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How Do Students Get Eligibility?

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1.छात्र-छात्राएं पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Students Get Eligibility?),गणित के छात्र-छात्राएँ पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Mathematics Students Get Eligibility?):

  • छात्र-छात्राएं पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Students Get Eligibility?) अथवा पात्रता में कैसे वृद्धि करें? इससे पूर्व लेख में हमनें योग्यता के साथ छात्र-छात्राएं शिक्षित कैसे हों,के बारे में लिखा था।शिक्षित होना एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है जिसमें आचरण,शिष्टाचार,ज्ञान,व्यवहारिक ज्ञान,कौशल (Skill),सूझ-बूझ,धर्म,अध्यात्म इत्यादि बातों को शामिल किया जा सकता है याकि शामिल किया जाता है।
  • पात्रता का अर्थ है कि कोई वस्तु प्राप्त करने के अधिकारी होने का भाव या धर्म,योग्यता इत्यादि।महत्त्वाकांक्षा रखने के साथ-साथ हमें योग्य भी होना चाहिए।लेकिन इसके बजाय हम महत्त्वाकांक्षा तो रखते हैं परंतु उसके अनुकूल पात्रता,योग्यता प्राप्त नहीं करते हैं और इच्छित वस्तु,पद,प्रतिष्ठा,पुरस्कार इत्यादि को प्राप्त करने के लिए सिफारिश,तिकड़म या प्रभावशाली स्रोत (व्यक्ति) का प्रयोग करते हैं।सिफारिश,तिकड़म इत्यादि का इस्तेमाल करने का अर्थ ही यह है कि हममें पात्रता नहीं है,योग्यता नहीं है।सिफारिश,तिकड़म,प्रभावशाली व्यक्ति के बल पर पद,पुरस्कार,परीक्षा में उत्तीर्ण होना इत्यादि प्राप्त कर भी लें तो पात्रता के अभाव में उसका सही उपयोग नहीं कर सकते हैं।
  • उदाहरणार्थ आप पात्रता के अभाव में,सिफारिश के बल पर किसी कंपनी में इंजीनियर का पद प्राप्त कर लें तो उस पद पर नियुक्त करने पर आपकी असलियत सामने आ जाएगी।इंजीनियर का जो भी दायित्व आपको दिया जाएगा उसे नहीं निभा सकेंगे और इंजीनियर का कोई भी कार्य नहीं कर पाएंगे।
  • परंतु अक्सर जो छात्र-छात्राएं अभ्यर्थी सिफारिश,रिश्वत,तिकड़म अथवा प्रभावशाली व्यक्ति की डिजायर (Desire) का इस्तेमाल परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करने,परीक्षा में उत्तीर्ण होने,कोई पद प्राप्त करने या अन्य वस्तु को प्राप्त करने में करते हैं उनकी दलील होती है कि आजकल इनके बिना कोई काम नहीं कराया जा सकता है।आज सच्चाई,ईमानदारी,सचरित्रता व पात्रता का जमाना नहीं है,ये सब गुजरे जमाने की बातें हो गई है।
  • ऊपर से देखने पर ये तर्क प्रभावशाली नजर आते हैं परंतु असलियत ऐसी नहीं हैं।हर युग में अच्छाई और बुराई रही है और रहेगी।हमेशा एक जैसी परिस्थिति नहीं रहती है।यदि आपने अपात्र होते हुए भी कोई वस्तु,पद,पुरस्कार इत्यादि हासिल कर भी लिया है तो चरित्रवान व्यक्ति (अधिकारी) के आते ही आपको न केवल पद,पुरस्कार,उत्तीर्ण होने की अंक तालिका इत्यादि खोनी पड़ सकती है।
  • दूसरा कारण यह कि अपात्र व्यक्ति में हीनभावना आ जाती है और उसके व्यक्तित्त्व का उचित विकास नहीं होता है।पात्रता के बल पर प्राप्त वस्तु,पद इत्यादि में शुरू में भले ही परेशानी आती है परंतु उसके साथ ही उसमें आत्मविश्वास आता है और व्यक्तित्त्व निखरता है तथा आगामी जीवन सुखद व सरल हो जाता है।परंतु अपात्र व्यक्ति को शुरू में राहत महसूस होती है और बाद में जीवनभर संकट,कष्टों और कठिनाइयों में गुजारना पड़ता है।पात्रता के आधार पर हासिल हर चीज के कारण उसका जीवन सुख-शांति और संतोष के साथ गुजरता है परंतु अपात्रता के आधार पर व्यक्ति को सुख-चैन और आनंद की प्राप्ति नहीं होती है बल्कि उसका जीवन अशांति,क्लेश,दुख में व्यतीत होता है।
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2.पात्रता कैसे विकसित करें? (How to Develop Eligibility?):

