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Consumerist Culture Hindering in Study

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1 1.अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Hindering in Study),अध्ययन में अवरोधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Preventing in Study):

1.अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Hindering in Study),अध्ययन में अवरोधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Preventing in Study):

  • अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Hindering in Study) को समझने से पूर्व उपभोग का अर्थ समझ लेना आवश्यक है।उपभोग शब्द का अर्थ है भोगना,सुख,स्वाद लेना,व्यवहार,बरतना, विषय-सुख,स्त्री-सहवास,फलभोग इत्यादि है। अंग्रेजी में उपभोग को Consumption,use, enjoyment,indulgence इत्यादि कहा जाता है।उपभोक्तावादी संस्कृति ऐसी बात नहीं है कि प्राचीन काल में भारत में नहीं पाई जाती थी।परंतु प्राचीनकाल में उपभोक्तावादी संस्कृति बहुत कम मात्रा में थी।अधिकांश लोग परिश्रम,तप,संयम,सदाचार,विद्या अध्ययन में अपना समय बिताते थे।प्राचीन काल में जब-जब भी उपभोक्तावादी संस्कृति हावी हुई है समाज और व्यक्ति का पतन हुआ है जिसका परिणाम देश को भुगतना पड़ा है।
  • परंतु वर्तमान भारत में यह उपभोक्तावादी संस्कृति पाश्चात्य देशों से आयातित है।इसकी चपेट में देश के नवयुवक आते जा रहे हैं।ऐसी बात नहीं है कि भारतीय चिंतक और मनीषा इस तरफ से बेखबर हैं।वे बराबर इस तरफ सचेत हैं तथा भारतीय युवाओं तथा लोक जनमानस को बराबर सचेत करते रहते हैं।इसके बावजूद उपभोक्तावादी संस्कृति ने भारत में पैर पसार लिए हैं।
  • जहां युवक-युवतियों को अध्ययन करने के लिए कठिन परिश्रम,तप,संयम व सदाचार का पालन करने की आवश्यकता है।वहां वे इन शब्दों को दकियानूसी,पुराने जमाने की बातें तथा आउटडेटेड कहकर इन शब्दों की खिल्ली उड़ाते हैं।वास्तविकता यह है कि शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं को उपभोक्तावादी संस्कृति का पल्लू पकड़ाना खूंखार सांड को लाल कपड़ा दिखाने के समान है जिससे नवयुवकों की कामाग्नि उत्तेजित होकर भड़क जाती है।
  • इसमें युवक-युवती प्रेम का ऐसा नाटक करते हैं कि जो पसंद आया उसके साथ वक्त गुजार लिया और एक-दूसरे को भोग लिया।यह किसी उपन्यास या नाटक की कहानी नहीं है,न ही किसी बॉलीवुड की किसी फिल्म का कथानक है।बल्कि यह भारतीय समाज में पैर पसार रही उपभोक्तावादी संस्कृति की सच्चाई है।ये सच्चाई वो है जिसमें महानगरों के धनाढ्य परिवारों के युवक और किशोर हाई-फाई कॉलेजों में जी रहे हैं।यह उपभोक्तावादी संस्कृति नहीं बल्कि अप संस्कृति जो महानगरों से होते हुए कस्बों,छोटे शहरों और नगरों में अपने पैर पसार रही है।इन युवाओं के लिए प्रेम अनुभूति नहीं बल्कि वासना है।इसलिए सेक्स को लेकर उनके मन में किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं है।
