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3 Tips to Concentrate Mind for Student

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1.छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Student),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Students):

  • छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Student) के इस आर्टिकल से पूर्व मन को नियंत्रित करने का आर्टिकल पोस्ट कर चुके हैं।इसलिए इस आर्टिकल के साथ उस आर्टिकल को भी पढ़ना चाहिए।यदि छात्र-छात्राएं मन को एकाग्र करके अध्ययन करेंगे तो अध्ययन में भूल चूक नहीं होगी।मन जब विभिन्न दिशाओं में क्रियाशील होता है तो मन की ऊर्जा का क्षय होता है।मन का विभिन्न दिशाओं में क्रियाशील होने को ही मन की चंचलता,मन की अस्थिरता,मन का उच्चाटन कहते हैं जिसके कारण मन थक जाता है।थके हुए मन से अध्ययन करने से न तो टाॅपिक को ठीक से समझ पाते हैं और न ही स्मरण कर पाते हैं।जब तक मन की इस दौड़ पर काबू नहीं पाया जाएगा तब तक अध्ययन,न करने के समान ही है।मन को एकाग्र करने से मन की ऊर्जा का क्षय रूकता है और मन की शक्ति उसी तरह बढ़ जाती है जैसे आतिशी शीशे से सूर्य की किरणों को एकाग्र करने पर वे इतनी शक्तिशाली और तेजस्वी हो जाती है कि कागज एक क्षण में जल जाता है।जबकि बिना आतिशी शीशे के दिनभर धूप में पड़े रहने पर भी कागज नहीं जलता है।
  • मन को किसी एक विषय पर एकाग्र करके ध्यान की स्थिति प्राप्त होने पर शरीर उसी प्रकार तरोताजा हो जाता है जैसे गहरी निद्रा से शरीर व मन तरोताजा हो जाता है और चुस्ती फुर्ती का अनुभव करते हैं,थकावट व सुस्ती गायब हो जाती है।
  • एकाग्र होकर किए गए कार्य में सफलता अवश्य मिलती है चाहे हम अध्ययन करें,प्रतियोगिता परीक्षा दें,प्रवेश परीक्षा की तैयारी करें,गणित तथा विज्ञान में कोई खोज कार्य करें,गणित के जटिल सवाल व समस्याएं हल करें अथवा अन्य कोई कार्य करें।
  • अपनी संकल्प शक्ति अर्थात् मन की ऊर्जा को केंद्रित करके बड़े-बड़े गणितज्ञ,वैज्ञानिक तथा महापुरुषों ने अद्भुत कार्य करके दिखाएं हैं।परंतु मन की एकाग्रता का सदुपयोग तभी किया जा सकता है जब हम हमारा लक्ष्य निर्धारित करें।बिना लक्ष्य अथवा उद्देश्य के हमारा मन इधर-उधर भटकता रहता है वह बिना चप्पू के नाव चलाने के समान कहीं नहीं पहुंचता है।लक्ष्यहीन और मन को एकाग्र न करने वाले छात्र-छात्राएं जीवन में असफलता को प्राप्त होते हैं और इस असफलता का ठीक-ठीक कारण वे नहीं जान पाते हैं।ऐसे छात्र-छात्राओं का मन चंचल रहता  है और अस्थिर मन के कारण वे किसी कार्य को दृढ़तापूर्वक नहीं कर पाते हैं।ऐसे विद्यार्थी न तो जीवन को सार्थक दिशा दे पाते हैं और न ही उसे सार्थक बना पाते हैं।लेकिन जो विद्यार्थी पूर्ण एकाग्रता के साथ निश्चित लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित रहते हैं और पूरी लगन से काम करते हैं उन्हें जीवन में अवश्य ही सफलता मिलती है और वे जीवन को सार्थक बना लेते हैं।ऐसे कितने ही विद्यार्थी हैं जो कि ज्ञानी हो परंतु एकाग्रता के अभाव तथा अपनी ऊर्जा को केन्द्रित न करने के कारण कोई महान कार्य नहीं कर सकते हैं।
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2.मन की एकाग्रता में ध्यान रखने वाली बातें (Things to Keep in Mind in the Concentration of the Mind):

