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3 Tips to Keep Devotion for Students

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1.छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Devotion for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Reverence for Mathematics Students):

  • छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Devotion for Students) के आधार पर श्रद्धा का जीवन में महत्त्व और उपयोग जान सकेंगे।इसके पूर्व लेख में संदेह के बारे में बताया गया था कि एक संदेहशील छात्र-छात्रा और व्यक्ति की क्या स्थिति हो सकती है? किसी नियम,सिद्धांत अथवा किसी बात को न मानना संदेह (संशय) कहा जाता है।विज्ञान में खोज,आविष्कार करने के लिए संदेह करके प्रमाण,तथ्य जुटाए जाते हैं,परीक्षण किए जाते हैं और जब प्रयोगशाला में अथवा ओर कहीं वह नियम,सिद्धांत प्रमाणित हो जाता है तभी उसे स्वीकार किया जाता है।सन्देह करते-करते कोई छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि उसका जीना मुश्किल हो जाता है।जीवन में भौतिक प्रगति के लिए सन्देह और विश्वास की आवश्यकता है तो जीवन को सुख-शांति और संतोष से जीने तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रद्धा की आवश्यकता होती है।
  • श्रद्धा से तात्पर्य है सन्देह रहित विश्वास जो कि प्रज्ञा के (अनुभव सिद्ध ज्ञान) द्वारा ही प्राप्त किया जाता है।आत्मा के अनन्त गुण है।श्रद्धा वह आत्मिक शक्ति है जिसके आधार पर हमारे जीवन का रूपान्तरण हो जाता है।व्यावहारिक रूप में जब हमारे अंदर प्रेम,करुणा,संवेदना,सत्य,ईमानदारी इत्यादि गुण प्रकट हो रहे हों तथा बढ़ रहे हों तो समझा जाना चाहिए कि हम श्रद्धा की ओर बढ़ रहे हैं।वह आत्मिक शक्ति जो हमें शुभ कर्मो तथा सत्य की ओर गतिमान करती है वह श्रद्धा है।यदि हमारा जीवन असत्य,दुराचरण,अनैतिक व दुष्कर्मों की ओर बढ़ रहा हो तो वह अन्धश्रद्धा है।
  • गणित और विज्ञान का ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रमाण,युक्ति व तर्क तथा परीक्षण की आवश्यकता होती है जो तार्किक ज्ञान के द्वारा जुटाए जाते हैं।परंतु श्रद्धा को प्रमाण,युक्तियों तथा वैज्ञानिक परीक्षणों की तरह सिद्ध और परीक्षण नहीं किया जा सकता है बल्कि श्रद्धा का एहसास दिव्य गुणों और गहन अनुभूति के द्वारा होता है।
  • गणित और विज्ञान का ज्ञान प्राप्त करते-करते छात्र-छात्राएं और व्यक्ति सन्देहशील और तर्क के द्वारा जीने के आदी हो जाते हैं जबकि श्रद्धा रखने वाले छात्र-छात्राएं अपने अंदर संतोष और शांति धारण करते हैं।सन्देहशील प्रवृत्ति हमारी शक्ति को खण्ड-खण्ड कर देती है क्योंकि विज्ञान के ज्ञान का प्रभाव हमारे जीवन पर भी पड़ता है।श्रद्धा हमारी शक्ति को एकाग्र करती है।
  • वैज्ञानिक ज्ञान के बिना श्रद्धा,अंधविश्वास और पाखंड में बदलने का खतरा रहता है तो बिना श्रद्धा के वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर जीवन में दुःख,पीड़ा,असंतोष में बदलने का खतरा रहता है।
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2.जीवन में श्रद्धा भी आवश्यक है (Devotion is Also Necessary in Life):

