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Students Should Use Wisdom in Practice

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1.छात्र-छात्राएं ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करें (Students Should Use Wisdom in Practice),पुस्तकीय ज्ञान को आचरण में उतारने की 3 टिप्स (3 Tips to Put Bookish Knowledge in Practice):

  • छात्र-छात्राएं ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करें (Students Should Use Wisdom in Practice) तभी विद्या तथा ज्ञान प्राप्त करना सार्थक होगा।ज्ञान प्राप्ति की श्रीमद्भगवत गीता में तीन शर्ते बताई गई है।पहली शर्त है इंद्रियों को वश में रखना,जो विद्यार्थी भौतिक सुख-सुविधाओं को सब कुछ समझते हैं उनकी बुद्धि चंचल रहती है। क्योंकि विषयों का कोई अंत नहीं है,एक विषय का भोग करते हैं और वह नीरस लगने लगता है तो दूसरे विषय को भोगने की इच्छा होती है।अतः इन्द्रियों को वश में रखना आवश्यक है।दूसरी शर्त है समर्पण भाव रखना अर्थात् काम,क्रोधादि विकारों से मुक्त रहना।जो विद्यार्थी अपने आपको विकारों से मुक्त रखता है वही ज्ञान ग्रहण कर सकता है।खाली पात्र को ही भरा जा सकता है।जो पात्र पहले से ही भरा हुआ हो उसे नहीं भरा जा सकता है।तीसरी शर्त है श्रद्धावान होना अर्थात् सन्देह रहित आस्था रखना।विद्यार्थी गुरु वचनों पर,गुरु द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान पर आस्था रखें,अपने आप पर आस्था रखे,पुस्तकों पर आस्था रखे तभी उसे ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
    ज्ञान प्राप्त होने पर ही विद्यार्थी सांसारिक कष्टों,दुःखों,परेशानियों,गणित विषय और अन्य विषयों में आने वाली कठिनाइयों से मुक्त हो सकता है।
  • मनुस्मृति में कहा है कि मूर्खों से पुस्तकें पढ़नेवाला श्रेष्ठ है,पुस्तकें पढ़ने वाले से पुस्तकीय ज्ञान को धारण करने वाला (स्मरण) श्रेष्ठ है,पुस्तकीय ज्ञान को धारण करने वाले से ज्ञानी (पुस्तकों को समझने वाला) श्रेष्ठ है और ज्ञानियों से आचरण करने वाला,अभ्यास करने वाला श्रेष्ठ है।
  • गणित के ज्ञान को आचरण में उतारने से तात्पर्य है कि गणित के ज्ञान का दैनिक व व्यावहारिक जीवन में उपयोग करना।गणित का कुछ ज्ञान व्यावहारिक महत्त्व का है जैसे बाजार से हम पुस्तकें या अन्य कोई वस्तु खरीदते हैं तो गणित के ज्ञान के बिना पुस्तक का मूल्य तथा छूट की गणना नहीं कर सकते हैं।दूध वाले का हिसाब रखते समय,गाड़ी या रेल में यात्रा करते हुए टिकट खरीदते समय इत्यादि अनेक काम गणित के ज्ञान के आधार पर करते हैं।परंतु गणित के उच्च सिद्धांतों का व्यावहारिक जीवन में कोई महत्त्व नहीं है।उच्च सिद्धांतों को समझना ही पर्याप्त नहीं है।उसका अभ्यास करने से ही उसको ठीक से समझा जा सकता है।गणित के उच्च सिद्धांतों को पढ़ना इसलिए आवश्यक है कि उससे छात्र-छात्राओं में एक विशेष प्रकार का चिंतन-मनन,तर्क करने की योग्यता का विकास होता है जो अन्य विषयों से नहीं हो सकता है।उपर्युक्त तीनों शर्तों के अलावा विद्यार्थी में एक चीज ओर होनी चाहिए वह है जिज्ञासा का होना।जिज्ञासा अर्थात् जानने की इच्छा का होना।जिज्ञासा ही नहीं होगी तो ज्ञान प्राप्त करना असंभव है।जैसे बबूल के पेड़ के आम नहीं लग सकता है,रेत में तेल नहीं निकल सकता है।इसी प्रकार जिज्ञासा के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता है।
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2.पुस्तकीय ज्ञान को सद्ज्ञान में बदलें (Transform Bookish Knowledge into Good Knowledge):

