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How to Develop Original Talent?

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1.मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent?),युवावर्ग की मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent of Youth?):

  • मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent?) क्योंकि आजकल सभी क्षेत्र में जो शीर्ष पर होते हैं वे अपनी प्रतिभा द्वारा युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।सचिन तेंदुलकर,महेंद्रसिंह धोनी,विराट कोहली को देखकर क्रिकेट के क्षेत्र में प्रतिभा को विकसित करने का मन करता है।सोनू निगम,श्रेया घोषाल,ए आर रहमान को देखकर संगीत को कार्य क्षेत्र बनाने का मन करता है।गणितज्ञ के सी सिंहा,एम एल खन्ना,महान महाराज व आर के श्रीवास्तव को देखकर गणित के क्षेत्र में करियर बनाने का इरादा होता है।योग गुरु स्वामी रामदेव को देखकर योग की साधना की तरफ रूझान होता है।
  • दरअसल कोई भी युवक-युवती अगर किसी क्षेत्र के श्रेष्ठ व्यक्तित्त्व को देखकर अपने लिए कार्यक्षेत्र का चुनाव करता है तो वह सही नहीं है।महत्त्वपूर्ण बात यह है कि युवक-युवती की रुचि किस क्षेत्र में है,काबिलियत क्या है,उसकी दिल की आवाज क्या है आदि को देखकर यह तय करना चाहिए कि उसकी मौलिकता क्या है?
  • विभिन्न आकर्षणों को देखकर तथा किसी का अनुकरण करने से स्वयं की मौलिकता खो जाती है और आकर्षण के लोभ में जो क्षेत्र चुनते हैं,उसके साथ भी न्याय नहीं कर पाते हैं।अपनी मौलिक प्रतिभा की पहचान करके उसके विकास का हर संभव प्रयत्न करना चाहिए।सारा व्यक्तित्त्व स्वयं की मौलिक प्रतिभा में ही निहित है परंतु ज्योंही हम अपनी मौलिक प्रतिभा से हटते हैं तो अपनी पहचान खो देते हैं।
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2.मौलिक प्रतिभा को न पहचानने के कारण (Reasons for Not Recognizing Original Talent):

