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How to Put Virtues into Practice?

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1.सद्गुणों को आचरण में क्रियान्वित कैसे करें? (How to Put Virtues into Practice?),अच्छे गुणों को व्यवहार में लाएं (Put Good Qualities into Practice):

  • सद्गुणों को आचरण में क्रियान्वित कैसे करें? (How to Put Virtues into Practice?) सद्गुण ही नहीं बल्कि कोई भी जानकारी का अभ्यास नहीं करते हैं तब तक हमारा उद्धार नहीं हो सकता है।हमारा विकास,उन्नति,प्रगति ज्ञान,जानकारी,सद्गुणों को आचरण में उतारने,अभ्यास करने पर निर्भर है।
  • पुस्तकीय ज्ञान को केवल पढ़ लेने,स्मरण कर लेने अथवा समझ लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि गुणों को आचरण में उतरना,ज्ञान व जानकारी का अभ्यास सबसे अधिक जरूरी है।हम और दूसरे व्यक्ति भी आचरण करने वाले व्यक्ति से ही अधिक प्रभावित होते हैं और सीखते हैं।
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2.सद्गुणों को क्रियान्वित रूप से धारण करें (Possess virtues functionally):

  • प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा होती है कि उसका जीवन सुखी व उन्नत हो।इसके लिए प्रायः सभी अपने स्तर से प्रयास करते हैं,किंतु सभी को मनोवांछित सफलता नहीं मिल पाती।अपने जीवन को उत्तम सद्गुणों से सुशोभित करने के लिए आवश्यक है कि उन विशेषताओं को अपने में क्रियात्मक रूप से धारण किया जाए।यह सत्य है कि सद्ज्ञानमयी पुस्तकें पढ़ने से,सदुपदेश सुनने से,सत्संग करने से जीवन को नई दिशा मिलती है,किंतु इनका वास्तविक लाभ हमें तभी मिलता है,जब हम इस सद्ज्ञान को अपने आचरण में उतारते हैं।क्रिया के अभाव में विचारों का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता।अपने जीवन को परिमार्जित करने के लिए हमें आचरण पर विशेष महत्त्व देना ही होगा।
  • सत्संग,स्वाध्याय,कथाश्रवण का महत्त्व इसलिए है; क्योंकि इनके द्वारा हमें उत्तम आचरण की प्रेरणा मिलती है,किंतु केवल जानकारी होने मात्र से कुछ विशेष लाभ नहीं होता,जब तक उस पर आचरण न किया जाए।ऐसे में हमारी स्थिति उस सोने से लदे हुए गधे के समान होती है,जिसकी पीठ पर बहुमूल्य सोना लदा तो है,किंतु वह स्वयं उससे कोई विशेष लाभ उठा नहीं पाता।न तो कोई अच्छा खाद्य पदार्थ खरीद पाता है और न ही अपनी पद-प्रतिष्ठा बढ़ा पाता है।यह सोना उसके लिए तो भार मात्र है और जब तक यह उसकी पीठ पर लदा रहेगा,तब तक उसके लिए तो भार मात्र है और जब तक उसकी पीठ पर लदा रहेगा,तब तक उसके लिए कष्ट ही बना रहेगा।
  • स्वाध्याय अथवा सत्संग के माध्यम से हमने बहुत सारा ज्ञान एकत्र कर लिया है,किंतु फिर भी इससे हमारे जीवन में कोई विशेष लाभ नहीं होता।जितनी अच्छी बातें हम जानते हैं यदि उसका एक भाग भी क्रियारूप में ले आते हैं तो इस जीवन का कायाकल्प हो सकता है।इसके विपरीत ज्ञान का अपार भंडार जमा करते रहें,किंतु आचरण निम्नकोटि का रखें,तो उससे हमें कोई विशेष लाभ न होगा।”जीवन को उन्नत बनाने के लिए समस्त शास्त्रों को कंठस्थ करने की कोई आवश्यकता नहीं,बस एक सद्वाक्य को आचरण में लाने से भी जीवन परिमार्जित हो सकता है।”

3.जीवन को उन्नत कैसे बनाएं? (How to make life better?):