  • प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने वाले अभ्यर्थी,शैक्षिक कक्षाओं में परीक्षा देने वाले छात्र-छात्राएं पुस्तकीय ज्ञान अर्जित करते जाते हैं। पुस्तकीय ज्ञान को मस्तिष्क में संचित करते जाते हैं।इसके अलावा अखबार,इण्टरनेट,सोशल मीडिया,यूट्यूब,चिन्तकों,धर्मोपदेशकों,शिक्षकों तथा अन्य लोगों से सामान्य ज्ञान प्राप्त करते हैं।यह ज्ञान प्राप्त करने,अध्ययन करने का उनका कोई न कोई लक्ष्य होता है।
  • अध्ययन करते-करते तथा अन्य स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करते हुए छात्र-छात्राओं के मनन-चिंतन,तर्कशक्ति तथा सृजनात्मकता का विकास हो जाता है।ऐसे छात्र-छात्राएं समाज व देश के लिए कुछ योगदान देते हैं।
  • छात्र-छात्राएं जन्म से ही ज्ञान ग्रहण करते जाते हैं।उस समय ज्ञान रूपी वृक्ष का बीज होता है।जो छात्र छात्राएं जीवनपर्यंत गणित अथवा अन्य विषयों का ज्ञान,व्यावहारिक ज्ञान,सांसारिक कर्त्तव्यों का निर्वाह करने के लिए ज्ञान प्राप्त करने में संलग्न रहते हैं।ऐसे ही छात्र-छात्राओं का पृथ्वी पर जन्म लेना सार्थक होता है।
  • इस प्रकार के छात्र-छात्राओं के जीवन में अनेक कष्ट,विपत्तियाँ,परेशानियां,समस्याएं तथा रुकावटें आती हैं परंतु वे सहर्ष उनका सामना करते हैं और समाधान करते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।वे यह समझ लेते हैं कि ज्ञान प्राप्ति में यह सब विघ्न,बाधाएं आएंगी,इसमें उन्हें आनंद की प्राप्ति होती है।ज्ञान प्राप्ति का मार्ग अग्नि परीक्षा की तरह होता है।
  • ज्ञान प्राप्ति का मार्ग किसी पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने के समान होता है।इस चोटी पर चढ़ने के लिए उन्हें टेढ़ा-मेढा मार्ग तथा कांटेदार झाड़ियों को पार करना होता है।
  • जो सद्ज्ञान,सच्चे ज्ञान को प्राप्त करते जाते हैं उन्हें अपना सर्वस्व बलिदान भी करना पड़ता है।
  • अधिकांश अभ्यर्थी तथा छात्र-छात्राएं सामान्य ज्ञान तथा अन्य सूचनाओं से अपने मस्तिष्क को ठूँस-ठूँस कर भरते रहते हैं।वे इसके माध्यम से सत्य की अनुभूति नहीं कर पाते हैं और न उसके अनुसार जीवन को ढ़ालते जाते है।वे विद्वान तो हो जाते हैं परंतु ज्ञानी व आत्मज्ञानी नहीं बन पाते हैं।परंतु ऐसी विद्वता न समाज के काम आती है और न देश के काम आती है।ऐसे छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति उस गधे के समान होते हैं जिसकी पीठ पर पुस्तकों का बोझा लदा हुआ रहता है।विद्वान बन जाना और उपदेश देना एक बात है और ज्ञान की अनुभूति करना तथा उसके अनुसार आचरण करना दूसरी बात है।
  • प्रतियोगिता परीक्षाओं में कई अभ्यर्थी ऐसे होते हैं जो लिखित परीक्षा में तो अच्छे अंक प्राप्त कर लेते हैं परंतु व्यावहारिक ज्ञान से शून्य होते हैं।उदाहरणार्थ वे साक्षात्कार में घुसते हैं तो न तो अभिवादन करते हैं और न ही उनसे तर्क-वितर्क करने से बचते हैं।

3.ज्ञान से अनुभव श्रेष्ठ है (Experience is Superior to Knowledge):

