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Students Should Stay Away From Fashion

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1.विद्यार्थी फैशनपरस्ती से दूर रहें (Students Should Stay Away From Fashion),विद्यार्थी श्रृंगार करने से दूर क्यों रहें? (Why Should Students Stay Away From Elegant Make Up?):

  • विद्यार्थी फैशनपरस्ती से दूर रहें (Students Should Stay Away From Fashion) क्योंकि फैशनपरस्ती,श्रृंगार,मिथ्याडंबर और विलासी प्रकृति के विद्यार्थी का मन चंचल और विलासी हो जाएगा जिससे विद्या प्राप्ति,अध्ययन करने में रुचि नहीं ले सकेगा।विद्यार्थी को काम,क्रोध,लोभ,स्वाद,श्रृंगार,खेल तमाशे,बहुत ज्यादा सोना और अधिक सेवा कार्य करना इन आठ कामों से सख्ती से बचाव करके अपने भावी जीवन को सफल और श्रेष्ठ बनाने के लिए विद्या प्राप्ति में संलग्न रहना चाहिए।श्रेष्ठ विद्यार्थी और महापुरुष इसी मार्ग पर चले हैं।
  • अधिकांश विद्यार्थी टीप-टाप से रहने,साज-श्रृंगार करने और खूब फैशन करने में ही अपनी शान समझते हैं।समझा जाता है कि इस तरह नहीं रहा गया तो लोग दीन-दरिद्र समझेंगे,समाज में सम्मान नहीं होगा,हम नीची नजर से देखे जाएंगे और लड़कियां उन पर तितली की तरह नहीं उड़ेंगी।
  • अच्छा दीखने,अपने को खाते-पीते परिवार का दरसाने तथा लड़कियों को लुभाने की यह वृत्ति विद्यार्थियों में इतनी घर कर गई है कि घर में भले ही पौष्टिक भोजन न मिलता हो,परिवार के सदस्यों की शैक्षणिक,बौद्धिक और मानसिक आवश्यकताएँ पूरी न होती हों परंतु फैशन से रहना और शान-शौकत जताना इतना आवश्यक समझा जाता है की दूसरी आवश्यकताओं की उपेक्षा करके भी उसे बनाए रखना जरूरी है।हालांकि यह प्रवृत्ति लड़कों में नहीं बल्कि लड़कियों में भी पाई जाती है।लड़कियाँ भी लड़कों को लुभाने के लिए सजने-सँवरने में पीछे नहीं रहती है।
  • यों समाज में रूढ़िवादिता,दुर्व्यसन,भ्रष्टाचार,अनीति,आचरण जैसी ढ़ेरो बुराइयाँ प्रचलित हैं।ये बुराइयां परिवार के आंगन में समुच्चय रूप से दिखाई देती है।किंतु फैशनपरस्ती या मिथ्याडंबर एक ऐसी बुराई के रूप में प्रचलित देखा जा सकता है,जिसका तत्काल प्रभाव दिखाई देता है और वह छिपी भी नहीं रहती।
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2.फैशनपरस्ती और मिथ्याडंबर की वस्तुस्थिति (The Reality of Fashionableness and Falsity):

