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4 Tips to Remove Inferiority Complex

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1.हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Remove Inferiority Complex),गणित को हल करने में बाधक निराशा और हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Overcome Frustration and Inferiority Complex Hindering Solving Mathematics):

  • हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Remove Inferiority Complex) के आधार पर आपमें आत्मविश्वास आएगा।आप हीन भावना व निराशा को दूर करने में सक्षम हो सकेंगे।हीन भावना के कारण छात्र-छात्राएं संकोची स्वभाव के हो जाते हैं।शिक्षक,मित्रों तथा परिवार के सदस्यों से कट जाते हैं।हीन भावना छात्र-छात्राओं को बिल्कुल निष्क्रिय कर देती है।वे अपने आप को कमतर समझने लगते हैं।जिस प्रकार लकवा शरीर की हालत बिगाड़ देता है उसी प्रकार हीन भावना छात्र-छात्राओं की स्थिति को बिगाड़ देता है।लकवा और हीन भावना में फर्क इतना ही है कि लकवा शरीर की स्थिति को बिगाड़ता है जबकि हीन भावना मानसिक स्थिति को दुर्बल कर देता है।
  • छात्र-छात्राओं में हीन भावना से ग्रसित होने के कई कारण होते हैं।इसमें जाने-अनजाने में माता-पिता,शिक्षक,मित्र तथा स्वयं छात्र-छात्राएं जिम्मेदार होते हैं।
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2.माता-पिता द्वारा आलोचना का प्रभाव (The impact of criticism by parents):

  • आधुनिक युग प्रतियोगिता का युग है।इस प्रतियोगिता के युग में माता-पिता छात्र-छात्रा की तुलना दूसरे छात्र-छात्रा से करते हैं।वे कहते हैं कि उस छात्र ने गणित में अच्छे अंक प्राप्त किए हैं जबकि वह कोचिंग भी नहीं करता है।तुम्हें कोचिंग कराने के बावजूद गणित में फिसड्डी हो।फलां छात्र ने 90% से अधिक अंक प्राप्त किए हैं जबकि तुमने मुश्किल से परीक्षा उत्तीर्ण की है।
  • तुम बिल्कुल बुद्धू हो,निकम्मे हो,तुम पढ़ने का केवल नाटक करते हो। वास्तव में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं अच्छे अंक अर्जित करते हैं।इस प्रकार छात्र-छात्रा को खरी-खोटी सुनाने,उसकी भर्त्सना करने से बालक-बालिका अपने आपको हीन समझने लगता है।हीन भावना से बालक में कई अन्य मानसिक विकृतियां पैदा हो जाती है जैसे संकोची स्वभाव होना,क्रोध,असहिष्णुता,उद्दंडता इत्यादि हीन भावना से ग्रसित बालक-बालिकाओं के लक्षण हैं।
  • बालक-बालिका अद्वितीय होता है इसलिए बालक-बालिका की तुलना दूसरे बालक-बालिकाओं से करके अभिभावक गलती करते हैं।वे तुलना करते हुए दिखाते हैं कि हमारा बालक पिछड़ा हुआ है,सक्षम नहीं है।ऐसा करके वे युवक-युवती के अहम् को चोट पहुंचाते हैं।वह समझने लगता है कि केवल बेटा-बेटी होने की वजह से वे उसको सहन कर रहे हैं,उसका लालन-पालन कर रहे हैं और शिक्षा दिला रहे हैं,भोजन व कपड़ा दे रहे हैं।धीरे-धीरे बालक बालिका में अपराध बोध विकसित हो जाता है।कई बालक-बालिका विद्रोही हो जाते हैं तो कई बालक संकोची,गुमसुम रहने लगते हैं।इस प्रकार हीन भावना से बालक-बालिकाएं अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं।जो विद्रोही स्वभाव के होते हैं वे अपराध,बुरे कार्यों, गलत कार्यों,गुंडागर्दी,लड़ाई झगड़ा करने की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
  • माता-पिता को चाहिए कि बालक-बालिका की तुलना दूसरे बालक-बालिका से बिल्कुल भी न करें। यदि गणित अथवा अन्य विषयों में या परीक्षा में कम अंकों से उत्तीर्ण भी हुआ है तो उसको सांत्वना देने की जरूरत होती है।उन्हें बालक-बालिकाओं को ओर अधिक अंक अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।यदि उसने पिछले वर्ष के बजाय कम अंक अर्जित किए हैं तो कमजोरी का पता लगाकर उसको दूर करना चाहिए।

