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What are Side Effects of Greed?

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1.लोभ के दुष्परिणाम क्या हैं? (What are Side Effects of Greed?),छात्र-छात्राएँ लोभ से कैसे बचें? (How to Avoid Students Greed?):

  • लोभ के दुष्परिणाम क्या हैं? (What are Side Effects of Greed?) यदि इन्हें जानकार लोभ करने की वृत्ति को नहीं त्यागा जाए तो व्यक्ति काम,क्रोध,मोह इत्यादि अनेक मनोवेगों के जाल में फँसता चला जाता है।फिर ये मनोवेग हमें इस प्रकार वशीभूत कर लेते हैं कि इनसे छुटकारे का विचार ही नहीं कर पाते और यदि इनसे छूटने की कोशिश करते भी हैं तो आसानी से छुटकारा नहीं मिल पाता है क्योंकि तब हमारी आदतें मजबूत हो चुकी होती हैं।
  • गहरे जल से भरी हुई नदियां समुद्र में मिल जाती है परंतु जैसे उनके जल से समुद्र तृप्त नहीं होता,उसी प्रकार चाहे जितना धन प्राप्त हो जाए,लोभी तृप्त नहीं होता।
  • छात्र-छात्राओं को मानसिक वेगों और अन्य निष्कृष्ट कार्यों के बारे में इसलिए परिचय कराया जाता है क्योंकि यही उम्र होती है जिसमें चरित्र का निर्माण सहजता से किया जा सकता है।प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं और शरीर कमजोर हो जाता है अतः इन मानसिक वेगों को रोक पाना बहुत कठिन बल्कि असंभव ही होता है।जिस प्रकार भवन की नींव जितनी मजबूत होती है भवन उतना ही मजबूत और भव्य होता है।उसी प्रकार युवाकाल में जितना अच्छी आदतों का निर्माण किया जाता है और बुरे कार्यों से बचा जाता है जीवन उतना ही सुखद व आनंददायक होता है।
  • लोभ के बारे में फुटकर रूप से तो यूट्यूब वीडियो के द्वारा बताया जा चुका है परंतु इसमें ओर अधिक जानकारी दी जा रही है।इस आर्टिकल को पढ़ने पर आपके ज्ञान में वृद्धि होगी।यह आर्टिकल आपको मार्गदर्शन प्रदान करने वाला होगा और इसके आधार पर आप अच्छी आदतों का निर्माण कर सकते हैं।
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2.लोभ में फंसने के कारण (Reasons for Getting Caught up in Greed):

  • जो वस्तु अप्राप्त हो और जिसे प्राप्त करना आवश्यक हो उसे प्राप्त करने की कामना करना और प्रयत्न करना तो स्वाभाविक है तथा सांसारिक,जीवन व जॉब के कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए जरूरी है।परंतु जब यह कामना असीमित,असंतुलित,अनियंत्रित,अनैतिक और अनावश्यक रूप से की जाती है तो इसे लोभ कहते हैं।
  • लोभ की गति भविष्य की ओर होती है यानी जो अभी वर्तमान में प्राप्त नहीं है उस वस्तु को पाने की कामना करना लोभ है।जिस वस्तु,पदार्थ को हम प्राप्त करना चाहते हैं,ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करना चाहते हैं और संग्रह करना चाहते हैं इस चाहत का नाम लोभ है।
  • दरअसल इच्छाएं अनंत है और अनंत इच्छाओं को इस सीमित जीवन में पूरा प्राप्त करना संभव नहीं है।परंतु अक्सर हम यही भूल करते हैं कि एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी,तीसरी और इस प्रकार इच्छाओं को पूरा करने का ताँता लग जाता है।यही नहीं एक इच्छा पूरी हो जाती है,तो उसमें कुछ ओर पाने की चाहत हो जाती है।इस प्रकार जब इच्छाएं हमें अति की ओर ले जाती है तो यही लोभ है।
  • यह मामला धन के बारे में ही नहीं है बल्कि हर भौतिक सुख-सुविधाओं के मामले में लागू होता है।छात्र-छात्राओं का कार्य अध्ययन को लगन और कठिन परिश्रम से करना है और शिक्षित व योग्य होना है।परंतु आधुनिक शिक्षा पद्धति में जब छात्र-छात्राएं एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं तो उनके कदम गलत दिशा में बहक जाते हैं।
  • छात्र,छात्रा पर आसक्त होकर उससे सेक्स करने की इच्छा करता है या छात्रा,छात्र पर आसक्त होकर सेक्स करने की इच्छा करता है।अपने कर्त्तव्य अध्ययन को छोड़कर सेक्स करना,सेक्स की इच्छा करना,मौज-मजे के लिए सेक्स करना काम (काम क्रीड़ा) आदि इस प्रकार की इच्छा को लोभ ही कहा जाएगा।इस प्रकार लोभ कामुकता उत्पन्न करता है क्योंकि लोभ का अर्थ ही कुछ पाने या भोगने की इच्छा करना है।
  • कामनाओं अर्थात विषय भोग की इच्छाओं से,काम अर्थात् इच्छाएं कभी शांत नहीं होती।बल्कि उसी प्रकार बढ़ती जाती है,जिस प्रकार आहुति डालने से अग्नि।वस्तुतः मनुष्य की सांसारिक इच्छाओं तथा आकांक्षाओं का कोई अंत नहीं।ये इच्छाएं और आकांक्षाएं मृत्युपर्यंत उसे घेरे रहती है और छात्र-छात्राओं तथा व्यक्ति को अति की ओर ले जाती है।और अति से हमारा सर्वनाश हो जाता है।