  • मनुष्य जीवन अनमोल है।हमारे पास सीमित समय व शक्ति हैं,जिन्हें लेकर हम आए हैं और जिनके सदुपयोग से जीवन सार्थक हो सकता है।अब जीवन को बनाना या बिगाड़ना यह हमारे हाथ की ही बात है।इसके द्वारा हमारे आज के अव्यवस्थित जीवन को उन्नत बनाया जा सकता है।हमसे पिछले दिनों जो गलतियां हो चुकी हैं,इसके लिए हमें लज्जित होने या दुखी व निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है।सच्चा पश्चाताप यह है कि हम गलतियों की पुनरावृत्ति न होने दें।बुरे अतीत को यदि हम नापसंद करते हैं और अच्छे भविष्य की आशा रखते हैं तो वर्तमान को सुव्यवस्थित रीति से जीना आरंभ कर दें।वह शुभ मुहूर्त आज ही है,अब ही है,इसी क्षण है,जब हम अपने संचित ज्ञान को कार्यरूप में लाकर अपने जीवन को उन्नत बना सकते हैं।
  • सात्त्विक जीवन में प्रवेश पाने के लिए हमें आज से ही अच्छे गुणों की खेती प्रारंभ कर देनी चाहिए।विनम्रता,विनय,मुस्कराहट,मधुर भाषण,प्रेम भाव,आत्मीयता यह सब प्रदर्शनीय गुण हैं,जिन्हें अपनाकर हम अपने जीवन को उन्नत बनाते हैं;साथ ही दूसरों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।शुरुआत में इनका अभ्यास कठिन प्रतीत होता है,किंतु निरंतर अभ्यास से यह सब सहज हो जाता है।
  • यह आवश्यक नहीं है कि सभी के मन में प्रारंभ से ही महापुरुषों की तरह प्राणिमात्र के प्रति करुणा का भाव आए और यदि हम सोचें की जब हमारा मन सात्त्विक प्रेम से परिपूर्ण हो और तभी हम उसको प्रकट करेंगे,तो यह संभव नहीं।यह तो ऐसी बात है कि जैसे कोई यह कहे की पानी में तभी प्रवेश करूंगा,जब तैरने की विद्या में निपुण हो जाऊंगा,किंतु बिना अभ्यास के कोई तैरने में निपुण कैसे हो सकता है? तैरना तो तभी आता है,जब तैरने के लिए पानी में जाकर निरंतर अभ्यास किया जाए।यही बात सद्गुणों के संदर्भ में भी है।जब तक हम उनका अभ्यास नहीं करते,उन्हें अपने आचरण में क्रियान्वित नहीं करते,तब तक इनसे दूर ही बने रहते हैं।क्रिया में लाने पर ही ज्ञान का वास्तविक लाभ होता है।
  • सद्गुणों को प्रकट करने की आदत डालने से हानि किसी की नहीं और लाभ सबका है।अपने आपको सद्गुणी,अच्छे विचार वाला व अच्छे काम करने वाला मानकर उन्हें प्रकट करने से ही लाभ होगा।हमें उस नन्हे दीपक से प्रेरणा लेनी चाहिए,जिसके पास थोड़ी-सी तेल की पूंजी होती है,किंतु इससे वह दुखी नहीं होता,बल्कि जब तक जलता है,सिर उठाकर अपना प्रकाश फैलाता है,जिसके प्रकाश में सभी अपना काम कर पाते हैं।
  • हमें दृढ़तापूर्वक निश्चयात्मक बुद्धि से यह भावना करनी चाहिए कि हमारे अंदर अच्छे गुण पर्याप्त मात्रा में हैं और दिन-प्रतिदिन उनमें वृद्धि हो रही है।जिस वस्तु का बार-बार ध्यान किया जाता है,तो वह स्वतः खिंची चली आती है।हमें अपनी बुराइयों को भुलाकर अच्छाइयों को प्रोत्साहित करना चाहिए।अपने में जो दोष हैं,उन्हें दूर करने का सरल उपाय यही है कि हम उसके विरोध में अच्छाइयों को खड़ा कर दें।
  • उदाहरण के लिए यदि हमें क्रोध अधिक आ रहा हो उसकी चिंता छोड़कर प्रसन्नता का,मधुर भाषण का अभ्यास करने से कुछ ही क्षणों में क्रोध स्वतः शांत हो जाएगा।यदि कोई हमें यह कहे कि पूजा के समय किसी वस्तु विशेष का ध्यान न करें तो उसका ध्यान आए बिना नहीं रहेगा।सामान्य रूप से जिसका ध्यान नहीं आता,निषेध करने पर वह जरूर आएगा।नकारात्मकता में भी आकर्षण होता है।यही बात बुराइयों के संदर्भ में भी है।यदि हम उनका विरोध करने का प्रयास करेंगे तो वे दूने वेग से आएंगी।इसीलिए बुराई को दूर करने का सरल उपाय यही है कि हम अच्छे गुणों को अपनाना प्रारंभ कर दें।