  • मन बहुत बलवान है इसे जीतना बहुत दुष्कर है परंतु दृढ़ संकल्पशक्ति,धैर्य,लक्ष्य पर केंद्रित करके,लगन से इसे वश में किया जा सकता है।मन को खाली मत रहने दीजिए वरना उद्दण्ड होकर जगत की खाक जानता फिरेगा परंतु इसे अध्ययन तथा सार्थक कार्यों को लगाए रखने पर यह हमारा सबसे बड़ा मित्र हो जाएगा।मन पर सजग होकर निगरानी करते रहो तथा अभ्यास द्वारा उपयोगी कार्यों में लगाया जा सकता है।
  • अभ्यास से तात्पर्य है कि मन को अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ने,सत्साहित्य पढ़ने तथा कला-कौशल सीखने में लगाए रखने में व्यस्त रखें।बार-बार अच्छी पुस्तकें व अपनी विषय की पुस्तकों का अध्ययन करते रहें।मन कल्पवृक्ष की तरह है जिसे सद्विचारों और सत्कार्यों में लगाए रखने पर छात्र-छात्राओं का विकास होता है।
  • मन में अपार शक्ति है।प्रातः काल उठते ही मन में सत्संकल्प करना चाहिए तथा मन में यह सकारात्मक विचार व चिन्तन करें कि यह कार्य मैं अवश्य कर सकता हूं।इससे आपका मनोबल बढ़ेगा लेकिन इसके लिए धैर्य धारण करना चाहिए क्योंकि मन को साधना,मन को एकाग्र करना धीरे-धीरे ही सम्भव हो पाता है।
  • मन को निरन्तर सक्रिय रखने की आवश्यकता है क्योंकि कहावत है कि खाली दिमाग शैतान का घर।अकर्मण्य व आलसी छात्र-छात्राएं जीवन क्षेत्र में,अध्ययन में,जॉब में तथा हर कहीं पिछड़ जाते हैं। महान वैज्ञानिक व गणितज्ञों ने जादू व तन्त्र-मंत्रों से महानता प्राप्त नहीं की है।सक्रिय और परिश्रम से धीरे-धीरे चंचल मन को काबू में कर लेते हैं।मन पर काबू पाना सरल कार्य नहीं है।अतः इसे निरंतर अध्ययन तथा अपने उपयोगी कार्य में लगाए रखने से वश में किया जा सकता है।निष्क्रिय तथा अकर्मण्य रहने पर मन तथा इन्द्रियाँ अपनी क्रियाशक्ति को खो देते हैं।
  • मन को साधने तथा सुधारने से थोड़े से समय में भी परिणामजनक अध्ययन तथा सफलता अर्जित कर सकते हैं।यदि जीवन में कोई भी विलक्षण कार्य करना है तो उसकी प्राथमिक शर्त है कि मन को साधना।संयमित मन जिसके पास है उसके लिए कोई भी लक्ष्य प्राप्त करना कठिन नहीं है।
  • उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि छात्र-छात्राओं को सफलता के लिए मन की एकाग्रता की सबसे प्रमुख आवश्यकता है।मन की एकाग्रता से इसकी शुभ शक्तियाँ जागृत होती तथा बढ़ती है।परंतु इसके लिए छात्र-छात्राओं को केवल अपनी विषय की पुस्तकें पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि कुछ सत्साहित्य का अध्ययन करना,शुद्ध,निर्मल तथा पवित्र विचारधारा रखना आवश्यक है।
  • अध्ययन कार्य तथा चिंतन-मनन में एकरूपता रखी जाए तो हमारी अंदर और बाहर की सभी चंचलताएँ धीरे-धीरे नष्ट होती जाती है।मन को एकाग्र करने के बाद उसकी शक्तियों का सदुपयोग करने से छात्र-छात्राएं ऊँचे उठ सकते हैं परंतु गलत प्रयोग से वही शक्ति उसकी शत्रु बन जाती है।
  • मन को एकाग्र करने का उपाय है कि इसे बुरी भावनाओं,अवांछनीय इच्छाओं,विषय वासनाओं,भोग विलास से बचाए रखा जाए।विकारो से ग्रस्त मन अध्ययन करने से दूर भागता है।संयम और साधना का सहारा लेकर मन को शुद्ध करना चाहिए।संयम और साधना एक महान तप है,जिसने इस तप की सिद्धि कर ली वह मन को काबू कर लेता है।

