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Why Do Youth Not Obey Elders?

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1.युवा बड़ों की आज्ञा का पालन क्यों नहीं करते हैं? (Why Do Youth Not Obey Elders?),आजकल के बच्चे बड़ों का कहना क्यों नहीं मानते हैं? (Why Do Kids Nowadays Not Listen to Their Elders?):

  • युवा बड़ों की आज्ञा का पालन क्यों नहीं करते हैं? (Why Do Youth Not Obey Elders?) यह शिकायत अधिकांश माता-पिता,अभिभावकों और शिक्षकों की है।शिकायत के चलते बड़े-बुजुर्ग,शिक्षक परेशान रहते हैं तथा इस बात पर विचार मंथन करते हैं कि क्या किया जाए,क्या न किया जाए,कैसे बच्चों,युवाओं को समझाया जाए।उन्हें कोई समाधान नहीं मिलता है तो माता-पिता,अभिभावक स्कूल में शिकायत करते हैं और स्कूल के शिक्षक माता-पिता को शिकायत भेजते हैं।
  • थोड़ी देर भी बच्चे एकाग्रतापूर्वक अध्ययन नहीं करते हैं। अगर किशोर अवस्था के व छोटे बच्चे हैं तो घर में उठा-पटक,तोड़फोड़,भाई-बहन आपस में लड़ाई-झगड़ा करते रहते हैं।युवा हैं तो फालतू मोहल्ले-गांव में घूमना,आवारागर्दी करना,सोशल मीडिया या इंटरनेट पर व्यस्त रहना अथवा नशे,मादक द्रव्यों का सेवन करना,गलत हरकतें चोरी-चकोरी आदि करने लग जाते हैं।ऐसे बच्चे न घर में,न स्कूल में शांति से रहते हैं और न दूसरों को शांति से रहने देते हैं।
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2.आज्ञा पालन न करने का कारण (Reason for Disobedience):

  • आज की व्यस्त,भाग-दौड़भरी दिनचर्या,धन को अत्यधिक महत्त्व देना,बच्चों की परवरिश पर शुरू से ही ध्यान न देना,बच्चों में संस्कार व अच्छी आदतें न डालना,चरित्र निर्माण की तरफ ध्यान न देना जैसे कई कारण है जिनकी वजह से बच्चे बड़ों की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं।
  • घर में माता-पिता आपस में बात-बात पर लड़ाई-झगड़ा करते हैं,पड़ोसियों से झगड़ा करते हैं तो बच्चे ऐसे माता-पिता से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ पाते हैं।वे भी घर में माता-पिता से लड़ाई-झगड़ा करना सीखते हैं और माता-पिता व बड़ों की अवहेलना करने लगते हैं।मारपीट से बच्चे ज्यादा ही सुनी-अनसुनी करने लगते हैं और उपद्रवी हो जाते हैं।
  • माता-पिता बच्चे के निर्माण का कार्य,बच्चों को संस्कारित करने का कार्य शिक्षण संस्थानों पर छोड़ देते हैं जबकि आधुनिक युग के शिक्षण संस्थानों में बच्चों को ना तो संस्कारित किया जाता है,न शिक्षा पद्धति और सिलेबस में यह सब बातें शामिल हैं।आधुनिक युग के शिक्षण संस्थानों में 99% संस्थान बच्चों में केवल जानकारी ठूँसते हैं न कि वे शिक्षित करते हैं।
  • बच्चों की आज्ञा उल्लंघन की सीमा रेखा बच्चों में इतनी पार कर जाती है कि बच्चे इसके आदी हो जाते हैं और माता-पिता को कुछ भी नहीं समझते हैं जिससे एटेंशन डेफेसिट डिसऑर्डर (उपेक्षा-संतुलन) का नाम दिया है।पहले यह समस्या विदेश के बच्चों में पाई जाती थी।भारत में घर-परिवार में ऐसा माहौल था कि यह समस्या यहाँ नहीं पाई जाती थी।लेकिन संयुक्त परिवारों के टूटने,माता-पिता दोनों के नौकरी करने अथवा बच्चों की उपेक्षा करने के कारण अब भारत में भी इस बीमारी का प्रतिशत काफी बढ़ गया है।
  • कई माता-पिता सामाजिक कार्यों,क्लबों और अनेक संस्थाओं से जुड़े रहकर अपने शौक पूरे करने में व्यस्त रहते हैं।वे समाज व देश का तथाकथित कल्याण करने में व्यस्त रहते हैं और उनके बच्चों का दूसरे ढंग का ही कल्याण हो जाता है।ऐसे माता-पिता अपने अज्ञान और व्यस्तता के कारण ध्यान नहीं दे पाते इसलिए उनके बच्चे बड़े होकर असामाजिक,उपद्रवी,अपराधी या नशेड़ी बन जाते हैं।
  • इस प्रकार माता-पिता आजकल बच्चों पर उतना ध्यान नहीं दे पाते,जितना कि आवश्यक रूप से दिया जाना चाहिए।माता-पिता अपने कामकाज में इतना मशगूल हो जाते हैं कि अपने बच्चों को साधनों व नौकरों के हवाले कर देते हैं।उनके पास बच्चों के लिए आवश्यक समय ही नहीं रहता है।
  • ऐसे माता-पिता के बच्चे भी अनुशासनहीन,उद्दण्डी हो जाते हैं और आज्ञा का पालन नहीं करते हैं,जिन पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देते हैं या अत्यधिक नियंत्रण में रखते हैं।बच्चों की जायज-नाजायज मांग पूरी करते हैं या उनको इतना ज्यादा अपनी निगरानी में रखते हैं कि बच्चों का स्वतंत्र विकास बाधित हो जाता है।
  • बच्चों के मस्तिष्क में मात्र भौतिक जानकारी ठूँसना तथा चारित्रिक एवं आध्यात्मिक बातों को बच्चों के जीवन में न उतारना भी बच्चों में आज्ञा पालन न करने की प्रवृत्ति को जन्म देता है।