3.लोभ के दुष्परिणाम (Side Effects of Greed):

  • लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है,लोभ से इच्छा याने वासना पैदा होती है,लोभ से ही मोह तथा विनाश होता है और लोभ ही पापों का मूल कारण होता है।लोभ के कारण मनुष्य की तृष्णा बढ़ती जाती है और इसका कोई अंत नहीं होता।यह तृष्णा या तो त्यागने से समाप्त होती है या जीवन खत्म होने पर समाप्त होती है।
  • लोभ की वृत्ति हमें हर मामले में अति करने पर विवश करती है।हम जिस मामले में लोभ करेंगे उसी मामले में अति करने लगेंगे क्योंकि लोभ का मतलब ही अति करने से होता है।अति हर काम में बुरी होती है इसीलिए अति सर्वत्र वर्जयेत के अनुसार अति करने से मना किया गया है।
  • उदाहरणार्थ अच्छे काम की जैसे अध्ययन करने में ही अति करेंगे तो यह भी लोभ वृत्ति ही है।अध्ययन करने पर विश्राम करने की आवश्यकता होती है।यदि आप दिन-रात अध्ययन में ही लगे रहेंगे विश्राम नहीं करेंगे तो मानसिक तनाव उत्पन्न होगा तथा शारीरिक रूप से बीमार पड़ जाएंगे।
  • हमें जो चीज अच्छी लगती है उसे ज्यादा से ज्यादा करने की इच्छा करते हैं,यह लोभ है।हमें जिस काम में मजा आता है उसे काम को करने में अति करने लगते हैं यानी मजे में आकर उसके परिणाम की तरफ ध्यान नहीं देते,यह लोभ हैं।
  • लोभ ऐसा जाल है जिसमें लोभी फँसता ही जाता है।इस प्रकार लोभ के अत्यंत दुष्कर परिणाम भोगने पड़ते हैं।
  • जन्म का अंधा तो आंखों से लाचार होता है परंतु कामांध,मदान्ध और स्वार्थान्ध मनुष्य आंखों के रहते हुए भी अंधे होते हैं।इसी प्रकार लोभ में अंधा व्यक्ति को धन,यौवन,पद,शारीरिक बल,किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए अति करना,के कारण बदहवास कर देते हैं।लोभ में अंधा व्यक्ति अपने सामने सबको तुच्छ समझता है और बुरे कामों को करने से नहीं डरता।वह अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि पहुंचाने में जरा भी नहीं हिचकता।
  • किसी वस्तु की आवश्यकता से अधिक प्राप्ति की इच्छा करना और प्रयत्न करना लोभ है।अधिक मात्रा में संग्रह करना लोभ हैं।लोभ की भावना का अंत नहीं होता।जो मनुष्य धन संपदा का लोभी होता है वह धन प्राप्ति के पीछे पागल रहता है और धन प्राप्त होने के बाद ओर अधिक धन प्राप्त करने को लालायित होता है।धन की अधिकता हो जाने पर वह इसकी वजह से पागल रहता है और धन के नष्ट होने पर सचमुच ही पागल हो जाता है।
  • आदमी यदि धन का लोभ करेगा तो बेईमानी करेगा,उल्टे-सीधे धंधे करेगा,दूसरों को धोखा देगा और बाद में खुद भी विपत्ति में फंस जाएगा।

