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Why is Indian Mathematician not at Top?

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1.भारतीय गणितज्ञ टाॅप पर क्यों नहीं हैं? (Why is Indian Mathematician not at Top?),भारतीय गणितज्ञ संसार में शिखर पर क्यों नहीं हैं? (Why are Indian Mathematician not at Peak?):

  • भारतीय गणितज्ञ टाॅप पर क्यों नहीं हैं? (Why is Indian Mathematician not at Top?)याकि भारत आधुनिक युग में संसार में शिखर पर क्यों नहीं है?कोई समय भारतीय गणितज्ञों,विद्वानों तथा वैज्ञानिकों की धमक पूरे संसार में थी।प्राचीन काल के महान गणितज्ञों आर्यभट,ब्रह्मगुप्त,भास्कराचार्य (द्वितीय) इत्यादि का यश आज भी संसार में फैला हुआ है।
  • भास्कराचार्य (द्वितीय) तक गणित के विकास में भारत यूरोप तथा अन्य देशों से किसी भी प्रकार से पीछे नहीं था।परंतु भास्कराचार्य के बाद उनकी तरह समझने वाला तथा उनकी परंपरा को निभाने वाला कोई भी गणितज्ञ लगभग 700-800 वर्षों में भारत में पैदा नहीं हुआ।इन 700-800 वर्षों में यूरोप व अमेरिका के देशों ने गणित व विज्ञान में इतनी उन्नति कर ली की गणित व विज्ञान का पर्याय यूरोप व अमेरिका के देशों को समझा जाने लगा। भारत में इतने वर्षों में गणितज्ञों तथा वैज्ञानिकों का अकाल सा पड़ गया।
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(1.)भारत में योग्य शासकों का अभाव (Lack of Qualified Rulers in India):

  • भारत में गणित व विज्ञान का विकास न हो पाने का सबसे मूल कारण है भारत में योग्य शासकों का अभाव।भारत के राजा-महाराजा आपस में लड़ते रहते थे।उनमें आपस में सद्भाव तथा एकता का अभाव था।जहाँ प्राचीन शासक विद्वानों का आदर व सम्मान करते थे,विद्वानों को प्रोत्साहित करते थे।वहीं मध्य काल के बाद भारतीय शासक आपस में लड़ते रहते थे यदि उनमें एकता भी थी तो बाहरी तथा दिखावटी थी।अंतर्मन से एकता नहीं थी।राणा सांगा के साथ जितने भी राजा-महाराजा थे उनमें आपसी अन्तर्कलह थी।वरना क्या कारण था कि बाबर जिसके पास आधी सेना भी नहीं थी राणा सांगा को हरा दिया।
  • विदेशी शासक आधुनिक विज्ञान के द्वारा जो खोजे हुई उनका उपयोग करके नए-नए अस्त्र-शस्त्रों से लड़ते थी जबकि भारतीय शासक परंपरागत अस्त्र-शस्त्रों से लड़ते थे।जब देश में भारतीय शासक विद्वानों का सम्मान करते थे तब तक विज्ञान व गणित का विकास होता रहा।जब विदेशी शासकों ने आक्रमण प्रारंभ कर दिया तो भारत में चारों ओर अशांति फैल गई।देश में अयोग्य शासकों के हाथों में बागडोर आ गई जिससे गणित का ही नहीं बल्कि अन्य सभी शास्त्रों का विकास अवरुद्ध हो गया।12वीं शताब्दी के बाद भारतवर्ष में कहीं भी कोई मौलिक तथा नवीन खोजें व अविष्कार नहीं हुआ।हजारों वर्षों के ध्यान,चिंतन,मनन के बाद जो भारतीय गणित भास्कराचार्य के रूप में गौरव के उच्चतम शिखर पर पहुंच गया था बाद के 700-800 वर्षों में रसातल में पहुंच गया।

(2.)शास्त्रों में पुरानी बातों को परम सत्य मानना (Consider old Things to be the Ultimate Truth in the Scriptures):

