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6 Tips for Making A Practical Plan

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1.व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan),छात्र-छात्राओं के लिए व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan for Students):

  • व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan) के आधार पर युवावर्ग समझ सकेंगे की सैद्धांतिक योजना को कार्यरूप में बदलना कितना आवश्यक है।अधिकतर युवावर्ग और छात्र-छात्राएं किसी कार्य को करने की योजना तो बना लेते हैं परंतु ज्योंही उस पर अमल करना प्रारंभ करते हैं तो विघ्न,बाधाओं का सामना होते ही घबरा जाते हैं और उसे छोड़ देते हैं।बहुत से छात्र-छात्राएं तथा लोग केवल योजना बनाकर ही रह जाते हैं और उस पर अमल करने की सोचते ही नहीं।कुछ छात्र-छात्राएं और लोग ऐसे होते हैं जो योजना बनाने के बाद न केवल उस पर अमल करते हैं बल्कि विघ्न,बाधाओं का डटकर मुकाबला भी करते  हैं  और योजना के अनुसार कार्य करके ही दम लेते हैं। 
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2.योजना बनाते समय ध्यान में रखने वाली बातें (Things to Keep in Mind While Planning):

  • युवावर्ग चाहे अपने जॉब में किसी कार्य को पूरा करने के लिए योजना बनाएं,छात्र-छात्राएं अपने अध्ययन में सिलेबस को पूरा करने के लिए योजना बनाएं तो उसकी सबसे प्रमुख बात यह सोची जानी चाहिए कि वह योजना उसके पास उपलब्ध समय या समय से पूर्व होगी या नहीं। 
  • योजना को पूरा करने के लिए उसके पास पर्याप्त ऊर्जा है या नहीं।अर्थात योजना को लागू करने के लिए क्या वह स्वयं समर्थ है या अन्य व्यक्तियों की भी आवश्यकता है।यदि अन्य व्यक्तियों की आवश्यकता हो तो उसका इन्तजाम कैसे किया जाएगा और उनको पारिश्रमिक देने के लिए क्या उसके पास पर्याप्त धन है। 
  • योजना को पूरा करते समय परिवार को अपना समय दे पाएगा अथवा नहीं।यानी पारिवारिक दायित्वों को पूरा करने के लिए उसके पास समय बचेगा या नहीं।जाॅब करनेवाले को तो इस बिन्दु पर सोचना ही चाहिए परन्तु छात्र-छात्राओं को भी इस बिन्दु पर विचार करना चाहिए।छात्र-छात्राओं का मुख्य लक्ष्य है अध्ययन करना परन्तु फिर भी घर-परिवार व माता-पिता के छोटे-मोटे कामों को करने के लिए उन्हें थोड़ा-बहुत समय देना ही पड़ता है।
  • जिस कार्य के लिए योजना बनाई जा रही है वह कार्य उनके जीवन से हटकर तो नहीं है।जैसे कुछ अभ्यर्थी आईआईटी या अन्य प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते हैं और उसे उत्तीर्ण इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि माता-पिता,मित्र,शिक्षक तथा समाज के लोगों को वे दिखाना चाहते हैं कि उसमें उस जाॅब को करने की काबिलियत है।वस्तुतः इंजीनियरिंग या अन्य अधिकारी या कर्मचारी बनना उनके जीवन का उद्देश्य नहीं होता है।इस प्रकार की योजना में लगाया गया श्रम,धन व्यर्थ ही चला जाता है। 
  • जिस कार्य को करने की योजना बनाई जा रही है उसके लिए यह भी सोचना चाहिए कि उस कार्य को करने में उसकी रुचि,क्षमता,योग्यता तथा साधन भी है या नहीं।क्योंकि जीवन कोई जुआ या लॉटरी नहीं है,जीवन बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से जीने की चीज है।इसे फालतू में ही गँवाना नहीं है।अतः कार्य की सफलता व असफलता के लिए उसमें कितनी दक्षता,लगन,उत्साह व योग्यता है इस बिन्दु पर भी विचार करना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त भी कई अन्य बिन्दु हो सकते हैं जिन पर प्रत्येक विद्यार्थी अथवा युवा को योजना बनाते समय विचार-चिन्तन अवश्य करना चाहिए क्योंकि भावावेश में तैयार की गई योजना बनाने वालों का हाल बुरा ही होता है।