  • जीवन को सुख-शान्ति और सन्तोष के साथ जीने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता है।आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें श्रद्धायुक्त होना होगा।धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान हमें भौतिक ज्ञान और वैज्ञानिक ज्ञान से उपलब्ध नहीं हो सकता है।परंतु आधुनिक शिक्षा में केवल भौतिक विषयों की शिक्षा प्रदान की जाती है इसलिए छात्र-छात्राओं में श्रद्धा की भावना या तो पाई नहीं जाती है या कम से कम होती जाती है।क्योंकि श्रद्धावान लभते ज्ञानं अर्थात् श्रद्धावान को ही ज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान,तत्त्व ज्ञान) की प्राप्ति होती है।संशयात्मा विनश्यति अर्थात् आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए संशय में पड़ा हुआ व्यक्ति नष्ट हो जाता है अर्थात् पतित हो जाता है।
  • अब यदि छात्र-छात्राओं को भौतिक और विज्ञान,गणित इत्यादि का ज्ञान उपलब्ध कराते रहेंगे तो उनकी नींव सन्देह और विश्वास पर टिकी रहेगी और सन्देह तथा विश्वास का जब निर्माण हो जाएगा तो उस पर श्रद्धा का महल नहीं खड़ा किया जा सकेगा।
  • श्रद्धा और विश्वास का निर्माण हमारे अलग-अलग केन्द्रों पर होता है।सन्देह व विश्वास का निर्माण बुद्धि व मन के द्वारा होता है जबकि श्रद्धा हमारे हृदय में महसूस की जाती है।ईमानदारी,सच्चाई,सत्यता,करुणा,प्रेम इत्यादि गुणों को भौतिक प्रयोग और परीक्षणों के द्वारा नहीं जाँचा जा सकता है।हमारा शरीर केवल हड्डी,मांस व चमड़ी इत्यादि का ढांचा नहीं है बल्कि इसके साथ मन और आत्मा भी जुड़े हुए हैं।शरीर,मन और आत्मा का संचालन और नियंत्रण चेतन शक्ति से होता है।हमारी संवेदनाएं,विचार,सोच,स्वभाव,मनन-चिंतन,कर्म इत्यादि चेतन शक्ति से प्रभावित होते हैं।चेतन शक्ति को भौतिक यन्त्रों और प्रयोगशाला में परीक्षण नहीं किया जा सकता है।
  • हमारा आचरण जितना श्रद्धायुक्त होता जाएगा उतने ही आत्मा पर छाए हुए विकार (दोष,दुर्गुण) दूर होते जाएंगे और आत्मा स्वच्छ,निर्मल और पवित्र होती जाएगी।श्रद्धा हमें प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देती है परंतु जो व्यक्ति श्रद्धालु होते हैं उनके जीवन व आचरण को देखकर श्रद्धा की पुष्टि होती है।श्रद्धावान व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी शांति,धैर्य और आशा का त्याग नहीं करते हैं।विपरीत परिस्थिति में भी वे ईमानदारी,परोपकार,दया,त्याग,संतोष,उत्साह,सत्य जैसे अनेक गुणों का पालन करते हैं।
  • आस्था में हमारा समस्त व्यक्तित्त्व सम्मिलित रहता है अतः आस्था का त्याग किसी भी स्थिति में संभव नहीं है।
    देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले क्रांतिकारी,देशभक्त व्यक्ति भी असफलताएं एवं निराशा के मध्य भी अपने उद्देश्य में आस्था रखते हैं,अपने उद्देश्य से विचलित नहीं होते हैं भले उन्हें कितनी ही यातनाएं दी जाए यहाँ तक कि प्राण भी गंवाना पड़े तो भी आस्था ही उन्हें संघर्ष करने की प्रेरणा देती है।
  • विज्ञान की दृष्टि स्थूल पर पड़ती है परंतु श्रद्धा की नज़र सूक्ष्म पर पड़ती है जिसे देखा नहीं जा सकता है केवल अनुभव किया जा सकता है।
  • कई छात्र-छात्राएं विज्ञान का अध्ययन करते-करते यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि जो चीज न तो दिखाई देती है न उसे प्रमाणों के द्वारा सिद्ध किया जा सकता है फिर उसे क्यों स्वीकार करें? वस्तुतः कई चीजें हमें दिखाई नहीं देती है जैसे हवा,अणु,परमाणु परन्तु वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर उसे स्वीकार करते हैं और उनमें विश्वास करते हैं।इसी प्रकार श्रद्धा आत्मिक शक्ति है जो दिखाई नहीं देती है परंतु अनुभव की जाती है और दया,करुणा इत्यादि गुणों के द्वारा हमें व्यवहार में दिखाई देती है।
  • बुद्धि और मन पर नियंत्रण न रखा जाए तो हमारे अंदर अहंकार (तामसिक),असंतोष,वासना,तृष्णाएँ  पनपने लगते हैं जो हमारे विकास,प्रगति और उन्नति में बाधक है।श्रद्धा के द्वारा ही इन पर अंकुश लगाया जा सकता है और अहंकार को सात्त्विक प्रवृत्ति की ओर मोड़ा जा सकता है।बुद्धि को सद्बुद्धि की ओर अग्रसर किया जा सकता है।

