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Anxiety Hinders Acquiring Knowledge

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1.चिंता ज्ञान प्राप्त करने में बाधक (Anxiety Hinders Acquiring Knowledge),संशयग्रस्त को असफलता मिलती है (The Doubtful Fails):

  • चिंता ज्ञान प्राप्त करने में बाधक (Anxiety Hinders Acquiring Knowledge) है,सहायक नहीं है।अधिकांश छात्र-छात्राएं अध्ययन के संबंध में किसी न किसी बात को लेकर चिंताग्रस्त हो जाते हैं।कुछ छात्र-छात्राएं सोचते हैं कि पता नहीं परीक्षा में सफल होंगे या असफल होंगे।कुछ छात्र-छात्राएं सोचते हैं कि डिग्री या व्यावसायिक डिग्री प्राप्त करने के बाद जाॅब मिलेगा या नहीं।कुछ कैंडिडेट्स सोचते हैं कि पता नहीं इंटरव्यू में सफल होंगे या नहीं।इस प्रकार अधिकांश छात्र-छात्राएं चिंता को अपने जीवन का अंग बना लेते हैं।चिंता से कोई फायदा या समस्या का हल तो होने वाला है नहीं।यह जानने समझते हुए भी छात्र-छात्राएं चिंता को गा-बजाकर आमन्त्रण देते हैं।कहावत भी है कि चिंता,चिता से बढ़कर है।
  • चिंता करने के बजाय मनन-चिंतन करें तो समस्या का हल भी निकलता है।कुछ छात्र-छात्राएं ऐच्छिक गणित विषय ले लेते हैं।बाद में गणित के सवाल और समस्याएं हल नहीं होती हैं तो चिंताग्रस्त हो जाते हैं।चिंता से छात्र-छात्राओं में तनाव पैदा होता है।चिंता एक मानसिक बीमारी है जिससे अनेक मानसिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
  • जब चिंता व मानसिक तनाव उत्पन्न हो जाता है तो विद्यार्थी न दिन को आराम से रह पाते हैं और न रात को शांति से सो पाते हैं।उनकी रात करवटें बदलने में व्यतीत होती है।चिंता के भय से छात्र-छात्राएं हमेशा परेशान रहते हैं।विद्यार्थी रात-रातभर जागकर सोचता है कि अध्ययन कैसे करूं,कैसे न करू?
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2.चिंता करना समस्या का हल नहीं (Worrying is not the Solution to the Problem):

  • विद्यार्थी को यह सोचने की आवश्यकता है कि चिंता करने से न तो गणित के सवाल व समस्याओं को हल किया जा सकता है,न अध्ययन कार्य को समझकर संपादित किया जा सकता है।समस्याओं का हल चिंतन-मनन करने,अभ्यास करने,पुनरावृत्ति करने से निकलता है।जब भी आप सफलता और असफलता के बारे में चिंताग्रस्त होंगे तो आपको किसी भी समस्या का हल नहीं मिलेगा।धीरे-धीरे चिंतित रहने से आपका समय व्यतीत होता जाएगा और एक दिन परीक्षा आपके सामने आ जाएगी।फिर आप कुछ भी उपाय नहीं कर सकेंगे और असफल हो जाएंगे।
  • उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सफलता और असफलता,परीक्षा,अध्ययन,गणित के सवालों को हल करने के बारे में जो भी चिंता की थी वह व्यर्थ थी और चिंता के द्वारा समस्या को हल करने में आपको कोई मदद नहीं मिली।बल्कि समस्याओं को सुलझाने की आपमें जो शक्ति थी वह चिंता के कारण खत्म हो गई।तो फिर आप ही सोचिए कि क्या चिंता करना उचित है?
  • मनोवैज्ञानिकों के अनुसार चिंता करने से मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।चिन्ता एक ऐसा घुन है जो विद्यार्थी की क्षमताओं,योग्यता और कठिन परिश्रम करने की आदत को हानि पहुंचाता है।
  • चिन्ता हमसे शक्ति पाकर इतनी शक्तिशाली आदत बन जाती है कि अच्छे-भले युवाओं,कर्मठ विद्यार्थी को तथा साहसी छात्र-छात्राओं को भी धराशायी कर देती है।अब विद्यार्थी स्वयं सोच लें कि क्या चिन्ता जैसे शत्रु को उन्हें अपने जीवन और सोच में स्थान देना चाहिए क्या?

