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How Do Math Students Build Their Lives?

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1.गणित के छात्र-छात्राएं जीवन का निर्माण कैसे करें? (How Do Math Students Build Their Lives?),गणित के छात्र-छात्राओं हेतु जीवन का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build A Life for Mathematics Students):

  • गणित के छात्र-छात्राएं जीवन का निर्माण कैसे करें? (How Do Math Students Build Their Lives?) क्योंकि शिक्षा अर्जित करने का मूलभूत उद्देश्य जीवन निर्माण करना है।जीवन में कुछ उद्देश्य स्थायी होते हैं तथा कुछ उद्देश्य परिवर्तनशील होते हैं।इन उद्देश्यों को प्राप्त करना ही जीवन निर्माण की प्रक्रिया है।जीवन निर्माण एक कठिन तप और साधना प्रक्रिया है।इस प्रक्रिया से गुजरने पर बहुत से कष्ट,कठिनाइयों और उलझनों का सामना करना पड़ता है।छात्र-छात्राओं को अपने आपको बहुत से संकटों में डालना पड़ता है।गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन करते समय जिन परिस्थितियों,कठिनाइयों तथा समस्याओं से गुजरते हैं उन पर पैनी नजर रखनी चाहिए।अपने अनुभवों तथा दूसरे के अनुभवों का लाभ उठाते हुए उन्हें अपने जीवन का निर्माण करना चाहिए।आपबीती हुई बातों से अधिक अनुभव इकट्ठे नहीं किए जा सकते इसलिए गणित के अन्य विद्यार्थी तथा लोग जिन अनुभवों से गुजर चुके हैं उनसे शिक्षा ग्रहण करके जीवन का निर्माण करने से अपनी योग्यता वृद्धि में सहायता मिलती है तो उसे ग्रहण करना ही चाहिए।
  • गणित की वस्तुस्थिति को न समझना और दोषपूर्ण चिन्तन पद्धति के कारण छात्र-छात्राओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।मित्र तथा सहपाठी के असफल होने पर हम दुःखी हो जाते हैं,अपने अध्ययन कार्य को छोड़ बैठते हैं,अत्यधिक चिन्तित और दुःखी हो जाते हैं,यह समस्या हम स्वयं अपने लिए खड़ी कर लेते हैं।इस संसार में हर छात्र-छात्रा चाहे वह गणित का विद्यार्थी हो अथवा अन्य विषय का विद्यार्थी हो,गणित को विधिपूर्वक तथा प्रश्न-पत्र को हल करने लायक अध्ययन तथा अभ्यास नहीं करता है तो उसको असफलता का स्वाद चखना ही पड़ता है।
  • जो विद्यार्थी अध्ययन नहीं करेगा उसका असफल होना अनिवार्य ही है,यदि स्वयं तथा अन्य को असफल होते देखकर रोएँ और छाती पीटें तो भी वह उत्तीर्ण नहीं हो सकेगा।छात्र-छात्राएं भ्रमवश यह मान लेते हैं कि केवल अध्ययन करने पर उत्तीर्ण हुआ जा सकता है।परन्तु तोता रटन्त पद्धति से न तो गणित का अध्ययन किया जा सकता है और न इससे जीवन का निर्माण हो सकता है।
  • ऐसी स्थिति में आशा के अनुरूप परिणाम न आने पर रोते-चिल्लाते हैं।दोष उस अनुत्तीर्ण होने वाले मित्र,सहपाठी का नहीं है।क्योंकि सही रणनीति,योजनाबद्ध,व्यवस्थित रूप से,नियमित अध्ययन,कठोर परिश्रम (अभ्यास) तथा अध्ययन-मनन-चिंतन के बिना किसी भी विद्यार्थी को चाहे आप स्वयं हो तो भी असफलता के पथ से गुजरना पड़ेगा।दोष हमारे उस दृष्टिकोण का है जिसके कारण हम मित्र-सहपाठी से मोह-ममता के कारण बंधे हुए हैं और हमेशा यह आशा रखते हैं कि वह उत्तीर्ण हो जाएगा।जिन्होंने अपने मन में ऊँचे-ऊँचे आशाओं के महल बना रखे हैं परंतु उसको साकार करने के लिए कुछ करते नहीं है,उद्योगशील नहीं है उनकी आशाओं के महल ताश के पत्तों की तरह बिखर जाते हैं।अपनों के तथा स्वयं के असफल होने पर रो-रोकर आसमान को उठा लेते हैं।अनेक छात्र-छात्राएं असफल होते हैं परंतु उनके लिए हमारे मन में कोई तकलीफ नहीं होती है।परंतु जिनसे हमारा स्वार्थ जुड़ा हुआ होता है तो रो-रोकर व्याकुल हो जाते हैं।यदि उन्हें जीवन का निर्माण सही ढंग से करना है तो इन मोह-ममता के बंधनों से ऊपर उठना होगा और अपना कर्त्तव्य को करते रहना होगा।
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2.जीवन निर्माण की कुंजी अपने अन्दर (The Key to Building Life within Yourself):

