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How to Become Students Authentic?

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1.छात्र-छात्राएं प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Become Students Authentic?),प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Be Authentic?):

  • छात्र-छात्राएं प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Become Students Authentic?) इसको जानने से पहले यह जानें की प्रामाणिक या प्रामाणिकता से क्या तात्पर्य है? प्रामाणिकता का अर्थ है “आधुनिक आलोचना का पारिभाषिक शब्द जो मात्र अनुभव (feelins) को नहीं,उनके जीवन में परीक्षित होने की स्थिति को महत्त्व देता है”।प्रामाणिकता एक विस्तृत और गहन अर्थ रखने वाला शब्द है।जो अपनी असफलताओं का दोषारोपण दूसरों पर नहीं करता,स्वतंत्र चिंतन करता है,लोभ,लालच से अप्रभावित रहकर अपने कर्त्तव्यों का पालन करता है तथा मर्यादाओं का पालन करता है ऐसा छात्र-छात्रा अथवा व्यक्ति प्रामाणिक होता है।
  • प्रामाणिक छात्र-छात्रा और व्यक्ति का यश और सुगंध चारों ओर फैल जाती है।परंतु प्रामाणिकता अर्जित करने के लिए छात्र-छात्राओं को अपना सब कुछ दाँव पर लगाना पड़ता है।सुख-दुख को सहन करते हुए इनसे निर्लिप्त रहना होता है।
  • अपने कर्त्तव्य में इतना तल्लीन रहते हैं कि ऐसे छात्र-छात्राओं को भूख-प्यास,आराम की आवश्यकता नहीं होती है।न अपना अध्ययन कार्य करते हुए उन्हें ऊब व बोरियत महसूस होती है।हर समय उन्हें अपने लक्ष्य पर नजर रहती है ताकि किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
  • प्रामाणिक छात्र-छात्राओं की नजर स्वर्ण मुद्राओं को बटोरने में नहीं लगती है।वे तो हर समय सतर्क होकर,होशपूर्वक अपने काम को अंजाम देने में लगे रहते हैं।कठिनाइयों,बाधाओं,लोभ और डर से सर्वथा अविचलित रहकर अपने कर्त्तव्य पर दृढ़ रहते हैं।
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2.प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Be Authentic?):