  • इस युवाकाल में जहाँ उनको समर्पित रहकर विद्याध्ययन करना चाहिए उसके बजाय यौन सुख के लिए वे यौवन के पड़ाव तक पहुंचने के लिए तैयार नहीं है।इसमें सह शिक्षा आग में घी का काम कर रही है।अब नवायुवा विवाह पूर्व सेक्स संबंधों में लिप्त होना,जुआ खेलना,शराब पीना,मौज मस्ती करना ही युवाकाल का आदर्श मानते हैं।ऐसे युवकों का नजरिया होता है कि सेक्स का आनंद लेने के लिए बड़ा होने का इंतजार क्यों किया जाए?
  • इस तरह के युवकों का मानना है कि अच्छा खाना,अच्छे अर्थात् सेक्सी कॉमिक्स पढ़ना,सेक्सी लड़कियां हासिल करना ही युवाकाल है।यदि ये सब इस उम्र में नहीं किया जाएगा तो क्या बुढ़ापे में किया जाएगा?सेक्स के प्रति युवकों की यह धारणा बनने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं:
  • (i)पाश्चात्य जीवन शैली का प्रभाव:पाश्चात्य देशों में सेक्स की खुली छूट है तथा वे इसे अनैतिक नहीं मानते हैं।भूमंडलीकरण के कारण भारत के युवाओं का संपर्क पाश्चात्य देशों से हुआ है।यह अप संस्कृति वहीं से भारत में आई है।उदाहरणार्थ बिल क्लिंटन के संबंध मोनिका लेविंस्की से थे।बिल क्लिंटन पर लिंडाट्र्रिप ने यौन शोषण का आरोप लगाया था इसके बावजूद वे शान से राष्ट्र्पति चुन लिए गए. बिल क्लिंटन अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति के सेक्स संबंध उनकी सक्रेटरी मोनिका लेवंस्की से थे।उस समय बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे।इन सम्बन्धों का पता लगने पर भी बिल क्लिंटन को न तो पद से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि मजे से कार्यकाल पूरा किया और न ही इसे बहुत बड़ा इश्यू माना गया।यदि भारत में ऐसा होता तो शायद पद पर रह नहीं सकता था।जैसे राजस्थान में मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के पूर्व कार्यकाल में एक मंत्री श्री महिपाल मदेरणा के सेक्स स्कैंडल में (भंवरी देवी के कारण) पद से इस्तीफा तो देना ही पड़ा जबकि आरोप साबित नहीं हुआ था।
  • (ii)दूसरा कारण है कि उदारीकरण में धनाढ्य वर्ग के पास अकूत धन संपत्ति का इकट्ठा होना।
  • (iii)फिल्मों,टीवी सीरियलों तथा इंटरनेट पर सेक्सी वेबसाइट्स को देखकर युवक-युवतियों का कम उम्र में ही परिपक्व हो जाना।
  • 1991 से उदारीकरण के बाद धनाढ्य वर्ग की नई पौध तैयार हो गई है तथा उनके पास अकूत धन दौलत जमा हो गया है।इन लोगों के पास अपने बच्चों को फालतू लुटाने के लिए पैसा तो है परंतु बच्चों को सही शिक्षा देने,शिक्षा अर्जन कराने के लिए समय नहीं है।नवयुवकों के पास जोश तो होता है परंतु होश नहीं होता है।इन युवकों के पास पैसा आ जाता है तो इच्छाएं बेलगाम घोड़े की तरह हो जाती है।इसलिए ये युवक जीने का हर अंदाज भोग लेना चाहते हैं।अपनी अतृप्त कामनाओं को पूरा कर लेना चाहते हैं।इस प्रकार के नवयुवकों के मां-बाप जानकर या कभी अनजाने में उनकी करतूतों की ओर से मुंह फेर लेते हैं,आंख मूंद लेते हैं।
