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3 Tips to be Sensitive for Students

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1.छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Mathematics Students):

  • छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Students) क्यों बताई जा रही है? अर्थात् अध्ययन करने,गणित के सवालों को हल करने में संवेदना कहां काम आने वाली है? कोई भी छात्र-छात्रा दूसरे छात्र-छात्रा का विकास,उन्नति के लिये सहयोग किए बिना आगे नहीं बढ़ सकता है।जैसे आप गणित में किसी विषय पर पीएचडी कर रहे हैं।संबंधित विषय पर खोज करना,तथ्य जुटाना,परीक्षण करना,सही गलत की पहचान करना बिना दूसरे के सहयोग के आप इन सब कार्यों को नहीं कर सकते हैं।यदि वरिष्ठ प्राध्यापक,प्रोफेसर जिसके अधीन आप पीएचडी कर रहे हैं वह आपकी पीड़ा नहीं समझेगा,आपके प्रति संवेदनशील नहीं होगा तो इन तमाम तथ्यों की जानकारी सही-सही तथा समय पर उपलब्ध नहीं कराएगा।
  • संवेदना शक्ति ही मनुष्य तथा छात्र-छात्राओं का ऐसा गुण है जो आपकी समस्याओं,आपके कष्टों,आपकी तकलीफों,आपकी पीड़ाओं तथा आपके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहयोगी है।
  • यदि गणित शिक्षक तथा अन्य शिक्षकों अथवा गुरु में संवेदना होती है तो वे छात्र-छात्राओं के दुःख-दर्द,कष्टों,कठिनाइयों और विपत्तियों को अपना दुःख-दर्द,कष्ट,कठिनाईयाँ तथा बाधाएँ न केवल समझता है बल्कि उनको दूर करने का प्रयास करता है।
  • संवेदना,सहयोग,सहानुभूति गुणों की ऐसी त्रिवेणी है जिससे हर छात्र-छात्रा दूसरे छात्र-छात्राओं की मदद करने के लिए तैयार होता है।
  • जैसे आप किसी भी विषय अथवा गणित में विकास करना चाहते हैं,वैसे ही दूसरे छात्र-छात्राएं भी सभी विषयों में विकास करना चाहते हैं,परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करना चाहते हैं।एक दूसरे की सहायता-सहयोग तभी संभव है जब आपमें संवेदना होगी,आप दूसरों के दर्द,तकलीफों को स्वयं के दुःख-दर्द व तकलीफ समझेंगे।
  • यहाँ यह कहना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि संवेदना का केवल छात्र जीवन में होना ही आवश्यक नहीं है बल्कि जीवन में प्रत्येक समय,कहीं भी,कभी भी,जॉब में,परिवार में,समाज में अथवा किसी अनजान स्थान पर जाने पर भी संवेदना की आवश्यकता होती है।संवेदना शक्ति को आपको आपके जीवन का स्वभाव बनाना होगा।
  • हमारा वास्तविक परीक्षण केवल बोर्ड या विश्वविद्यालय अथवा अन्य व्यावसायिक कोर्स की परीक्षा में ही नहीं होता है बल्कि कहीं भी कभी भी किसी भी कार्य,व्यवहार करते समय हो सकता है।
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2.संवेदना वास्तविक प्रगति का आधार है (Sensitivity is the Basis of Real Progress):

