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How to Protect Children from Dangers?

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1.बच्चों को खतरों से कैसे बचाएं? (How to Protect Children from Dangers?),युवावर्ग खतरों से कैसे बचें? (How Do Young People Avoid Dangers?):

  • बच्चों को खतरों से कैसे बचाएं? (How to Protect Children from Dangers?) यहां खतरों से तात्पर्य है की बुरी संगत,मादक पदार्थों,अपराध जगत की ओर जाने से बच्चों को कैसे रोका जाए? बच्चों की उम्र लगभग 10 वर्ष से लेकर 25-30 वर्ष की उम्र तक गलत दिशा में जाने का खतरा रहता है।कारण यह होता है कि युवाओं में जोश तो होता है परंतु होश नहीं होता है।उनमें होश की कमी पाई जाती है।उनमें जोश तो असाधारण होता है।होश का तात्पर्य है:दूरदर्शी विवेकशीलता।दूरदर्शी विवेकशीलता अनुभव से अर्जित होती है।
  • बालकों का निर्माण करना तप और साधना का कार्य है।परंतु आधुनिक युग में माता-पिता तप और साधना को न तो स्वयं कोई मूल्य और महत्त्व देते हैं तो फिर बच्चों के द्वारा तप और साधना करना तो दूर की कोड़ी है।माता-पिता धनार्जन करने और पारिवारिक व सांसारिक संबंधों का निर्वाह करने में तो बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं परंतु बच्चे क्या करते हैं,किनके साथ उठते-बैठते हैं,संस्कार सीख रहे हैं या नहीं इस तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं रहता है।फलतः नवयुवक तथा नई पीढ़ी के भटकने की गुंजाइश अधिक रहती है।खतरों से बचाने का यह भी तात्पर्य है कि जो गुंडे-बदमाश व अपराध जगत में सक्रिय हैं उनसे बचाव के क्या तरीके हैं?
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2.युवाओं के भटकने के खतरे (Dangers of Young People to Go Astray):

  • उठती आयु के किशोर प्रायः स्कूल से चलकर घर तक और घर से चलकर स्कूल तक ही आते-जाते हैं।खेल-कूद की आवश्यकता वे पास-पड़ोस में ही पूरी कर लेते हैं।अभिभावकों की नजर भी उन पर रहती है,पर आयु 18 से ऊपर निकल जाने और 25 के लगभग पहुंचने तक की स्थिति में भारी अंतर आ जाता है।
  • पढ़ना है तो कॉलेज जाना पड़ता है,जो घर से दूर होता है,जाने-आने में समय लगता है।सांस्कृतिक कार्यक्रम,स्काउटिंग,खेलकूद आदि अन्यान्य प्रसंगों का भी समावेश होता है।इनमें भी समय लगता है।फिर पढ़ाई के संबंध में अन्य साथियों के घर पूछताछ करने की भी उपयोगिता समझी जाती है।ऐसे ही उसके अनेक प्रसंगों को जोड़कर घर से बाहर रहने का वास्तविक या अवास्तविक कारण गिना देने का अवसर रहता है।इस बचे हुए समय में यदि नवयुवक चाहे तो कुसंग में पड़ने के लिए अधिक समय निकाल सकते हैं।
  • छोटे बच्चों का तो किसी दिशा में केवल रुझान ही होता है,लेकिन बड़ी आयु के किशोर तो उसे चरितार्थ भी कर सकते हैं।पढ़ाई के लिए,जीवनचर्या के लिए कुछ पैसा भी उनके पास रहता है।उसे वे चाहें तो गलत कामों में खर्च भी करते रह सकते हैं।अभिभावकों से वस्तुस्थिति को छिपाए रहने में भी अपनी विकसित बुद्धि के सहारे आसानी से सफल हो सकते हैं।
  • नशेबाजी इन्हीं दिनों कुसंग के कारण आरंभ होती है।अश्लील हरकतों से लेकर आवारागर्दी के अनेक दुर्व्यसन खाली समय में पल्ले बँध जाते हैं।यदि किन्हीं को सुयोग मिली तो वे शालीनता के वातावरण एवं समुदाय के साथ भी अपनी घनिष्ठता बना लेते हैं।इन्हीं दिनों अपने चिंतन को किसी भली-बुरी दशा के साथ जोड़ा जाता है।जड़ जमने की यही अवधि है।बाद में व्यक्ति कमाने-धमाने के फेर में लग जाता है और जो स्वभाव आरंभिक दिनों में बन गया है,उसी के अनुरूप आचरण करता रहता है।
  • चूँकि सज्जनता का वातावरण एवं अवसर कम है।सब ओर दुःस्वभाव,कुप्रचलन एवं अनाचार का ही बोलबाला है।ऐसी दशा में बहुमत का दबाव और अनाचारों का आकर्षण युवकों को अधिक प्रभावित करता है।उनमें से अधिकांश उसी कुचक्र में फंस जाते हैं।मानवी मर्यादाओं का उल्लंघन करने की,उच्छृंखलता अपनाने की आदत उन्हें यहीं से पड़ जाती है।यह आरोपण आगे चलकर विषवृक्ष के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

