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How to Test Progress of Maths Students?

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1.गणित के छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Test Progress of Maths Students?),छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Assess Progress of Students?):

  • गणित के छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Test Progress of Maths Students?) या अन्य छात्र-छात्राओं की उन्नति की कसौटी क्या होनी चाहिए? अक्सर छात्र-छात्रा द्वारा परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना,अच्छा जाॅब या पद प्राप्त करना,कोई पुरस्कार (अवार्ड) प्राप्त करना,किसी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होना,आईआईटी या आईएएस बनना,यश,कीर्ति फैलना,बहुत-सा पैसा या धन कमाना इत्यादि को उन्नति की कसौटी या सफलता की कसौटी माना जाता है।
  • यदि उपर्युक्त सभी चीजें प्राप्त की जाए तो ये सब बाहरी सफलताएं या उन्नति के प्रतीक हैं।इन्हें छात्र-छात्राओं की वास्तविक प्रगति नहीं माना जा सकता है।
  • नकल करके परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना,सिफारिश अथवा अपने प्रभाव का प्रयोग करके जाॅब प्राप्त करना,भ्रष्टाचार,घूसखोरी,गबन से धन-संपत्ति अर्जित करना,अपने प्रभाव से रिवार्ड प्राप्त करना इत्यादि सारे काम अनैतिक या गलत तरीके से किए जा सकते हैं।
  • छात्र-छात्राओं द्वारा गणित में डिग्री प्राप्त कर लेना,बीएससी,एमएससी,पीएचडी या आईआईटी कर लेना अथवा अन्य कार्य कर लेना उन्नति या सफलता है परन्तु यह बाहरी सफलता,उन्नति ही कही जा सकती है।
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2.यथार्थ में उन्नति (Progress in Reality):