  • इस भ्रम को क्या कहा जाए कि विद्यार्थी तथा लोग अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर उसे बढ़ा-चढ़ाकर बताने में ही अपनी प्रतिष्ठा सुरक्षित मानते हैं।ऐसा करने के पीछे यही धारणा कारण रूप से विद्यमान रहती है कि जितना ही हम अपने को प्रदर्शित करेंगे उतनी हमारी औकात बढ़ेगी,सम्मान बढ़ेगा और मान-प्रतिष्ठा बनेगी।
  • ऐसा सोचते समय यह विचार क्यों नहीं किया जाता कि अपनी वास्तविक स्थिति को कब तक छिपाए रहा जा सकता है? जो लोग अपने आसपास रहते हैं,जिनके साथ दिन-रात का उठना-बैठना है,जिस में हम पलकर बड़े हुए हैं,उससे अपनी वस्तुस्थिति कब तक छिपाई जा सकती है?
  • कदाचित दूसरों को भ्रम में रखने और अपनी स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर सिद्ध करने में सफलता मिल भी जाए परंतु वह निराधार सफलता कब तक टिकी रहेगी? जिस दिन असलियत मालूम पड़ेगी उस दिन अभी जितना सम्मान मिलता है,उससे कहीं अधिक लज्जा,आत्मग्लानि,अविश्वास और उपहास का सामना करना पड़ सकता है।
  • विद्यार्थी तथा लोग जब अपनी शक्ति से बाहर और स्थिति सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं तो इससे लाभ तो कुछ होता नहीं,केवल महत्त्वाकांक्षा थोड़ी देर के लिए पूरी होती है कि लोग अपने को अमीर समझें और हमारे पास इतना अधिक धन है कि हम उसकी होली जलाए बैठे हैं।परिवार में जब सभी सदस्य इसी दृष्टिकोण से सोचने-विचारने लगते हैं तो स्वाभाविक ही आमदनी से अधिक खर्च होने लगता है।
  • जितना खर्च किया जा रहा है,उतनी आमदनी नहीं होती है तो परिणाम एक ही होता है कि या तो कर्ज लेना पड़ता है या दूसरी आवश्यकताओं में कटौती करनी पड़ती है अथवा पुरखों की छोड़ी हुई कोई जमा संपत्ति है तो उसे खर्च करना पड़ता है जो भी हो,आमदनी से अधिक खर्च करने का परिणाम जीवन भर भोगना पड़ता है।जिस धन से शिक्षा व पढ़ाई की व्यवस्था की जा सकती है,परिजनों के संस्कार सुधार करने और घरेलू सुविधाएं जुटाने में मदद मिल सकती थी,वह सब मिथ्याडंबरों पर बलिदान हो जाता है।
  • अपनी स्थिति से अधिक प्रदर्शन करने और मिथ्याडंबरों के मामले में प्रायः लड़कियां,लड़कों से कुछ आगे ही रहती हैं।अच्छी पोशाक,महंगे वस्त्र,सौंदर्य प्रसाधन,श्रृंगार की वस्तुएं,जेवर-आभूषणों के प्रति अधिकांश लड़कियों में बेहद लगाव रहता है।कई लड़कियां तो अपने इन शौकों को पूरा करते समय न तो यह ध्यान रखती है कि उनके घर की आर्थिक हैसियत क्या है तथा न पढ़ाई की तरफ रुचि रहती है।
  • कोई उचित आवश्यकता हो तो उसे पूरा करने के लिए जी तोड़ प्रयत्न किया भी जाए,पर देखा गया है कि ज्यादातर घर वाले अपने लड़के-लड़कियों की महंगी फरमाइशों को पूरा करने के लिए बुरी तरह परेशान रहते हैं और जब मांग जिद की सीमा तक पहुंच जाती है तो या तो किसी से कर्ज लेना पड़ता है अथवा ओर किसी दूसरी ज़रूरी आवश्यकता की उपेक्षा करनी पड़ती है।

3.फैशनपरस्ती का दुष्प्रभाव (Side Effects of Fashion):