3.कम पढ़े-लिखों के भटकने के खतरे (The Dangers of the Under-educated to Go Astray):

  • जिन्होंने पढ़ाई आरम्भ नहीं की या थोड़ा पढ़कर स्कूल से नाम कटा लिया,उनकी समस्या ओर भी अधिक जटिल है।अशिक्षित माता-पिता शिक्षा का महत्त्व नहीं समझते हैं अथवा आर्थिक मजबूरी के कारण बच्चों को पढ़ा- लिखा नहीं पाते हैं।
  • कई बच्चे ठस दिमाग के होते हैं इसलिए भी उनकी पढ़ने में रुचि नहीं होती है।ऐसे बच्चे या तो स्कूल जाते ही नहीं है अगर जाते हैं तो जल्दी स्कूल की पढ़ाई छोड़ देते हैं।घर वाले भी उन पर वैसा दबाव नहीं देते।बच्चे पूरे मन से,पूरी शक्ति से,पूरे समय घर का काम भी नहीं करते हैं।
  • उपेक्षा की मनःस्थिति में किया गया काम भी अस्त-व्यस्त ही रहता है।ऐसी दशा में परिवार वाले खीझते रहते हैं और रुष्ट होकर असहयोग जैसी स्थिति बना लेते हैं।इसका परिणाम यह होता है कि युवक आवारागर्दी में जहां-तहां घूमने लगते हैं।पढ़ने वाले छात्रों की अपेक्षा इन अधकचरे अस्त-व्यस्त युवकों की समस्या ओर भी अधिक जटिल है।
  • आकांक्षा और अनगढ़ स्थिति उन्हें एक प्रकार से ओर भी अधिक जटिल बना देती है।उन्हें समझाने की दिशा में ओर कठिनाई होती है,जबकि परिवार वाले स्वयं अशिक्षित और समस्याओं से निपटने में अपने पिछड़ेपन के कारण अक्षम होते हैं।
  • शहर की गंदी बस्तियों और कच्ची बस्तियों में,झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले माता-पिता की आर्थिक स्थिति इतनी पतली होती है कि वे बच्चों को स्कूल भेज ही नहीं पाते हैं।न स्वयं इतने शिक्षित होते हैं कि बच्चों में आवश्यक संस्कारों का बीजारोपण कर सकें।वे सुबह-शाम भोजन व रोटियों का जुगाड़ करने में ही व्यस्त रहते हैं और रोटी व भोजन का इंतजाम करने में ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं।
  • इन गंदी व कच्ची बस्तियों के बच्चों के भटकने के अवसर अधिक होते हैं।समाज सेवी संस्थाएं तथा सरकारें भी इनकी तरफ ज्यादा कुछ ध्यान नहीं देती है।तात्पर्य यह है कि अनपढ़ बच्चों,कच्ची बस्तियों के बच्चों,गंदी बस्तियों के बच्चों को अच्छा संग,उचित दिशा व सही मार्गदर्शन नहीं मिले तो वे आवारागर्दी करने,बुरी आदतों को अपनाने तथा अपराध जगत की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
  • अक्सर ऐसे बच्चे चोर उचक्के,उठाईगिरी करने,जेब कतरे,हत्या,डकैती,ठगी के धन्धों की ओर अग्रसर हो जाते हैं।उनका गिरोह बन जाता है और ये गिरोह बनाकर ही इतने बड़े अपराध करने में सक्षम हो पाते हैं।
  • इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पढ़े-लिखे युवाओं के भटकने के खतरे नहीं है।साइबर क्राइम,बैंक डकैती,ऑनलाइन फ्रॉड आदि कामों में अच्छे पढ़े-लिखे युवाओं का ही हाथ होता है।दरअसल जब तक बच्चों में चरित्र का निर्माण,अच्छी आदतों का निर्माण,संस्कारों का निर्माण नहीं किया जाएगा अर्थात् वास्तविक रूप में शिक्षित नहीं किया जाएगा तब तक उनके भटकने के खतरे बने रहेंगे और भटकेंगे तथा सही दिशा मिलना बहुत मुश्किल है।दरअसल हम डिग्री प्राप्त करने,पढ़ने लिखने को ही शिक्षित होना समझ लेते हैं।