  • यदि अपने मित्रों,सहपाठियों तथा स्वयं अपने शरीर से मोह-ममता के पाश से न बंधकर तथा उन पर आशाओं के काल्पनिक महल न खड़े करके कर्त्तव्य भावना से जुड़े रहें तो अनुकूल-प्रतिकूल परिणाम से हम प्रभावित नहीं होंगे।
  • कर्त्तव्य से तात्पर्य है कि उनको गणित और अन्य विषयों में आने वाली कठिनाइयों में सहायता-सहयोग करें।उन्हें गणित और अन्य विषयों का अध्ययन करने के लिए समय-समय पर प्रेरित करें।सांसारिक सम्बन्धियों,मित्रों,सहपाठियों तथा स्वजनों की सेवा-सहायता कर्त्तव्य समझकर करें।किसी के प्रति आसक्ति न रखकर निर्लिप्त भाव से अपनी जिम्मेदारी को निबाहे।यह समझ यदि अपने दिल और दिमाग में बैठ जाए तो हमारे अनेक मानसिक क्लेशों का अंत हो जाएगा।
  • गणित के अध्ययन क्षेत्र में छात्र-छात्राओं की गिरावट अपने आप नहीं होती वरन उसका कारण उनकी भूल है।अध्ययन निरंतर न करना,अध्ययन वैज्ञानिक विधि से न करना,या तो कभी अध्ययन करना या बिल्कुल अध्ययन न करना,मन में आए तो अध्ययन करना और न आए तो अध्ययन न करना,कठोर परिश्रम से जी चुराना,अपनी शक्ति और सामर्थ्य को अध्ययन में न लगाकर अन्य कार्यों में लगाना,मौज-मस्ती करना इत्यादि गणित में कमजोर होने के मुख्य कारण हैं।जो छात्र-छात्राएं गणित के गंभीर अध्ययन पर मन को फोकस रखते हैं,गणित के अध्ययन तथा अभ्यास करने के नियमों का पालन करते हैं वे गणित में सुदृढ़ स्थिति प्राप्त कर लेते हैं और गणित में निपुण व तेजस्वी हो जाते हैं।
  • रूस,अमेरिका तथा यूरोप के छात्र-छात्राएं गणित में कितने प्रखर व तेजस्वी हैं क्योंकि वे उपर्युक्त नियमों का पालन करते हैं।हमारी तरह वे अकर्मण्य नहीं है और न ही भाग्य का रोना रोते हैं।बुद्धि और विवेक का उपयोग गणित का अभ्यास तथा मनन-चिंतन करने में करते हैं जिससे वे जल्दी ही गणित के शिखर पर जा विराजते हैं और शिखर से तत्काल नहीं लुढ़क पड़ते हैं बल्कि दीर्घकाल तक गणित के क्षेत्र में योगदान देते हैं।
  • हमारे देश का ही उदाहरण देख ले लें ग्रामों के बजाय शहरी छात्र-छात्राएं शिक्षा में आगे बढ़े-चढ़े हैं तथा शीर्ष पर अपना परचम लहराते हैं।यदि ग्रामीण क्षेत्र में कोई शीर्ष पर आता है तो इसके पीछे उसकी अनवरत तप और साधना ही होती है।ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का अधिक प्रसार न होने का कारण अज्ञानता व शिक्षा के प्रति उपेक्षा भाव ही है।
  • कठोर परिश्रम (अभ्यास) व मनन-चिंतन से कोई भी छात्र-छात्रा गणित में होशियार हो सकता है और आलस्य,लापरवाही तथा प्रमाद के कारण वर्तमान स्थिति से भी बुरी हालत में लुढ़क सकता है।गणित विषय हो अथवा अन्य विषय हो उसमें पारंगत तथा शीर्ष पर तभी तक रहते हैं जब तक उसका लगातार अभ्यास करते रहते हैं और मनन-चिंतन करते हैं।गणित के क्षेत्र में जीवन निर्माण की कुंजी छात्र-छात्राओं के अंदर ही है।