3.योजना का महत्त्व और लाभ (Importance and Benefits of the Scheme):

  • निर्धारित समय में सफलता प्राप्त करने का प्रमुख सूत्र है कार्य की रूपरेखा तथा योजना बनाने की आदत।योजना दिखने में भले ही सरल लगती हो पर यह काम को सफलता के परिणाम तक पहुँचाने का कारगर नुस्खा है।
  • विद्यार्थी अध्ययन में लगाव रखते हैं अथवा अभ्यर्थी अपने जाॅब से प्रेम करते हैं तथा सचमुच पूरा करना चाहते हैं वे अपने कार्य की योजना बनाए बिना कार्य को शुरू नहीं करते।अचानक कार्य करने से बहुत सी दिक्कतों व संकटों का सामना करना पड़ता है तथा उनको हल करने का उपाय नहीं सूझता है।
  • योजना बना लेने से कार्य की गति बढ़ती है।जब भी समय मिलता है अपने कार्य के बारे में दिमाग रचनात्मक तरीके सुझाता है।योजना बनाने के बाद उस पर कार्य करते समय कई अप्रत्याशित विघ्न,बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिनकी हमने कल्पना ही न की हो परन्तु उसका सामना करने के लिए पहले से तैयार रहते हैं तो उसका सामना पूर्ण गतिशीलता और सृजनात्मकता के साथ कर पाते हैं। 
  • अपने कार्य की योजना जरूरी नहीं कि घर पर या जाॅब स्थल पर ही बनाएं।जहाँ कहीं आपको समय मिल जाता है वहीं उसका खाका या रूपरेखा तैयार कर लेनी चाहिए।केवल अपनी पसंदीदा जगह या माहौल में ही काम करने के आदी लोग अपने बहुत-से उपयोगी समय को इसके कारण उपयोग में नहीं ला पाते।
  • काम में योजना का क्या महत्त्व है,इसको इन बातों से अच्छी तरह समझा जा सकता है।अक्सर हम सुनते हैं जब हमें अपना मनपसंद काम करना हो या व्यक्ति से मिलना हो तो हमारे दूसरे काम फटाफट हो जाते हैं।हम ज्यादा गतिशील होकर उन्हें पूरा करते हैं क्योंकि हमें लगता है कहीं ऐसा करने से हमारा मुख्य पसंदीदा काम छूट न जाए। 
  • होमवर्क न करने वाले विद्यार्थी होमवर्क निबटाकर तैयार मिलते हैं और कहीं पर भ्रमण पर जाने के लिए तय समय से पूर्व ही रवाना स्थल पर पहुँच जाते हैं।ऐसे समय के लिए हम हर संभव तैयारी करते हैं और परेशानियों से बचने के लिए सुरक्षा सावधानियां बरतते हैं।
  • फरवरी-मार्च में वार्षिक परीक्षा देनी है परन्तु हम जून-जुलाई से ही योजना बनाकर सिलेबस उससे पूर्व समाप्त करने की चेष्टा करते हैं क्योंकि कहीं ऐसा नहीं हो एनवक्त पर तैयारी करते समय कोई टाॅपिक छूट जाए और परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करने से वंचित रह जाएं। 
  • जब हम कामों की योजना ठीक-ठाक बना लेते हैं तो हमें अपने भीतर से भी बहुत सहयोग मिलता है।याद न होने वाली कठिन बातें भी याद रहने लगती है।तन-मन की शक्ति में अद्भुत गति का संचार हो जाता है।जिन बातों में घंटों लगते हैं वे मिनटों में हो जाती हैं। कई मौकों पर हमें ऐसी-ऐसी बातें याद आ जाती हैं जो हमें पता भी हैं यह हमें मालूम नहीं होता। 
  • किसी मिशन या बड़े लक्ष्य को समर्पित युवा,छात्र-छात्राएं अथवा व्यक्ति बहुत सजग,सक्रिय रहते हैं।तन-मन से चुस्त-दुरुस्त रहते हैं।इसका कारण उनका अपने काम के प्रति समर्पण है,उनके पूरे जीवन की योजना ही उस पर केन्द्रित है।
  • इस तरह योजनाबद्धता हमारी आदत हो जाती है तो किसी भी काम से डर नहीं लगता।न ही कोई विषय कठिन लगता है।एक साथ कई चीजों को याद रखने या करने की आवश्यकता नहीं पड़ती,क्योंकि योजना का हिस्सा होकर बहुत कुछ क्रमिक चरणों का हिस्सा होकर बहुत व्यवस्थित हो जाता है।ये क्रमिक चरण कार्य में कब क्या आना चाहिए और होना चाहिए उसकी व्यवस्था कर देते हैं इसलिए सबकुछ आसान हो जाता है।यदि आसान न भी होता हो तो आसान लगने लगता है। 
  • कामों की पूर्व योजना बेहद जरूरी पक्ष है।उसकी उपेक्षा करना शुद्ध समय की उपेक्षा है।उसका परिणाम भी उतना ही उपेक्षा-भरा होता है।काम की पूर्व विधिवत तैयारी ही उसकी योजना है।कोई ऐसी नहीं जिसे हमें सीखना पड़े।

