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5 Golden Tips for Children’s Growth

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1.बच्चों के विकास के लिए 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tips for Children’s Growth),बच्चों के विकास के लिए 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Children’s Development):

  • बच्चों के विकास के लिए 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tips for Children’s Growth) हैं जो बच्चों को प्रभावित करने वाली क्रियाएं हैं उनके भावी का निर्माण करती हैं।बच्चों के प्रारंभिक काल के संस्कार भी उनके महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं।
  • बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में माता-पिता के व्यक्तित्व,उनके अनुभव और मनोवृत्तियों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।वह माता-पिता के चाल-चरित्र,बोली,हाव-भाव एवं अन्य चेष्टाओं को सहज ही ग्रहण करता है।शांत,गंभीर एवं हंसमुख अभिभावकों के बच्चे भी इन गुणों को आत्मसात कर लेते हैं।घर में सुखद,शांत एवं उल्लासप्रद वातावरण होता है तो बच्चे भी प्रसन्नचित्त तथा स्वस्थ होते हैं।
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2.अत्यधिक लाड़-प्यार न करें (Don’t be overly pampered):

  • अत्यधिक लाड़-प्यार भी बच्चे के व्यक्तित्व को असंतुलित बना देता है,क्योंकि इससे बच्चे में पराश्रयता की भावना विकसित होती है।परिणामस्वरूप बड़े होने पर भी वह दूसरे का आश्रय चाहता है।
  • इसके विपरीत अभिभावकों से स्नेह भावना समुचितरूप से नहीं मिलती है तो उसमें हीनता की भावना आ जाती है और अपने जीवन के प्रति नीरसता का अनुभव करता है।यही स्थिति बच्चे की इच्छा असंतुष्ट रहने पर होती है।इसलिए माता-पिता को चाहिए कि बच्चे की आकांक्षा,आवश्यकता पर ध्यान रखें और अनुचित स्नेह-प्यार न दें।
  • सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो बच्चा घर,बाहर अथवा विद्यालय में जहां भी जाता है,वहां उसे अलग-अलग वातावरण मिलता है।धीरे-धीरे उसमें उस वातावरण के अनुसार संस्कार बनते रहते हैं।अच्छी अथवा बुरी बातें उसमें घर करती रहती हैं।अतः एक अच्छे वातावरण का निर्माण करना आवश्यक होता है।इसके लिए माता-पिता और अध्यापक तथा बच्चों के साथियों का अच्छा होना आवश्यक है।
  • यहां संस्कार का आशय ‘मन में पड़ने वाली छाप’ से है।मन पर पड़ने वाली परिष्कृत छाप बच्चे के भविष्य निर्माण के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।परिष्कृत वातावरण,अच्छे भोजन और अच्छे वस्त्रों से भी अधिक महत्त्व का है।
  • देश-विदेश के महापुरुषों की जीवनियों से यह पता चलता है कि उन्हें आज जैसे उन्नत साधन,मूल्यवान भोजन तथा वस्त्र भले ही उपलब्ध नहीं थे,लेकिन बचपन में वह वातावरण अवश्य मिला जो संस्कारों का निर्माण करता है।प्रायः सभी महापुरुषों की सहायता के मूल में यह परिष्कृत वातावरण ही प्रधान रहा है।
  • बालक के व्यक्तित्व के विकास में उसे मिलने वाली प्रशंसा,निंदा तथा उसके शरीर के गठन का भी बहुत प्रभाव पड़ता है।छोटी-छोटी बातों के लिए झिड़कने और डाँटने से बच्चे के मन में आत्महीनता की भावना उत्पन्न होती है।जिनके शरीर स्वस्थ,सुगठित और सुंदर होते हैं,वे बालक दूसरों पर शीघ्र ही अपना प्रभाव डालते हैं।बेडौल कमजोर और दुबले-पतले शरीर वाले बच्चे डरपोक और दब्बू होते हैं।इसलिए बच्चों को पर्याप्त पौष्टिक आहार तथा उनके छोटे-छोटे कार्यों की सराहना अवश्य करनी चाहिए।

3.अच्छे कार्यों की प्रशंसा करें (Praise good deeds):

