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Why Make Modern Education Professional?

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1.आधुनिक शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप क्यों दें? (Why Make Modern Education Professional?),शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप कैसे दिया जाए? (How to Make Education Professional?):

  • आधुनिक शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप क्यों दें? (Why Make Modern Education Professional?) व्यावसायिक से तात्पर्य है अपने कार्य का विशिष्ट ज्ञान,कला,कौशल प्राप्त करना और यह विशिष्ट ज्ञान,कौशल व तकनीक लक्ष्य केंद्रित होकर प्राप्त करना।लक्ष्य केन्द्रित होने से तात्पर्य है कि जिस कार्य,जाॅब का विशिष्ट ज्ञान,कौशल व तकनीक प्राप्त किया जाए उसके मार्ग में आने वाली अड़चनों को दूर करते जाना और आगे बढ़ते जाना।एक स्तर तक (सामान्यतः सीनियर सैकण्डरी) सामान्य शिक्षा देने के बाद व्यावसायिक शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे कोई भी अभ्यर्थी अपने जाॅब को अधिक कुशलता के साथ कर सके और आत्म-निर्भर बन सकें।
  • वस्तुतः सामान्य शिक्षा प्राप्त छात्र-छात्रा के बजाय तकनीकी व कौशल का ज्ञान प्राप्त करने वाला अपने कार्य को अधिक दक्षता व कुशलता के साथ कर सकता है।सामान्य शिक्षा प्राप्त छात्र-छात्रा के पास जाॅब व रोजगार प्राप्त करने के सीमित अवसर होते हैं अतः अधिकांश छात्र-छात्राओं को सामान्य शिक्षा प्रदान करके उनको बेरोजगारों की पंक्ति में खड़ा करना है।ऐसे छात्र-छात्राएं जाॅब के लिए दर-दर भटकते रहते हैं।
  • बीए,बीएससी,एमए,एमएससी की शिक्षा सीमित छात्र-छात्राओं को देने की अनुमति देनी चाहिए जिनको रोजगार दिया जा सके तथा जो किसी विषय में शोध तथा खोज कार्य करना चाहते हैं।यहाँ जाॅब या रोजगार से तात्पर्य यह है कि जिसे करने के तरीके साफ-सुथरे और नैतिक हों जहाँ चोरी,डकैती,झूठ-पाखण्ड इत्यादि का सहारा लेकर कार्य किए जाते हैं वे जाॅब नहीं कहला सकते हैं।
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2.व्यावसायिक शिक्षा से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Vocational Education?):