  • गणित के द्वारा जाॅब प्राप्त करना,जॉब से धन-संपत्ति प्राप्त करना,गणित विषय का ज्ञान प्राप्त करना,विद्याध्ययन करना और बुद्धि का विकास करना इत्यादि कार्य के लिए प्रचण्ड पुरुषार्थ,निरंतर प्रयत्न करना,सच्ची लगन,जिज्ञासा,उत्साह और मनन-चिंतन की आवश्यकता होती है।जो लोग आज गणित तथा विज्ञान के शिखर पर दिखाई देते हैं वे अनायास ही शिखर पर नहीं पहुंच गए हैं बल्कि उन्होंने जी-जान से मेहनत की है,दिन-रात एक ही धुन सवार रही है अध्ययन-अध्ययन और अध्ययन।
  • इन महान गणितज्ञों और वैज्ञानिकों ने वर्षों कठोर परिश्रम किया है,घर-परिवार,साथी-मित्रों और संबंधों की तरफ नाम मात्र का ध्यान दिया है,अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया है,अनेक महान गणितज्ञों से सत्संग किया है,जीवन में ठोकरें खायी हैं,खेल-तमाशों,मौज-मस्ती और मनोरंजनों से समय बचाकर पढ़ने व अध्ययन करने की धुन ही सवार रही है।गणित की समस्याओं और सिद्धान्तों को सुलझाने में गम्भीर चिन्तन-मनन किया है,ज्ञान प्राप्ति के लिए अनेक कष्टों को उठाया है।यदि वे ऐसा नहीं करते तो गणित में सिरमौर नहीं हो सकते थे,विद्वान नहीं बन सकते थे और हमारी आपकी तरह गयी गुजरी स्थिति में ही पड़े हुए मिलते तथा उनको आज कोई भी स्मरण करने वाला नहीं मिलता।
  • जिन गणितज्ञों,वैज्ञानिकों और महापुरुषों को पद,प्रतिष्ठा व प्रशंसा मिली है और उनका यश फैल रहा है तथा उनके अनेक लोग प्रशंसक है तो उसका कारण है कि उनमें ऐसे बहुत से गुण हैं जो लोगों का मन अपनी और आकर्षित करते हैं,उनमें बहुत से ऐसी विशेषताएं हैं जिनसे लोग लाभ उठाते हैं।उन्हें यश,प्रतिष्ठा,पुरस्कार मुफ्त में नहीं मिल गया है बल्कि इसके लिए उन्होंने तप और साधना की है उसके पश्चात ही वे इस काबिल हुए हैं।
  • हालांकि कुछ छात्र-छात्राओं को कभी-कभी सफलता अनायास मिल जाती है।जो वे अध्ययन करके जाते हैं वही सवाल व प्रश्न आ जाते हैं और अच्छी श्रेणी से उत्तीर्ण हो जाते हैं।परंतु ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है,इसके आधार पर निश्चित नियम नहीं बनाया जा सकता है।अनायास मिलने के दो कारण होते हैं या तो पूर्वजन्म के कर्मफल शेष होगा जो अब प्राप्त हुआ है या अब कर्ज लिया जा रहा है जो आगे चुकाना पड़ेगा।मुफ्त का माल तो राई-रत्तीभर भी नहीं मिल सकता है।यदि बैंक में जमा धन है और उसमें से कुछ निकाल लिया है तो वह भी अपने उद्योग का फल हुआ।मनोवांछित सफलता प्राप्त करने की कुंजी हमारे अंदर है,जो लोग तथा छात्र-छात्राएं इसको समझ लेते हैं वे बासी रोटी के ऊपर या कर्ज लेकर शान बनाने का गौरव गान नहीं करते हैं।