  • इन युवकों के पास पैसा लुटाने के लिए तो है और महानगरों में इनको कॉलगर्ल मिल जाती हैं। आजकल इन कॉलगर्ल लड़कियों को भी मनी (धन),सुंदर शरीर और ऐशोआराम की हर चीज चाहिए।इन युवक-युवतियों के बीच कमिटमेंट (वचनबद्धता) जैसी कोई चीज नहीं है।
  • पाश्चात्य जीवन शैली का यह तो आरंभ है अभी तो इसके बहुत से दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।इस कल्चर को कई तरह से फैलाया जा रहा है।एक तो टीवी व फिल्मी पर्दे के जरिए बच्चों के दिल व दिमाग पर ऐसे कार्यक्रम व फिल्में परोसी जा रही है जो समय से पहले ही परिपक्व कर देती है।
  • दूसरी तरफ कंज्यूमर आर्टिकल (उपभोक्ता वस्तुएं) बेचने के लिए नए-नए तरीके ढूंढे जा रहे हैं।जैसे वैलेंटाइन डे,अप्रैल फूल,क्रिसमस डे इत्यादि। वैलेंटाइन डे का इस अप संस्कृति को बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका है।
    आज छोटे-छोटे बच्चे भी जानने लगे हैं कि वैलेंटाइन डे क्या है?यह जानकारी ज्ञान के रूप में नहीं बल्कि उत्तेजना के माध्यम से फैलाई जा रही है।आज से 20 वर्ष पूर्व विरले लोग ही वैलेंटाइन डे को जानते थे परंतु आज हर युवक-युवती जानते ही नहीं बल्कि इसे मनाते भी हैं।पाश्चात्य देश इसकी आड़ में अपने सामान की मार्केटिंग कर रहे हैं।इसके साथ ही भारत में लिव इन रिलेशनशिप चालू हो गई है।अब युवाओं पर कोई रोक टोक नहीं है।शादी से पूर्व ही सेक्स सम्बन्ध बनाओ और जब मर्जी आए तब छोड़ दो।भारत में प्राचीनकाल में चार्वाक दर्शन का यह मत था कि खाओ,पियो और मौज करो (Eat drink and be mary)।परंतु चार्वाक दर्शन को उस समय भारत में पैर पसारने ही नहीं दिया गया था।कुछ लोगों को छोड़कर अधिकांश भारतीय अध्ययन,तप,सदाचार का ही पालन करते थे।
  • इस उपभोक्तावादी संस्कृति के कई दुष्परिणाम है। बच्चे कम उम्र में ही सेक्स संबंध के कारण दिमागी संतुलन खो सकते हैं।कुछ बच्चे हताश,निराश हो जाते हैं।कुछ बच्चे जिंदगी से निराश हो जाते हैं।कई बच्चे विभिन्न यौन रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।
  • यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि काम-क्रीड़ा और यौन-क्रीड़ा दोनों में फर्क है।काम को हमारे ऋषियों ने चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष में स्थान दिया है।सृजन,संतान की उत्पत्ति के मकसद से पति-पत्नी द्वारा जो सहवास किया जाता है उसे काम-क्रीड़ा कहते हैं।जबकि मौज-मस्ती,मजे के लिए स्त्री-पुरुष द्वारा सहवास किया जाता है उसे यौन-क्रीड़ा कहते हैं।काम-क्रीड़ा काम का सदुपयोग है तथा यौन-क्रीड़ा काम का दुरुपयोग है।काम-क्रीड़ा उत्थान,उन्नति,विकास का मार्ग है जबकि यौन-क्रीड़ा पतन,अवनति और विनाश का मार्ग है।अब यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम कौनसा मार्ग चुनते हैं।दोनों ही कार्यों में ऊर्जा खर्च होती है।अध्ययन,मनन,चिंतन में भी तथा मौजमस्ती,अय्याशी और यौन-क्रीड़ा करने में भी।
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(1.)उपभोक्तावादी संस्कृति,भोगवादी संस्कृति से बचाव के उपाय (Measures to prevent consumerist culture):

