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6 Top Tips for Students to Use Brain

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1.छात्र-छात्राओं के लिए मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 टॉप टिप्स (6 Top Tips for Students to Use Brain),मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips to Use Brain):

  • छात्र-छात्राओं के लिए मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 टॉप टिप्स (6 Top Tips for Students to Use Brain) के आधार पर वे जान सकेंगे कि मस्तिष्क को सक्रिय रखने (अध्ययन अथवा किसी सृजनात्मक कार्य के द्वारा) का कितना फायदा है? मस्तिष्क का उपयोग किस प्रकार किया जाए और क्यों किया जाए यह भी जानना आवश्यक है।
  • इसका यह अर्थ नहीं है कि मस्तिष्क को हमेशा सक्रिय रखें,हमेशा अध्ययन अथवा अन्य गतिविधियों को करते रहे और विश्राम बिल्कुल ही ना करें।जिस प्रकार दिन-रात,जीवन-मृत्यु,सृजन-विनाश,सृष्टि-प्रलय,उन्नति-अवनति ये एक ही प्रक्रिया के दो रूप है।एक रूप के बाद दूसरा रूप अपना स्वरूप प्रकट करता है अथवा यों कह लीजिए कि आवश्यक है।परिश्रम (अध्ययन) के साथ विश्राम भी आवश्यक है।
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2.मस्तिष्क को सक्रिय रखें (Keep the brain active):

  • उपयोग और उपभोग का सामान्य सिद्धांत यह है कि उनसे वस्तुओं की क्षमता,योग्यता और आयु धीरे-धीरे घटती और फिर समाप्त हो जाती है।मशीनों के पुर्जे लंबे इस्तेमाल के बाद बदलने पड़ते हैं।काया भी अधिक समय तक अनवरत श्रम कहां कर पाती है।ज्यादा परिश्रम उसे निष्क्रिय और निस्तेज बनाता है।जब उसकी क्लान्ति समाप्त होती तब थोड़ा विश्राम आवश्यक हो जाता है।विश्राम के बाद वह नई स्पूर्ति और ताजगी के साथ नए सिरे से पुन सक्रिय हो उठती है।
  • देहांतर का विधान भगवत सृष्टि में शायद इसीलिए बनाया गया हो कि भारभूत बन गए जीर्ण-शीर्ण शरीर से पिंड छूटे और लोकान्तर वास के उपरांत थकी जीवात्मा जब नवीन देह धारण करे,तो नूतन जीवन का आरंभ नई उमंग और उत्साह के साथ हो।उपयोग का यह मोटा सिद्धांत हुआ,पर इसे बिल्कुल ही अकाट्य नहीं माना जाना चाहिए।अपवाद यहां इस क्षेत्र में भी मौजूद है।इसे दैनिक जीवन में सर्वत्र लागू होते देखा जा सकता है।
  • खिलाड़ी यदि नियमित रूप से अभ्यास न करें,तो राष्ट्रीय स्तर तो क्या,स्थानीय स्तर के मुकाबले में भी हारते और पदक गँवाते देखे जाते हैं।साहित्यकारों,संगीतज्ञों,वक्ताओं,विद्यार्थियों सभी के साथ यही बात समान रूप से लागू होती है।शरीर के संदर्भ में भी सचाई यही है कि नियमित श्रम करने से उसके सारे तंत्र समर्थ और सक्षम बने रहते हैं।लगातार कार्य करने से शरीर में थकान आती है,यह सच है,पर मिथ्या यह भी नहीं है यदि उसे यों ही निठल्ला पड़ा रहने दिया जाए,तो जंग लगे चाकू की सी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी और वह किसी काम का नहीं रह जाएगा।
  • अब इसी तथ्य की पुष्टि मस्तिष्कीय क्षमता के संबंध में अधुनातन शोधों ने भी की है।इस बारे में अब तक की मान्यता थी कि आयुष्य के साथ-साथ व्यक्ति की उस क्षमता का ह्रास होने लगता है,जिसकी अपूर्व सामर्थ्य से यौवन में उसने स्वयं को असाधारण सिद्ध किया था,पर विज्ञानवेत्ता अब इससे सहमत नजर नहीं आते।उनका कहना है कि अधिक आयु-वर्ग वाले लोगों की मानसिक क्षमता के संबंध से ‘सठियाना’ (मानसिक क्षमता का ह्रास) जैसी लोकोक्तियां बहुत प्रचलित हैं,पर वास्तव में यह यथार्थ की अभिव्यक्ति नहीं है।वे इसे स्वीकारते हैं कि शरीर के अन्य अंग-अवयवों के साथ यह बात लागू हो सकती है;लेकिन मस्तिष्क जैसे केंद्रीय संस्थान के संबंध में यह धारणा नितांत भ्रमपूर्ण है।अनेक वर्षों तक मस्तिष्क और उसकी क्रियाशीलता का अध्ययन करने के उपरांत वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे की नियमित मानसिक श्रम दिमाग को वृद्धावस्था में भी चिर-यौवन जैसी स्थिति में बनाए रखना है और उसकी क्षमता दिनोंदिन निरंतर निखरती और बढ़ती चलती है।

