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3 Tips to Increase Mathematical Talent

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1.गणितीय प्रतिभा को उभारने के 3 टिप्स (3 Tips to Increase Mathematical Talent),गणितीय प्रतिभा को निखारने में छात्र-छात्राएं स्वयं सक्षम हैं (Students Themselves are Capable to Brighten Mathematical Talent):

  • गणितीय प्रतिभा को उभारने के 3 टिप्स (3 Tips to Increase Mathematical Talent) के आधार पर छात्र-छात्राएं स्वयं सक्षम हो सकते हैं। कुछ छात्र छात्राएं गणित के सवाल,समस्याएं,सिद्धांत तथा प्रमेय हल नहीं कर पाते हैं तो अपने भाग्य को कोसने लगते हैं।इस सिलसिले में अपनी परिस्थितियों को दोष देने लगते हैं।वे इस प्रकार की बातें करने लगते हैं कि हमारे पास पढ़ने के लिए साधन-सुविधाएँ नहीं है अन्यथा हम भी जीनियस बन सकते हैं,शिखर पर पहुंच सकते हैं।फलां विद्यार्थी के पास तो साधन-सुविधाएं हैं।उसको शिक्षक भी अच्छी तरह पढ़ाते हैं।वह तो प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है।वह कोचिंग भी करता है।उसके पास गणित की एक से बढ़कर एक संदर्भ पुस्तकें भी है।उसके पास सब कुछ है इसलिए वह गणित में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करता है तथा उसके नब्बे 90-95% अंक आते हैं।
  • क्या विद्यार्थी कभी इस बात पर विचार करते हैं कि इस प्रकार की बात करने से गणित की प्रतिभा को उभारा जा सकता है? वस्तुतः इस प्रकार की नकारात्मक बातें सोचने से ही,गणित में जो कुछ आता है वह भी वे भूलने लगते हैं।छात्र-छात्राओं के पास जो साधन-सुविधाएं,गणित की पुस्तकें हैं,उनका भी ठीक तरह से उपयोग नहीं कर पाते हैं।अपनी शक्ति और समय को शिकवा-शिकायत करने में व्यतीत करते रहते हैं।होना तो यह चाहिए कि छात्र-छात्राओं के पास जो साधन-सुविधाएं,पुस्तकें उपलब्ध है उनका अधिक से अधिक उपयोग करने की कोशिश करें।यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो अपनी उन्नति और प्रगति के अवरोधक स्वयं बन जाते हैं।
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2.छात्र-छात्राएं सकारात्मक सोचें (Students Should Think Positively):

  • मान लीजिए किसी छात्र-छात्रा का एक पैर दुर्घटना में कट गया।अब उसके पास सोचने के दो दृष्टिकोण हो सकते हैं।पहला दृष्टिकोण मैं निर्धन हूं वैसे ही मेरे पास कुछ है नहीं परंतु भगवान ने फिर भी एक टांग ओर छीन ली।दूसरा दृष्टिकोण है कि दुर्घटना में मेरी एक टांग बच गई वरना दूसरी टांग भी दुर्घटना हो सकती थी।भगवान ने अच्छा ही किया कि मेरी एक टांग को सही सलामत बचा लिया छात्र-छात्रा इन दोनों दृष्टिकोणों में से सोच सकते हैं कि कौनसा दृष्टिकोण सही है? पहला तरीका निराशावादी दृष्टिकोण है जबकि दूसरा दृष्टिकोण आशावादी है।निश्चित ही दूसरा दृष्टिकोण जो आशावादी है,उचित है।आशावादी दृष्टिकोण छात्र-छात्राओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
  • छात्र-छात्राओं को गणित को हल करने में भी यही आशावादी दृष्टिकोण रखना चाहिए,सकारात्मक होना चाहिए।आपके जो सवाल तथा समस्याएं गणित में हल नहीं होती है उनके बारे में सोच-सोचकर दुखी नहीं होना चाहिए।आपको गणित में जो सवाल आते हैं,जिनको आप हल कर सकते हैं उनके बारे में सोचकर यह चिंतन करें कि मुझे अमुक सवाल या समस्याएं समझ में आती हैं या उनको मैं हल कर सकता हूं।

