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How to Get Rid of Depression?

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1.अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Depression?),युवा अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Break Free From Youth Depression?):

  • अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Depression?) क्योंकि अवसाद से ग्रस्त युवावर्ग या तो नशे का सेवन करने लगते हैं या अपराध जगत की ओर अग्रसर हो जाते हैं।अतः अवसाद से मुक्त होना जरूरी है।
  • इच्छाएं मनुष्य जीवन के साथ जुड़ी हैं।चाहे कोई बच्चा हो,युवा हो या वृद्ध हो,उसके मन में कुछ करने,कुछ पाने की इच्छा जरूर होती है,जिसे वह पूरा करना चाहता है।छोटा बच्चा जब से होश संभालता है,अपने माता-पिता के सामने अपनी इच्छाएं प्रकट करने लगता है,पहले उसकी इच्छाएं छोटी होती हैं,जिन्हें प्राय: आसानी से पूरा किया जा सकता है,जैसे अमुक चीज खाने की इच्छा,खिलौने या कॉपी,किताब,पेन आदि पाने की इच्छा।जब उसे इच्छित वस्तु मिल जाती है तो वह बहुत खुश होता है और न मिलने पर निराश हो जाता है।
  • बड़े होने पर उसकी इच्छाएं भी बदल जाती हैं और वह अपने भविष्य के सपने बुनना प्रारंभ कर देता है।अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह भरसक प्रयत्न भी करता है।जब इच्छाएं पूरी नहीं होती तो वह अवसादग्रस्त हो जाता है।
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2.अवसादग्रस्त होने के कारण (Causes of Depression):

  • इच्छाओं की पूर्ति हेतु सभी आयु,लिंग व वर्ग के लोग जीवनपर्यंत प्रयत्नशील रहते हैं।कभी तो इनकी इच्छाएं बड़ी आसानी से पूरी हो जाती है तो कभी कठिनाई से और कभी कुछ इच्छाएं अधूरी ही रह जाती हैं।जीवन में आए इन उतार-चढ़ाव,सफलता-असफलता के कारण कभी हम अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं और कभी निराश।
  • जब व्यक्ति बार-बार अपने कार्यों में असफल होता है और उसके साथी-सहयोगी थोड़ी सी मेहनत करने से ही सफल हो जाते हैं,तब वह भगवान,परिस्थिति या दूसरे लोगों पर दोषारोपण करने लगता है।उसे ऐसा लगता है कि उसने अपनी तरफ से पूरी मेहनत की,लेकिन उसको मनोवांछित परिणाम देने में भगवान ने कोई सहायता नहीं की; जबकि दूसरे व्यक्ति ने उससे कम मेहनत की और वह आसानी से सफल हो गया।भगवान् निश्चित रूप से पक्षपात करते हैं,किसी को सफल बनाते हैं,तो किसी को असफल।
  • वास्तव में इस तरह की सोच रखने वाले व्यक्ति जीवन के रहस्यों को नहीं समझते और अपने प्रयत्नों के बाद भी मिलनेवाली असफलता से अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं,घोर निराश होते हैं और अवसाद से घिर जाते हैं।थोड़ी सी असफलता उनकी मनःस्थिति को कमजोर बना देती है,जैसे-किसी नजदीकी प्रियजन का विछोह उनकी जिंदगी को अकेलेपन से भर देता है।एक अजीब सी नकारात्मकता उनके चिंतन पर छायी रहती है और उनकी जिंदगी जीवन के रहस्यों से अनभिज्ञ बनी रहती है।
  • जीवनयात्रा में अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु आगे बढ़ने वाले मुख्यतः तीन स्तरों के लोग होते हैं-प्रथम वे व्यक्ति,जो भरसक प्रयास करने के बाद भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाते।प्रायः ऐसे लोग हिम्मत हारकर बैठ जाते हैं और अपने वातावरण,परिस्थितियों के साथ भगवान को दोष देते हैं।अक्सर ऐसे लोग शारीरिक और मानसिक तौर पर अवसाद का शिकार होते हैं।
  • दूसरे प्रकार के वे लोग होते हैं जिनके जीवन में इच्छाओं की पूर्ति कभी हो जाती है और कभी नहीं होती।ऐसे लोग समाज में बड़ी संख्या में है,जो अपने जीवन में आने वाले इन उतार-चढ़ावों से अवसादग्रस्त होते हैं।
  • तीसरे प्रकार के वे लोग हैं,जिन्हें साधन,संपत्तियों और हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से संपन्न वातावरण मिला है,वे जो भी इच्छाएँ मन में लाते हैं,उन्हें थोड़े-बहुत प्रयास से जल्दी पूरा कर लेते हैं,परंतु ऐसे लोगों का ध्यान सदैव इस बात पर लगा रहता है कि ये सुख-सुविधाएं हमसे छिन न जाएँ।वे सदैव अपनी संपत्तियों की रक्षा और वृद्धि के लिए ही प्रयासरत रहते हैं।इस तरह एक लंबा समय बीतने के बाद उनकी मानसिक तरंगे तनावग्रस्त होकर विद्रोह के संकेत देने लगती है और वे भी डिप्रेशन अर्थात् अवसाद के शिकार होने की संभावना से दूर नहीं रह पाते।

3.अवसाद के लक्षण (Symptoms of Depression):

  • अवसाद एक प्रकार का मनोविकार है,जिसमें मन एवं भावना की स्थिति एवं स्तर अधोगामी होते हैं।इस अवस्था में मानसिक एवं भावनात्मक ऊर्जा अपने न्यूनतम स्तर पर होती है और यही वजह है की क्रियाशीलता एवं कार्यक्षमता,दोनों बाधित होती हैं।यह गहरी निराशा की अवस्था में पनपता है।जब हम असफल होते हैं तो हमें निराशा घेर लेती है और बारंबार की असफलता से निराशा मानो ठहर जाती है।ऐसी स्थिति में हमें अवसाद घेर लेता है।अवसाद से घिरा मन कहीं भी नहीं टिक पाता है और ना किसी कार्य में नियोजित ही हो पता है।
  • मनोविज्ञान (ऐब्नाॅर्मल साइकोलॉजी) में अवसाद को ‘मूड डिस्ऑर्डर’ के अंतर्गत रखा जाता है,जिसमें कहा गया है कि जब जीवन के अनुभव कमजोर पड़ने लगते हैं,गुस्सा आने लगता है,कहीं भी मन नहीं लगता है और दैनिक जीवन में आने वाली छोटी-छोटी समस्याओं से हम व्यथित व पीड़ित होकर उदास हो जाते हैं,तब अवसाद पनपता है।अवसाद हमारे शरीर,मन,व्यवहार एवं भावना सभी को प्रभावित करता है।
  • अवसाद के कारण शरीर जड़वत हो जाता है और आलस्य घर कर जाता है।यों पड़े रहने से दो तरह की स्थिति बनती है-या तो शारीरिक वजन में वृद्धि होती है या फिर वजन घटने लगता है।घटने और बढ़ने,दोनों ही रूपों में अवसाद झलकता है।इससे या तो व्यक्ति अति क्रियाशील हो जाता है या फिर वह कुछ भी नहीं करता; निष्क्रिय हो जाता है।
  • अवसाद का मानसिक लक्षण:एकाग्रता का अभाव,चिड़चिड़ापन,थकान एवं आराम न मिलने का एहसास।मन में इतने सारे नकारात्मक विचार उठते हैं कि मन कहीं भी और किसी भी विषय पर देर तक टिक नहीं पाता।इसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे स्मरणशक्ति का भी ह्रास होने लगता है।मन में लगातार आत्महत्या करने के विचार आने लगते हैं।जब भी व्यक्ति अकेले में होता है तो उसे अपने जीवन से इतनी गहरी निराशा होने लगती है कि वह बस स्वयं को नष्ट करने की ठान लेता है।
  • अवसाद  जब दीर्घकाल तक बना रहे एवं गंभीर हो जाए तो उस समय केवल आत्महत्या सम्बन्धी नकारात्मक विचार ही उठते हैं,परंतु जब ऐसा हो जाए तो फिर वह आत्महत्या करने की ठान ही लेता है।
  • अवसाद के अन्य लक्षण हैं:नींद का ना आना या अति नींद आना (इन्सोम्निया या हाईपरसोम्निया)।रोगी प्रातः काल जल्दी उठ जाता है।उठ जानने के बाद उसे फिर नींद नहीं आती तथा उसके मन में नकारात्मक विचारों की आंधियां चलने लगती हैं,तूफान उमड़ने लगता है।नकारात्मक विचार हमारी सारी ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं।इसी कारण रोगी के अंदर उर्जा का क्षरण होने लगता है और ऊर्जा के चुक जाने पर थकान बढ़ जाती है।
  • रोगी स्वयं को अतिहेय,क्षुद्र एवं महत्त्वहीन मान लेता है और ऐसा मनवाने में नकारात्मक विचार सहायक होते हैं।जब व्यक्ति स्वयं की कल्पना इस प्रकार कर लेता है तो फिर वह किसी के साथ स्वयं को समायोजित नहीं कर पाता है।वह सबसे दूर रहने लगता है और सबसे कटने लगता है।उसका जीवन अलग-थलग पड़ जाता है।उसे बिना वजह और अपराध के ही अपराध-बोध (गिल्ट) का एहसास होता है या फिर अपनी किन्हीं पिछली गलतियों को याद कर वह अपराध-बोध से ग्रस्त हो जाता है।

4.अवसाद के अन्य कारण (Other Causes of Depression):

  • अवसाद की यह अवस्था आखिर आती क्यों है? क्यों व्यक्ति अवसाद रूपी धीमे जहर से व्यथित हो जाता है?कौन सा कारण है,जो हमें अवसाद की गिरफ्त में डाल देता है? मनोविज्ञानी कहते हैं कि इसके तमाम कारण हैं।जैविक कर्म में शरीर में हाॅर्मोन एवं न्यूरोट्रांसमीटर के व्यक्तिक्रम आते हैं।इनसे संबंधित तत्त्वों के क्रियाकलापों में परिवर्तन आने से अवसाद पैदा होता है।
  • शारीरिक रोग भी अवसाद पैदा करते हैं; जैसे-डायबिटीज,कैंसर,हृदयाघात या कोई भी जीर्ण (क्रॉनिक) रोग आदि।इन रोगों के होने से मन अवसादग्रस्त हो जाता है।इससे 20-25 फ़ीसदी लोग प्रभावित होते हैं।सामान्य रूप से देखा जाए तो महिलाएं अवसाद के प्रति अति संवेदनशील होती हैं।आनुवंशिक कारक भी इसके लिए उत्तरदायी होते हैं।
  • साइकोडायनेमिक प्रभाव के आधार पर देखा जाए तो दीर्घकालीन (क्रॉनिक) तनाव अवसाद को जन्म देता है; खासकर तब,जब यह तनाव बचपन में हो।जो बच्चे किन्हीं कारणों से अति तनावग्रस्त रहते हैं और उनमें तनाव लंबे समय तक बना रहता है तो यह अंततः अवसाद में परिवर्तित हो जाता है।
  • योग मनोविज्ञान के अनुसार अवसाद का संबंध चिंतन,विचार एवं व्यवहार से होता है।जिसके चिंतन एवं विचारों में नकारात्मक तत्त्वों की भरमार होती है,वे अवसादजन्य विकारों से घिर जाते हैं।दुष्कर्म की परिणति एवं परिणाम भी अवसाद के रूप में होता है।जिस दिन कोई काम नहीं होता है,यों ही दिन गुजर जाता है,उस दिन मन ठीक नहीं होता है,स्वस्थ महसूस नहीं करता है और उस दिन यदि कोई गलत कार्य हो जाता है,तो भी मन अनजाने ही अपनी स्थिति से अधोगामी हो जाता है।यह स्थिति यदि लंबे समय तक बारम्बार आती रहे तो इसकी अंतिम परिणति अवसाद के रूप में होती है।अवसाद की सघनता आत्महत्या का कारण बनती है।
  • अवसाद के लक्षण में कुंठा (फस्ट्रेशन) भी आती है।कुंठा का तात्पर्य है-अंदर कोई गहरा घाव घर कर जाना।किन्हीं भी कारणों से जब यह घाव पीड़ित होता है तो मन अतिसंवेदनशील हो जाता है।संवेदनशील मन की नकारात्मकता सदा शक,संदेह एवं अविश्वास पैदा करती है।यदि कोई देखकर मुस्कुरा भी ले तो वह उसे अपना कटाक्ष समझता है।वह सदा यह तलाशता रहता है कि उसके बारे में कुछ गलत तो नहीं कहा जा रहा या परोक्ष में कोई षड्यंत्र तो नहीं रचा जा रहा? वह किसी पर भी विश्वास नहीं कर पाता और न स्वयं पर भरोसा कर पाता है; क्योंकि आंतरिक क्षमता जो चुक गई होती है।

5.अवसाद का उपचार (Treatment of Depression):

  • इनके उपचार के लिए कई प्रकार की चिकित्साओं का प्रयोग किया जाता है।साइकोथेरेपी में कॉग्निटिव-बिहेविरल थेरेपी (CBT) का प्रयोग किया जाता है,परंतु इस चिकित्सा पद्धति से रोगी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाता है।यदि उसे पूरी तरह से स्वस्थ करना हो तो आहार-विहार तथा दिनचर्या को सुधारने के साथ ही योग चिकित्सा का सहारा लेना चाहिए।
  • योग चिकित्सा के अंतर्गत अवसाद को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है।चूँकि अवसाद से मन एवं भावना,दोनों ही दुर्बल एवं कमजोर हो जाते हैं,इसलिए उसे कुछ ऐसी यौगिक क्रियाओं से गुजारना चाहिए,जिनसे उसके अंदर की क्रियाशीलता बढ़े,रक्तसंचार सुचारू रूप से गतिशील हो,मांसपेशियों में हलचल हो।इन चीजों को ध्यान में रखकर आसनों का अभ्यास करना चाहिए।
  • आसन-ऐसे आसन,जो शारीरिक उष्णता पैदा करें,सबसे पहले उनका अभ्यास करना चाहिए।इनमें काष्ठ तक्षण आसन,सिंह गर्जन आसन,वक्रासन आते हैं।गत्यात्मक आसनों में शशांक भुजंगासन,हलासन एवं पश्चिमोत्तानासन युगल रूप से करने चाहिए।इनके अलावा मार्जरी आसन,अर्द्धमत्स्येन्द्रासन,गोमुखासन का अभ्यास भी करना चाहिए।प्रज्ञा योग का अभ्यास भी अवसाद दूर करने के लिए उपयुक्त होता है।
  • प्राणायाम-प्राणायाम अवसाद को दूर करने का सशक्त एवं सक्षम माध्यम है,परंतु इसके लिए कुछ विशेष प्रकार के प्राणायाम ही कारगर होते हैं ;जैसे नाड़ीशोधन,भस्रिका,सूर्यभेदन,भ्रामरी एवं ओम उच्चारण आदि।इन प्राणायामों से शरीर का सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम क्रियाशील होता है,जो रोगी को संतुलित कर देता है।
  • क्रिया-क्रियाओं में जलनेति,रबरनेति,सूत्रनेति आदि का निरन्तर अभ्यास करना चाहिए।व्युत्क्रम कपालभाति भी अवसाद दूर करने के लिए प्रसिद्ध है।नौली एवं शंखप्रक्षालन के अभ्यास से भी अवसाद दूर होता है।त्राटक में ज्योति त्राटक का अभ्यास करना चाहिए।ध्यान करना चाहिए कि जिस अंधेरे के व्याप जाने से मन अवसाद से ग्रस्त हो गया है,वह प्रकाश-पुंज के ग्रहण करने से दूर हो रहा है।इस तरह की अवधारणा से अवसाद दूर हो जाता है।
  • स्वाध्याय चिकित्सा-महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग,उनकी जीवनी एवं श्रेष्ठ साहित्य-रामायण,महाभारत,गीता के श्लोक,सत्साहित्य,महान गणितज्ञों एवं वैज्ञानिकों के प्रेरक प्रसंग,स्वामी विवेकानंद का साहित्य आदि का अध्ययन करने से वैचारिक जड़ता दूर होती है और अवसाद कम होता है।स्वाध्याय का तात्पर्य है मन एवं विचारों का स्नान।
  • श्रेष्ठ कर्म एवं शालीन व्यवहार-अवसाद एक प्रकार का भयानक तमस है; तमस अर्थात् जड़ता।जड़वत मन किसी भी कार्य में संलग्न नहीं होता।अतः इसे तोड़ने के लिए सार्थक एवं कठोर परिश्रम करना चाहिए।श्रम राजसिक गुण है और श्रम से जड़ता टूटती है।अतः श्रेष्ठ कर्म करना चाहिए।श्रेष्ठ कर्म करने से मन पुलकित होता है,अंतर में प्रसन्नता की बयार बहती है,उमंग एवं उत्साह का उफान उफनता रहता है।ये समस्त चीजें अवसाद रूपी जड़ता को काटने-मिटाने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है।
  • अवसाद का यदि सत्कर्मों के माध्यम से रूपांतरण कर दिया जाए तो मन एवं भावना की प्रसन्नता एवं खुशियों की सीमा नहीं होती और ऐसा किया जा सकता है।आध्यात्मिक क्षेत्र में इसे करना बड़ा ही आसान एवं सहज माना जाता है।गायत्री एवं महामृत्युंजय मंत्र-जप एवं बीज मंत्रों के जप से अवसाद का अवसान ऐसे होता है,जैसे सूर्य किरणों की तपन बढ़ते ही ओस बूंदे तिरोहित होने लगती हैं।इतना सुनिश्चित है की आहार-विहार को संयमित करके कुछ यौगिक क्रियाओं के साथ स्वाध्याय एवं सत्कर्मों का समन्वय अवसाद के निराकरण की महौषधि है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Depression?),युवा अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Break Free From Youth Depression?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित पढ़ी हुई तो पहले से ही है (हास्य-व्यंग्य) (Already Studied Mathematics) (Humour-Satire):

  • एक गणित का छात्र कोचिंग में काफी देर बैठे रहने और इंतजार करने के बाद गणित नहीं पढ़ाई गई तो उसने झल्लाकर कहा:अभी तक गणित शिक्षक पढ़ाने के लिए नहीं आए,क्या पढ़ने की तैयारी करके नहीं आए?
  • चपरासी:गणित शिक्षक गणित तो पिछले वर्ष ही पढ़ चुके थे,पर उसे रिफ्रेश करने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न।

7.अवसाद से कैसे मुक्त हों? (Frequently Asked Questions Related to How to Get Rid of Depression?),युवा अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Break Free From Youth Depression?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.अवसाद के कितने भेद हैं? (How many Types are There of Depression?):

उत्तर:अवसाद के तीन भेद हैं:(1.)मेजर डिप्रेसिव डिस्ऑर्डर:यह ऐसा मनोरोग है,जिसमें एक या अधिक बार रोगी गंभीर अवसाद से घिर जाता है और उससे बाहर नहीं निकल पाता है।यह अतिखतरनाक अवस्था है,जो की 20 वर्ष की उम्र से प्रारंभ होती है।इस स्थिति में आकर रोगी आत्महत्या करने को विवश होता है,परंतु यौगिक एवं आध्यात्मिक उपचार के माध्यम से उसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।
(2.)डायस्थेटिक डिस्ऑर्डर:यह दीर्घकालीन (क्रॉनिक) एवं कमजोर अवसाद की अवस्था है;अर्थात् जब किसी को कमजोर अवसाद लंबे समय तक (लगभग 2 वर्ष तक) बना रहे तो उसे डायस्थेमिक मनोविकार कहते हैं।यह मेजर डिप्रेशन विकार से भिन्न है,क्योंकि उसमें पूरे दिन एवं प्रतिदिन लगभग दो सप्ताह तक अवसाद गंभीर रूप से पाया जाता है,जबकि डायस्थेमिक में कुछ वर्ष किसी न किसी रूप में अवसाद की स्थिति बनी रहती है।दोनों के लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं,परंतु इनमें अंतर उनकी गंभीरतम अवधि एवं स्थिति का होता है।
(3.)अन्य प्रकार के अवसाद-इनमें ऐसे अवसाद आते हैं, जो साइकॉटिक (जो होश में नहीं होता है),मेलैकोलिक कैटाटोनिक एवं एटिपिकल आदि से संबंधित होते हैं।ये अवसाद ठीक हो भी सकते हैं और नहीं भी।

प्रश्न:2.अवसाद में पूर्व कर्म भी जिम्मेदार होते हैं क्या? (Are Fate Also Responsible for Depression?):

उत्तर:संसार में प्रायः हर व्यक्ति के जीवन में अवसाद के लक्षण आते हैं,जिनसे उसे निपटना होता है।ऐसे क्या उपाय या ऐसा कौनसा दृष्टिकोण है,जिससे अवसाद की स्थितियों से जूझने में मदद मिल सके।कार्य-कारण का संबंध प्रकट करता है कि प्रत्येक कार्य से पूर्व उस कार्य का कारण निश्चित तौर पर उपस्थित था और बिना कारण के कोई भी कार्य नहीं हो सकता।
इस तरह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति जो भी प्रयत्न-पुरुषार्थ करता है,उसके साथ उसके प्रारब्ध (पूर्व जन्म के कर्म) भी परिणाम का आधार बनते हैं।सामान्य तौर से हम केवल उन कारणों का अवलोकन कर पाते हैं,जो प्रत्यक्ष हमारे सामने उपस्थित होते हैं।जबकि बहुत से अप्रत्यक्ष कारणों को हम न तो देख पाते हैं और न समझ पाते हैं।अतः हर व्यक्ति को यह समझना आवश्यक है कि प्रत्येक कार्य का कारण पहले से ही उपस्थित होता है,जैसे अचानक होने वाली दुर्घटनाओं में प्रत्यक्ष दीखने वाली असावधानियों के अलावा प्रारब्ध भोग (पूर्व में हो चुके अशुभ कर्मों का फल) भी एक कारण होता है,जिसका परिणाम हमें भुगतना पड़ता है।

प्रश्न:3.अवसाद और मानसिक तनाव को दूर करने का सबसे प्रभावी क्या उपाय है? (What is the Most Effective Way to Overcome Depression And Mental Stress?):

उत्तर:हमारे अवसाद और मानसिक तनाव को दूर करने का सबसे उत्तम उपाय कार्य-कारण संबंध को गंभीरता से समझना है।जीवन की प्रत्यक्ष दीखने वाली घटनाओं और कारणों को तो हर कोई देख सकता है,समझ सकता है,लेकिन अप्रत्यक्ष कारणों को भी व्यक्ति को समझने का प्रयास करना चाहिए।जैसे कोई व्यक्ति चोरी करके,धोखा देकर,छल करके,गलत रास्ते अपनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है तो वह एक तरह से दीखने पर सफल व्यक्ति दीखता है,लेकिन दूसरी ओर उसने सफल होने के लिए जिन तरीकों का इस्तेमाल किया है,उसका फल भी उसे भविष्य में जरूर मिलेगा।फिर भविष्य में वह जो भी कार्य करेगा,उसके परिणाम में उसके अतीत के इन कर्मों का भी न्यूनाधिक प्रभाव अवश्य पड़ेगा और यही कारण है कि अपने अतीत में किए गए अच्छे कर्मों के कारण किन्हीं व्यक्तियों को आसानी से सफलता मिलती है और बुरे कर्मों के कारण किन्हीं को बहुत मेहनत करने के बाद बहुत कठिनाई से सफलता मिलती है।
अतः अतीत में किए गए व्यक्ति के शुभ कर्म उसे पुण्यशाली और सफल व्यक्ति बनाते हैं और उसके अशुभ कर्म उसकी सफलता में विघ्न डालते हैं।इस बात को समझकर हर व्यक्ति को अनवरत शुभ कर्मों को करने के लिए प्रेरित होना चाहिए और असफल होने पर या इच्छा पूर्ति न हो पाने पर भगवान,परिस्थिति या दूसरों पर दोषारोपण करने की अपेक्षा इन क्षणों में भी परमात्मा से सन्मार्गगामी होने की,सत्पथ पर चलने और परमात्मा के सानिध्य में रहने की प्रार्थना करनी चाहिए ताकि जीवन में शुभ कर्म होते रहें और व्यक्ति अवसाद के क्षणों में भी सामान्य जीवन जी सके।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Depression?),युवा अवसाद से कैसे मुक्त हों? (How to Break Free From Youth Depression?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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