  • जब हम किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्तित्त्व अथवा दूसरों का अनुकरण करते हैं तो हमारा व्यक्तित्व विभाजित खंडित होकर दूसरों पर आश्रित कर देता है।माता-पिता व अभिभावक भी बच्चों की मौलिक प्रतिभा को दबाने,कुचलने का प्रयास करते हैं।वे बचपन से बच्चों पर अपनी आकांक्षाओं,इच्छाओं को थोपने का कार्य करते हैं।
  • समाज में यदि इंजीनियर,डॉक्टर,सीए आदि की प्रतिष्ठा है और अकूत मात्रा में धन कमाया जा सकता है तो वे बच्चों को आईआईटी,सीपीएमटी,पीएमटी,सीपीटी इत्यादि करने का दबाव बनाते हैं भले ही बच्चे का रूझान खेल में,भजन में,नृत्य में या आध्यात्मिक क्षेत्र में हो।
  • परंतु माता-पिता,अभिभावक अपनी महत्वाकांक्षाओं और अहंकार को प्रदर्शित करने के लिए प्रतिष्ठित स्कूल,पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलवाएंगे,कोचिंग की व्यवस्था कराएंगे और रात-दिन अपनी कामनापूर्ति की घुट्टी पिलाते रहेंगे कि तुम्हें क्या बनना है?
  • पढ़ाना,शिक्षित करना कोई बुरी बात नहीं है।किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने और उन्नति करने के लिए अध्ययन करना जरूरी है परन्तु अपनी प्रतिष्ठा तथा बच्चे की रुचि व काबिलियत को जाने बगैर अपनी मनमर्जी का विषय दिलवाकर पढ़ाना नासमझी है।इसी कारण से बच्चे की मौलिकता का अंकुर फूटने से पहले गला घोंट दिया जाता है।
  • मौलिकता के दमन के कारण कई बार बालक भटक जाते हैं अथवा विद्रोह करने पर उतारू हो जाते हैं।कभी-कभी तो माता-पिता व अभिभावक की खुली अवज्ञा करने लगते हैं।यदि बालक की रुचि व काबिलियत गणित के क्षेत्र में है तो उसे जबरदस्ती जीव विज्ञान विषय इसलिए दिलवाया जाए कि डॉक्टर की प्रतिष्ठा और धन कमाने के अवसर अधिक हैं,गलत है।
  • ऐसे युवक-युवतियों में अपनी मौलिकता उभरती,निखरती और पल्लवित नहीं होती है।ऐसे युवक-युवतियां गणित और जीवविज्ञान दोनों क्षेत्रों से चूक जाता है।ऐसे में यदि असफलता मिलती है तो माता-पिता व अभिभावक बच्चे को कोसते और लानत-मनालत करते हैं।अतः बच्चा निराश-हताश होकर जीवन में संघर्ष करने के बजाय हार मानकर बैठ जाता है।
  • माता-पिता व अभिभावक अथवा छात्र-छात्रा स्वयं अपनी मौलिकता की सही परख न कर सके और अपनी मौलिकता को सही दिशा न दे सके तो जीवन कठिनाइयों,समस्याओं के कारण जटिल और दुरूह बन जाता है।फिर जीवन को भार समझकर ढोते हैं,गुजारते हैं।जीवन में कोई रस,आनंद और खुशी नहीं रहती है।फिर तो जैसे-तैसे जिंदगी के दिन पूरे करते हैं,काटते हैं।
  • कई बार सही मार्गदर्शक अथवा काउंसलर नहीं मिलता है इसलिए भी अपनी मौलिकता की पहचान नहीं हो पाती है और गलत क्षेत्र का चुनाव कर बैठते हैं।मित्रों-साथियों की देखा-देखी करके किसी विषय का चुनाव करना अपने आपको धोखा देना है।
  • कुछ विद्यार्थियों में बहुमुखी प्रतिभा होती है अतः वे जिस क्षेत्र का चुनाव करते हैं उसी में शिखर पर पहुंच जाते हैं।परंतु ऐसे विद्यार्थी उंगलियों पर गिने जा सकते हैं जिनमें जन्मजात प्रतिभा होती है और बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं।
  • उदाहरणार्थ सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की गणित शास्त्र में गहरी रुची थी परंतु पिता की इच्छा के अनुसार उन्होंने ऑनर्स के लिए भौतिक विज्ञान विषय ले लिया और 1983 ईस्वी में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया।सत्येंद्रनाथ बसु न केवल भौतिकवेत्ता थे बल्कि उच्चकोटि के गणितज्ञ भी थे।मेघनाथसाहा का मुख्य विषय गणित शास्त्र था पर कॉलेज में भौतिक विज्ञान पढ़ाया और भौतिक विज्ञान में शोधकार्य करके खोजें की।
  • तात्पर्य यह है कि यदि विद्यार्थी में जन्मजात प्रतिभा नहीं भी हो और सामान्य व औसत विद्यार्थी में बहुमुखी प्रतिभा नहीं होती है,तो भी उसकी मौलिक प्रतिभा को सही दिशा मिल जाए तो जन्मजात प्रतिभा नहीं होते हुए भी प्रतिभा के शिखर को स्पर्श कर सकता है।सही मौलिक प्रतिभा को पहचाना जाए तो भी उसे उचित शिक्षा,प्रशिक्षण द्वारा तराशा,निखारा और उभारा जा सकता है यानी प्रतिभा को सही दिशा मिलने पर अर्जित भी की जा सकती है।

3.मौलिक प्रतिभा को पहचानें (Recognize Original Talent):