3.मन की एकाग्रता में बाधक तत्व और उपाय (Elements and Remedies Hindering the Concentration of Mind):

  • मन के विकार विषय वासना,तृष्णा,लोभ,मोह,काम वासना इत्यादि मन की एकाग्रता में बाधक तत्व है। तृष्णा कभी शान्त नहीं होती है,एक बार जो इसके जाल में फंस जाता है उसका छूटना मुश्किल है।पति-पत्नी नदी किनारे घूम रहे थे।अचानक उनको नदी में कम्बल बहता हुआ दिखाई दिया।पति को कम्बल प्राप्त करने की तृष्णा जाग उठी।वह उसको लेने के लिए नदी में कूद पड़ा।उसको पकड़ने पर वह खुद भी बहता हुआ चला गया।पत्नी ने कहा कि कम्बल को छोड़ दो और बाहर आ जाओ।पति ने कहा कि यह कम्बल नहीं,रीछ हैं इसने मुझे पकड़ लिया है अब यह छोड़ता ही नहीं है।तृष्णा के इसी प्रकार से एक बार कोई गिरफ्त में आ जाता है तो उससे छुटना मुश्किल हो जाता है।
  • छात्र-छात्राओं में परिपक्व बुद्धि और अनुभव नहीं होता है इसलिए मनोविकारों और गलत आदतों को सीख जाते हैं।तृष्णा,वासना इत्यादि विकार उत्पन्न न हों इसके लिए छात्र-छात्राओं को सत्संगति में रहना चाहिए तथा बुरे विचारों को कंपनी नहीं देना चाहिए।
  • उद्दण्डी मन की चंचलता,संकल्प-विकल्प,वासना का भूत सवार हो जाता है तो यह रंगीन सपने,कल्पना लोक का विचरण करता रहता है।यदि मन को न साधा जाए तो यह ऐसे कुकृत्य कराता है और नाच-नचाता है कि इसके पतन का कोई अंत नहीं आता है।असंयमी और उच्छृंखल मन प्रबल शत्रु से कम नहीं है परंतु यदि इसे साध लिया जाए तो यही परम मित्र बन जाता है।वासना और तृष्णा पर अंकुश न लगाए जाए तो यह विनाश की ओर ले जाता है।पढ़े-लिखे छात्र-छात्राओं में जो पतन का रास्ता अपना लेते हैं वे बैंक डकैती,आतंकवादी,चोर,लुटेरे,अय्याशी,कामुक,अपहरण,लूटपाट, हुडदंग,मारपीट इत्यादि कार्यों में प्रवृत्त हो जाते हैं।
  • मन को कुमार्ग से लौटा कर सही मार्ग पर चलने का अभ्यास कराने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है,इसीलिए तो इसे साधना कहते हैं।यदि प्रयत्नपूर्वक मन को वश में कर लिया जाए तो वे ही छात्र-छात्राएं दानव से देवता बन जाते हैं।बिगड़ा हुआ मन ही सबसे बड़ा शत्रु और सुधरा हुआ मन ही हमारा सबसे बड़ा मित्र है।
  • शारीरिक शक्ति,प्रचुर साधन तथा समृद्धि होते हुए दुर्बल मन वाले छात्र-छात्राएं असफल हो जाते हैं।परंतु विकारग्रस्त मन का अर्थ यह नहीं है कि विकारों से छुटकारा नहीं मिल सकता है।अभ्यास और वैराग्य से इसे साधा जा सकता है।अभ्यास अर्थात् पुस्तकों के अध्ययन में मन लगाना,अच्छी संगति में रहना,सत्साहित्य पढ़ना तथा वैराग्य अर्थात् कामवासना,तृष्णा,लोभ,लालच इत्यादि को मन में प्रश्नय न देना।यदि गलत विचार आएं भी तो उसको कंपनी न दें।इस प्रकार धीरे-धीरे मनोबल बढ़ने लगता है।
  • अधिक कामनाएं,अधिक पद लिप्साएं,अधिक तृष्णाएं हमारे मन को जर्जर कर देती है जिससे उसकी शक्ति उसी पर आक्रमण करके हानि पहुँचाती हैं।विवेक,धैर्य,साहस और संकल्पशक्ति के बल पर मन को एकाग्र किया जा सकता है और दुष्प्रवृत्तियों से छुटकारा पाया जा सकता है।समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए।प्रातःकाल उठने से लेकर सोने तक विद्यार्थी को ऐसी दिनचर्या बनानी चाहिए जिससे उसका व्यक्तित्व निखरता हो और योग्यता का,प्रगति का विस्तार होता हो।
  • बिल्वमंगल,वाल्मीकि, अंगुलीमाल जैसे अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने कुमार्ग को छोड़कर सही मार्ग अपनाया और नए स्तर का स्वभाव एवं अभ्यास अपनाकर अमर हो गए।मन की एकाग्रता के लिए अन्य आर्टिकल पोस्ट किया हुआ है उसकी सहायता से मन को एकाग्र किया जा सकता है।