  • शिक्षा का उद्देश्य है छात्र-छात्राओं में अंतर्निहित क्षमताओं को विकसित करना,तराशना,उभारना।चारित्रिक,मानसिक व आध्यात्मिक विकास करना,व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करना,संस्कृति का हस्तान्तरण और आत्मनिर्भर बनाना इत्यादि शिक्षा के उद्देश्य है।आधुनिक युग में आत्मनिर्भर बनना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बनता जा रहा है।
  • अतः आधुनिक शिक्षा में आत्मनिर्भर बनने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है।इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था करने की जरूरत है साथ ही रोजगार सृजन करना भी आवश्यक है।
  • शिक्षा को वास्तविक जीवन और उत्पादकता के साथ जोड़ना आवश्यक है।कला विषयों,कृषि,विज्ञान,गणित इत्यादि विषयों में अन्तिम ज्ञान उपलब्ध कराने की दृष्टि से व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारंभ किए जाएं जिससे कि जीवनोपयोगी रोजगार मिल सके।
  • सामान्य शिक्षा में व्यावसायिकता की अधिकता होनी चाहिए और व्यावसायिक शिक्षा में सामान्य शिक्षा का पुट होना चाहिए।
    शिक्षा को व्यावसायिकता का रूप देने का तात्पर्य यह है कि छात्र-छात्राओं में कौशल,तकनीकी,ज्ञान,रुचि इत्यादि का विकास होना चाहिए जिससे कि वे आगे चलकर जो भी जॉब करें उसमें उनकी शिक्षा का समुचित उपयोग हो सके।
  • इंजीनियरिंग में उपयोगी विषयवस्तु भी शामिल होनी चाहिए जैसे तालाबों,झीलों और नदियों का पुनरुद्धार कैसे किया जाए? बिजली के उपकरणों को कैसे ठीक किया जाए की जाए? घरेलू उपकरणों की मरम्मत कैसे की जाए? यदि कॉलेजों की प्रयोगशालाओं में इस तरह की व्यवस्था की जा सके तो इससे युवावर्ग बेकारी का सामना नहीं करेगा और देश की तरक्की होगी।इसी प्रकार की व्यवस्था भौतिक विज्ञान,रसायन विज्ञान,अर्थशास्त्र पर भी लागू की जा सकती है।
  • यदि उपर्युक्त सुझाव के अनुसार व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाए तो भारत की आर्थिक,शैक्षिक और तकनीकी के विकास में वृद्धि हो सकती है।अभी भी जो व्यावसायिक पाठ्यक्रम जिन काॅलेजों में चलाए जाते हैं उनमें केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान किया जाता है प्रैक्टिकल ज्ञान बहुत कम कराया जाता है।अतः व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए अधिक से अधिक प्रैक्टिकल कार्य कराया जाना चाहिए।जब ऐसा करने में सफल होंगे तो बेरोजगारी पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है।

3.व्यावसायिक शिक्षा का अर्थ यह नहीं है? (Vocational Education Does Not Mean This):

  • आधुनिक युग आर्थिक,वैज्ञानिक और तकनीकी का युग है।हम हर कार्य को आर्थिक दृष्टि से देखते हैं।हम यह सोचते हैं कि इस कार्य को करने से क्या लाभ होगा,कितना धन मिलेगा? जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अर्थ (धन) ने घुसपैठ कर ली है।
  • छात्र-छात्राओं को कोचिंग,ट्यूशन कराने में भी यही दृष्टिकोण रहता है कि उनसे अधिक से अधिक फीस कैसे वसूली की जाए? प्रत्येक व्यवहार को आर्थिक दृष्टि से देखते हैं।यहां तक कि काम की एवज में धन व पैसा ले लेना और घटिया क्वालिटी का कार्य करना या काम कम करना अथवा कामचोरी की प्रवृत्ति होती जा रही है।
  • होना तो यह चाहिए कि यदि किसी काम के लिए 100 रुपए मिलते हैं तो ₹125 का या अधिक काम करना,काम को बेहतरीन तरीके से करना,काम की क्वालिटी से समझौता न करना।जब कर्त्तव्य,धर्म से अधिक धन को महत्त्व देने लगते हैं तो कोई जाॅब व कार्य करने से हमें आत्म संतुष्टि नहीं मिलती है।
  • यहां तक कि धार्मिक कार्यों पूजा-पाठ,व्रत,अनुष्ठान,भजन,सत्संग करते-कराते समय भी यही ध्यान रहता है कि उससे कितना धनार्जन होगा।
  • शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में भी धन का बोलबाला है।अच्छी शिक्षा वहीं जहाँ अधिक से अधिक फीस वसूली जाती है।पब्लिक स्कूलों,भव्य इमारतों वालें स्कूलों में मोटी-तगड़ी फीस ली जाती है परन्तु शिक्षा की क्वालिटी घटिया स्तर की रहती है।डिग्रियां,ज्ञान,प्रवेश,प्रश्न-पत्र,अंक तालिका में नम्बर बढ़वाना,जाॅब इत्यादि धन के बल से प्राप्त किए जा सकते हैं।
  • धन लोलुपता से हम भिखारी होते जा रहे हैं क्योंकि मांगने वाला भिखारी ही होता है।हमने जीवन से आदर्श जीवन मूल्यों को निकाल कर फेंक दिया है।धन के प्रति आसक्ति ने हमारा चारित्रिक और नैतिक पतन कर दिया है।स्वार्थ को पूरा करने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं।<