  • छात्र-छात्राएं परीक्षा में,प्रवेश परीक्षा में,जीवन में अथवा जॉब में असफलताओं का दोषरोपण दूसरों पर नहीं करता है बल्कि अपना खुद का ही आत्मनिरीक्षण करते हैं और देखते हैं की किन त्रुटियों,कमियों या गलतियों के कारण असफलता मिल रही है।उन कमियों व त्रुटियों को ढूंढकर दूर करते हैं और आगे बढ़ते जाते हैं।इससे उनकी प्रतिभा निखरती है और आगे बढ़ाने के अवसर मिलते हैं।
  • हर असफलता के बाद आने वाली कठिनाइयों पर गहराई से विचार करना और उनको दूर करने का उपाय खोजा जाना चाहिए।इसके लिए अधिक साहस और पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है जिसे वे जुटाते हैं और कितनी भयंकर कठिनाइयां आएं उनसे निराश होकर अपने प्रयास बंद नहीं करते हैं।
  • योग्यता जुटाने के लिए उत्साह दिखाते हैं और हर असफलता के बाद दुगने उत्साह से कठिनाइयों व समस्याओं से जूझते हैं,पुरुषार्थ करते हैं।
  • इसके बजाय जो अप्रामाणिक छात्र-छात्राएं या व्यक्ति होते हैं वे साहस और पुरुषार्थ की दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं और थोड़ी सी बाधा,कठिनाई आने पर अपने प्रयत्नों को विराम दे देते हैं।उनका उत्साह ही ढीला पड़ जाता है और निराश होकर दूसरों को अपनी असफलता के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।
  • प्रामाणिक व्यक्ति की अगली विशेषता होती है स्वतंत्र चिंतन करना।स्वतन्त्र चिंतन करने वाले छात्र-छात्राएं और व्यक्ति अलग-थलग पड़ जाते हैं और उन्हें कोई पसंद नहीं करता है।जैसे कोई गणितज्ञ और वैज्ञानिक स्वतंत्र चिंतन करने वाला नहीं होता है तो वह वही खोज कार्य,आविष्कार करता है जो शासक वर्ग को पसंद है भले इससे मनुष्य जाति को खतरा उत्पन्न होता हो।
  • परंतु स्वतंत्र चिंतन करने वाला छात्र-छात्रा,गणितज्ञ व वैज्ञानिक वही कार्य करता है जो मानव जाति के हित में हो,किसी को दुःख,क्लेश,कष्ट पहुंचाने वाला न हो।ऐसे छात्र-छात्रा का ध्यान इस ओर नहीं होता है कि लोग,शिक्षक अथवा अन्य उनके बारे में क्या सोचते हैं? वह सदा तथ्यों को खोजता है और उचित को अपनाता है,भले इस दृष्टि से वह अकेला पड़ जाता हो और दूसरे उसका उपहास करते हों।
  • स्पष्ट है की यथार्थता को समझने और उचित को अपनाने वाले छात्र-छात्राएं बिरले ही होते हैं और ऐसे छात्र-छात्राओं की रीति-नीति अपनाने वालों को दूसरों का समर्थन कदाचित ही मिलता हो।उसे अपना ऊंचा लक्ष्य अकेले चलकर ही पार करना पड़ता है।
  • उदाहरणार्थ जब छात्र-छात्रा कोई जॉब प्रारंभ करता है और उसे ईमानदारी पूर्वक करने की सोचता है तो उसके मित्र,सगे-संबंधी,परिवार के लोग अधिक धन-संपत्ति अर्जित करने के लिए भ्रष्टाचार के लिए उकसाते हैं।यदि वह छात्र-छात्रा उनकी रीति-नीति को नहीं अपनाता है तो अलग-थलग पड़ जाता है।ईमानदारी पूर्वक जीवन निर्वाह करने के कारण उसे जाॅब से मिलने वाले थोड़े वेतन पर ही आश्रित रहना पड़ता है।परिवार वालों की आकांक्षाएं ऊंची होती है,वे ऐशोआराम की जिंदगी जीने के लिए भौतिक सुख-सुविधाओं में रहना चाहते हैं,जो संभव नहीं है।अतः वह विद्यार्थी अकेला पड़ जाता है।इस प्रकार उसे जीवन में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • प्रामाणिक विद्यार्थी का अगला लक्षण है कि वह झगड़े-टंटों से दूर रहकर अपने कार्य क्षेत्र में सृजन की बात ही सोचता है।निकृष्ट चिंतन से विद्यार्थी का पतन होता है और उसकी शक्तियां निकृष्ट चिंताओं के जंजाल में फंसकर ही नष्ट हो जाती है।निकृष्ट चिंतन करना,झगड़ा करना,गलत कार्य करना आसान है परंतु सृजन के लिए प्रतिभा को निखारना होता है और परिपक्वता अर्जित करनी पड़ती है।
  • उदाहरणार्थ परीक्षा में नकल करना,शिक्षकों व साथियों से लड़ाई-झगड़ा करना,लड़कियों को छेड़ना,गाली-गलोज करना आसान कार्य है।परंतु गणित के सवालों को हल करना,गणित के सवालों में आने वाली कठिनाइयों को स्वयं हल करने की कोशिश करना,सवाल को पुस्तक के तरीके से अलग हटकर अन्य तरीके से हल करने के लिए सृजनात्मक चिंतन करना पड़ता है जो अधिक कठिन कार्य है।
  • प्रामाणिक छात्र-छात्राएं अपना स्वार्थ सिद्ध करने की फिराक में नहीं रहते हैं बल्कि प्रामाणिक विद्यार्थी के व्यक्तित्त्व से प्रभावित होकर उदार छात्र-छात्राएं,शिक्षक व लोग स्वयं उनकी सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं।

3.प्रामाणिक विद्यार्थी में कर्त्तव्यनिष्ठा (Dutifulness in An Authentic Student):