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4.मन की एकाग्रता का दृष्टांत (Illustration of Concentration of Mind):

  • सुधीर आवासीय महाविद्यालय में गणित से एमएससी कर चुका था।उसके सभी सहपाठियों को घर लौटने की अनुमति दे दी गई थी परंतु सुधीर को नहीं।दरअसल आवासीय महाविद्यालय का वातावरण गुरुकुल जैसा ही था।सुधीर बहुत परेशान हुआ।उसे घर की याद बहुत सता रही थी।वह यह सोच-सोचकर परेशान था कि उससे फिसड्डी छात्र-छात्राओं को जाने की इजाजत दे दी थी,पर मेरे में क्या कमी है?
  • एक दिन वह उठा तो सुना कि गुरुदेव कहीं बाहर यात्रा पर जा रहे हैं।सुधीर शांत मुद्रा में हाथ-जोड़कर खड़ा हो गया।गुरुजी ने सुधीर का निराश मुख देखा और उसका कारण समझ गए।वे अपने इस योग्य शिष्य को भूले नहीं थे परंतु गुरुजी उसके सामने अंजान बने रहे।उन्होंने जाते-जाते आशीर्वाद दिया कि मन को एकाग्र करो,इन्द्रियों को वश में रखो।यह कहकर यात्रा पर चले गए।सुधीर समझ गया कि मुझमें कोई कमी है।उसने अपना आत्म-निरीक्षण किया तो उसे मालूम हुआ है कि उसका मन भौतिक लालसाओं में जकड़ा हुआ है,उसे अपनी भूल मालूम हुई।गुरुदेव के प्रति जो आक्रोश था वह गायब हो गया।
  • दूसरे दिन वह नित्यकर्मों से एकान्त में अन्न छोड़कर मौन धारण करके ध्यानावस्था में बैठ गया।आवासीय महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतना गम्भीर तप करेगा।गुरुदेव थे नहीं इसलिए उसको तप करने से रोकने वाला कोई था नहीं।
  • तीसरे दिन गुरुदेव की धर्मपत्नी ने जाकर पूछा कि इतनी कठिन तपस्या किसलिए कर रहे हो वत्स?सुधीर ने गुरुमाता को प्रणाम करके कहा कि मेरा मन लालसाओं में जकड़ा हुआ है।मैं उपवास करके इन लालसाओं पर संयम करने का प्रयत्न कर रहा हूं।सुधीर की दृढ़ता के सामने गुरुपत्नी भी मौन हो गई।6 दिन बीत गए,उसका मन अत्यंत शांत और निर्मल हो गया था।लालसा उससे दूर भाग चुकी थी।
  • इसी बीच गुरुदेव यात्रा से लौट कर आ गए।उन्हें मालूम हुआ कि सुधीर कठोर तपस्या में बैठा हुआ है।वे सीधे सुधीर के पास गए और पूछा कि इतने कम समय में तुम्हारा मुख तेज से कैसे दमक रहा है?सुधीर ने कहा कि यह सब आपकी कृपा का फल है।तब गुरुदेव बोले तुमने मन को एकाग्र करने का अभ्यास तो किया है और उस पर संयम करने में भी सफल हुए हो।लेकिन भूलना मत,मन की एकाग्रता एक बार के प्रयास से सदा के लिए नहीं हो जाता।उसे बनाए रखने के लिए सतत अभ्यास की आवश्यकता होती है और मेरा विश्वास है कि तुम भावी जीवन में इस लक्ष्य से नहीं भटकोगे।सुधीर ने कृतज्ञता भरी दृष्टि से गुरुदेव की ओर देखा।गुरुदेव ने आशीर्वाद देकर अपने मेधावी शिष्य सुधीर को घर जाने की अनुमति दी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Student),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Students) के बारे में बताया गया है।