  • उपयुक्त आर्टिकल में वर्णित किया जा चुका है कि ज्ञानी (ज्ञान को समझने वाला) से आचरण में,ज्ञान को अमल में लाने वाला श्रेष्ठ होता है।क्योंकि अनुभवी व्यक्ति के पास अनुभव सिद्ध ज्ञान होता है।उदाहरणार्थ किसी गणित के छात्र-छात्रा ने गणित का कोई सवाल समझ लिया है लेकिन किसी अन्य छात्र-छात्रा ने सवाल को समझ कर नोटबुक में हल भी कर लिया है,उसका अभ्यास भी कर लिया है।स्पष्ट है कि नोटबुक में हल करने वाला सवाल को बखूबी हल कर सकता है।
  • छात्र-छात्राओं को चाहिए कि जब भी पुस्तकों से अथवा अन्य स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करें तो उन्हें अपना दिमाग खुला,पूर्वाग्रहों से मुक्त और विस्तृत रखना चाहिए जिससे नवीन ज्ञान उनके आचरण का अंग बन सके।अनुभव सिद्ध ज्ञान के बल पर अभ्यर्थी साक्षात्कार का सामना पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कर सकता हैं।वह ऐसे-ऐसे प्रश्नों के उत्तर दे सकता हैं जो न तो कभी सुने थे और न ही कभी हल किए थे,यही कमाल है अनुभव सिद्ध ज्ञान का।वस्तुतः पुस्तकों अथवा पुस्तकालयों में जो ज्ञान होता है उसे जीवन्त और सक्रिय छात्र-छात्राएं ही करता है वरना वह पुस्तकों व पुस्तकालयों में सुप्त ही पड़ा रहता है।
  • पुस्तकों का अध्ययन करते समय छात्र-छात्राओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि कौन सा ज्ञान उपयोगी है कौनसा ज्ञान अनुपयोगी है,कौनसा ज्ञान आचरण में उतारने लायक है,कौनसा ज्ञान व्यावहारिक है तथा कौनसा ज्ञान उनकी सांसारिक समस्याओं का समाधान करने में सहायक हो सकता है।ऐसा करने पर ही छात्र-छात्राओं का ज्ञान अनुभव सिद्ध हो सकता है।

4.अनुभव सिद्ध ज्ञान का दृष्टांत (Parable of Experience Proven Knowledge):