4.योजना का क्रियान्वयन और विचार (Implementation and Consideration of the Plan):

  • कल्पना और सपने देखना अच्छा है पर देखने-भर से वे पूरे थोड़े हो जाते हैं।उन्हें हकीकत में ढालने के लिए वे सोच-विचार का हिस्सा बनते हैं।यह प्रक्रिया पुख्ता होकर विचार बन जाती है।विचार भी एकदम क्रियान्वित नहीं होता।इस दौलत को तुरन्त संभालना जरूरी है।अन्यथा इसकी आयु बहुत लम्बी नहीं होती।कोई-कोई मस्तिष्क ही लम्बी अवधि तक इसे सहेजकर रख सकता है तथा अपने स्मृतिकोष में रख सकता है अन्यथा कहीं गुम हो जाता है,लुप्त-विलुप्त हो जाता है।यह कार्य का दिमागी दृश्य रूप तथा छवि है।इसमें हर प्रकार का अनुमान कर सकते हैं।समय,शक्ति,धन,उपयोगिता आदि।विचार-चिन्तन की महत्त्वपूर्ण कड़ी है,इसलिए इस स्तर पर योजना की कांट-छांट विस्तार हो सकता है।जो पक्ष ध्यान में नहीं होते हैं वे भी आ सकते हैं।औचित्य-अनौचित्य आदि तमाम पक्षों पर पुनर्विचार भी सम्भव है।
  • योजना में विचार जितने पुख्ता होंगे कार्य का परिणाम उतना ही सुखद आएगा।बहुत लोग सोचते हैं सोच-विचार की कोई खास उपयोगिता नहीं है।जब समय कम लगाना है तो इसमें भी समय क्यों खर्च करें।जो भी स्थिति आएगी वैसा कर लेंगे।पर सोच-विचार में लगाया गया समय योजना के क्रियान्वयन में समय की बचत करता है।बाद में ज्यादा समय बर्बाद हो सकता है या लग सकता है।
  • क्या हम कभी स्कूल जाते हैं तो घर से निकलने के बाद तय करते हैं कि हमें कब कहां जाना है? विचार का योजना के पूर्व नियोजन में यही महत्त्व है।इसलिए विचार हल्के स्तर पर नहीं लेना चाहिए,विचार योजना बनाने का ही एक हिस्सा है।
  • योजना में इतना दम होता है कि वह सफलता-असफलता का काफी हद तक निर्धारण कर सकती है।60 प्रतिशत तक का निर्धारण कोई भी पुख्ता पूर्व योजना कर सकती है।यह बहुत बड़ा बूस्टअप है।आगे के 40 प्रतिशत हेतु हम पूरी जान लगा सकते हैं।दुनिया-भर में जितने कार्य हुए हैं या हो रहे हैं इनकी पूर्व योजना दिमागों में ही बनी है। 
  • विचार से सफलता का एकदम सीधे निर्धारण भले ही न होता हो पर एक-एक चीज बारीकी से हमारे ध्यान में आ जाती है।हम उन पर पर्याप्त ध्यान और समय दे सकते हैं।सफलता को आकार देने समय के खांचे में लाने के लिए यह विचार और योजना नींव के पत्थर के समान है और नींव के पत्थर की भूमिका से हम सभी परिचित हैं। 
  • कार्य के जोखिम,खतरे व अनिश्चितता को भी पूर्व योजना बहुत हद तक कम कर देती है।हमारे बड़े कह गए हैं कि जिस जगह जाना नहीं उस जगह का रास्ता क्यों पूछना? हमारे एक्शन पूर्व विचारित हों तो इस तरह की नौबत नहीं आती है।पूर्व योजना में हमें इस क्षेत्र से संबद्ध लोगों के अनुभव,कार्य शैली आदि तमाम पक्षों के बारे में जानने का मौका मिलता है।
  • काम करने के पहले सोचना अक्लमंदी है।काम करने के समय सोचना सतर्कता है।काम करने के बाद सोचना मूर्खता है।हम अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं करते उन्हें पूरा करने की तैयारी करते हैं।जो कुछ भी हमारे सामने आता है उसे ही अपना भाग्य मान लेते हैं।जिसे लक्ष्य प्राप्ति की धुन होती है उसे बाधाएँ नहीं केवल अपना लक्ष्य दिखायी पड़ता है।

