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How Do Students Develop Healthy Egos?

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1.छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम् का विकास कैसे करें? (How Do Students Develop Healthy Egos?),गणित के छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम का विकास कैसे करें? (How Do Mathematics Students Develop Healthy Egos?):

  • छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम् का विकास कैसे करें? (How Do Students Develop Healthy Egos?) अक्सर अहम् को अहंकार समझ लिया जाता है।जिनमें अहंकार होता है वे अपने आपकी बात को,अपनी सोच को सही समझते हैं।किसी भी समस्या,परेशानी,उलझन के उपस्थित होने पर वे दूसरों से कोई विचार-विमर्श नहीं करते हैं क्योंकि दूसरों से सलाह व सुझाव लेने से उनके अहंकार को चोट पहुंचती है।जैसे किसी विद्यार्थी के सामने कोई पेचीदा सवाल उपस्थित हो गया है तो उसके बारे में अधिक छानबीन किए बिना वह उसी तरीके से हल करता है जो उसने सीखा है और जिसका उसको अनुभव है।ऐसे लोग तथा छात्र-छात्राएं अपना नाम,पता,वंश,धर्म,आयु,जाॅब (पद),प्रतिष्ठा,धन-संपत्ति,ज्ञान,कौशल इत्यादि का पोषण करता रहता है जिसे उसमें अहंकार की वृद्धि होती जाती है।प्रश्न उठता है कि फिर स्वस्थ अहम् क्या होता है अथवा क्या स्वस्थ अहम् वाले व्यक्ति के पास उपर्युक्त चीजें नहीं होती है?
  • वस्तुतः स्वस्थ अहम वाले छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति के पास उपर्युक्त चीजें पद,यश,धन-दौलत इत्यादि होती है या हो सकती है परंतु जब अहम के साथ छात्र-छात्राएं गुणों को विकसित करता है तथा गुणों को ही अधिक महत्त्व देता है तो स्वस्थ अहम का विकास होता है।गुणों से तात्पर्य है जैसे आत्म-विश्वास,दृढ़ इच्छाशक्ति,दृढ़ संकल्पशक्ति,ईमानदारी,सज्जनता,कठिन परिश्रम,धैर्य,विवेक,साहस इत्यादि को विकसित करने में सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं नाम,पता,वंश,धर्म,जाॅब,धन-संपत्ति,ज्ञान,कौशल को अपने आप पर हावी नहीं होने देते हैं।जिन छात्र-छात्राओं तथा लोगों में स्वस्थ अहम होता है वे हर किसी से सीखने के लिए तत्पर रहते हैं।अपने मित्रों,माता-पिता,मिलने-जुलने वालों,शिक्षकों तथा संपर्क में आने वालों से उपयोगी और लाभप्रद बातों को स्वीकार करते हैं तथा आवश्यक गुणों,तकनीकी,ज्ञान इत्यादि को ग्रहण करते हैं।स्वस्थ अहम वाले छात्र-छात्राओं और लोगों में अनुभव से परिपक्वता आती है।उनसे कोई गलती हो भी जाती है तो तत्काल स्वीकार करते हैं तथा अपने आपमें आवश्यक सुधार कर लेते हैं।
  • वस्तुतः अहंकार शून्य छात्र-छात्राओं अथवा व्यक्तियों का मिलना कठिन और बहुत दुर्लभ है।अहंकार शून्य व्यक्ति को व्यावहारिक नहीं माना जाता है।इस आर्टिकल में स्वस्थ अहम क्या है तथा स्वस्थ अहम का विकास कैसे करते हैं इसके बारे में बताया गया है।वैसे स्वस्थ अहम के बारे में फुटकर रूप से ऊपर बताया जा चुका है।
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2.स्वस्थ अहम क्या है? (What is Healthy Ego?):