3.जीवन निर्माण की युक्तियां (Life Building Tips):

  • (1.)हमारे जीवन निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण बात है अपने जीवन के लक्ष्य का निर्धारण करना।जीवन का लक्ष्य दृढ़,आदर्श,पक्का,अचल और एक होता है ऐसे छात्र-छात्राएं जीवन संग्राम में अन्त तक डटे रहते हैं।बिना लक्ष्य जीवन जीना उस गाड़ी में सवार होना है जिसका कोई ड्राइवर न हो।
  • (2.)गणित के छात्र-छात्राओं को अपने जीवन का एक लक्ष्य अवश्य तय कर लेना चाहिए तथा उसको प्राप्त करने की जी-जान से कोशिश करनी चाहिए।अपने जीवन को उस लक्ष्य के अनुरूप ढाल लेना चाहिए।हमारे जीवन का लक्ष्य भोग-विलास,सुख-सुविधाओं को भोगने में नहीं होना चाहिए।जैसे गणित के छात्र-छात्राओं के जीवन का लक्ष्य गणितज्ञ बनना,गणित में खोज कार्य करना,गणित का अध्यापक बनना,इंजीनियर बनना इत्यादि हो सकता है।जीवन लक्ष्य को विवेक और चिन्तन द्वारा गहराई तक ढाल देना पड़ेगा तभी जीवन लक्ष्य की प्राप्ति करा सकने वाली सफलता प्राप्त की जा सकेगी।सांसारिक भोगों,लिप्साओं,प्रलोभनों से बचकर रहना होगा।
  • (3.)जीवन का निर्माण करना एक कला है।लोग तथा छात्र-छात्राएं जीवन निर्माण की कला नहीं जानते हैं अथवा जिन्हें जीवन निर्माण की कला का सहज ज्ञान नहीं है वे जीते हुए भी ठीक से नहीं जीते हैं।बहुत से छात्र छात्राएं भौतिक सुख-सुविधाओं को भोगने,अपने को सजाने-संवारने,काम-पिपासा को शांत करने को ही सबकुछ मान बैठते हैं वे जीवन निर्माण के असली उद्देश्य को प्राप्त करने से वंचित रहते हैं।जीवन कला तो वह मानसिक वृत्ति है जिसके आधार पर सुख-सुविधाओं,साधनों की कमी होने पर भी जीवन को खूबसूरती से जिया जा सकता है।
  • (4.)अपने जीवन का सही लक्ष्य तय करना भी एक कला है।लक्ष्यहीन जीवन भी एक उलझन है।लक्ष्यहीन जीवन जीने वाले छात्र-छात्राएं आज लेखक बनना चाहता है,कल संगीतकार,परसों भजन गायक,कभी खिलाड़ी तो,कभी राजनीतिज्ञ बनना चाहता है।ऐसा विद्यार्थी बिना चप्पू के नाव चलाने के समान है जिसमें नाव चलती है तो है परंतु पहुंचती कहीं नहीं है बल्कि एक ही स्थान पर चक्कर काटती रहती है।
  • (5.)आन्तरिक विचार,चरित्र जीवन का निर्माण करते हैं।इसलिए विचार और चरित्र अच्छा हो इसके लिए श्रेष्ठ गणितज्ञों,श्रेष्ठ गणित अध्यापकों के संपर्क में रहें,श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़े,श्रेष्ठ बातें सोचें,श्रेष्ठ सपने देखें,श्रेष्ठ घटनाएं देखें,श्रेष्ठ कार्य करें अर्थात् सदैव श्रेष्ठ बातों में श्रद्धा रखने से सफलता मिलती है।
  • (6.)हमारा अधिकांश समय आहार,निद्रा,संतानोत्पत्ति और भय में ही व्यतीत हो जाता है।हमें सोचना चाहिए कि क्या हमारा जीवन इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हुआ है।
  • (7.)जीवन संघर्षमय है इसलिए संघर्ष से नहीं घबराना चाहिए।संघर्ष से मन के विकार दूर होते हैं और हमारा जीवन तपस्यामय बनता है।मनोवांछित सफलता में तप और साधना की मुख्य भूमिका है।
  • (8.)ऐसा जीवन जियो जिसे आदर्श और अनुकरणीय कहा जा सके।विश्व में ऐसा कार्य करके जाओ जिससे आगामी पीढ़ी अपना मार्ग ढूँढ सके।
  • (9.)अपने जीवन के निर्माता हम स्वयं हैं।स्वयं जीवन को उन्नत और अवनत कर सकते हैं।जब हम सुख और संतोष के लिए प्रयत्न करते हैं तो हमारी मानसिक स्थिति उसी तरह की हो जाती है।
  • (10.)जीवन निर्माण में कर्त्तव्य पालन का सर्वोपरि स्थान है।कर्त्तव्य का अर्थ है अपने कार्य को एकाग्रतापूर्वक करना तथा दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप न करना।
  • (11.)जीवन निर्माण का अर्थ है अपने गुण,कर्म,स्वभाव तथा अन्तरात्मा को पवित्र और उत्कृष्ट बनाने का प्रयास करना तथा अपनी बुद्धि व शरीर का पूर्ण उपयोग करना।
  • (12.)हम जो कुछ भी जीवन में प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए अपने अन्दर उपयुक्त पात्रता विकसित करना।अपनी सहायता आप करना तथा दूसरों पर कम से कम आश्रित रहने का प्रयास करना।
  • (13.)अपनी योग्यता,क्षमताओं तथा अपने आपको समझना,अपने आपका मूल्यांकन करना और उपलब्धियों का सदुपयोग करना और अपनी भूलों में सुधार करना जीवन निर्माण की ओर अग्रसर होना है।
  • (14.)जीवन निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है भोगों का भोग करना,संग्रह करना,लालच,लोभ,सगे संबंधियों के प्रति मोह तथा अहंकार तथा मन के विकार।अतः इनसे मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए।
  • (15.)मनुष्य का चिन्तन,चरित्र एवं लक्ष्य ही वह आधार है जिस पर जीवन की नींव टिकी हुई है।जीवन निर्माण का मतलब है प्रगति,उन्नति और विकास करना।दृष्टिकोण को परिमार्जित करना और लक्ष्य ऊँचा रखना।अपनी प्रतिभा को तराशना,निखारना और उभारना जीवन का निर्माण करना है।

