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3 Tips to Brighten Talent Students

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1.छात्र छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने के 3 टिप्स (3 Tips to Brighten Talent Students),गणित के अध्ययन के लिए छात्र-छात्राएँ अपनी प्रतिभा को कैसे उभारें? (How Do Mathematics Students Raise High Their Talents?):

  • छात्र छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने के 3 टिप्स (3 Tips to Brighten Talent Students) के आधार पर अपने चिंतन,चरित्र व व्यवहार में इन बातों को शामिल करना होगा।इन्हें भली प्रकार अपनी अध्ययन पद्धति में क्रियान्वित करना होगा इसके बिना प्रतिभा को तलाशना मुश्किल है।किन्हीं नियम,सिद्धांत,अनुशासन,संस्कारों,अच्छी आदतों को अपनी अध्ययन पद्धति में,जीवन में मनोयोग और प्रचण्ड पुरुषार्थ द्वारा समावेश किया जा सकता है।बड़े-बड़े कार्य,गणित में खोजें,विज्ञान में आविष्कार करने वाले अपने जन्म के साथ लेकर नहीं आए हैं।प्रतिभा को तराशने,उभारने व निखारने तथा के लिए कोई विद्यालय,महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय नहीं खुले हुए हैं।इनको अपने जीवन में उतारने के लिए शिक्षा और विद्या ग्रहण करते समय स्वयं ही प्रयास करना पड़ता है।
  • प्रतिभा के उन्नयन तथा विकसित करने के लिए अनुकूल अवसर तथा वातावरण स्वयं को तलाश करना पड़ता है।मनुष्य जैसी ध्यान व एकाग्रता,सिंह की तरह शक्ति,कौए जैसी चेष्टा,कुत्ते जैसी नींद,पानी के जीव-जंतुओं की तरह तैरना,पक्षियों की तरह आकाश में उड़ना तथा अन्य प्राणियों में विशिष्ट गुणों की तरह जन्म से प्राप्त नहीं करता है।इन पशु-पक्षियों से तुलना करना तो बहुत दूर है बल्कि वह जन्म से लुंज-पुंज पैदा होता है।परंतु अपनी आत्मशक्ति व मनोबल के सहारे चिंतन-मनन और प्रचण्ड पुरुषार्थ से इनको पीछे ही नहीं छोड़ देता है बल्कि उनको अपनी चतुरता,कौशल के बल पर वश में भी कर लेता है।शर्त यही है कि मनुष्य अपनी प्रतिभा को उन्नत और विकसित करता रहे।
  • हालांकि जीवन में अनेक प्रलोभन आते हैं यदि उन प्रलोभनों तथा लिप्साओं में फँस जाएं तो अधोगति होना निश्चित है।ज्यामिति (गणित) की सुदृढ़ नींव रखने वाले और एलिमेंट्स के लेखक यूक्लिड थे।यूक्लिड ने ज्यामिति के पुराने सिद्धान्तों तथा स्वयं द्वारा खोज किए गए सिद्धांतों को तार्किक आधार दिया था।यूक्लिड के पिता ने उनसे कहा था कि यह मूर्खतापूर्ण कार्य छोड़ दो अन्यथा तुम्हें मेरी धन-संपत्ति से वंचित होना पड़ेगा।यूक्लिड ने कहा कि यह धन-संपत्ति मेरे भाइयों को सौंप दें।मैं इस धन-संपत्ति के लोभ में आकर गणित के खोज कार्य को नहीं छोड़ सकता हूं।धन-संपत्ति मुझे गणित के खोज कार्य के सामने तुच्छ लगती है।यूक्लिड यदि धन-संपत्ति के लोभ में फँस जाते तो संसार को ज्यामिति की महत्त्वपूर्ण खोजो से वंचित होना पड़ता।
  • जापान का मेधावी छात्र कागाबा टोकियो विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ।परिवार के लोग उसे बैरिस्टर बनाने अथवा चुनाव लड़ने और मिनिस्टर बनाने के लिए तैयार कर रहे थे।एक साथी मित्र ने मिल में साझीदार बनाने का प्रस्ताव रखा।ओर भी अनेक प्रस्ताव यथा अफसर,व्यापारी,राजनेता बनने के उसके सामने आए।परंतु सभी प्रलोभनों को ठुकराकर कंगालों,कोढ़ी,अपंगों,भिखारियों के सहारा बने।उनमें कुछ उठाईगिरे,शराबी,जुआरी भी शामिल थे उन्हें सद्मार्ग पर लेकर आए।उन्होंने उनके लिए कार्य करते हुए उस कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर इतना फैलाया कि आज उन्हें जापान का गांधी कहा जाता है।इस प्रकार प्रतिभा को तराशने,उभारने,अनुकूल अवसर और वातावरण को खुद तलाश करना पड़ता है।
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2.प्रतिभा से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Talent?):