  • घर के बड़े लोग जब शौक-मौज,फैशन श्रृंगार में समय और धन नष्ट करते हैं तो बच्चे ही पीछे क्यों रहे? वे भी अभिभावकों से तरह-तरह की फरमाइशें करने लगते हैं और यह चक्र आर्थिक बर्बादी की राह पर चल निकलता है।इस तरह के मिथ्याडंबरों से बर्बाद हुए घरों के उदाहरण अपने आसपास ही देखे जा सकते हैं।पास-पड़ोस में ही घर के लोगों की मांग पूरी न हो पाती,पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता,भविष्य के लिए कुछ बचा पाने की गुंजाइश नहीं रहती।और इस कुचक्र में पिसते-पिसते लोग अपने जीवन को धुल-धुलकर,घुट-घुटकर नष्ट करने के लिए विवश हो जाते हैं तथा बच्चों का पढ़ाई-लिखाई की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं रहता है।यह विवशता प्रत्यक्षतः दिखाई भले ही न दे,पर अपना दुष्प्रभाव तो डालती ही है।
  • मिथ्याडंबर दिखाई पर छोटी सी बात होती है परंतु गंभीरता से विचार करने पर उसके व्यक्तिगत,पारिवारिक और सामाजिक दुष्प्रभाव स्पष्ट दिखाई देते हैं।इस दुष्प्रवृत्ति से व्यक्तिगत हानि तो होती ही है।संक्रामक रोग की तरह पूरा समाज भी इससे प्रभावित हो रहा है।
  • प्रतिद्वंद्विता की प्रतिस्पर्धा मनुष्य स्वभाव की एक विलक्षण विशेषता है।साथ पढ़ने वाला विद्यार्थी तीन हजार का सूट-पैंट पहने हुए है तो स्वयं को हजार-दो हजार के कपड़े पहनने में शर्म महसूस होती है।मनुष्य स्वभाव की यह विलक्षण विशेषता उसे सोचने नहीं देती कि अपनी हैसियत या स्थिति इस लायक है भी अथवा नहीं।
  • यह विचार करने की किसी को आवश्यकता ही अनुभव नहीं होती कि पड़ौसी की नकल करने के बाद अपने पास भविष्य के लिए कुछ शेष बचेगा भी अथवा नहीं।अज्ञानतापूर्वक केवल अपने मिथ्याभिमान के लिए यह अपव्यय कहीं दुःख और मुसीबतों का कारण तो नहीं बन जाएगा? इस तरह का अंधानुकरण जहां चल पड़ेगा,वहां के वातावरण में सुख-शांति और समुन्नति के दर्शन कहां से हो सकेंगे? यह स्थिति पूरे समाज की ही है कि लोग अपनी आर्थिक स्थिति का ध्यान रखें बिना दूसरों की अंधाधुंध नकल में ही अपनी शान और प्रतिष्ठा समझने लगते हैं।

4.फैशनपरस्ती न करने में हर तरह से भलाई (Good in Every Way in Not Doing Fashion):

