Menu

5 Tips for Youth to Control Emotions

Contents hide

1.युवाओं के लिए भावनाओं पर नियंत्रण रखने की 5 टिप्स (5 Tips for Youth to Control Emotions),भावनाओं पर नियन्त्रण कैसे रखें? (How to Control Emotions?):

  • युवाओं के लिए भावनाओं पर नियंत्रण रखने की 5 टिप्स (5 Tips for Youth to Control Emotions) के आधार पर वे भावनाओं पर नियंत्रण रख सकेंगे।अक्सर छात्र-छात्राएं असफल होने पर बहुत अधिक दुःखी और सफल होने पर बहुत अधिक प्रसन्न हो जाते हैं।इस कारण हम कई बार अपने व्यवहार में भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते।ऐसी स्थिति में हमारे निर्णय गलत हो जाते हैं और कई दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं।ऐसे निर्णयों के कारण हमें या तो बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ता है या फिर बेवजह शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है।
  • हम अपनी भावनाओं में बहकर कई बार ऐसे निर्णय ले लेते हैं जिनका क्रियान्वयन (Execution) हमारे लिए परेशानी का सबब बन जाता है।हमें भावुकता के आवेश में आकर महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लेने चाहिए।भावुकता से श्रेष्ठ हमारा कर्त्तव्य होता है।बहुत अधिक खुशी व प्रसन्नता में कभी कोई वादा न करें,अत्यधिक क्रोधावेश में कोई उत्तर न दें और निराश व उदास हों तो कोई निर्णय न लें।खुशी,प्रसन्नता,क्रोध,निराशा व उदासी भावनाएं ही हैं।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:What are Side Effects of Greed?

2.प्रसन्नता की चरम स्थिति (Extreme State of Happiness):

  • छात्र-छात्राएं परीक्षा में सफलता अर्जित करते हैं तो प्रसन्न होना स्वाभाविक है।अन्य कोई उल्लेखनीय कार्य किया हो,कोई पदक जीता हो,प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता अर्जित की हो तो ऐसे पल सबसे खूबसूरत पल होते हैं उस समय हम प्रसन्न होते हैं।
  • हम अध्ययन,परीक्षा अथवा अन्य कोई भी काम सुख प्राप्त करने या खुशी के लिए करते हैं।कई बार ये दोनों हमें एक साथ मिल जाती हैं,जिससे हमारी प्रसन्नता कई गुना बढ़ जाती है अर्थात् हम अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।
  • प्रसन्नता के फलस्वरूप कई बार हम हमारे दोस्तों,सहपाठियों को पार्टी देते हैं और ऐसी स्थिति का पूरा आनंद उठाना चाहते हैं।सीमा में रहते हुए यदि हम कोई पार्टी आयोजित करते हैं अथवा अन्य तरीके से सेलिब्रेट करते हैं तो उसमें बुरा नहीं है।
  • परंतु प्रसन्नता की चरम स्थिति में कई बार हम अपने व्यवहार को नियंत्रित नहीं रख पाते हैं।ऐसी स्थिति में बिना सोचे-समझे हम ऐसे कार्य कर बैठते हैं जिसका बाद में पश्चाताप और दुःख होता है।यदि वही निर्णय सोच-समझकर या कुछ समय रुककर लिया जाता तो सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं और उसका हमें पश्चाताप नहीं होता है।

3.उपलब्धि की स्थिति में व्यवहार (Behavior in a State of Achievement):

