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All Round Development of Children

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1.बच्चों का सर्वांगीण (All Round Development of Children),बच्चों का सर्वांगीण विकास कैसे करें? (How to Do All Round Development of Children?):

  • बच्चों का सर्वांगीण (All Round Development of Children) करना त्याग,तपस्या और साधना है।माता-पिता,अभिभावकों के लिए सबसे बड़ी संपदा हैं बच्चे।अतः उन्हें सर्वाधिक महत्त्व बच्चों के लालन-पालन,शिक्षा व संस्कार पर दिया जाना चाहिए।लेकिन माता-पिता अपने इस सबसे प्रमुख कर्त्तव्य की उपेक्षा करते हैं शायद उन्हें इसका आभासी नहीं होता।
  • माता-पिता अपने धन-दौलत,मकान-जायदात,अपने जॉब और व्यवसाय के प्रति सचेत रहते हैं और कोई लापरवाही नहीं करते हैं।परंतु माता-पिता की सबसे प्रमुख संपदा बच्चे उनकी उपेक्षा,लापरवाही का शिकार हो रही है।बच्चों को सही शिक्षा,संस्कार व व्यक्तित्त्व निर्माण के लिए उनके पास समय नहीं है।
  • माता-पिता व अभिभावक बच्चों को अच्छे स्कूल,कान्वेंट स्कूल,कोचिंग इत्यादि में भेजकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं।फलस्वरूप बालक संस्कार,शिष्टाचार,स्वावलंबी बनने के बजाय पटरी से उतर जाता है और वह असभ्य,उच्छृंखल,अनुशासनहीन,उद्दंड,कामचोर हो जाता है।
  • माता-पिता को यह समझ में ही नहीं आता है कि इतनी अच्छी स्कूल में प्रवेश दिलाने व कोचिंग की व्यवस्था करने की बावजूद अशिष्ट व असभ्य कैसे बन गया।
  • वस्तुत: आज की इस टकसाली शिक्षा में बच्चों को केवल साक्षर होना सिखाया जाता है।संस्कारों का निर्माण और आत्मनिर्भर बनाने का उत्तरदायित्व माता-पिता को ही उठाया उठाना चाहिए।
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2.माता-पिता की महत्त्वाकांक्षा का दुष्परिणाम (The Consequences of Parents’ Ambitions):