4.लोभ से कैसे बचें? (How to Avoid Greed?):

  • श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है कि “त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:।काम:क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतस्त्रयं त्येज्।।(अध्याय-16) अर्थात् काम,क्रोध एवं लोभ यह तीनों ही नरक के द्वार (पतन के द्वार) हैं एवं आत्मज्ञान के नाशक तथा नीचातिनीच योनि (अधोगति) को प्राप्त करने वाले हैं;इसलिए श्रेय के अभिलाषी पुरुष काम,क्रोध तथा लोभ इन तीनों का परित्याग करें।
  • सबसे अच्छा उपाय तो यही है कि लोभ तथा मानसिक वेगों को मन में पैदा ही नहीं होने दें,ऐसा तभी कर सकेंगे जब आप सद्बुद्धि का प्रयोग करेंगे क्योंकि एक बार लोभ और मानसिक वेगों के जाल में फंस जाते हैं तो फिर उससे निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है।जिस प्रकार शहद पर बैठने वाली मक्खी शहद में फँसती ही चली जाती है उसी तरह लोभ की दलदल में फँसा व्यक्ति फँसता ही चला जाता है।
  • विवेक यानी स्थित-प्रज्ञता,सद्बुद्धि से काम लेने वाला ही लोभ व मानसिक वेगों से बचा रहता है क्योंकि वह कोई भी कार्य के भले-बुरे का विचार करके और सब आगा-पीछा सोचकर ही कोई कार्य करता है।भली प्रकार सोच-विचारकर किए गए काम का परिणाम बुरा नहीं होता।
  • लोभ करने से व्यक्ति को चिंता,कष्ट,तनाव,आशंका और पीड़ा के अलावा मिलता भी क्या है? क्योंकि लोभ से कुछ इच्छित वस्तु मिल भी जाए तो भी वह ओर पाने की लालसा करना छोड़ता नहीं।
  • हमेशा स्वाध्याय,सत्संग,सत्साहित्य और अपने कोर्स की पुस्तक पढ़ने में अपने आपको व्यस्त रखना चाहिए ताकि आपके मन में अच्छे व शुभ विचार उत्पन्न हों।अच्छे और शुभ विचार करने के कारण काम,क्रोध और लोभ को मन में पैदा होने का अवसर ही नहीं मिलेगा।
  • विद्यार्थियों को अध्ययन तथा अन्य कार्य पूरी ईमानदारी और संयम से काम लेकर करना चाहिए ताकि कोई लोभ-लालच आकर्षित नहीं कर सके।स्कूल जाते हुए आपको रास्ते में गुंडे-बदमाश,लुच्चे-लफँगे,अय्याश किस्म के तथा अच्छे,सदाचारी,ईमानदार आदि सभी प्रकार के लोग मिलते हैं परंतु आप सभी से संबंध व वास्ता नहीं रखते हैं।आप अच्छे,भले,नेक और सदाचारी लोगों और छात्र-छात्राओं से ही मिलना पसंद करते हैं।
  • अतः अपने मन में अच्छी भावनाओं,अच्छी संगति,सदाचारी व्यक्तियों से मिलना लोभ से बचना है और बुरे,दुराचारी,गुंडे-बदमाश लोगों से मिलना लोभ में फँसाने वाला कार्य है।अपने लिए आवश्यक चीजों की पूर्ति करना संतोष है और अनावश्यक चीजों की इच्छा करना और पूर्ति करना लोभ है।
  • आज के वातावरण को देखते हुए हमें ऐसा ख्याल होता है कि अध्ययन को ईमानदारीपूर्वक करना,कठिन परिश्रम करना,सही तरीके से परीक्षा देना,परीक्षा में अनुचित तरीके न अपनाना,नीति-नियम,सदाचरण,सिद्धांत और आदर्शों को अपनाने पर जीवन में सफल होना मुश्किल है,लेकिन ऐसी बात नहीं है।सब कुछ हमारे संस्कार,हमारी संकल्प शक्ति और हमारी मनोवृति पर निर्भर करता है।हमें थोड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है,कठिनाइयों,समस्याओं,संकटों और बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है,थोड़े धैर्य और साहस से काम लेने की जरूरत पड़ सकती है यह बात तो ठीक है लेकिन ऐसा नहीं कि हम ऐसा नहीं कर सकते।
  • हम अवश्य कर सकते हैं यदि हम इस रहस्य को समझ लें कि जो कठिनाई या असुविधा लोभ-लालच से बचने में हमें होगी या जो संघर्ष हमें करना होगा उसके मुकाबले लोभ-लालच के परिणाम ज्यादा कष्टदायक और विनाशकारी होंगे।अच्छे काम के परिणाम अच्छे ही होते हैं।यह बात अलग है कि परिणाम देर से मिलते हैं पर मिलते जरूर हैं।भगवान के विधि-विधान न्यायसंगत है अन्यायसंगत नहीं यह बात खरी है।

