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Students Should Not Condemn Anyone

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1.छात्र-छात्राएं किसी की निंदा न करें (Students Should Not Condemn Anyone),छात्र-छात्राएँ किसी भी व्यक्ति की चुगली न करें (Students Should Not Backbite Anyone):

  • छात्र-छात्राएं किसी की निंदा न करें (Students Should Not Condemn Anyone) क्योंकि इससे छात्र-छात्राओं का खुद का ही नुकसान है।किसी की न तो निन्दा करें और न किसी की निन्दा सुने।निंदा करने और निंदा सुनने से छात्र-छात्राओं का ध्यान अध्ययन से भटक कर निंदा करने में व्यतीत होने लगता है।उनमें धीरे-धीरे अनेक बुराइयां पनपने लगती है।एक बार निंदा करने और निंदा करने की आदत पड़ जाती है तो धीरे-धीरे उसमें मजा व रस आने लगता है।
  • पीठ पीछे निंदा करना और सुनना बहुत लोगों की आदत पड़ जाती है।जो व्यक्ति तुम्हारे सामने दूसरों के दोषों का वर्णन करता है,वह दूसरों के सामने तुम्हारे दोषों का भी बखान करेगा।निंदा सुनते समय बहुत से छात्र-छात्राएं एवं लोग इस व्यावहारिक बात को भूल जाते हैं कि निंदक किसी का सगा नहीं होता है।
  • चुगलखोरी भी इसी प्रवृत्ति का नाम है।निन्दा व चुगलखोरी की वजह से छात्र-छात्राओं और लोगों में आपस में लड़ाई-झगड़ा व दंगे-फसाद हो जाते हैं।निन्दक की बातों पर विश्वास करने पर दोस्त दुश्मन बन जाते हैं।
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2.निंदा का त्याग करें (Give up Blasphemy):