4.आचरण से दूसरों को अपना बनाएं (Make others yours by conduct):

  • दूसरों को अपना बनाने का सबसे सरल उपाय है,उनकी सच्ची प्रशंसा करना।प्रशंसा सबको अच्छी लगती है,चाहे वह बालक हो या वृद्ध,अमीर हो या गरीब,परिचित हो या अपरिचित प्रशंसा से किसी के भी मन को जीता जा सकता है।इसके लिए हमें गुणग्राही होना होगा अर्थात् दूसरों के गुणों को पहचान कर प्रकट करने की कला को धारण करना होगा।
  • प्रत्येक व्यक्ति में अनेक गुण होते हैं,ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं,जिसमें कोई गुण ना हो।बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कुछ अच्छे गुण अवश्य होते हैं,आवश्यकता है उन्हें पहचानकर प्रकट करने की।हमें दूसरों की प्रशंसा करने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए,जिनमें जो अच्छे गुण दीखें उनकी मुक्त कंठ से सराहना करनी चाहिए।इसके लिए हमें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है,बल्कि इसकी शुरुआत हम अपने घर से ही कर सकते हैं।अपने भाई-बहन,बालक-बालिकाओं की अच्छाइयों को उनके सामने कहने में संकोच नहीं करना चाहिए और यदि किसी को कोई छोटी-सी भी सफलता मिले तो उसे बधाई देने के अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
  • अपने मित्र,साथी,माता-पिता के गुणों जैसे:सेवाभाव,परिश्रम व त्याग की भूरि-भूरि प्रशंसा करने से हमें बदले में और अधिक स्नेह,सम्मान ही मिलेगा।बड़ों के प्रति प्रशंसा प्रकट करने का माध्यम कृतज्ञता है।उनके द्वारा जो सहायता प्राप्त होती है,उसके लिए कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।किसी ने यदि हमारे ऊपर कोई एहसान किया हो या सहायता की हो तो धन्यवाद,शुक्रिया,मैं आपका ऋणी हूं आदि शब्दों के द्वारा थोड़ा-बहुत प्रत्युपकार उसी समय चुकाया जा सकता है।यह बात भले ही बहुत छोटी व मामूली सी लगे,किंतु अनुभव के पश्चात हम पाएंगे कि प्रशंसा-परायणता में जितना आध्यात्मिक लाभ है,उससे भी अधिक भौतिक लाभ है।धनी बनने,प्रेमपात्र बनने,नेता बनने,शत्रुरहित बनने व दूसरों का मन जीतने का यह अचूक उपाय है।
  • जीवन में हर व्यक्ति चाहता है कि दूसरे उसको प्यार दें,सम्मान दें एवं वह दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने।ऐसे में निरर्थक प्रयासों में अपनी उर्जा लगाने की बजाए यह आवश्यक है कि हम अपने व्यक्तित्व में उन गुणों को धारण करें,जिन्हें अपनाने से हमारा व्यक्तित्व भी श्रेष्ठ बनेगा तथा हम दूसरों की आत्मीयता पाने के सच्चे अधिकारी बन सकेंगे।जीवन की सभी समस्याओं का यही एक मात्र समाधान है और सफलता पाने का यही सरलतम उपाय भी है।

5.जानकारी को आचरण में उतारने की व्यावहारिक टिप्स (Practical tips for putting information into practice):