4.युवाओं को खतरों से कैसे बचाएं? (How to Protect Young People from Danger?):

  • युवावस्था वह अवधि है,जिसे किसानों के बीज बोने वाली अवधि कहते हैं।मौसम के कुछ ही दिन ऐसे होते हैं,जिनमें बीज बोने पर समुचित रीति से फसल उगती है।यदि यह समय चूक जाए तो समझना चाहिए की फसल की बहुत बड़ी संभावना तिरोहित हो गई।
  • इस तथ्य को समझते हुए समझदार किसान बीज बोने की अवधि का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं और उसे हाथ से नहीं जाने देते।
  • किशोरावस्था को भी ठीक ऐसा ही अवसर माना जाना चाहिए।उनमें स्कूली शिक्षण ही नहीं साथ-साथ यह प्रयत्न भी चलना चाहिए कि सभ्यता,सुसंस्कारिता पनपे और नागरिकता-सामाजिकता की मर्यादाओं का स्वभाव में समुचित समावेश चल पड़े।
  • उठती आयु के किशोरों की अपेक्षा बढ़ती और पकती आयु के युवक कुविचारों को अनाचार के रूप में क्रियान्वित करने में अधिक सफल होते देखे गए हैं।इन दिनों विशेष देखभाल की जरूरत है।संकटों से बचने का ठीक यही समय है।इसके लिए सतर्कता,जांच पड़ताल,रोकथाम की तो आवश्यकता है ही,साथ ही यह प्रयत्न भी होना चाहिए कि उन्हें सुसंगति भी मिले।समय का कार्यक्रम ऐसा बने,जिसमें उपयोगी कार्यों की व्यस्तता ही छाई रहे।
  • अच्छी प्रकृति वाले सज्जनों के साथ ही बैठना-उठना बन पड़े।अच्छा हो दोस्तों का चुनाव लड़कों के ऊपर छोड़ा जाए,पर उनकी टोली बनाने में अध्यापक एवं अध्यापिका भी रुचि लें,साथ ही उनके साथ वार्तालाप करते रहने का भी उपक्रम चलाएं।
  • देखा गया है की आयु बढ़ने के साथ-साथ अभिभावकों और किशोरों के बीच अनावश्यक संकोचशीलता पनपने लगती है।इसमें विचारों के आदान-प्रदान की,वस्तुस्थिति को समझने और समझाने की व्यवस्था में अड़चन खड़ी हो जाती है,फलतः सुधार परिवर्तन की संभावनाएं भी घट जाती है।अच्छा हो यह स्थिति कहीं भी न बने।
  • जिस प्रकार छोटे बालकों और अभिभावकों के बीच प्यार-दुलार का,हंसने-हंसाने का उपक्रम चलता रहता है,उसी प्रकार उसमें थोड़ा सुधार करके आयु के अनुरूप स्तर का विचार-विनिमय चलता रहे और रोकथाम से लेकर आवश्यक सुझाव पूछने या देने का सिलसिला चलता रहे।
  • युवकों को एक उपयोगी मोड़ देने की योजना यह है कि स्वास्थ्य रक्षा में व्यायाम के योगदान से विस्तारपूर्वक अवगत कराया जाए।यह दिलचस्प विषय ऐसा है,जिसमें यदि नई पीढ़ी को जोड़ा जा सके तो वे अपने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधार सकते हैं।अपना भविष्य बिगड़ने से बचा सकते हैं और प्रगति के मार्ग पर चल पड़ने का एक नया आधार प्राप्त कर सकते हैं।
  • पाठशालाओं की तरह व्यायामशालाओं का भी महत्त्व समझ जाना चाहिए।उन्हें हर जगह स्थापित ही नहीं अपितु सक्रिय एवं सक्षम भी बनाया जाना चाहिए।उनमें चरित्रनिष्ठा एवं अनौचित्य के अवरोध का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए।
  • व्यायामशालाओं में कसरत करने वालों और लाठी चलाना सीखने वालों को देखकर अनाचारियों की हिम्मत पस्त होती है।साहस का दीखना भी बल प्रयोग जितना काम कर जाता है।नवयुवकों की व्यायामशालाएं और समर्थ नागरिकों का सेवादल जैसा संगठन बनाना भी गुंडा-तत्वों की रोकथाम का एक कारगर एवं सस्ता उपाय है।
  • प्रसिद्ध है कि चोर के पैर नहीं होते।वह घरवालों के जाग जाने और रोने चिल्लाने की आवाज भर सुनकर भाग खड़ा होता है।यही बात उन अनाचारियों के संबंध में भी लागू होती है,जो कामचोर,असंगठित वर्ग को ही आमतौर से अपना शिकार बनाते हैं।जहां उन्हें विश्वास होता है कि प्रतिरोध की आशंका नहीं है,वहीं वे शिकंजा कसने का प्रयत्न करते हैं।जब उन्हें प्रतीत होता है कि यहां तो दांत खट्टे कर देने वाली प्रतिरोधक शक्ति मौजूद है,वहां से वे सहज ही किनारा काट लेते हैं और अपनी जान बचाते हैं।
  • असामाजिक तत्वों से सचेत रहने के लिए कभी-कभी हमें ऐसी भूमिका भी निभानी पड़ सकती है,जिसमें हमें नकली फुसकार का सहारा भी लेना पड़े।शठे शाठयम की नीति अपनी जगह सही है।वहां यह भी ठीक है कि अनीति के प्रति कड़ा रुख समूह द्वारा अपनाया जाए।गुंडा-तत्व उच्छृंखल भी होता है,जब-जब भी अनीति किसी रूप में होती दिखे तो उसे अनदेखा न कर सभी सामूहिक रूप से प्रतिरोध को आगे आएँ तो फिर उसे दुम दबाकर भागना ही पड़ता है।इसीलिए ऐसी नीति अपनाई जानी आवश्यक है।विशेषतः किशोर-युवावर्ग से तो सभी को यह अपेक्षा आज की प्रतिकूल परिस्थितियों में है।