  • पात्रता विकसित करने से पूर्व आपको अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और यह लक्ष्य शिक्षित होने का भी हो सकता है।लक्ष्य को निर्धारित करने के बाद उसको प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम और एकाग्रता के साथ जुट जाना चाहिए।लक्ष्य के लेख में बताया जा चुका है कि लक्ष्य का निर्धारण करते समय अपनी रुचि,सामर्थ्य,परिस्थितियों,स्वभाव और संस्कार का ध्यान रखना चाहिए।
  • उदाहरणार्थ आपका लक्ष्य इंजीनियर बनना है।अब सबसे पहले आपको यह तय करना चाहिए कि आप कक्षा 12 में अध्ययनरत हों,इसके बाद इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की आवेदन करने की तिथि और परीक्षा की तिथि ज्ञात करनी है।इसके बाद कक्षा 12 के पाठ्यक्रम की तैयारी करने के साथ-साथ आपको इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए।
  • 12 वीं कक्षा (गणित ऐच्छिक विषय) तथा इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम मिलता-जुलता है फिर भी दोनों की परीक्षा में रात-दिन का अंतर है।12वीं की परीक्षा निबन्धात्मक तथा इंजीनियरिंग की परीक्षा वस्तुनिष्ठ प्रकार की होती है।12वीं परीक्षा में प्रतियोगिता का सामना नहीं करना पड़ता है परंतु इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा के लिए कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है।अतः आपको इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा हेतु विशिष्ट तैयारी हेतु जुटना पड़ता है।
  • आपको इतना कठिन परिश्रम और एकाग्रता के साथ तैयारी करने में सक्षम होने चाहिए ताकि 12वीं और प्रवेश परीक्षा की तैयारी एक साथ कर सकें।परिवार में,मित्रों में अथवा अन्य कोई यदि आपके लक्ष्य में बाधा डाले तो उन्हें प्रेमपूर्वक समझाने का प्रयास करें साथ ही अपना आत्म-निरीक्षण भी करना चाहिए कि मुझमें ऐसी कौनसी कमी है? यदि कमी आपमें है तो उसको तत्काल दूर कर दें और अपने मिशन में जुट जाएं।
  • परीक्षा आवेदन की तिथि का ध्यान रखें और जब भी उसकी विज्ञप्ति निकले तब उसका आवेदन पत्र निर्धारित शर्तों को ध्यान में रखते हुए भर दें।यदि प्रवेश परीक्षा में चयन हो जाता है तो बेहतर है परंतु यदि आपका चयन नहीं होता है तथा उसके लिए आप दुबारा योग्य हैं तो अपनी क्षमता,पात्रता और सामर्थ्य को बढ़ाने का उचित प्रयास करना चाहिए।
  • एक ही परिस्थितियाँ होने पर कुछ अभ्यर्थी सफल और कुछ अभ्यर्थी असफल हो जाते हैं।प्रश्न उठता है कि सफल और असफल होने के कौनसे मूल कारण हैं? किन विशेषताओं के कारण कुछ छात्र-छात्राएँ सफल हो जाते हैं जबकि दूसरों के द्वारा उनकी उपेक्षा कर देने पर वे असफल हो जाते हैं।
  • लक्ष्य का सही निर्धारण न करना,अपनी कमजोरियों को पहचानकर दूर न कर पाना,सकारात्मक चिन्तन का न होना तथा अपनी क्षमताओं का ठीक से सदुपयोग न कर पाना इत्यादि ऐसे कारण हैं जिनके कारण असफलता हाथ लगती है।
  • निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने के लिए समय के एक-एक क्षण का उपयोग करना होता है।अपनी संपूर्ण योग्यता व क्षमता को निश्चित लक्ष्य में लगाना पड़ता है।अपनी पात्रता,क्षमता व योग्यता की लगातार समीक्षा करते हुए उसमें वृद्धि करते रहना पड़ता है तभी सफलता मिलती है।
  • सफल छात्र-छात्राएं अपनी क्षमता व सामर्थ्य को निश्चित लक्ष्य की दिशा में नियोजित करते हैं,उसे प्राप्त करने के लिए जी-जान से जुट जाते हैं।जबकि असफल छात्र-छात्राओं का कोई निश्चित लक्ष्य नहीं होता है और उनमें अस्त-व्यस्तता रहती है।