3.हर बात में सन्देह करने वाले का विनाश होता है (In Everything the Doubter is Destroyed):

  • चिंता की तरह हर बात में संदेह करने वाला विशेषकर गुरुजनों द्वारा बताई गई व समझाई गई प्रत्येक बात में संदेह रखनेवाला तथा श्रद्धा से शून्य व विवेकहीन छात्र-छात्रा विनाश को अर्थात् असफलता को प्राप्त करता है।श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है किः
    “श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
    ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति”।।
  • अर्थात् श्रद्धा से युक्त,गुरुजनों की सेवा उपासना में लगा हुआ जितेन्द्रिय व्यक्ति ही ज्ञान को प्राप्त करता है,ज्ञान को प्राप्त करके वह शीघ्र ही सफलता अर्जित करता है।उपर्युक्त श्लोक में ज्ञान प्राप्ति की शर्त बताई गई है कि छात्र-छात्राओं को इंद्रियों को वश में रखना चाहिए,अध्ययन कार्य के प्रति समर्पण तथा गुरुजी द्वारा समझाए गए विषय में आस्था रखना।जब विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करता है तो चिन्ता,तनाव इत्यादि मानसिक विकारों से मुक्त हो जाता है।इसी चौथे अध्याय में आगे कहा गया है किः
  • “अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
    नायं लोकोस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः”।।
  • अर्थात् गुरुजनों से बतलाये हुए विषय को न समझने,गुरु वाक्य तथा पुस्तकों,शास्त्रों में श्रद्धा से शून्य एवं प्रत्येक बात में सन्देह रखनेवाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है अर्थात् असफलता प्राप्त करता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि विद्यार्थी को संशय (Doubt) नहीं करना चाहिए।जो विषय,जो समस्या,जो सवाल समझ में नहीं आता है उन संशयों (Doubts) को क्लियर (स्पष्ट) करना आवश्यक होता है अन्यथा विद्यार्थी आगे बढ़ ही नहीं सकता है।तात्पर्य यह है कि अन्धश्रद्धा रखना गलत है।इस प्रकार चिन्ता और प्रत्येक बात में सन्देह करनेवाला विद्यार्थी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता और न ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

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4.चिन्ता का दृष्टांत (Parable of Concern):

  • छात्र-छात्राएं मन में झूठी लालसा पाले रखते हैं।वे सोचते हैं कि वह इंजीनियर बन जाए,आईआईटी कर ले अथवा आईएएस बन जाए तो उसकी प्रतिष्ठा परिवार व समाज में हो सकती है।ऐसे छात्र-छात्राएं प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए चिंतित और परेशान तो होते रहते हैं परंतु उसके लिए सार्थक प्रयास नहीं करते हैं।जिन बातों की वे चिन्ता करते हैं वे पूरी हो भी कैसे सकती है क्योंकि चिंता करने से ओर अधिक चिंता बढ़ेगी और इस प्रकार चिंता करने का सिलसिला खत्म नहीं होता है।चिंता विद्यार्थी को इतना पंगु बना देती है कि वह आगे बढ़ ही नहीं सकता है।इसलिए उचित यही है कि चिन्ता न करके उसको जीवन से निकाल दें और उसकी जगह चिंतन-मनन करें।मन में उत्साह,जिज्ञासा को स्थान दें।चिन्ता मुक्त रहने का सबसे बढ़िया तरीका है कि अध्ययन कार्य में अपने आपको व्यस्त रखें।फालतू न बैठा करें।दूसरा उपाय है कि अध्ययन कार्य अनासक्त होकर करें अर्थात् फल प्राप्ति में आसक्ति रखकर अध्ययन न करें।
  • एक सुदर्शन नाम का विद्यार्थी था जो पढ़ने में बहुत मेधावी,निपुण तथा तेजस्वी था। वह गणित के सवालों को चुटकियों में हल कर देता था।धीरे-धीरे उसकी प्रशंसा होने लगी।12वीं कक्षा में आईआईटी में भी टाॅप किया।उसने मैथमेटिक्स ओलंपियाड भी जीता था।इतनी प्रसिद्धि,मान,प्रतिष्ठा और धन-संपत्ति पाकर वह बहुत खुश था।लेकिन धीरे-धीरे उसे यह चिंता सताने लगी की कभी कहीं मैं गणित का कोई सवाल हल नहीं कर पाया या कोई कंपटीशन में सफल नहीं हो पाया तो मेरी मान,प्रतिष्ठा गिर जाएगी।लोग मुझे कमतर समझेंगे और मेरी निंदा होने लगेगी।काफी दिनों इसी प्रकार की चिंताओं से ग्रस्त होने पर उसका शरीर बिल्कुल दुर्बल हो गया।उसके खाया-पीया हजम नहीं होता था।
  • उसका एक सच्चा मित्र सुदेश था।सुदेश से सुदर्शन की दशा देखी नहीं गई।उसने उसका इलाज कराने के बारे में सोचा।वह एक मनोवैज्ञानिक के पास गया और सुदर्शन की सारी हालत बता दी।तब मनोवैज्ञानिक ने कहा कि इसे अपने जाॅब और अध्ययन कार्य से हटाकर शांत व हरियाले वातावरण तथा प्रकृति के पास टहलने ले जाया करो।तब सुदेश ने सुदर्शन को टहलने के लिए कहा परंतु सुदर्शन ने तर्क दिया कि मुझे बहुत सा काम करना है तथा निपटाना है।परंतु सुदेश हठपूर्वक उसको घूमने के लिए ले गया।सुदर्शन को बड़ा अच्छा लगा। अब वह रोज घूमने जाने लगा।उसकी सेहत में सुधार आया।
  • तब सुदेश मनोवैज्ञानिक से पुनः मिला और सुदर्शन की हालत बताई।तब मनोवैज्ञानिक ने कहा कि इसे धार्मिक पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करो और कहीं भी कोई फंक्शन (समारोह) हो वहाँ भी ले जाया करो।धीरे-धीरे सुदर्शन ने धार्मिक व आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना प्रारंभ किया और समाज में होने वाले समारोह में भाग लेने लगा।उसके अंदर का अहंकार जाता रहा,चिंता मुक्त हो गया और उसने जीवन को सकारात्मक ढंग से जीना प्रारंभ किया।उसने सीखा की सफलता व असफलता जीवन के अंग हैं।पद,प्रतिष्ठा,मान,बड़ाई इत्यादि दिखावा है।वास्तविकता तो इंसान बनना है जो इंसानियत के तौर-तरीके सीखने पर ही बना जा सकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में चिंता ज्ञान प्राप्त करने में बाधक (Anxiety Hinders Acquiring Knowledge),संशयग्रस्त को असफलता मिलती है (The Doubtful Fails) के बारे में बताया गया है।