  • कठोर परिश्रम और चिंतन का एक दिशा में कार्य करना ही प्रतिभा है।छात्र-छात्राएं अक्सर कठोर परिश्रम और चिन्तन में जिस सामंजस्य की अपेक्षा होती है उसकी उपेक्षा करते हैं।मजदूर,किसान,बेलदार कठिन परिश्रम करते हैं परन्तु चिन्तन पक्ष को भुला बैठते हैं करते हैं इसलिए जिस स्थिति में रहते हैं उसके ऊपर उठ नहीं उठ पाते हैं।छात्र-छात्राओं में भी ऐसे मिल जाएंगे जो गणित का अध्ययन करने तथा अध्ययन करने में कठिन परिश्रम करते हैं परंतु अपनी चिंतन शक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं।ऐसे विद्यार्थी निम्न एवं मध्यम श्रेणी से संतोष कर लेते हैं।कुछ विद्यार्थी ऐसे भी होते हैं जो अपने चिंतन शक्ति का प्रयोग करते हैं परंतु कठिन परिश्रम और अभ्यास नहीं करते हैं फलस्वरूप वे अच्छी श्रेणी से उत्तीर्ण तो होते रहते हैं पर तुम महान् गणितज्ञ नहीं बन पाते हैं और न ही गणित में नवीन खोजें व अनुसंधान कर पाते हैं।कठिन परिश्रम हाथ पैरों तथा शरीर से किया जाता है और चिंतन मन से किया जाता है।इन दोनों में पारस्परिक सामंजस्य होना जरूरी है तभी प्रतिभा सही तरीके से विकसित,पल्लवित तथा उन्नत होती है अर्थात्।
  • मानसिक श्रम अर्थात् चिन्तन और शारीरिक श्रम अर्थात् अध्ययन का अभ्यास दोनों पर गणित के अनुक्रमानुपाती का नियम लागू होता है।यह अवश्य है कि कुछ जाॅब,कार्य में एक पक्ष मुख्य कार्य होता है तो दूसरा गौण होता है।परंतु गणित और विज्ञान में कठोर परिश्रम अर्थात् अभ्यास करते हुए मानसिक चिन्तन दोनों का समान महत्त्व होता है।विद्यार्थी मानसिक चिन्तन के साथ अभ्यास भी करता है तो समर्थ तथा सक्षम बनता है,उसी यह भी सत्य है कि वह यदि कठोर परिश्रम करते हुए अर्थात् अभ्यास करते हुए मानसिक चिंतन करता है तो क्षमतावान बन जाता है।
  • भारत में अक्सर यह देखा जाता है कि मानसिक श्रम करने वाले शिक्षक,छात्र-छात्राएं,ऑफिसों में काम करने वाले कर्मचारी,अधिकारी मानसिक कार्य तो करते हैं परंतु कठिन परिश्रम से जी चुराते हैं।फलस्वरूप वे जिस स्थिति में होते हैं उससे आगे विकास नहीं कर पाते हैं बल्कि बीमारियों के चक्रव्यूह में ओर फँसे रहते हैं।वरना क्या कारण है कि एक अरब से अधिक जनसंख्या वाला विश्व का दूसरे नंबर का देश ज्ञान-विज्ञान,अविष्कार,खोजो,खेलो तथा अन्य क्षेत्रों में फिसड्डी क्यों है?
  • खिलाड़ियों,सैनिकों,किसानों,मजदूरों को परिश्रम अधिक करना पड़ता है इसलिए परिश्रम प्रधान कार्य है और चिन्तन करना गौण कार्य है परन्तु जरूरत दोनों की ही है।शिक्षकों,लेखकों,छात्र-छात्राओं को मानसिक कार्य तथा अभ्यास दोनों करने पड़ते हैं।अभ्यास को व्यावहारिक ज्ञान कह सकते हैं।परंतु इनके लिए शारीरिक श्रम गौण कार्य है।शारीरिक श्रम नहीं करेंगे तो बीमार पड़ जाएंगे,स्वस्थ नहीं रहेंगे।