  • कुछ छात्र-छात्राओं तथा लोगों को दूसरों की निंदा करने में बड़ा मजा और खुशी महसूस होती है।ऐसे छात्र-छात्राएं तथा लोग हमेशा इसी फिराक में रहते हैं कि कहीं कोई ऐसा मसाला हाथ लग जाए जिससे दूसरों की निंदा की जा सके और उनको आपस में लड़ाया-भिड़ाया या उकसाया जा सके।
  • वस्तुतः दूसरों की निंदा करना अपनी खुद की प्रशंसा करना है,यह खुद की प्रशंसा करने का एक ढंग है।हमने किसी के दोष,बुराइयों व कमियों का वर्णन किया इसका मतलब है कि हमारे अंदर दोष,दुर्गण और बुराइयां नहीं है,हम निर्दोष,श्रेष्ठ व अच्छे हैं।यह अपनी प्रशंसा करने का एक ढंग और हीनभावना का प्रतीक है।जो छात्र-छात्राएं जितने हीनभावना से ग्रस्त होते हैं वे दूसरों की उतनी ही निंदा करके अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहते हैं।
  • कई लड़कियां तथा महिलाएं भी सामान्यतः ईर्ष्या और हीनभावना से ग्रस्त होकर दूसरी लड़कियों और महिलाओं की निंदा करने की प्रवृत्ति वाली होती हैं।
  • दूसरों की निंदा करने में अहम की संतुष्टि और एक विशेष प्रकार के रस की प्राप्ति होती है क्योंकि दूसरों को छोटा एवं खोटा बताकर हम अपने को बड़ा एवं खरा सिद्ध करने की कोशिश करते हैं।यद्यपि बड़प्पन की यह अनुभूति नकली एवं सतही होती है।
  • हालांकि छात्र-छात्राएं निन्दा करने की प्रवृत्ति से बड़ों,वरिष्ठजनों,माता-पिता,अध्यापकों इत्यादि से ही सीखते हैं।बड़ों में निन्दा करने की प्रवृत्ति है वह छोटों में,बच्चों में व छात्र-छात्राओं में कई गुना होकर उनके मन में अपना निवास बना लेती है।
  • माता-पिता व अभिभावक युवक-युवतियों की अन्य युवक-युवतियों से तुलना करते हुए उन्हें हीन,अकर्मण्य,कमजोर व अक्षम सिद्ध करने की कोशिश करते हैं।इससे युवक-युवतियों के मन को ठेस पहुंचती है और वे अपने को हेय व हीन समझने लगते हैं।
  • युवक-युवतियों में प्रशंसा पाने की ललक उत्पन्न हो जाती है,अपेक्षित प्रशंसा न मिलने पर वे अपनी प्रशंसा तथा दूसरों की निन्दा करने लगते हैं।
  • साथ ही उनका ध्यान अध्ययन से हटकर व्यर्थ की बातों और व्यर्थ के कार्यों की ओर लग जाता है।वे अपना समय दूसरों की निन्दा करके अपना समय नष्ट करते हैं और अध्ययन भी पूर्ण एकाग्रता के साथ नहीं कर पाते हैं।
  • इसका तात्पर्य यह नहीं है कि माता-पिता,अभिभावक व शिक्षकों को छात्र-छात्राओं के दोषों की चर्चा ही न करें।अवश्य करें,परन्तु छात्र-छात्रा को उनके दोषों,दुर्गुणों,कमियों को एकान्त में कहें,सबके बीच में चर्चा का विषय बनाने से वे अपने आपको अपमानित महसूस करते हैं।दूसरा यह ध्यान रखें कि अनावश्यक प्रशंसा एवं भर्त्सना अथवा निंदा न करें क्योंकि ऐसा करने से छात्र-छात्राओं में सुधार के बजाय बिगड़ जाते हैं।
  • तीसरी बात यह ध्यान रखनी चाहिए कि निंदा व चुगली एकांत में की जाए तथा पीठ पीछे की जाए या सामने की जाए हमेशा हानिकारक होती है। बालक-बालिका को त्रुटि,कमी या दोष के प्रति एकांत में सजग कर देना पर्याप्त होता है।
  • कई माता-पिता,अभिभावक तथा शिक्षक बालक-बालिका के लिए ऐसे शब्दों को इस्तेमाल करते हैं जैसे पागल,मूर्ख,बेवकूफ,बुद्धू अर्थात् वे इस तरह से इन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं:यह तो बिल्कुल पागल है,तू एकदम मूर्ख है,इतना बड़ा होकर भी तुझमें अक्ल नहीं आई आदि।बालक-बालिकाओं को ऐसा शब्द सुनकर गहरा आघात लगता है,उनके हृदय में पीड़ा महसूस होती है।अन्य लोग सुनते हैं तो बालक-बालिकाओं को ऐसे शब्दों से ही संबोधित करने लगते हैं।

3.किसी की चुगली न करें (Don’t Backbite Anyone):