  • आप चाहे गुणों को धारण करें अथवा गणित व अन्य विषय का अध्ययन करें तो समय-समय पर उसका मूल्यांकन करते रहें और सुधार करते रहें।जैसे आपने गणित का कोई टॉपिक अवकलन का अध्ययन किया है और उसकी प्रश्नावलियों को हल कर लिया है।इसके बाद उसके मॉडल पेपर्स या स्वयं ही कोई प्रश्न-पत्र बनाकर अथवा कक्षा-टेस्ट या रैंकिंग टेस्ट के जरिए उसका मूल्यांकन करें।उसमें की गई त्रुटियों को सुधारें और त्रुटियों से संबंधित सवालों को पुनः हल करें।इस प्रकार बार-बार अभ्यास करने और मूल्यांकन करने और सुधार करने से आपकी उस टॉपिक पर मजबूत पकड़ हो जाएगी।
  • विद्यार्थी के सामने अध्ययन करने,बार-बार अभ्यास करने में प्रथम बाधा है कि सवाल,समस्याएं,जटिल प्रमेय आदि समझ में नहीं आती हैं तो उसका मन उचट जाता है।उसकी गणित अथवा संबंधित विषय में रुचि नहीं बनी रहती है।अतः जो भी समस्या या सवाल हल नहीं हो रहे हैं।उन्हें पुस्तक के उदाहरणों,सन्दर्भ पुस्तकों के जरिए हल करने की चेष्टा करें।फिर भी हल नहीं हो रही हो तो अपने मित्रों या शिक्षकों अथवा ट्यूटर की मदद से हल करें,लेकिन इसके लिए धैर्य बनाएं रखें।हतोत्साहित न हों।
  • दूसरी बाधा है हमारी आलसी प्रवृत्ति।हम आलस्यवश बहुत-सा समय नष्ट कर देते हैं।अध्ययन करने के समय को मौज-मस्ती,फालतू बातें करने,गप्पे हाँकने,सोने में गुजार देते हैं।अतः अपनी आलसी प्रवृत्ति को त्याग दें,सक्रिय एवं सचेष्ट रहें।अपने आपको प्रेरित करते रहें।आलसी दिनचर्या से हम अपना ही अहित करते हैं,उन्नति व विकास को अवरुद्ध करते हैं।
  • तीसरी बाधा है काम को,अध्ययन को टालने की प्रवृति।जैसे आज आपको किसी प्रश्नावली के सवाल हल करना है तो आप सोचते हैं कि कल इस प्रश्नावली को हल कर लेंगे,लेकिन अगले दिन फिर गणित अथवा अन्य विषय का नया टॉपिक हल करना होता है,अध्ययन करना होता है अतः कार्यभार बढ़ जाता है।इस प्रकार कार्यभार बढ़ते रहने से हम पिछड़ते जाते हैं।बाद में सोचने लगते हैं कि अभी तो परीक्षा बहुत दूर है,परीक्षा के निकट पढ़ लेंगे।यह अध्ययन कार्य कभी पूरा नहीं होता है।अतः काम टालने की प्रवृत्ति को त्याग दें।आज का काम आज,अभी का मंत्र याद रखें और इसका अनुकरण करें।शुरू-शुरू में इस मंत्र का पालन करने से परेशानी आ सकती है,लेकिन दृढ़ निश्चय और शक्ति से पालन करने पर धीरे-धीरे यह हमारी आदत में,आचरण में क्रियान्वित हो जाता है कि तत्काल,समय पर काम करने के क्या लाभ हैं?
  • चौथी बड़ी बाधा है बहानेबाजी की आदत।मित्र,शिक्षक अथवा हमारा शुभ चिन्तक अध्ययन के लिए कहता है तो हम कोई ना कोई बहानेबाजी करने लगते हैं।जैसे मुझे ही घर का कार्य करना पड़ता है,बाजार से सामान भी मुझे लाना पड़ता है।मुझे घर के तथा नाते-रिश्तेदारी निभाने के कार्य करने के कारण अध्ययन के लिए समय ही नहीं मिलता है।याद रखें विद्यार्थी का सबसे प्रमुख कार्य अपने अध्ययन कार्य को समय पर निपटाना है,अन्य गौण कार्य हैं।यदि आप परीक्षा में असफल भी हो जाते हैं तो आपने घर के कार्य जितने किए हैं,नाते-रिश्तेदारी निभायी है उन सब कार्यों को माता-पिता और संबंधी तथा अन्य लोग भूल जाएंगे और असफलता के लिए आपको ही लानतमनालत करेंगे,आपको ही दोषी ठहराएंगे।सारांश यह है कि अपने मुख्य कार्य अध्ययन को सर्वोच्च प्राथमिक दें,अध्ययन का अभ्यास करें,सद्गुणों को आचरण में उतारें तभी आपकी उन्नति-विकास होगा।आप अपने सद्गुणों के कारण ही सबको प्रिय एवं अच्छे लगेंगे।

6.आचरण (अभ्यास) का दृष्टांत (Illustration of Conduct):

