का साथ है।ज्योंही दोष-दर्शन करने वाले लोगों में वृद्धि होती है तो नकारात्मक लोगों की संख्या में भी बढ़ोतरी होती है।

5.दोष दर्शन को दूर करें (Remove the Fault Finding):

  • यदि आपके अंदर इस प्रकार की दुर्बलता दिखाई दे,तो तुरंत ही उसे निकालकर उसके स्थान पर गुण-ग्राहकता का गुण विकसित कीजिए।इस दशा में आपको हर व्यक्ति,वस्तु और वातावरण में आनंद,प्रशंसा अथवा विनोद की कुछ न कुछ सामग्री मिल ही जाएगी।दूसरों के गुण-दोषों में से उस हंस की तरह केवल गुण ही ग्रहण कर सकेंगे,जो की पानी मिले हुए दूध में से केवल दूध-दूध ही ग्रहण कर लेता है और पानी छोड़ देता है।
  • दूसरों की अच्छाइयों को खोजने,उनको देख-देख कर प्रसन्न होने और उनकी सराहना करने का स्वभाव यदि अपने अंदर विकसित कर लिया,तो आज दोष-दर्शन के कारण जो संसार,जो वस्तु और जो व्यक्ति हमें कांटे की तरह चुभते हैं,वे फूल की तरह प्यारे लगने लगेंगे।जिस दिन यह दुनिया हमें प्यारी लगने लगेगी,इसमें दोष,दुर्गुण कम दिखाई देंगे,उस दिन हमारे हृदय से द्वेष एवं घृणा का भाव निकल जाएगा और हमें हर दशा और हर वातावरण में प्रसन्नता का अनुभव होने लगेगा।दुःख-क्लेश और क्षोभ-रोष का कोई कारण ही शेष न रह जाएगा।
  • हमारे सुख का कारण हमारी सद्भावनाएँ ही हो सकती हैं।अच्छा विचार,दूसरे के प्रति उदार भावना,सद्चिंतन,गुण-दर्शन में दिव्य मानसिक बीज हैं,जिन्हें संसार में बोकर हम आनंद और सफलता की मधुरता लूट सकते हैं।शुभ भावना का प्रतिबिंब शुभ ही हो सकता है।गुण-दर्शन एक ऐसा सद्गुण है जो हृदय में शांति और मन में पवित्र प्रकाश उत्पन्न करता है।दूसरे के सद्गुण देखकर हमारे गुणों का स्वतः विकास होने लगता है।हमें सद्गुणों की ऐसी सुसंगति प्राप्त हो जाती है,जिसमें हमारा देवत्व विकसित होता रहता है।
  • सद्भाव पवित्रता के लिए आवश्यक है।इनसे हमारी कार्य शक्तियां अपने उचित स्थान पर लगकर फलित-पुष्पित होती हैं।हमें अंदर से निरंतर एक ऐसी सामर्थ्य प्राप्त होती रहती है,जिससे निरंतर हमारी उन्नति होती चलती है।
  • “शुभ विचार,शुभ भावना और शुभ कार्य मनुष्य को सुंदर बना देते हैं।यदि सुंदर होना चाहते हो मन से ईर्ष्या,द्वेष और बैर-भाव निकालकर केवल यौवन और सौंदर्य की भावना करो।कुरूपता की ओर ध्यान मत दो सुंदर मूर्ति,पवित्र मूर्ति की कल्पना करो।प्रातः काल ऐसे स्थानों पर घूमने के लिए निकल जाओ,जहां का दृश्य मनोहर हो,सुंदर-सुंदर फूल खिल रहे हों,पक्षी बोल रहे हों,उड़ रहे हों,चहक रहे हों।सुंदर पहाड़ियों पर,हरे भरे जंगलों में और नदियों के सुंदर तटों पर घूमो,टहलो,दोड़ो और खेलो।वृद्धावस्था के भावों को मन से निकाल दो और बन जाओ हंसते हुए बालक के समान सद्भावपूर्ण।फिर देखो कैसा आनंद आता है।”
  • मनुष्य के उच्चतर जीवन को सुसज्जित करने वाला बहुमूल्य आभूषण सद्भावना ही है।सद्भावना रखने वाला व्यक्ति सबसे भाग्यवान है।वह संसार में अपने सद्भावों के कारण सुखी रहेगा,पवित्रता और सत्यता की रक्षा करेगा।उसके संपर्क में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति प्रसन्न,प्रेम,समृद्धि रहेगा और उसके आह्लाकारी स्वभाव से प्रेरणा प्राप्त करेगा।सद्भावना सर्वत्र सुख,प्रेम,समृद्धि उत्पत्ति करने वाले कल्पवृक्ष की तरह है।इससे दोनों को ही लाभ होता है।जो व्यक्ति स्वयं सद्भावना मन में रखता है,वह प्रसन्न और शांत रहता है।संपर्क में आने वाले व्यक्ति भी प्रसन्न एवं संतुष्ट रहते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में दोष देखने की प्रवृत्ति में सुधार कैसे करें? (How to Improve Tendency to See Faults?),दोष-दर्शन के दुष्प्रभाव क्या-क्या हैं? (What are Side Effects of Fault Finding?) के बारे में बताया गया है।

