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Overcome Defects by Introspection

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1.आत्म-निरीक्षण द्वारा दोषों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Defects by Introspection?),आत्म-निरीक्षण द्वारा कमियों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Shortcomings by Introspection?):

  • आत्म-निरीक्षण द्वारा दोषों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Defects by Introspection?) यों आलोचना,परंपराएं,कानून,बहिष्कार आदि अनेक साधन कमियों और दोषों को दूर करने हेतु प्रयुक्त किए जाते हैं परंतु इन सभी की अपेक्षा दोषों को दूर करने का सबसे प्रभावी माध्यम है:आत्म-निरीक्षण।
  • छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं तो अपनी कमजोरी का कारण समझ नहीं पाते हैं,परीक्षा में प्राप्तांक कम प्राप्त हुए हैं,प्रतियोगिता या प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो रहे हैं तो उन्हें यह पता ही नहीं चल पाता है कि ऐसी कौनसी कमजोरी है जिसके कारण इस तरह का कमजोर प्रदर्शन हो रहा है अर्थात् परीक्षाओं में श्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं।
  • परंतु यदि आप आत्म-निरीक्षण करेंगे तो स्वयंमेव अपनी कमजोरियों,त्रुटियों और दोषों का पता लगा सकते हैं,इसके पश्चात उनको दूर किया जा सकता है या सुधार किया जा सकता है।
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2.आत्मनिरीक्षण द्वारा दोषों को दूर करें (Remove Defects by Introspection):

  • आत्म-निरीक्षण में अपनी दृष्टि को बहिर्मुखी से अंतर्मुखी करना होता है और फिर अंतर का समग्र निरीक्षण किया जाता है।जब आप अंतर का निरीक्षण करेंगे तो समस्त गुण-दोषों के चित्र आपके सामने प्रकट हो जाएंगे।ऐसी स्थिति में दोषों को पकड़कर त्याग अथवा सुधार करना सरल कार्य बन जाता है।सभी महापुरुष यही कहते हैं कि अपने आपको जानो।
  • आत्म-निरीक्षण में आप सूक्ष्म दृष्टि से अपने अंतर का अवलोकन करते हैं ऐसी दृष्टि में अपने दोष,दुर्गुण,कमियाँ और त्रुटियाँ छिपी हुई नहीं रह सकती है।यह निश्चित है कि आप अपना आत्म-निरीक्षण करें और दोष-दुर्गुण आदि व्यक्ति की दृष्टि में न आए।यह एक अचूक साधन है।
  • सतत आत्म-निरीक्षण द्वारा आप अपने व्यक्तित्त्व का विकास कर सकते हैं।यह ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति समस्त अनुचित आवरण हटाकर स्वयं के असली स्वरूप को पहचानने लगता है।दूसरों को सुधारना तो बहुत कठिन है जबकि स्वयं को सुधारना सरल है।दूसरा व्यक्ति भी आपके आचरण से ही सिखता है।
  • आत्मनिरक्षण अपने अंदर झांकने,देखने,निरीक्षण करने,सतत निगरानी करने की प्रवृत्ति विकसित करता है।जब व्यक्ति अपने हृदय रूपी दर्पण में झाँकता है या देखता है तो उसमें एक-एक गुण एवं एक-एक दोष स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है।एक बार दोषों,त्रुटियों व कमियों का पता लग जाए तो उन्हें दूर करने या सुधारने की प्रक्रिया प्रारंभ की जा सकती है।अपनी अंतरात्मा को गुरु स्वीकार कर लो तो यह आपको पथभ्रष्ट नहीं होने देगी।
  • आत्मनिरक्षण स्वयं का अवलोकन करना है तथा इसके निरंतर चलते रहने से दोष-दुर्गुण आदि दूर होने पर विवेक जाग्रत होने लगता है।विवेक जाग्रत होने पर बुद्धि को सद्मार्ग पर चलाया जा सकता है।विवेक व्यक्ति के गुण-दोषों,अच्छाई बुराई,नैतिक-अनैतिक,उचित-अनुचित का बोध कराता है:बुद्धि प्रांजल हो जाती है फलतः व्यक्ति दोष-दुर्गुणों से मुक्त हो जाता है।
  • आत्म-निरक्षण करते रहने और विवेक जाग्रत होने पर मन पर नियंत्रण रखना आसान हो जाता है।अपने आप पर नियंत्रण होने पर व्यक्ति प्रत्येक कार्य का विश्लेषण कर सकता है तथा परिणामी प्रोत्साहन या प्रताड़ना अपने अंतर से ही पाने लगता है।
  • उसके अंदर की यह प्रताड़ना उसे दोष-दुर्गुणों,त्रुटियों इत्यादि को दूर करने के लिए बाध्य कर देती है।
  • आत्म-निरीक्षण अंतरात्मा की आवाज है जिसे इसलिए सुनना पड़ता है कि वह अपनी है और उसे स्वीकारना इसलिए बाध्यकारी है कि न मानने पर आत्मग्लानि का शिकार होना पड़ता है।
  • आत्म-निरीक्षण निरंतरता एवं व्यापक दृष्टिकोण लिए हुए है।इतनी शक्तिशाली आत्मा के समक्ष किस दोष-दुर्गुण आदि में सामर्थ्य है कि वह उसके सामने ठहर सके।आत्म-निरक्षण द्वारा आध्यात्मिक विकास करने में भी सहयोग मिलता है।व्यक्ति धीरे-धीरे आध्यात्मिक होता जाता है।
  • यदि छात्र-छात्राएं एवं व्यक्ति निरंतर आत्म-निरीक्षण का अभ्यास करता रहे तो दोष-दुर्गुणों इत्यादि को दूर करने में सफलता अवश्य मिलती है।उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आत्म-निरीक्षण द्वारा अपने दोष-दुर्गुणों,त्रुटियों,कमजोरियों को दूर किया जा सकता है एवं सुधार किया जाना सम्भव है।

3.दोषों को दूर करने के आत्म-निरीक्षण के बजाय दूसरे उपाय (Instead of Introspection Other Ways to Remove Defects):

  • जिस प्रकार व्यक्ति दर्पण में देखकर भी वही देखता है जो वह स्वयं देखना चाहता है क्योंकि स्वयं को अच्छा देखने की उसकी प्रबल इच्छा उसे कुछ ओर देखने नहीं देती।इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने को हीन देखना नहीं चाहता है।आत्मनिरक्षण एक ऐसा शब्द है जिससे एक अच्छा-भला व्यक्ति भी परेशान हो जाता है क्योंकि कई दोष,दुर्गुण,कमियां,त्रुटियां ऐसी भी होती है जिन्हें व्यक्ति दूर करना चाहता है परंतु दूर नहीं कर पाता है और उसे कई भ्रांतियां घेर लेती है।इससे उसे मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है तो ऐसी स्थिति में क्या आत्म-निरीक्षण का कोई महत्त्व रह जाता है?
  • हालांकि आत्म-निरीक्षण भी आवश्यक है परंतु क्या एक निर्धन छात्र दैनिक कार्य करके अपना पेट भरता है और अध्ययन भी करता है।जिसके सामने दो वक्त की रोटी पाना ही मुश्किल है,जिसका जीवन भूख को शांत करने में ही व्यतीत हो रहा हो वह आत्म-निरीक्षण द्वारा क्या कर सकेगा?
  • आत्म-निरीक्षण करते हुए भी व्यक्ति सदा स्वयं में सर्वगुण मनुष्य को देखना चाहता है।वह अपनी कमजोरी एवं दोषों को जानते हुए भी केवल अपने अहं के कारण दोष-दर्शन को अपना अपमान समझता है।
  • आज की इस तेज रफ्तार और प्रतिस्पर्धा के युग में जिंदगी में किसी के पास इतना समय ही कहां है कि वह अपने दोषों को समझे या किसी के गुणों के साथ अपनी तुलना करें।यदि वह ऐसा कर भी लेता है तो उसके गुणों को अपनाने के बजाय उससे ईर्ष्या होने लगती है।
  • सर्वप्रथम अधिकतर व्यक्ति आत्म-निरीक्षण द्वारा अपनी सूक्ष्म कमियों को देख ही नहीं पाते हैं या यूँ कह लीजिए कि उसकी अवहेलना कर देते हैं।आत्म-निरीक्षण द्वारा व्यक्ति अपनी कमियां जानकर सर्वदा कुढ़ता रहता है जिससे उसकी प्रगति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
  • मनुष्य किसी दूसरे के द्वारा आलोचना करने पर ही अपनी गलती को दिल से महसूस करता है और उसे शीघ्र दूर करके अपने दोषों में कमी तथा गुणों में वृद्धि करता है।इसी तथ्य को कबीरदास जी ने कहा है कि “निंदक नियरे राखिए,आंगन कुटी छवाय।बिन पानी साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय।
  • आत्म-निरीक्षण से अपने दोषों को दूर नहीं किया जा सकता।इतिहास गवाह है कि महाकवि कालिदास तथा संत तुलसीदास अपनी पत्नियों के व्यंग्यबाणों द्वारा विकास के पथ पर अग्रसर हुए थे,न कि आत्म-निरीक्षण द्वारा।
  • उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि व्यक्ति आत्म-निरीक्षण की अपेक्षा किसी दूसरे व्यक्ति से अपनी आलोचना सुनकर अधिक प्रभावित हुए हैं और दोषों को दूर करके अपने अंदर अपने छुपे हुए गुणों का विकास करने के लिए प्रेरित हुए हैं।

4.आत्मनिरीक्षण द्वारा दोषों को दूर करने का निष्कर्ष (Conclusion of Introspection):

  • आत्म-निरक्षण करना कठिन अवश्य है परंतु आत्म-निरीक्षण के द्वारा स्वयं ही अपनी स्थिति का अवलोकन कर सकते हैं।प्रारंभिक छात्र-छात्राओं के लिए आत्म-निरीक्षण करना कठिन है।कुछ विशिष्ट प्रतिभाओं को छोड़ दिया जाए तो औसत विद्यार्थी आत्म-निरीक्षण विधि का प्रयोग नहीं करते हैं।ज्ञान और अनुभव के साथ आत्म-निरीक्षण करना धीरे-धीरे संभव हो जाता है।
  • आत्म-निरीक्षण करने पर स्वयं के दोषों का स्वयं को ही पता लग जाता है इसलिए दूसरों के सामने जलील और अपमानित नहीं होना पड़ता है।हालांकि आत्म-निरीक्षण के अलावा दूसरों के मार्गदर्शन,सुझावों,आलोचनाओं के द्वारा भी कई व्यक्ति आगे बढ़े हैं,अपने दोष-दुर्गुणों को दूर किया है।परंतु दूसरा व्यक्ति जब हमारी आलोचना करता है,सुझाव देता है,मार्गदर्शन करता है तो अपना अहंकार जाग्रत हो जाता है जिससे हम आगे नहीं बढ़ पाते हैं ।
  • दूसरों की आलोचना,भर्त्सना,ताड़ना,सुझाव व मार्गदर्शन से वे ही व्यक्ति आगे बढ़ पाते हैं जिनके मन निर्मल,शुद्ध होता है और जो सदैव आगे बढ़ने,सीखने के लिए तत्पर रहते हैं।
  • हर बात आत्म-निरीक्षण से ही नहीं सीखी जा सकती है बल्कि दूसरों से शिक्षा लेनी चाहिए।प्रत्येक बात खुद ही अनुभव करके,आत्म-निरीक्षण करके सीखी जाए यह जरा मुश्किल है।जहर खाने से मृत्यु होती है अब जहर खाकर देखने की जरूरत नहीं है।अतः अपना अनुभव और आत्म-निरीक्षण भी हर जगह काम नहीं आता है।दूसरों को गिरते देखकर सम्हल जाना भी बुद्धिमानी है।
  • परंतु इसका अर्थ यह नहीं है की हम आत्म-निरीक्षण करना छोड़ दे।ज्यादातर हमारी नजर दूसरों पर होती है,खुद पर नहीं होती है।उदाहरणार्थ कोई विद्यार्थी गणित के सवाल को हल करने पर अक्सर अपनी गलती खुद नहीं ढूंढ पाता है।उसकी गलती शिक्षक या अन्य व्यक्ति द्वारा ही बताई जाती है।
  • जब हमारी नजर दूसरों की तरफ होती है,दूसरों की गलतियों,कमियों की तरफ होती है तो हम आलोचना भी दूसरों की ही करते हैं स्वयं की नहीं।दूसरों की गलतियों,त्रुटियों,दोषों को निकालने में हमें खुशी होती है परंतु ऐसा करने से हमारा अहंकार बढ़ता है।
  • अतः कोशिश यही करें कि अपनी गलतियों,त्रुटियों पर ध्यान दें।अपना आत्म-निरीक्षण करने का अभ्यास करें जिससे दूसरों के दोषों,दुर्गुणों,कमियों व त्रुटियों को देखने का अवसर ही न मिले लेकिन दूसरों से शिक्षा लेना भी न भूले।

5.आत्म-निरीक्षण का दृष्टांत (Parable of Introspection):

  • गणित के एक विद्यार्थी के शराब की लत लग गई। गणित विषय समझ में न आने के कारण उसने कोचिंग सेंटर ज्वाइन करने का निश्चय किया।वह कोचिंग संस्थान गया और गणित पढ़ाने का निवेदन किया।गणित शिक्षक ने उसे लौटा दिया और कहा कि बाद में आना।वह यह सोचकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ की कोचिंग संस्थान छात्र-छात्राओं को अपने संस्थान में पढ़ने के लिए प्रलोभन देते हैं परंतु ये मुझे वापस लौटने के लिए बोल रहे हैं।
  • गणित के विद्यार्थी ने कहा कि एडवांस फीस ले लें परंतु गणित शिक्षक ने फिर दोहराया कि बाद में आना।घर आकर उसने आत्म-निरक्षण किया कि उसे कोचिंग के लिए क्यों मना किया गया? उसकी समझ में आ गया कि शराब पीने के कारण उसे लौटाया गया है।
  • उसने शराब पीना छोड़ दिया।कुछ दिन बाद वह अपने पिता को साथ लेकर कोचिंग संस्थान गया।उस विद्यार्थी ने कहा कि मैंने शराब पीना छोड़ दिया है,चाहे तो आप मेरे पिताजी को पूछ लें।यदि आप उचित समझे तो मुझे गणित का अध्ययन करने हेतु अनुमति दें।
  • गणित शिक्षक ने उसके पिताजी से पूछा तो पिताजी ने हाँ में सिर हिला दिया।गणित  शिक्षक ने उसे कोचिंग करने की अनुमति प्रदान कर दी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में आत्म-निरीक्षण द्वारा दोषों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Defects by Introspection?),आत्म-निरीक्षण द्वारा कमियों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Shortcomings by Introspection?) के बारे में बताया गया है।

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6.आर्कमिडीज का जन्म स्थान (हास्य-व्यंग्य) (Archimedes’ Birth Place) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक:गौरव,आर्कमिडीज का जन्म कहां हुआ था?
  • गौरव:सायराक्यूज (सिसली द्वीप) में।
  • गणित शिक्षक:नक्शे में बताओ,सायराक्यूज कहाँ है?
  • गौरव:नक्शे में बताते हुए,सायराक्यूज यहां है सर!
  • गणित शिक्षक:ठीक है,पवन तुम बताओ इसकी खोज किसने की?
  • पवन:गौरव ने सर।

7.आत्म-निरीक्षण द्वारा दोषों को दूर कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Overcome Defects by Introspection?),आत्म-निरीक्षण द्वारा कमियों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Shortcomings by Introspection?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आत्म-निरीक्षण से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Introspection?):

उत्तर:अपनी चेतना से जुड़ना,अपने आपका अवलोकन करना,अपने गुण व दोषों को स्वयं ढूंढना आत्म निरीक्षण है।चेतना से न जुड़ने पर अपने दोष-दुर्गुण दिखाई नहीं देते हैं।अतः उस संबंध में अनाड़ी बने रहने से हमारी सामर्थ्य एक प्रकार से सोई पड़ी रहेगी।इसके अभाव में जीवन निर्वाह तो किया जा सकता है परंतु यह चेतना का कठिनाई से ही बहुत ही थोड़ा सा भाग है।आत्मज्ञान,आत्मनिरीक्षण की महत्ता इतनी अधिक है कि उससे बढ़कर इस संसार में कोई ओर बड़ी उपलब्धि मानी ही नहीं गई।

प्रश्न:2.अपने आपको जानने की जरूरत क्यों है? (Why Do You Need to Know Yourself?):

उत्तर:हमारी जीवनचर्या का अधिकांश भाग चेतना के बल पर चलता है।उसी के बारे में अनभिज्ञ रहेंगे तो पशु और मनुष्य में अंतर ही क्या रह जाएगा? चेतना का निष्क्रिय पक्ष यदि सक्रियता में बदल जाए,संलग्न हो जाए तो हमारी अनेक समस्याओं,कमियों,त्रुटियों को हल किया जा सकता है।अपने आपको जाने बिना हमारे व्यक्तित्त्व का निर्माण और विकास भी नहीं हो सकता है।व्यक्ति के पतन का मूल कारण अपने आपको न जानने के कारण ही होता है।

प्रश्न:3.अपनी कमियों पर विजय कैसे प्राप्त कर सकते हैं? (How Can You Overcome Your Shortcomings?):

उत्तर:आपके शरीर की क्या स्थिति है,कैसी दशा है,यह महत्वपूर्ण नहीं है।महत्त्वपूर्ण है आपके मन और आत्मा की दशा और स्थिति।आत्म-निरीक्षण,आत्मज्ञान और मन की शक्ति से आप असंभव को भी सम्भव कर सकते हैं,पहाड़ सी कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं,अपनी पीड़ा और कष्ट को महान सफलता में बदल सकते हैं।जरूरत है अपना आत्म-निरीक्षण करते हुए कठोर परिश्रम और उत्साह से निरंतर अभ्यास करने की।इससे आप अपनी साधना में सफल हो जाते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा आत्म-निरीक्षण द्वारा दोषों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Defects by Introspection?),आत्म-निरीक्षण द्वारा कमियों को दूर कैसे करें? (How to Overcome Shortcomings by Introspection?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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