  • ज्ञान कई प्रकार का होता है।भौतिक ज्ञान,व्यावहारिक ज्ञान,आध्यात्मिक,पुस्तकीय ज्ञान इत्यादि।परंतु इन सबमें अनुभव सिद्ध ज्ञान ही श्रेष्ठ होता है।सिर्फ ज्ञान का होना ही पर्याप्त नहीं होता है बल्कि वह ज्ञान अनुभव से गुजर चुका हो यह भी आवश्यक है।प्रज्ञा (Wisdom) अनुभव से उपलब्ध होती है,ज्ञान (Knowledge) बुद्धि का विषय है।बुद्धि के बल पर अर्जित किया गया ज्ञान,अनुभव से गुजरे बिना उपयोगी नहीं होता है फिर भी बहुत से लोग अनुभव के बिना पुस्तकीय ज्ञान के बल पर अपना पाण्डित्य प्रदर्शित करते रहते हैं।जैसे तैरने की पुस्तक पढ़ने से अनुभव व अभ्यास के बिना नहीं तैर सकते हैं।
  • एक बार एक विद्यार्थी (B.sc. प्रथम वर्ष) को कोचिंग में गणित शिक्षक त्रिविमीय निर्देशांक ज्यामिति में गोले (sphere) का निम्न सवाल समझा रहे थे।
    Q. एक चर गोला बिन्दुओं \left(0,0, \pm c \right) से गुजरता है तथा रेखाओं y=x \tan \alpha ,z=c ; y=-x \tan \alpha, z=-c को बिन्दुओं P तथा P’ पर काटता है।यदि PP’ की लम्बाई 2a अचर है; तो प्रदर्शित कीजिए कि गोले का केन्द्र रेखा z=0, x^{2}+y^{2}=\left(a^{2}-c^{2}\right) \operatorname{cosec}^{2} 2 \alpha पर स्थित है।
    (A variable sphere passes through the points and cuts the lines y=x \tan \alpha ,z=c ; y=-x \tan \alpha, z=-c in the points P and P’.If PP’ has constant length 2a;Show that the centre of the sphere lies on the line z=0, x^{2}+y^{2}=\left(a^{2}-c^{2}\right) \operatorname{cosec}^{2} 2 \alpha.)
    Solution:माना गोले का समीकरण-
    x^{2}+y^{2}+z^{2}+2u x+2 v y+2 w z+d=0 \cdots (1)
    यह (0,0,c) तथा (0,0,-c) से गुजरता है अतः
    c^{2}+2 w c+d=0 \cdots(2) \ c^{2}-2 w c+d=0 \cdots(3)
    (2) व (3) को जोड़ने पर-
    d=-c^{2}
    (2) में से (3) को घटाने पर-
    w=0
    समीकरण (1) में मान रखने पर-
    x^{2}+y^{2}+z^{2}+2 u x+2 v y-c^{2}=0 \cdots(4)
    यह रेखाओं तथा पर काटता है।अतः इनका सममित रूप होगा-
  • \frac{x}{\cos \alpha}=\frac{y}{\sin \alpha}=\frac{z-c}{0}=k^{\prime} 
    \Rightarrow x=k^{\prime} \cos \alpha, y=k^{\prime} \sin \alpha, z=c
  • माना P\left(k^{\prime} \cos \alpha, k^{\prime} \sin \alpha, c\right) \ \frac{x}{-\cos \alpha}=\frac{y}{\sin \alpha}=\frac{z+c}{0}=k \ \Rightarrow x=-k \cos \alpha, y=k \sin \alpha, z=-c
    माना P^{\prime} \left(-k^{\prime} \cos \alpha, k^{\prime} \sin \alpha, -c \right)
    अतः PP’ के बीच की दूरी
    \left(k^{\prime} \cos \alpha+k \cos \alpha \right)^{2}+\left(k^{\prime} \sin \alpha-k \sin \alpha\right)^{2} +\left(c+c \right)^{2}=(2a)^{2}\ \Rightarrow {k^{\prime}}^{2} \cos ^{2} \alpha+k^{2} \cos ^{2} \alpha+2 k k^{\prime} \cos ^{2} \alpha+k^{\prime} \sin ^{2} \alpha-2 k k^{\prime} \sin ^{2} \alpha+k^{2} \sin ^{2} \alpha +4 c^{2}=4 a^{2}\ \Rightarrow {k^{\prime}}^{2} \left(\cos ^{2} \alpha+\sin^{2} \alpha\right)+k^{2}\left(\cos ^{2} \alpha+ \sin^{2} \alpha\right)+2 k k^{\prime} \left(\cos ^{2}-\sin ^{2} \alpha\right)=4 a^{2}-4 c^{2}\ \Rightarrow k^{\prime 2}+k^{2}+2 k k^{\prime} \left(\cos ^{2} \alpha-\sin ^{2} \alpha\right)=4\left(a^{2}-c^{2}\right) \cdots(5)
  • P व P’ गोले पर स्थित हैं अतः ये मान समीकरण (4) में रखने पर-
    {k^{\prime}}^{2} \cos ^{2} \alpha+{k^{\prime}}^{2} \sin ^{2} \alpha+c^{2}+2u k^{\prime} \cos \alpha+2 v k^{\prime} \sin \alpha-c^{2}=0 \ \Rightarrow {k^{\prime}}^{2}+2 u k^{\prime} \cos \alpha+2 v k^{\prime} \sin \alpha=0 \ \Rightarrow k^{\prime}+2 u \cos \alpha+2 v \sin \alpha=0 \ \Rightarrow k^{\prime}=-(2 u \cos \alpha+2 v \sin \alpha) \ k^{2} \cos ^{2} \alpha+k^{2} \sin ^{2} \alpha+c^{2}-2 u k \cos \alpha+2 v k \sin \alpha-c^{2}=0 \ \Rightarrow k^{2}-2u k \cos \alpha+2 v k \sin \alpha=0 \ \Rightarrow k-2 u \cos \alpha+2 v \sin \alpha=0 \ \Rightarrow k=2u \cos \alpha-2 v \sin \alpha