  • भावनात्मक स्थिति के इस प्रकार में जब कोई छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति उपलब्धि हासिल करता है तो वह प्रसन्न होता है और उसे अपने आप पर गर्व महसूस होता है।परंतु उपलब्धि के भावावेश में यह गर्व घमंड में बदल जाता है और इस स्थिति में हम किसी का मान-सम्मान करना भूल जाते हैं और कभी-कभी तो किसी का अपमान भी कर देते हैं।
  • उदाहरणार्थ कोई छात्र छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष पद हेतु खड़ा होता है।स्वाभाविक है कि अध्यक्ष पद हेतु सामान्यतः एक से अधिक उम्मीदवार खड़े होते हैं।किसी छात्र को सफलता मिल जाती है।वह छात्र सफलता अर्जित करने पर अपने दोस्तों को पार्टियाँ देता है और विजयी जुलूस निकालता है।
  • अचानक विजयी छात्र के सामने हारने वाला छात्र आ जाता है।उस समय अपनी प्रसन्नता और गर्व में मदहोश होकर छात्र अपना आपा खो बैठता हैं।वह छात्र हारने वाले छात्र का अपमान कर बैठता है तो यह अनुचित है और शिष्टाचार के खिलाफ है।
  • किसी चुनाव में या प्रतियोगिता परीक्षा में कुछ ही विजयी या सफल होते हैं और बाकी को हार या असफलता मिलती है।अध्यक्ष पद पर एक ही छात्र का चुनाव किया जा सकता है।अतः उस छात्र का यह व्यवहार अमर्यादित है।इससे शिक्षा संस्थान,कॉलेज या विश्वविद्यालय का वातावरण विषाक्त होता है और वह पराजित छात्र के हृदय में शत्रुता का बीज बो देता है।
  • तात्पर्य यह है कि हम चाहे कितनी भी बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर लें परंतु हमें अपने व्यवहार को नियंत्रण में रखना चाहिए अन्यथा वह हमें किसी बहुत बड़ी परेशानी में डाल सकता है।

4.क्रोध पर नियंत्रण करें (Control Your Anger):