4.व्यावसायिक शिक्षा के बारे में महत्त्वपूर्ण बातें (Important Things About Vocational Education):

  • (1.)स्वार्थ में अन्धे होकर इतने गिर जाते हैं कि हमारी स्थिति उस बालक के समान हो जाती है जो माता के स्तनों से दूध पीते हुए यह नहीं सोचता कि स्तनों में दूध समाप्त हो गया है।वह उसका खून पीने लगता है और अंत में हड्डियों को चूसने लगता है।वह बालक मन में यह विचार नहीं लाता है कि मां के प्रति भी उसके कुछ कर्त्तव्य हैं,दायित्व हैं।
  • (2.)भारतीय संस्कृति में तीन ऋणों का वर्णन मिलता हैःपितृ ऋण,देव ऋण और ऋषि ऋण।जब तक हम इन तीन ऋणों को नहीं चुका देते हैं तब तक हमें कुछ भी लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।इस प्रकार स्वार्थ और परमार्थ आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
  • (3.)उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर भी कोई छात्र-छात्रा किसी काम के करने लायक न रहे,बेरोजगार रहे तो ऐसी शिक्षा किस काम की है? ऐसी शिक्षा छात्र-छात्राओं,समाज और देश के साथ धोखाधड़ी ही है।
  • (4.)डॉक्टर,इंजीनियर का कोर्स करने वाले भी बेरोजगार रहे तो इसका अर्थ है कि उन्होंने केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त किया है,प्रैक्टिकल ज्ञान प्राप्त नहीं किया है।
  • (5.)वर्तमान शिक्षा प्रणाली तथा देश के मठाधीश विद्वता को ही महत्त्व देते हैं,चरित्रवानों को महत्त्व नहीं दिया जाता है।
  • (6.)यह कितना बड़ा विरोधाभास है कि सामान्य शिक्षा अथवा व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त छात्रों को जाॅब के लिए दर-दर भटकना पड़ता है परंतु बिना पढ़ा-लिखा युवक-युवती मजदूरी करके अपना जीवनयापन कर लेता है।
  • (7.)तकनीकी शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा देते समय इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि उन्हें केवल सैद्धान्तिक ज्ञान ही नहीं दिया जाए बल्कि संबंधित कार्य में ऐसी दक्षता उत्पन्न की जावे ताकि वह परिवार व समाज पर बोझ न बने और अपने हुनर के आधार पर छोटा-मोटा जॉब कर सके।
  • (8.)किसी विचारक ने कहा है कि चरित्रहीन शिक्षा,मानवताहीन विज्ञान और नैतिकताहीन व्यवसाय लाभकारी तो होते नहीं अपितु पूर्ण खतरनाक होते हैं।व्यवसाय में छल,कपट,पाखण्ड नहीं होना चाहिए।
  • (9.)शिक्षा का अर्थ है संस्कृति में निहित जीवन मूल्यों के अनुकूल आचरण की समझ उत्पन्न करना,जिससे उसके लाभ प्राप्त किए जा सके।
  • (10.)आप चाहे कोई भी जॉब करें परंतु आपका व्यक्तिगत विकास,समाज का विकास और राष्ट्र का विकास चरित्र निष्ठा में ही निहित है।वर्तमान में किसी भी देश का इतिहास उठाकर देख लें।चरित्र निष्ठा के आधार पर ही विकसित कहला सकता है।
  • (11.)जाॅब को अरुचि से करने,लापरवाही बरतने और बेगार समझने की जिन्हें आदत है उन्हें जाॅब में सफलता की आशा नहीं करनी चाहिए।अरुचि हमारी योग्यता और क्षमता को नष्ट कर देती है।वस्तुतः कोई भी जॉब कठिन या सरल नहीं होता है।अभ्यास,कठिन परिश्रम और एकाग्रता के बल पर सीखा जा सकता है और आगे बढ़ा जा सकता है।यदि ऐसा नहीं होता तो दूसरे कैसे कर पाते हैं?
  • (12.)केवल स्कूल की पुस्तकों,व्यावसायिक शिक्षा से ही जीवन के सूत्र नहीं सीखे जा सकते हैं।व्यावहारिक ज्ञान के लिए अनेक पुस्तकों का अध्ययन तथा सज्जनों के साथ सत्संग करना पड़ता है तभी जीवन के रहस्यों का पता चलता है।<