  • विद्यार्थी के व्यक्तित्त्व का मुख्य आधार उसकी मौलिकता ही है।इसी के आधार पर हमारी पहचान होती है और लोग हमें जानते हैं।मौलिकता से ही हमारे जीवन में रस,आनंद,सौंदर्य और माधुर्य आता हैं।यही हमारा परिचय और विशेषता भी है।
  • परंतु प्रश्न यह है कि हम कैसे जाने की हमारे अंदर मौलिक प्रतिभा क्या है? क्योंकि मौलिकता की पहचान होने पर ही उसके विकास में अपनी पूरी शक्ति लगाएं और उसे पर दृढ़ रहें।वस्तुतः शांत व एकाग्रचित्त होकर अपने दिल की आवाज सुने,अपना आत्म-निरीक्षण करें तो आपका दिल मौलिक कार्य को करने के लिए बार-बार करेगा।सांसारिक प्रलोभनों व आकर्षणों से प्रभावित नहीं होना है।जिस कार्य को करने में आपकी रुचि हो,जिसके बारे में जिज्ञासा हो और जिस कार्य को करने की आपमें काबिलियत हो तथा जिसे करने में खुशी,प्रसन्नता व आनंद का अनुभव हो,वही हमारी मौलिकता है।
  • मौलिकता हमारे व्यवहार में,मन में रची-बसी रहती है परंतु सांसारिक कोलाहल में हम उसकी तरफ ध्यान नहीं देते हैं।जब इसे पहचान कर तराशा जाता है तो यही प्रतिभा है।जैसे कोई विद्यार्थी गणित के सवाल हल करता है और हल नहीं होने पर जूझता है।
  • फिर भी हल नहीं होते हैं तो अपने मित्रों,शिक्षकों या माता-पिता से पूछता है।कोई डांट-डपट देता है अथवा फटकार देता है तो भी आप गणित का अध्ययन करना नहीं छोड़ते हैं।आपका विचार-चिन्तन तथा कल्पना की उड़ाने हमेशा गणित के बारे में ही होती हैं।
  • यदि आपको सही मार्गदर्शन,माता-पिता,शिक्षक व मित्रों का सहयोग मिल जाता है तो उसे पता ही नहीं चलता है कि कब वह नीचे के स्तर से शिखर की ओर पहुंच गया है।
  • गणित के अध्ययन में आने वाली अड़चनों,समस्याओं के बीच भी आपके मन और दिल में गणित बसी रहती है तो आप खुश व प्रसन्न रहते हैं,आनंदित रहते हैं।परंतु अक्सर ऐसा नहीं होता है क्योंकि आपको हतोत्साहित करने,प्रताड़ित करने,दबाने पर आपके अंदर गणित के प्रति रूझान खत्म हो जाता है,आपके अंदर का गणितज्ञ मुरझा जाता है और अंत में मृतप्राय हो जाता है।फिर वह गणितज्ञ या गणित के क्षेत्र में कोई जॉब तो नहीं कर पाता है परंतु वह ओर कुछ कार्य करने के काबिल भी नहीं होता है।
  • ठीक यही बात अन्य मौलिकता जैसे:आर्टिकल लिखना,गणित में लेख लिखना,विज्ञान,खेल,भजन,अध्यात्म,संगीत,नृत्य,कला आदि क्षेत्र में भी लागू होती है।मौलिकता के कारण हमारे अंदर का इंसान व व्यक्तित्त्व जिंदा रहता है और विकसित होता है।
  • परंतु हम किसी की नकल करके,किसी दाब-दबाव से,गलत मार्गदर्शन से अपने अंदर की उभरती हुई मौलिक प्रतिभा का हनन करते हुए किसी दूसरी विधा में प्रवेश करते हैं तो वह अत्यंत घातक होता है।
  • मौलिक प्रतिभा को निखारने का दूसरा उपाय है कि माता-पिता बचपन से ही बालक की क्षमता व प्रतिभा को पहचानकर उसे विकसित करें।बच्चे की मौलिकता को परखें।माता-पिता व अभिभावकों को अपनी इच्छा थोपने के बजाय बालक को अपनी रुचि,जिज्ञासा,पसंद व नापसंद को खुलकर कहने का अवसर दें और निष्पक्ष होकर उनकी सहायता करनी चाहिए।
  • यदि स्वयं व माता-पिता भी आपकी प्रतिभा को पहचान न सकें तो अपने मित्रों,शिक्षकों व काउंसलर से परामर्श लें तथा उनके दिए गए मार्गदर्शन के आधार पर स्वयं निर्णय लेना सीखें।