  • गणित में ग्रेजुएट,पोस्ट ग्रैजुएट,पीएचडी या आईआईटी अथवा इंजीनियरिंग की डिग्री के साथ-साथ जो विद्यार्थी ईमानदारी,सच्चाई,धैर्य,सदाचार,सरलता,विनम्रता,साहस,विवेक,सद्बुद्धि,सहयोग,समन्वय,सहिष्णुता इत्यादि गुणों को धारण करता है या विकसित करता है तभी विद्यार्थी के लिए यह कहा जा सकता है कि उसने प्रगति,विकास या उन्नति की है।
  • मानवीय गुणों से रहित शिक्षा,डिग्री इत्यादि मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठा तो नहीं देती परंतु अधिकांश छात्र-छात्राओं की दृष्टि भौतिक उन्नति,भौतिक समृद्धि,बाहरी सफलताओं पर ही टिकती है।जो छात्र-छात्राएं अच्छा जाॅब,पद,धन-संपत्ति,प्रतिष्ठित या पहुँच वाले बन जाते हैं लोग उन्हीं के पीछे भागने-दौड़ने लगते हैं।उससे लाभ उठाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।
  • ये सभी उपलब्धियां छात्र-छात्राओं की महत्त्वाकांक्षाओं और उसके लिए किए जाने वाले प्रयासों से उत्पन्न है क्योंकि अंततः छात्र-छात्राएं महत्त्वाकांक्षाओं को ही तो आधार बनाकर जीता है।इनके आधार पर किसी छात्र-छात्रा को सफल और उन्नत कहा जा सके तो महत्त्वाकांक्षाओं को ही छात्र-छात्रा की उन्नति की कसौटी माना जाना चाहिए।
  • यथार्थ में इस प्रकार सफलता या उन्नति को जीवन की सार्थकता अथवा मानवीयता की कसौटी मानना भूल होगी।छात्र-छात्रा की महत्त्वाकांक्षा और उन्हें पूरा करने का प्रयास करना स्वाभाविक है क्योंकि खाने-पीने की सुविधाएं और साधन प्रकृति ने प्रारंभ से ही इतने जुटा दिए हैं कि यदि छात्र-छात्रा को निर्वाह में ही सन्तोष करना होता तो इतने हाथ-पैर (डॉक्टर,इंजीनियर,प्राध्यापक,आईएएस इत्यादि) मारने की जरूरत नहीं पड़ती।
  • परंतु उन्नति और सफलता का एक दूसरा पक्ष भी है कि छात्र-छात्रा अपने मानवीय गुणों और सामाजिक मूल्यों के प्रति कितना निष्ठावान है? सफल और उन्नत तो झूठ-बेईमानी,दगेबाजी और अनीतिपूर्वक कमाने वाले लोग भी हो सकते हैं क्योंकि इस प्रकार उनके पास धन-संपत्ति तो इकट्ठी हो ही जाती है।एक नंबर के विलासी (luxurious) और चरित्रहीन लोग भी सामान्य स्तर के लोगों से अधिक बुद्धिमान हो सकते हैं।प्रतिष्ठा रिश्वतखोर,भ्रष्टाचारी,डाकू,चोर,लुटेरों और अपराधियों को भी मिल जाती है,भले ही लोग डर से ऐसा करें।पर प्रश्न है कि क्या इन सफलताओं और इस प्रकार उन्नति के आधार पर उन्हें उन्नत मनुष्य के रूप में देखा जा सकता है।उत्तर स्पष्ट रूप से ‘नहीं’ में मिलेगा।
  • वस्तुतः बाहरी सफलताओं और उन्नति की अपेक्षा नैतिकता और दृष्टिकोण की उत्कृष्टता के आधार पर ही छात्र-छात्रा का मूल्यांकन करना चाहिए।नैतिकता,मानवीयता और दृष्टिकोण की उत्कृष्टता प्राप्त करना अधिक पुरुषार्थ साध्य है क्योंकि कमजोर संकल्प के छात्र-छात्रा शीघ्र ही अपने प्रयत्नों की निष्फलता से निराश हो जाते हैं और मानवीय गुणों को धारण करना छोड़ बैठते हैं।
  • उन्नति व प्रगति के पथ पर चलने वाले और संघर्षों तथा कठिनाइयों का सामना करने के लिए मनोबल ही एकमात्र उपाय रह जाता है।भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी,गबन करने वाले,अनैतिक,बेईमानी का मार्ग अपनाने वाले छात्र-छात्राओं का मनोबल क्षीण और कमजोर ही रहता है।वे कष्ट-कठिनाइयों से टकराकर शीघ्र ही हिम्मत हार बैठते हैं।सफलता-असफलता,उन्नति-अवनति से भी पहले स्थान पर मानवीयता का दृष्टिकोण आता है।जो सत्कर्म के दृष्टिकोण को महत्त्व देते हैं वे कल की चिन्ता नहीं करते और जिनका दृष्टिकोण दुर्बल है वे ही सफलता और उन्नति को अधिक महत्त्व देते हैं।

3.उन्नति के भिन्न-भिन्न मापदण्ड (Different Parameters of Progress):