5.व्यावसायिक शिक्षा का दृष्टान्त (Example of Vocational Education):

  • दो मित्र थे,एक साथ खेल-कूदकर बड़े हुए।सीनियर सैकण्डरी तक साथ-साथ पढ़े और दोनों ही पढ़ने में अव्वल थे।एक धनी घर का था और उसे पॉकेटमनी के लिए रुपए मिल जाते थे,उनको फिजूल खर्च कर देता था।दूसरा मित्र निर्धन था तथा चरित्रवान था तथा सदैव सीमित खर्च ही करता था।
  • धनी मित्र तथा निर्धन मित्र ने विचार-विमर्श किया कि सीनियर सेकेंडरी के बाद क्या किया जाए? धनी मित्र ने कहा कि मेरे पास तो धन-संपत्ति है मुझे कुछ करने की क्या जरूरत है? निर्धन छात्र ने सुझाव दिया कि व्यावसायिक शिक्षा का कोर्स कर लेते हैं।शिक्षा प्राप्त करने के बाद कुछ काम-धंधा करने के लायक हो जाएंगे परंतु धनी मित्र ने उसकी सलाह नहीं मानी।दोनों के रास्ते अलग हो गए।
  • निर्धन छात्र ने गणित विषय में बीएड करके शिक्षक बन गया।धनी मित्र ने अपने पिता का कारोबार संभाल लिया परंतु उस कारोबार के लिए आवश्यक कौशल का उसके पास अभाव था,व्यवसाय को जारी रखने के लिए ज्ञान का अभाव था।व्यवसाय को जारी रखने के लिए व्यावहारिक ज्ञान का अभाव था परंतु जैसे-तैसे उसको करता रहा।
  • काफी वर्षों बाद उनकी भेंट एक सेमिनार में हुई जहाँ जाॅब को पूर्ण दक्षता से करने की टिप्स बताई जा रही थी।धनी मित्र का कारोबार चौपट हो गया था क्योंकि कारोबार की तकनीक नहीं जानता था।कर्मचारी,अधिकारी जैसा कहते वैसा ही करता था।अपने विवेक का प्रयोग नहीं करता था।वहां सेमिनार में जाॅब की टिप्स जानने आया था और बहुत दुखी था।
  • जबकि निर्धन मित्र गणित शिक्षक का दायित्व पूर्ण दक्षता के साथ करता था। हमेशा शिक्षण कला में पारंगत होने के उपाय सोचता और सीखता रहता था।वह प्रसन्न और संतुष्ट था।पारिवारिक जीवन भी सुख-शांति से गुजर रहा था।
  • दोनों ने एक-दूसरे की कहानी सुनी।धनी मित्र की आंखों में आंसू आ गए और कहा मैं तुम्हारा कहना मान लेता तथा व्यापार की तकनीक व प्रबंधन के गुर सीख लेता,व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर लेता तो मेरा कारोबार चौपट नहीं होता।कर्मचारी और अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त थे और ठीक से काम नहीं करते थे।कारोबार के प्रमुख (धनी मित्र) से कोई डर नहीं था क्योंकि कारोबार की बारीकियों का उसे ज्ञान नहीं था।कर्मचारियों व अधिकारियों से कैसे काम लिया जाता है इसका भी पता नहीं था इसलिए वे मनमानी करते थे।
  • गणित शिक्षक ने धनी मित्र (कारोबारी) के प्रति सहानुभूति जताई तथा कारोबार करने की,जॉब की कुछ युक्तियां बताई तथा कर्मचारी व अधिकारियों से कैसे काम लिया जाता है इसके गुर बताए।उसने (धनी मित्र) नये सिरे से कारोबार को खड़ा किया और मित्र के परामर्श से वह कारोबार करने में सक्षम हुआ।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में आधुनिक शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप क्यों दें? (Why Make Modern Education Professional?),शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप कैसे दिया जाए? (How to Make Education Professional?) के बारे में बताया गया है।