4.मौलिक प्रतिभा को तराशने का निष्कर्ष (The Conclusion of Nurturing Original Talent):

  • वस्तुतः बालक-बालिकाओं में मौलिक प्रतिभा को पहचानना और उसे तराशना,निखारना व उभारना एक साधना व तपस्या है।यह कार्य बहुत ही धैर्य,विवेक और समयसाध्य है।थोड़ी सी भी लापरवाही व भूल चूक बालक-बालिकाओं के भविष्य को अंधकार में धकेल देती है।
  • जो इसे साधना व तपस्या मानकर करते हैं वे समाज एवं राष्ट्र को एक विकसित प्रतिभा को दान करते हैं।इससे न केवल समाज और राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ती ही है बल्कि उसकी स्वयं एवं परिवार की प्रतिष्ठा भी बहुगुणित होती है।
  • ऐसे प्रतिभावान व्यक्तित्त्व से देश एवं राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों की परख एवं पहचान होती है।अतः हम स्वयं अपनी श्रेष्ठ सामर्थ्य एवं मौलिक प्रतिभा को बढ़ाएँ तथा औरों को भी तराशने में सहयोग करें तो हम स्वयं औरों के लिए आदर्श सिद्ध हो सकते हैं।इसी से राष्ट्र की प्रगति होगी और राष्ट्र विकसित होगा।
  • मौलिक प्रतिभा से ही राष्ट्र का गौरव बढ़ता है तथा राष्ट्र सभी क्षेत्रों में विकास के पथ पर बढ़ता है।किसी भी विकसित राष्ट्र का इतिहास देख लें।जिस देश में प्रतिभाओं का मान-सम्मान होता है,युवक-युवतियों की मौलिक प्रतिभा को आगे बढ़ाया जाता है वह दिनोंदिन प्रगति और विकास की ओर बढ़ता जाता है।अतः प्रत्येक युवक-युवती,माता-पिता व अभिभावक,शिक्षक तथा देश का यह प्रथम कर्त्तव्य है कि मौलिक प्रतिभा को पहचान कर इसे विकसित करने में सर्वोपरि प्राथमिकता दें।

5.मौलिक प्रतिभा का दृष्टांत (The Parable of Original Talent):

  • एक नगर में एक विद्यार्थी ने अभिभावक से परामर्श लिया कि उसे कौनसा ऐच्छिक विषय लेना चाहिए? उसके अभिभावक ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे अतः उन्होंने प्राइमरी स्कूल के अध्यापक से पूछने के लिए कहा।जब उस विद्यार्थी ने प्राइमरी स्कूल के अध्यापक से परामर्श लिया तो उन्होंने कहा कि कॉमर्स विषय ले लो।
  • न तो अभिभावक ने और न ही प्राइमरी स्कूल के अध्यापक ने उस विद्यार्थी से पूछा कि वह स्वयं क्या चाहता है? उस विद्यार्थी ने अभिभावक के डर से कॉमर्स विषय ले लिया।कॉमर्स की कक्षा में बैठकर पढ़ने लगा।संयोग से विद्यार्थी को गेट के पास ही बैठने की जगह मिली।उस विद्यार्थी का कॉमर्स में बिल्कुल ही मन नहीं लगता था क्योंकि उसकी रुचि साइंस मैथमेटिक्स में थी।अतः वह कक्षा में बैठा हुआ भी साइंस कक्षा की तरफ ही देखता रहता था।
  • कॉमर्स के अध्यापकों ने उस विद्यार्थी को टोका और पूछा कि तुम बाहर की तरफ क्या देखते रहते हो? कक्षा में जो पढ़ाया जा रहा है उस पर ध्यान क्यों नहीं देते? उस विद्यार्थी ने कोई जवाब नहीं दिया परंतु कक्षा में गुमसुम बैठा रहता।एक शिक्षक ने उसे एकांत में लेकर उसको अपनी मन की बात बताने के लिए कहा।उस विद्यार्थी ने कहा कि कॉमर्स में पढ़ने में मेरी बिल्कुल भी रुचि नहीं है।मैं तो साइंस मैथमेटिक्स लेना चाहता हूं।
  • उस शिक्षक ने तत्काल उस विद्यार्थी की अंकतालिका ऑफिस से मंगवाई और देखा तो उसके गणित और साइंस में प्रथम श्रेणी के अंक थे तथा उत्तीर्ण भी प्रथम श्रेणी से हुआ था।अतः उन्होंने अंकतालिका लेकर प्रधानाचार्य से मिलने के लिए कहा।प्रधानाचार्य जी बहुत ही सहृदय थे।उन्होंने विद्यार्थी की पूरी बात सुनी और ऐच्छिक विषय परिवर्तन करने के लिए आवेदन पत्र लिखवाया।
  • आवेदन पत्र को अंकतालिका के साथ संलग्न करके उन्होंने अपनी टिप्पणी लिखकर साइंस मैथमेटिक्स के अध्यापक के पास भेज दिया।साइंस मैथमेटिक्स के अध्यापक ने उस विद्यार्थी के अंकों को देखते ही साइंस मैथमेटिक्स लेने की अनुमति दे दी।एक दिन वह विद्यार्थी एक प्रसिद्ध गणितज्ञ बन गया।सभी अध्यापक उस विद्यार्थी की तरक्की और विकास देखकर आश्चर्यचकित रह गए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent?),युवावर्ग की मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent of Youth?) के बारे में बताया गया है।

