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Review of Work Done in Last Millennium

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1.गत सहस्राब्दियों में किए गए कार्यों की समीक्षा (Review of Work Done in Last Millennium),गत सहस्राब्दियों में किन-किन सोपानों को तय किया गया है? (What Are Steps That Have Been Set in Last Millennium?):

  • गत सहस्राब्दियों में किए गए कार्यों की समीक्षा (Review of Work Done in Last Millennium) करना आवश्यक है ताकि हम जान सकें कि कौनसे ऐसे कार्य हैं जिनको नहीं किया जाना चाहिए था और कौनसे ऐसे कार्य हैं जिनको किया जाना चाहिए था परंतु किये नहीं जा सकें।
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2.गत सहस्राब्दियों की समीक्षा क्यों आवश्यक है? (Why is a Review of Past Millennials Necessary?):

  • मनुष्य कुल मिलाकर अपने इतिहास की ही उपज होता है और अंततः अपने इतिहास में ही समा जाता है।विश्व के प्रायः सभी चिंतक और स्मृतिकार मनुष्य के जीवन-चक्र और विकास-यात्रा के बीज सूत्र पर सहमत हैं कि अतीत को भलीभाँति जाननेवाला ही भविष्य को भलीभाँति देख और रच सकता है (अतीत-विज्ञो ही दृष्टा स्रष्टा च अनागतस्य)।भारतीय मनीषा इसीलिए इतिहास को मानव जीवन के सभी उद्देश्यों और आदर्शों की व्यवस्थित और युक्तिपूर्ण कहानी के रूप में परिभाषित करती हैं:
  • धर्मार्थ-काम-मोक्षाणां-उपदेश-समन्वित पूर्व वृत्त कथा युक्तं इतिहास प्रचक्षते।
  • मानव जाति में इतिहास की इस अपरिहार्य व्यापकता के कारण ही किसी देश,किसी समाज में इतिहास की समीक्षा और उसमें हेरफेर की कोशिशें विवाद और हंगामे का कारण बन जाती हैं।इस इतिहास में एक शताब्दी या एक सहस्राब्दी को लांघकर दूसरी में प्रविष्ट होना मनुष्य के लिए एक महान अनुभव से गुजरना होता है-अनेक स्मृतियों,कल्पनाओं,उद्दीपनों और कुतुहलों से लबरेज एक नए क्षितिज के साक्षात्कार का अनुभव!
  • एक सहस्राब्दी से दूसरी में संक्रमण मानव जाति के इतिहास की सचमुच एक बड़ी घटना है,इसलिए वर्तमान उत्तेजना और उन्माद को आसानी से समझा जा सकता है।किंतु गंभीर मानसिकता वालों के लिए यह इतिहास के पुनर्परीक्षण और समीक्षा का भी अवसर है ताकि अतीत की खामियों की पुनरावृत्ति ना हो।यह उक्ति निरर्थक नहीं है कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते वे इतिहास को दुहराने के लिए अभिशप्त हैं।
  • साफ-साफ कहा जाए तो तीसरी सहस्राब्दी में प्रवेश करने का मतलब है ईसा के जन्म की तिथि से 2000 वर्षों को पार कर जाना।जो चीज स्पष्ट नहीं है वह यह है कि ईसा के जन्मदिन का काल गणना का रिवाज दरअसल उनकी पैदाइश के 500 से अधिक वर्ष बीत जाने के बाद शुरू हुआ।शुरुआत रोम से हुई और यूरोप के अन्य भागों में भी यह काल गणना गयी।दुनिया के दूसरे हिस्सों में इस प्रणाली के पहुंचने और प्रतिष्ठित होने में 12-13 सौ साल और लग गए।

3.पहली सहस्राब्दी में मानव सभ्यता के विकास के सोपान (Stages of Development of Human Civilization in the First Millennium):