5.लोभ का दृष्टांत (The Parable of Greed):

  • लोभ-लालच विद्यार्थियों और व्यक्ति से जीवन में जो न करा बैठे,कम ही है।एक गणित का विद्यार्थी था।भली प्रकार अपना अध्ययन कर रहा था।कठिन परिश्रम और लगन से परीक्षा उत्तीर्ण करता और जो प्राप्तांक प्राप्त होते उससे संतुष्ट था।
  • एक दिन वह जंगल में घूमने निकला तो दूर तक आगे निकल गया।उसे सामने एक खंडहर दिखाई दिया।खंडहर देखकर उसे जिज्ञासा हुई कि उसमें क्या है? वह खंडहर के अंदर गया तो एक कोने में झाड़ियां थी,उसमें उसे चमकती हुए रोशनी दिखाई दी।
  • उसने झाड़ियां हटाकर देखा तो उसे नीचे जाता एक तहखाना नजर आया।वह झाड़ियों को हटाकर तहखाने में उतर गया।तहखाना में एक कमरा था,उसमें घुसा तो उसे सोने की अशर्फियाँ दिखाई दी।
  • उसने सोने की अशर्फियाँ बटोर ली और घर आ गया।घर पर किसी को नहीं बताया।रात भर उसे नींद नहीं आई और उसकी खुली आंखों में कई तरह के सपने तैरने लगे।उसने सोचा कि अध्ययन करने,कठिन परिश्रम करने से मुक्ति मिल जाएगी।जीवन सुख-शांति से गुजर जाएगा।अन्याय से उपार्जित और बिना मेहनत के धन का नशा ही कुछ ऐसा होता है।वह भूल गया कि यह उसके जीवन का अंतिम पड़ाव है।
  • दूसरे दिन अशर्फियाँ लेकर वह दुकानदार के पास पहुंचा और अशर्फियों के बदले रुपए मांगे।चूँकि अशर्फियाँ पुरानी थी और उनकी चमक सामान्य सोने से कहीं अधिक थी।इसलिए दुकानदार ने विद्यार्थी से पूछा कि यह दुर्लभ अशर्फियाँ तुम्हें कहां से मिली,क्या तुम उस जगह का नाम बता सकते हो? विद्यार्थी दुकानदार का प्रश्न सुनकर घबरा गया।विद्यार्थी बोला मुझे नहीं पता।आप तो बस इनके बदले में मुझे रुपए दे दें।
  • यह सुनकर दुकानदार बोला नहीं,भैया।बिना पुलिस को सूचना दिए मैं तुम्हें कुछ भी दे पाने की स्थिति में नहीं हूँ।तुम यहाँ रुको मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं।विद्यार्थी परिस्थिति को भाँपकर वहां से उठा और सीधा घर की तरफ भागने लगा।उसे भागते देखकर कुछ ओर लोग भी उसके पीछे भागने लगे।उनमें से कुछ को दुकानदार से अशर्फियों के संबंध में पता चला तो लोगों की संख्या ओर बढ़ गई।
  • विद्यार्थी कितना भागता; अचानक सामने से आती हुई कार से वह टकरा गया और गिर पड़ा।उसके थैले से अशर्फियाँ गिरकर सड़क पर बिखर गई।लोग उसे छोड़कर अशर्फियाँ के पीछे लपके।बहुत देर उनके बीच अशर्फियाँ के लिए छीना-छपटी चलती रही।तभी किसी का ध्यान घायल विद्यार्थी की तरफ गया।तब तक विद्यार्थी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।उसके लिए न अशर्फियाँ और न उसके बदले रुपए किसी काम के रह गए थे।उसके सारे सपने पूरे होने से पहले ही समाप्त हो चुके थे।लोभ का दुष्परिणाम यही होता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में लोभ के दुष्परिणाम क्या हैं? (What are Side Effects of Greed?),छात्र-छात्राएँ लोभ से कैसे बचें? (How to Avoid Students Greed?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित की पुस्तक का चित्र देखने का परिणाम (हास्य-व्यंग्य) (The Result of Seeing a Picture of Math Book) (Humour-Satire):