  • वस्तुस्थिति न छिपाने और जैसे हैं वैसे ही प्रकट करने में संभवतः यही हो सकता है कि संपन्न और समृद्ध विद्यार्थियों जैसा सम्मान न मिले,अपने को छोटा समझा जाए,पर इसमें कोई बड़ी हानि नहीं है।संपन्नता ही सब कुछ नहीं है,उससे भी महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान हैं वे सद्गुण और चारित्रिक विशेषताएं जो मनुष्य को औरों की दृष्टि में संपन्न व्यक्तियों से भी ऊंचा उठा देती है।
  • सम्मान प्राप्त करने का यह रास्ता थोड़ा लंबा जरूर है,पर कष्ट साध्य नहीं है।कष्ट साध्य तथा परिणाम में पीड़ाजनक उपाय अपने को वास्तविक स्थिति से ज्यादा बताना और मिथ्याडंबर रचाना है।जैसे ही मिथ्याडंबर रचना आरंभ किया गया,अपने को बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित करने की हीन भावना व्यक्तित्त्व में प्रविष्ट हुई,वैसे ही जीवन में दुर्दशा आरंभ हो जाती है।
  • इन दिनों सामाजिक और पारिवारिक जीवन में जो विश्रृंखलता और विघटन की प्रवृत्तियां दिखाई देती है।उसका अधिकांश कारण यही है कि मनुष्य अपना असली चेहरा छिपाकर नकली नकाब चढ़ाए बैठा है और उसे एक बहुत बड़ा अवगुण या दुर्गुण ही कहा जाना चाहिए।
  • और मिलता क्या है? यदि कोई स्थायी सम्मान ही मिलता होता तो भी संतोष किया जा सकता था।परंतु समाज की आंखों में धूल तो नहीं झोंकी जा सकती।
  • मित्र-परिचित प्रायः अपने घर की आर्थिक स्थिति जानते-पहचानते हैं।वे जानते हैं कि परिवार का ठीक से भरण-पोषण नहीं हो पा रहा है और केवल दिखावे के लिए बेकार खर्च किया जा रहा है तो सिवाय परिवार की आवश्यकताओं में कटौती करने से कौन सा रास्ता बनता है?
  • यदि लोग ऐसा नहीं भी सोचें तो वे यह मानने से नहीं चूकेंगे कि किन्हीं गलत रास्तों से धन आ रहा है।ऐसी स्थिति में लोग मुंह पर भले कुछ न कहें,पीठ पीछे निंदा,उपहास और छींटाकशी से नहीं बचा जा सकता।
  • इस तरह मिथ्याडंबर रचकर जिस सम्मान या बड़प्पन की आशा की जा रही थी,वह मिलना तो दूर रहा औरों की दृष्टि में अपना मूल्य गिरा ही।
  • बहुसंख्यक विद्यार्थी इसलिए निम्न स्थिति प्राप्त करते हैं अथवा असफल हो जाते हैं क्योंकि वे अध्ययन व पढ़ाई-लिखाई की अपेक्षा सज-धज,मिथ्याडंबर,फैशन और साज-श्रृंगार को महत्त्व देते हैं।इस संबंध में प्रत्येक विद्यार्थी को अपना दृष्टिकोण साफ कर लेना चाहिए की बाहरी सज-धज को मान-प्रतिष्ठा का आधार मान लेना भ्रम में रहना है।समझदार विद्यार्थी बाहरी टीप-टाप या भड़कीले वेश-विन्यास को आदर की दृष्टि से नहीं देखते,उनकी दृष्टि में शालीनता और सादगी,निराडंबरपूर्ण जीवन ही आदरणीय होता है।
  • अस्तु अपनी वास्तविक स्थिति को छिपाकर मिथ्याडंबर रचाने की होड़ मूर्खतापूर्ण समझनी चाहिए और परिवार के लोगों में भी ऐसे संस्कार विकसित करने चाहिए,जिससे वे सादगी भरे जीवन में ही अपनी प्रतिष्ठा समझें।वस्तुतः अपनी वास्तविक स्थिति में बिना किसी दिखावट के साथ अंत तक बने रहना,विद्यार्थी का नैतिक बल प्रदर्शित करता है।थोड़ी देर की चटक-मटक,फैशन,श्रृंगार कुछ समय के लिए भले ही झूठा आत्मसंतोष दिला दे परंतु उससे अपनी आर्थिक स्थिति डगमगाने के रूप में अंततः निराशा-हताशा और कठिनाईयाँ ही भोगनी पड़ती हैं।
  • जब कोई विद्यार्थी अपनी गरीबी को छिपाने के लिए प्रयत्न करने लगता है तो उससे गरीबी तो ज्यों की त्यों बनी रहती है,दूसरी तरह की ओर अनेकों विघ्न-बाधाएँ उठ खड़ी होती हैं।
  • इसलिए परिवार के बच्चों को इस तरह संस्कारित व प्रशिक्षित करना चाहिए कि वे गरीबी को उतना बुरा नहीं समझे,जितना की मिथ्याडंबर और फैशन,श्रृंगारिकता को।साधारण जीवन अपनाना और उसमें गौरव अनुभव करना एक श्रेष्ठ सद्गुण है।परिवार के बच्चों में यह निष्ठा विकसित की जा सके तो समझना चाहिए कि उन्हें हर परिस्थिति में सुखी व संतुष्ट रहना आ गया तथा उनमें परिश्रम और पुरुषार्थ के प्रति आस्था उत्पन्न कर दी गई।

5.फैशनपरस्ती का दृष्टान्त (An Example of Fashion):