  • परिवार,समाज अथवा जिस शिक्षा संस्थान में हम रहते हैं उसमें यदि हम अथवा अन्य लोग पिछड़े हुए हैं तो उसका एक कारण संवेदना का अभाव भी है।आप कितनी ही डिग्रियां,उपाधियां,सुख सुविधाएं अथवा भौतिक उपलब्धियां जुटा लें परंतु ये सब तब तक उपयोगी व महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकती हैं जब तक आपमें सृजनात्मक क्षमता का विकास न हुआ हो।
  • गणित तथा विज्ञान की कई खोजें ऐसी हुई हैं जिनका उपयोग विनाश के लिए भी किया जा सकता है और सृजन की दिशा में उपयोग करके मानव मात्र का कल्याण भी किया जा सकता है।जैसे परमाणु ऊर्जा का उपयोग करके बिजली का उत्पादन किया जा सकता है और उसी परमाणु ऊर्जा से हिरोशिमा-नागासाकी जैसे शहरों को तबाह करके मनुष्य जाति को नष्ट किया जा सकता है।परमाणु ऊर्जा वही है परंतु रचनात्मक कार्य में आने से वह उपयोगी बन पड़ती है तथा ध्वंस में प्रयोग होने पर विनाश का दृश्य उपस्थित कर देती है।
  • छात्र-छात्राओं तथा लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि बुद्धि का प्रयोग दोनों में ही होता है।परंतु रचनात्मक कार्यों में उपयोग लेने में हमारी संवेदना का पुट जुड़ा हुआ होता है परंतु संवेदना न होने पर वही बुद्धि स्वार्थी,संकीर्ण,खुदगर्ज तथा विनाश का दृश्य उपस्थित कर देती है।
  • अच्छे उद्देश्यों,आदर्शों तथा मानवीय गुणों को विकसित करने में ही साधन-सुविधाओं का आधार प्रगति,विकास समझा जा सकता है।परंतु बुरे उद्देश्यों,अनुचित आदर्शों,अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति,स्वार्थपरता के लिए करने पर साधन-सुविधाएं और उपलब्धियां बड़े से बड़े संकट खड़ा कर देती है।
  • यदि किसी छात्र छात्रा का सहपाठी किसी विषय में पिछड़ रहा है,कोई सवाल समझ में नहीं आ रहा है इसलिए निराश,बेचैन व हताश है तो क्या आप उसकी सहायता-सहयोग नहीं करेंगे,क्या आप अपने साथ लेकर चलने का प्रयास नहीं करेंगे?
  • ऐसी शिक्षा व विद्या किस काम की है जिसमें छात्र-छात्राएं केवल स्वयं की प्रगति तथा विकास करना चाहते हैं परंतु दूसरों की अवनति,पतन और विनाश देखना चाहते हैं।बुद्धि का सही उपयोग संवेदना शक्ति के द्वारा ही हो सकता है।बुद्धि के साथ जब संवेदना जुड़ती है तो छात्र-छात्राओं में सृजनात्मक प्रवृत्तियां,सृजनात्मक चिंतन का विकास होता है जो सबके लिए उपयोगी होता है और छात्र-छात्राएं अपनी क्षमताओं,योग्यताओं का प्रयोग भी श्रेष्ठ कार्यों के लिए करते हैं।
  • छात्र-छात्राएं बुद्धि के बल पर कितना ही विकास कर लें,कितना ही बड़ा पद प्राप्त कर लें,कितनी ही साधन सुविधाएं जुटा लें परंतु संवेदना के अभाव में उसका पतन होना सुनिश्चित है।यह विडंबना ही है कि आज छात्र-छात्राएं अपने गुणों को विकसित करने के बजाय बौद्धिक बल बढ़ाने में ही लगे रहते हैं।इस प्रकार केवल बुद्धि के विकास से वे परिवार,समाज व देश तथा देश की संस्कृति से कटते चले जाते हैं।उनके अंदर स्वार्थ,ईर्ष्या,द्वेष,तृष्णा,असहिष्णुता जैसे दुर्गुण बढ़ते जाते हैं।उनमें अधिक से अधिक सुख-सुविधाओं को संग्रह करने,प्राप्त करने तथा भोगने की लालसा बढ़ती जाती है।यदि वे अकूत धन-संपत्ति,सुख-सुविधाओं,भौतिक साधनों को भी जुटा लेंगे तो उनकी तृष्णा शान्त नहीं होगी।उनमें विलासिता (Luxury) की भावना बढ़ेगी और विलासी जीवन जीने का कोई अंत नहीं है।
  • आज के अधिकांश छात्र-छात्राएं संवेदना शून्य हैं जो धन कमाने की लालसा में गणितज्ञ और वैज्ञानिक बन जाते हैं।फिर देश के आकाओं,कर्त्ता-धर्त्ता,शासकों की आज्ञा पालन में विनाशकारी बम्बों का निर्माण करते हैं।विनाशकारी बम्बों,अस्त्र-शस्त्रों तथा आयुधों के निर्माण में राष्ट्र की सुरक्षा कम बल्कि दूसरे राष्ट्रों को हड़पने,आक्रमण करने,डराने-धमकाने,मानव जाति के विनाश में अधिक उपयोग किए जाते हैं।
  • बुद्धि का यह निकृष्टतम उपयोग है परन्तु यही बुद्धि संवेदना के साथ प्रयुक्त की जाती है तो बुद्धि का सर्वश्रेष्ठ उपयोग बन पड़ता है।बुद्धि की इस उच्चतम स्थिति को ही प्रज्ञा कहते हैं।प्रज्ञा अनुभव से उपलब्ध होती है,ज्ञान बुद्धि का विषय है।बुद्धि के बल पर प्राप्त किया हुआ ज्ञान अनुभव में आए बिना उपयोगी नहीं होता है।