  • एक विद्यालय में दो भाई पढ़ते थे।दोनों जुड़वा भाई थे अतः एक ही कक्षा में पढ़ते थे।परंतु दोनों के आचार-विचार में अंतर था।बड़ा भाई कठिन परिश्रमी व पढ़ने में होशियार था जबकि छोटा भाई आलसी और कामचोर था।
  • एक दिन दोनों भाइयों ने गणित के अध्यापक से परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की तकनीक,रणनीति पूछी।गणित अध्यापक ने कहा कि कठिन परिश्रम,अभ्यास का कोई विकल्प नहीं है।आप गणित में कठिन परिश्रम,अभ्यास करेंगे तो अच्छे अंक प्राप्त कर सकेंगे।
  • कठिन परिश्रम,अभ्यास आज से ही प्रारंभ कर दो।परीक्षा के निकट कठिन परिश्रम करने,अभ्यास करने,रात-रातभर जागकर पढ़ने का लाभ नहीं होगा।
  • बड़े भाई ने गणित के अध्यापक की बात की गांठ बांध ली।उसने सत्रारम्भ से ही गणित व अन्य विषयों में कठिन परिश्रम किया,अभ्यास किया।जो बात समझ में नहीं आती थी,उसे अपने मित्रों व शिक्षकों से दोबारा समझ लेता।मॉडल पेपर्स का अभ्यास किया,अपनी त्रुटियों को जानकर दूर करता रहा।
  • छोटा भाई आलसी था,उसने सोचा परीक्षा के निकट मेहनत कर लूंगा,अभ्यास कर लूँगा।परन्तु आलस्य के कारण उसका समय व्यतीत होता गया फलस्वरूप बमुश्किल वह उत्तीर्ण हो पाया जबकि बड़े भाई ने 90% अंक प्राप्त किए।
  • पुस्तकें,संदर्भ पुस्तकें,विद्यालय,शिक्षक आदि छोटे भाई को भी उपलब्ध थे परंतु उसमें कर्मठता,तत्परता व कठिन परिश्रम करने की आदत नहीं थी अतः अच्छा स्कोर नहीं कर पाया,केवल उत्तीर्ण ही हो सका।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सद्गुणों को आचरण में क्रियान्वित कैसे करें? (How to Put Virtues into Practice?),अच्छे गुणों को व्यवहार में लाएं (Put Good Qualities into Practice) के बारे में बताया गया है।

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7.आज घर पर ही पढ़ेंगे (हास्य-व्यंग्य) (I will Read at Home Today) (Humour-Satire):

  • वीरू (दोस्तों से):आज हम घर पर ही अध्ययन करेंगे,स्कूल नहीं जाएंगे।
  • दोस्त:पर क्यों?
  • वीरू:क्योंकि आज माता-पिता मेरी प्रोग्रेस जानने स्कूल जाएंगे।

8.सद्गुणों को आचरण में क्रियान्वित कैसे करें?(Frequently Asked Questions Related to How to Put Virtues into Practice?),अच्छे गुणों को व्यवहार में लाएं (Put Good Qualities into Practice) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.श्रेष्ठ विद्यार्थी के लक्षण क्या हैं? (What are the characteristics of the best student?):

उत्तर:पुस्तकें पढ़ने वाले मूर्ख विद्यार्थी से श्रेष्ठ हैं,पुस्तकें पढ़ने वाले से पुस्तकों को धारण (स्मरण) करने वाले श्रेष्ठ हैं,धारण करने वाले से ज्ञानी (पुस्तकों को समझ कर पढ़ने वाले) श्रेष्ठ हैं और ज्ञानी विद्यार्थी से उसके अनुसार आचरण (अभ्यास करने वाले) करने वाले श्रेष्ठ हैं।

प्रश्न:2.कार्य प्रारंभ करने की श्रेष्ठ स्थिति कौनसी है? (What is the best condition to start work?):

उत्तर:कार्यक्रम करने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति कभी नहीं होती,जैसी भी परिस्थिति मिले कार्य प्रारंभ कर दें,स्थिति अपने आप श्रेष्ठतर होती चली जाएगी।

प्रश्न:3.कार्य में सफलता की मूल शर्त क्या है? (What is the basic condition for success in work?):

उत्तर:विद्यार्थी अथवा व्यक्ति के कार्य परिश्रम करने से ही सफल होते हैं,केवल मनोरथ से (मन में सोच लेने से) नहीं।सोए हुए शेर के मुंह में कभी हिरन प्रवेश नहीं करता।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सद्गुणों को आचरण में क्रियान्वित कैसे करें? (How to Put Virtues into Practice?),अच्छे गुणों को व्यवहार में लाएं (Put Good Qualities into Practice) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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