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6.शिक्षक को परेशान करने का तरीका (हास्य-व्यंग्य) (Way to Harass a Teacher) (Humour-Satire):

  • एक छात्र (दूसरे छात्र से):अब आप इतना कह रहे हो तो ठीक-ठीक बताओ कौन सा सवाल बताऊँ।
  • दूसरा छात्र:ऐसा सवाल बताओ जो तुम्हें नहीं आता है क्योंकि मेरा मकसद तो शिक्षक को परेशान करना है।

7.दोष देखने की प्रवृत्ति में सुधार कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Improve Tendency to See Faults?),दोष-दर्शन के दुष्प्रभाव क्या-क्या हैं? (What are Side Effects of Fault Finding?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.दोष-द्रष्टा में ओर कौन सी कमियां होती हैं? (What are the Other Drawbacks in the Defect Seeker?):

उत्तर:दोष-दर्शन की प्रक्रिया जोर पकड़ चुकी होती है तो उसकी सखी-सहेली झल्लाहट,खीझ,कुढ़न,कुंठा,अरुचि आदि सब साथ लग जाती हैं।ऐसी स्थिति में भोजन अच्छा नहीं लगता,मां,पत्नी,बहन-भाई निहायत बेअसर दिखलाई देने लगते हैं।पिता यदि दोष-द्रष्टा है तो और बच्चे यदि सोते मिल जाए तो नालायक है,शाम से ही सो जाते हैं और यदि जागते मिले तो लापरवाह और तंदुरुस्ती का ध्यान न रखने वाले बन गए।तात्पर्य यह है कि उस दिन जहां अन्य सब लोग अधिक से अधिक प्रसन्नता के अधिकारी बने,वहां दोषदर्शी के लिए हर बात खेदजनक और दुःखदायी बन गई।

प्रश्न:2.क्या दोष-दृष्टा स्वयं में भी दोष देखता है? (Does the Doer See Faults in Himself as Well?):

उत्तर:यह बात नहीं है कि दोष-द्रष्टा केवल दूसरों में ही बुराई और कमियां देखता हो,स्वयं अपने प्रति भी उसका वही अत्याचार रहा करता है।उदाहरण के लिए वह बाजार से अपने लिए कोई वस्तु खरीदने जाता है।पहले तो उसे कितनी चीज क्यों नहीं दिखाई जाएं,उसे पसंद ही नहीं आती,सब में कोई न कोई दोष दिखलाई देता है।वस्तु के निर्दोष होने पर भी वह अपनी ओर से किसी दोष का आरोपण कर ही देगा।अपनी इस प्रक्रिया से थक जाने के बाद जब चीज लेकर घर आता है,तब भी उसका पेट अप्रशंसा से भरा नहीं होता।चीज रख दी और कहना प्रारंभ कर दिया:”खरीदने को खरीद अवश्य लाया,लेकिन कुछ पसंद नहीं आई।यदि भाई-बहन,मां-बाप अथवा पत्नी आपकी इस बात को नहीं मानती और चुनाव की प्रशंसा करते हैं तो झूँठी प्रशंसा का आरोप पाते हैं।जब तक वह अपनी पसंद,बाजारदारी,चीज की पहचान के विषय में आलोचना नहीं कर लेता,बुराई नहीं निकाल लेता,अपनी अक्ल और अनुभव को कोस नहीं लेता,चैन नहीं पड़ता।वह इस प्रसन्नता के छोटे अवसर को भी खिन्नता से कड़ुवा बना ही लेता है।

प्रश्न:3.कोई व्यक्ति शुभ अवसर पर उपहार दे तो दोष-द्रष्टा की क्या प्रतिक्रिया रहती है? (What is the Reaction of the Fault-seer when Anybody Gives a Gift on an Auspicious Occasion?):

उत्तर:किसी मित्र,संबंधी अथवा आत्मीयजन ने जन्मदिन अथवा किसी अन्य शुभ अवसर पर अपनी योग्यता एवं समाज के अनुसार कोई अवसर उपहार दिया अथवा भेजा।कोई व्यक्ति इस सम्मान और स्नेह से पुलकित हो उठता और आभार भरा धन्यवाद देते न अघाता,किंतु दोषदर्शी तो अपने रोग से मजबूर ही रहता है।यद्यपि वह आभार एवं धन्यवाद न प्रकट करने की असभ्यता नहीं करता तथापि ओर कुछ नहीं उसमें इतना ही शामिल कर देता कि आपने बेकार यह चीज भेजी।यह तो मेरे पास पहले से ही थी और मुझे ऐसा रंग,यह डिजाइन पसंद नहीं है।यह रंग और प्रकार उपहार के रूप में बहुत आम और सस्ते हो गए हैं।इससे अच्छा यह होता कि आप सद्भावना और बधाई के दो शब्द दे देते।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा दोष देखने की प्रवृत्ति में सुधार कैसे करें? (How to Improve Tendency to See Faults?),दोष-दर्शन के दुष्प्रभाव क्या-क्या हैं? (What are Side Effects of Fault Finding?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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