3.छात्र-छात्रा द्वारा स्वयं की दूसरों से तुलना करना (Comparing themselves to others by students):

  • छात्र-छात्राएं स्वयं भी दूसरे बालक-बालिकाओं से तुलना करने लगते हैं।जैसे वह छात्र तो परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करता है,वह कुशाग्र बुद्धि वाला है,वह बालक तेजस्वी है।वह बालक गणित के सवालों को तत्काल हल कर देता है।उस बालक की तो शिक्षक भी प्रशंसा करते हैं।मेरी प्रशंसा शिक्षक कभी नहीं करते हैं।इस प्रकार धीरे-धीरे वह अपने आपको कमतर समझने लगता है।उसमें आत्मविश्वास की कमी होने लगती है।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं अपने आपको महत्त्वपूर्ण बताने के लिए डींग हाँकने लगते हैं।अपने परिवार को प्रतिष्ठित बताते हैं तो कभी अपनी धन-संपदा का प्रदर्शन करते हैं।कभी कहते हैं फला मंत्री उनके निकट के रिश्तेदार हैं।इस प्रकार हर कहीं अपने आपको हर मामले में श्रेष्ठ बताने लगते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं अपनी शेखी बघारने लगते हैं।इसे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना कहते हैं।यह अपनी हीन भावना को छिपाने का एक तरीका है।
  • हीन भावना के कारण छात्र-छात्राओं का व्यवहार उच्छृंखल,अव्यावहारिक एवं असामाजिक बनता चला जाता है।ऐसे छात्र-छात्राएं कर्मठ नहीं होते हैं बल्कि अपने जीवन को निष्क्रिय बना लेते हैं।इस तरह के छात्र-छात्राओं को अन्य छात्र-छात्राएं पहचान लेते हैं और उनकी नजरों से गिर जाते हैं। हीन भावना से ग्रस्त छात्र-छात्राएं तुनकमिजाज,वाचाल,कायर,भयभीत,निराश,हताश होते जाते हैं।उनसे सहिष्णुता,विनम्रता,आत्मविश्वास,उदारता,कर्मठता जैसे गुण दूर होते चले जाते हैं।
  • माता-पिता,अभिभावक,शिक्षक तथा संबंधी ऐसे छात्र-छात्राओं को कहते हैं कि कुछ श्रेष्ठ करके दिखाओ,कोई महान कार्य करके दिखाओ,जीवन में नई ऊंचाइयां हासिल करके दिखाओ।जब छात्र-छात्राएं ऐसा करके नहीं दिखाते हैं तो हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं।
  • ऐसे छात्र-छात्राओं को हीन भावना से मुक्त होने के लिए कुछ उपाय करने होंगे।सबसे पहले आप जो भी है,जैसे भी हैं उसको स्वीकार करना सीखे।यदि गणित में कमजोर है,पढ़ाई में कमजोर है तो अपनी कमजोरी को स्वीकार करें।इसके पश्चात आगे बढ़ने के लिए कर्मठता को अपने जीवन का अंग बनाएं।हिमालय पर्वत पर चढ़ने के लिए विभिन्न कठिनाइयों,समस्याओं,दुर्गम पथों को पार करना ही पड़ता है।विद्या प्राप्त करने के लिए कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है।हिमालय पर्वत की विशालता,जटिलताओं को देखकर पर्वतारोही अपने आपको हीन समझते तो हिमालय पर्वत की चोटी एवरेस्ट पर विजय का स्वाद कभी नहीं चख पाते।
  • तीसरा उपाय है कि अपनी तुलना अन्य छात्र-छात्राओं से बिल्कुल न करें।हर छात्र-छात्रा अद्वितीय होता है।हर छात्र में कोई न कोई विशिष्ट गुण होता है।कोई छात्र पढ़ने में होशियार है,कोई छात्र खेल में पारंगत है तो कोई छात्र भजन कीर्तन में पारंगत है,कोई छात्र-छात्राएं नृत्य (डांस) में पारंगत है।इस प्रकार हर छात्र-छात्रा में कोई न कोई प्रतिभा होती है।अपनी उस प्रतिभा को पहचाने और उसे तराशने,निखारने तथा उभारने का कार्य करें। चौथा उपाय कि रोजाना ध्यान-योग करें और अपने अंतःकरण में झांकने की कोशिश करें।अपने आपको पहचानने की कोशिश करें।दूसरों का मूल्यांकन करने के बजाय स्वयं का मूल्यांकन करने की कोशिश करें।ध्यान और योग से धीरे-धीरे आप हीन भावना से ऊबर जाएंगे।अपने आपको पहचानने लगेंगे।पांचवा उपाय है कि दूसरों का दोष-दर्शन,कमजोरियों को देखना बंद करें।दूसरों की निंदा करना बंद करें क्योंकि दूसरों की निंदा करना,दोष दर्शन करना स्वयं छात्र-छात्रा के लिए ही अहितकर होता है।