5.खतरों का दृष्टांत (A Parable of Dangers):

  • एक युवक के माता-पिता अपने बच्चे पर ध्यान नहीं देते थे।उसे रुपए-पैसों की जितनी जरूरत होती थी,घरवाले दे देते थे।माता-पिता न तो यह पूछते थे कि रुपए-पैसों का वह क्या करेगा और न ही उसके संस्कार निर्माण की तरफ ध्यान देते थे।उस युवक की गंदी आदत पड़ गई।वह शराब का सेवन करने लगा।
  • एक बार वह अपने दोस्तों द्वारा दी जाने वाली पार्टी में शामिल हुआ।माता-पिता उत्साह के साथ उसके लौटने का इंतजार कर रहे थे और यह आशा कर रहे थे कि वह हमारे लिए भी कुछ अच्छी चीज लेकर आएगा।
  • वहां पार्टी में उसने इतनी शराब पी ली की वहीं गिर पड़ा।उसके अन्य दोस्त उसे उठाकर लेकर आए।पुत्र की यह दशा देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ।घर पर बिस्तर पर लिटाकर नशा उतारने के लिए अनेक प्रयास किए गए।डॉक्टर को बुलाकर भी दिखाया परंतु उसका कोई परिणाम नहीं निकला।अंततः वह होश में नहीं आया और उसकी मृत्यु हो गई।माता-पिता को बहुत सदमा पहुंचा।परंतु अब क्या हो सकता था? समय पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया।
  • ये दुर्घटना तो शराब का अधिक सेवन करने के कारण घटी।कहा जा सकता है कि थोड़ी-बहुत पीने में क्या हानि है? अधिक तो अन्न भी विष होता है।किंतु ऐसी बात नहीं है।शराब तो विष ही है जो अधिक मात्रा में पी जाए अथवा थोड़ी मात्रा में उसका दुष्प्रभाव-दुष्परिणाम होना निश्चित है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों को खतरों से कैसे बचाएं? (How to Protect Children from Dangers?),युवावर्ग खतरों से कैसे बचें? (How Do Young People Avoid Dangers?) के बारे में बताया गया है।