3.एटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर के लक्षण (Symptoms of Attention Deficit Disorder):

  • एटेंशन डेफेसिट डिसऑर्डर जिसकी वजह से बच्चे माता-पिता का कहना नहीं मानते हैं,इसके कई तरह के लक्षण हो सकते हैं।शुरुआत में कम असर वाला,बाद में धीरे-धीरे बढ़कर हाईपर एक्टिव या अतिसक्रियता एटेंशन डिसऑर्डर का रूप ले सकता है।
  • मनोचिकित्सकों के अनुसार प्रमुख तौर पर इसके तीन लक्षण हैं।पहला एकाग्रहीनता,दूसरा अति सक्रियता एवं तीसरा कभी भी काम को करने के लिए मजबूर हो जाना।इन तीन मुख्य लक्षणों के अलावा इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में चित्त का बिखराव,अस्थिर व आक्रामक व्यवहार,अपने को हीन समझना,लोगों का ध्यान आकृष्ट करने वाले काम करना,ख्याली पुलाव पकाना,मिल-जुलकर न
  • रहने की प्रवृत्ति,अति कमजोर याददाश्त,धैर्य की कमी,दूसरों को सताने वाला व्यवहार एवं चोरी करने जैसी प्रवृत्ति आम बातें हैं।समाज में स्वीकार्य व्यवहार करना इन बच्चों के बूते के बाहर हो जाता है।पढ़ाई करना ये छोड़ देते हैं।अक्सर ये अपनी स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाते।जब-तब इन पर डिप्रेशन का दौरा पड़ता रहता है।उस समय इन पर काबू करना मुश्किल हो जाता है।
  • इस रोग के कारणों में पहली बात यह कि शुरुआती कारणों में भ्रूण अवस्था या बचपन में संक्रमण के कारण दिमाग को होने वाले मामूली नुकसान से ऐसा हो जाता है।इससे संबंधित एक तथ्य यह भी है कि रोगियों के मस्तिष्क में रसायनों के अनियमित प्रवाह से ऐसा हो जाता है।
  • लेकिन दूसरी बात जो इस सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है,वह है बच्चों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति।एटेंशन डेफेसिट डिसऑर्डर का शाब्दिक अर्थ ही यही है:देखरेख की कमी से होने वाली व्याधि।आइए बच्चों की देखभाल के बारे में कुछ बात करते हैं।

4.बच्चों की देखभाल (Care of Children):