3.क्या आयु के साथ बुद्धि और स्मृति घटती है? (Do intelligence and memory decrease with age?):

  • आयु का स्मरण शक्ति के साथ कोई संबंध है क्या? यदि है तो वह किस प्रकार का है? क्या उम्र बढ़ने के साथ-साथ मेधाशक्ति घटती है? स्मृति कमजोर होने लगती है? इन प्रश्नों के उत्तर के संदर्भ में पिछले दिनों तक मनोविज्ञान और विज्ञान में परस्पर टकराव जैसी स्थिति थी।दोनों की मान्यताएं एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत थीं।मनोवेत्ताओं का मानना था कि आयुष्य का याददाश्त पर सुनिश्चित असर पड़ता है,जबकि शरीर शास्त्र की अवधारणा ठीक उल्टी है।उसका तर्क है कि नई मशीन भी निष्क्रिय पड़ी रहने पर बेकार बन जाती है तो मस्तिष्कीय निठल्लेपन के कारण यदि स्मृति की कमी महसूस की जाती है तो इसका कारण बढ़ती वय नहीं है,अकर्मण्यता को ही माना जाना चाहिए,जबकि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हर वस्तु की अपनी आयु और सीमा होती है,जिसे पार करने के उपरांत उसकी क्षमता प्रभावित होना स्वाभाविक है।
  • दलील की दृष्टि से दोनों के तर्क अकाट्य स्तर के माने जाते हैं,इतने पर भी तथ्य है कि मानसिक क्षमताओं का ह्रास शारीरिक सामर्थ्य की तरह नहीं होता।विज्ञान के आधुनिक अनुसंधानों ने भी यही सिद्ध किया है और कहा है कि सर्वसाधारण में जो अवस्था ‘सठियाना’ (मानसिक क्षमता में ह्रास) के नाम से जानी जाती है,वस्तुतः वह मनोविज्ञान की देन है,वास्तविकता से दूर-दूर तक उसका कोई रिश्ता नहीं।विशेषज्ञों का कथन है कि मनुष्य में बुद्धि और स्मृति के लिए जिम्मेदार भाग सेरेब्रल कार्टेक्स है।जब तक इस हिस्से में किसी प्रकार की कोई स्थायी क्षति नहीं पहुंचती,तब तक उसकी क्षमता में कोई कमी नहीं आ सकती।
  • उल्लेखनीय है कि मस्तिष्क ही एकमात्र ऐसा अवयव है,जिसमें शुरू से अंत तक कोश-विभाजन नहीं होता है।जो होता है,वह मात्र इतना कि तंत्रिका कोशाओं में आयु के साथ-साथ आकार-प्रकार और क्षमता में अभिवृद्धि होती जाती है।अबोध बालक शिशु से किशोर,किशोर से वयस्क,वयस्क से प्रौढ़ बनता चलता है।इस क्रम में वह अपनी हर प्रकार की क्षमता,योग्यता और अनुभव में बढ़ोतरी ही करता चलता है।कमी मात्र इतनी भर होती है कि उसका आरंभिक स्वरूप यथावत बना नहीं रह पाता,बौनापन घटता-मिटता है और व्यापक विस्तार ग्रहण करता है।
  • यह विस्तार चाहे कलेवर में हो,विचारशीलता में,अनुभव संपादन में अथवा शिक्षण-प्रशिक्षण के कला-कौशल में होता अवश्य है।मस्तिष्क के संबंध में भी यही बात लागू होती है,वह अपनी इकाइयों के संख्यात्मक विस्तार की तुलना में गुणात्मक वृद्धि करता है।विकासवाद का यह नियम ही है कि जिन अंगों की जितनी अधिक सक्रियता होगी,उनका विकास भी उतना ही उत्तम होगा और कालक्रम में भी सुदृढ़ होते चले जाएंगे।पहलवान इसी आधार पर अपनी देह-यष्टि को सुंदर-सुदृढ़ बना लेते हैं।मस्तिष्क के साथ भी ऐसा ही कुछ होता देखा गया है।अध्ययनों से विदित हुआ है कि जो दिमाग बराबर किसी न किसी कार्य में नियोजित रहता है,उसमें न्यूट्रॉनों के आकार-प्रकार बड़े होते हैं।जिस अनुपात में ये बड़े होते हैं,उतनी ही बड़ी-चढ़ी उनकी क्षमता होती है।

