इस आर्टिकल में हम एक ऐसी शख्सियत से परिचय करा रहे हैं जिनका देश की गणित व विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन प्रोफेसर साहब का परिचय है यशपाल ।गणित व विज्ञान शिक्षा को बोझ रहित करने हेतु उन्होंने अथक प्रयास किया है ।ऐसी बहुत कम शख्सियत होती हैं जो अपने पद को प्रोफेशनल नहीं समझ कर सेवा और कर्म का क्षेत्र मानती है ।कैंसर जैसी बीमारी से ग्रस्त होने पर भी अंतिम समय तक वह गणित व विज्ञान के लिए काम करते रहे। ऐसा समर्पण व त्याग बहुत कम देखने को मिलता है ।वे विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए लोगों को गणित व विज्ञान के लिए प्रेरित करते रहे ।उनके इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप दूरदर्शन पर गणित व विज्ञान के कार्यक्रम प्रसारित किए गए जो कि भारत में गणित व विज्ञान को सरल व सुगम बनाने हेतु टर्निंग प्वाइंट था। उन्हीं के प्रयासों से गणित व विज्ञान विषय लोकप्रिय हुए।वस्तुतः वे सच्चे अर्थों में कर्म योगी थे।
कर्म योग का अर्थ होता है कि जो कर्म अनासक्ति के साथ किया जाता है अर्थात ऐसे कर्म जिनको करने पर फल की प्राप्ति की इच्छा न रखी जाए ।आसक्ति पूर्वक अर्थात कामना के वश में होकर कोई कार्य किया जाता है तो उस कार्य में कर्ता भाव आ जाता है और जो कर्ता होता है वह भोक्ता भी होता है अर्थात कर्म का फल सुख व दुख भोगना पड़ता है। परंतु प्रोफेसर यशपाल ने सांसारिक कर्तव्यों को अनासक्त भाव से किया, उसी का परिणाम है कि भारत में गणित व विज्ञान की प्रगति हो सकी । हालांकि अन्य महापुरुषों का योगदान भी गणित के विकास करने में रहा है परंतु प्रोफेसर यशपाल के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है ।
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वे हमेशा गणित और विज्ञान के टेढ़े-मेढे प्रश्नों का भी सीधे और सरल ढंग से उत्तर देते थे ।हमेशा आजीवन लोगों की गणित और विज्ञान के प्रति रुचि व जिज्ञासा बढ़ाते रहे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उन्होंने गणित और विज्ञान विषय को बोझ रहित करने का अथक प्रयास किया और इसमें वे सफल रहे।वे एक सच्चे कर्म योगी की भांति कर्म करते रहे।वे 90-91 वर्ष की आयु में भी कर्म करते रहे। सामान्यतः बहुत से लोग इससे पूर्व ही या तो स्वर्ग सिधार जाते हैं या सांसारिक कर्त्तव्यों से मुंह मोड़ लेते हैं। वस्तुत कई लोग सांसारिक कर्त्तव्यों को छोड़ना ही अनासक्त कर्म मानते हैं। परंतु कर्म का सिद्धांत है कि कोई भी मनुष्य कर्म किए बिना नहीं रह सकता है ।कर्म करने के भी कई तरीके हैं ।पहला फल की कामना से कोई कर्म करना ,दूसरा किसी के दबाव से कर्म करना। किसी के दबाव से कर्म करने में मनुष्य की इच्छा नहीं होती है परंतु ऐसा कर्म गलत भी हो सकता है। तीसरा प्रकार है कर्म को कर्तव्य समझकर करना। प्रोफेसर यशपाल ने कर्तव्य समझकर कर्म किया और यही श्रेष्ठ है। आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें ।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके ।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए ।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
2.एक ऐसा प्रोफेसर जिसने गणित और विज्ञान की जटिलताओं को बना दिया आसान(A professor who made the complexities of mathematics and science easier)-
प्रोफेसर यशपाल देश के ऐसे शिक्षाविद् थे जिन्होंने गणित और विज्ञान की जटिलताओं को बड़े ही आसान तरीके से हल करके लोगों को इन विषयों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया.
Updated: 26 Nov 2019
नई दिल्ली: देश में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में जिन लोगों ने सबसे अधिक योगदान दिया उनमें एक प्रमुख नाम प्रोफेसर यशपाल का भी हैं. आज प्रोफेसर यशपाल का जन्मदिन है. विलक्षण प्रतिभा के धनी प्रो यशपाल के शिक्षा को बोझ रहित बनाने के लिए किए गए प्रयासों से ही भारत के एजूकेशन सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद मिली. आइए जानते हैं प्रोफेसर यशपाल के जीवन से जुड़ी खास बातें-
विज्ञान और गणित को लोकप्रिय बनाने के लिए यशपाल ने कई प्रयास किए. जिसमें से उनके दूरदर्शन प्रसारित होने वाले साइंस पर आधारित कार्यक्रम टर्निंग प्वाइंट का बहुत बड़ा योगदान रहा. प्रोफेसर यशपाल स्वयं इस कार्यक्रम को होस्ट करते थे और आसान तरीकों से विज्ञान और गणित की जटिलताओं को हल करते थे.
उनका मकसद गणित और विज्ञान को आम इंसान के बीच लोकप्रिय बनाना था. इसीलिए वे 90 साल की उम्र में भी वे संचार के विभिन्न माध्यमों का उपयोग कर लोगों के जटिल से जटिल सवालों का बड़े ही आसान ढंग से जवाब देते थे.
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शिक्षा के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण प्रदान किया. उनका जन्म 26 नवंबर 1926 को पाकिस्तान में हुआ था. पंजाब यूनिवर्सिटी से भौतिक विज्ञान की पढ़ाई पूरी की और बाद में पीएचडी की उपाधि हासिल की.
प्रोफेसर यशपाल ने मुंबई स्थित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान से अपने करियर की शुरूआत की. बाद में वे वर्ष 1973 में अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के पहले निदेशक बनाए गए. योजना आयोग के वे मुख्य सलाहकार भी रहे.
प्रोफेसर यशपाल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे. वर्ष 2007-12 तक वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. प्रोफेसर यशपाल बच्चों को विज्ञान पढ़ाने पर अधिक जोर देते थे उनका कहना था जीवन में विज्ञान की शिक्षा व्यक्ति को दुनिया को समझने का नजरिया देती है.
बच्चों के सवालों का जवाब देना प्रोफेसर यशपाल को बहुत पसंद था. वे अधिकतर समय बच्चों के बीच गुजारते थे. कैंसर जैसी बीमारी होने के बाद भी अतिंत सांस तक शिक्षाविद् बने रहे और लोगों को प्रेरित करते रहे. 24 जुलाई 2017 को उत्तर प्रदेश के नोएडा में उनका निधन हो गया.
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