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4.वरिष्ठजन छात्र-छात्राओं में हीन भावना को दूर करें (Remove inferiority complex among students by seniors):

  • छात्र-छात्राएं अचानक कोई भी खटका होता है तो डरने लगते हैं।कुछ बातें ऐसी होती है जिनसे भय पैदा हो जाता है।जैसे आज-पड़ोस में आग लगने पर छात्र छात्राएं भयभीत हो जाते हैं।किसी घर में चोर लुटेरे घुस जाते हैं तो बालक-बालिकाएं डर जाते है और उनकी घिघी बँध जाती है।इस प्रकार की जीवन में घटनाएं घटने लगती है तो भय छात्र-छात्राओं के जीवन का अंग बन जाता है।भय छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व में जंग लगा देता है।इस प्रकार की घटनाएं छात्र-छात्राओं के दिलों-दिमाग पर अंकित हो जाती है कि वे कायर,डरपोक,दब्बू किस्म के बन जाते हैं।इसलिए जब भी इस प्रकार की घटनाएं घटित हो तो बालक-बालिकाओं को आश्वस्त करना चाहिए।उनके मन से भय निकालने के लिए कथा-कहानियों के जरिए दूर करना चाहिए।
  • ऐसी भयभीत करने वाली घटनाएं शिक्षा संस्थानों में भी हो सकती है और घर व समाज में भी हो सकती है।अतः शिक्षकों,माता-पिता,अभिभावकों तथा वरिष्ठजनों को चाहिए कि वे छात्र-छात्राओं को साहसी व्यक्तियों के संस्मरण सुनाएं,साहसी और खतरों का डटकर सामना करने वाले व्यक्तियों की जीवनियाँ पढ़ने के लिए दें।बड़ों को भूलकर भी बालकों में डर व भय पैदा करने की कोशिश न करें।
  • बालक-बालिकाएं डिग्री हासिल कर लेते हैं।पढ़ाई समाप्त कर लेते हैं।अर्थात् एमए,बीए,एमएससी,बीएससी इत्यादि का कोर्स करने के बाद माता-पिता तत्काल यह चाहते हैं कि उनका बेटा-बेटी कमाने लग जाए।आजकल की शिक्षा पद्धति सैद्धान्तिक शिक्षा है जिसमें स्किल का निर्माण नहीं किया जाता है।इसलिए माता-पिता को अपने बेटे-बेटियों से तत्काल कमाऊपूत बनने की आशा त्याग देनी चाहिए।उन्हें सहारा देकर कोई काम धंधा करने में सहयोग करें।उनके रूचि के क्षेत्र में आगे बढ़ाने का प्रयास करें।यदि माता-पिता ऐसा नहीं करेंगे तो बालक-बालिकाएं रोजाना के ताने, उलाहना और भर्त्सना सुनकर हीन भावना से ग्रस्त हो जाएंगे।ऐसे बालक-बालिकाएं धन कमाने के लिए गलत रास्ते,गलत तरीके अपनाने को विवश हो जाते हैं।जैसे चोरी करना,लूट-खसोट करना, अपहरण करना इत्यादि घटनाएं शिक्षित बेरोजगार युवक करते देखे जाते हैं।
  • युवतियाँ पैसा कमाने के लिए कालगर्ल बन जाती है।वरिष्ठजनों को चाहिए कि युवक-युवतियों को पढ़ा लिखाकर जब इतना धन खर्च किया है तथा धैर्य रखा है तो उन्हें किसी रोजगार के काबिल बनाने तक धैर्य रखना चाहिए।