    k व k’ के मान समीकरण (5) में रखने पर-
    \Rightarrow(2u \cos \alpha-2 v \sin \alpha)^{2}+(-2 u \cos \alpha-2 v \sin \alpha)^{2}+2(2u \cos \alpha-2v \sin \alpha) (-2u \cos \alpha-2v \sin \alpha)(\cos ^{2} \alpha-sin ^{2} \alpha)= 4\left(a^{2}-c^{2}\right)\ \Rightarrow 4 u^{2} \cos ^{2} \alpha+4 v^{2} \sin ^{2} \alpha-8 u v \cos \alpha \sin \alpha+4 u^{2} \cos ^{2} \alpha+4 v^{2} \sin \alpha+8 u v \cos \alpha \sin \alpha-8 u^{2} \cos ^{4} \alpha+8 v^{2} \sin ^{2} \alpha \cos ^{2} \alpha+8 u^{2} \cos ^{2} \alpha \sin ^{2} \alpha -8 u^{2} \sin ^{2} \alpha=4\left(a^{2}-c^{2}\right) \ \Rightarrow 8 u^{2} \cos ^{2} \alpha+8 v^{2} \sin ^{2} \alpha-8 u^{2} \cos ^{4} \alpha - 8 v^{2} \sin ^{4} \alpha+8\left(v^{2}+u^{2}\right) \sin ^{2} \alpha \cos ^{2} \alpha =4\left(a^{2}-c^{2}\right) \ \Rightarrow 8 u^{2} \cos ^{2} \alpha\left(1-\cos ^{2} \alpha\right)+8 v^{2} \sin ^{2} \alpha\left(1-\sin ^{2} \alpha\right)+8\left(v^{2}+u^{2}\right) \sin ^{2} \alpha \cos ^{2} \alpha=4\left(a^{2}-c^{2}\right) \ \Rightarrow 8 u^{2} \cos ^{2} \alpha \sin ^{2} \alpha+8 v^{2} \sin ^{2} \alpha \cos ^{2} \alpha+8\left(v^{2} +u^{2}\right) \sin ^{2} \alpha \cos ^{2} \alpha=4\left(a^{2}-c^{2}\right) \ \Rightarrow 16\left(u^{2}+v^{2}\right) sin ^{2} \alpha \cos ^{2} \alpha=4\left(a^{2}-c^{2}\right) \ \Rightarrow\left(u^{2}+v^{2}\right)(2 \sin \alpha \cos \alpha)^{2} =\left(a^{2}-c^{2}\right) \ \Rightarrow\left(u^{2}+v^{2}\right)(\sin 2 \alpha)^{2}=\left(a^{2}-c^{2}\right)  \ \Rightarrow \left(u^{2}+v^{2} \right) \sin ^{2} 2 \alpha=\left(a^{2}-c^{2}\right) \ \Rightarrow u^{2}+v^{2}=\frac{\left(a^{2}-c^{2}\right)}{\sin ^{2} 2 \alpha} \ \Rightarrow u^{2}+v^{2}=\left(a^{2}-c^{2}\right) cosec^{2} 2 \alpha
    अतः w=0, u^{2}+v^{2}=\left(a^{2}-c^{2}\right) \operatorname{cosec}^{2} 2 \alpha
    बिन्दुपथ लेने पर-
    \Rightarrow z=0, x^{2}+y^{2}=\left(a^{2}-c^{2}\right) \operatorname{cosec}^{2} 2 \alpha
  • सवाल समझाने के बाद गणित के विद्यार्थी नीरज ने कहा कि हमारे कॉलेज वाले प्राध्यापक जी ने कहा है कि इसे दूसरे तरीके से भी हल कर सकते हैं। कोचिंग के शिक्षक ने कहा वह दूसरा तरीका क्या है? नीरज ने जब वह दूसरा तरीका बताया तो कोचिंग वाले शिक्षक ने कहा कि दूसरे तरीके से तुमने हल करके देखा था क्या? उसने कहा हल करके तो नहीं देखा।कोचिंग के शिक्षक ने कहा कि दूसरे वाले तरीके से यह सवाल हल नहीं हो सकता है।वह यह सुनकर सन्न रह गया।कोचिंग वाले ने शिक्षक ने कहा कि तुम खुद करके देखना तथा तुम जो तरीका बता रहे हो उससे यह हल नहीं होगा।नीरज ने जब इसे दूसरे तरीके से हल करने की कोशिश की तो यह सवाल हल नहीं हुआ।
  • दरअसल नीरज ज्ञान के आधार पर ही यह बता रहा था परंतु कोचिंग के शिक्षक अपने अनुभव सिद्ध ज्ञान के आधार पर बता रहे थे।
  • उसने सोचा कॉलेज के प्राध्यापक जी ने मौखिक रूप से समझाया है जो कोचिंग वाले शिक्षक को बता दूंगा और हल करने की क्या जरूरत है? इस तरह ज्ञान पर अनुभव सिद्ध ज्ञान भारी पड़ा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करें (Students Should Use Wisdom in Practice),पुस्तकीय ज्ञान को आचरण में उतारने की 3 टिप्स (3 Tips to Put Bookish Knowledge in Practice) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित का हैजा (हास्य-व्यंग्य) (Cholera of Mathematics) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र से):तुम्हें क्या हो गया है,आजकल? जब देखो गणित!गणित!गणित!
    छात्र!सर,मुझे आजकल गणित का हैजा हो गया है। इसलिए इसके अलावा मुँह से ओर कुछ निकलता ही नहीं है।