  • प्रत्येक छात्र-छात्रा अपनी उन्नति करने का इच्छुक रहता है।मनुष्य ने जो भी साधन आज तक बनाए हैं,वह कम से कम उन्नति के दृष्टिकोण से निर्धारित किए हैं,चाहे उन्नति हुई हो और चाहे न हुई हो।छात्र-छात्राएं हड़ताल करते हैं और लड़ते हैं तो उन्नति के लिए और कॉलेज प्रशासन भी अपनी बात पर कायम रहता है तो भी उन्नति के लिए।सब अपने-अपने दृष्टिकोण को दी तवज्जो देते हैं,दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की चेष्टा नहीं करते हैं।
  • छात्र-छात्रा का उत्थान उसी क्षण से आरंभ हो जाता है जिस क्षण से वह उन्नति के विचारों की सुदृढ़ धारणा अपने हृदय में अंकित कर लेता है।उसको अपनी कमी का आभास हो जाता है और वह उसकी पूर्ति के लिए सक्रिय हो जाता है।
  • उन्नति चाहने वाले छात्र-छात्रा को सर्वप्रथम अपने लक्ष्य को स्पष्टतया निर्धारित करना चाहिए।लक्ष्य निर्धारित करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि संसार में हरेक विद्यार्थी सब कुछ नहीं हो सकता।एक विद्यार्थी उच्च कोटि का गणितज्ञ और साथ ही साथ उच्च कोटि का खिलाड़ी नहीं बन सकता।विद्यार्थी को अपनी रुचि,योग्यता,क्षमता,संस्कार,विचार और अपने वातावरण तथा अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल ही अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।
  • यदि कोई छात्र-छात्रा यह चाहे कि उसके जीवन में संघर्ष न हो,उसे कोई समस्या न सुलझानी पड़े,सभी चीजें उसके अनुकूल हो जाएं और वह अपने को परिस्थिति के अनुकूल न बनाए तो छात्र-छात्रा के लिए जीवन भार हो जाएगा,वह स्वयं अपने जीवन से खीझने लगेगा,वह स्वयं अपने लिए अभिशाप हो जाएगा और दूसरों के लिए अनेकानेक समस्याएं उत्पन्न करेगा।
  • छोटे बच्चों,पागलों,कुछ प्रकार के रोगियों और अतीव वृद्ध व्यक्तियों को छोड़कर प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन के विषय में सोचकर उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है,यह दूसरी बात है कि उसे आशानुकूल सफलता न हो।वस्तुतः सफलता तथा उन्नति के मापने के लिए स्पष्ट मापदण्ड नहीं है।
  • प्रश्न यह है कि यदि कोई विद्यार्थी स्वयं अपने जीवन से संतुष्ट,आनन्दित तथा प्रसन्न हैं और अपने कार्यों को मन,वचन,कर्म से लोक हितकारी समझता है तो उसके जीवन को हम सफल तथा उन्नत कह सकते हैं किंतु उसका जीवन दूसरों के लिए कंटकाकीर्ण हो।
  • पागल व्यक्ति अपने विरोधियों की भावनाओं को नहीं समझता,वह उनका विश्लेषण नहीं कर सकता किंतु सामान्य तथा उन्नतशील व्यक्ति अपने विरोधियों की भावना को पूर्णरूप से समझता है,समय पर उनसे सहमत हो सकता है और कभी-कभी तो वह उन विरोधियों के साथ सम्मिलित भी हो सकता है।विरोधियों के प्रति सहिष्णुता तथा उनकी मनोवृत्ति को समझना उन्नति तथा प्रगति का परिचायक है।विरोधियों के प्रति असहिष्णुता से ही विक्षिप्तता का आरंभ होता है।
  • उन्नति और अवनति,सफलता और असफलता के संबंध में लोगों के दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हैं।परंतु वास्तविक उन्नति और सफलता का कुछ तो मापदण्ड किया ही चुका है और विभिन्न अनुभवों का सार निम्न है।

4.उन्नति और सफलता की समीक्षा (Progress and Success Review):