3.प्रतिभा को विकसित करने में बाधक तत्त्व (Factors Hindering the Development of Talent):

  • प्रतिभा को विकसित होने में सबसे बड़ी रुकावट आलस्य है।जो व्यक्ति आलस्य करता है तो समझ ले कि मृतक और आलसी में कोई फर्क नहीं है।क्योंकि मृतक भी क्रियाशील नहीं होता है तो आलसी भी क्रियाशील नहीं होता।स्फूर्ति,उत्साह,कठिन परिश्रम,क्रियाशीलता तथा जागरूकता से प्रतिभा उभरती है।परंतु आलसी छात्र-छात्राएं न पढ़ने के कुछ न कुछ बहाने ढूंढता है।वह अध्ययन में कमजोरी ढूंढने का न तो प्रयास करता है और न अपने को सुधारने का प्रयास करता है।ऐसे छात्र-छात्राएं अपना काम दूसरों के सहारे चलाते रहते हैं।आलस्य का जब आदी हो जाता है तो आलस्य मन पर हमला करता है यही प्रमाद है।प्रमादी विद्यार्थी को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि अनुत्तीर्ण है या उत्तीर्ण हो रहा है।उसमें उन्नति,विकास,उत्थान के लिए कोई उमंग नहीं होती है।जैसे तैसे अपना जीवन गुजारता है।
  • न उसको सीखने की तमन्ना होती है और न वह भविष्य को उन्नत बनाने का विचार करता है।जैसे लकवा किसी शरीर को असमर्थ कर देता है वैसे ही प्रमादी छात्र-छात्राएं मानसिक रूप से पक्षाघात के शिकार हो जाते हैं।अपनी गई-गुजरी तथा पिछड़ी स्थिति के लिए वे दूसरों पर दोषारोपण करते हैं या परिस्थितियों को दोषी ठहराते हैं।
  • आलसी,प्रमादी छात्र-छात्राएं अध्ययन में पिछड़ने के लिए अपने माता-पिता,मित्रों,अभिभावकों,शिक्षकों,परीक्षा पद्धति,प्रश्न-पत्र इत्यादि को मानकर उन पर ठीकरा फोड़ते हैं और उन्हीं को अपने अवरोधों का कारण मानकर संतोष कर लेते हैं।
  • आलस्य,प्रमाद,लोभ,लालच,घृणा,वासना,तृष्णा,आक्रोश इत्यादि में वे अपने बहुमूल्य शक्तियों का क्षय करते रहते हैं।इसी प्रकार छात्र-छात्राएं इन्हीं कार्यों में तथा आगे जीवन में भी रोते-कलपते,रेंगते,पराश्रित होकर अपना जीवनयापन करते हैं।
  • वस्तुतः भगवान ने सभी को समान क्षमताएं,हाथ,पैर,बुद्धि तथा अन्य चीजें दी है।यह हमारे ऊपर है कि हम उनका उपयोग किस तरह करते हैं अथवा नहीं करते हैं।इतना विलक्षण शरीर और मन देने के पीछे स्रटा का कोई महान उद्देश्य छिपा हुआ है।जब हम महान गणितज्ञों,गणित प्राध्यापकों,गणित में अनुसंधान व खोज कार्य करने वालों,गणित में उच्च प्रतिभा के धनी मनीषा,महान वैज्ञानिकों,गणित ओलंपियाड में जीतने वालों,कंप्यूटर जैसा दिमाग रखने वाले
  • गणितज्ञों,दार्शनिकों,मनोवैज्ञानिकों,सन्तों,सज्जनों,विद्वानों,तर्कशास्त्रियों,दूरदर्शियों इत्यादि स्तर के मनीषियों की सफलता व प्रतिभा को देखते हैं तो आश्चर्यचकित रह जाते हैं।वस्तुतः यह सब उनकी प्रतिभा को तराशने,उभारने व निखारने का ही चमत्कार है।
  • लेकिन जो सोए हुए पड़े रहते हैं उनकी प्रतिभा के जंग लग जाती है,उनकी प्रतिभा सोई पड़ी रहती है जैसे ही वे जाग जाते हैं तो अपने कौशल,पराक्रम और बुद्धि से चमत्कृत कर देते हैं।

4.प्रतिभा परीक्षण का दृष्टान्त (Example of Talent Testing):

  • एक नगर के महाविद्यालय में गणित परिषद का गठन किया गया।उस महाविद्यालय में एक से एक बढ़कर प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे।कुछ छात्र-छात्राएं बहुत सीधे-साधे,परिश्रमी थे तो कुछ विद्यार्थी बहुत चालाक एवं दुष्ट प्रवृत्ति के थे।चालाक छात्र-छात्राएं दूसरे छात्र-छात्राओं को अपने लच्छेदार प्रश्नों के जाल में फंसाकर अपना उल्लू सीधा करते थे।सीधे-साधे छात्र-छात्राएं उनके चंगुल में फँस जाते थे।ऐसे ही एक दिन कुटिल छात्र ने एक निर्धन छात्र से गणित का एक कठिन सवाल पूछकर शर्त में हरा दिया और उसके पास जो भी रुपए-पैसे थे उन्हें हड़प लिया।
  • महाविद्यालय के प्राचार्य ने जब यह बात सुनी तो सकते में आ गए।इसी का समाधान करने के लिए उन्होंने गणित परिषद का गठन किया था।सीधे-सादे छात्रों की प्रतिभा को तराशा जाए और कुटिल छात्रों की कुटिलता को दूर किया जाए।उन्होंने गणित प्राध्यापक जी को गणित परिषद का संचालक बना दिया।गणित परिषद का अध्यक्ष छात्र-छात्राओं में से ही चुना जाना था।
  • प्राचार्य महोदय ने कहा कि कल गणित परिषद की सभा आयोजित की जाएगी उसमें तीन प्रश्न पूछे जाएंगे।जो छात्र-छात्रा उन तीनों प्रश्नों के उत्तर देगा उसे गणित परिषद का अध्यक्ष बनाया जाएगा।
  • दूसरे दिन गणित परिषद की शुरुआत हुई तो गणित के प्राध्यापक ने तीनों पढ़कर सुनाएं।पहला प्रश्न था कि एक व्यापारी ने मरते समय ग्यारह सोने के सिक्के देते हुए अपने तीनों पुत्रों को देते हुए कहा कि इन्हें बिना तोड़े और गलाए \frac{1}{6},\frac{1}{4}\text{ तथा }\frac{1}{2} के अनुपात में बाँट लेना।वह इन्हें किस तरह बाँटे।दूसरा प्रश्न था ग्यारह हजार ग्यारह सौ लिखो।तीसरा प्रश्न था कि ऐसे कौनसे अंक है जिन्हें उल्टा सीधा लिखने पर वे एक-दूसरे का रूप ग्रहण कर लेते हैं और उनका अन्तर हमेशा एक ही तरह के अंकों की पुनरावृत्ति होती है।
  • तीनों सवालों को सुनकर कुटिल छात्रों के मुँह पर हवाईयाँ उड़ने लगी।क्योंकि वे पढ़ते लिखते तो थे नहीं।उनका सर चकरा गया।एक छात्रा धार्मिक प्रवृत्ति की थी उसने कहा कि मैं दे दूंगी तीनों प्रश्नों के उत्तर।उसने कहा कि मैं एक सिक्का अपना मिलाती हूँ अब 12 सिक्के हो गए।अब \frac{1}{6},\frac{1}{4}\text{ तथा }\frac{1}{2} के हिसाब से दूसरे 2,3,6 के हिसाब से ग्यारह सिक्कों का बँटवारा हो गया।बंटवारे के बाद मैं अपना सिक्का वापिस ले लूंगी। दूसरे प्रश्न का उत्तर है ग्यारह हजार ग्यारह सौ ग्यारह को 12211 लिखा जाएगा।तीसरे प्रश्न का उत्तर है कि वे दो अंक 6 व 9 हैं जिन्हें उल्टा सीधा लिखने एक-दूसरे का रूप ग्रहण कर लेते हैं।