3.योग्यता (पात्रता) के अनुरूप ही कामना करें (Wish According to Eligibility):

  • वस्तुतः पात्रता हो तो कामना करने की आवश्यकता ही नहीं है बल्कि संस्थाएं,लोग पात्र व योग्य व्यक्ति के पीछे-पीछे फिरते हैं।रोजगार मेलों में कंपनियों के प्रतिनिधियों को आने की क्या जरूरत है? उन्हें विज्ञापन निकालने की क्या जरूरत है? साक्षात्कार आयोजित करने की क्या जरूरत है? परीक्षाएं आयोजित करने की जरूरत क्या है? दरअसल उन्हें पात्र,योग्य और दक्ष छात्र-छात्राओं और अभ्यर्थी की जरूरत है।
  • परंतु हमारी कामनाएँ तो बड़ा जाॅब,बड़ा पद,कोई उच्च पुरस्कार,कोई ईनाम,परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करने की होती है और उसके लायक पात्रता और योग्यता होती ही नहीं है।
  • कंपनी के निदेशक को एक क्लर्क की जरूरत थी।उसके लिए निर्धारित डिग्री के साथ विज्ञापन जारी किया और परीक्षा आयोजित की गई।छँटनी में तीन उम्मीदवार उत्तीर्ण हुए।उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया।साक्षात्कारकर्ता ने प्रश्न पूछा कि मेरे पैर में कांटा चुभ जाए और तुम्हारे पैर में भी काँटा चुभ जाए तो किसका कांटा निकालोगे?
  • पहले अभ्यर्थी ने कहा कि आपके पैर का कांटा निकालूंगा।दूसरे ने कहा कि पहले अपने पैर का कांटा निकालूंगा और तीसरे ने कहा कि एक हाथ से आपके पैर का कांटा निकालूंगा और दूसरे हाथ से मेरे पैर का कांटा निकालूंगा।
  • कंपनी में तीसरे अभ्यर्थी का चयन हो गया।जो अपनी अवहेलना करके दूसरों का भला करता है वह अव्यावहारिक है।जो अपने स्वार्थ को ही सबसे अधिक महत्त्व देता है वह निम्न है।जो अपना और दूसरों के हित की बात समान रूप से सोचता है,उसे ही पात्र तथा योग्य कहना चाहिए।इस प्रकार उस तीसरे अभ्यर्थी की नियुक्ति कर दी गई।
  • अपनी मनोकामना के अनुसार तिकड़में लगाकर कोई पद,वस्तु इत्यादि प्राप्त कर भी लिया जाए तो पात्रता के अभाव में उसका उपयोग व उपभोग नहीं कर सकते हैं।जैसे आपने कोई पद सिफारिश या प्रभावी व्यक्ति की अनुशंसा के आधार पर प्राप्त कर भी लिया तो उस पद के कर्त्तव्यों का पालन नहीं कर पाएंगे।
  • इसी प्रकार जैसे आप दसवीं कक्षा में पढ़ रहे हैं और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित होने की कामना करें तो यह हो ही नहीं सकता है।यदि आप कोई पद प्राप्त कर भी लेते हैं तो उसका वेतन प्राप्त होता है उस वेतन का न तो सही ढंग से उपयोग व उपभोग कर सकेंगे और न ही पद के कर्त्तव्यों का पालन कर सकेंगे।फलस्वरूप आपको यश,सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता है।आप लाचार,अक्षम,अकर्मण्य,बेबस व्यक्ति का जीवन जिएंगे।