5.Mathematics एकवचन है या बहुवचन एकवचन है (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics is Singular or Plural) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक:बताओ दिनेश,Mathematics एकवचन है या बहुवचन है।
  • दिनेशःहल करने से पहले यह एकवचन है परंतु ज्यों-ज्यों हल करते जाते हैं यह बहुवचन होती जाती है।

6.छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 3 Tips to Concentrate Mind for Student),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मन को निर्मल कैसे करें? (How to Cleanse the Mind?):

उत्तर:मन में जब तक चिंताओं,कामनाओं,तृष्णाओं,लिप्साओं,वासनाओं इत्यादि का कूड़ा-करकट और शराब पीना,अय्याशी करना,गाली-गलोज करना,मारी-मारपीट करना इत्यादि बुरे संस्कारों का गोबर भरा हुआ है तब तक मन को निर्मल नहीं किया जा सकता।इन्हें समाप्त करने और दूर करने से ही मन को एकाग्र किया जा सकता है।

प्रश्नः2.मन को वश में कैसे करें? (How to Control the Mind?):

उत्तरःमन कितना ही चंचल और शक्तिशाली हो उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है।अभ्यास अर्थात् अध्ययन-मनन-चिंतन तथा अच्छे कार्यों में व्यस्त रखने और वैराग्य अर्थात् बुरी आदतों व बुरे कार्यों को कंपनी न देना।

प्रश्नः3.क्या मन को वश में किए बिना श्रेष्ठ कार्य नहीं किए जा सकते हैं? (Can’t Noble Deeds be Done Without Taming the Mind?):

उत्तर:मन को वश में करना कठिन अवश्य है परंतु अध्ययन करना,विद्या ग्रहण करना तथा श्रेष्ठ कार्य करना एक साधना है।श्रेष्ठ कार्य मन को वश में किए बिना नहीं किए जा सकते हैं।काम,क्रोध,लोभ,मोह,तृष्णा,ईर्ष्या तथा कठिनाइयों और विपत्तियों से पार पाना मन को वश में किए बगैर संभव नहीं है।जब तक मन विकारग्रस्त होता है तब तक कोई भी श्रेष्ठ कार्य नहीं किया जा सकता है।चंचल और अस्थिर मन से श्रेष्ठ कार्य नहीं किया जा सकता है।गलत कार्यों,बुरी संगति की तरफ मन तत्काल अग्रसर हो जाता है और हम बुरे काम करने लगते हैं।विवेक से काम ले कर मन पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
प्रश्नः4.तृष्णा से क्या तात्पर्य है?(What do You Mean by Craving?):
उत्तरःविषयों के प्रति आसक्ति को तृष्णा कहते हैं।हमारी इंद्रियों का जब विषयों से संपर्क होता है तो हम सुखकर विषयों का ग्रहण करना चाहते हैं और दुखकर विषयों का त्याग करना चाहते हैं।सुखकर विषयों के प्रति जो हमारा जो आकर्षण होता है वही तृष्णा है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Student),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3 Tips to Concentrate Mind for Student

छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स
(3 Tips to Concentrate Mind for Student)

3 Tips to Concentrate Mind for Student

छात्र-छात्राओं के लिए मन को एकाग्र करने की 3 टिप्स (3 Tips to Concentrate Mind for Student)
के इस आर्टिकल से पूर्व मन को नियंत्रित करने का आर्टिकल पोस्ट कर चुके हैं।
इसलिए इस आर्टिकल के साथ उस आर्टिकल को भी पढ़ना चाहिए।

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