  • बच्चों के वस्त्र भी नाम भी उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालते हैं।साफ सुथरे वस्त्र और अच्छे नाम दूसरों से उत्कृष्ट बनने की भावना उत्पन्न करते हैं,लेकिन बिगड़े नाम वालों को बच्चे चिढ़ाते हैं।इससे समय-समय पर उसे एक प्रकार की हीनता का आभास होता है।
  • बच्चे में अनेक गुण व शक्तियां जन्मजात होती है।उसका उचित पोषण व अभिवर्द्धन माता-पिता की सूझबूझ पर निर्भर करता है।
  • अनेक बार अभिभावक बच्चों पर पूरा ध्यान नहीं देते।सदैव “ऐसा करो,वैसा करो,यहां आओ,वहां मत जाओ” आदि आदेश तथा छोटी-छोटी भूल पर ‘तुमसे क्या बनेगा? तुम तो कैसे हो गए हो? गधे,मूर्ख,बेवकूफ आदि संबोधन देते रहने से उसके मन में हीनता की ग्रंथि पड़ जाती है।ऐसे बच्चे जीवन भर के लिए दब्बू और अविकसित बन जाते हैं।इसलिए उन्हें समय-समय पर उन्हीं की रुचि के अनुसार छोटे-छोटे काम के लिए प्रशंसा और प्रोत्साहन देना चाहिए।
  • बच्चों को मानसिक दृष्टि से विकसित बनाने के लिए अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों में आत्मविश्वास उत्पन्न करें,उसकी प्रशंसा करें और कार्य करने के लिए प्रेरित,प्रोत्साहित करें।कोई भूल कर लेता है तो उसे डांटने-फटकारने के बजाय प्यार से समझाएं।
  • सभी बच्चों के साथ समान रूप से स्नेहपूर्ण व्यवहार करें।बच्चों में प्रकृतिप्रदत्त न्यूनाधिक प्रतिभा व बौद्धिक क्षमता हुआ करती है।मंदबुद्धि के बालकों को स्नेहपूर्ण वातावरण में लंबे समय तक मार्गदर्शन देते रहना चाहिए।
  • अपने बच्चों की तुलना किसी दूसरे बालक से नहीं करनी चाहिए।अभिभावकों को अपने बच्चे को यह नहीं कहना चाहिए कि अमुक बालक को देखो,कितने अच्छे नंबरों से पास होता है।कितना पढ़ता-लिखता है,कितना सुशील और कितनी समझदारी से बातें करता है।
  • ऐसी तुलना करने से बच्चे के मन में आत्महीनता की भावना आ जाती है और वह अन्य बालकों के समक्ष दबा-दबा रहता है।बच्चे की अभिरुचि और योग्यता को समझते हुए उसे दिशा दी जानी चाहिए।
  • बच्चे की जिज्ञासा का समुचित समाधान करना आवश्यक ही है।उसके दमन करने से बच्चे अपना व्यक्तित्व कभी भी निखार नहीं सकते।जैसे किसी वस्तु को पटककर वह तोड़ देता है तो बजाए उसे डाँटने के उससे क्या नुकसान हुआ तथा किसी वस्तु,पुस्तक को क्यों नहीं पटकना चाहिए,यह समझाना चाहिए।
  • माता-पिता तथा अभिभावकों की यह कामना कि उनके द्वारा संरक्षित बालक स्वस्थ,सुयोग्य,समर्थ एवं सुरक्षित हो सहज स्वाभाविक होती है।इस कामना की पूर्ति के लिए उपर्युक्त नियमों का,निर्देशों का पालन करना बालकों के निर्माण का दायित्वपूर्ण करना है।इन नियमों का पालनकर सुयोग्य एवं समर्थ नागरिकों का निर्माण करना एक पुण्य-परमार्थ भी है।

4.माता-पिता बच्चों को नेगेटिव सजेशन ना दे (Parents should not give negative suggestions to children):

  • बच्चों का सही विकास माता-पिता के लिए एक चुनौती होती है।वे उसके विकास के लिए हर संभव प्रयास करते हैं,लेकिन कहीं ना कहीं वे बच्चों के मनोविज्ञान से अपरिचित होते हैं,जिसके कारण उन्हें बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और अपनी गलतियों के कारण भी बच्चों के कोमल मन को ऐसी ठेस पहुंचा देते हैं,जिसका प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर अमिट छाप के रूप में अंकित हो जाता है।
  • प्रायः देखा गया है कि माता-पिता अपने बच्चों के ऊपर ताने कसते हैं,उन पर सोचे-समझे बिना झल्ला उठते हैं और अपशब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं।उस समय वे यह नहीं सोचते कि वे जो कर रहे हैं,उचित है या नहीं? उनके व्यवहार का उनके बच्चों की कोमल मनः स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या वे उनकी बातें मानेंगे? और होता भी यही है कि बच्चे अपने माता-पिता के इस तरह के व्यवहार से बहुत दुखी होते हैं,छिप-छिपकर रोते हैं,बातें नहीं मानते और जिद्दी हो जाते हैं।
  • यह बात सही है कि माता-पिता के लिए अपने बच्चों की पालना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है,लेकिन यह भी जरूरी है कि वे इस चुनौती का सामना करते समय बच्चों के सामने ऐसे शब्दों या वाक्यों का इस्तेमाल न करें,जिनका वे कुछ और अर्थ लगाते हों या जिनसे उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती हो।कई बार माता-पिता अपने गुस्से को या कुंठा को अपने बच्चों के ऊपर उतार देते हैं और उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं।ऐसे बच्चे अपने माता-पिता से भावनात्मक रूप से दूर होने लगते हैं और ज्यादा परेशान होने पर घर छोड़कर भाग जाते हैं।
  • बच्चों का अपने माता-पिता से भावनात्मक रूप से अटूट संबंध होता है,लेकिन जितनी गहराई से वे अपने माता-पिता से जुड़े होते हैं,उनके द्वारा कही गई बातें भी उन्हें उतना ही प्रभावित करती हैं।अक्सर ये देखा गया है कि अभिभावक अपने बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना करने लग जाते हैं।अपने बच्चे की खूबियों को प्रोत्साहित करने के बजाय दूसरों से तुलना करना उनके अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना को जन्म देता है,जिसके कारण उनके अन्य बच्चों से संबंध खराब होते हैं और दूसरों का सहयोग करने की भावना उनके अंदर खत्म होने लगती है।
  • अपने बच्चों की दूसरों से तुलना करने की आदत के कारण अभिभावक यह बात भूल जाते हैं कि हर बच्चे का अपना एक गुण और एक सीमा होती है।इसलिए बच्चों से यह कभी भी नहीं कहना चाहिए कि वह दूसरे बच्चे की तरह क्यों नहीं बन जाता।अपने बच्चे को दूसरे बच्चों से तुलना करने के बजाए यह जानने की कोशिश करना चाहिए कि आपके बच्चे में क्या-क्या खूबियां हैं और उन्हें अधिक विकसित कैसे किया जा सकता है।अभिभावक बच्चों के उस व्यवहार पर भी ध्यान दें,जिस
    से वे बदलना चाहते हैं और उसे कैसे बदलना है,इस पर सकारात्मक रूप से सोचें।
  • ऐसा भी होता है कि अभिभावक अपने बच्चों को धमकियों से डराते हैं जैसे-‘ऐसा करो वर्ना…’ ऐसी धमकियां भी उनके सामान्य व्यवहार को आक्रामक बना देती है।अच्छा यही होगा कि बच्चों से अपनी बात मनवाने के तरीके में परिवर्तन लाया जाए।उनसे ऐसा कहा जा सकता है कि अगर तुमने यह काम करना अभी बंद नहीं किया तो तुम्हें अमुक चीज (उसकी मनपसंद चीज) नहीं दी जाएगी या तुम्हें अपने साथ बाहर नहीं ले जाएंगे या अन्य कुछ,जिससे वह समझ सके।जब अभिभावक अपने बच्चों पर अनुशासन लागू करने के लिए गंभीर हो जाते हैं तो बच्चे भी इस गंभीरता को जल्दी समझ लेते हैं और उनकी बात मानते हैं,लेकिन बहुत अधिक कड़े अनुशासन में उन्हें बाँधना भी उचित नहीं है।

5.बच्चों के लिए गलत शब्द इस्तेमाल न करें (Don’t use the wrong words for children):