  • माता-पिता धन कमाने और जाॅब में इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चों को उनका सानिध्य-साहचर्य नहीं मिल पाता है फलस्वरूप बालक भावना व संवेदना शून्य होकर कुंठित एवं विकृत बन जाते हैं।माता-पिता की बच्चों से अपेक्षाएं तो अनगिनत है और उन महत्त्वाकांक्षाओं का भार बच्चों पर डाल देते हैं।बच्चे माता-पिता की अपेक्षा के अनुरूप नहीं कर पाते हैं साथ ही उनका जो स्वाभाविक विकास होना चाहिए वह नहीं हो पाता है।
  • कई बच्चे माता-पिता की अपेक्षाओं एवं आकांक्षाओं का तीव्र विरोध भी करते हैं तथा अपनी रुचि एवं क्षमता को बताते भी है परंतु माता-पिता उसकी आवाज को दबा देते हैं।बच्चे की रुचि,क्षमता और योग्यता के अनुसार बच्चे का विकास सहज,स्वाभाविक होता है।
  • कुछ माता-पिता तो अपने बच्चों की रुचि,क्षमता और योग्यता का ख्याल रखते हैं अतः वे होनहार,प्रतिभाशाली तथा चमत्कारिक व्यक्तित्त्व से संपन्न हो जाते हैं।परंतु अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को न समझते हैं और न समझाना चाहते हैं। फलस्वरूप बच्चों का व्यवहार उनके लिए समस्या बन जाता है।
  • ऐसे बच्चों के व्यवहार का गहराई से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि उनका असभ्य व उद्दंड व्यवहार माता-पिता अथवा अभिभावकों की उपेक्षा,प्यार की कमी,तिरस्कार,प्रशंसा का अभाव एवं महत्त्वाकांक्षाओं का थोपना आदि था।ऐसे बच्चों के अभिभावक उन्हें अपरिपक्व,नासमझ,केवल बच्चा तथा अनुभवहीन समझने की भूल करते हैं और उनसे अपनी अपेक्षाओं को पूरी करने के सपने संजोये रहते हैं।
  • बालक जब माता-पिता व अभिभावक की अपेक्षाओं को पूरी नहीं करते हैं तो उनकी तुलना दूसरे बच्चों के साथ करते हैं।इससे बच्चों में हीनभावना,कुंठा,उदासीनता,अकर्मण्यता इत्यादि पनपने लगती है।
  • बच्चों को कोरे कागज के समान समझा जाता है और अभिभावक यह समझते हैं कि कोरे कागज पर कुछ भी लिखा जा सकता है।परंतु उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे केवल कोरे कागज की तरह नहीं होते हैं बल्कि अपने साथ वे पूर्व जन्मों के संस्कार लेकर आते हैं और बाल्यकाल में वे संस्कार सुप्त अवस्था में रहते हैं।कभी-कभी माता-पिता की महत्त्वाकांक्षाओं का तालमेल बच्चों के पूर्व जन्म के संस्कारों से बैठ जाता है और वे विकास की ऊंचाइयाँ को छू लेते हैं।परंतु अधिकतर माता-पिता की महत्त्वाकांक्षाओं,अपेक्षा का तालमेल बच्चों के संस्कारों से तालमेल नहीं बैठता है।तब बच्चे वैसा नहीं कर पाते हैं जैसा अभिभावक चाहते हैं।
  • बच्चे माता-पिता पर निर्भर रहने के कारण वे बच्चों पर अपना पूरा अधिकार जताते हैं और उन्हें अपने अंकुश में रखना चाहते हैं।माता-पिता अपने सपने को साकार करना चाहते हैं परंतु बच्चों के सपने का ध्यान नहीं रखते हैं और इस तरह वे बच्चों की ऊर्जा,जोश,उत्साह,उमंग को मार देते हैं।वे अपनी धुन एवं चाह में बच्चों के साथ अन्याय करते हैं।वे बच्चों का बचपन और मासूमियत छीन लेते हैं।ज्यादातर अभिभावक बच्चों के उठने-बैठने,खेलने-कूदने,बोलने-चलने,हंसने-बात करने पर पाबंदियां लगा देते हैं।वे बच्चों के जीवन को अपने अनुसार चलाने की कोशिश करते हैं।
  • कई माता-पिता तो बच्चों द्वारा आज्ञा पालन न करने पर कठोर दंड देते हैं जैसे किसी शत्रु के साथ व्यवहार किया जाता है।क्रोधावेश में वे बच्चों को मारना-पीटना,जोर से थप्पड़ मारना,लकड़ी से पीटना,चप्पल या बेल्ट से मारना,कान खींचना,उठक-बैठक कराना,मुर्गा बनाना,कमरे में बंद कर देना,डाँटना-डपटना,गाली गलौज करना आदि से बच्चों के कोमल एवं संवेदनशील मन पर ऐसी छाप छोड़ देते हैं जिससे बालक पूरी जिंदगी नहीं भूल पाते हैं।
  • कई बार तो बच्चों के गहरी शारीरिक और मानसिक चोटें उनके व्यवहार को असामान्य बना देती है।अभिभावकों को बच्चे दोषी मानते हैं और आश्चर्य की बात तो यह कि उनके कारण उनके बच्चों को भविष्य में किस तरह के विकृत व्यवहार,हीनभावना का सामना करना पड़ेगा,इसका पता ही नहीं होता है।इस प्रकार माता पिता का बच्चों का भविष्य बनाने-बिगाड़ने में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

3.बच्चों को अभिभावकों के अपनत्व की आवश्यकता (Children Need Parental Affection):