3.प्रतिकूल परिस्थितियों का मुकाबला करें (Combat Adversity):

  • छात्र-छात्राओं को उपलब्ध साधनों का उपयोग करके प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।धीरे-धीरे जो सवाल तथा गणित समस्याओं को हल नहीं कर पाते हैं उनको हल करना संभव होता जाएगा।
  • इतिहास साक्षी है कि जितने भी महान गणितज्ञ हुए हैं उन्होंने अपनी विषम परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना कर ही महान बन सके हैं।जैसे विख्यात पाइथागोरस गणित का गहन अध्ययन करने के लिए विदेशों में (इराक,ईरान,मिश्र इत्यादि) खाक छानते रहे और अपार कष्टों को सहन किया। महान वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ आइजक न्यूटन जब माँ के पेट में ही थे तब ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी।माता ने भी न्यूटन के जन्म के बाद पुनर्विवाह कर लिया और न्यूटन को दादी के संरक्षण में रहना पड़ा।न्यूटन का जीवन असफलताओं के गर्भ में समाकर सफलता के शिखर पर चढ़ा।उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी काॅलेज में प्राप्त की।परंतु महामारी के कारण सन् 1665 में कॉलेज बंद हो गया और न्यूटन की शिक्षा अधूरी रह गई।परंतु न्यूटन हताश नहीं हुए और घर आकर लक्ष्य प्राप्त की चेष्टा में लीन हो गए।इसी दौरान उन्होंने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का पता लगाया।यह सिद्धान्त गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त कहलाता है।
  • महान गणितज्ञ कार्ल फ्रेडरिक गाउस (Gauss) एक मजदूर के पुत्र थे।उनका बचपन निर्धनता में व्यतीत हुआ।सौभाग्य से गाउस तत्कालीन राजा का कृपापात्र हो गए।अतः उनकी शिक्षा राजा की देखरेख में हुई।जीवन के प्रारंभ में यह बालकों को ट्यूशन पढ़ाकर जीवन निर्वाह करते रहे।महान् गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।गरीबी में ही उन्होंने गणित शास्त्र का अध्ययन किया।रामानुजन को आर्थिक कठिनाइयों ने परेशान कर दिया था।इसी समय इनका विवाह कर दिया गया जिससे कठिनाइयां दुगनी हो गई।बड़ी कठिनाइयों के बाद इनको मद्रास ट्रस्ट में नौकरी मिली।बाद में ट्रिनिटी कॉलेज के गणित के फेलो डॉक्टर जी एच हार्डी के प्रयासों से उन्हें केम्ब्रिज बुलाया गया।वहां उन्होंने संख्या सिद्धांत में अनेक खोजें की।उपर्युक्त गणितज्ञों तथा अन्य महान गणितज्ञों ने जीवन में बहुत संघर्ष किया परंतु कर्तव्य के प्रति निष्ठा,आत्मविश्वास तथा अपने कार्य को करते रहने के कारण वे महान गणितज्ञ बन गए।

4.भाग्य तथा पुरुषार्थ का महत्त्व (Importance of Luck and Effort):