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4.जीवन निर्माण का दृष्टान्त (The Parable of Life Building):

  • एक समय की बात है कि एक विद्यार्थी गणित में बहुत होशियार था।किसी सवाल को यों चुटकियों में हल कर देता था।धीरे-धीरे उसे अपने गणित के ज्ञान पर घमण्ड हो गया।धीरे-धीरे उसकी ख्याति फैल गई।एक बार भ्रमण करते हुए वह एक नगर में पहुँचा।वहाँ उसे भूख लगी।सोचा हाॅस्टल में भोजन मिल जाएगा।वह हॉस्टल में गया और एक कमरे के दरवाजे को खटखटाया।अंदर से एक विद्यार्थी ने कमरा खोला।गणित के विद्यार्थी ने अपना परिचय दिया।तब हॉस्टल के विद्यार्थी ने उसे थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के लिए कहा क्योंकि वह भौतिक शास्त्र के अध्यापक की सेवा करने में लगा हुआ था।
  • गणित के विद्यार्थी को क्रोध आ गया।स्थिति को समझते हुए हॉस्टल के विद्यार्थी ने कहा कि यह गणित के सवाल नहीं है जो तत्काल हल हो जाएंगे।गणित के विद्यार्थी ने सोचा कि मैंने तो इसे बताया ही नहीं था कि मैं गणित का विद्यार्थी हूं फिर इसे कैसे मालूम हुआ।उसकी भूख और क्रोध दोनों गायब हो गए।गणित के विद्यार्थी ने कहा कि यह विद्या तुमने कहां से सीखी जो मेरे बारे में इतना पता चल गया।भौतिक शास्त्र के विद्यार्थी ने गुरुजी की सेवा से निवृत्त होकर कहा कि तुम योगविद्या के बारे में जानना चाहते हो।गणित का विद्यार्थी हाथ जोड़कर खड़ा रहा और बोला हाँ।
  • तब भौतिक शास्त्र के विद्यार्थी (हाॅस्टल के विद्यार्थी) ने कहा कि सबसे बड़ी योग विद्या है अनासक्त कर्म (कर्त्तव्य निष्ठा) करना।जीवन का अर्थ केवल भौतिक शास्त्र या गणित का हल करना ही नहीं है बल्कि अपने कर्त्तव्यों का पालन करने की कला सीखना (अनासक्त कर्म) ही जीवन निर्माण करना है तभी जीवन की सार्थकता है।अध्यापक एक छात्र-छात्रा को जो कि अनगढ़ होता है उसे सुगढ़ में बदल देता है और मैं उन्हीं अध्यापक की सेवा में संलग्न था।परंतु गणित का ज्ञान,भौतिक विज्ञान का ज्ञान पाकर अहंकार व क्रोध करना अपने जीवन को निरर्थक करना है।गणित के विद्यार्थी को जीवन निर्माण का सही तत्त्वज्ञान प्राप्त हो गया था।उसने भौतिक शास्त्र के छात्र को प्रणाम किया और अपने कर्तव्य पथ पर लौट आया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राएं जीवन का निर्माण कैसे करें? (How Do Math Students Build Their Lives?),गणित के छात्र-छात्राओं हेतु जीवन का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build A Life for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।