3.छात्र-छात्राएं संवेदना का विकास कैसे करें? (How Do Students Develop Sensitivity?):

  • संवेदना का विकास करने को एक दृष्टान्त से समझते हैं।काशी के महाराज अपने युवराज के विकास से संतुष्ट थे।वे ब्राह्ममुहूर्त में उठ जाते,व्यायाम,घुड़सवारी में प्रवृत्त रहते।समय पर अध्ययन और राजकार्य में भी दिलचस्पी लेने जैसे सभी कार्यों को बड़ी कुशलता से निपटाते।एक-एक क्षण का उपयोग करते,किसी भी प्रकार की गलत संगत,दुर्व्यसनों में लिप्त नहीं थे।परंतु राजपुरोहित महाराज से बार-बार आग्रह करते कि उन्हें किसी गुरु के सानिध्य में,गुरुकुल में रखकर अध्ययन करवाया जाए।काशी के महाराज की सोच थी कि राजकार्य का अनुभव बढ़ाने से ही उनमें योग्यता को विकसित किया जा सकता है।
  • एक बार राजकुमार नगर भ्रमण के लिए घोड़े पर सवार होकर निकले।नागरिक उन्हें हर कहीं घेर लेते।एक बालक कौतूहल वश घोड़े की पूँछ सहलाने लगा।घोड़े ने लात मारी और बालक दूर जाकर गिर गया जिससे उसके पैर की हड्डी टूट गई।राजकुमार ने हँसकर कहा कि असावधानी बरतने वालों का यही हाल होता है और वे बेपरवाह होकर आगे बढ़ गए।
  • बात राजकुमार की सही थी परंतु लोगों को उनका यह व्यवहार खटक गया।काशी के महाराज को जब सारी घटना मालूम हुई तो वह दुःखी हुए।
  • राजपुरोहित ने कहा कि महाराज युवराज में संवेदनाओं का अभाव है।मात्र सावधानी,सतर्कता,सक्रियता के बल पर वे लोगों की श्रद्धा प्राप्त नहीं कर सकेंगे और न लोगों की सेवा,सहायता कर सकेंगे।हो सकता है कभी क्रूरकर्मी भी बन जाएं।इसलिए समय रहते हुए उनमें संवेदनाओं तथा अन्य गुणों का विकास करने के लिए गुरुकुल में भेजा जाए।राजा का समाधान हो गया और उन्होंने राजकुमार को गुरुकुल में गुणों का विकास करने के लिए भेज दिया।
  • आधुनिक युग में तो शिक्षा के केन्द्रों को गुरुकुल कहना हास्यास्पद है।आजकल के छात्र-छात्राएं शिक्षा संस्थानों में मौज-मस्ती,गप्पे हाँकना,मटरगश्ती करना,फिल्मी चरित्रों और नायकों की चर्चा करना,अय्याशी करना,मादक द्रव्यों,नशीली दवाओं का सेवन करना,गर्लफ्रेंड बनाना इत्यादि कार्य सीखते हैं।ये कार्य इसलिए सीखते हैं क्योंकि शिक्षा संस्थानों में चारित्रिक गुणों यथा ईमानदारी,सेवा,सहयोग,सहिष्णुता,परोपकार,संवेदनशील,धैर्य,विवेक इत्यादि गुणों को सिखाया ही नहीं जाता है इसलिए वे आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति,इंटरनेट,सोशल मीडिया,टीवी इत्यादि पर दुर्गुणों को सीखते हैं तथा सद्गुणों को बहुत कम या न के बराबर सीखते हैं।
  • माता-पिता को चाहिए कि घर में बहन-भाई बीमार हों तो घर के बच्चों को अस्पताल में ले जाएं और दिखाएं।बहन-भाइयों को किसी विषय या गणित में बहुत कठिनाई महसूस हो तो बड़े मदद करें।आपस में एक-दूसरे का सहयोग करना सीखें।पड़ोसी अथवा समाज में कोई किसी कारण से पीड़ित,कष्ट,कठिनाई में हो तो बालकों को उनकी सहायता-सहयोग करने के लिए प्रेरित करें।
  • बालक-बालिकाओं की हर इच्छा पूरी करने के बजाय उन्हें कुछ कष्ट व तकलीफें सहन करने दें।हर साधन-सुविधा की पूर्ति कर देने से उनके अंदर शुष्कता पैदा होती है।
  • कभी-कभी बच्चों को अस्पतालों,अनाथालयों,निर्धनों,कमजोर लोगों के बीच भी लेकर जाइए और उनकी सहायता-सहयोग करने के लिए प्रेरित करें।
  • मार्ग में कोई दुर्बल,कमजोर,वृद्ध हो तो उन्हें पहले जाने-आने के लिए एक ओर हट जाएं।यदि उन्हें कोई सहयोग-सहायता की आवश्यकता हो तो अवश्य करें।बस में सफर कर रहें हो तो बड़े-बुजुर्गों को सीट देकर स्वयं खड़े चलना सीखें।कोई भूखा-प्यासा हो तो मदद करें।
  • किसी का एक्सीडेंट हो गया हो,कोई बीमार मार्ग में पड़ा हो तो उसे अस्पताल पहुंचाने तथा दवाइयां दिलाने,डॉक्टर को दिखाने में मदद अवश्य करें।
  • कक्षा में कोई छात्र-छात्रा गणित में पिछड़ रहा हो तो यथासम्भव उसकी मदद करने की कोशिश करें।यदि आप बुद्धि,कौशल,विद्या,धन-वैभव,साधन-सुविधाओं इत्यादि में से किसी एक में अथवा अधिक में समर्थ हैं तो असमर्थों की सहायता-सहयोग करें।