  • बच्चों की पहली पाठशाला उनका घर ही होता है,जहां वह आचार-व्यवहार-संस्कार व अच्छे-बुरे गुणों को सीखते हैं।उनकी पहली शिक्षिका मां होती है।घर का वातावरण जैसा होगा,वैसा ही बच्चा सीखेगा।सब प्रकार की सीख वह घर से ही सीखेगा।अगर उसे अच्छे संस्कार दिए गए तो वह अच्छी राह पकड़ेगा।गलत संस्कार मिलने पर वह गलत राह पर चलेगा।यह सब घर के माहौल में उसे सीखने को मिलता है।
  • बच्चों की चोरी की आदत होगी वह अवश्य उसको सीखेगा या फिर घर में किसी बड़े की इज्जत न करना आदि बहुत-सी ऐसी बातें हैं,जिनका असर बच्चों पर तुरंत पड़ता है।छोटे बच्चों में किसी भी कार्य को सीखने की प्रवृत्ति होती है।वह हर अच्छे-बुरे कार्यों को तुरंत सीख लेता है।थोड़ी देर के लिए तो शांत हो सकता है,परंतु बाद में वही करेगा,जो उसने देखा है।अगर घर में कोई सदस्य गाली देकर बात करता है,तो वह भी गाली देकर ही बात करेगा।यदि घर में प्रातः स्नान करके भोजन ग्रहण करना है,तो अवश्य ऐसा करेगा।कहने का तात्पर्य है कि आप बच्चे को यही संस्कार दे रहे हैं,अच्छे अथवा बुरे।बहुत से घरों से इसीलिए अक्सर यह शिकायत रहती है कि मेरा बच्चा तो मेरा कहना बिल्कुल नहीं मानता है।उनका मन तो बस खेलने में लगता है या फिर मेरा बच्चा तो किसी के साथ खेलता ही नहीं है,हर समय घर में घुसा रहता है,वगैरह-वगैरह।अन्य बहुत-सी समस्याएं है या फिर बच्चे ने उसके साथ कैसे बात की,उसे ऐसा नहीं बोलना चाहिए।यही सिखाया है घरवालों ने।ऐसी बहुत-सी बातें,लेकिन इसमें बच्चे का क्या दोष।यह तो उसने घर से सीखा है।बच्चों को हमेशा अच्छी बातें सिखाएँ।उनके सामने ऐसी कोई गलत बात ना करें,जो कि वह अपनाए।यह छोटी-छोटी बातें बच्चों के भविष्य को बिगाड़ सकती हैं।बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाना है,तो घर में रहकर बच्चों की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें।
  • बड़ों से कैसे बात की जाती है,उसे बताएं।साथ ही बड़ों को प्रणाम करना,पांव छूना आदि अच्छे संस्कार भी अवश्य सिखाना चाहिए।
  • बच्चों को क्या आना चाहिए।बच्चे गलत कार्य तभी करते हैं,जब उन्हें बजाय रोकने के प्रोत्साहन मिलता है।कभी-कभी बच्चे जब बड़ों की नकल बनाते हैं,तो घर के सदस्य उनकी इस हरकत पर हंसते हैं,परंतु बच्चों के लिए यह उचित नहीं है।बच्चों को स्वस्थ माहौल दें।उन्हें ज्ञान दें।अच्छी-अच्छी बातें बताएं।क्योंकि वे सभी बच्चों के साथ खेलते हैं,तभी अच्छे-बुरे की पहचान हो पाएगी।बच्चे को संस्कारी बनाएं।कोई आपके बच्चों को यह न कहने पाए कि कितने शैतान हैं ये बच्चे।बच्चों की देखभाल सही ढंग से करें,तभी उनका भविष्य उज्जवल बन सकेगा।

5.बच्चे बड़ों की बातें कैसे मानें? (How Do Children Obey Adults?):