  • गुप्त काल तक भारत में ज्ञान-विज्ञान का विकास बहुत हुआ।परंतु गुप्त काल के बाद ब्राह्मण-धर्म ने स्वतंत्र चिंतन पर पाबंदी लगा दी।यह कैसी विडंबना है कि भारतीय शास्त्रों का अधिकांश भाग पंडितों द्वारा लिखा गया था।उनका चिंतन,मनन सर्वोत्कृष्ट था जिसके आधार पर भारत ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के देशों से कहीं भी पीछे नहीं था।वही ब्राह्मण धर्म नवीन चिंतन,नई खोजों तथा आविष्कारों का विरोधी हो गया।रक्षक ही भक्षक बन गए।पंडितों के द्वारा यह कहा जाने लगा कि पुरानी बातें तथा शास्त्रों में कही गई बातें परम सत्य है।इसलिए किसी भी विद्वान की हिम्मत पुरानी बातों का खंडन करने की नहीं होती थी।जब किसी शास्त्र या शिक्षा में नवीनता,प्रगतिशीलता तथा परिवर्तनशीलता पर पाबंदी लग जाए तो नए-नए आविष्कार,नई-नई खोजें कैसे सम्भव होगी?
  • महाकवि कालिदास ने कहा है कि “कोई वस्तु या ज्ञान पुराना होने से श्रेष्ठ नहीं होता है और न ही कोई वस्तु या ज्ञान नई या आधुनिक होने से ही श्रेष्ठ होती है।विवेकयुक्त बुद्धि और ज्ञान से परीक्षण करने पर दोनों में जो श्रेष्ठ हो उसे स्वीकार करना चाहिए।मूढ़ व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के विश्वास के अनुसार या शास्त्रों में लिखी हुई बातों को ही परम सत्य मानता है”।
  • बोधकथा (Narrative):
  • तीन पंडित थे उन्होंने काशी जाकर विद्याध्ययन किया था।पुराने जमाने में काशी ज्ञान के केंद्र के लिए प्रसिद्ध था।इसलिए विद्या ग्रहण के लिए जिज्ञासु काशी जाया करते थे।तीनों विद्वान शास्त्रों में लिखी हुई बातों को ही परम सत्य मानते थे।काशी में पढ़कर आने के बाद उन्होंने शास्त्रार्थ करना चालू कर दिया।धीरे-धीरे वे विद्वानों को परास्त करने लगे तो उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी।परन्तु प्रसिद्धि और सफलता से उनके मन में अहंकार पैदा हो गया है।अतः आगे से जिन विद्वानों को वे हराते तो उन्हें अपमानित करने लगे।वे अपने सामने किसी को भी कुछ नहीं समझते थे।तब किसी ने उन्हें बताया कि उस राज्य के विद्वान बहुत बड़े-चढ़े हैं उनको परास्त करके दिखाओ।तब तीनो विद्वान् उस राज्य के राजा के पास गए उन्होंने कहा कि आपके राज्य के विद्वानों से शास्त्रार्थ करना चाहते हैं।यदि वे हार जाएं तो हमारे चरण छुएं। राजा को यह बात बुरी लगी परंतु फिर भी उन्होंने अपने विद्वानों से शास्त्रार्थ करने को कहा।परंतु विद्वानों ने शास्त्रार्थ करने से मना कर दिया।राजा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई।राजा ने राज्य में मुनादी करा दी कि हमारे राज्य में तीन विद्वान् शास्त्रार्थ करने आए हैं,इसलिए जो कोई इनसे शास्त्रार्थ करना चाहता है वह राजा से आकर मिले। मुनादी कराने पर एक वृद्ध व्यक्ति आया।उसने कहा कि मैं राज्य के गौरव को रखने के लिए शास्त्रार्थ करूंगा।
  • राजा ने मंत्री से परामर्श किया तो मंत्री ने कहा कि इसको इजाजत दे दो क्योंकि यदि यह हार गया तो राज्य की ज्यादा इज्जत नहीं गिरेगी क्योंकि यह कोई प्रसिद्ध विद्वान तो है नहीं।परन्तु यदि ये तीनों विद्वान् इस वृद्ध से हार गए तो इनका अहंकार नष्ट हो जाएगा तथा राज्य का गौरव भी बढ़ेगा।राजा ने वृद्ध को नए कपड़े देकर कहा कि ये कपड़े पहनकर कल सभा में शास्त्रार्थ करने आ जाना।
  • दूसरे दिन वृद्ध व्यक्ति अपना एक गधा साथ लेकर आया और सभा में बोला कि यह गधा इन तीनों विद्वानों के प्रश्नों के उत्तर देगा।तीनों विद्वान भी अपने शास्त्र लेकर आ गए।पहले विद्वान ने प्रश्न किया कि पृथ्वी का मध्य बिंदु कहां है तब वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि मेरे गधे की बाईं टांग के नीचे।मैंने कई बार पृथ्वी को नाप कर देखा है,आप भी नापकर देख लें।पहला विद्वान् मन मसोस कर चुपचाप बैठ गया।तब दूसरे विद्वान् ने प्रश्न किया कि आकाश में कितने तारे हैं?तब वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि मेरे गधे की पूंछ में जितने बाल हैं उतने ही तारे हैं।आप अपने शास्त्र में देख ले और मेरे गधे की पूछ के बाल गिन लें, बराबर ही होंगे।दूसरे विद्वान ने अपनी बेइज्जती महसूस करते हुए बैठने में ही भलाई समझी।तब तीसरा विद्वान अपना मूल प्रश्न तो भूल गया और अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए पूछा कि मेरी दाढ़ी में कितने बाल है?तब वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि मेरे गधे के शरीर पर जितने बाल हैं उतने आपकी दाढ़ी में बाल हैं।तब वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि आप तो गिनेंगे नहीं।इसलिए मैं एक-एक करके आपकी दाढ़ी के बाल तोड़ता हूं।यदि गधे के बाल कम या अधिक निकलेंगे तो मैं हार मान लूंगा।तीनों विद्वानों ने वहां से भागने में ही भलाई समझी।वृद्ध व्यक्ति ने उनके अहंकार को तोड़ दिया।कहने का तात्पर्य यह है कि यदि शास्त्रों में ही परम सत्य है तो इससे रूढ़िवादिता का जन्म होता है।हमारे पास आगे कुछ करने के लिए रहेगा ही नहीं।