3.छात्र-छात्राएं श्रद्धायुक्त कैसे हों? (How Can Students be Devout?): 

  • छात्र-छात्राओं के प्रारंभिक 25 वर्ष बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।जीवन के इस प्रारंभिक काल में जैसी नींव का निर्माण होता है वैसी ही प्रवृत्ति,गुणकर्म और स्वभाव वाले आगे के जीवन में बनते जाएंगे।आजकल के शिक्षा संस्थानों तथा पाठ्यक्रम में संस्कारों और श्रद्धा का निर्माण किया नहीं जा सकता है क्योंकि सरकारें इसे आवश्यक नहीं मानतीं है।यदि कुछ सत्ताधीश इसे आवश्यक मानते भी हैं तो सत्ता में बने रहने तथा वोट की राजनीति के कारण इसे लागू नहीं करते हैं।अतः इसका उत्तरदायित्त्व ले-देकर माता-पिता,अभिभावक,छात्र-छात्राओं स्वयं पर तथा समाज को ही वहन करना होगा।पाश्चात्य संस्कृति,वातावरण के प्रभाव,फिल्मी चरित्रों तथा वर्तमान शैक्षिक वातावरण में पले-बढ़े हुए युवक-युवतियां इन बातों को अपनाना आवश्यक नहीं मानते हैं।परंतु जीवन क्षेत्र में उतरते हैं और कठिनाइयों,संकटों तथा जीवन की वास्तविक सच्चाइयों से उनका सामना होता है तो वे राह से भटक जाते हैं और आगे दुष्कर्मों,दुष्प्रवृत्तियों के दलदल में फंसते जाते हैं।
  • माता-पिता,अभिभावकों को शुरू से ही उनमें श्रद्धाभाव की नींव डालनी होगी।बालकों में श्रद्धा की नींव और अच्छे संस्कार डालने से पूर्व उन्हें स्वयं श्रद्धायुक्त आचरण प्रस्तुत करना होगा।क्योंकि बालक-बालिकाओं पर सबसे पहले और सबसे अधिक प्रभाव माता-पिता व अभिभावकों का ही पड़ता है।उन्हें अच्छे आचार-विचार का पालन करना होगा।
  • छात्र-छात्राओं को सत्संगति,सदाचारयुक्त व ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ने के लिए दें और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करें।स्वयं भी पढ़ें,यदि माता-पिता,अभिभावक पढ़े-लिखे नहीं है तो उन्हें ऐसी पुस्तकें लाकर दें और पढ़ने के लिए प्रेरित करें।स्वयं भी पढ़ना सीखना ओर भी ज्यादा उत्तम है।
  • तीसरा काम यह करना होगा कि बालक-बालिकाओं को धार्मिक कथा-कहानियाँ सुनाया करें।प्राचीन काल में बड़े-बुजुर्ग घर पर ही अच्छे संस्कारों का निर्माण कथा-कहानियों के द्वारा ही करते थे।
  • चौथा उपाय यह करना होगा कि उनके साथी-मित्र अच्छे हों अर्थात् बालक-बालिकाएं सत्संगति ही करें।बुरे-दुष्कर्म करने वाले छात्र-छात्राओं से दूर रखें।इसके लिए उन्हें अपने बालक-बालिकाओं पर सतत निगरानी रखनी होगी।
  • पाँचवा उपाय यह है कि बालक-बालिकाओं को कभी-कभी सत्संग,प्रवचन सुनने के लिए ले जाया करें।आधुनिक युग में भी अक्सर कई कथावाचक भारतीय संस्कृति के मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास करते-रहते हैं।
  • छठवाँ उपाय है कि बच्चों को घर पर सकारात्मक कार्यों जैसे भजन-कीर्तन,प्रार्थना,ध्यान-योग इत्यादि कार्यों में व्यस्त रखें।भाई-बहनों,भाई-भाइयों को आपस में मिलजुल कर किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करें।बालक-बालिकाएं यदि ये कार्य करने में आनाकानी करें अथवा चालाकी करें तो उन्हें अनुशासन में रखें।छोटे बच्चों को समझाने पर वे अपनी गलतियों में सुधार कर लेते हैं।
  • श्रद्धा की नींव एक दिन में नहीं लग जाएगी बल्कि उसके लिए माता-पिता,अभिभावक को रोजाना,धैर्य पूर्वक प्रयास जारी रखना होगा।उन्हें अपने रोजमर्रा की जिंदगी में अच्छे कार्यों को शामिल करना होगा।