  • प्रामाणिक व्यक्ति तथा छात्र-छात्राएं अपने कर्त्तव्य को भलीभांति निभाते हैं।कर्त्तव्य से तात्पर्य हितकारी और अनिवार्य कर्मों से है।इस आधार पर विद्यार्थी का कर्त्तव्य है अध्ययन करना,गणित के सवालों को उचित तरीके से हल करना,परीक्षा को उचित विधि से उत्तीर्ण करना,माता-पिता व बड़ों का आदर करना,अपनी उन्नति व विकास करने के लिए आवश्यक गुणों को आचरण में उतरना व धारण करना आदि।
  • वस्तुतः उचित कर्त्तव्य पालन करने का परिणाम अच्छा और गलत कार्य करने का परिणाम बुरा ही होता है।जैसे कोई विद्यार्थी सही ढंग व उचित तरीके से अर्थात् अध्ययन व गणित के सवालों और समस्याओं को हल करने के लिए कठिन परिश्रम करता है।कठिन परिश्रम करके परीक्षा में भी उचित तरीकों का प्रयोग करता है तो वह परीक्षा में उत्तीर्ण होता है और सफलता अर्जित करता है फलस्वरूप उसे यश,मान और प्रतिष्ठा मिलती है।अच्छे लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं।अन्य विद्यार्थी भी उससे प्रेरणा प्राप्त करते हैं।इस प्रकार उसे अच्छे परिणाम ही मिलते हैं।
  • परंतु जो विद्यार्थी परीक्षा में नकल करके,अनुचित तरीके अपनाकर,शिक्षक को डरा-धमकाकर परीक्षा में उत्तीर्ण होता है और सफलता अर्जित करता है। उसके गलत तरीके अपनाने के कारण उसकी बदनामी होती है।यदि परीक्षा में नकल करते पकड़ा गया तो उसे परीक्षा से बहिष्कृत होना पड़ता है।यदि नहीं भी पकड़ा जाता है तो धीरे-धीरे उसकी गलत कार्य करने की आदत पड़ जाती है।वह अपने कर्त्तव्य पथ से च्युत हो जाता है।उसकी संगति गलत व बुरे विद्यार्थियों व व्यक्तियों के साथ होती जाती है।कभी न कभी उसे गलत कार्यों का दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है।
  • सही विद्यार्थी की रक्षा उसके अच्छे कार्य,उसके अच्छे संगी साथी,उसका अच्छा आचरण करते हैं।परंतु गलत विद्यार्थी का विनाश उसके बुरे कर्म,बुरे संगी-साथी,उसका बुरा आचरण ही कर देते हैं।प्रकृति व भगवान् का विधि-विधान ही ऐसा है कि अच्छे कार्य का परिणाम अच्छा और बुरे कार्य का परिणाम बुरा भोगना ही पड़ता है।इससे कोई भी बच नहीं सकता है,भले यह बात हमारी मोटी बुद्धि में समझ में न आए।बुरे कर्म का बंधन तब तक पीछा नहीं छोड़ता जब तक उसका फल भोग न लिया जाए।
  • अतः विद्यार्थियों को अपने कर्त्तव्य पालन में सदैव जागरूक,सचेत व सावधान रहना चाहिए तभी वे प्रामाणिक बन सकते हैं।प्रामाणिकता हमारे जीवन की एक महान और बहुत बड़ी उपलब्धि है।

4.मर्यादाओं का पालन करें (Follow the Limits):