5.सैद्धान्तिक योजना का दृष्टान्त (Illustration of Theoretical Plan):

  • एक विद्यार्थी ने गणित से पीएचडी कर ली।शिक्षा प्राप्त करने के फेर में घर बिक गया।वह अपनी मां के साथ एक किराये के मकान में रहने लगा।वह रोज सुबह निकल जाता और शाम को घर वापिस आता।जब एक महीना हो गया तो उसकी माँ ने बताया कि मकान मालिक किराया माँगने आया था।विद्यार्थी ने बड़े ही आराम से कहा कि पारिश्रमिक मिलते ही दे दूँगा।माँ आश्वस्त हो गई।
  • उसने मकान मालिक को वही जवाब दे दिया और वह आश्वस्त होकर चला गया।एक सप्ताह तक कुछ नहीं हुआ।फिर एक दिन शाम को माँ ने बताया कि मकान मालिक आया था और फिर से किराया माँग रहा था।विद्यार्थी ने कहा कि ‘अरे,बस जैसे ही पारिश्रमिक मिलेगा मैं दे दूँगा।माँ इस बार पूरी तरह आश्वस्त हो गई।उसे लगा कि बस एक-दो दिन में पारिश्रमिक मिलने वाला है लेकिन पन्द्रह दिन बीत गए और कुछ नहीं हुआ। 
  • इस बार मकान मालिक ने गुस्से में विद्यार्थी की माँ को किराया देने के लिए कहा।माँ ने भी गुस्से में विद्यार्थी को किराया देने के लिए कहा।विद्यार्थी ने फिर बड़े ही आराम से कहा,माँ गुस्सा क्यों होती हो,बस जैसे ही पारिश्रमिक मिलेगा मैं दे दूँगा।इस बार माँ गुस्से में थी उसने पूछ ही लिया आखिर कब पारिश्रमिक मिलेगा।विद्यार्थी बोला:’अरे बड़ा सीधा सा हिसाब है।’ पहले मैं किसी जाॅब के लिए आवेदन करूँगा।फिर मैं जाॅब की परीक्षा की तैयारी करूँगा।फिर मेरा परीक्षा परिणाम आएगा।फिर साक्षात्कार होगा,फिर सफल हो जाऊँगा तो जाॅब करने लगूंगा।फिर मैं काम करने लग जाऊँगा तो मुझे पारिश्रमिक मिलेगा।पारिश्रमिक इधर मिला और उधर मैंने किराया दे दिया।इसे कहते हैं सैद्धान्तिक या काल्पनिक योजना।
  • आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस माँ ने घर बेचकर अपने पुत्र को पढ़ाया लिखाया उसके दिल पर क्या गुजरी होगी? इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि केवल योजना बनाना ही पर्याप्त नहीं है परन्तु योजना पर अमल करना उससे ज्यादा जरूरी है।अधिकांश योजनाएँ कल्पना और विचार करने तक ही सीमित रहती है क्योंकि उन पर अमल नहीं किया जाता है इसलिए वह काल्पनिक जगत की योजना बनकर ही रह जाती है। 
  • उपर्युक्त आर्टिकल में व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan),छात्र-छात्राओं के लिए व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan for Students) के बारे में बताया गया है।

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6.सौन्दर्य प्रसाधन कम्पनी पर मुकदमा (हास्य-व्यंग्य) (Lawsuit Against Cosmetics Company) (Humour-Satire):