  • ऐसे बच्चों को केवल शरारती बच्चे कहकर पीछा नहीं छुड़ा लेना चाहिए,बल्कि 7 से 11 साल की उम्र में शिक्षक की मदद से ऐसे बच्चों की गतिविधियों का ध्यान रखना चाहिए और स्थिति ज्यादा बेकाबू हो तो मनोचिकित्सक से उपयुक्त परामर्श करना चाहिए।
  • बच्चों के पालन-पोषण करने में एक माली की कुशलता चाहिए।उन्हें इतना भी अनदेखा न करें कि आवश्यक खाद-पानी भी न मिल सके और इतनी भी देख-रेख की अति न कर दें कि उन्हें स्वाभाविक रूप से मिलने वाली हवा और प्रकाश भी अवरुद्ध हो जाए।बच्चे आपकी बात माने एवं शरारत व शैतानी कम करें,इसके लिए माता-पिता को कुछ बिंदुओं को आत्मसात करना जरूरी है।
  • (1.)आप बच्चों के रोल मॉडल बनें कम से कम बच्चों के सामने स्वयं ऐसे काम कभी न करें जिनके लिए आप उन्हें रोकते हैं।
  • (2.)बच्चों की हर जायज-नाजायज मांग पूरी करने के बजाए,धीरे-धीरे उन्हें सही-गलत का बोध कराएं।
  • (3.)जीवन के व्यावहारिक विषयों जैसे दूसरों से व्यवहार,उठने-बैठने,चलने-दौड़ने के सही तौर-तरीके,शिष्टाचार के सामान्य ज्ञान के बारे में उन्हें धीरे-धीरे,पर थोड़ा-थोड़ा रोज बताएं-सिखाएं।
  • (4.)बात-बात पर उन्हें झिड़के नहीं।अनजान लोगों के सामने उन्हें किसी भी कीमत पर अपमानित न करें।
  • (5.)अच्छा काम करने पर उन्हें प्रोत्साहित व प्रशंसित करें।
  • (6.)रचनात्मक प्रतिभा को विकसित करने का अवसर दें।
  • बच्चे आपकी बात माने,इसके लिए जरूरी है कि आप अपने प्रति बच्चों में विश्वास जगाएं।उन्हें उनके प्रति अपने प्रेम से आश्वस्त करें।
  • शैतानी और शरारत की अति को कोई भी गंभीर रोग मानकर घबरा जाना तो ठीक नहीं है,पर इसके प्रति लापरवाही भी उचित नहीं है।बच्चों की शैतानी व शरारत में खपने वाली ऊर्जा को यदि सृजनात्मक गतिविधियों में बदला जा सके तो उनकी प्रतिभा में आश्चर्यजनक बढ़ोत्तरी हो सकती है।बस इसके लिए जरूरत इतनी भर है कि बच्चों के प्रति उनकी सही देख-रेख के प्रति हमेशा जागरूक रहे और उनकी जीवन शक्ति को सृजनात्मक कार्यों की ओर प्रेरित करते रहें।लगातार धैर्वपूर्वक प्यार और सद्व्यवहार से ऐसा करने पर बच्चे शरारत छोड़कर हमारी हर शिकायत को दूर कर सृजन प्रयोजनों में लगने लगेंगे।
  • कितनी भी व्यस्तता भरी जीवनशैली तथा दिनचर्या हो परंतु बच्चों के लिए प्रतिदिन कुछ समय अवश्य निकालें।उनके साथ व्यतीत करें।उनकी शिक्षा-दीक्षा की जानकारी रखें।उनको होने वाली परेशानियों के बारे में पूछें।उनको समस्या को हल करने के तरीके बताएं।बच्चों को ईमानदारी,सच्चाई,विनम्रता,सरलता का पालन करने की प्रक्रिया बताएं।
  • हो सके तो स्वयं भी कुछ समय बैठकर उनके साथ अध्ययन करें।उनके चरित्र निर्माण की अनदेखी न करें।इससे बच्चे यह महसूस करेंगे की माता-पिता उनका ध्यान रखते हैं,उनके प्रति आत्मीयतिता रखते हैं।
  • भौतिक शिक्षा के साथ-साथ कुछ आध्यात्मिक शिक्षा भी देने की कोशिश करें।स्वयं भी कुछ आध्यात्मिक बनें और बच्चों को भी कुछ आध्यात्मिक बनने हेतु प्रेरित करें।भौतिक शिक्षा से केवल एकांगी विकास होता है जबकि भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों से हमारा संपूर्ण व्यक्तित्त्व निखरता है।आध्यात्मिकता से हमारा जीवन शांत,प्रसन्न रहता है तथा कष्टों व तकलीफों को सहन करने की क्षमता आती है।आत्मिक शांति मिलती है।ऐसे बच्चे माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं।शैतान,उद्दंड,अपराधी नहीं बनते हैं।
    उपर्युक्त आर्टिकल में युवा बड़ों की आज्ञा का पालन क्यों नहीं करते हैं? (Why Do Youth Not Obey Elders?),आजकल के बच्चे बड़ों का कहना क्यों नहीं मानते हैं? (Why Do Kids Nowadays Not Listen to Their Elders?) के बारे में बताया गया है।