  • क्रोध व्यक्ति की एक ऐसी तीव्र आंतरिक असंतुष्टि की भावना होती है,जिसे व्यक्ति अपने शारीरिक हावभाव व तीव्र प्रतिक्रिया के माध्यम से व्यक्त करता है।क्रोध व्यक्ति को तब आता है,जब उसकी स्वयं के प्रति या दूसरों के प्रति मनोवांछित इच्छा पूरी नहीं हो पाती।जब व्यक्ति को तेज क्रोध आता है तो वह हाथ-पैर पटकने लगता है,उसके हाथ में जो कुछ भी होता है,उसे फेंकने लगता है।
  • इस मन:स्थिति में व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाती है,वह अपने ही मन के आवेगों में बहता चला जाता है और उसका क्रोध तीव्र से तीव्रतर होता जाता है।
  • जिंदगी में हर दिन पैदा होने वाला तनाव भी क्रोध का एक कारण होता है,जिससे व्यक्ति का स्वास्थ्य तो खराब होता ही है,साथ ही उसे अनेक बीमारियां भी घेरने लगती हैं,जिनमें ब्लडप्रेशर,अल्सर,मधुमेह आदि प्रमुख हैं।
  • क्रोध के वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार,जब किसी व्यक्ति को क्रोध आता है तो उसके शरीर में एड्रेनिल हाॅर्मोन बनता है,जो शरीर में कम से कम 18 घंटे तक बना रहता है इस दौरान हमारे सोचने-समझने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है।यह क्रोध न केवल हमारे मन को,बल्कि शरीर को भी नुकसान पहुंचाता है।गुस्सैल स्वभाव वाले व्यक्ति को हार्ट अटैक (दिल का दौरा) आने की आशंका तीन गुना बढ़ जाती है।प्रौढ़ावस्था में 6 गुना अधिक हो जाती है और वर्तमान स्थिति में यह ध्यान से देखें तो यह स्पष्ट होता है कि देश-दुनिया में ज्यादातर मौत होने का कारण हार्ट अटैक ही होता है।
  • क्रोध की वजह से कई तरह के नुकसान होते हैं,जैसे क्रोध के कारण हमारी निर्णय क्षमता न केवल कमजोर हो जाती है,बल्कि भ्रमित भी हो जाती है।क्रोध से हमारी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और कैरियर व रिश्तों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • जो लोग अपने क्रोध को प्रकट नहीं कर पाते और मन में ही रख लेते हैं,वे ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं।उन्हें शारीरिक व मानसिक बीमारियां होने की आशंका काफी बढ़ जाती है।लगातार क्रोध करने से चेहरा भी गुस्से के हाव-भाव को दर्शाने वाला,तनावग्रस्त,गुस्सैल व आक्रामक नजर आता है।
  • इस तरह क्रोध एक भावनात्मक अवस्था है,जिसमें तेज आक्रामकता या भयंकर क्रोध शामिल हैं।क्रोध कम या अधिक हो सकता है,लेकिन जब व्यक्ति नाराज होता है तो उसके दिल की धड़कनें व रक्तचाप,दोनों बढ़ जाते हैं और उसके शरीर में एड्रेनेलिन व नारएड्रेलिन हाॅर्मोनों का स्तर भी बदल जाता है।क्रोध के कारण बाह्य या आंतरिक,दोनों हो सकता है और यह क्रोध दूसरों पर या स्वयं पर भी प्रकट हो सकता है।
  • कुछ लोगों को बहुत ज्यादा क्रोध आता है,इसका एक कारण आनुवांशिक भी हो सकता है।पारिवारिक पृष्ठभूमि भी क्रोधी स्वभाव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।ऐसे लोग बहुत जल्दी क्रोधित होते हैं,जिनके परिवार के लोग अवरुद्ध मानसिकता वाले,परिस्थितियों को उलझाने वाले और भावनात्मक संवाद में कमजोर होते हैं।
  • हमारे जीवन में गुस्सा दिलाने व गुस्सा होने के कई कारण हो सकते हैं,लेकिन हमें अपने स्वभाव को नियंत्रित करना आना चाहिए तभी हम परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में ले सकते हैं और इससे होने वाले नुकसान को बचा सकते हैं।
  • यदि किसी व्यक्ति को क्रोध आता है तो तुरंत प्रतिक्रिया न दें,बल्कि क्रोध शांत होने के बाद अपनी भावनाएं व्यक्त करें; क्योंकि आवेश में दी गई प्रतिक्रिया से व्यक्ति का क्रोध ओर बढ़ सकता है।
  • जब स्वयं को क्रोध आए तो अपने आप को किसी दूसरे काम में व्यस्त कर लें और उस स्थान को छोड़कर थोड़ी देर के लिए अन्यत्र चले जाएं,फिर अपने क्रोध के कारणों के बारे में सोचें और मन को शांत करें।
  • क्रोध आने पर गहरी-गहरी लंबी साँसें लें और नकारात्मक व आक्रामक विचारों की रोकथाम करें।क्रोध को शांत करने का सबसे सरल तरीका यह भी है कि अपनी मांसपेशियों को शिथिल करें और गहरी साँस के माध्यम से अपनी आंतरिक भावनाओं व विचारों को बाहर निकाल कर शुद्ध सकारात्मक विचारों व भावनाओं से युक्त प्राणवायु को ग्रहण करें।ऐसे समय में प्रेरणाप्रद व्यक्तित्वों का ध्यान करना एवं उनकी शिक्षाओं का स्मरण करना लाभकारी हो सकता है,लेकिन ऐसा करने के लिए स्वयं के प्रति सजग होना आवश्यक है।
  • हमेशा अपनी उलझनें और परेशानियों के बारे में न सोचें; क्योंकि ऐसा करने से हमारा मस्तिष्क इन्हीं निषेधात्मक बातों के बारे में सोचता रहता है एवं जीवन में कुछ सार्थक कर पाना संभव नहीं हो पाता है।इसलिए अपनी उलझनों व परेशानियों के यथासंभव समाधान के बारे में सोचकर उपाय करने का प्रयास करें।इसके साथ ही अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय करें; क्योंकि अच्छे विचारों को पढ़ने से वे हमारे चिंतन में घूमते हैं और हमारी मानसिक स्थिति को सुदृढ़ व शांत बनाए रखते हैं।
  • ऐसा संभव नहीं है कि मनुष्य को कभी क्रोध न आए,पर ऐसे उपायों को जरूर अपनाया जा सकता है जिनसे मन में नकारात्मक भावनाएं न उत्पन्न हों।क्रोध को शांत रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने व्यवहार के प्रति सजग रहे,अपने चिंतन को संतुलित बनाए रखने के लिए अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करें और अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत बनाए रखने के लिए सदा प्रेरणाप्रद व्यक्तित्वों के जीवन से शिक्षा ग्रहण करें।यदि हम इन उपायों को अपनाए रहेंगे तो हमारा क्रोध सदा नियंत्रित रहेगा एवं हमारा जीवन सुखी व संतुलित रहेगा।