4.संवेदनशील बनने का दृष्टान्त (Parable of Becoming Sensitive):

  • आधुनिक शिक्षा संस्थानों में गुणों का विकास करने,संवेदनाओं का विकास करने में न तो अध्यापक रुचि लेते हैं और न छात्र-छात्राएं दिलचस्पी लेते हैं।अतः अधिकांश छात्र-छात्राएं संवेदना शून्य होते हैं।
  • एक बार एक गणित के अध्यापक विद्यालय से घर जा रहे थे।अध्यापक अक्सर अपने घर पर पैदल ही जाया करते थे।एक बार वे पैदल ही सड़क के किनारे जा रहे थे।पीछे से एक कार ने टक्कर मारी और उनको घायल अवस्था में ही छोड़कर कार को दौड़ा ले गया।पीछे कुछ छात्र साइकिल से और कुछ छात्र मोटरसाइकिल से जा रहे थे।
  • सभी छात्र घर पहुंचने की जल्दी में थे इसलिए किसी ने गाड़ी रोककर उनके हाल-चाल नहीं पूछें।पीछे एक छात्रा आ रहा था उसने गौर से देखा कि यह तो गणित के अध्यापक हैं।वे मिट्टी में सने हुए तथा खून से लथपथ थे और पहचान में ही नहीं आ रहे थे।
  • उस विद्यार्थी ने तत्काल उनको उठाकर मोटरसाइकिल पर रखा।अकेला ही था परन्तु धीरे-धीरे बड़ी मुश्किल से अस्पताल ले गया।
  • अस्पताल में उनको दवाई दी गई तथा पाँच-छह घंटे बाद उनको होश आया।गणित अध्यापक जी ने कहा कि तुम्हारे से पहले भी कई छात्र मेरे पास से गुजरे थे परंतु उन्होंने कोई सुध नहीं ली।उपचार आदि व्यवस्थाएं होने और गणित अध्यापक के घरवाले आने के बाद में वह छात्र अपने घर चला गया।
  • दूसरे दिन सभी छात्र-छात्राएं बैठे थे तो उस छात्र ने पूछा कि तुमने गणित अध्यापक की सहायता क्यों नहीं की।उन छात्र-छात्राओं ने कहा कि वे गणित पढ़ाते समय कोई सवाल नहीं आता है तो हमें पीटते हैं।तब उस छात्र ने कहा कि वे तुम्हारे और मेरे गुरु हैं और गुरु शिष्यों की भलाई के लिए दण्ड देते हैं।तब छात्रों ने कहा कि वे हमें पढ़ाते हैं और सवाल बताते हैं तो फीस लेते हैं।हमारे ऊपर कौनसा एहसान करते हैं।तब उस छात्र ने कहा कि भले ही हम फीस देते हैं परंतु शिक्षा का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता है।गुरु के स्थान पर हमारे माता-पिता होते तो क्या हम उन्हें नहीं दिखाते या इलाज नहीं कराते क्या?
  • उसने आगे कहा कि अध्ययन,कठिन परिश्रम,आपस में विचार-विमर्श से केवल विचारों को पोषण मिलता है और उससे हमारी संवेदनाएं विकसित नहीं होती है बल्कि इनसे हमारी संवेदनाएं मर जाती हैं।हम दूसरों के दुःख-दर्द,पीड़ाओं,तकलीफों में सहायता-सहयोग करेंगे तभी हमारी संवेदनाएँ विकसित होंगी।सभी छात्र-छात्राओं ने छात्र की बात मानी और गणित अध्यापक से क्षमा याचना की तथा आगे से अपनी भाव-संवेदनाओं को विकसित करने का संकल्प लिया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित अध्यापक की बीमारी (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Teacher’s Illness) (Humour-Satire):