  • कुछ छात्र-छात्राओं में अध्ययन करने का श्रेष्ठ गुण या अन्य कोई हुनर हो या न हो परंतु चुगली करने में वे माहिर होते हैं।इधर की बात उधर और उधर की बातें इधर भिड़ाना,दूसरों की झूठी शिकायतें करना,किसी में कोई दोष,दुर्गुण या कमी न हो तो भी उस पर उन दोषों,दुर्गुणों व कमियों को आरोपित करना चुगली करना कहा जाता है।चुगली,निन्दा से भी निकृष्ट तरीका है।
  • राजिया रा दूहा में कहा गया है कि:चोर,चुगल खोर और बातूनी इन लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।ये लोग सुखे पोखरों (तालाब) में भी जबरदस्ती स्नान करा देते हैं।ऐसे लोग हंसी-हंसी में चुगली खाकर निरपराधों की रोजी-रोटी छीन लेते हैं।
  • राजा महाराजाओं को चापलूस और चुगलखोर घेरे रहते थे।आधुनिक युग में इन चापलूस और चुगलखोरों का अड्डा मंत्रियों,बड़े-बड़े अफसरों,मुख्यमंत्रियों और बड़े-बड़े सेठ-साहूकारों तथा कंपनी के संचालकों को घेरे रहते हैं।
  • वे दूसरों की चुगलियाँ खाकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं।ऐसे चुगलखोरों से सावधान रहना चाहिए और उनकी बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
  • चोरों और बातूनियों की बातों पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए।चोर का तो काम ही लोगों को धोखा देना होता है।बातूनी लोग गप्पे हाँकने में माहिर होते हैं।जमीन आसमान के कुलांचे मिला देते हैं।इनकी बातें सुनकर लोग फूलकर कुप्पा हो जाते हैं और ऐसी-ऐसी हरकतें कर बैठते हैं जो मूर्खता से भरी होती हैं।
  • जिसकी निंदा करने व चुगली करने की आदत हो जाती हैं वे सबको बुरा समझने लगते हैं।ऐसे लोग झगड़ालू प्रवृत्ति के हो जाते हैं।स्वयं तो झगड़ा करते ही हैं और दूसरों में भी झगड़ा करवा देते हैं।निंदा करने वालों का तथा सुनने वालों का जीवन भार स्वरूप हो जाता है।ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति में कोई न कोई दोष निकालने,कमियां ढूंढने,दुर्गुण निकालने में अभ्यस्त हो जाते हैं।वे सन्देहशील प्रवृत्ति के होते हैं तथा उनमें श्रद्धा का अभाव होता है और श्रद्धा के बिना ज्ञान ग्रहण करने,विद्या प्राप्ति से वंचित रहते हैं।वे अशिष्ट और बदतमीज बन जाते हैं।
  • समाज में,परिवार में तथा कार्यालयों व विद्यालयों में जहां कहीं भी ऐसे लोग होते हैं उनके प्रति समझदार व विवेकशील लोग उदासीन हो जाते हैं तथा उनकी बात को तवज्जो नहीं देते हैं।वस्तुतः निन्दा व चुगली के जड़ में हीनत्व का भाव होता है।

4.निन्दा या चुगली की प्रवृत्ति से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of the Tendency to Condemn or Backbite?):

  • छात्र-छात्राओं को निन्दा या चुगली करने की आदत पड़ गई है तो अपने आपको अध्ययन में,सद्ग्रंथों के अध्ययन में व्यस्त रखना चाहिए।अध्ययन करने तथा अपने अंदर हुनर को विकसित करने से आपको जब समय ही नहीं रहेगा तो निन्दा करने से बच सकेंगे।
  • अपनी तुलना दूसरों से न करके स्वयं से ही तुलना करना सीखें।इस दुनिया में हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति अनोखा व अद्वितीय है।अतः दूसरों की तरह बनने की बजाय अपनी प्रतिभा को पहचाने और अपने आपको उस प्रतिभा को विकसित करने में संलग्न कर दें।अपने आपको स्वीकार करना सीखें,अपनी विशेषताओं को पहचानना सीखें,अपनी खूबियों और कमजोरियों,दोषों,दुर्गुणों को पहचानें।अपनी विशेषताओं,खूबियों तथा गुणों को विकसित करते जाएं और दुर्गुणों,दोष व कमजोरियों को दूर करते जाएं।
  • यदि कोई दूसरा छात्र-छात्रा,माता-पिता,अभिभावक अथवा अन्य कोई व्यक्ति भी आपको दूसरा जैसा बनने की चुनौती दें आपको यह कहे कि उसका जैसा बनकर दिखाओ,कोई श्रेष्ठ या उच्च पदाधिकारी बनके दिखाओ तो उसकी तरफ ध्यान न दें तथा अपने अंदर हीन भावना पैदा न करें बल्कि आपके अंदर जो हुनर है,प्रतिभा है उसको प्राणपण से विकसित करने में अपनी संपूर्ण शक्ति लगा दें।
  • हमेशा सात्त्विक विचारों को ग्रहण करने की कोशिश करें तथा मन को शुद्ध,निर्मल व पवित्र विचारों से युक्त रखने की कोशिश करें।यदि आपकी कोई निंदा करता है तो उसकी निंदा न करने के बजाए इस सूत्र को याद रखें:निंदक नियरे राखिए,आंगन कुटी छवाय।बिन पानी साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय।। (कबीरदास जी)।
  • निंदापरक बातें करना या सुनना प्रेम स्वरूप भगवान के विरुद्ध आचरण करना है।निन्दा करके या निन्दा सुनकर भगवान द्वारा रचित इस सुन्दर सृष्टि को बदरंग और प्रदूषित करने का काम करते हैं।जब भगवान से दंड मिलता है तो समझ ही नहीं पाते हैं कि यह दंड क्यों मिल रहा है? भगवान हमें हमारे कर्मों को भोगने का अवसर देते हैं।अतः भगवान में निष्ठा रखकर जिस उद्देश्य से भगवान ने इस सृष्टि का निर्माण किया है उसमें योगदान देने का भरसक प्रयास करें।
  • निंदा करके हम अपने दोषों,दुर्गुणों को छिपाने की कोशिश करते हैं क्योंकि हमारा ध्यान दूसरों के दुर्गुणों,दोषों को देखने की ओर होता है।अतः अपनी दृष्टि को दूसरों की तरफ से हटाकर अपना आत्म-निरीक्षण करने की तरफ लगाएं तो धीरे-धीरे आपके दोष-दुर्गुण दूर होते जाएंगे।