  • स्वयं ठीक हो परंतु घर के परिजन भी वैसे हों,जरूरी नहीं।एक विद्यार्थी ने गरीबी के दिन देखे थे।गरीबी में अध्ययन किया और एक दिन वे प्राध्यापक बन गए।वे मितव्ययी थे इसलिए धन को सोच-समझकर खर्च करते थे,फालतू कार्यों में धन खर्च नहीं करते थे।परंतु उनकी पत्नी अमीर घर से आई थी।पत्नी को पति की इच्छा के विरुद्ध सजधज का बहुत शौक था।प्राध्यापक अध्ययन कार्य में व्यस्त रहते।पीछे उसकी पत्नी घर को आलीशान,शान-शौकत तथा भव्य बनाने के लिए अपनी सामर्थ्य से बाहर खर्च कर डाले।उस राशि की स्वीकृति पति (प्राध्यापक) ने नहीं दी थी परंतु उन्हें कर्ज किए गए धन को चुकाना पड़ा।फैशनपरस्ती और फिजूलखर्ची को लेकर आए दिन पति-पत्नी में झंझट होता।परंतु पत्नी अपनी हैसियत और शान-शौकत दिखाना चाहती थी कि वह एक लेक्चरर की पत्नी है किसी ऐरे-गैरे की नहीं।
  • प्राध्यापक की पत्नी छिपकर इतना कर्ज कर लेती थी कि मजबूरन प्राध्यापक को अपने वेतन और निजी संपत्ति को बेचकर चुकाना पड़ता था।पत्नी बच्चों को शिक्षित करने की तरफ ध्यान नहीं देती थी।इस पर प्राध्यापक महोदय बहुत दुःखी रहते थे।वे स्वयं तो सादगी से रहते।अपने कर्त्तव्य पालन के प्रति निष्ठावान होने के कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई परंतु उनका पारिवारिक जीवन तो लड़ाई झगड़ा,गृह क्लेश में ही व्यतीत रहता।
  • प्राध्यापक की पत्नी कठोर स्वभाव की कर्कशा स्त्री थी।इस कारण भी प्राध्यापक बहुत दुःखी रहते थे।कितनी बार बच्चों और पत्नी के सो जाने पर वे काफी रात गए,मकान के पिछले दरवाजे से घुसकर चुपचाप सो जाते और दिन निकलने से पहले ही उठकर चले जाते थे।दिनभर हंसते-हँसाते थे।
  • एक दिन किसी काम से प्राध्यापक ने चपरासी को घर पर भेजा।प्राध्यापक की पत्नी ने उसे खूब फटकारा।चपरासी को यह बात बुरी लगी।इसलिए उसने प्राध्यापक से शिकायत की।प्राध्यापक ने हंसकर कहा कि भले आदमी मैं शादी से लेकर अब तक कई वर्षों से इस परिस्थिति का सामना कर रहा हूं और सब कुछ शांतिपूर्वक सह रहा हूं।तुमसे एक दिन की फटकार भी सहन नहीं होती।ऐसे ही विरोधों में उनकी पत्नी को एक दिन हार्ट अटैक आया और अकाल में ही काल कवलित हो गई।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी फैशनपरस्ती से दूर रहें (Students Should Stay Away From Fashion),विद्यार्थी श्रृंगार करने से दूर क्यों रहें? (Why Should Students Stay Away From Elegant Make Up?) के बारे में बताया गया है।

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6.मार्कशीट की एक्सपायरी डेट (हास्य-व्यंग्य) (Expiry Date of Mark Sheet) (Humour-Satire):

  • शिक्षक:इतनी देर हो गई,आखिर क्या ढूंढ रहे हो?
  • छात्र:कुछ नहीं।
  • शिक्षक:कुछ तो खोया है।इतनी देर से मार्कशीट को उलट-पलट कर रहे हो।
  • छात्र:मैं देख रहा हूं कि इसकी एक्सपायरी डेट कहां है? क्योंकि यह मार्कशीट या डिग्री किसी काम तो आने वाली है नहीं।

7.विद्यार्थी फैशनपरस्ती से दूर रहें (Frequently Asked Questions Related to Students Should Stay Away From Fashion),विद्यार्थी श्रृंगार करने से दूर क्यों रहें? (Why Should Students Stay Away From Elegant Make Up?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या प्रदर्शन से प्रतिष्ठा अर्जित की जा सकती है? (Can Reputation Be Earned From Performance?):