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(3.)ज्ञान के केंद्र विश्वविद्यालयों का लोप (The Extinction of Universities, the Centre of Knowledge):

  • प्राचीन काल में हमारे देश में तक्षशिला और नालंदा जैसे उच्चकोटि के विश्वविद्यालय थे।इन विश्वविद्यालयों में दूर-दूर से विद्यार्थी इसलिए पढ़ने आते थे जिससे उन्हें उत्कृष्ट श्रेणी का तथा यथार्थ ज्ञान प्राप्त हो सके।विश्वविद्यालयों को गणितज्ञों (ज्योतिषाचार्यों) तथा वैज्ञानिकों का निर्माता कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।परंतु इन विश्वविद्यालयों के नष्ट-भ्रष्ट हो जाने के बाद विद्वानों ने तथा शासकों ने ऐसे विश्वविद्यालयों के निर्माण में कोई रुचि नहीं ली।इसलिए जब विश्वविद्यालयों के निर्माण की परंपरा चलती नहीं रही तो अच्छे गणितज्ञों तथा वैज्ञानिकों का निर्माण भी रुक गया।
  • आजअमेरिका,ब्रिटेन,कनाडा,आस्ट्रेलिया तथा यूरोप के देश विकसित इसलिए है क्योंकि वहाँ कैंब्रिज यूनिवर्सिटी,ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय,स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी,हार्वर्ड यूनिवर्सिटी मैसाच्युसेट्स यूनिवर्सिटी (कैंब्रिज),इंपीरियल कॉलेज (लंदन),केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी,शिकागो यूनिवर्सिटी,टोरंटो यूनिवर्सिटी,कोलंबिया यूनिवर्सिटी (न्यूयॉर्क),प्रिंसटन यूनिवर्सिटी,येल यूनिवर्सिटी,नेशनल यूनिवर्सिटी (सिंगापुर) जैसी उत्कृष्ट तथा अत्याधुनिक यूनिवर्सिटी हैं जहाँ प्रतिभाओं को हर तरह से तराशा व तैयार किया जाता है।इन विश्वविद्यालयों में न केवल उच्च शिक्षा ही प्रदान की जाती है बल्कि ये नए-नए अनुसंधान के लिए भी जानी जाती है।

(4.)आधुनिक भारत में गणित की स्थिति (Mathematics Status in Modern India):