4.मानसिक शक्ति बढ़ने का प्रसंग (Context of increasing mental power):

  • आइंस्टीन को विद्यार्थी जीवन में सभी छात्र बुद्धू कहकर चिढ़ाते थे।कई बार अनेक छात्रों ने उनकी पीठ पर बुद्बू की चिट तक चिपका दी थी।कक्षा में गणित के प्रश्न समझाने के बाद अध्यापक कोई बात पूछते तो आइंस्टाइन बगलें झाँका करते थे।उनके इस बुद्धूपन से परेशान होकर अध्यापक ने कई बार कह दिया था-“तुम सात जन्मों में भी गणित नहीं सीख सकते।” यही बालक बड़ा होकर विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा गणितज्ञ बना।
  • एक बार एक विद्यार्थी ने आइंस्टाइन से महानता का रहस्य पूछा तो उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन में कभी भी हिम्मत नहीं हारी इसीलिए गणित जो मेरे लिए सबसे कठिन विषय था,इतना आसान बन गया।
    उल्लेखनीय है कि आइंस्टीन के मस्तिष्क पर किया गया अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है की बुद्धि (मस्तिष्क) पर जोर डालने पर मस्तिष्क ऐसे कार्य करने में सक्षम हो जाता है जो पहले संभव नहीं था,जिन समस्याओं से निपटने में पहले काफी कठिनाई होती थी,उसे अब वे सरलतापूर्वक करने लगे।
  • सन् 1955 में 76 वर्ष की आयु में जब उनकी मृत्यु हुई,तो डॉक्टर हार्वे और डॉक्टर हैरी जिमरमैन ने कपाल काटकर उनके 1230 ग्राम वाले मस्तिष्क को बाहर निकाल लिया और उसे 200 खण्डों में बांट दिया।उनकी तंत्रिका कोशाएँ असाधारण से आकार में बड़ी थीं।दूसरे शब्दों में उनके मस्तिष्क की कॉर्टिकल परत काफी मोटी थी।इसके अतिरिक्त मस्तिष्क जैसी ही थी।उनकी कोशिकीय अध्ययनों से जो तथ्य प्रकाश में आए,वह उनके दिमाग की असाधारणतया प्रकट करते थे।उनकी बुद्धि वाले हिस्से (कॉर्टिक्स) में न्यूराॅन सेलों का आकार सामान्य मस्तिष्क की तुलना में अधिक बड़ा था और उनको घेरे रहने वाली सहायक कोशिकाओं की संख्या भी प्रत्येक न्यूराॅन के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा थी।तंत्रिकाविज्ञानी बुद्धि का सीधा संबंध कार्टेक्स से बताते हैं।
  • ध्यान देने योग्य बात यह है कि आइंस्टीन अपने प्रारंभिक जीवन में फिसड्डी किस्म के विद्यार्थी थे।इसका तात्पर्य यह हुआ कि आरंभ में आइंस्टीन के दिमाग का वह हिस्सा उतना विकसित नहीं था,किंतु बार-बार के और उपेक्षा-अपमान के कारण संभवतः वे क्षुब्ध हो उठे हों और तत्संबंधी मान्यता को झूठा साबित करने के लिए तत्पर हो गए हों।अक्सर उन्हें अभिभावकों की फटकार सुनानी पड़ती।संभव है तंग आकर उन्होंने कुछ कर गुजरने के विचार से बाद में पढ़ाई में अधिकाधिक ध्यान देना प्रारंभ किया हो,जिससे लगातार दिमागी दबाव एवं क्रियाशीलता के कारण उनकी मस्तिष्कीय संरचना में परिवर्तन आना शुरू हो गया हो।यह परिवर्तन बौद्धिक प्रखरता के प्रमाण रूप में तब सामने आया,जब 35 वर्ष की अल्पवय में सापेक्षवाद का जटिल सिद्धांत दुनिया के समक्ष रखा।
  • ऐसी स्थिति में यह कैसे स्वीकार किया जाए कि आयुष्य के साथ-साथ स्मृति घटती है? ऐसे में इसे एक मनोवैज्ञानिक भ्रम कहना ही ज्यादा उचित होगा,जिसकी कि बाद में प्रयोग द्वारा पुष्टि भी हो गई।