उत्तर:प्रदर्शन से प्रतिष्ठा अर्जित करने का भौंडा व घटिया सिलसिला चल पड़ा है।इससे सस्ती वाहवाही अथवा क्षणिक प्रशंसा तो अर्जित की जा सकती है किंतु प्रतिष्ठा नहीं।प्रतिष्ठा का संबंध गुणों से है।गुण,कर्म,स्वभाव की प्रखरता,श्रेष्ठता का इसमें महत्त्व है।सहयोग,सहायता,उदारता,आत्मीयता,संवेदनशीलता जिनके स्वभाव में रहती है,उनकी हर कोई सहायता करता है।इसका उच्च मानवीय गुणों से संबंध है।जबकि प्रदर्शन,आडंबर,ढोंग मात्र ओछापन और घटियापन की निशानी है।जब मनुष्य पर क्षुद्रता का भूत सवार होता है,तो वह शेखी बघारता और पद,पूँजी,योग्यता का तमाशा बताकर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना चाहता है,जिससे लोग उसकी प्रशंसा करें और उसके अहंकार को पोषण मिले।

प्रश्न:2.सज-धज को गलत क्यों समझा जाता है? (Why is Decoration Misunderstood?):

उत्तर:सज-धज के आधार पर मात्र यह सिद्ध किया जा सकता है कि प्रदर्शन के निमित्त किस हद तक पैसे और समय की बरबादी की गई? यह एक प्रकार से रिश्वत देकर ली गई वाहवाही है।इसकी जड़े नहीं होती।बालू की भीत में टिकाऊपन कहाँ होता है?कभी ठाठ-बाट की चकाचौंध दूसरों की आँखों में बड़प्पन की धाक जमाना माना जाता रहा होगा।पर अब तो यही सोचा जाता है कि जिसके पास सज-धज के लिए,मौज-मस्ती के लिए,लोगों को चकित करने के लिए फालतू पैसा है,उसका व्यक्तित्त्व ओछा-बचकाना होना चाहिए।समझा जाता है कि हराम की कमाई ही गुलछर्रे उड़ाने में खर्च हो सकती है।जिसने परिश्रमपूर्वक कमाया होगा,वह तो हजार बार सोचेगा और जो अत्यंत उपयोगी है,उसी के लिए खर्च करेगा।

प्रश्न:3.धन का उत्पादन व खर्च कैसे होना चाहिए? (How Should the Money Be Earned and Spent?):

उत्तर:विवेकवान धन का उपयोग समझते हैं।उसे नीतिपूर्वक ही कमाते हैं और नीति-मर्यादा के अनुरूप ही खर्च करते हैं।अपव्यय का समर्थन चाटुकार,चापलूस ही कर सकते हैं।जिनका उससे कुछ निजी स्वार्थ सधता हो,वे भी उसके लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।पर विचारशीलों की बिरादरी में ऐसा बचकानापन ओछी बुद्धि का चिन्ह माना जाएगा।
साहस,कौशल,विवेक जैसे सद्गुण भी सूक्ष्म स्तर के वैभव ही हैं।वितरण इतना भी होना चाहिए।दुर्गुणों को भी दरिद्रता से कम नहीं आँका जाना चाहिए।अभ्युदय के लिए प्रचंड पुरुषार्थ भी एक बड़ी बात है।व्यक्तित्त्व को विकसित करने वाले सद्गुण भी एक पूंजी हैं।इन्हें मात्र अपने पास ही बटोरकर बैठ जाना भी अनौचित्य का एक पक्ष है।संपन्नता की तरह ही सज्जनता की वृद्धि,उन्नयन एवं समान वितरण होना चाहिए।गौरवशाली जीवन उन्हीं का है जो सबकी उन्नति एवं सबकी प्रसन्नता में अपनी प्रसन्नता मानते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी फैशनपरस्ती से दूर रहें (Students Should Stay Away From Fashion),विद्यार्थी श्रृंगार करने से दूर क्यों रहें? (Why Should Students Stay Away From Elegant Make Up?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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