  • 1757 के प्लासी के युद्ध में अंग्रेजी शासन की नींव पड़ी तथा पूरे देश पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था।यहां पर भारतीय संस्कृति के स्थान पर अंग्रेजों ने बाबू व क्लर्क तैयार करने के लिए अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू कर दी।हालांकि अंग्रेजी शिक्षा लागू करने से जहाँ हमारे देश को नुकसान हुआ तो लाभ भी हुआ।
  • नुकसान यह हुआ कि भारत की प्राचीन अच्छी-अच्छी बातों तथा संस्कृति से भारत बिल्कुल कट गया।आचरण के स्थान पर सैद्धांतिक ज्ञान का वर्चस्व हो गया।देश में अंग्रेजी शिक्षा लागू हुई तो अंग्रेजी पढ़ने से विद्यार्थियों को पता चला कि विज्ञान तथा गणित के क्षेत्र में यूरोप कितना आगे बढ़ गया है।इससे भारतीयों की आंखें खुली।भारत ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में पहले भी पिछड़ा हुआ नहीं था।इसलिए ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नई पौध तैयार होने लगी।
  • परंतु इससे प्रतिभा पलायन होने लगा।देश में ऐसे शिक्षा के केंद्र नहीं थे जहाँ पढ़कर अच्छे-अच्छे गणितज्ञ और वैज्ञानिक तैयार होते।
  • जगदीशचंद्र बसु,प्रफुल्ल चंद्र राय,चंद्रशेखर वेंकट रामन,श्रीनिवास रामानुजन इत्यादि ने नए-नए आविष्कार और खोजें करके दुनिया के सामने एक मिशाल पेश की कि भारत  में भी प्रतिभाएं हैं।
  • भारतीय अंग्रेज अर्थात् भारत में शासन करने वाले अंग्रेज भारतीय प्रतिभाओं के साथ गुलाम जैसा व्यवहार करते थे।उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते थे।भारतीय प्रतिभाएं यदि शासन में कहीं नौकरी भी करते थे तो उनको अंग्रेजों के समान वेतन नहीं देते थे।भारतीय अंग्रेज भारतीय प्रतिभाओं को बराबर का समझने के लिए तैयार नहीं थे।इसलिए भारतीय प्रतिभाओं का निर्माण जिस गति से होना चाहिए वैसे नहीं हो सका।जो प्रतिभाएं संघर्ष से मुकाबला करके आगे बढ़ती थी,बहुत कठिनाइयों तथा समस्याओं का सामना करने में सक्षम थी केवल वे ही उभर कर विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ सके।इसलिए भारत में गणित की नींव तो पड़ गई परंतु अंग्रेज उनको विकसित होते नहीं देखना चाहते थे।यहां का कच्चा माल ब्रिटेन में जाता,वहीं तैयार होता और तैयार माल यहाँ आकर बिकता।यहाँ के उद्योग धंधे,कल कारखानों तथा अच्छी प्रयोगशालाओं,अच्छे शिक्षण संस्थानों का विकास नहीं हो पाया।

(5.)प्रतिभा पलायन (Brain Drain):

  • पिछली शताब्दी में हमारे देश में बौद्धिक जागरण हुआ तथा भारत में नए युग का आरंभ हुआ।अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने से लोग सोचने लगे कि विश्व का समस्त ज्ञान अंग्रेजी में ही भरा पड़ा है।परंतु प्रतिभाएं जब विदेशों में जाकर पढ़ने लगी तब उन्हें मालूम हुआ कि विज्ञान और गणित में शोधकार्य के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ जर्मन,फ्रांसीसी और रूसी भाषा का ज्ञान होना भी बहुत जरूरी है।
  • इसी प्रकार विज्ञान में आविष्कार व खोजें करने के लिए जैसे यह समझा जाता है कि रसायनशास्त्र में खोज करने के लिए रसायन शास्त्र का ज्ञान आवश्यक है,भौतिक विज्ञान में खोज के लिए भौतिक विज्ञान का तथा गणित में खोज के लिए गणितशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है।परंतु विदेशों में प्रतिभाओं को जाकर पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि किसी एक विषय का ज्ञान प्राप्त करने से ही नई-नई खोजें व आविष्कार संभव नहीं है।जैसे: आकाश का अध्ययन करने के लिए न केवल गणित शास्त्र बल्कि रसायन व भौतिक विज्ञान को जानना भी जरूरी है।सुब्रमण्यम चंद्रशेखर को न केवल गणित बल्कि ज्योतिष एवं भौतिक विज्ञान का भी ज्ञान था।इसलिए उन्होंने ज्योतिर्भौतिक विज्ञान में कई नई बातें खोजी जिसके फलस्वरूप 1983 में उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला।
  • प्रतिभाएं विदेश जाकर पढ़ने-लिखने लगी तो भारत से प्रतिभाओं का पलायन होने लगा।विदेशों में पढ़ने-लिखने से बहुत सी प्रतिभाएं विदेशों में ही बस गई तथा अमेरिका,ब्रिटेन जैसे देशों का अपने आविष्कार व खोजों से गौरव बढ़ाया।जैसे: सुब्रमण्यम चंद्रशेखर को अमेरिका में रहने व कार्य करने पर नोबेल पुरस्कार मिला।यदि भारत में ही अच्छे शिक्षण संस्थान और अनुसंधान केंद्र होते तो प्रतिभा पलायन को रोका जा सकता है।हालांकि नए भारत में इस तरफ ध्यान दिया जा रहा है परन्तु इसको ओर गति दिए जाने की आवश्यकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में भारतीय गणितज्ञ टाॅप पर क्यों नहीं हैं? (Why is Indian Mathematician not at Top?),भारतीय गणितज्ञ संसार में शिखर पर क्यों नहीं हैं? (Why are Indian Mathematician not at Peak?) के बारे में बताया गया है।