5.स्मरणशक्ति के ह्रास का कारण (Causes of memory loss):

  • कई विद्यार्थी स्मृति में न्यूनता न आने के बावजूद उन्हें ऐसा अनुभव होने लगता है अथवा कोई सवाल का हल भूल जाने,कोई टॉपिक का अंश भूल जाने पर वे ऐसी मान्यता बना लेते हैं कि उनकी स्मरणशक्ति घट रही है।वस्तुतः यह एक पूर्णतः मनोवैज्ञानिक समस्या है,इसे अब मन:शास्त्र भी स्वीकारने लगा है।उनका कहना है कि यदा-कदा स्मरणशक्ति का ढीला पड़ जाना और उसके कारण दैनिक जीवन में छोटी-मोटी कठिनाई उत्पन्न हो जाना,यह कोई बड़ी समस्या नहीं है।यह तो बुद्धि संपन्न कहे जाने वाले लोगों के साथ भी घटित हो सकती है।
  • इसका एकमात्र कारण तत्सम्बन्धी प्रकरण में एकाग्रता अथवा रुचि की कमी है।इसे कोई व्यक्ति स्वयं अनुभव कर जान सकता है कि किस प्रकार जब किसी घटना अथवा बात पर,विषय पर,टॉपिक पर तत्परतापूर्वक ध्यान नहीं दिया जाता तो वह उसका विवरण उस रूप में याद नहीं रख पाता,जिस रूप में वह घटित हुई है या कही गई।
  • अतः ऐसे प्रसंगों में स्मृति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।इसे उपेक्षा जैसे संबोधनों से संबोधित किया जाना चाहिए।स्मरण शक्ति से इसका कोई लेना-देना नहीं।यह सामान्य बात है।स्थिति तब गंभीर मानी जानी चाहिए,जब कोई काम करते अथवा कहीं जाते हुए व्यक्ति को यह पूरी तरह विस्मृत हो जाए कि उसे करना क्या था या जाना कहाँ था? ऐसी दशा में विशेषज्ञों की राय लेनी आवश्यक हो जाती है।

6.मानसिक शक्ति बढ़ाने के उपाय (Ways to increase mental strength):

  • जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि मानसिक क्षमता में ह्रास का अनुभव तब होता है जब हमारा मन एकाग्र नहीं होता है तथा किसी टॉपिक या विषय को रुचिपूर्वक नहीं पढ़ते हैं।अतः किसी भी सवाल,प्रश्नावली अथवा टॉपिक को ध्यानपूर्वक पूर्ण एकाग्रता के साथ अध्ययन करना चाहिए साथ ही उसे रुचिपूर्वक पढ़े,उथले मन से न पढ़े।
  • एकाग्रता अर्थात् मन को एकाग्र करने के बारे में कई आर्टिकल पोस्ट किए हुए हैं उन्हें पढ़े।यदि आप टॉपिक को ध्यान देकर और रुचिपूर्वक पढ़ते हैं तब भी एकाग्रता सधने लगती है और आपकी मानसिक शक्ति धीरे-धीरे बढ़ने लगती है।
  • विद्यार्थियों के समक्ष एक समस्या यह आ सकती है कि वे टॉपिक को पढ़ते रहते हैं तो लगातार पढ़ने के बाद मस्तिष्क की क्षमता चुक जाती है और बोरियत सी होने लगती है।दरअसल किसी भी विषय को हम दिल से,मन से,उसमें डूबकर अध्ययन कर नहीं करते हैं तो बोरियत होना स्वाभाविक है।अध्ययन को साधना समझकर करेंगे तो उसमें आनंद आने लग जाएगा।आपकी रुचि भी हो जाएगी और एकाग्रता भी सधने लग जाएगी।
  • अध्ययन को पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजा समझकर करें तो अध्ययन में आने वाली सभी अड़चनों (बोरियत,ऊब,अरुचि,आलस्य आदि) से मुक्ति मिल जाएगी।आपके अंदर अध्ययन करने के प्रति हृदय में तड़प होनी चाहिए,एक आग होनी चाहिए जिसकी तृप्ति अध्ययन से हो।
  • कोई सवाल,समस्या,प्रमेय अथवा टॉपिक समझ में नहीं आ रहा हो तो अपने मस्तिष्क पर दबाव डालें।मस्तिष्क पर दबाव डालने से वह अधिक सक्रिय तथा एकाग्र हो जाएगा।इससे सवाल,समस्या,प्रमेय को हल करने में मदद मिलेगी।इसके अलावा आप में तड़प होगी तो संदर्भ पुस्तकें देखेंगे,अपने मित्रों व शिक्षकों से पूछकर हल करने का प्रयास करेंगे।इस प्रकार धीरे-धीरे आपकी मानसिक शक्ति में वृद्धि होती जाएगी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 टॉप टिप्स (6 Top Tips for Students to Use Brain),मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips to Use Brain) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:How to increase brain capacity by electric shock?

7.दुनिया के दो सबसे बड़े गणितज्ञ (हास्य-व्यंग्य) (The World’s Two Greatest Mathematicians) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्रों से):दुनिया के दो सबसे बड़े गणितज्ञों के नाम बताओ।
  • छात्र:लंबोदर सर,ग्रेट अमित सर।

8.छात्र-छात्राओं के लिए मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 टॉप टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Top Tips for Students to Use Brain),मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips to Use Brain) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मस्तिष्क पर दबाव का क्या फर्क पड़ता है? (What effect does pressure make to the brain?):

उत्तर:मनुष्य के मस्तिष्क की तरह लचीली चीज और कोई नहीं है।बंद की हुई भाप की तरह जितना ही दबाव इस पर पड़ता है उतनी ही शक्ति से दबाव के साथ लड़ती है,जितना अधिक काम इस पर आ पड़ता है उतना ही अधिक यह उसे पूरा कर लेती है।

प्रश्न:2.मस्तिष्क कब तक कार्यशील रहता है? (How long does the brain function?):

उत्तर:मानव मस्तिष्क ठीक एक पैराशूट की तरह है-जब तक वह खुला रहता है (काम में लेना) तभी तक कार्यशील रहता है।काम लेना बंद करते ही यह काम करना बंद कर देता है।

प्रश्न:3.मस्तिष्क की क्षमता कितनी है? (What is the capacity of the brain?):

उत्तर:मनुष्य सतत प्रयत्नशील रहे तो मस्तिष्क एक ऐसी चीज है जो किसी भी बंधन को नहीं मानती और उसमें ऐसी भावना है जो पराजय को कभी स्वीकार नहीं करती।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 टॉप टिप्स (6 Top Tips for Students to Use Brain),मस्तिष्क का उपयोग करने की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips to Use Brain) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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