5.निंदा का दृष्टान्त (The parable of Blasphemy):

  • एक कंपनी में प्रबंधक की भर्ती निकली।दो छात्र आपस में मित्र थे,दोनों अपने आपको विद्वान समझते थे।परंतु जो निन्दा में प्रवीण होते हैं वे बड़प्पन,पद,प्रतिष्ठा अथवा धन दौलत पाने की खातिर अपनी मन:स्थिति की मलिनता प्रगट कर ही देते हैं चाहे वे अपने आपको कितने ही चतुर समझें।जब उन्हें शिक्षा मिलती है तब अपना छोटापन समझ में आता है।
  • दोनों छात्र भी निन्दा करने में प्रवीण थे।वे अन्दर ही अन्दर यह चाहते थे कि प्रबन्धक का पद उसे ही मिले।वे दोनों साक्षात्कार के लिए निर्धारित दिन व समय पर कंपनी के मुख्य कार्यालय में पहुंचे।
  • पहले छात्र को साक्षात्कारकर्त्ता ने बुलाया और दूसरे छात्र के बारे में पूछा तो वह कहने लगा वह तो बिल्कुल बुद्धू है वह तो कंपनी में चपरासी रखने लायक है।पहला छात्र बाहर आया और दूसरा छात्र साक्षात्कार के लिए कमरे के अन्दर गया।
  • साक्षात्कारकर्त्ता ने दूसरे छात्र से भी वही प्रश्न पूछा।दूसरा छात्र बोला वह तो बिल्कुल मूर्ख है,उसकी योग्यता तो कार्यालय में झाडू व सफ-सफाई करने लायक है।
  • दोनों छात्र साक्षात्कार का परिणाम का इंतजार करने लगे।कंपनी के संचालक ने पहले छात्र को झाडू व साफ-सफाई के कार्य का नियुक्ति पत्र तथा दूसरे छात्र को चपरासी का नियुक्ति पत्र थमा दिया।दोनों को ही प्रबंधक के पद पर नियुक्त नहीं किया।
  • संचालक बोले चपरासी व सफाई कर्मचारी का नियुक्ति पत्र हाजिर है।दोनो चपरासी व सफाई कर्मचारी का नियुक्ति पत्र पाकर बड़े लज्जित हुए।
  • इस प्रकार दोनों ने ही क्वालीफाइड होकर भी प्रबन्धक का पद गँवा दिया।दोनों ने एक-दूसरे की निंदा की।साथ-साथ अध्ययन करके भी निंदा की प्रवृत्ति के कारण एक-दूसरे का सहयोग तथा सदाचार का पाठ नहीं पढ़ सके।यह आधुनिक शिक्षा की विकृति है।ज्यादातर छात्र-छात्राएं विद्यालय और महाविद्यालय,विश्वविद्यालय से क्वालीफाइड होकर ही निकलते हैं।बहुत कम छात्र-छात्राएं ऐसे होते हैं जो शिक्षित होकर निकलते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं किसी की निंदा न करें (Students Should Not Condemn Anyone),छात्र-छात्राएँ किसी भी व्यक्ति की चुगली न करें (Students Should Not Backbite Anyone) के बारे में बताया गया है।