5.छात्र,शिक्षक और मूर्ख देश (हास्य-व्यंग्य) (Student Teacher and Fool Country) (Humour-Satire):

  • शिक्षक ने नाराज होकर छात्र से कहा कि तुम्हारी गणित विषय में मूर्खता देखकर तो यही लगता है कि तुम्हें मूर्ख देश में पैदा होना चाहिए।
  • छात्र ने सहज भाव से जवाब दिया कि हो सकता है कि भगवान मुझे मूर्ख देश में गिराना चाह रहे हो परंतु पृथ्वी के घूमने के कारण मैंं भारत में गिर गया और आपका शिष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

6.चिंता ज्ञान प्राप्त करने में बाधक (Anxiety Hinders Acquiring Knowledge),संशयग्रस्त को असफलता मिलती है (The Doubtful Fails) से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.चिंता होने का मूल कारण क्या है? (What is the Root Cause of Concern?):

उत्तरःचिंता होने का मूल कारण अहंकार का होना है।जब विद्यार्थी यह समझ लेता है कि सफलता तथा अच्छे अंक मेरे कारण से ही प्राप्त हुए हैं तो यह अहंकार है।जबकि सफलता माता-पिता,मित्रों,शिक्षकों,छात्र-छात्रा, पुस्तकों इत्यादि के कारण प्राप्त होती है।

प्रश्न:2.चिंता से मुक्त होने का उपाय क्या है? (What is the Way to Get Rid of Anxiety?):

उत्तर:चिन्ता नहीं बल्कि चिन्तन-मनन करें।अपने आपको अध्ययन कार्य में व्यस्त रखें।अनासक्ति पूर्वक अध्ययन करें अर्थात् अध्ययन कार्य के फल प्राप्ति में आसक्ति न रखें।मन में अहंकार को फटकने नहीं दे।

प्रश्नः3.चिन्ता तनाव तथा मानसिक विकारों से मुक्त कैसे रहे? (How to Stay Free from Anxiety Stress and Mental Disorders?):

उत्तर:अपनी विषय की पुस्तकों के साथ-साथ धार्मिक,आध्यात्मिक पुस्तकों का भी स्वाध्याय करें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा चिंता ज्ञान प्राप्त करने में बाधक (Anxiety Hinders Acquiring Knowledge),संशयग्रस्त को असफलता मिलती है (The Doubtful Fails) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Anxiety Hinders Acquiring Knowledge

चिंता ज्ञान प्राप्त करने में बाधक
(Anxiety Hinders Acquiring Knowledge)

Anxiety Hinders Acquiring Knowledge

चिंता ज्ञान प्राप्त करने में बाधक (Anxiety Hinders Acquiring Knowledge) है,सहायक नहीं है।
अधिकांश छात्र-छात्राएं अध्ययन के संबंध में किसी न किसी बात को लेकर चिंताग्रस्त हो जाते हैं।
कुछ छात्र-छात्राएं सोचते हैं कि पता नहीं परीक्षा में सफल होंगे या असफल होंगे।

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