6.छात्र-छात्राएं ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करें (Frequently Asked Questions Related to Students Should Use Wisdom in Practice),पुस्तकीय ज्ञान को आचरण में उतारने की 3 टिप्स (3 Tips to Put Bookish Knowledge in Practice) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्नः1.ज्ञान का क्या महत्व है? (What is the Importance of Knowledge?):

उत्तर:ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं हो सकती है।ज्ञान से मुक्ति मिलना तो बहुत दूर की बात है,ज्ञान के बिना तो हम सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन ही नहीं कर सकते हैं और न ही जीवन में आने वाली विपत्तियों,कष्टों,कठिनाइयों,समस्याओं,विघ्नों,बाधाओं का समाधान कर सकते हैं।जब तक हम अज्ञानी रहेंगे तो हमेशा परेशान और दुखी रहेंगे।ज्ञान से तात्पर्य किताबी ज्ञान से नहीं है बल्कि व्यावहारिक,आध्यात्मिक व अनुभव सिद्ध ज्ञान से है।
मनुष्य जन्म से अपूर्ण होता है।ज्ञान के द्वारा उसमें पूर्णता आती है।वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपनी इंद्रियों तथा मन को विवेक द्वारा वश में करना पड़ता है।

प्रश्न:2.सद्ज्ञान और आचरण से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Good Sense and Conduct?):

उत्तर:सद्ज्ञान से हम सही विचार-चिन्तन कर सकते हैं।संसार में ज्ञान प्राप्ति के अनेक स्रोत हैं पर अज्ञानी और अकर्मण्य व्यक्ति उनसे वंचित रहता है। वह यही समझता है कि वह बहुत कुछ जानता है। परन्तु जो यथार्थ में समझता है वह यही समझता है कि वह बहुत कम समझता है और बहुत कम जानता है।जीवन में उन्नति,विकास,सफलता के लिए सद्ज्ञान के अनुसार आचरण करना आवश्यक है।इसलिए हमें सद्ज्ञान प्राप्त करने के लिए जीवनपर्यन्त प्रयास करते रहना चाहिए और उसके अनुसार आचरण करना चाहिए।सद्ज्ञान का महत्त्व आचरण से ही है।

प्रश्न:3.सार्वजनिक सेवाओं में जाने के लिए अभ्यर्थी को क्या जानना आवश्यक है? (What does a Candidate Need to Know to Go to Public Services?):

उत्तर:उनको यह जान लेना चाहिए कि हमारे समाज व देश को आप क्या कार्य करके आगे बढ़ा सकते हैं।आप देश व समाज के लिए किस प्रकार लाभकारी और उपयोगी हो सकते हैं?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करें (Students Should Use Wisdom in Practice),पुस्तकीय ज्ञान को आचरण में उतारने की 3 टिप्स (3 Tips to Put Bookish Knowledge in Practice) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Students Should Use Wisdom in Practice

छात्र-छात्राएं ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करें
(Students Should Use Wisdom in Practice)

Students Should Use Wisdom in Practice

छात्र-छात्राएं ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करें (Students Should Use Wisdom in Practice)
तभी विद्या तथा ज्ञान प्राप्त करना सार्थक होगा।ज्ञान प्राप्ति की
श्रीमद्भगवत गीता में तीन शर्ते बताई गई है।पहली शर्त है
इंद्रियों को वश में रखना,जो विद्यार्थी भौतिक सुख-सुविधाओं
को सब कुछ समझते हैं उनकी बुद्धि चंचल रहती है।

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