  • रुपया-पैसा बढ़ना,पद,प्रतिष्ठा इत्यादि बाहरी उन्नति है इसे वास्तविक उन्नति नहीं कहा जा सकता है।
  • विद्या,ज्ञान,अनुभव,योग्यता,आन्तरिक गुणों में वृद्धि को उन्नति कहा जा सकता है।सबसे बड़ी उन्नति आत्मिक उन्नति है।सद्भावनाओं,शुभ संकल्पों,उच्च चरित्र की और मूल्य निष्ठा की संपत्ति ऐसी है जिसे पाकर छात्र-छात्रा की वास्तविक उन्नति होती है।
  • दया,प्रेम,करुणा,मैत्री,सेवा,उदारता,संयम,सच्चाई,सरलता,विनम्रता,धैर्य,साहस,मन की एकाग्रता,सद्विचार,सहिष्णुता,ईमानदारी,सज्जनता,इत्यादि की ओर छात्र-छात्रा का मन बढ़ने लगे और उसे आचरण में अपनाने लगे तो समझना चाहिए कि वह वास्तविक उन्नति की ओर अग्रसर हो रहा है।
  • भगवद् भक्ति,सबमें परमात्मा को देखना,अपने में भगवान की झाँकी करना यह उन्नति का सर्वोच्च शिखर है।आत्मा में परमात्मा का दर्शन करने वाला मनुष्य,जीवन में सब प्रकार सफल और पूर्ण उन्नतिशील कहा जा सकता है।
  • न्याय,नीति और मूल्यों में निष्ठा के आधार पर ही उपलब्धियों का स्थायित्व टिका है।यदि कोई छात्र-छात्रा आईएएस बनकर भ्रष्ट,रिश्वतखोरी,गबन से धन-संपत्ति इकट्ठा कर ले और धीरे-धीरे सभी कर्मचारी-अधिकारी उसी मार्ग पर चलने लगें तो आज देश जितना उन्नत हुआ है वहां से गिरकर रसातल में पहुंच जाएगा।इसलिए नीति को सार्वभौम नियम कहा जाता है।व्यवहार में व प्रशासन में ईमानदारी सभी के लिए व्यवहार्य और सहज लाभप्रद है।
  • अन्य नैतिक आदर्शों को भी इसी आधार पर खरा और खोटा पाया जा सकता है और जो इन मूल्यों को अपनाएगा तथा आदर्शों की ओर चलने का साहस करेगा,उसे जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों का बोध भी होगा।यथार्थ में सफलता का चरम बिंदु यही है।इसे न समझ पाने वाले उस व्यक्ति को जो नीति-अनीति,अनुचित सभी तरीके अपनाकर संपन्न बनना चाहता है,गरीब और अभावग्रस्त बेवकूफ और मूर्ख लगेंगे परंतु आदर्शनिष्ठ बनकर जिन्होंने स्वेच्छा से निर्धनता का वरण किया,उनका दृष्टिकोण कुछ ओर ही बन जाता है।जिसका आनंद तथाकथित सफल छात्र-छात्रा अपनी सारी सफलताओं के बाद भी नहीं उठा सकता।
  • सफलताओं के विकृत और परिष्कृत स्वरूप को विवेक के आधार पर समझ सकें तो सफलता के विभिन्न स्वरूपों यश,पद,प्रतिष्ठा और सम्पन्नता के स्थान पर सद्गुणों,सद्विचारों,सत्प्रवृत्तियों और सत्कर्मों को उनके स्थान पर स्थापित करना होगा।

5.उन्नति का दृष्टांत (The Vision of Progress):

  • वास्तविक उन्नति करना साधना और तप है एक अमीर मां-बाप के एक लड़का था।उसने गणित ऐच्छिक विषय ले रखा था।वह प्रतिभाशाली था।परंतु विलासिता के वातावरण में पला,वयस्क हुआ तो गलत राह पर कदम बढ़ गए।एक लड़की से प्यार हो गया।मां को एक दिन उसका प्रेमपत्र पकड़ में आ गया।
  • उसको कैसे सुधारा जाए।माता-पिता ने विचार-विमर्श किया और उसको सुधारने के लिए अनेक सुझाव आए।बहुत सोच-विचार के बाद यह निश्चय हुआ कि उसे शिक्षा के साथ धर्मशास्त्रों को पढ़ाने की व्यवस्था की जाए।
  • एक कथावाचक की व्यवस्था कर दी गई।उसने निश्चय किया कि महाभारत में धर्म,सदाचार की सभी बातें मौजूद हैं।अतः सबसे पहले महाभारत ही सुनाई जाए।कुछ दिन बाद उसका परिणाम देखा तो मालूम पड़ा कि विद्यार्थी अपने मित्रों से कहता कि श्रीकृष्ण भगवान के 16 हजार रानियाँ थी तो मुझे एक लड़की से संबंध रखने में क्या बुराई है?
  • माता-पिता ने पुनः विचार-विमर्श किया।तब निष्कर्ष निकाला कि हम दोनों ही धन-संपत्ति कमाने में लगे हुए हैं।बच्चों में संस्कार निर्माण के लिए हमारे अन्दर भी वैसे ही सदाचार,सद्गुणों का होना आवश्यक है।
  • हम दूसरों के बच्चों को पढ़ाने के कल्याण में ही व्यस्त हैं और स्वयं के बच्चों का ओर ही तरह का कल्याण हो रहा है।
  • उन्होंने स्वयं अपने जीवन में धर्म,सदाचार,संस्कार,नीति,सज्जनता,विनम्रता को अपनाना चालू किया।साथ ही नियमित रूप से अपने बच्चों को समय देना प्रारंभ कर दिया।
  • धीरे-धीरे सन्तान में भी अच्छे विचारों का तथा माता-पिता के सदाचरण का प्रभाव पड़ा।केवल कथावाचक का इंतजाम करने से यह संभव नहीं था।माता-पिता में जैसे संस्कार,आदतें होती है उसका प्रभाव सन्तान पर अवश्य पड़ता है।हालांकि माता-पिता में कोई बुरे विचार,बुरी प्रवृत्तियां तथा बुरी आदतें नहीं थी।
  • परंतु धन कमाने में वे इतने व्यस्त रहते थे कि बच्चों की उन्नति के बजाय अवनति हो रही थी।
  • उन्होंने अपनी कार्य पद्धति बदली तो तत्काल ही उसका परिणाम भी सामने आया।गणित का विद्यार्थी पढ़ने में प्रतिभाशाली था।अतः सद्विचारों,सदाचरण,अच्छी प्रवृत्तियों को भी तत्काल ही ग्रहण करने लग गया।वह गणित का विद्यार्थी सुधर गया और अपने अध्ययन में मन लगाकर पढ़ने लगा।धर्म,नीति,सदाचार की बातें भी उसके आचरण में उतर गई।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Test Progress of Maths Students?),छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Assess Progress of Students?) के बारे में बताया गया है।