  • क्या हमारे पास विश्वविद्यालय की डिग्रियां है अथवा अन्य डिग्रियां हैं वह स्वस्थ अहम है? क्या विभिन्न विद्याओं,कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लेना स्वस्थ अहम है? नाम,वंश,पद,प्रतिष्ठा,धन-दौलत को बढ़ाना स्वस्थ अहम है।हम इन सभी चीजों को प्राप्त करने में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं,उलझे रहते हैं अथवा तिकड़में लगाते रहते हैं कि हमें स्वस्थ अहम् का पता ही नहीं चलता है।जैसे अन्धेरे में बल खाई रस्सी को सर्प समझ लेते हैं परंतु प्रकाश होने पर यथार्थ का ज्ञान होता है।इसी प्रकार ज्ञान के प्रकाश से हमें स्वस्थ अहम का पता चलता है।हम मन,शरीर और विचारों को तो अनुभव कर पाते हैं परंतु वाकई में हम क्या है उसको अनुभव करने से बचते हैं तो स्वस्थ अहम का विकास नहीं कर पाते हैं।
  • दुर्योधन ने अपने अहंकार के कारण श्रीकृष्ण की उचित सलाह को भी नहीं माना।पांडवों को उसके अहंकार के कारण अनेक कष्ट उठाने पड़े।पांडव वनवास का समय व्यतीत कर रहे थे तो भी उसे अपने अहंकार का प्रदर्शन करने के बिना चैन नहीं पड़ा।अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए वह अपने साथी कर्ण तथा सहायकों सहित जंगल के उसी क्षेत्र में जा पहुंचा जहां पाण्डव ठहरे हुए थे। अहंकारी व्यक्ति में शालीनता,उदारता,विनम्रता नहीं रह जाती है।यदि थोड़ी होती भी है तो भी निरंतर घटती जाती है।दुर्योधन अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था।दुर्योधन वहाँ गंधर्वों के सरोवर को गंदा करने लगा।उनके मना करने पर भी नहीं माना।कुद्ध होकर गंधर्वराज (चित्रसेन) ने उसे उसी समय बन्दी बना लिया।इस बात का पता चलने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन को भेजकर अपने मित्र गंधर्वराज से दुर्योधन को मुक्त कराया।परन्तु दुर्योधन फिर भी नहीं सुधरा क्योंकि उसके पास शकुनि-कर्ण जैसे सलाहकारों का जमघट था जो कभी सही दिशा और मार्गदर्शन देते ही नहीं थे।
  • ऐसी बात नहीं है कि केवल शासक ही (कंस,दुर्योधन,रावण,कालयवन,जरासंध,बादशाह मुहम्मद तुगलक इत्यादि) अहंकारी रहे हैं बल्कि अध्यात्म के मार्ग में चलने वालों में भी अहंकार आ जाता है।
  • राबिया बसरी कई संतों के साथ बैठकर सत्संग कर रही थी तभी हसन बसरी वहां पहुंचे।उन्होंने राबिया को कहा कि चलो झील के पानी पर बैठकर सत्संग करें।हसन बसरी के बारे में प्रसिद्ध था कि उन्हें पानी पर चलने की सिद्धि प्राप्त है।राबिया उनके अहंकार को ताड़ गई।उसने (राबिया) ने कहा कि दोनों आसमान में उड़ते हुए बात करें।राबिया के बारे में प्रसिद्ध था कि वह हवा में उड़ सकती थी।फिर गंभीरतापूर्वक कहा कि भैया जो तुम कर सकते हो वह एक मछली भी कर सकती है और जो मैं कर सकती हूँ वह एक पक्षी भी कर सकता है।स्वस्थ अहम का विकास सिद्धियों के प्रदर्शन,धन-दौलत व वैभव के प्रदर्शन से नहीं होता है बल्कि विनम्रता,सरलता,ईमानदारी इत्यादि सद्गुणों को धारण करने से होता है।
  • अपने लिए पर्याप्त भोजन,वस्त्र और आवास को जुटाना स्वस्थ अहम है परंतु विलासितापूर्ण जीवन जीने की अभिलाषा रखना या साधन-सुविधाएं जुटाना स्वस्थ अहम नहीं है।माता-पिता,अभिभावक इत्यादि द्वारा किसी कार्य हेतु,अध्ययन हेतु आलोचना करना और आप द्वारा उसका बुरा न मानना तथा अध्ययन करने में सुधार करना स्वस्थ अहम है तथा उनकी आलोचना का बुरा मानना,हीन भावना से ग्रस्त होना स्वस्थ अहम नहीं है।
  • आप द्वारा गलती करने,उद्दंडता करने पर बड़े दंड देते थे अथवा समझाते थे,सही-गलत का भेद बताते थे तो उसका बुरा न मानना स्वस्थ अहम है।परंतु बुरा मानना तथा शैतानी करते रहना स्वस्थ अहम नहीं है।आपको शिक्षक द्वारा प्रश्न पूछने पर उत्तर न दे पाना अथवा कोई सवाल हल न कर पाने पर उनके द्वारा दिए गए सुझावों को सहज रूप से स्वीकार करना स्वस्थ अहम है परन्तु सुझावों को न मानना तथा छोटापन महसूस करना स्वस्थ अहम नहीं है।
  • अध्ययन के अलावा भी खेलकूद अथवा व्यायाम करने पर ध्यान देना स्वस्थ अहम हैं।
    होशियार छात्र-छात्राओं की सफलता का रहस्य जानकर आगे बढ़ने की ललक रखना तथा बढ़ना स्वस्थ अहम है।महान गणितज्ञों,वैज्ञानिकों और महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेना और उनके जैसे बनने का प्रयास करना स्वस्थ अहम हैं।
  • वस्तुतः स्वस्थ अहम का जानना कठिन है परंतु स्वस्थ अहम को जाने बिना हम हमारे लक्ष्य को नहीं जान सकते हैं,न ही हमें हमारे कर्त्तव्यों का ज्ञान भली प्रकार हो सकता है,न हमारे जीवन की यात्रा की सही दिशा का ज्ञान हो सकता है।स्वस्थ अहम को ध्यान और अनासक्ति कर्मयोग के द्वारा ही जाना जा सकता है।