  • प्रामाणिक छात्र-छात्राएं मर्यादाओं का पालन करते हैं।मर्यादा का अर्थ होता है सीमा,सदाचार,आचार की शास्त्र,परम्परा आदि द्वारा निर्धारित सीमा।छात्र-छात्राएं और व्यक्ति अपनी मर्यादाओं का पालन करें तो उसे दुःख व कष्ट नहीं उठाने पड़े।यदि दुःख व कष्ट जीवन में आते भी हैं तो वह सहज ही उनको पार कर जाता है।
  • मर्यादा से तात्पर्य उन कानून-कायदों,नियमों तथा परंपराओं से भी है जो देश,काल,परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं।समाज इन्हीं मर्यादाओं के आधार पर चलता है।मर्यादाओं के उल्लंघन से संघर्ष उत्पन्न होते हैं।मर्यादाओं का पालन करने वाले को जीवन में सुख प्राप्त होता है क्योंकि उसका व्यवहार सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल होता है।
  • छात्र-छात्राओं को अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए।जैसे किसी विद्यार्थी की हंसी-मजाक करने की आदत है तो वहीं तक उचित है जहां तक वह दूसरों का तथा स्वयं का दिल खुश कर करती हो।परंतु वह विद्यार्थी हर समय,हर कहीं मजाक करने लगता है तो दूसरे विद्यार्थियों का समय नष्ट होता है।वह विद्यार्थी अपने स्वार्थ तथा खुशी के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचाने में हिचकता नहीं है तब वह मर्यादा का उल्लंघन कर रहा होता है।ऐसी विद्यार्थी की अंत में दुर्गति होती है और वह प्रामाणिक नहीं बन सकता है।इसी प्रकार जैसे कोई विद्यार्थी किसी दिन कक्षा में अनुपस्थित रहकर फालतू इधर-उधर घूमता है।
  • उसके अभिभावक आपसे पूछते हैं कि वह विद्यार्थी कल स्कूल में पढ़ने के लिए आया था या नहीं तो आपको मौन रहना चाहिए।इस प्रकार मौन रहकर उसकी पिटाई बचा लेते हैं।परंतु उस छात्र को आपको चेतावनी देनी चाहिए कि वह ऐसा न किया करें।परंतु वह विद्यार्थी बार-बार स्कूल से अनुपस्थित होता है तो आपको सच-सच बता देना चाहिए।
  • इस प्रकार आप अपनी सीमाओं,मर्यादाओं का पालन करेंगे तो लोगों के विश्वासपात्र बनते जाएंगे और आप प्रामाणिक छात्र-छात्रा के रूप में जाने जाएंगे।

5.प्रामाणिकता का दृष्टांत (The Parable of Authenticity):

  • गणित के अध्यापक एक विद्यार्थी को बहुत चाहते थे उसके साथ जितना अपनत्व रखते थे उतना अन्य विद्यार्थियों से नहीं।सभी छात्र-छात्राएं परेशान थे।आखिर एक दिन उनसे रहा नहीं गया तो सब सलाह-मशविरा करके गणित शिक्षक के पास गए।उन्होंने कहा कि आज्ञा हो तो कुछ कहें,गणित अध्यापक ने कहा कि निःसंकोच कहो।
  • इस विद्यार्थी में ऐसी कौन सी विशेषता है जिसके कारण आप उसको इतना अधिक महत्त्व देते हैं।गणित अध्यापक जी ने कहा कि वह प्रामाणिक विद्यार्थी है।परंतु अन्य विद्यार्थी ठीक से समझे नहीं।अतः गणित अध्यापक ने कहा कि वे सही समय पर इसे प्रमाणित कर देंगे।एक दिन गणित शिक्षक उन सभी विद्यार्थियों को वन भ्रमण पर ले गए।वन के रास्ते में अचानक गणित शिक्षक ने कहा की मेरे थैले में छेद हो गया है और न जाने कब से उसमें से सिक्के निकल कर पड़ रहे हैं।अतः आप लोग चाहे तो इन्हें इकट्ठे कर लें।
  • जिसे जितने सिक्के मिलेंगे वह खुद रख लेगा।यह कहकर गणित शिक्षक आगे बढ़ गए।पीछे छात्र-छात्राएं पैसे एकत्र करने में लग गए और गणित शिक्षक के साथ एक मात्र वही विद्यार्थी रह गया जिसकी शिकायत अन्य छात्र-छात्राओं ने की थी।
  • गणित शिक्षक ने कहा कि तुम सिक्के इकट्ठे क्यों नहीं कर रहे हो,सभी तो सिक्के इकट्ठे करने चले गए।उस छात्र ने कहा कि इस वन में आप अकेले रह जाते तो इस समय कोई भी लुटेरा आ सकता है और आपकी जान जोखिम में पड़ सकती है।ऐसी स्थिति में आपको अकेला छोड़कर कैसे जा सकता हूं?आप हमें विद्यादान करते हैं,इसके अलावा आपसे मुझे ओर क्या चाहिए,मेरे लिए यही संपदा सबसे बड़ी है।
  • दूसरे दिन सभी छात्र-छात्राएं कक्षा में आए और तब गणित शिक्षक ने कहा कि अब तो आप सबके समझ में आ गया होगा कि मैं इस विद्यार्थी को इतना क्यों चाहता हूं?अन्य विद्यार्थियों की समझ में नहीं आया।तब गणित शिक्षक ने कहा कि कल वन भ्रमण के समय आप सब मुझे छोड़कर सिक्के इकट्ठे करने में लग गए।आपने तनिक भी यह नहीं सोचा कि इस वन में कोई भी लुटेरा आ सकता है और मेरी जान को जोखिम हो सकती है।हम सबके एक साथ रहने में ही हमारी सुरक्षा थी।
  • गणित शिक्षक की बात सुनकर सभी विद्यार्थी बहुत भौचक्के रह गए और शर्मिंदा भी हुए।उन्होंने उस विद्यार्थी और गणित शिक्षक से माफी मांगी और कहा कि हम भी प्रामाणिक बनने की चेष्टा करेंगे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Become Students Authentic?),प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Be Authentic?) के बारे में बताया गया है।