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6.दिनदहाड़े गणित में नकल (हास्य-व्यंग्य) (Cheating in Mathematics in Broad Daylight) (Humour-Satire):

  • जज:छात्र से,तुम पर आरोप है कि तुमने दिनदहाड़े गणित के प्रश्न-पत्र में नकल की।
  • छात्र:जी हुजूर,मैं मजबूर था,रात में मुझे नींद आती है।

7.छात्र-छात्राएं किसी की निंदा न करें (Frequently Asked Questions Related to Students Should Not Condemn Anyone),छात्र-छात्राएँ किसी भी व्यक्ति की चुगली न करें (Students Should Not Backbite Anyone) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या कंपनी के मैनेजर को किसी की निंदा नहीं सुननी चाहिए? (Shouldn’t the Manager of the Company Listen to Anyone’s Condemnation?):

उत्तर:बुरा न देखें,बुरा न कहें,बुरा न सुने जब तक कि आवश्यक न हो।कर्मचारियों/अधिकारियों से अच्छे काम की अपेक्षा करें और इसमें उनकी सहायता भी करें।तब आप निश्चित रूप से अच्छा काम कर पाएंगे।ऐसी स्थिति पैदा ही न होने दें जिसमें आपको उनसे सही काम करवाना पड़े।किसी को भी ऐसी स्थिति में नहीं होना चाहिए जिसमें उनसे जबरदस्ती करनी पड़े।

प्रश्न:2.छात्र-छात्राओं की गतिविधियों में हस्तक्षेप क्यों नहीं करना चाहिए? (Why Not Interfere in the Activities of Students?):

उत्तर:माता-पिता,अभिभावकों व शिक्षकों को समझना चाहिए कि जब छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्व काफी विकसित हो चुका हो और वह भले-बुरे के संदर्भ में निर्णय करने में सक्षम है तो वह चाहता है कि अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करें।समर्थ छात्र-छात्राएं क्या करते हैं,यह वास्तव में हमारा सिरदर्द नहीं होना चाहिए।उसको विचार एवं कार्य करने की स्वतंत्रता है,जिस प्रकार माता-पिता,अभिभावक,शिक्षक व अन्य लोग स्वतंत्र विचार एवं स्वतंत्र आचरण को अपना अधिकार मानते हैं।जो स्वतंत्रता हम चाहते हैं वही स्वतंत्रता युवावर्ग चाहता है।उसका स्वतंत्र आचरण जब तक हमारे अथवा अन्य किसी के स्वतंत्रता में अवरोध उत्पन्न नहीं करता है तब तक हमें छात्र-छात्राओं के कामों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।कार्यों में अनावश्यक व अकारण हस्तक्षेप करके हम अपने युवक-युवतियों के मन में हीनता का भाव समाविष्ट करने का प्रयत्न करते हैं।माता-पिता अथवा अभिभावक का काम एक माली की तरह बेतरतीब बढ़त को सही दिशा देना है।अतएव स्वतंत्रता देने पर यदि हम समझते हैं कि बालक-बालिका गलती पर है तो हमारा कर्त्तव्य है कि उपयुक्त अवसर पाकर एकांत में एक मित्र की भांति उसका ध्यान त्रुटि की ओर आकर्षित कर दें और यह भी बता दें कि हम ऐसा किस कारणवश सोचते हैं।

प्रश्न:3.हीन भावना से क्या लक्षण प्रकट होते हैं? (What are the Symptoms Manifested by Inferiority Complex?):

उत्तर:हीनभावना छात्र-छात्रा व्यक्ति के आचार विचार और व्यवहार पर बहुत गहरा और व्यापक प्रभाव डालती है और इसकी वजह से ऐसे लक्षण प्रकट होते हैं कि हम सोच ही नहीं पाते हैं यह लक्षण हीनभावना का है।जैसेःक्रोध करना,निन्दा व चुगली करना इत्यादि।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं किसी की निंदा न करें (Students Should Not Condemn Anyone),छात्र-छात्राएँ किसी भी व्यक्ति की चुगली न करें (Students Should Not Backbite Anyone) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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