इनमें अंतर 3 का है।यदि ये अंक 66 व 99 होंगे तो भी अंतर 33 होगा।इस प्रकार 3 की पुनरावृत्ति होती जाएगी।666 व 999 होंगे तो भी अंतर 333 होगा।इस प्रकार 3 की पुनरावृत्ति होती जाएगी।छात्रा के अध्यक्ष चुने जाने पर परिषद के सभी होशियार,बुद्धिमान तथा अच्छे छात्र-छात्राओं को बहुत खुशी हुई।परंतु कुटिल छात्र हैरान थे।क्योंकि उन्हें समझदार,सद्गुणी,विवेकयुक्त छात्रा के अनुशासन में रहना जो पड़ेगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने के 3 टिप्स (3 Tips to Brighten Talent Students),गणित के अध्ययन के लिए छात्र-छात्राएँ अपनी प्रतिभा को कैसे उभारें? (How Do Mathematics Students Raise High Their Talents?) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित शिक्षक का सवाल (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Teacher’s Question) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्रों से):कल मैं तुम्हें गणित का एक सवाल पूछूंगा।सभी छात्र-छात्राएं सवाल का उत्तर देने की तैयारी करके आना।
  • दूसरे दिन गणित शिक्षक ने पूछा:बताओ मेरी दाढ़ी में कितने सफेद और कितने काले बाल हैं।
  • एक छात्र ने कहाःएक छात्र ने कहा कि 909999 काले बाल और 606666 सफेद बाल हैं।
  • गणित शिक्षक (छात्र से):यह तुमने कैसे जाना?
  • छात्र (गणित शिक्षक से):सर (sir) यह तो दूसरा सवाल पूछ लिया,आपने तो एक सवाल के उत्तर की तैयारी करके आने के लिए कहा था।

6.छात्र छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने के 3 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 3 Tips to Brighten Talent Students),गणित के अध्ययन के लिए छात्र-छात्राएँ अपनी प्रतिभा को कैसे उभारें? (How Do Mathematics Students Raise High Their Talents?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.प्रतिभा को निखारने की प्रथम शर्त क्या है? (What is the First Condition for Nurturing Talent?):

उत्तर:प्रतिभा को निखारने की प्रथम शर्त है कि छात्र-छात्राओं तथा शिक्षक को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना।शरीर से रुग्ण होने पर अध्ययन कार्य तथा कोई भी कार्य करने की सामर्थ्य नहीं रहती है।मन से रुग्ण होने पर मन भटकता रहता है।मन भटकने पर चिंतन प्रणाली गड़बड़ा जाती है।प्रतिभा को विकसित करने के लिए तन और मन से स्वस्थ रहना आवश्यक है।स्वस्थ शरीर और मन से किए गए कार्य ही सफल होते हैं।बुद्धि भी तभी काम करती है जब मन सधा हुआ,एकाग्र तथा स्वस्थ होता है।अस्थिर बुद्धि से अध्ययन करना,कराना और सवाल,समस्याओं तथा कठिनाइयों को नहीं सुलझाया जा सकता है।