5.नकली हल की गणित पुस्तक (हास्य-व्यंग्य) (Fake Solution Mathematics Book) (Humour-Satire):

  • छात्र (गणित शिक्षक से):कल रद्दी की टोकरी में से गणित की पुस्तकें निकली थी।
  • गणित अध्यापकःमैंने ही उन्हें कल फेंका था।वे गणित के सही हल वाली पुस्तकें न होकर,नकली हल वाली पुस्तके थी।
  • छात्रःइसलिए तो आपको वापस कर रहा हूं।

6.गणित के छात्र-छात्राएं जीवन का निर्माण कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Math Students Build Their Lives?),गणित के छात्र-छात्राओं हेतु जीवन का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build A Life for Mathematics Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.निर्माण का केंद्र कहां है? (Where is the Center of Life Building?):

उत्तर:अपने ऊपर आत्म-विश्वास रखना,अपने ऊपर निर्भर रहना तथा भीतर की ओर दृष्टि डालना अर्थात् अपने अन्दर ही जीवन निर्माण का केंद्र स्थित है।सांसारिक सफलताओं,आध्यात्मिक यात्रा तथा कर्त्तव्यों का पालन करने की कला सीखने का केन्द्र हमारे भीतर स्थित है।इसलिए दूसरों का आसरा ताकने की बजाय अपना आत्म-निरीक्षण करना और अपनी सुप्त शक्तियों को जागृत करना प्रारंभ कर देना चाहिए।

प्रश्न:2.संसार के लोग दो व्यक्तियों के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार क्यों करते हैं? (Why do People in the World Treat Two People Differently?):

उत्तर:एक मनुष्य को सब लोग आदर करते हैं,उस पर विश्वास करते हैं,उसको सहायता देते हैं पर दूसरे मनुष्य को इससे ठीक उल्टा प्राप्त होता है।संसार के लोग पक्षपाती होते हैं यह कहने से काम नहीं चलता है।हमें दोनों व्यक्तियों के गुण,कर्म,स्वभाव और चरित्र का सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण करना होगा।दोनों की आकृति एक सी होते हुए भी मानसिक स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर होगा।इस अन्तर पर ही जीवन की सफलताएं-असफलताएं निर्भर करती है।यदि हमें आगे बढ़ना है तो इस मूल केंद्र के सुधार और परिवर्तन पर ध्यान देना होगा।

प्रश्न:3.जीवन को कैसे समझें? (How to Understand Life?):

उत्तर:जिंदगी का हर पल हमें कुछ सिखाकर जाता है लेकिन यदि व्यक्ति बिलकुल भी होश में नहीं है तो वह इसका लाभ नहीं ले सकता है अन्यथा जीवन में मिलने वाली असफलताएं,परेशानियां,अपमान,चुनौतियां व मानसिक कष्ट यह बताते हैं जिंदगी जीने में कहीं कोई भूल हुई है जिसका परिणाम आज भुगतना पड़ रहा है।
How Do Math Students Build Their Lives?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के छात्र-छात्राएं जीवन का निर्माण कैसे करें? (How Do Math Students Build Their Lives?),गणित के छात्र-छात्राओं हेतु जीवन का निर्माण करने की 3 टिप्स (3 Tips to Build A Life for Mathematics Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

How Do Math Students Build Their Lives?

गणित के छात्र-छात्राएं जीवन का निर्माण कैसे करें?
(How Do Math Students Build Their Lives?)

How Do Math Students Build Their Lives?

गणित के छात्र-छात्राएं जीवन का निर्माण कैसे करें? (How Do Math Students Build Their Lives?)
क्योंकि शिक्षा अर्जित करने का मूलभूत उद्देश्य जीवन निर्माण करना है।
जीवन में कुछ उद्देश्य स्थायी होते हैं तथा कुछ उद्देश्य परिवर्तनशील होते हैं।

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