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6.शिक्षक के सवाल का जवाब (हास्य-व्यंग्य) (Answer to Teacher’s Question) (Humour-Satire):

  • मां (बेटे से):तुम्हारी प्रोग्रेस रिपोर्ट में लिखा था कि गणित शिक्षक आज सवाल पूछेंगे।तुमने शिक्षक को जवाब दे दिया क्या?
  • बेटा:नहीं,मां।
  • माँ (गुस्से से):क्यों?
  • बेटा (मासूमियत से):आप ही ने तो कहा था कि अपने से बड़ों को जवाब नहीं देते।

7.बच्चों को खतरों से कैसे बचाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Protect Children from Dangers?),युवावर्ग खतरों से कैसे बचें? (How Do Young People Avoid Dangers?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या अन्याय सहना अपराध है? (Is It a Crime to Tolerate Injustice?):

उत्तर:अन्याय के दो रूप हैं।एक अपने ऊपर दूसरा,दूसरे लोगों पर।ऐसे अन्याय होते रहते हैं और आमतौर पर लोग उन्हें सहते रहते हैं।अपने ऊपर होने वाले अन्याय का लोग एक तो डर के कारण प्रतिकार नहीं करते,दूसरे मजबूरी के कारण,जब वे यह सोचते हैं कि कोई देखने-सुनने वाला नहीं।दूसरों पर होने वाले अन्याय को लोग उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं।कहते हैं:अरे यह तो होता रहता है,कौन झंझट में पड़े।यहां भी दूसरा कारण यह डर होता है कि अन्याय को रोकने की कोशिश में खुद का नुकसान न हो जाए।
इसी मनोवृत्ति के कारण समाज में अनेक अन्याय होते रहते हैं।इन्हें रोकने के लिए मनुष्य में सहृदयता होनी चाहिए और निडरपन होना चाहिए।अन्याय होता देखकर भी खामोश रहना,कायरता की निशानी है।

प्रश्न:2.अन्याय का प्रतिकार से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Countering Injustice?):

उत्तर:लोग दूसरों के साथ अन्याय करते हैं उसका प्रतिकार तो दूर की बात है,उसे स्वीकार तक नहीं करते।दूसरी तरफ,किसी का जरा भी उपकार किया हो,तो उसका दुनिया भर में गीत गाते हैं और एहसान जताते हैं।इसी प्रकार कोई अपना उपकार करे तो उसका एहसान नहीं मानते और अन्याय करे तो उसका दुनिया भर में रोना रोते हैं।
इतना ही नहीं,लोग उपकार का बदला भी चाहते हैं।जिस उपकार का बदला चाहा जाता है,वह फिर उपकार नहीं कहा जा सकता।वह तो बिक्री की चीज बन जाती है।वस्तुतः उपकार कर उसे भूल जाना चाहिए परंतु साथ ही अपने ऊपर दूसरे के उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए और समय पड़ने पर कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।

प्रश्न:3.क्या अन्यायी कमजोर होता है? (Is the Unjust Weak?):

उत्तर:जिसका हृदय कलुषित है,जो दूसरों पर अन्याय करता है,वह बिल्कुल कमजोर होता है।वह अपने बचाव के चाहे जितने उपाय करे,वे उपाय उसे बचा नहीं सकते। अंततः अन्यायी पराजित होता है और अपने ही कुकर्मों से नष्ट हो जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चों को खतरों से कैसे बचाएं? (How to Protect Children from Dangers?),युवावर्ग खतरों से कैसे बचें? (How Do Young People Avoid Dangers?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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