  • डॉक्टर (गणित अध्यापक से):मैं छात्र नहीं हूँ और न ही यह कक्षा है मैं डॉक्टर हूं।मुझे गणित का लेक्चर मत सुनाइए,अपनी बीमारी बताइए।
  • गणित अध्यापक:डॉक्टर साहब मुझे हर समय यह गणित का लेक्चर देने की बीमारी ही है।

6.छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 3 Tips to be Sensitive for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Mathematics Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.संवेदना से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Sensitivity?):

उत्तर:दूसरों के दर्द,कष्ट,तकलीफों,दुःख को समझना और उनके दुःख-दर्द इत्यादि को दूर करने में यथाशक्ति सहायता-सहयोग करना।दूसरों के दुःख,तकलीफों में वाणी और कर्म द्वारा सहानुभूति प्रकट करना और उन्हें सान्त्वना प्रदान करना संवेदना है।दूसरों की पीड़ा का निवारण करना ही सबसे बड़ा धर्म है।विकसित संवेदनाएँ ही मानवीय मूल्यों को पहचानने,दूसरों का दर्द समझने,जीवन लक्ष्य को उसके अनुसार ही ढालने,आंतरिक शक्तियों को बढ़ाने एवं बाहरी समस्याओं का सुनियोजन करने का कार्य करती है।

प्रश्न:2.क्या बुद्धि और संवेदना दोनों जरूरी है? (Are Both Intelligence and Sensibility Necessary?):

उत्तर:बौद्धिक चिन्तन जीवन को शुष्क व नीरस ही नहीं बल्कि विकृतियों से पूर्ण बना देता है।जबकि विकसित संवेदना (भावनात्मक प्रतिभा) जीवन के अनुभव,समझदारी एवं बहुमुखी व्यक्तित्त्व के समुच्चय की कुंजी है।यह बाह्य और आन्तरिक जीवन को जोड़ने का कार्य करती है जो कि आधुनिक युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।संवेदना और विचारशीलता का यह समन्वय व्यक्तित्त्व के बहुआयामी पक्ष को उजागर करता है।इससे सामाजिक दायित्त्वों,नैतिक मूल्यों के प्रति प्रतिभाओं में जागरूकता भी आती है।

प्रश्न:3.बुद्धि की सीमाएँ क्या हैं? (What are the Limitations of Intelligence?):

उत्तर:दुनिया मात्र बुद्धि द्वारा ही नहीं देखी की जा सकती है।इस बुद्धि से जीवन के हर पहलू को नहीं परखा जा सकता है।यह भाव-संवेदनाओं से ही संभव हो सकता है।आज के बौद्धिक उहापोह में जकड़ी मानवता को बुद्धि की आवश्यकता तो है ही परंतु यही सर्वमान्य मानदंड नहीं है।एकांकी विकास के कारण भले ही सफलता के एक पक्ष को प्राप्त कर लिया जाए परंतु इसका परिणाम किसी से छिपा नहीं है।आधुनिक युग में धन-वैभव होने के बावजूद शांति,संवेदना,सहानुभूति कहां है? समाज के बहुमुखी विकास में नीतिगत व्यवस्था कहां तक सफल हो सकी है? नित्य नए यंत्रों,तकनीकी आविष्कारों के बाद भी इतनी अराजकता,आतंक व कटुता का वातावरण किसने पैदा किया,इस प्रश्न के पीछे दृष्टि डालने पर बुद्धि का निरंकुश उपयोग दिखाई पड़ता है।इसीलिए दार्शनिक से लेकर समाजशास्त्री तक एवं अधिकारी से लेकर न्यूरोसांटिस्ट (तन्त्रिका वैज्ञानिक) तक,सभी विचारों के साथ-साथ भावपक्ष के समन्वय की बात करते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संवेदनशील बनने की 3 टिप्स (3 Tips to be Sensitive for Mathematics Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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