  • एक गणित शिक्षक ने अपने मित्र को बताया,मैंने सौन्दर्य प्रसाधनों का निर्माण करने वाली कम्पनी पर मुकदमा दायर करने का निर्णय लिया है।
  • मित्र ने उत्सुकता से पूछा:कि वो ऐसा क्यों करना चाहता है? 
  • गणित शिक्षक बड़ी गम्भीरता से बोले:क्योंकि इनका इस्तेमाल करके मेरी पत्नी ने मुझे धोखा दिया है।मैंने उसे जवान समझकर विवाह कर लिया।

7.व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Tips for Making A Practical Plan),छात्र-छात्राओं के लिए व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan for Students) से सम्बंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्र्श्न:1.अव्यावहारिक और व्यावहारिक योजना में क्या अन्तर है? (What is the Difference Between Impractical and Practical Planning?):

उत्तर:(1.)अव्यावहारिक योजना कल्पनाओं और विचारों में ही मौजूद रहती है जबकि व्यावहारिक योजना को साकार रूप प्रदान किया जाता है। 
(2.)अव्यावहारिक योजना लोगों को भ्रमित करने,वाहवाही बटोरने और मन को खुश करने के लिए बनाई जाती है जबकि व्यावहारिक योजना वास्तव में अमल करने के लिए बनाई जाती है। 
(3.)अव्यावहारिक योजना को वे लोग बनाते हैं जिनके जीवन का कोई उद्देश्य नहीं होता है जबकि व्यावहारिक योजना वे लोग बनाते हैं जिनके जीवन का कोई लक्ष्य होता है। 
(4.)अव्यावहारिक योजना अपने लक्ष्य से संबंधित नहीं होती है जबकि व्यावहारिक योजना लक्ष्य से संबंधित अर्थात् उसको प्राप्त करने के लिए बनाई जाती है। 
(5.)अव्यावहारिक योजना अपनी रुचि,क्षमता,योग्यता के अनुसार नहीं बनाई जाती है जबकि व्यावहारिक योजना अपनी रुचि,क्षमता,योग्यता को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।
(6.)अव्यावहारिक योजना न तो किसी परिणाम को प्राप्त करने के लिए बनाई जाती है और न ही वह बनाने वाला उसको साकार करने के लिए बेचैन रहता है जबकि व्यावहारिक योजना को साकार करने के लिए वह बेचैन रहता है तथा उसे सोने नहीं देती है। 

प्रश्न:2.योजना से क्या तात्पर्य है? (What is Meant by Planning?):

उत्तर:(1.)योजना से हम कार्य के प्रति केंद्रित हो जाते हैं। 
(2.)योजना को कार्यान्वित करने के लिए हम सर्जनात्मक व सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं। 
(3.)योजना के द्वारा हमें काम करने के प्रति उत्साह,लगन तथा प्राप्त करने की ललक रहती है। 
(4.)कार्यों को ठीक समय पर अथवा समय से पूर्व समाप्त करने के लिए योजना प्रभावशाली तरीका है।
(5.)योजना हमें अपने लक्ष्य से भटकने नहीं देती है हम सही दिशा में आगे बढ़ते हैं। 
(6.)योजना कार्यों में गतिशीलता बनाने में मदद करती है। 
(7.)योजना को पूरा करने के लिए हमें अभ्यास तथा पुनरावृत्ति करने का अवसर प्रदान करती है। 

प्रश्न:3.योजना किस प्रकार बनाई जाती है? (How is Planning Done?):

उत्तर:(1.)लक्ष्य को पूरा करने के लिए सबसे पहले मस्तिष्क में रुपरेखा बनाई जाती है। 
(2.)योजना के औचित्य व अनौचित्य के पहलुओं पर भलीभाँति विचार किया जाता है। 
(3.)योजना लक्ष्य केन्द्रित बनाई जाती है। 
(4.)योजना को कार्यान्वित करने पर विचार किया जाता है अर्थात इस पर विचार किया जाता है कि योजना पर किस प्रकार अमल किया जाएगा? 
(5.)योजना को पूरा करने के लिए अपनी पूरी शक्ति,सामर्थ्य लगाई जाती है। 
(6.)योजना को पूरा करने के लिए अप्रत्याशित बाधाएँ आ जाए और परिवर्तन करने की आवश्यकता हो तो उसके अनुसार बदलाव किया जाता है। 
(7.)योजना की संपूर्ण प्रक्रिया पर व्यापक रूप से विचार किया जाता है। 

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan),छात्र-छात्राओं के लिए व्यावहारिक योजना बनाने की 6 टिप्स (6 Tips for Making A Practical Plan for Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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