  • पृथ्वी पर मानव का इतिहास ईसा से बहुत पुराना है।माना जाता है की धरती पर मनुष्य का अस्तित्व 50 लाख साल से कायम है।यह बात दीगर है कि इस कालखंड की अधिकाधिक अवधि में,अनुमानतः 49.9 लाख वर्षों तक मानव जीवन जानवरों के जैसा ही रहा।संगठित मानव जीवन,जिसे सभ्यता की पहली उपलब्धि कहा जाता है,तो मात्र 50000 साल पुराना है।यह धरती पर मनुष्य की उपस्थिति के संपूर्ण काल की मात्र 0.001 प्रतिशत अवधि है।इन 5 सहस्राब्दियों की घटनाओं की संख्या इतनी बड़ी है की सरसरी तौर पर उनके नाम गिनाना भी यहां संभव नहीं है।प्रासंगिकता की दृष्टि से भी इतने बड़े कालखंड की घटनाओं पर पोथन्ना लिखना उचित नहीं है।इसलिए इस इतिहास विषयक चर्चा का फोकस अभी-अभी बीती सहस्राब्दी यानी 1000 ईस्वी से 1999 के अंत तक की अवधि तक ही सीमित रखना ठीक होगा।
  • पहले सहस्राब्दी का अंत और दूसरी का आरंभ होने के समय विश्व पर दृष्टिपात करने पर कई ऐसी झांकियां सामने आती हैं जो सदा के लिए सार्थक हैं-इनमें पहली छवि,जो सभ्य मनुष्य के लिए माने रखती है,वह छोटी दुनिया की है।आज के मुकाबले तब का ज्ञात संसार बहुत छोटा था।1000 ईस्वी में मौजूद रहे हमारे पुरुखों के लिए संसार का अर्थ केवल एशिया,यूरोप और अफ्रीका के उत्तरी हिस्सों तक सीमित था।उन्हें दो अमेरिकी महाद्वीपों (उत्तर एवं दक्षिण),कनाडा,ऑस्ट्रेलिया,मिस्र से बाहर के अफ्रीका,यहां तक की जापान के अस्तित्व की भी कोई जानकारी नहीं थी।इनमें से अधिकांश क्षेत्र आज संसार का नेतृत्व कर रहे हैं।किंतु तब ये आदिम स्थान थे,सभ्यता से अछूते।
  • जिन धर्मों का आज विश्व में दबदबा है,वे सब जैसे-सनातन (हिंदू) धर्म,ताओ धर्म,कन्फ्यूशियस धर्म,ईसाईयत,इस्लाम अस्तित्व में आ चुके थे।राजनीतिक दृष्टि से संसार में पहली सहस्राब्दी से पर्याप्त परिवर्तन आ चुका था,जो बड़े और शक्तिशाली साम्राज्य पहले संसार पर हावी थे-जैसे फारस,यूनान,रोम,सुमेरी और मिस्र के साम्राज्य-वे तार-तार होकर बिखर गए थे।उस समय का उभरता सितारा था,नवोदय धर्म इस्लाम का झंडा जो अरब,दमिश्क और बगदाद को अपना मजबूत आधार बना चुका था।इस्लाम की शक्तियों ने ईरान और यूरोप तथा अफ्रीका के अनेक भागों तक संपूर्ण पश्चिम एशिया का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था।आज के विपरीत उस समय में राष्ट्र राज्य की अवधारणा नहीं बनी थी।नगर राज्य की 2000 साल पुरानी अवधारणा ही चलन में थी।नगर की सीमा से बाहर के क्षेत्र युद्ध लड़कर हथियाये और बलपूर्वक राज्य में मिलाए जाते थे।उन क्षेत्रों के प्रति कोई जातीय भावना नहीं होती थी।
  • मानवीय ज्ञान के विस्तार में प्रगति भी पहली सहस्राब्दी के विश्व में धीमी रही।होमर के ‘ईलियड’ को टक्कर देने वाली कोई महाकाव्यात्मक कृति सामने नहीं आई।न तो हेरोडोटस के जोड़ का कोई इतिहासकार उभरा और न ही सुकरात,प्लेटो तथा अरस्तू जैसी प्रतिभा वाला कोई दार्शनिक।जो अंग्रेजी भाषा आज हम सबकी शान का सबब बन गई है वह तब तक विकसित नहीं हो पाई थी।कोई ऐसा सैनिक योद्धा भी नहीं उभरा जो सिकंदर के विजय अभियान को दोहरा सके।मनुष्य को ब्रह्मांड के भौतिक पहलुओं की जानकारी नाम मात्र की ही थी।ईसा की पूर्ववर्ती सहस्राब्दी तक आविष्कृत धातुओं-सोना,चांदी,लोहा,जस्ता और तांबा की जानकारी में भी इसके बाद वाली सहस्राब्दी में कोई इजाफा नहीं हो पाया।
  • एक महत्वपूर्ण प्रगति गणित के क्षेत्र में अवश्य हुई।बीजगणित और शून्य के योग से गणित का क्षेत्र पहले से अधिक विस्तृत हुआ।दूसरी उपलब्धि बनी रोम शासकों द्वारा शासन की सुविधा के लिए विकसित की गई है एक व्यवस्थिति वैधानिक संरचना जिसे धीरे-धीरे दूसरे-दूसरे समाजों में अपना लिया गया।जब पहली सहस्राब्दी समाप्त और दूसरी शुरू हो रही थी तब कुल मिलाकर संसार की शक्ल-सूरत यही थी।

4.शंकराचार्य का महत्त्व (Importance of Shankaracharya):

  • किंतु भारत के लिए वह काल सचमुच बहुत धुंधला था। देश हर तरह से ह्रास के दौर से गुजर रहा था।प्रथम सहस्राब्दी के विपरीत उस वक्त कनिष्क,चंद्रगुप्त,समुद्रगुप्त या हर्षवर्धन जैसा कोई दूरदर्शी शासक नहीं बचा था जो देश को अनुकरणीय और सूझबूझ वाला नेतृत्व प्रदान कर पाता।देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था।ये राज्य आपस में युद्ध लड़ते रहते थे और क्रमशः कमजोर होते जा रहे थे।देश पर मुसलमानों के हमले तेज हो चले थे जो शुरुआती आठवीं सदी में सिंध पर बिन कासिम का कब्जा होने और पहली सहस्राब्दी की समाप्ति के आसपास पश्चिमोत्तर भारत पर सुबुक्तगीन की चढ़ाइयों के साथ हुई थी वह दूसरी सहस्राब्दी में जोड़ पकड़ती गई।
  • छोटे-छोटे राज्यों में बँटे भारत के उत्तरी भागों में तोमरों,परमारों,बुंदेलों,चौहानों,सिसोदियाओं और राठौरों का शासन था और पूर्व में पालों का और दक्षिण में राष्ट्रकूटों,चोलों,पालों और चालुक्यों का।किंतु उसमें एक भी ऐसा शासक नहीं था जो राष्ट्रीय नेतृत्व को संभाल पाता।प्रथम सहस्राब्दी में मानव प्रतिभा और कृतित्व के दूसरे क्षेत्रों के हालात भी बेहतर नहीं थे।उसके पहले वाली सहस्राब्दी को भाषा और साहित्य के क्षेत्र में पाणिनी,पतंजलि,कालिदास,विष्णुशर्मा (पंचतंत्र के प्रणेता),विशाखादत्त और बाणभट्ट ने और ज्योतिष तथा गणित के क्षेत्र में वाराहमिहिर भास्कराचार्य और आर्यभट के योगदानों ने बहुत समृद्ध किया था।किंतु इन क्षेत्रों में 700 से 1000 के बीच कोई नया योगदान नहीं हुआ।
  • धर्म के क्षेत्र में हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद तीन सदियों में बौद्ध धर्म का लगातार ह्रास होता रहा।सनातन (हिंदू) धर्म के संरक्षण और प्रचार के लिए शंकराचार्य के चक्रवर्ती विजय अभियान ने पूरे देश का धार्मिक दृश्य ही बदल दिया।हिंदू धर्म नयी और व्यापक शक्ति के साथ प्रतिष्ठित हुआ और बौद्ध धर्म ध्वस्त हो गया।शंकराचार्य के इस प्रयास का ऐतिहासिक महत्त्व इस तथ्य में है कि इतिहास की उसी दूरस्थ बिंदु पर अखंड भारत की कल्पना की जा रही थी।बहरहाल,प्रथम सहस्राब्दी के इस भारत ने दूसरी सहस्राब्दी में कदम रखा।

5.मानवाधिकारों का उदय (The Rise of Human Rights):