3.स्वस्थ अहम् का विकास कैसे करें? (How to Develop a Healthy Ego?):

  • स्वस्थ अहम आपका सहयोगी है या विरोधी ये इस बात पर निर्भर करता है कि वह आप पर किस प्रकार का प्रभाव डालता है।यदि वह आपके गुणों में वृद्धि करता है तो वह आपका शत्रु बनकर आपको नुकसान पहुंचाएगा।क्योंकि जो चीजें पद,प्रतिष्ठा,जाॅब इत्यादि हैं वे हमेशा बदलते रहने वाली है अर्थात् वे स्थायी नही है।अहम हमारे मस्तिष्क अर्थात् मानसिक शक्तियों को सक्रिय करने में योगदान देता है।स्वस्थ अहम हमारे अध्ययन कार्य अथवा किसी भी श्रेष्ठ कार्य को करने की दृढ़ता प्रदान करता है।
  • स्वस्थ अहम का विकास करने के अनेक साधन है परंतु प्रत्येक छात्र-छात्रा और व्यक्ति की मानसिक रुचि और विश्वास के अनुसार अलग-अलग होते हैं।इसलिए जो साधन अपनाने से आपके स्वस्थ अहम का विकास करने में सहायक है उसका चुनाव करें।उदाहरणार्थ किसी छात्र-छात्रा के बनने-संवरने और अच्छे वस्त्र पहनने से अहम शक्तिशाली बनता है परन्तु किसी छात्र-छात्रा को सादगी से रहने अर्थात् साधारण वस्त्र पहनने से स्वस्थ अहम का विकास होता है।बार्नस जो प्रसिद्ध वैज्ञानिक थॉमस एडिसन के व्यापार में एक प्रमुख साथी थे,वे बहुत मूल्यवान सूट पहनते थे उससे उनके अहम को संतुष्टि मिलती थी।दूसरी तरफ महात्मा गांधी,विनोबा भावे जैसे महापुरुष साधारण खादी से बने वस्त्र पहनते थे।महात्मा गांधी बड़े-बड़े राजा महाराजाओ तक से केवल धोती और चादर में मिलते थे।
  • आपको यह समझने की आवश्यकता है कि किस वस्तु या साधन से आप उत्साहित होते हैं और किससे आपका अहम विश्वास से पूर्ण होता है,स्वयं को अपने मन का निरीक्षण करना पड़ेगा।यदि आप इसे खोज लेते हैं तो आपको अपनी मानसिक शक्तियों का खजाना मिल जाया समझो।आपकी मुखमुद्रा,बातचीत के तौर-तरीके,विचार आदि में ऐसा आत्म-विश्वास तथा दृढ़ता आ जाती है कि आपसे मिलने वाला हर व्यक्ति आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।उसके बाद आपको किसी प्रकार का भय या निराशा नहीं सता सकती।
  • परंतु जिन चीजों तथा साधनों को अपनाने से आपका अहम,अहंकार या घमण्ड का रूप ले लेता है तो आप कामयाब नहीं हो सकते हैं और न उन्हें मानसिक शांति मिलती है।ऐसे छात्र-छात्राओं तथा व्यक्ति को चाहिए कि वे विनम्रता और मधुर व्यवहार के महत्त्व को समझें तथा अपनाने का प्रयत्न करें।
  • अपने मित्रों और सहपाठियों की सहायता-सहयोग करने से हमारे अंदर की शक्तियों का विकास होता है और हम सुख-शांति तथा आनन्द का अनुभव करते हैं।
  • जब हम किसी से द्वेष,घृणा,ईर्ष्या करते हैं,कष्ट देते हैं,किसी को अपशब्द बोलते हैं तो हमारे स्वस्थ अहम की शक्तियों का क्षरण होता है।
  • कठिन परिश्रम,अनुशासन में रहकर,उत्साह और उमंग रखते हुए अध्ययन करने तथा किसी अन्य छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति के प्रति काम,क्रोध,लोभ आदि की भावना नहीं रखते हैं तो अपनी शक्तियों का विकास होता है।हमें अपने कर्त्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा मिलती है।
  • अन्य छात्र-छात्राएं भूखे हों,गरीब हों और यदि आप उनका सहयोग कर सकते हैं तो करें परंतु यह स्थाई समाधान नहीं है।अच्छा है कि हम उन्हें पार्टटाइम जॉब दिलवाने तथा जाॅब करने योग्य बना सकने में मददगार बनें।
  • हमें अध्ययन में आने वाली समस्याओं से कुशलतापूर्वक संघर्ष करना है।संघर्ष करते हुए अपने आपको पूर्णतः संतुलित रखें।अध्ययन,जॉब अथवा जीवन में आने वाली समस्याएं जीवन का आधार है।समस्याओं के बिना निष्क्रिय जीवन भार है,अर्थहीन है।निष्क्रियता से हमारे स्वस्थ अहम का विकास नहीं होता है।
  • हम व्यायाम और योगासन-प्राणायाम करते हैं तो पसीने से लथपथ हो जाते हैं,थक जाते हैं।यह हमारे दुःख का कारण नहीं बल्कि इससे शरीर स्वस्थ रहता है,बुद्धि तीव्र होती है।यदि महाभारत से कर्ण और दुर्योधन के पात्र को काट दिया जाए तो महाभारत का महत्त्व ही समाप्त हो जाएगा।अर्जुन को महान् बनाने वाले ये व्यक्ति ही थे।
  • दृढ़ संकल्पशक्ति से अध्ययन कार्य इस प्रकार अर्जित करना चाहिए जिससे न केवल आपका स्वस्थ अहम विकसित होता है बल्कि अध्ययन कार्य परिवार,समाज और देश का गौरव बढ़ाने में भी काम आ सके।