4.श्रद्धालु होने का दृष्टान्त (Parable of Being a Devotee):

  • एक श्रद्धालु गणित अध्यापक थे जो हर किसी छात्र-छात्रा पर विश्वास कर लेते थे।अक्सर छात्र-छात्राओं के अभिभावक व छात्र-छात्राएं गणित की कोचिंग करते समय ऐसा विश्वास दिलाते थे कि वे उनकी फीस नहीं रखेंगे,आप तो पढ़ाओ।परंतु अक्सर छात्र-छात्राएं उनसे पढ़ लेते थे और या तो आधी-अधूरी फीस देते थे अथवा कई छात्र-छात्राएं तो पूरी फीस ही नहीं देते थे।गणित अध्यापक के घर-परिवार के सदस्य परेशान हो जाते थे।गणित अध्यापक कई बार सख्ती भी दिखाते लेकिन छात्र-छात्राओं पर उनकी सख्ती का कोई असर नहीं पड़ता था।फिर कोई न कोई छात्र-छात्रा बदमाशी करके और पढ़कर रवाना हो जाता था।
  • कई छात्र-छात्रा तो इतने बेशर्म होते थे कि एक बार बदमाशी करने के बाद फिर कोचिंग के लिए आ जाते थे और फिर बिना फीस दिए पढ़कर चले जाते थे।
  • एक दिन निराश होकर उनके घर वालों ने कहा कि इस तरह छात्र-छात्राओं को पढ़ाने का क्या फायदा है? गणित अध्यापक बोले कि क्या जीवन में फायदा और नुकसान ही सबसे बड़ी चीज है?
  • ये छात्र-छात्राएं मेरी श्रद्धा व आस्था की परीक्षा लेने के लिए बिना फीस देकर और पढ़कर चले जाते हैं।मेरा प्रयास फीस वसूल करने का रहता है लेकिन फीस दिए बिना भी निष्ठापूर्वक और आस्था के कारण मैं उनको पढ़ाता रहता हूं।यदि छात्र-छात्राओं के साथ पूर्ण सख्ती करने के बावजूद भी फीस नहीं देकर और पढ़कर चले जाएं तो यह उनका अपना तरीका है परंतु फीस की वजह से मैं अध्यापन का कार्य तो नहीं छोड़ सकता हूं।पढ़ाना मेरा कर्त्तव्य है,धर्म है और मेरी निष्ठा है।घरवाले उनके प्रत्युत्तर को सुनकर निरुत्तर हो गए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Devotion for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Reverence for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित का सवाल और जवाब (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Question and Answer) (Humour-Satire):