  • दूसरी सहस्राब्दी के प्रारंभिक 300 वर्षों की अवधि यूरोप और एशिया के लिए बड़ी उथल-पुथल और अस्थिरता की अवधि रही।यूरोपीय देशों ने चर्च (धर्म के शासन) को चुनौती देनी शुरू कर दी थी।चर्च स्वयं दो हिस्सों में बँट गया था-रोमन चर्च और ग्रीक (यूनानी) चर्च।जर्मनी,फ्रांस,इटली और कुछ स्कैंडिनेवियाई देश यूरोपीय मामलों में अपना वर्चस्व पुनः कायम करने के लिए एक-दूसरे से लड़ झगड़ रहे थे।इंग्लैंड पर एक विशिष्ट राजनीतिक अस्मिता के बतौर स्वयं को विकसित करने के लिए अभी भी संघर्ष कर रहा था।एशियाई कार्यकलाप भी उतनी ही भ्रामक तस्वीर पेश कर रहा था।इस्लाम की शक्तियाँ उसकी स्थिति सुदृढ़ करने में अद्भुत उत्साह प्रदर्शित कर रही थी।उनमें सेलजुक तुर्क सबसे अधिक विख्यात थे।
  • उस काल की एक उल्लेखनीय घटना थी,मुसलमानों के नियंत्रण से ईसा मसीह की जन्मभूमि यरुशलम को मुक्त करने के लिए यूरोपीय शक्तियों द्वारा सम्मिलित रूप से चलाए जाने वाला जेहाद।तुर्कों और अरबों के तेजी से उदय का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे मजबूत जोश से भरे तो थे ही इसके अलावा उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में यूनान के प्राचीन ज्ञान भंडार से बहुत-सी विद्याएँ सीखी थी जबकि यूरोप वाले तब तक उस ज्ञान भंडार की उपेक्षा करते आए थे।1200 से 1250 ईस्वी के बीच दो बड़े महत्त्व की घटनाएं लगभग एक ही समय घटी थी।एक थी इंग्लैंड के बादशाह जान द्वारा मैगनाकार्टे (मानवाधिकार पत्र) पर हस्ताक्षर किया जाना (1225)।यह पहला दस्तावेज था।इसमें किसी एक एकाधिकारवादी तानाशाह ने अपनी प्रजा के मानवाधिकारों को सुरक्षा और सम्मान देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर मुहर लगाई थी।इतिहास में इस घटना का,ऐसी गिनी चुनी उपलब्धियां की सूची में दर्ज होना,जिन्होंने मानव जाति की किस्मत बदल डाली,लाजिमी था।दूसरी घटना थी,सुदूर पूर्व एशिया से मंगोलों का चंगेज खाँ (मुसलमान नहीं) जैसे जुझारु और महत्त्वाकांक्षी सरदार के नेतृत्व में उदय होने की।तब तक अज्ञात रहे मंगोल कबीले देखते-देखते चीन और आंशिक रूप से यूरोप समेत लगभग समूचे एशिया में छा गए।थोड़े ही समय में चंगेज खाँ ने लगातार विजय प्राप्त करते हुए जो विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया उसकी मिसाल तक के इतिहास में नहीं थी।

6.भारत की त्रासदी (India’s Tragedy):