  • एक गणित का छात्र गणित में होशियार होना चाहता था।उसने गणित की पुस्तक का चित्र दर्पण के कोने पर चिपका दिया जो उसे लक्ष्य की याद दिलाता था।युक्ति काम कर गई और उसने पाया कि चार-पांच माह में उसकी गणित में काफी प्रगति हो गई।इसके विपरीत यह हुआ कि उसकी बहन जो बार-बार दर्पण में अपना चेहरा देखती थी वह गणित में कमजोर हो गई।

7.लोभ के दुष्परिणाम क्या हैं? (Frequently Asked Questions Related to What are Side Effects of Greed?),छात्र-छात्राएँ लोभ से कैसे बचें? (How to Avoid Students Greed?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.पाप का बाप कौन है? (Who is the Father of Sin?):

उत्तर:पाप का बाप लोभ है।संसार में जितने तरह के पाप होते हैं,उन सबका मूल कारण लोभ ही है।यदि मनुष्य लोभ के फंदे में न फंसे तो वह कदापि कोई पाप नहीं कर सकता।इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का यह प्रमुख कर्त्तव्य है की लोभरूपी जाल में न फँसे और इससे बचता हुआ अपने जीवन और जगत को सुधारे।

प्रश्न:2.हमारा कौनसा मनोवेग हमें ठगता है? (What Kind of Emotions Deceive Us?):

उत्तर:व्यक्ति आंखों से नहीं असलियत में लोभ से अंधा हो जाता है।लोभ मन की रोशनी को समाप्त कर देता है।कोई किसी को नहीं ठगता बल्कि व्यक्ति खुद ही अपने लोभ से ठगा जाता है।लोभ मनुष्य का सब कुछ यहां तक की प्राणों का हरण कर लेता है।

प्रश्न:3.क्या पति-पत्नी द्वारा काम-क्रीड़ा भी लोभ की श्रेणी में आता है? (Does Sexual Intercourse by Husband and Wife Also Fall Under the Category of Greed?):

उत्तर:संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से तथा संतुलित रूप से पति-पत्नी द्वारा काम-क्रीड़ा लोभ नहीं है परंतु यदि पति-पत्नी भी काम लोलुपता के वश में होकर मौज-मजे के लालच में अति काम-क्रीड़ा की इच्छा रखेंगे तो इस इच्छा को भी लोभ ही कहा जाएगा।लोभवश अति काम-कीड़ा के कारण मनोवृत्ति तो कामुक होती ही है साथ ही स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचती है और कई रोगों के शिकार होते हैं।कामुक पति-पत्नी का संतान पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है और संतान भी लोभी प्रवृत्ति और कामुक हो सकती है क्योंकि बच्चों पर सबसे अधिक माता-पिता के आचरण और संस्कारों का ही प्रभाव पड़ता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा लोभ के दुष्परिणाम क्या हैं? (What are Side Effects of Greed?),छात्र-छात्राएँ लोभ से कैसे बचें? (How to Avoid Students Greed?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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