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6.प्रेमिका की आंखों में संसार (हास्य-व्यंग्य) (The World in Eye of Girlfriend) (Humour-Satire):

  • एक विद्यार्थी का छोटा भाई मेले में कहीं खो गया।उसे ढूंढते-ढूंढते उसका बुरा हाल हो गया परंतु भाई नहीं मिला।परेशान होकर विद्यार्थी एक पेड़ पर चढ़कर चारों तरफ नजर दौड़कर भाई को देखने लगा।इस बीच एक प्रेमी युगल आकर उस पेड़ के नीचे बैठ गया।प्रेमी ने प्रेमिका की आंखों में आंखें डालकर कहा,’डार्लिंग तुम्हारी आंखों में मुझे सारी दुनिया दिखाई दे रही है।’
  • विद्यार्थी ऊपर से चिल्ला पड़ा,’भाई साहब अगर आपको मेरा भाई दिखाई दे तो बता देना,कहीं खो गया है।’

7.युवा बड़ों की आज्ञा का पालन क्यों नहीं करते हैं? (Frequently Asked Questions Related to Why Do Youth Not Obey Elders?),आजकल के बच्चे बड़ों का कहना क्यों नहीं मानते हैं? (Why Do Kids Nowadays Not Listen to Their Elders?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बच्चों को सृजन कार्यों की ओर अग्रसर करने से क्या तात्पर्य है? (What Does It Mean to Lead Children to Creative Pursuits?):

उत्तर:बच्चों को खेलकूद,संगीत,भजन,स्वाध्याय,सत्संग,कीर्तन,एनसीसी,समाजोपयोगी कार्यों आदि में लगाएं और देखें कि वह कौनसा कार्य करना पसंद करता है।किस कार्य को करने में रुचि लेता है।उस कार्य को करने में बच्चे का सहयोग करें और आवश्यक हो तो प्रशिक्षण दिलाएं।इससे बच्चों की प्रतिभा निखरती है।बच्चों में सहयोग,मिल-बाँटकर रहने,किसी कार्य को सफलतापूर्वक करने की कला आती है।बच्चे अगर अनुशासनहीनता व गलत हरकत पर कोई चालाकीपूर्ण बहाना बनाते हैं,तो कभी उन्हें बचाने में सहयोग न करें।

प्रश्न:2.आधुनिक शिक्षा का दुष्प्रभाव क्या है? (What is the Side Effect of Modern Education?):

उत्तर:आधुनिक युग बुद्धिवाद तथा भौतिकता का युग है, इस युग में धर्म से ज्यादा धन को महत्त्व दिया जाता है। इसलिए माता-पिता अभिभावकों का मुख्य मकसद येन केन प्रकारेण धन कमाना रह गया है।उनका ध्यान बच्चों को संस्कारित करने की तरफ ना होकर धनार्जन करने में लगा रहता है।संस्कार तथा शिक्षा का उत्तरदायित्व शिक्षण संस्थानों पर छोड़कर वे बेफिक्र हो जाते हैं।ऐसी स्थिति में बालकों में संस्कारों का निर्माण नहीं हो पाता है,अच्छी आदतों का निर्माण नहीं हो पाता है और बालक शुरू से ही माता-पिता,अभिभावकों की आज्ञा का उल्लंघन करने लगता है।

प्रश्न:3.क्या युवाओं को बड़ों की हर आज्ञा का पालन करना चाहिए? (Should Youth Obey Every Command of the Elders?):

उत्तर:कोई व्यक्ति कितना ही बड़ा,महान् और श्रेष्ठ क्यों ना हो,आंखें मूंदकर उसके पीछे नहीं चलना चाहिए,हर आज्ञा का पालन नहीं करना चाहिए।यदि भगवान की ऐसी मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख,कान,नाक,मुंह जीभ और मस्तिष्क आदि क्यों देता।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा युवा बड़ों की आज्ञा का पालन क्यों नहीं करते हैं? (Why Do Youth Not Obey Elders?),आजकल के बच्चे बड़ों का कहना क्यों नहीं मानते हैं? (Why Do Kids Nowadays Not Listen to Their Elders?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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