  • बहुत से छात्र-छात्राएं मानते हैं कि जीनियस छात्र-छात्राएं जन्म से ही लेकर प्रतिभा को आते हैं। उनकी नजर में भाग्य ही सबसे बड़ी चीज है। परन्तु सोचने वाली बात यह है कि भाग्य का निर्माण कैसे होता है?क्या भाग्य का निर्माण शून्य से होता है? भाग्य का निर्माण हमारे कर्मों से होता है।परंतु कुछ छात्र-छात्राओं ने भाग्य का अर्थ अकर्मण्यता निकाल लिया है।उनके अनुसार भाग्य नियत है,निश्चित है,जो कुछ हो रहा है वही होता रहेगा। ऐसे अकर्मण्य छात्र-छात्राएं गणित के सवालों को हल करना चाहते नहीं,पुरुषार्थ करना चाहते ही नहीं है।
  • विद्यार्थी जैसा करेंगे,जितना गणित का अभ्यास करेंगे वैसा ही उनको परिणाम मिलेगा।कारण कार्य की प्रक्रिया का नाम ही कर्म है।कर्म ही एक प्रकार का भाग्य है।स्पष्ट है कि अपने भाग्य के निर्माता छात्र-छात्राएं स्वयं है।छात्र-छात्रा जैसा करेंगे वैसा ही फल उनको प्राप्त होगा।अब यदि गणित के सवाल हल नहीं हो रहे हैं अथवा अन्य विषय हल नहीं हो रहे हैं,याद नहीं हो रहे हैं,समझ में नहीं आ रहें हैं तो उसके जिम्मेदार वे स्वयं है।यदि उन्हें गणित की प्रतिभा को उभारना है तो उसके लिए उन्हें कर्म करना होगा,गणित को समय देना होगा,गणित का अभ्यास करना होगा।ऐसी स्थिति में किसी से किसी की शिकवा-शिकायत करने का कोई अर्थ नहीं है।जब तक छात्र-छात्राएं हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहेंगे तब तक उनकी गणितीय प्रतिभा उभरने वाली नहीं है।जब तक छात्र-छात्राएं यह समझते रहेंगे कि उनके भाग्य का बनाने वाला,निर्माण करने वाला कोई ओर है तब तक उनकी दशा एक कमजोर,निर्बल और फिसड्डी छात्र-छात्रा के रूप में बनी रहेगी।परंतु जैसे ही वे अपने भाग्य के निर्माता स्वयं को समझने लगेंगे और पुरुषार्थ करेंगे तो गणित में ऊंचाईयां हासिल करते जाएंगे।कभी-कभी ऐसा होता है कि पूर्ण प्रयास करने,एड़ी-चोटी का प्रयत्न करने पर गणित में सफलता प्राप्त नहीं होती है।ऐसी स्थिति में निराश व हतोत्साहित न होकर यह विचार करना चाहिए कि कमी कहां रह गई है? आप जैसे ही अपने गुण,कर्म, स्वभाव तथा कमियों को पहचान लेंगे और कमियों को दूर कर लेंगे तो गणित ही क्या किसी भी कार्य में सफलता अर्जित करते जाएंगे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणितीय प्रतिभा को उभारने के 3 टिप्स (3 Tips to Increase Mathematical Talent),गणितीय प्रतिभा को निखारने में छात्र-छात्राएं स्वयं सक्षम हैं (Students Themselves are Capable to Brighten Mathematical Talent) के बारे में बताया गया है।

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5.भाई के खोने पर गणित की खोज (हास्य-व्यंग्य) (Exploring Mathematics on Brother’s Loss) (Humour-Satire):

  • दो भाइयों ने गणित विषय लिया हुआ था।एक बार वे किसी नए शहर में गए।
  • बड़े भाई ने अपने मित्र से कहा:मेरे भाई का ध्यान रखना कहीं वह खो न जाए।
  • मित्र ने कहा:परवाह मत करो।आर्किमिडीज गणित के विचारों में खो गए थे तो उसने सोने की शुद्घता का आविष्कार कर लिया था।तुम्हारा भाई भी खो गया तो किसी न किसी गणित की नई चीज का आविष्कार जरूर करेगा।

6.गणितीय प्रतिभा को उभारने के 3 टिप्स (3 Tips to Increase Mathematical Talent),गणितीय प्रतिभा को निखारने में छात्र-छात्राएं स्वयं सक्षम हैं (Students Themselves are Capable to Brighten Mathematical Talent) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.भाग्य और पुरुषार्थ में कौन सा मत सही है? (Which of the Following is True Between Luck and Effort?):

उत्तर:कुछ लोगों की मान्यता होती है कि भाग्य में लिखा होता है वही होता है।दूसरी धारणा यह है कि भाग्य तो काम करता ही है परंतु मनुष्य को इसके भरोसे हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठना चाहिए बल्कि पुरुषार्थ करना चाहिए।नीतिशास्त्र में दोनों की समर्थक उक्तियां मिलती है।
एक तरफ कहा जाता है कि “पुरुषकार्येण बिना दैवं न सिध्यति” अर्थात् मनुष्य के कार्य भाग्य के बिना सिद्ध नहीं होते हैं।दूसरी तरफ कहा है कि “दैवं विहाय कुरु पौरुषमात्मशाक्या” अर्थात् भाग्य का विचार छोड़कर भरसक प्रयास करो।वस्तुतः भाग्य और पुरुषार्थ में जो बलवान होता वह जीत जाता है।भाग्य तो है पर पुरुषार्थ से उसे अनुकूल किया जा सकता है किन्तु पुरुषार्थ प्रबल होना चाहिए। पुरुषार्थी मनुष्य भाग्य को बदल सकता है।

प्रश्न:2.स्वधर्म से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Swadharma?):

उत्तर:गीता में कहा है कि “श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात।स्वभाव नियतं कार्य कुर्वन्नाप्नोति किल्विषम्।
अर्थात् सर्वांगपूर्णता के साथ भली-भांति आचरण में लाए हुए परधर्म की अपेक्षा,कुछ अंगहीन भी स्वधर्म श्रेष्ठ है कारण कि मनुष्य स्वभाव निर्दिष्ट कर्म करता हुआ पाप का भागी नहीं होता है। उदाहरणार्थ छात्र-छात्राओं का स्वधर्म विद्या अध्ययन करना है।यदि वे विद्या अध्ययन के बजाय दुकानदारी करेंगे तो कहीं के नहीं रहेंगे।हमें अपने आपको,अपने कर्म को,अपने धर्म को प्यार करें। अपनी परिस्थिति के यथार्थ को समझकर प्रयत्न करें और अध्ययन कार्य में जुट जाएं।सफलता अवश्य मिलेगी,सबको मिली है,आपको भी मिलेगी। कर्म का फल अवश्य मिलता है,जल्दबाजी करने अथवा घबरा जाने से कार्य अव्यवस्थित हो जाता है।

प्रश्न:3.कर्म की कितनी अवस्थाएं होती है? (How many States of Action are There?):

उत्तर:कर्म की तीन अवस्थाएं होती है।पहली अवस्था वह है जब कर्म वर्तमान काल में किया जा रहा है।इस अवस्था में कर्म को क्रियमाण कहते हैं।जब कर्म किया जा चुका है अर्थात् भूतकाल में दूसरी अवस्था है,इस अवस्था में कर्म को संचित कर्म कहते हैं।यह अवस्था तब तक रहती है जब तक कर्म फलित नहीं होता है।तीसरी अवस्था भविष्य काल की होती है जब कर्म का फल प्राप्त होता है।इसी तीसरी अवस्था को भाग्य कहते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितीय प्रतिभा को उभारने के 3 टिप्स (3 Tips to Increase Mathematical Talent),गणितीय प्रतिभा को निखारने में छात्र-छात्राएं स्वयं सक्षम हैं (Students Themselves are Capable to Brighten Mathematical Talent) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3 Tips to Increase Mathematical Talent

गणितीय प्रतिभा को उभारने के 3 टिप्स
(3 Tips to Increase Mathematical Talent)

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गणितीय प्रतिभा को उभारने के 3 टिप्स (3 Tips to Increase Mathematical Talent)
के आधार पर छात्र-छात्राएं स्वयं सक्षम हो सकते हैं। कुछ छात्र छात्राएं
गणित के सवाल,समस्याएं,सिद्धांत तथा प्रमेय हल नहीं कर पाते हैं

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