5.निराशा या तनाव की स्थिति (A State of Frustration or Stress):

  • निराश होना मानव का स्वभाव है।जब हमें कोई बुरी खबर मिलती है तो निराश हो जाते हैं।जब हमारा कोई नुकसान हो जाता है तो हम दुःखी हो जाते हैं और मन में बुरे विचार आने लगते हैं,हम तनावग्रस्त हो जाते हैं।कई बार हम इतने अधिक तनावग्रस्त होते हैं कि कुछ गलत कर बैठते हैं इसलिए जब निराश हों या तनाव में हो तो अपने आपको समय दें।
  • यह बात स्वीकार करें कि जीवन में सब कुछ ठीक नहीं चल सकता,उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं।अपनी निराशा में किसी से रिश्ता न तोड़े।तनाव व निराशा में कोई भी निर्णय न लें।अपना ध्यान उस समस्या से हटाएँ और ऐसा कुछ करें जिससे आपकी मानसिक थकान दूर हो।आपको बहुत अच्छा महसूस होगा।ऐसा उपाय सोचें जिससे निराशा के अंधकार से निकलकर आशा का दीप जलाया जा सके जो आपके जीवन को रोशन कर दे।
  • चाहे अच्छा हो या बुरा,समय बीत जाता है,इसलिए हमें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए अपनी योग्यता को प्रदर्शित करना चाहिए और अपने गुणों का लाभ उठाना चाहिए।

6.अत्यधिक प्रसन्नता का दृष्टांत (A Parable of Great Happiness):

  • एक विद्यार्थी ने रिवॉर्ड प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए कठिन परिश्रम किया।परीक्षा प्रश्न-पत्र भी बहुत अच्छा हुआ।परीक्षा देने के बाद वह अपने अध्ययन कक्ष में बैठा हुआ था,तभी एक मित्र उसके पास आया जो एक गैर सरकारी संस्था (NGO) के लिए भी कार्य करता था।वह डोनेशन के लिए ₹2000 मांग रहा था।
  • तभी विद्यार्थी के पास सूचना आयी कि वह रिवॉर्ड प्रतियोगिता परीक्षा में अव्वल आया है।उसके पास ईमेल भी आ गई और एक पत्र के साथ ₹30000 का चेक लगा हुआ था।वह विद्यार्थी पढ़ते ही खुशी से उछल पड़ा।विद्यार्थी ने अपने मित्र को बताया कि उसने इस परीक्षा के लिए कितना कठिन परिश्रम किया था तब जाकर उसे यह रिवॉर्ड मिला है।
  • फिर वह विद्यार्थी कहता है कि तुम ₹2000 डोनेशन के लिए मांग रहे थे न,तुम मेरे लिए बहुत भाग्यशाली हो।यह कहकर उसने अपने मित्र को ₹5000 का चेक दे दिया।आप इस व्यवहार पर गौर करें।यह संयमित व्यवहार नहीं है।ऐसा व्यवहार उस विद्यार्थी के लिए बहुत घातक हो सकता है।रिवॉर्ड का चेक लेकर वह विद्यार्थी अपनी मां के पास जाता है और खुश होकर अपनी मां को दिखाता है तो उसे भी बहुत खुशी होती है।
  • परंतु माँ को जब पता चलता है कि उस विद्यार्थी ने ₹5000 बिना सोचे-समझे दान कर दिए हैं तो उसे (माँ को) आश्चर्य भी होता है और दुःख भी उसने इतनी बड़ी राशि बिना सोचे-समझे कैसे दान कर दी।एक दिन उस विद्यार्थी को भी यह एहसास होता है कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में युवाओं के लिए भावनाओं पर नियंत्रण रखने की 5 टिप्स (5 Tips for Youth to Control Emotions),भावनाओं पर नियन्त्रण कैसे रखें? (How to Control Emotions?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:7 Tips to Stay Mentally Strong