5.बालक-बालिकाओं से ओछा बर्ताव न करें (Don’t treat boys and girls too much):

  • कोई-कोई माता-पिता अपने बच्चों के सामने किसी बात को न कहकर आपस में कानाफूसी करते हैं। कानाफूसी करते हुए देखने पर बालक-बालिकाएं यह समझते हैं कि कोई बात है जो उनसे छुपाई जा रही है। वे ऐसी बातों को जानने की कोशिश करने लगते हैं।उनके मन में यह बात पैदा हो जाती है कि माता-पिता का उन पर विश्वास नहीं है।यह ठीक बात है कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जो बालक-बालिकाओं के सामने नहीं की जा सकती परंतु ऐसी बातों को उनके सामने कानाफूसी करने से बचें।एकान्त देखकर अपनी बातों को कहनी-सुननी चाहिए।
  • कार्यालय में भी कई अधिकारी कुछ कर्मचारियों के साथ विशेष व्यवहार करते हैं।वे रहस्य की बातें अपने विश्वासपात्र कर्मचारियों को ही बताते हैं।ऐसा करने से अन्य कर्मचारियों में हीन भावना आ जाती है।फिर वे कर्मचारी अधिकारी से बदला लेने के लिए कोई ना कोई मौका ढूंढते रहते हैं।
  • अतः अधिकारी रहस्य की कुछ बातें अपने तक सीमित रखते हुए अथवा अपने विश्वासपात्र को बताते हुए अन्य कर्मचारियों का विश्वास अर्जित करते रहना चाहिए।
  • अपने अधीनस्थ कर्मचारियों/अधिकारियों पर रौब, धौंस,डराना,धमकाना नहीं चाहिए।हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अद्वितीय होता है तथा उसी के अनुसार जीना चाहता है।रौब,धौंस,डराना,धमकाने से कर्मचारियों में हीन भावना घर कर जाती है।ऐसे कर्मचारी अधिकारी की भर्त्सना करते हैं तथा उसका सम्मान नहीं करते हैं।
  • छात्र-छात्राओं पर भी शिक्षक रौब, धौंस,डराने, धमकाने का कार्य करते हैं।ऐसे शिक्षक से छात्र-छात्राएं आतंकित रहते हैं।वे शिक्षक से कोई सवाल,जिज्ञासा अथवा समस्याओं को नहीं पूछते हैं।छात्र-छात्राएं हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं। कुछ छात्र-छात्राएं विद्रोही हो जाते हैं।ऐसी कक्षा का वातावरण अशांत हो जाता है।जो छात्र-छात्राएं निरंकुश,उद्दण्ड,विद्रोही जैसे अन्य अवगुणों से ग्रसित होते हैं उसमें शिक्षक,माता-पिता तथा वरिष्ठ व्यक्ति कहीं न कहीं जिम्मेदार होते हैं।वरिष्ठजन का यह कर्त्तव्य है वे पूरी सजगता,सौम्य तथा मधुर व्यवहार करें जिससे छात्र-छात्राएं गलत रास्ते पर न जाएं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Remove Inferiority Complex),गणित को हल करने में बाधक निराशा और हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Overcome Frustration and Inferiority Complex Hindering Solving Mathematics) के बारे में बताया गया है।

6.छात्र छात्राओं को डराना-धमकाना (हास्य-व्यंग्य) (To Intimidate Students): (Humour-Satire):