  • हमारे ऋषियों-मुनियों ने जीवन के प्रारम्भिक काल को अध्ययन काल,विद्या ग्रहण करने के लिए निर्धारित किया था जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा जाता है।ब्रह्मचर्य का आज के युग में नाम सुनते ही छात्र-छात्राएँ इसे साधु-संन्यासियों, मुनियों के साथ जोड़ देते हैं।अर्थात् ब्रह्मचर्य का पालन केवल साधु-संतों,सन्यासियों इत्यादि को ही करना चाहिए,ऐसा आज के युवक-युवतियों का विचार है। यही सोचकर ऐसे युवक व युवतियां विद्यार्थी काल में रोमांस,यौन-क्रीड़ा,लिव इन रिलेशनशिप को जायज,अच्छा तथा मन को शांत करने का जरिया मानते हैं।
  • ब्रह्मचर्य का अर्थ यौन क्रीड़ा-क्रीड़ा न करना,काम-क्रीड़ा न करना समझा जाता है।परंतु ब्रह्मचर्य का यह संकुचित अर्थ है।वस्तुतः संयम,तप,सदाचार इत्यादि का पालन करना ब्रह्मचर्य है।मन तथा इंद्रियों पर नियंत्रण करना ब्रह्मचर्य है।गृहस्थ आश्रम में संतानोत्पत्ति के अलावा तीनों आश्रम ब्रह्मचर्य आश्रम,वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम में गुप्तेन्द्रिय-मूत्रेन्द्रिय का संयम रखना ब्रह्मचर्य है।इस प्रकार जीवन का प्रारंभिक काल यानी 25 वर्ष तक विद्याध्ययन का समय होता है और उसमें पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • युवाओं की समस्या है कि सह शिक्षा के कारण,विभिन्न उत्सव जैसे जन्मदिन,विवाह इत्यादि में युवतियों के संपर्क में आ जाते हैं।सुंदर लड़की को देखकर तथा संपर्क में आने के कारण मन को वश में करना बहुत मुश्किल होता है।युवक-युवतियां यदि जोश के साथ होश रखें तथा विद्यार्थी काल में इस तरह के समारोह में आवश्यक होने पर ही भागीदारी करें,अपना फोकस अध्ययन करने पर ही रखें,विवेक से काम लें तथा संयम का पालन करें तो मन को काबू में रखा जा सकता है।
  • संयम अर्थात् यम का पालन करना संयम कहलाता है।अच्छे-बुरे,शुभ-अशुभ,न्याय-अन्याय इत्यादि का ज्ञान रखना,विवेक पूर्ण आचरण करना होता है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग में सर्वप्रथम यम का पालन करने के बारे में बताया है।अष्टांग योग है:यम (अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह),नियम (शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय,भगवद् भक्ति),आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि।
  • यम का पहला अंग है अहिंसा:मन,वचन व कर्म से किसी प्राणी की हिंसा न करना,बदला लेने की भावना न रखना,शत्रु भाव न रखना तथा समर्थ होकर भी क्षमा भाव रखना अहिंसा है।
  • सत्य:मन,वचन,कर्म से जो जैसा है वैसा ही कहना,करना तथा व्यवहार करना,अप्रिय न बोलना,काम,क्रोध,लोभ,मोह,राग,द्वेष,भय के वशीभूत होकर मिथ्या भाषण न करना तथा महान पुरुष जैसा आचरण करते हैं वैसा आचरण करना सत्य है।
  • अस्तेय:दूसरों के पदार्थ,वस्तु,धन-संपदा इत्यादि को लेने की इच्छा न रखना,बिना पुरुषार्थ किए किसी वस्तु को ग्रहण करने की कामना न करना,चोरी न करना,विद्यार्थियों को जानते-समझते हुए गलत ढंग से न समझाना,छल-बल-दल के प्रयोग से किसी के पदार्थ को न अपनाना अस्तेय है।
  • ब्रह्मचर्य:इसके बारे में ऊपर वर्णन किया जा चुका है कि जुआ खेलना,मादक पदार्थ का सेवन करना,सिनेमा-नाटक,काम,क्रोध,लोभ,मोह,मैथुन तथा कामजनक स्त्री भाषण,दर्शन का त्याग करें।
  • अपरिग्रह:आवश्यकता से अधिक वस्तु,धन-संपदा,विषय भोगों का संग्रह न करें,न उपयोग करें।
    इसी प्रकार संयम के शत्रु हैं:अश्लील बातें करना,अश्लील साहित्य पढ़ना,यौन-क्रीड़ा सम्बन्धी छेड़छाड़,हँसी-मजाक,संकेत करना,छिपकर कामुक दृश्य देखना,छिपकर यौन-क्रीड़ा संबंधी बातों में रस लेना,यौन-क्रीड़ा करने के उपाय करना,मैथुन करना, मैथुन करने का प्रयास करना ये सब संयम के शत्रु है।
  • उपर्युक्त क्रियाकलापों से बचाव करते हुए संयम का पालन करना तथा विवेकपूर्वक आचरण करना विद्यार्थी के लिए,अध्ययन करने के लिए आवश्यक है।

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(2.)सारांश (Conclusion of Consumerist Culture Hindering in Study):

  • उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि इन सब बातों का पालन करना अध्ययन करने के लिए छात्र-छात्राओं को आवश्यक है।अध्ययन करना और सुख-सुविधा का भोग करना दोनों कार्य असंभव है।यदि अध्ययन करना है,विद्या ग्रहण करना है तो यह साधना है,तप है इसमें सुख-सुविधा का भोग करना संभव ही नहीं है।यदि सुख-सुविधा,भोग विलास,रोमांस करना है तो अध्ययन करने,विद्या प्राप्ति करने का विचार मन से निकाल देना चाहिए।
  • चाणक्य नीति में कहा है कि:
    “सुखार्थिन: कुतो विद्या विद्यार्थिन: कुत: सुखम्।
    सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।।
  • अर्थात् सुखार्थी को विद्या नहीं,विद्यार्थी को सुख नहीं।सुख को चाहे तो विद्या प्राप्ति की अभिलाषा छोड़ दें,विद्या प्राप्त करना है तो सुख की अभिलाषा छोड़ दें।इसी में कहा गया है कि:
  • “कामं क्रोधं तथा लोभं स्वादं श्रृंगारं कौतुके।
    अतिनिद्रा अतिसेवे च विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत।।
  • अर्थात् विद्यार्थी को कामुकता (यौन-क्रीड़ा की इच्छा),क्रोध,लोभ (लालसा,लोलुपता,बिना परिश्रम पदार्थों को प्राप्त करने की इच्छा),स्वादु पदार्थों को खाने की इच्छा,फैशनपरस्ती,खेल-तमाशे,मन-बहलाव के लिए ताश,चौपड़,शतरंज आदि खेलना,बहुत अधिक सोना तथा अत्यधिक सेवा करना,चापलूसी करना इन 8 कामों को त्याग दें।
  • तात्पर्य यह है कि छात्र-छात्राओं को पाश्चात्य जीवन शैली,उपभोक्तावादी संस्कृति का त्याग करके भारतीय संस्कृति को अपना ही होगा।पाश्चात्य देशों में गृहस्थाश्रम से पूर्व,अध्ययन काल से पूर्व यौन-क्रीड़ा को अपनाकर उसका परिणाम भुगत रहे हैं।इसलिए पाश्चात्य जीवन शैली से वही बातें अपनानी चाहिए जो हमारे लिए हितकर हो।अध्ययन करना और यौन-क्रीड़ा में लिप्त रहना दोनों का साथ-साथ संभव नहीं है।अध्ययन करना हमें उत्थान,विकास और उन्नति की ओर ले जाने वाला मार्ग है जबकि यौन-क्रीड़ा करना पतन,अधोगति और विनाश की ओर ले जाने वाला है।
  • अब ये सब बातें आधुनिक पाठ्यक्रम में मुश्किल से पढ़ने,समझने और पालन करने के लिए मिलती है,समझायी जाती हैं।इसलिए अपने विवेक से ही निर्णय लेकर उचित मार्ग को अपनाना चाहिए,अध्ययन करने का रास्ता अपनाना चाहिए।
    युवाकाल जीवन में एक बार ही आता है।इसमें जिस प्रकार का आचरण,कार्य करेंगे वैसा ही फल हमें आगे वृद्धावस्था तक भोगने होंगे।अपना भला-बुरा सोच-विचार कर ही किसी कार्य का आरंभ करना चाहिए।बाद में पश्चाताप करने से कोई फायदा होने वाला नहीं है।भतृहरि महाराज ने कहा है कि:
  • “विद्यानाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नं गुप्तं धनम्।
    विद्या भोगकरी यश: सुखकरी विद्या गुरूणां गुरु:।।
    विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्।
    विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीन:पशु:।।
  • अर्थात् विद्या मनुष्य का बहुत बड़ा सौंदर्य है।यह गुप्त धन है।विद्या,भोग,यश और सुख को देने वाली है।विद्या गुरुओं का गुरु है।विदेश जाने पर विद्या ही मनुष्य का बन्धु सहायक है।विद्या एक सर्वश्रेष्ठ देवता है।विद्या राजाओं के लिए भी पूज्य है।इसके समान और कोई धन नहीं है।जो मनुष्य विद्या से विहीन है वह पशु है।
  • उपर्युक्त विवरण में अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Hindering in Study),अध्ययन में अवरोधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Preventing in Study) के बारे में बताया गया है।