  • कभी-कभी माता-पिता अपने बच्चों से कहते हैं-‘कितने मूर्ख हो,तुम्हें इतना भी नहीं आता…’ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल अभिभावक अपने बच्चों के सामने कतई ना करें और यदि वे अपनी बोलचाल की भाषा में इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो सावधानीपूर्वक इन्हें हटाएँ,क्योंकि इस तरह के संबोधन से उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है,वे भी इस तरह के शब्दों का प्रयोग करना सीख जाते हैं,जो उनके भावी जीवन पर असर डालता है।यदि बच्चों से किसी तरह की कोई भूल-चूक या गलती होती है तो उसे समझाया जा सकता है कि उसे कैसे ठीक किया जाए।
  • कभी-कभी अभिभावक गुस्से में बच्चों से ऐसे शब्द भी कह देते हैं ‘इससे तो बेऔलाद ही अच्छा था।’बच्चा जब इस तरह की बातें सुनता है कि वह बेकार है और उसके माता-पिता को उसकी जरूरत नहीं है तो वह बहुत दुखी होता है या अभिभावकों के व्यवहार से जब उसे ऐसा लगता है-‘वह इस परिवार में ना होता तो अच्छा होता’,तो यह भाव ही उसके दिल को चोट पहुंचा देता है और वह अपने माता-पिता से बिना कुछ कहे चुपचाप ही इस बात को अपने दिल में बैठा लेता है,अकेलापन महसूस करता है और चाहत की तलाश में रहता है।इसलिए अभिभावक अपने व्यवहार व अपने शब्दों के प्रति पूरी तरह से सतर्क रहें।अगर वे अपने बच्चों के किसी व्यवहार से नाराज हैं तो यह कह सकते हैं कि ‘कभी-कभी तुम मुझे बहुत गुस्सा दिला देते हो’,लेकिन अपने व्यवहार के ऊपर नियंत्रण रखें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों के विकास के लिए 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tips for Children’s Growth),बच्चों के विकास के लिए 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Children’s Development) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र की पिटाई (हास्य-व्यंग्य) (Student Beating) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्र से):मैंने तुम्हारा टेस्ट ले लिया है,अब मैं कल तुम्हें दिखा दूंगा।
  • छात्र:आप तो कल मुझे दिखा देंगे पर मुझे कल तक मेरे माता-पिता देखने लायक छोड़ेंगे तब देख पाऊंगा न।

7.बच्चों के विकास के लिए 5 स्वर्णिम टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Golden Tips for Children’s Growth),बच्चों के विकास के लिए 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Children’s Development) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बच्चों में आत्महीनता की ग्रंथि कैसे पैदा होती है? (How is the gland of soullessness born in children?):

उत्तर:बच्चों को अपने अभिभावकों से ऐसी भी बातें सुनने को मिलती है कि ‘तुम चुप नहीं रह सकते; इससे बच्चा यह समझने लगता है कि उसकी बातों का कोई महत्त्व ही नहीं है और वह चुप रहने लगता है,उसे अधिक टोकने पर वह चुप लगता और आत्महीनता की ग्रंथि को अपने मन में बसा लेता है।इसका बहुत अधिक दुष्प्रभाव उसके भावी जीवन पर,उसकी निर्णयक्षमता पर पड़ता है।

प्रश्न:2.बच्चों को शांत करने का क्या तरीका है? (What is the way to calm the children?):

उत्तर:बच्चों को चुप करने के बजाय उनसे यह कह सकते हैं कि शांत रहो,शोर मत करो और अब बताओ क्या कह रहे थे? यदि अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा उनकी बात माने,उनकी बात सुने तो इसकी सही शुरुआत उन्हें ही करनी पड़ेगी।अपने बच्चों की चाहतें,उनकी इच्छाओं का भी ध्यान रखना पड़ेगा।सही प्रकार से उनसे व्यवहार करना और अपने अनुकूल उनसे काम करने के लिए प्यार का सहारा लेना पड़ेगा।

प्रश्न:3.बच्चों की नैसर्गिक प्रतिभा कैसे उभारें? (How to bring out the natural talents of children?):

उत्तर:बच्चों के अंदर नैसर्गिक प्रतिभा होती है,लेकिन दबाववश या अन्य कारणों से वह अभिव्यक्त नहीं हो पाती,इसे अभिव्यक्त करने में अभिभावकों को अपने बच्चों का सहयोग करना पड़ेगा।बच्चों को कुछ स्वतंत्रता भी देनी पड़ेगी,जिससे वे अपने निर्णय लेना सीखें और छोटी-छोटी जिम्मेदारियां भी सौंपनी पड़ेगी,ताकि उन्हें भी महसूस हो कि वे अब बड़े हो रहे हैं।बच्चों के साथ,व्यवहार करने में बहुत सारी सावधानियों की जरूरत है,इसका ध्यान अभिभावकों को रखना ही पड़ेगा,ताकि उनके बच्चे अपने स्वर्णिम भविष्य की सही नींव रख सकें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चों के विकास के लिए 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tips for Children’s Growth),बच्चों के विकास के लिए 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Children’s Development) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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