7.कमजोर दिल का विद्यार्थी (हास्य-व्यंग्य) (A Student with a Weak Heart) (Humour-Satire):

  • एक कमजोर दिल के विद्यार्थी की पुस्तकें गुम हो गई।वह बड़ा परेशान था।उसने अपने बैग के अलावा अन्य सभी छात्र-छात्राओं के बैग की तलाशी ले ली लेकिन अपने बैग को हाथ नहीं लगाया।
  • उसके दोस्त ने पूछा:तुम अपने बैग में क्यों नहीं देख रहे हो? शायद देखो पुस्तकें इसी में हो।
  • वह विद्यार्थी बोला:डरता हूं अगर मेरे बैग में भी पुस्तकें नहीं मिली तो कहीं मेरा हार्टफैल न हो जाए।

8.युवाओं के लिए भावनाओं पर नियंत्रण रखने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips for Youth to Control Emotions),भावनाओं पर नियन्त्रण कैसे रखें? (How to Control Emotions?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या भावनाओं का भोजन पर भी प्रभाव पड़ता है? (Do Emotions Have an Impact on Food?):

उत्तर:खाद्य पदार्थों पर भी भावनाओं का प्रभाव पड़ता है और भावनाओं से दूषित अन्न खाने वाले के मन में भी विकार उत्पन्न हो जाते हैं।पौष्टिक तथा संतुलित भोजन के बारे में जो नियम है वह केवल शरीर से संबंध रखते हैं।परंतु भोजन का आध्यात्मिक महत्त्व भी है।तामसिक भोजन से तमोगुणी प्रवृत्तियां उत्पन्न होती है।इसके अलावा बेईमानी की कमाई का अन्न भी चित्त को विचलित करता है।मुनाफाखोरी,चोर बाजारी,बेईमानी वगैरह करने वाले लोगों का अन्न आध्यात्मिक दृष्टि से दूषित होता है।

प्रश्न:2.क्या भावना से रोग पैदा होते हैं? (Does Emotion Cause Diseases?):

उत्तर:कुत्सित मनोभाव अर्थात् बुरे विचार मनुष्य के समूचे शरीर-तंत्र पर प्रभाव डालते हैं और नाना प्रकार के रोगों को जन्म देते हैं।आजकल का व्यापक हृदय रोग मानसिक तनाव का ही परिणाम माना जाता है।मन और शरीर के इस संबंध को दुनिया के बड़े-बड़े डॉक्टर भी बहुत महत्त्वपूर्ण कहने लगे हैं।इस दिशा में किए गए प्रयोग इसकी पुष्टि कर रहे हैं।

प्रश्न:3.क्रोध का क्या प्रभाव पड़ता है? (What Effect Does Anger Have?):

उत्तर:(1.) क्रोध को नियंत्रित करना उस जलते हुए अंगारे को अपनी मुट्ठी में रखने जैसा है जिससे आप दूसरों पर फेंकना चाहते हैं,परंतु क्रोध को नियंत्रण में रखने के लिए आपको स्वयं ही जलना पड़ता है।
(2.)जिस क्रोध से अपने कुटुंबी,अपने इष्ट मित्र अथवा दूसरों का आचरण सुधरे,भगवान में पूज्य बुद्धि उत्पन्न हो,दया,उदारता और परोपकार में प्रवृत्ति हो,वह क्रोध बुरा नहीं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा युवाओं के लिए भावनाओं पर नियंत्रण रखने की 5 टिप्स (5 Tips for Youth to Control Emotions),भावनाओं पर नियन्त्रण कैसे रखें? (How to Control Emotions?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *