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5 Tips to Achieve Goal with Will Power

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1.संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की 5 टिप्स (5 Tips to Achieve Goal with Will Power),संकल्प शक्ति से गणित के अध्ययन की 5 टिप्स (5 Tips to Study Mathematics with Will Power):

  • संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की 5 टिप्स (5 Tips to Achieve Goal with Will Power) उन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है जो कर्म करने में विश्वास रखते हैं।विद्यार्थी तीन मार्गों से लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।संकल्प,ज्ञान और समर्पण द्वारा।संकल्प शक्ति का मार्ग कर्मयोगियों के लिए,समर्पण का मार्ग भक्तियोगियों के लिए तथा ज्ञानमार्ग ज्ञानयोगियों के लिए है।
  • ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो बचपन में मंदबुद्धि बालक थे परन्तु जब उनकी चेतना पर आघात लगा तो उनकी संकल्प शक्ति जागृत हो गई और वे संबंधित क्षेत्र में शिखर पर पहुंच गए।उनके आचार्य उनके महान कार्य को देखकर अवाक रह गए।
  • मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसको स्वतंत्र इच्छा अथवा संकल्प शक्ति प्राप्त है।संकल्प शक्ति के बल पर वह महानतम एवं श्रेष्ठ कार्य संपन्न करने में सक्षम हो पाता है।संसार में महान् वैज्ञानिक,गणितज्ञ,महापुरुष हुए हैं उन्होंने प्रायः असंभव लगने वाले कार्य संपन्न किए हैं,ये कार्य संकल्प शक्ति की ही देन है।
  • संकल्प शक्ति तब कार्य करती है जब मन और चित्त एकाग्र होता है तब वह आत्मा द्वारा निर्देशित होता है।आत्मशक्ति से किए जाने वाले कार्य,संकल्प शक्ति से किए जाने वाले कार्य समझे जाने चाहिए। खंड-खंड मन से,विखण्डित मन से,मन की बंटी हुई ऊर्जा से कार्य संपन्न किए जाते हैं तो वे पूरे नहीं होते हैं।इसमें हमारी संकल्प शक्ति कमजोर और क्षीण होती जाती है।ऐसी अवस्था में लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
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2.अहंकाररहित होकर कर्म करें (Act Egolessly):

  • संकल्प शक्ति से अध्ययन कार्य तथा परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए विद्यार्थियों को चाहिए वे अहंकाररहित होकर कार्य करें।वस्तुतः अध्ययन कार्य के पांच कारण होते हैं।शरीर,कर्त्ता,इंद्रियां,प्रयत्न और भगवद् शक्ति।इनमें से केवल कर्त्ता के द्वारा अध्ययन कार्य को समझना भूल है अथवा अहंकार है।अध्ययन कार्य करने के लिए शरीर का होना आवश्यक है,कर्त्ता अर्थात शरीर में चेतन शक्ति होना जरूरी है।चेतन शक्ति के द्वारा ही विद्यार्थी निर्णय लेता है कि कौनसा पाठ अध्ययन करना है तथा क्या अध्ययन नहीं करना है इत्यादि।
  • इसके अलावा इन्द्रियों के बिना भी अध्ययन कार्य नहीं किया जा सकता है।विद्यार्थी आंखों से देखकर,मन से अध्ययन कार्य करता है।चौथा कारण है प्रयत्न करना।यदि विद्यार्थी अध्ययन कार्य के लिए चेष्टा ही न करे तो अध्ययन कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता है।इसके अतिरिक्त पांचवा कारण है भगवद् शक्ति।प्रत्येक इंद्रिय के पीछे संबंधित देवता की शक्ति होती है।उदाहरणार्थ आंखों के पीछे सूर्य देवता की शक्ति है।बिना सूर्य या प्रकाश के अध्ययन कार्य नहीं किया जा सकता है।इस प्रकार इन 5 में से केवल कर्त्ता को अध्ययन कार्य का कारण मानना अहंकार है।
  • प्रत्येक विद्यार्थी को अकर्त्ता समझकर अध्ययन करना चाहिए।

3.अध्ययन कार्य को अनासक्तिपूर्वक करे (Do the Study Work Unattachment):

  • साधारणतः प्रत्येक विद्यार्थी अध्ययन कार्य आसक्ति के कारण ही करता है।आसक्ति उसे अध्ययन कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।विद्यार्थी को आसक्ति पर विजय प्राप्त करना चाहिए।विद्यार्थी को सुख-दुख,लाभ-हानि जय-पराजय से ऊपर उठकर अध्ययन कार्य करना चाहिए।विद्यार्थी सामान्यतः परीक्षा उत्तीर्ण करने,जाॅब में सफलता प्राप्त करने,जाॅब प्राप्त करने के लिए ही अध्ययन करता है।अतः उसका अध्ययन कार्य अनासक्त नहीं है।विद्यार्थी के लिए अध्ययन पर ही ध्यान केंद्रित होना चाहिए।उसे अध्ययन कार्य के फलस्वरूप उत्तीर्ण व अनुत्तीर्ण होने के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए तभी उसका कर्म अनासक्त कर्म हो सकता है।

4.निष्काम कर्म करें (Anything Done for its Own Sake without Concern for the Result):

  • यदि विद्यार्थी अध्ययन कार्य को परीक्षा में सफलता अर्जित करने की कामना से करता है तो वह निष्काम कर्म नहीं है।दरअसल फल में आसक्ति रखने से,ममता रखने से उसका ध्यान भंग होता है। अध्ययन कार्य को एकाग्रतापूर्वक नहीं कर सकता है।कारण कि वह बार-बार यह सोचता है कि उसे अच्छे प्रतिशत अंक लाने हैं,प्रश्न-पत्र कठिन आएगा तो अच्छे अंक ला सकता है या नहीं,प्रश्न-पत्र किस प्रकार का आएगा? इस प्रकार फल में ममता और तृष्णा रखने से उसकी एकाग्रता भंग होती है।
  • मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निष्काम कर्म संभव ही नहीं है।कामना रहित तो कोई कर्म किया ही नहीं जा सकता है।परन्तु वस्तुतः हम दैनिक जीवन में कई कर्म बिना कामना के करते हैं।जैसे किसी कर्म को कर्त्तव्य समझकर करते हैं,किसी कर्म को बड़ों की आज्ञापालन समझकर करते हैं,किसी कर्म को दाब-दबाव से करते हैं।इनमें हमारी कोई कामना या इच्छा नहीं होती है।विद्यार्थी जब समझ लेता है कि किसी भी कर्म का कर्त्ता केवल स्वयं नहीं है तो कर्त्तापन के अभाव से कर्म किया जा सकता है। अध्ययन कार्य को कर्त्तापन और आसक्ति के बिना करना निष्काम कर्म है।अध्ययन कार्य को कर्त्तव्य समझकर करें अथवा भगवान को अर्पण करते हुए करें तो निष्काम कर्म करना ही है।निष्काम कर्म कर्म का त्याग नहीं है बल्कि कर्मफल का त्याग है।अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का यही श्रेष्ठ तरीका है।

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5.संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति के दृष्टान्त (Examples of Achieving Goals with Will Power):

  • महान् वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ आइज़क न्यूटन,गणितज्ञ आर्किमिडीज,महान् गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त,महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय इत्यादि अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने संकल्प शक्ति के बल पर अपना लक्ष्य प्राप्त किया है।गणित और विज्ञान से इतर भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने संकल्प शक्ति के बल पर लक्ष्य प्राप्त किया है।ऐसे महापुरुष लक्ष्य प्राप्ति तथा कर्म संपन्न करने में झुके नहीं है।उदाहरणार्थ महाराणा प्रताप,वीर शिवाजी,महारानी लक्ष्मीबाई तथा अनेक स्वतन्त्रता सेनानी अल्प साधनों के बल पर ही अपने शत्रुओं के दांत खट्टे कर दिए।द्वितीय विश्व युद्ध में जापान,जर्मनी,दक्षिण कोरिया और इंग्लैंड भी अपने संकल्प शक्ति द्वारा उन्नति और प्रगति करके अल्पकाल में ही विकसित देशों की श्रेणी में खड़े हो गए।
  • विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में टाॅपर्स सफलता हासिल करते हैं उसमें भी उनकी संकल्प शक्ति का ही कमाल है।वे कभी भी अधिक पाठ्यक्रम,कठिन पाठ्यक्रम तथा समय कम होने का रोना नहीं रोते हैं।यदि असफल हो भी जाते हैं तो संकल्प शक्ति उन्हें निरन्तर प्रेरित करती रहती है कि पराजय स्वीकार करना कायरता की पराकाष्ठा है।संकल्प शक्ति से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।>

6.संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की 5 टिप्स का निष्कर्ष (Conclusion of 5 Tips to Achieve Goal with Will Power):

  • संकल्प शक्ति के लिए अनासक्त कर्म,निष्काम कर्म,अहंकाररहित होकर कर्म करना सामान्य विद्यार्थी के लिए अत्यंत कठिन है।विद्यार्थी अध्ययन कार्य करता है तो उससे उत्तीर्ण होने और अच्छा फल प्राप्त करने की आशा करता है।फल की यह आशा ही विद्यार्थी को अध्ययन करने के लिए प्रेरित करती है।ऐसी स्थिति में साधारण विद्यार्थी के लिए फलाकांक्षा का त्याग करना असंभव प्रतीत होता है। परंतु यह अवश्य सम्भव है कि एक बार विद्यार्थी अपना लक्ष्य निश्चित कर लेने के पश्चात अध्ययन करते समय उसके परिणाम पर अधिक ध्यान न दें और यथासंभव अधिक से अधिक कठिन परिश्रम करने पर भी सफलता नहीं मिलने पर विचलित न हो।इस दृष्टि से संकल्प शक्ति का सामान्य विद्यार्थी के लिए भी निष्काम कर्म,अनासक्त कर्म का बहुत महत्त्व है। विद्यार्थी द्वारा अंशत इसका पालन करने पर भी पर्याप्त शान्ति एवं संतोष की प्राप्ति होती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की 5 टिप्स (5 Tips to Achieve Goal with Will Power),संकल्प शक्ति से गणित के अध्ययन की 5 टिप्स (5 Tips to Study Mathematics with Will Power) के बारे में बताया गया है।

7.गणित की कोचिंग में न आने का कारण (हास्य-व्यंग्य) (Reasons for Not Getting into Math Coaching) (Humour-Satire):

  • एक छात्र रोजाना गणित की कोचिंग क्लास में जाता था।एक दिन वह नहीं गया।
  • गणित टीचर (मनोज से):तुम दो दिन से गणित की कोचिंग क्लास में गणित पढ़ने क्यों नहीं आए?
  • मनोज:सर (sir),मेरे पास गणित की एक ही पुस्तक थी,उसको मेरा मित्र ले गया था इसलिए परसों नहीं आया।
  • गणित टीचर:परंतु कल क्यों नहीं आए?
  • मनोज:सर,कल मैं आया था परंतु कोचिंग क्लास के बाहर एक स्टूडेंट आपकी गणित की पुस्तक लेकर जा रहा था इसलिए मैं वापस चला गया।

8.संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की 5 टिप्स (5 Tips to Achieve Goal with Will Power),संकल्प शक्ति से गणित के अध्ययन की 5 टिप्स (5 Tips to Study Mathematics with Will Power) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.कर्मयोग से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Philosophy of Actions?):

उत्तर:फल और आसक्ति का त्यागकर कर्म करना स्वधर्म,यह अनासक्त कर्म है।विद्यार्थी के लिए अध्ययन करना स्वधर्म है।इन अनासक्त कर्म को विद्यार्थी अपने लिए नहीं वरन भगवान के लिए करना चाहिए।कर्म को भगवान की पूजा समझकर करना कर्मयोग की पराकाष्ठा है।अनासक्ति और अनिच्छा से सम्पन्न होकर सब कुछ भगवान का है ऐसा समझकर भगवान के चरणों में अपने सभी कर्मों को अर्पित करने वाला कर्मयोगी सबसे बढ़कर है।

प्रश्न:2.क्या कर्मयोग ज्ञानयोग और भक्तियोग अलग-अलग हैं? (Are Philosophy of Actions Knowledge as a Means of Solvation and Devotion as a Means of Solvation Different?):

उत्तर:भक्तियोग:मन और बुद्धि को भगवान में लगाकर भगवान् के अधीन होना ही भक्तियोग है।
कर्मयोग:भगवान् के लिए सभी कर्मों को अनासक्त होकर करना ही कर्मयोग है।
ज्ञानयोग:सर्वत्र आत्म-तत्त्व का दर्शन करना ही ज्ञानयोग है।ज्ञानी की दृष्टि में समता होती है।
सभी विद्यार्थियों की प्रकृति एक सी नहीं होती है। अतः अपनी प्रकृति के अनुरूप साधन अपनाना चाहिए।किसी को कर्म में तो किसी को भक्ति में आनन्द प्राप्त होता है।जिसकी जिस मार्ग में रुचि अधिक हो वही मार्ग अपना चाहिए।जिसको जो अच्छा लगे,उसी मार्ग को अपनाना चाहिए,वही उसके लिए फलदायक है।

प्रश्न:3.स्थितप्रज्ञ से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Undisturbed Equilibrium of Mind?):

उत्तर:स्थितप्रज्ञ का अर्थ है जिसकी बुद्धि स्थिर हो गई हो।स्थितप्रज्ञ के लक्षण हैं:
(1.)वह मन में रही हुई सभी कामनाओं या वासनाओं का त्याग करता है।
(2.)वह परमात्मा में ही संतुष्ट रहता है।
(3.)वह दुख से परेशान (चिन्तित) नहीं होता तथा सुख की सर्वथा लालसा नहीं करता।
यह तीसरा लक्षण स्थितप्रज्ञ का सबसे महत्त्वपूर्ण है।दुःख में व्याकुल नहीं होना और सुख की मन में लालसा न रखना साधारण विद्यार्थी के लिए संभव नहीं है।जिसकी बुद्धि स्थिर हो गई है,वही दुख में व्याकुल नहीं होता और सुख की लालसा नहीं करता।उसके मन में राग,भय,क्रोध द्वेष आदि नहीं रहते।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की 5 टिप्स (5 Tips to Achieve Goal with Will Power),संकल्प शक्ति से गणित के अध्ययन की 5 टिप्स (5 Tips to Study Mathematics with Will Power) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

5 Tips to Achieve Goal with Will Power

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(5 Tips to Achieve Goal with Will Power)

5 Tips to Achieve Goal with Will Power

संकल्प शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति की 5 टिप्स (5 Tips to Achieve Goal with Will Power)
उन विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है जो कर्म करने में विश्वास रखते हैं।
विद्यार्थी तीन मार्गों से लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।संकल्प,ज्ञान और समर्पण द्वारा।
संकल्प शक्ति का मार्ग कर्मयोगियों के लिए,समर्पण का मार्ग भक्तियोगियों के लिए
तथा ज्ञानमार्ग ज्ञानयोगियों के लिए है।

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