2.भारतीय गणितज्ञ टाॅप पर क्यों नहीं हैं? (Why is Indian Mathematician not at Top?),भारतीय गणितज्ञ संसार में शिखर पर क्यों नहीं हैं? (Why are Indian Mathematician not at Peak?) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या भारतीय गणित में सर्वश्रेष्ठ हैं? (Are Indians the best at mathematics?):

उत्तर:यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीयों में गणित के प्रति रुचि है।2010 में गणित कौशल का परीक्षण करने वाले जीमैट (GMAT’s) के मात्रात्मक खंड (Quantitative Section) में भारतीयों ने वैश्विक औसत से अधिक स्कोर किया। लेकिन चीनी छात्रों का मात्रात्मक स्कोर में उच्चतम औसत है और भारत सातवें स्थान पर बहुत पीछे है।

प्रश्न:2.सबसे प्रसिद्ध महिला गणितज्ञ कौन है? (Who is the most famous female mathematician?):

उत्तर:8 प्रसिद्ध महिला गणितज्ञ
(1.)हाइपेटिया (370-415 ईस्वी) [Hypatia (370-415 AD) ]
(2.)सोफी जर्मेन (1776-1831) [Sophie Germain (1776-1831]
(3.)एडा लवलेस (1815-1852) [Ada Lovelace (1815-1852) ]
(4.)सोफिया कोवालेवस्काया (1850-1891) [Sofia Kovalevskaya (1850-1891) ]
(5.)एमी नोथर (1882-1935)[Emmy Noether (1882-1935)]
(6.)डोरोथी वॉन (1910-2008) [Dorothy Vaughn (1910-2008) ]
(7.)कैथरीन जॉनसन (1918-2020) [Katherine Johnson (1918-2020)]
(8.)जूलिया रॉबिन्सन (1919-1985) [Julia Robinson (1919-1985)]

प्रश्न:3.क्या कोरियाई गणित भारतीय से कठिन है? (Is Korean maths harder than Indian?):

उत्तर:नहीं,उनके (कोरिया) पास यह कठिन है।भारत में,हम अपने हाई स्कूल (सीबीएसई) में केवल 5 विषयों का अध्ययन करते हैं।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारतीय गणितज्ञ टाॅप पर क्यों नहीं हैं? (Why is Indian Mathematician not at Top?),भारतीय गणितज्ञ संसार में शिखर पर क्यों नहीं हैं? (Why are Indian Mathematician not at Peak?) के बारे में ओर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Why is Indian Mathematician not at Top?

भारतीय गणितज्ञ टाॅप पर क्यों नहीं हैं?
(Why is Indian Mathematician not at Top?)

Why is Indian Mathematician not at Top?

भारतीय गणितज्ञ टाॅप पर क्यों नहीं हैं? (Why is Indian Mathematician not at Top?)
याकि भारत आधुनिक युग में संसार में शिखर पर क्यों नहीं है?
कोई समय भारतीय गणितज्ञों,विद्वानों तथा वैज्ञानिकों की धमक पूरे संसार में थी।

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