4.पात्रता के संबंध में महत्वपूर्ण बिन्दु (Important Points Regarding Eligibility):

  • (1.)अपना लक्ष्य लचीला रखें।जैसे यदि आपको आईआईटी करना है और जेईई-मेन व जेईई-एडवांस में चयन नहीं होता है तो इंजीनियरिंग की अन्य प्रवेश परीक्षाएं दें और उसके लिए कोचिंग करें।
  • (2.)स्कूल और काॅलेज की शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक जीवन में काम आने वाली शिक्षा का ज्ञान भी प्राप्त करते रहें।
  • (3.)चारित्रिक शिक्षा,ध्यान,योग,प्राणायम का अभ्यास करें जिससे गलत दिशा में भटकने से बच सकें।
  • (4.)विद्यार्थी जीवन में अच्छे आचरण,विद्या की प्राप्ति,सुदृढ़ संकल्प,अनुशासन,कर्त्तव्यों का पालन इत्यादि को अपनाएं।
  • (5.)नकारात्मक दृष्टिकोण के बजाय सकारात्मक दृष्टिकोण रखना सीखें।समय की कद्र करें और कठिन परिश्रम करने से जी न चुराएं।
  • (6.)मन को एकाग्र करने का अभ्यास करें और बुद्धि को स्थिर रखें।
  • (7.)अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा,भोगवादी संस्कृति को अपनाने के बजाय सादा जीवन और उच्च विचार रखें।
  • (8.)बेईमानी,भ्रष्टाचार,अनीति के बजाय ईमानदारी,सचरित्र,विवेकशील होने का प्रयास करें।
  • (9.)प्रारम्भ से ही अपनी रुचि के क्षेत्र में कोई न कोई स्किल (कौशल) सीखते रहें ताकि डिग्री हासिल करने के बाद बेरोजगारी का सामना न करना पड़े।
  • (10.)लक्ष्य के प्रति पूर्ण निष्ठा,समर्पण और अपने आप पर आत्म-विश्वास रखें।
  • (11.)अध्ययन के प्रति अरुचि,लापरवाही और आलस्य करने पर सफलता की आशा नहीं करनी चाहिए।
  • (12.)अध्ययन अथवा अन्य कार्य को करने की आदत बनाने का प्रयास करें।दूसरे दिन के लिए काम तभी छोड़ना चाहिए जबकि पूर्ण मनोयोग और कठिन परिश्रम करने पर भी वह पूरा नहीं हो रहा हो।मन के उच्चाटन,अस्त-व्यस्तता,समय की कद्र न करने पर काम को टालना दूसरे दिन दुगनी कठिनाई का अनुभव करना पड़ता है।
  • (13.)गलत बात शास्त्रों में वर्णित हो या कोई उपदेश दें तो उसे स्वीकार न करें।सतत ज्ञान के साथ कर्म भी करें।

5.पात्रता का दृष्टांत (Parable of Eligibility):

  • एक बार तीन गणित के छात्रों ने एक गणितज्ञ से आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने का निवेदन किया।तीनों ने विनम्रतापूर्वक जिज्ञासा प्रकट की।गणितज्ञ ने आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने से पूर्व उनकी पात्रता की परीक्षा करने का निश्चय किया और उनसे पूछा कि शून्य का क्या महत्त्व है? पहले छात्र ने उत्तर दिया कि शून्य एक अंक है।दूसरे से पूछा तो उसने कहा कि शून्य के कारण गणित की गणनाएं करना काफी सरल हो गया है।तीसरे छात्र से पूछा गया तो उसने कहा कि शून्य का न केवल व्यावहारिक (गणित में) महत्त्व है बल्कि शून्य का आध्यात्मिक महत्त्व भी है।
  • जैसे निराकार परमात्मा की साधना करने के लिए उसका रूप कोई मूर्ति,कोई प्रतीक अथवा स्रष्टि की किसी वस्तु को मानने पर साधना करना सरल हो जाता है।उसी प्रकार शून्य ब्रह्म का प्रतीक है,शून्य ही पूर्ण है और पूर्ण ही शून्य है।शून्य नकारात्मक तरीका है और पूर्ण सकारात्मक तरीका है।शून्य को गोलाकार रूप प्रदान करना उन्नत मस्तिष्क के द्वारा ही संभव है।
  • शून्य ने न केवल हमारे व्यावहारिक जीवन को सरल बनाया है बल्कि शून्य का आध्यात्मिक महत्त्व भी है।इस प्रकार शून्य एक संख्यांक है और हमारे गणना कार्य को इसने काफी सरल कर दिया है इसी प्रकार शून्य परमात्मा का प्रतीक होने से इसके द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का एक विशिष्ट और नवीन तरीका भी प्रस्तुत किया गया है।
  • गणितज्ञ ने तीसरे छात्र को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने की अनुमति दे दी और दोनों छात्रों को अपनी विचार शक्ति को बढ़ाने के लिए कहा क्योंकि उनकी सोच सांसारिक विषयों तक ज्ञान प्राप्त करने तक ही थी,अभी उनकी पात्रता अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने लायक नहीं हुई थी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Students Get Eligibility?),गणित के छात्र-छात्राएँ पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Mathematics Students Get Eligibility?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणितज्ञ के ठंडे होने का कारण (हास्य-व्यंग्य) (Reason Why Math Teacher is Cold) (Humour-Satire):