2.अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Hindering in Study),अध्ययन में अवरोधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Preventing in Study) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.उपभोक्तावादी संस्कृति क्यों खराब है? (Why is consumerist culture bad?):

उत्तर:उपभोक्तावाद ऋण के स्तर को बढ़ाता है जिसके परिणामस्वरूप तनाव और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।नवीनतम प्रवृत्तियों का पालन करने की कोशिश कर रहा है जब आप सीमित संसाधनों मन और शरीर के लिए बहुत थकाऊ हो सकता है।उपभोक्तावाद लोगों को अधिक मेहनत करने,अधिक उधार लेने और प्रियजनों के साथ कम समय बिताने के लिए बल देता है।

प्रश्न:2.उपभोक्ता संस्कृति के साथ क्या समस्या है? (What is the problem with consumer culture?):

उत्तर:उपभोक्तावाद के नकारात्मक प्रभावों में प्राकृतिक संसाधनों की कमी और पृथ्वी का प्रदूषण शामिल है।उपभोक्ता समाज जिस तरह से काम कर रहा है, वह टिकाऊ नहीं है हम वर्तमान में 70 प्रतिशत से अधिक के साथ पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं ।

प्रश्न:3.उपभोक्तावाद शिक्षा को कैसे प्रभावित करता है? (How does consumerism affect education?):

उत्तर:उच्च शिक्षा में उपभोक्तावाद छात्रों के नजरिए, व्यवहार और अपेक्षाओं के माध्यम से स्पष्ट है और निष्क्रिय सीखने से जुड़ा हुआ है।उदाहरण के लिए, जब छात्र सीखने के लिए सतही दृष्टिकोण पसंद करते हैं, तो वे महत्वपूर्ण सोच,समस्या को सुलझाने और गहरी शिक्षा में संलग्न नहीं होते हैं।

प्रश्न:4.छात्र उपभोक्तावाद क्या है? (What is student consumerism?):

उत्तर:छात्र उपभोक्तावाद विभिन्न प्रकार के विश्वासों और व्यवहारों का संग्रह है जैसे कि यह विश्वास कि छात्र के शैक्षिक प्रयासों के सभी कारक ग्रेड,समयसीमा और अपेक्षाओं जैसे परक्राम्य (negotiable) हैं।

प्रश्न:5.क्या छात्र उपभोक्ता हैं? (Are students consumers?):

उत्तर:लेकिन छात्रों और होगा स्नातकों,वास्तव में, उपभोक्ताओं रहे हैं।वे विकल्पों की तुलना करते हैं और संभावित निवेश पर रिटर्न का मूल्यांकन करते हैं।वे ब्रांड के प्रति सजग हैं।वे अपने हितों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रदाताओं की एक तेजी से विविध सरणी को देख रहे हैं (They are looking to an increasingly diverse array of providers to fulfill their interests and aspirations)।

प्रश्न:6.शिक्षा के क्षेत्र में ग्राहक कौन है? (Who is the customer in the education sector?):

उत्तर:शैक्षिक संस्थानों के ग्राहक पहले छात्र हैं,उनके माता-पिता और अन्य तीसरे पक्ष के हितधारक जैसे स्थानीय सरकारें और बोर्ड के सदस्य हैं।एक कॉर्पोरेट ग्राहक एक छात्र के रूप में ही नहीं है।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Hindering in Study),अध्ययन में अवरोधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Preventing in Study) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Consumerist Culture Hindering in Study

अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति
(Consumerist Culture Hindering in Study)

Consumerist Culture Hindering in Study

अध्ययन में बाधक उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerist Culture Hindering in Study)
को समझने से पूर्व उपभोग का अर्थ समझ लेना आवश्यक है।उपभोग शब्द का अर्थ है
भोगना,सुख,स्वाद लेना,व्यवहार,बरतना, विषय-सुख,स्त्री-सहवास,फलभोग इत्यादि है।

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