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6.फ्री में गणित की कोचिंग (हास्य-व्यंग्य) (Free Math Coaching) (Humour-Satire):

  • एक कंजूस छात्र कोचिंग सेंटर में जाकर गणित शिक्षक से कहता है की फीस लेकर तो सभी शिक्षक गणित पढ़ते हैं आप फ्री में पढ़ाओ हो तो जानूं।
  • गणित शिक्षक:छात्र को बेंच पर बिठाकर बोले गणित शिक्षक से सभी छात्र-छात्राएं सवाल समझ कर हल करते हैं।तुम बिना गणित शिक्षक के सवाल हल करके बताओ तो जानूं।

7.छात्र-छात्राएं प्रामाणिक कैसे बनें? (Frequently Asked Questions Related to How to Become Students Authentic?),प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Be Authentic?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.शास्त्रों के अनुसार मर्यादा का पालन करने का क्या लाभ है? (What is the Benefit of Following the Dignity According to the Scriptures?):

उत्तर:संसार में आने-जाने वाले हजारों व्यवहार हैं उनमें सुख-दुःख के विचार को छोड़कर शास्त्रों के अनुकूल आचरण करना चाहिए।शास्त्रों के अनुकूल तथा कभी न मिटने वाली मर्यादा का जो त्याग नहीं करता उसे सारी वस्तुएं इस प्रकार प्राप्त हो जाती है जैसे समुद्र में गोता लगाने वाले को रत्नों का ढेर।

प्रश्न:2.दूसरों को सबसे अधिक कौनसा गुण आकर्षित करता है? (What Qualities Attract Others the Most?):

उत्तर:मनुष्य में रूप,चातुर्य,बुद्धि,वैभव,कलाकारिता आदि कितनी ही ऐसी विशेषताएं हो सकती हैं,जो दूसरों को प्रभावित करें,पर सबसे अधिक प्रभावोत्पादक आकर्षण है:प्रामाणिकता।जिन्होंने इसका उपार्जन किया है,वे हर क्षेत्र में ऊपर उठे और चमकते हुए दिखाई पड़ेंगे।जिसने इसे पा लिया,उसके लिए अभीष्ट मार्ग पर द्रुतगति से चल पड़ना नितांत सरल होता है।

प्रश्न:3.क्या प्रामाणिक व्यक्ति विश्वसनीय होता है? (Is an Authentic Person Trustworthy?):

उत्तर:प्रामाणिक व्यक्ति विश्वसनीय होता है।प्रामाणिक व्यक्ति हर कार्य को ठीक प्रकार से करता है,उसे अपने लक्ष्य में सफलता मिलती है तथा अपने कार्य सिद्धि में सच्चा विश्वास होता है इसीलिए वह विश्वसनीय,भरोसा करने योग्य होता है।विश्वसनीय व्यक्ति भयंकर विपत्ति में भी किसी का साथ नहीं छोड़ता है जबकि अन्य लोग साथ छोड़कर चले जाते हैं।विश्वसनीय व्यक्ति कमजोर हृदय और मानसिक दुर्बलता वाला नहीं होता है जो खतरों,कठिनाइयां,विपत्तियों,बाधाओं और संकटों को देखकर घबरा जाए।यह दृढ़ता विश्वसनीय व्यक्ति में सदाचरण के पालन से आती है अतः विश्वसनीय व्यक्ति प्रामाणिक होता है या प्रामाणिक व्यक्ति में विश्वसनीयता होती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Become Students Authentic?),प्रामाणिक कैसे बनें? (How to Be Authentic?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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