प्रश्नः2.प्रतिभा किसे कहते हैं? (What is Talent?):

उत्तर:चेतना को तीक्ष्णता,जागरूकता,समझदारी,सूझबूझ,दूरदर्शिता से काम लेते हुए सक्रिय और जागरूक बनने की मनःस्थिति को प्रतिभा कहते हैं।जो प्रमादी होते हैं वे कार्य को आरंभ तो कर देते हैं परंतु आधा-अधूरा छोड़कर भाग खड़े होते हैं अपना अथवा दूसरों के सिर पर उस कार्य को डाल देते हैं।ऐसे प्रमादी व आलसी छात्र-छात्राएं हंसी का पात्र बन जाते हैं।परंतु प्रतिभा संपन्न छात्र-छात्राएं प्रत्येक कार्य को पूर्ण जिम्मेदारी के साथ पूर्ण करते हैं तथा प्रफुल्ल मन और तन से उसको पूरा करने का प्रयास करते हैं।शरीर से चुस्त-दुरुस्त तथा स्वस्थ रहते हैं।कार्य को करने में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं करते हैं।इस प्रकार कार्य करने से उनकी प्रतिभा में ओर पैनापन आ जाता है।वे जिस कार्य को भी करते हैं पूर्ण दक्षता तथा कौशल के साथ करते हैं।उपर्युक्त गुणों के कारण वे सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं।उनके कार्य से सभी गद्गद् हो जाते हैं।

प्रश्नः3.क्या धनिक वर्ग को प्रतिभा के विकास हेतु शारीरिक श्रम करने की आवश्यकता है? (Does the Rich Class Need to Do Physical Labour for the Development of Talent?):

उत्तर:उच्च पदों पर आसीन सत्ताधीशों,व्यवसायियों,राजनीतिज्ञों तथा अन्य धनिक वर्ग के लोगों को यदि अपनी प्रतिभा का विकास करना है तो थोड़ा-बहुत शारीरिक श्रम करना ही चाहिए।इससे श्रमिक वर्ग को परिश्रम करने की प्रेरणा तो मिलती ही है साथ ही कंपनी के मालिकों व बड़े-बड़े धनिकों को अपने काम की बारीकियों को सीखने का अवसर मिलता है।जो छोटा बनकर रहता है वही बड़ा होता है।कोई भी कार्य छोटा-बड़ा,हेय,त्याज्य नहीं होता है।सुई का काम तलवार से नहीं लिया जा सकता है।इसलिए जिस क्षेत्र में भी शिखर पर चढ़ना हो उसके छोटे-छोटे कार्य की बारीकियों को सीखने,श्रम के प्रति निष्ठा रखने से शिखर पर पहुंच सकता है और शिखर पर टिका रह सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने के 3 टिप्स (3 Tips to Brighten Talent Students),गणित के अध्ययन के लिए छात्र-छात्राएँ अपनी प्रतिभा को कैसे उभारें? (How Do Mathematics Students Raise High Their Talents?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3 Tips to Brighten Talent Students

छात्र छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने के 3 टिप्स
(3 Tips to Brighten Talent Students)

3 Tips to Brighten Talent Students

छात्र छात्राओं के लिए प्रतिभा को निखारने के 3 टिप्स (3 Tips to Brighten Talent Students)
के आधार पर अपने चिंतन,चरित्र व व्यवहार में इन बातों को शामिल करना होगा।
इन्हें भली प्रकार अपनी अध्ययन पद्धति में क्रियान्वित करना होगा

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