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6.कोचिंग से देरी से आने का बहाना (हास्य-व्यंग्य) (An Excuse for Coming Late from Coaching) (Humour-Satire):

  • चोर जब एक गणित के विद्यार्थी का पीछा करते-करते परेशान हो गया तो उसने सीधे विद्यार्थी से ही पूछ लिया कि आखिर इतनी रात को एक ही रास्ते पर क्यों घूम रहा है।
  • गणित के विद्यार्थी ने जवाब दिया:मुझे कोचिंग से घर जाने में देर हो गई क्योंकि मैं एक लड़की से बातें करने लग गया।मुझे माता-पिता को जवाब देना है कि कोचिंग से इतनी देर कैसे हो गई,इसलिए उनको जवाब देने के बहाने सोच रहा हूँ।

7.गणित के छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Test Progress of Maths Students?),छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Assess Progress of Students?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.विरोधी और शत्रु में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Opponent and Enemy?):

उत्तर:किसी में दोष होने से उसका विरोध किया जाता है किंतु शत्रुता तो उस स्वार्थपूर्ण मनोवृति का परिणाम है जो बिना गुण-दोष पर विचार किए ही अपने विपक्षी के उन्मूलन में कटिबद्ध हो जाती है।

प्रश्न:2.सफलता से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Success?):

उत्तर:उपर्युक्त आर्टिकल में सफलता का उन्हीं अर्थों में प्रयोग किया गया है जिससे कि साधारण विद्यार्थी परिचित है अन्यथा मनस्वी और पुरुषार्थी छात्र-छात्राओं के लिए साध्य (लक्ष्य) से साधन की पवित्रता ही अधिक महत्त्वपूर्ण बन जाती है और उसी मापदंड के अनुसार व्यक्ति की उपलब्धियों से अधिक उसके मूल्य,आदर्श और नीतियां प्रमुख हो जाती हैं।

प्रश्न:3.सार्वभौम नियम से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Universal Rule?):

उत्तर:सार्वभौम नियम अर्थात् जिनके आधार पर ही समाज की व्यवस्था,व्यक्ति और छात्र-छात्राओं का स्थायी सुख-सन्तोष टिका हो।एक छात्र परीक्षा में नकल करता है तो अनेक विद्यार्थी भी उससे नकल करना सीखेंगे।इस कारण नकल करना अनैतिक है। अतः व्यवहार में नकल न करना सभी के लिए लाभप्रद है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Test Progress of Maths Students?),छात्र-छात्राओं की उन्नति की परख कैसे करें? (How to Assess Progress of Students?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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