4.स्वस्थ अहम का दृष्टांत (Parable of Healthy Ego):

  • एक छात्र गणित पढ़ने में बहुत कमजोर था।दूसरे छात्र-छात्राएं उसके गणित में कमजोर होने का मजाक उड़ाने लगे।उस छात्र ने अपने पिता से स्कूल के छात्र-छात्राओं की शिकायत की।उसके पिता ने कहा कि वह ऊँचा सुनने वाला ‘हियरिंग एड’ का उपयोग करे।छात्र ने कहा कि न तो मुझे कम सुनाई देता है और न मैं बहरा हूँ।पिता ने कहा कि तुम ठीक कहते हो।परन्तु जब तुम बहरे होने की नकल करोगे तो धीरे-धीरे वे तुम्हें चिढ़ाना छोड़ देंगे।धीरे-धीरे तुम गणित में कुशलता हासिल कर लो।जब तुम कुशलता हासिल कर लोगे तो ‘हियरिंग एड’ लगाना छोड़ देना।पुत्र पिता की बात से सहमत हो गया।
  • दूसरे दिन से छात्र ‘हियरिंग एड’ लगाकर बहरा होने का नाटक करने लगा।बहरों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला उपकरण लगाकर वह अपने सहपाठियों की बातें सुनता।अगर उसके सहपाठी बातचीत करना बंद कर देते तो भी वह उनसे खुद ही वार्तालाप करता रहता और बोलता रहता।धीरे-धीरे छात्र हीन भावना से मुक्त हो गया और उतने समय में उसने परिश्रम करके गणित में कुशलता प्राप्त कर ली।जब उसके साथियों ने उसे चिढ़ाना बंद कर दिया और उसने गणित में अच्छी दक्षता हासिल कर ली तो उसने कानो में ‘हियरिंग एड’ का उपयोग करना बंद कर दिया।
  • उसका अहम स्वस्थ और आत्म-विश्वास से पूर्ण हो गया।उसने बहरेपन की नकल करके अपनी हीन भावना को दृढ़ निश्चय और आत्म-विश्वास में परिवर्तित कर लिया।इस प्रकार आप भी इसी तरह की समस्या से ग्रस्त हैं तो कोई ऐसा तरीका खोज निकालिए जिससे आपके स्वस्थ अहम का विकास हो सके।इस तरह के अनेक उपाय हो सकते हैं जिससे मानसिक शक्तियों के विकास से जीवन में स्वास्थ्य,सुख और सफलता पाई जा सकती है।मन की शक्तियों का कोई अंत नहीं है।आप इस महानतम रहस्य को जाने और फिर देखिए कामयाबी आपके कदमों को चूमने लगेगी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम् का विकास कैसे करें? (How Do Students Develop Healthy Egos?),गणित के छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम का विकास कैसे करें? (How Do Mathematics Students Develop Healthy Egos?) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित की प्रिया शिष्या (हास्य-व्यंग्य) (Mathematician’s Favourite Disciple) (Humour-Satire):