  • टिंकू,रिंकू को गणित के सवाल समझा रहा था।मान लो तुमने गगन को दीपावली की छुट्टियों में गृहकार्य करने के लिए तीन प्रश्नावली के 75 सवाल हल करने के लिए दिए हैं।यदि वह प्रतिदिन पन्द्रह सवाल हल करता है तो वह 75 सवाल कितने दिन में हल करेगा।
  • रिंकू:कुछ भी नहीं।
  • टिंकूःक्यों? लगता है तुम गणित के सामान्य गुणा,भाग भी नहीं जानते हो।
  • रिंकूःऐसा नहीं है,दरअसल तुम गगन के बारे में नहीं जानते हो,वह एक नंबर का आलसी है।

6.छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 3 Tips to Keep Devotion for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Reverence for Mathematics Students) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

3 Tips to Keep Devotion for Students

3 Tips to Keep Devotion for Students

प्रश्न:1.श्रद्धा का व्यावहारिक रूप क्या है? (What is the Practical Form of Reverence?):

उत्तर:अन्तःकरण की शक्ति श्रद्धा है।श्रद्धा को व्यावहारिक रूप में करुणा,उदारता,सेवा,आत्मीयता,सहिष्णुता के रूप में देखा जा सकता है।आस्था जब परिपक्व स्थिति में पहुँचती है तो उसे संकल्पशक्ति कहते हैं।यह तो विदित ही है कि संकल्पशक्ति के बल पर बड़े-बड़े और असंभव लगने वाले कार्यों को संपन्न किया जा सकता है।संकल्पशक्ति से संपन्न व्यक्ति सामान्य साधनों और सामान्य अवसरों के बल पर चमत्कारिक कार्य कर दिखाते हैं।संकल्पशक्ति किसी भी छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति में इतनी प्रचण्ड शक्ति से संपन्न कर देती है कि आरंभ में असंभव से लगने वाले लक्ष्य तक जा पहुंचते हैं।आस्था,निष्ठा,श्रद्धा,आत्म-विश्वास,संकल्पशक्ति से उत्थान,प्रगति और विकास की ऐसी चमत्कारिक सफलताएं अर्जित की जा सकती है जिन्हें देखकर लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।

प्रश्न:2.श्रद्धा कितने प्रकार की होती है? (How Many Types of Devotion are There?):

उत्तर:श्रद्धा कई प्रकार की होती है।आत्म-श्रद्धा,गुरु-श्रद्धा और भगवद् श्रद्धा ये तीन प्रकार की मूलभूत श्रद्धाएं हैं।इनके अलावा मातृ-श्रद्धा,पितृ-श्रद्धा,समाज-श्रद्धा,राष्ट्र-श्रद्धा इत्यादि भी श्रद्धा के ही रूप हैं।छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों को उपर्युक्त तीन पर तो आवश्यक रूप से श्रद्धा होनी ही चाहिए।श्रद्धा का जीवन में बहुत महत्त्व है।ये श्रद्धा जितनी प्रगाढ़ होगी उतना ही ज्ञान प्राप्त होगा।

प्रश्न:3.क्या श्रद्धा के बल पर हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं? (Can You Achieve Goals on the Strength of Devotion?):

उत्तर:श्रद्धा के बल पर हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं परंतु यह श्रद्धा अटल,अविचल होनी चाहिए।यदि अपने आप पर विश्वास है,आत्म-श्रद्धा है तो संसार में कोई भी भौतिक व अभौतिक लक्ष्य असंभव नहीं हो सकता है।श्रद्धा और विश्वास के बल पर हम अपार शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।इस श्रद्धा के बल से हम जो कुछ विचार करें,जो कुछ चाहे वही कर सकते हैं।आत्मज्ञान के लिए श्रद्धा और धैर्य अत्यंत आवश्यक सीढ़ियां हैं।सबसे पहले हमें अपने आप पर श्रद्धा रखनी चाहिए,फिर भगवद् श्रद्धा और गुरु श्रद्धा होनी चाहिए।इन तीन पर श्रद्धा होने पर ज्ञान का अनंत भंडार पाया जा सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Devotion for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा रखने की 3 टिप्स (3 Tips to Keep Reverence for Mathematics Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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