  • एक छात्र ने कोचिंग में गणित पढ़ते हुए कोचिंग सेंटर के निदेशक से शिकायत के लहजे में कहा कि कैसे गणित शिक्षक हैं?
  • निदेशक:अरे,इनको शिमला से विशेष रूप से बुलाया गया है,इनकी बहुत अधिक प्रसिद्धि सुनकर।
  • छात्र ने चुटकी ली:अच्छा,इसी कारण गर्मी के दिनों में भी ये इतने ठण्डे हैं कि किसी को कुछ भी नहीं कहते हैं।

7.छात्र-छात्राएं पात्रता कैसे प्राप्त करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Get Eligibility?),गणित के छात्र-छात्राएँ पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Mathematics Students Get Eligibility?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या उपाधि से सम्मान प्राप्त कर सकते हैं? (Can You Get Respect from the Title?):

उत्तर:किसी भी व्यक्ति को उपाधि (डिग्री) से सम्मान नहीं मिलता है,न जाॅब प्राप्त किया जा सकता है।उपाधि न तो ओढ़ने के काम आती है और न बिछाने के।पात्रता,योग्यता ही किसी भी व्यक्ति को यश,पद इत्यादि के योग्य बनाती है।परंतु पात्रता,योग्यता के साथ सेवा,समर्पण चरित्र निष्ठा इत्यादि गुण हों तो उसके गुण इस प्रकार खिलने लगते हैं जैसे अंधेरी रात में पूर्णिमा का चंद्रमा।

प्रश्न:2.पुस्तकीय विद्या से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Bookish Learning?):

उत्तर:पुस्तकीय ज्ञान से कोई पात्र और योग्य नहीं हो सकता है।पुस्तकीय ज्ञान से सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त होता है।जैसे यदि आप त्रिकोणमिति की थ्योरी (Theory) पढ़कर त्रिकोणमिति के सवालों को हल नहीं कर सकते हैं बल्कि उसके लिए बार-बार अभ्यास करना पड़ता है,नोटबुक में सवालों को हल करना पड़ता है।थ्योरी पढ़ने के बाद प्रैक्टिकल करना भी जरूरी है।पुस्तकें ज्ञान और अनुभव (अभ्यास) की सहायक हो सकती है परंतु साधन नहीं।

प्रश्न:3.पात्रता प्राप्त करने की प्राथमिक शर्त क्या है? (What is the Primary Condition for Obtaining Eligibility?):

उत्तर:विद्या ग्रहण करने से विनयशील होता है और विनय से पात्रता प्राप्त कर सकता है,पात्रता से धन प्राप्त होता है,धन से धर्म का पालन होता है और धर्म का पालन करने से सुख प्राप्त होता है।अतः पात्रता के लिए छात्र-छात्राओं को विनम्रता धारण करना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Students Get Eligibility?),गणित के छात्र-छात्राएँ पात्रता कैसे प्राप्त करें? (How Do Mathematics Students Get Eligibility?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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