  • एक गणितज्ञ भाषण दे रहे थे।वह बोले कि मैं गणित में कमजोरी,गणित में नकल करने,गणित में शिक्षक द्वारा न पढ़ाए जाने के बारे में बातें आपसे नहीं करूंगा।मैं सिर्फ प्रगति की बात करूंगा।
  • एक छात्र (दूसरे छात्र से):गणितज्ञ महोदय सिर्फ प्रगति की बात क्यों करेंगे?
  • दूसरा छात्र:प्रगति गणितज्ञ महोदया की प्रिय शिष्या है।

6.छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम् का विकास कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Develop Healthy Egos?),गणित के छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम का विकास कैसे करें? (How Do Mathematics Students Develop Healthy Egos?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.स्वस्थ अहम का उपयोग कैसे किया जा सकता है? (How Can Healthy Ego be Utilized Properly?):

उत्तर:जीवन की समस्त आवश्यकताएँ शरीर का निर्वाह,पोषण या समाज व्यवहार तक ही सीमित नहीं है।चेतना तथा स्वस्थ अहम का भी अपना कुछ स्वरूप,उद्देश्य,कार्यक्रम,बल-वैभव है।उस संबंध में अंजान बने रहने पर मात्र शरीर का निर्वाह ही किया जा सकता है।चेतना की अपनी निजी सामर्थ्य एक प्रकार से सोई ही पड़ी रहेगी।उसका निर्वाह पक्ष ही जागृत रहेगा।जिसे समग्र चेतना का कठिनाई से शतांश ही कहा जा सकता है।शेष अंश प्रसुप्त,उपेक्षित या अनगढ़ स्थिति में ही पड़ा रहे तो उसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।इसलिए उसके शेषांश को महत्त्वपूर्ण समझकर उससे भी सदुपयोग में लेना चाहिए जिससे महान् कार्य सम्पन्न किए जा सकें।

प्रश्न:2.स्वस्थ अहम विस्तृत कैसे कर सकते हैं? (How Can You Expand a Healthy Ego?):

उत्तर:छात्र-छात्राएं अथवा व्यक्ति ज्ञान अर्जित करने के लिए,नई-नई बातें जानने के लिए,नई खोज करने के लिए अपने मस्तिष्क को जितना खुला रखते हैं उतना ही उसमें रचनात्मकता और स्वस्थ अहम का विकास होता जाता है,विवेक का विकास होता जाता है।स्वस्थ अहम व रचनात्मकता का विवेक के विकास में बहुत ही योगदान है।हम जितना स्वस्थ अहम का विकास करते जाएंगे,हमारे ज्ञान का दायरा उतना ही बढ़ता जाएगा।परंतु अहम का स्वस्थ विकास नहीं करेंगे तो हमारा ज्ञान सीमित ही रहेगा।

प्रश्न:3.स्वस्थ अहम और अहंकार में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Healthy Ego and Egotism?):

उत्तर:स्वस्थ अहम से तात्पर्य है कि यह व्यक्ति को आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति देता है।स्वस्थ अहम और अहंकार में उतना ही अंतर है जितना एक आत्म-विश्वास से भरे और घमंडी आदमी में।स्वस्थ अहम का विकास करने से व्यक्तित्त्व में वह चुम्बकीय शक्ति उत्पन्न की जा सकती है जो सुख और सफलता को शीघ्र आकर्षित कर लेती है जबकि अहंकार हमारी शक्तियों को खंड-खंड करके विभाजित कर देता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम् का विकास कैसे करें? (How Do Students Develop Healthy Egos?),गणित के छात्र-छात्राएं स्वस्थ अहम का विकास कैसे करें? (How Do Mathematics Students Develop Healthy Egos?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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