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What is professionalisation of education?

1.शिक्षा का व्यावसायिकरण क्या है? (What is professionalisation of education?),व्यावसायिक शिक्षा क्या है? (What is occupational education?):

  • शिक्षा का व्यावसायिकरण क्या है? (What is professionalisation of education?) शिक्षा का व्यावसायिकरण से तात्पर्य है कि छात्र-छात्राओं से फीस लेकर शिक्षा प्रदान करना। दूसरे शब्दों में अध्यापक द्वारा वेतन या पारिश्रमिक लेकर छात्र-छात्राओं को शिक्षा प्रदान करना। प्राचीन काल में छात्र-छात्राओं को गुरुकुल में गुरुजी द्वारा निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी।आधुनिक युग में छात्र-छात्राओं को वेतन लेकर शिक्षा प्रदान करना बुरा नहीं है यदि विद्यार्थीयों के हित का ध्यान रखा जाता है। परन्तु शिक्षा के व्यावसायिकरण का शिक्षा संस्थानों तथा उसके संचालकों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है। छात्र-छात्राओं को आकर्षित करने के लिए भौतिक सुख-सुविधाएं जैसे शिक्षा संस्थानों के भवन,पुस्तकालय कक्ष, प्रयोगशाला कक्ष तथा अन्य सुविधाओं पर बेतहाशा धन खर्च किया जाता है। ताकि विद्यार्थियों से तगड़ी, मोटी कमाई की जा सके। परन्तु उन्हें (विद्यार्थियों को) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं कराई जाती है। बालकों में भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों तथा संस्कार नहीं डाले जाते हैं। केवल पाठ्यक्रम पूरा कराने का प्रयास किया जाता है। उसमें भी यह ध्यान नहीं दिया जाता है कि बालक-बालिकाएं कितनी शिक्षा अर्जित कर रहे हैं। उनको परम्परागत तरीके से पढ़ाया जाता है।
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via https://youtu.be/74MBQSf7tag

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2.शिक्षा का व्यावसायिकरण क्या है? (What is professionalisation of education?),व्यावसायिक शिक्षा क्या है? (What is occupational education?):

  • प्राचीन काल में शिक्षा निःशुल्क प्रदान की जाती थी।गुरुजनों तथा गुरुकुल का आर्थिक भार समाज द्वारा वहन किया जाता था।पर हजारों वर्षो की गुलामी के कारण हमारी प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का लोप हो गया।
    हजारों वर्षों के बाद भारत को जब आजादी मिली तो सरकार का दायित्व था कि जो मैकाले द्वारा शिक्षा प्रणाली लागू की गई थी उसको भारतीय परिवेश के अनुसार लागू किया जाता।
  • मैकाले द्वारा लागू शिक्षा प्रणाली केवल क्लर्क (बाबू) पैदा करने के लिए लागू की गई उसमें व्यावहारिक शिक्षा का बिल्कुल ही समावेश नहीं था,केवल सैद्धांतिक शिक्षा दी जाती थी जो जीवन में कोई काम नहीं आती है।जो व्यावहारिक जीवन में काम आती है उसकी शिक्षा नहीं दी जाती है।
  • मैकाले द्वारा लागू की गई शिक्षा प्रणाली का ही वर्तमान में इतना व्यावसायीकरण हो गया है कि वर्तमान शिक्षा संस्थानों को दुकानों की संज्ञा दी जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
  • गली-गली में ये शिक्षा संस्थान खोले जा रहे हैं।इन शिक्षा संस्थानों में ज्यादातर अप्रशिक्षित शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं।शिक्षा के स्तर में गिरावट का एक मुख्य कारण यह भी है कि कम वेतन के कारण शिक्षक मन लगाकर अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते हैं।इन निजी शिक्षा संस्थानों में से बहुत कम ऐसे शिक्षा संस्थान हैं जो स्तरीय शिक्षा देने में सक्षम है।बाकी अधिकांश शिक्षा संस्थानों ने इसे केवल धन कमाने का साधन मान रखा है।
  • व्यावसायिक दृष्टिकोण रखना बुरा नहीं है यदि विद्यार्थियों के हित और कल्याण को सर्वोत्तम प्राथमिकता दी जाए अर्थात् विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जाए।परन्तु निजी शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों व अभिभावकों को आकर्षित करने के लिए तथा मोटा-मोटी फीस वसूल करने के लिए आलीशान भवन तो बना रखे हैं परंतु उनमें योग्य शिक्षकों का अभाव है।
    सरकारी स्कूलों की हालत तो यह है कि इसमें शिक्षक वे व्यक्ति नियुक्ति हेतु आवेदन करते हैं जिनका किसी ओर व्यवसाय में सलेक्शन नहीं हुआ है।ऐसी स्थिति में सरकारी स्कूलों की स्थिति ओर भी बदतर है।अफसोस की बात तो यह है कि इन शिक्षकों को बहुत अच्छा वेतनमान मिलने के बावजूद वे अपने कर्त्तव्य का पालन ठीक से नहीं करते हैं।सातवां वेतन आयोग मिलने के बाद तो स्थिति यह हो गई है कि ये जो कुछ पुरुषार्थ करते थे उसको भी लकवा हो गया है।
  • माता-पिता को कामकाज की व्यस्तता के कारण वे अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं तथा बच्चों के अंधकार में भविष्य के लिए सरकार व शिक्षा संस्थानों को दोष देते हैं।
  • सरकार राजनेताओं के भरोसे है और राजनेता इस कार्य में मशगूल रहते हैं कि किन हथकंडों से सत्ता में बने रहे उन्हीं कार्यों को प्राथमिकता देते हैं।
  • शिक्षा संस्थान यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि साल भर में कोर्स कराने से ही फुर्सत नहीं मिलती तो सर्वांगीण विकास के बारे में कैसे सोचा जा सकता है?
  • बच्चों से प्रश्न किया जाता है कि आप क्या कर रहे हो या क्या करने का इरादा है तो उनका जवाब रहता है कि उनके लायक कोई काम नहीं मिल रहा है।यानी वर्तमान युवाओं का डिग्री हासिल करने के बाद उनके अंदर पुरुषार्थ करने की क्षमता ही नहीं रह गई है।अब ऐसे में माता-पिता बच्चों को डिग्री दिलवाकर झूठी आशाएं पाले हुए हैं।सभी युवाओं को सरकारी नौकरी तो मिलने से रही मात्र 10-15% युवाओं को नौकरी मिलती है।ऐसे में इस समस्या का समाधान तात्कालिक रूप से यही समझ में आता है कि सबसे अधिक जिम्मेदारी माता-पिता व शिक्षक की होती है।माता-पिता का सर्वप्रथम कर्त्तव्य बालकों को योग्य बनाना है।अतः बालकों को उत्तम संस्कार,श्रेष्ठ आचरण,मानसिक विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति के गुणों को विकसित करना।बच्चों को सरकारी नौकरी की झूठी सान्त्वना न देकर,यथार्थ को समझकर शुरू से ही किसी हुनर को सीखना जिससे डिग्री प्राप्त करने के बाद बालक बेरोजगार न रहे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में शिक्षा का व्यावसायिकरण क्या है? (What is professionalisation of education?),व्यावसायिक शिक्षा क्या है? (What is occupational education?) के बारे बताया गया है।
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