  • जज (गणित अध्यापक से):सुना है तुम छात्र-छात्राओं को बहुत वर्षों से डरा-धमकाकर चुप कराते हो।उन्हें कोई सवाल वगैरह समझाते नहीं हो।
  • गणित अध्यापक (जज से):माई लार्ड।
  • जज (गणित अध्यापक से):सफाई देने की जरूरत नहीं है।तुम सिर्फ यह बताओ कि तुमने यह चमत्कार किया कैसे? यह सब कुछ करने के बावजूद छात्र-छात्राएं उत्तीर्ण हो गए।

7.हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Remove Inferiority Complex),गणित को हल करने में बाधक निराशा और हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Overcome Frustration and Inferiority Complex Hindering Solving Mathematics) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.छात्र-छात्राएं निराश क्यों होते हैं? (Why students are disappointed?):

उत्तर:छात्र-छात्राएं परीक्षा में जब असफल हो जाते हैं अथवा गणित के सवालों को बहुत प्रयास करने पर भी हल नहीं कर पाते हैं तो वे निराश हो जाते हैं। कई छात्र-छात्राएं को तो कदम-कदम पर असफलता मिलती है तो हताश और निराश होकर आत्महत्या जैसे कृत्य कर बैठते हैं।निराशा में छात्र-छात्राओं को जीवन निरर्थक लगने लगता है। निराशा के गर्त में गिरने पर विद्यार्थी को अपना लक्ष्य दिखाई नहीं देता है।जीवन का लक्ष्य उसकी आंखों से धूमिल हो जाता है।निराशा और हीन भावना में चोली दामन का साथ है।हीन भावना से ग्रस्त छात्र-छात्राएं निराश हो जाते हैं।

प्रश्न:2.क्या वरिष्ठजन युवकों को गलती पर न रोकें? (Don’t stop seniors from making mistakes?):

उत्तर:वरिष्ठजनों को अवसर के अनुकूल तथा संतुलित भाषा में समझाना चाहिए।अनावश्यक रूप से प्रशंसा,लाड प्यार से भी बालक-बालिकाएं बिगड़ जाते हैं।सबके सामने भर्त्सना,निंदा,आलोचना करने से वे विद्रोही हो जाते हैं।किसी भी बात को ठीक समय पर,ठीक तरह से प्रशंसा करनी चाहिए।गलती करता है तो उसको अकेले में समझाना चाहिए तथा उसे गलती करने के दुष्परिणाम बताना चाहिए।

प्रश्न:3.युवतियाँ कब बिगड़ती हैं? (When do young women get worse?):

उत्तर:युवतियाँ यदि सुन्दर होती हैं और उनकी शारीरिक सौन्दर्य की हर कोई प्रशंसा करने लगता है तो वह हवा में उड़ने लगती है।वह अपने आपको बहुत आँकने लगती है।यदि वे इस तरह करती है तो उन्हें घमंड हो जाता है तथा अभिभावक उन्हें डाँटते-फटकारते हैं तो उनमें हीन भावना आ जाती है।वस्तुतः लड़कियों के शारीरिक सौन्दर्य की बात न करके उनके सामने योग्यता की प्रशंसा करनी चाहिए।उन्हें समझाना कि शारीरिक सौन्दर्य अस्थायी है।असली सुन्दरता तथा पहचान अच्छा काम करने से, सद्गुणों से,अच्छी शिक्षा अर्जित करने से हासिल होती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Remove Inferiority Complex),गणित को हल करने में बाधक निराशा और हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Overcome Frustration and Inferiority Complex Hindering Solving Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Tips to Remove Inferiority Complex

हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स
(4 Tips to Remove Inferiority Complex)

4 Tips to Remove Inferiority Complex

हीन भावना को दूर करने के 4 टिप्स (4 Tips to Remove Inferiority Complex) के
आधार पर आपमें आत्मविश्वास आएगा।आप हीन भावना व निराशा को दूर करने में सक्षम हो सकेंगे।
हीन भावना के कारण छात्र-छात्राएं संकोची स्वभाव के हो जाते हैं।
शिक्षक,मित्रों तथा परिवार के सदस्यों से कट जाते हैं।

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