  • बालकों के समुचित विकास के लिए अभिभावकों को बच्चों को प्यार और स्नेह की आवश्यकता होती है जिससे बच्चों की भावनाएँ एवं संवेदनाएं विकसित होती है।माता-पिता के प्रेम,सहानुभूति,अच्छे कार्य के लिए प्रशंसा तथा उनका साथ पाने के लिए तड़पता है।बच्चा जब अकेलापन महसूस करता है तब लाड-प्यार की अधिक आवश्यकता होती है।बच्चों की भावनात्मक प्यास बुझाने के लिए केवल उपहार देना ही पर्याप्त नहीं होता है बल्कि उनके साथ समय बिताना उससे भी ज्यादा जरूरी होता है।अच्छा तो यह है कि रात्रि को बच्चों के पढ़ते समय वे स्वयं भी उनके साथ बैठे और उनकी पढ़ाई में सहयोग करें तथा स्वयं भी कुछ समय घंटे-दो घंटे पढ़ने का समय दें।
  • बच्चों के स्वाभाविक,सहज एवं समुचित विकास के लिए बच्चों की पढ़ाई संबंधी एवं अन्य समस्याओं को जाने-समझें और आवश्यक सहायता-सहयोग देकर उन्हें दूर करने की कोशिश करें।बालकों के पढ़ाई तथा अन्य कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।
  • बच्चों की अधिकांश समस्याओं का समाधान बड़ी आसानी से हो सकता है यदि अभिभावक यह समझ लें कि बच्चों की यह उम्र सीखने की है।इसी उम्र से सीखना प्रारंभ करते हैं अतः वह धीरे-धीरे सीखता है।
  • अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ,साधन जुटाएँ और बच्चों को अपनी गति से सीखने दें।बच्चों को संस्कारवान बनने में आवश्यक सहयोग दें।स्वयं का आचरण व आदतें भी अच्छा एवं पवित्र रखें जिससे बच्चे पर अनुकूल प्रभाव पड़े।
  • बच्चे को अपने भविष्य का निर्माण,लक्ष्य का निर्धारण स्वयं करने दें और उसमें आवश्यक सहयोग दें।अपनी इच्छाओं एवं कामनाओं को बच्चों पर न थोपें।ऐसा करने से बच्चों की रुचि,क्षमता और योग्यता का भरपूर उपयोग हो सकेगा और उसका जीवन कुण्ठा,निराशा,हताशा,उदासी एवं घुटन से मुक्त रहेगा।वे गलत रास्ते का चुनाव नहीं करेंगे।
  • अभिभावकों को स्मरण रखना चाहिए कि वे बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माता नहीं है,केवल निर्माण में सहायक हैं।
  • अभिभावकों को बच्चों की रुचि और सुप्त प्रतिभा को जानना-समझना चाहिए और उसका पता लगाकर उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।हर युग तथा पीढ़ी में परिवर्तन आता रहता है।पुरानी पीढ़ी की जो मान्यताएँ,परंपराएं,सोच-विचार,रंग-ढंग,रीति-रिवाज आदि जो थे ठीक वही नई पीढ़ी व आधुनिक युग के नहीं है।इसलिए नहीं पीढ़ी से तालमेल बिठाने की कोशिश करें।

4.बच्चों के निर्माण में सहयोग कैसे दें? (How to Help with the Creation of Children?):

  • बच्चों का मन बहुत संवेदनशील एवं कोमल होता है।अतः बच्चा अपने परिवेश व सचराचर जगत की प्रत्येक गतिविधि से प्रभावित होता है।अतः उन्हें अपने ढंग से विकसित होने का पूर्ण अधिकार है और जब वह अपने इस अधिकार को प्रयासों एवं प्रतिरोधों द्वारा प्रकट करने का प्रयास करता है तो अभिभावक उसे अपनी अवज्ञा,अनुशासनहीनता मान लेने की भूल करते हैं तथा उसे दंड देने के लिए तैयार हो जाते हैं।जबकि बालक का वह व्यवहार केवल उसके अपने ढंग से विकसित होने का एक संघर्ष मात्रा होता है।
  • इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चों को स्वच्छंद एवं मनमानी करने देना चाहिए।यदि बच्चों के कदम बहकते हैं,भटकते हैं तो उन्हें रोकना चाहिए अन्यथा उन्हें स्वयं चलने देना चाहिए।
  • जो बच्चे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं उन्हें आगे बढ़ने में भरपूर सहयोग देना चाहिए।बच्चों में चिंतन-मनन एवं सृजनशीलता को विकसित करने के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
  • यदि बच्चे माता-पिता अभिभावकों का सम्मान नहीं कर रहा है तो उन्हें अपना आत्म-विश्लेषण करना चाहिए।बच्चों से संवाद करना एक कला है उसे सीखना चाहिए।यदि बालक बुरी संगत के कारण बहक रहा है और माता-पिता की अवज्ञा कर रहा है तो उन्हें प्रेमपूर्वक बुरी संगत के दोषों से अवगत कराना चाहिए।
  • बच्चों को उपदेश देने के बजाय अपने आचरण से पाठ पढ़ाना चाहिए।बच्चे माता-पिता,शिक्षक,मित्रों के आचरण से अधिक सीखता है।यदि बालक कुछ गलत कर रहा है तो केवल इतना आभास करा देने की आवश्यकता है कि उनके लिए क्या उचित है और क्या अनुचित ताकि बच्चों में स्व-विवेक जाग्रत हो सके,वे स्वयं निर्णय ले सकें और यही बात पढ़ाई के संबंध में भी है।
  • उन्हें वही पढ़ाया जाए जिसमें रुचि,क्षमता व योग्यता है।यदि रुचि है परंतु क्षमता नहीं है तो बच्चों को अवगत करा देना चाहिए की क्षमता अर्जित करने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ेगा? अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को बच्चों पर न थोपें बल्कि उनके अंदर अंतर्निहित क्षमताओं को विकसित करने का प्रयास करें और वह भी अपेक्षित रूप में।
  • माता-पिता बालक को हर तरह की शिक्षा देना चाहते हैं परंतु निर्भीकता और स्वतंत्रता की शिक्षा नहीं देना चाहते हैं क्योंकि इससे उनको अपनी सत्ता पर खतरा नजर आता है।अगर बालक स्वतंत्र और निडर है तो यह समझना चाहिए कि वह हर तरह से शिक्षित है।डरपोक और पराधीन बालक अनपढ़ बच्चों से भी गया-बीता है।अतः यदि अभिभावक बच्चों को समझने-समझाने की बजाय खुद को समझें-समझाएं तो ज्यादा उचित होगा।

5.सर्वांगीण विकास का दृष्टांत (Example of All-Round Development):

  • एक विद्यार्थी की गणित में बहुत लगन थी उसने 20 वर्ष तक गणित का गंभीर अध्ययन,मनन-चिंतन किया।इसके पश्चात वह अपने नगर में आया तो उत्सुक नगरवासियों ने उसे घेर लिया तथा काफी भीड़ इकट्ठी हो गई।किसी ने पूछा तुमने गणित में गंभीर अध्ययन किया,आखिर इतने वर्षों में क्या सिद्धि प्राप्त की?
  • विद्यार्थी अहंकार में था सो बोला मैं एक और दो को बराबर सिद्ध करके बता सकता हूं।उसने नोटबुक निकाली और सचमुच एक को दो के बराबर सिद्ध करके बता दिया।इसी प्रकार उसने गणित के कई करतब दिखाए।
  • विद्यार्थी की मां भी वहां खड़ी थी।उसने उससे पूछा: ये बताओ यह बाजीगरी दिखाकर तुम्हें क्या लाभ हुआ? 20 वर्षों में तेरी राह देखते-देखते पिताजी की मृत्यु हो गई।मैं वर्षों से अपाहिज जीवन जी रही हूं,पर तेरा सहारा न मिल सका।
  • इतने वर्षों के अध्ययन करने के बाद भी तुम्हारे अंदर संवेदना का अंकुर नहीं फूट सका।यदि इतने वर्ष तू अपने माता-पिता के साथ रहकर अध्ययन करता और लोगों की तथा जो तुझ पर निर्भर थे उनकी सहायता-सहयोग करता तो तू वास्तव में पुण्य का अधिकारी होता।विद्यार्थी का मिथ्या अहंकार चूर हो चुका था।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों का सर्वांगीण (All Round Development of Children),बच्चों का सर्वांगीण विकास कैसे करें? (How to Do All Round Development of Children?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित की पुस्तक की कीमत (हास्य-व्यंग्य) (The Price of Math Book) (Humour-Satire):

  • छात्र (पुस्तक विक्रेता से):मुझे यह पुस्तक बेहद पसंद है परंतु इसकी कीमत पसंद नहीं है।
  • पुस्तक विक्रेता:फिर तो यह पुस्तक खरीद ही लो।एक बार पढ़ते ही इसकी कीमत तो गायब हो जाएगी (पुस्तक की कीमत वाला पेज गायब हो जाएगा)।

7.बच्चों का सर्वांगीण (Frequently Asked Questions Related to All Round Development of Children),बच्चों का सर्वांगीण विकास कैसे करें? (How to Do All Round Development of Children?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बच्चों की जिज्ञासा को कैसे पहचानें? (How Do You Recognize Children’s Curiosity?):

उत्तर:बच्चे बड़े जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं।उनकी बातों को समझना और उन पर अमल करना जरूरी हो जाता है,लेकिन ध्यान केवल इस बात का रखना आवश्यक होता है कि आपके बच्चे जो चाह रहे हैं,उसका जवाब कैसे दें,किस ढंग से दें कि उन्हें आसानी से बात समझ में आ जाए।इसके लिए बहुत जरूरी है प्यार की भाषा बोलने की।बच्चे बहुत ही कोमल भावनाओं वाले होते हैं।उनका मन-मस्तिष्क ऊर्जा से लबालब भरा होता है।इसलिए उन्हें सोच-समझकर समझाना चाहिए।ऐसा करने पर उन्हें एक तो अपनी बात आसानी से समझ में आ जाएगी,दूसरे वह फिर दोबारा न तो उस बात को जानने की इच्छा प्रकट करेंगे और न जिद्दी बच्चे कहलाएंगे,अज्ञानी भी नहीं बने रहेंगे।

प्रश्न:2.क्या बच्चों की रुचियों पर ध्यान देना चाहिए? (Should I Pay Attention to My Children’s Interests?):

उत्तर:आज के आधुनिक युग में बच्चे बहुत जल्दी बहुत कुछ सीख जाते हैं।चाहे वह कोई भी कठिन कार्य क्यों न हो? नृत्य करना तो बहुत जल्दी आ जाता है।इसके अलावा गाना भी वह गा लेते हैं।बस,जरूरत है बच्चों की रुचियों को बचपन से पहचानने की।उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन अवश्य दें।बहुत से माता-पिता बच्चों की रुचियों पर ध्यान नहीं देते हैं।वह यही सोचते हैं कि बच्चे सिर्फ पढ़ने में मन लगाएं।पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों की प्रत्येक गतिविधियों पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है।तभी बच्चों के व्यक्तित्त्व का विकास हो पाएगा।उन्हें समझने का प्रयास माता-पिता को अवश्य करना चाहिए।5-7 साल की अवस्था में आते ही बच्चे के व्यक्तित्त्व का विकास प्रारंभ हो जाता है।अगर बच्चा नृत्य करें तो उसे नृत्य की शिक्षा अवश्य दिलाएं या फिर बच्चा गाना गाए तो उसे गाना सीखाना प्रारंभ करें।पढ़ाई के साथ-साथ बच्चे को उसकी खुशियों के अनुसार शिक्षा दें।उन्हें रोके नहीं।अक्सर छोटे बच्चों को माँ इसलिए रोक देती है,कहीं गिर न जाए,कहीं उसे चोट न लग जाए।बच्चों का क्या,कई बार गिरेंगे,जब तक गिरेंगे नहीं,मजबूत कैसे होंगे।बच्चे की रुचि जिस चीज में हो,उसमें उसे आगे बढ़ाने का प्रयास अवश्य करें।

प्रश्न:3.बच्चों की बातों पर ध्यान क्यों देना चाहिए? (Why Pay Attention to What Children Say?):

उत्तर:कभी-कभी बच्चे भी बड़ी समझदारी की बात कर जाते हैं,जो बड़ों के लिए लाभदायक सिद्ध होती है।जो माता-पिता अपने बच्चों की बातें गौर से सुनते हैं,वह अपने बच्चों की हर सही अथवा गलत बातों में क्या अच्छा है और क्या बुरा है,किससे कैसे बात करें आदि के लिए बच्चों को टोकते रहते हैं,जिससे बच्चों के व्यक्तिगत विकास में बढ़ोतरी होती है।साथ ही कभी-कभी बच्चे घर में छोटी-छोटी चीजों के बारे में बताकर हमारा बचाव भी कर सकते हैं।मसलन कमरे में बिल्ली या बंदर घुस गया या खेल-खेल में कोई कीमती चीज हाथ लग गई।वह दौड़कर चीज अपने माता-पिता को दे देगा।तब आप सोचेंगे कि आपका बच्चा कितना होशियार है।परंतु यदि अपने बच्चों की बातों पर आप ध्यान नहीं देंगे तो आप नुकसान भी उठा सकते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चों का सर्वांगीण (All Round Development of Children),बच्चों का सर्वांगीण विकास कैसे करें? (How to Do All Round Development of Children?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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