  • पर भारत के लिए 300 वर्षों का अरसा घोर अंधकार और अवसाद का काल था।सहस्राब्दी (1000 ईस्वी) के पहले ही साल महमूद गजनवी ने भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र पर भीषण आक्रमण कर दिया और भारी नरसंहार के साथ क्षेत्र को शैतान की तरह तहस-नहस किया।महमूद ने 1025 तक इस तरह के 17 आक्रमण किये और कई शताब्दियों के प्रयास से संचित देश के वैभव और खजाने लूट लिए।दुर्भाग्य से देश का कोई भी शासक इतना सफल नहीं था कि वह महमूद के आक्रमणों के ज्वार को रोक पाता।
  • लेकिन जहां उत्तर भारत दयनीय दुर्दशा के दौर से गुजर रहा था वहीं दक्षिण भारत की प्रगति और वैभव-वृद्धि निर्बाध जारी थी इस क्षेत्र पर नियंत्रण रखने वाले प्रमुख राजकुल थे-तमिल क्षेत्र में चोल,हेलीबिड में हयसाल,वारंगल में काकतीय और देवगिरी में यादव। इनमें सबसे सबल और साहसी था चोल राजा राजेंद्र जिसने सफलतापूर्वक उन सुदूर क्षेत्रों तक नौसैनिक अभियान चलाया जिन्हें आधुनिक शब्दावली में इंडोनेशिया और मलेशिया कहा जाता है।
  • देश पर दुर्भाग्य संहारक वज्रपात हुआ 1192 में,जब मोहम्मद गोरी ने उस समय के सबसे शक्तिशाली भारतीय राजा पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया।उसके पहले डेढ़ सौ वर्ष तक देश में पूर्णतः सन्नाटा छाया रहा,किंतु पृथ्वीराज की पराजय देश के सुधीर्घ इतिहास का सर्वाधिक अंधकारमय प्रकरण साबित हुई।उसी का दुष्परिणाम था कि भारत को अगली आठ शताब्दियों तक विदेशी मूल के शासकों का गुलाम बनकर रहना पड़ा।क्रमिक रूप से लगभग संपूर्ण भारत 13वीं सदी के अंत तक मुस्लिम शासन के अधीन हो गया।उस समय पद्मिनी ख्याति का अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली की गद्दी पर था।इसी अवधि में प्रथम और अंतिम बार एक महिला रजिया सुल्तान ने एक शासक के बतौर भारत पर राज किया (1236-40)।
  • त्रासदियों के उस दौर में सभ्यता और संस्कृति का क्षय होना लाजिमी था।उस काल की एकमात्र उपलब्धि थी वास्तु सृष्टि।देश के विभिन्न भागों में कुछ श्रेष्ठतम मंदिर उसी काल में निर्मित हुए-जैसे खजुराहो,कोणार्क,मदुरै और रामेश्वर के मंदिर,जो आज तक हिंदू मंदिर निर्माण कला के पूर्ण प्रतिमान के रूप में सम्मानित हो रहे हैं।उस अवधि में वास्तुशिल्प की पारंपरिक भारतीय शैली में मुस्लिम प्रभावों के चलते महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।नुकीला बंदनवार और वर्तुल शिखर,यही दो विशेषताएं आने वाली शताब्दियों में भारतीय वास्तु-शिल्प की प्रमुखता बनने वाली थी।किंतु मानवीय कृतित्व के दूसरे-जैसे विज्ञान,गणित,साहित्य क्षेत्रों में इस काल की उपलब्धि शून्य रही।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गत सहस्राब्दियों में किए गए कार्यों की समीक्षा (Review of Work Done in Last Millennium),गत सहस्राब्दियों में किन-किन सोपानों को तय किया गया है? (What Are Steps That Have Been Set in Last Millennium?) के बारे में बताया गया है।

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7.उछल पड़ने का नुस्खा (हास्य-व्यंग्य) (Recipe for Bouncing) (Humour-Satire):

  • बॉयफ्रेंड (गर्लफ्रेंड से):मेरे कान में कुछ ऐसी मीठी बात कह दो कि जिससे मैं उछल पडू।
  • गर्लफ्रेंड (बॉयफ्रेंड से):आज तुम कक्षा में नहीं थे।गणित शिक्षक ने टेस्ट के नंबर सुनाये थे,उसमें आपको जीरो नंबर मिले हैं।

8.गत सहस्राब्दियों में किए गए कार्यों की समीक्षा (Frequently Asked Questions Related to Review of Work Done in Last Millennium),गत सहस्राब्दियों में किन-किन सोपानों को तय किया गया है? (What Are Steps That Have Been Set in Last Millennium?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.समीक्षा से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Review?):

उत्तर:समीक्षा शब्द के बहुत सारे अर्थ हैं।उसका मकसद जांच भी हो सकता है,सामान्य सर्वेक्षण भी और बीती हुई बातों का अवलोकन भी।फिर इस शब्द के अर्थ मूल्यांकन,दोबारा मूल्य निर्धारण,फिर से देखना,अंतरावलोकन और आलोचना भी हो सकते हैं।

प्रश्न:2.समीक्षा करना क्यों आवश्यक है? (Why is It Necessary to Review?):

उत्तर:ताकि गत वर्षो,शताब्दियों,सहस्राब्दियों में जो गलतियां की गई है उनकी पुनरावृत्ति ना हो,उसे सीख ले सकें तथा जो कार्य किए जाने चाहिए वे कार्य करने का संकल्प लें।

प्रश्न:3.भारत को क्या सीख लेनी चाहिए? (What Should India Learn?):

उत्तर:आध्यात्मिक व भौतिक शिक्षा में संतुलन होना आवश्यक है।अतः भौतिक शिक्षा के साथ ही छात्र-छात्राओं को आध्यात्मिक,चारित्रिक,नैतिक शिक्षा देना भी शिक्षा में समावेश करना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गत सहस्राब्दियों में किए गए कार्यों की समीक्षा (Review of Work Done in Last Millennium),गत सहस्राब्दियों में किन-किन सोपानों को तय किया गया है? (What Are Steps That Have Been Set in Last Millennium?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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