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6.चिल्ला-चिल्लाकर पढ़ने का अर्थ (हास्य-व्यंग्य) (The Meaning of Reading by Shouting) (Humour-Satire):

  • टिंक्की के चिल्ला-चिल्लाकर पढ़ने पर उसकी माँ ने कहाःतुम इतना शोर क्यों मचा रही हो? देखो बिट्टू भी शान्ति से पढ़ रहा है पर उसकी आवाज नहीं आ रही है।
  • टिंक्कीःमाँ,मैं गणित पढ़ रही हूँ और गणित के सवाल समझ में नहीं आ रहे हैं इसलिए चिल्ला रही हूँ।जबकि बिट्टू इतिहास पढ़ रहा है जो उसकी समझ में आ रहा है।

7.आधुनिक शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप क्यों दें? (Frequently Asked Questions Related to Why Make Modern Education Professional?),शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप कैसे दिया जाए? (How to Make Education Professional?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.लोग व्यवसाय को ठीक तरीके से कब करते हैं? (When Do People Do Business Properly?):

उत्तर:लोग किसी भी व्यवसाय या जाॅब को तभी ठीक से करते हैं जब कोई कहने वाला हो अथवा हमारा कुछ बिगाड़ने वाला हो वरना चारित्रिक ईमानदारी से हमें परहेज है।पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी के साथ किसी जाॅब व व्यवसाय को करने में कमजोरी का लक्षण मानते हैं।प्रत्येक कार्य को लाभ-हानि के नजरिए से देखते हैं।

प्रश्न:2.किसी भी जॉब को केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से करने का दुष्परिणाम क्या है? (What are the Side-Effects of Doing any Job Only from a Business Point of View?):

उत्तर:हमारे जीवन में व्यावसायिकता इस कदर घुस गई है कि प्रत्येक छोटे से छोटे अथवा बड़े से बड़े कार्य के लिए रिश्वत चाहते हैं।हम प्रत्येक कार्य को धन के दृष्टिकोण से देखते हैं।यहां तक कि रिश्वत लेकर ओर रिश्वत मांगना चतुराई का लक्षण माना जाता है।कामचोरी करके हम तरक्की पाना चाहते हैं।जिस जाॅब को करने के लिए वेतन और पारिश्रमिक मिले उसको बिना रिश्वत के करना नहीं।कर्त्तव्य की बात करना पिछड़ेपन की निशानी है।लोगों का काम करके संतुष्ट करना दुनियादारी से अनभिज्ञता प्रकट करना है।

प्रश्न:3.व्यावसायिक शिक्षा के साथ ओर कौनसे गुण जरूरी है? (What Other Qualities are Required Along With Vocational Education?):

उत्तर:शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप देने के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को ईमानदारी,चारित्रिक निष्ठा,नैतिकता तथा सदाचरण का पालन करने की शिक्षा भी दी जानी चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा आधुनिक शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप क्यों दें? (Why Make Modern Education Professional?),शिक्षा को व्यावसायिक स्वरूप कैसे दिया जाए? (How to Make Education Professional?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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