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6.बचत करने का तरीका (हास्य-व्यंग्य) (How to Save Money) (Humour-Satire):

  • मोहित (माँ से):माँ,मैं आजकल रोजाना ₹200 बचाता हूं।
  • माँ:कैसे?
  • मोहित:में रोज स्कूल जाता हूं तो कोचिंग सेंटर के सामने से गुजरता हूं।कोचिंग सेंटर के गेट पर लिखा हुआ है कि डेमो क्लास की फीस प्रतिदिन ₹200 है।मैंने आज तक एक भी डेमो क्लास नहीं ली।

7.मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Develop Original Talent?),युवावर्ग की मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent of Youth?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या प्रतिभा आनुवांशिक होती है? (Is Talent Genetic?):

उत्तर:प्रतिभा आनुवांशिक और वातावरण (अर्जित,प्रशिक्षण) दोनों का ही प्रतिफल होती है।आनुवांशिक बीज है तो वातावरण भूमि,जल,हवा,प्रकाश और खाद है।किसी वृक्ष की उत्पत्ति बिना बीज के नहीं हो सकती है और न ही अच्छी मिट्टी,हवा,खाद और जल के बिना उसका स्वस्थ्य विकास ही संभव है।ठीक इसी प्रकार बिना आनुवांशिकता के जीवन की उत्पत्ति की कल्पना नहीं की जा सकती और बिना उपयुक्त वातावरण के मिले उसके आनुवांशिक गुणों का समुचित विकास नहीं हो सकता है।आनुवांशिता हमें क्षमताएं देती है और वातावरण उन क्षमताओं को विकसित होने के अवसर प्रदान करता है।

प्रश्न:2.प्रतिभा से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Talent?):

उत्तर:प्रतिभा किसी कार्य विशेष को करने के संबंध में दक्षता है।दक्षता व्यक्ति के आंतरिक और बाह्य गुणों को विकसित करने से प्राप्त होती है।प्रतिभा में आंतरिक गुण ही प्रमुख है।

प्रश्न:3.रुचियां मौलिक विकास में किस प्रकार सहायक है? (How are Interests Helpful in Original Development?):

उत्तर:वह प्रेरक शक्ति जो बच्चों को किसी वस्तु अथवा क्रिया के लिए प्रेरित करती है,रुचि कहलाती है।अभिभावक बच्चों की इन रुचियों का ध्यान रखकर उन्हें उनके विकास में सहयोग दें तभी बच्चों में मौलिक प्रतिभा का विकास होगा,ये रुचियां ही बौद्धिक कुशलता भी बढ़ाएंगी।रुचियों के विकास में अभिभावकों द्वारा ली गई रुचि ही बच्चों को उत्साही बनाती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent?),युवावर्ग की मौलिक प्रतिभा को कैसे विकसित करें? (How to Develop Original Talent of Youth?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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