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6 Best Tips for Efficient Leadership

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1.कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership),अभ्यर्थियों के लिए कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership for Candidates):

  • कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership) के आधार पर आप नेतृत्व को विकसित कर सकेंगे।यों हर व्यक्ति में नेतृत्व क्षमता का गुण मौजूद होता है।परंतु कुछ व्यक्ति या विद्यार्थी केवल स्वयं के लिए ही उपयोग कर पाते हैं जबकि कुछ व्यक्ति स्वयं के साथ-साथ एक बड़े समूह,संगठन,टीम या अन्य व्यक्तियों पर कर पाते हैं।जो विद्यार्थी या व्यक्ति अंतर्मुखी होते हैं,दूसरों से ज्यादा घुल-मिल नहीं पाते हैं,वे अपने कार्यों और लक्ष्य को पूरा करने के लिए स्वयं का नेतृत्व करते हैं।
  • स्वयं का नेतृत्व करने में स्वयं द्वारा या दूसरों द्वारा निर्धारित छोटे-छोटे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वयं मार्गदर्शक की भूमिका निभाना और निर्धारित समयावधि में अपना लक्ष्य प्राप्त करना जबकि दूसरों के द्वारा नेतृत्व करने में व्यक्ति स्वयं के साथ-साथ दूसरों का भी मार्गदर्शन करता है।
  • स्वयं को नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता सामान्यतः सभी व्यक्तियों में पाई जाती है परंतु समूह,संगठन तथा अन्य व्यक्तियों का नेतृत्व करने की क्षमता सबके अंदर मौजूद नहीं होती है क्योंकि इसके लिए कुछ मूलभूत गुणों की आवश्यकता होती है।
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2.नेतृत्व के प्रकार (Major Types of Leadership):

  • (1.)संस्थागत नेता (Institutional Leader):संस्थागत नेता समूह का मुखिया,एक नियुक्त व्यक्ति अथवा कार्यकारी सत्ता होता है।कंपनी के निदेशक,जिला-अधिकारी,देश का राष्ट्रपति,कंपनी का अध्यक्ष,कार्यालयाध्यक्ष अथवा कारखाने का अध्यक्ष आदि ये सब संस्थागत नेता होते हैं।किसी संगठन का प्रधान होने के नाते,उसकी स्थिति से प्रतिष्ठा एवं शक्तियां जुड़ी रहती है जो उसे अपने कर्मचारियों तथा समूह के सदस्यों पर सत्ता जमाए रखने में समर्थ बनाती है।
  • संस्थागत नेता अथवा कार्यकारी नेताओं की मुख्य समस्या संगठन की मर्यादा तथा प्रतिष्ठा को बनाए रखना तथा अपने समर्थकों,अनुयायियों और कर्मचारियों द्वारा कार्यक्रमों को अनुपालित कराना है।ऐसे नेताओं के अनुयायियों के साथ में भले ही सीधे आमने-सामने के संबंध हों या न हों।
  • इसकी दूसरी विशेषता क्रमबद्धता है।कार्यालय में या कारखाने में अथवा पुलिस में या सेना में नेताओं की विभिन्न श्रेणियां होंगी।अंतिम आदेश नेता द्वारा पारित होते हैं परंतु क्रमबद्धता में उनका पालन उप-नेता पर निर्भर करता है।परिणामतः एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी के लोगों में काफी मात्रा में आज्ञा-पालन का भाव मिलता है।प्रत्येक व्यक्ति शीर्षस्थ व्यक्ति की आज्ञा-पालन करता है और अपने नीचे के लोगों को आदेश देता है।
  • अतः वही व्यक्ति जब अपने से निम्न कोटि के लोगों से बात कर रहा होता है तो वह नेतृत्व का रुख प्रदर्शित करता है और जब अपने से उच्चकोटि के लोगों से बात करता है तो उसके स्वभाव में अधीनता आ जाती है।परिणामस्वरूप संस्थागत क्रमबद्धता में,एक व्यक्ति को उपयुक्त स्थितियों में दोनों ही भूमिका अदा करनी पड़ती है।
  • इस प्रकार “लालफीताशाही” संगठन में बहुत आवश्यक कारक बन जाता है जिसके अपने हानि लाभ होते हैं।क्योंकि ये निर्णय दृष्टांतों तथा विभिन्न स्तर से गुजरने पर आधारित होते हैं,अतः घोर गलतियां घटित नहीं होती और न ही किसी प्रकार की अस्तव्यस्तता,परंतु इसके विपरीत समस्त प्रक्रिया बहुत धीमी तथा अधिक समय नष्ट करने वाली होती है और कोई भी व्यक्ति शुरुआत करने वाला नहीं रहता।प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्त्तव्य निभाता है जो कि स्थापित पद्धतियों तथा दृष्टांतों के अनुरूप होंगे।इसलिए प्रशासन कठोर हो जाता है।
  • पहल तथा कल्पना के लिए कोई जगह ही नहीं रह जाती।लोग सामाजिक समस्याओं के विषय में क्या सोच रहे हैं इससे संस्थागत नेता का कोई मतलब नहीं रहता।इसीलिए ये शिकायतें होती हैं कि लोग दृष्टिकोण में,कार्यालय में,कारखाने में अथवा सेना में अवैयक्तिक हो जाते हैं और किसी “व्यक्ति” में दिलचस्पी नहीं लेते बल्कि उसे “प्रकरण” समझकर बर्ताव करते हैं।
  • (2.)प्रभावी नेता (Dominant Leader):व्यापक तौर से; प्रभावी नेताओं का अत्यधिक आक्रामक,निश्चयात्मक तथा बहिर्मुखी के रूप में चित्रण किया जा सकता है।उनका प्राथमिक उद्देश्य समूह की समस्याओं को सम्मान के साथ सुलझाना होता है।उन्हें समस्याओं को विस्तार में अथवा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उनका निरीक्षण करने का धैर्य नहीं होता है।वे ऐसे निर्णय लेने में शीघ्रगामी होते हैं जिनका उद्देश्य वर्तमान अवस्थाओं को बदलना होता है।
  • ऐसे नेताओं को वाद-विवाद से घृणा होती है।उन्हें तब तक त्रुटियां करने का भय नहीं होता जब तक उनमें लोगों पर अधिकार करने की सत्ता रहती है,जो लोग उनकी योजनाओं का कार्यान्वयन करते हैं उन्हें इससे समूह की प्रतिष्ठा भी प्राप्त होगी।समूह की संतुष्टि तभी तक रहेगी जब तक नेता कुछ ठोस प्रमाण देता रहेगा कि वह उद्देश्य की ओर बढ़ रहा है।
  • प्रभावी नेता में वस्तुस्थिति के विषय में सोचने तथा विश्लेषण करने का धैर्य नहीं होता।वह ऐसे शीघ्र निर्णयों के लेने में उत्सुक रहता है जो अपने उद्देश्यों की प्रगति के लिए समूह का मार्गदर्शन करते हैं।अतः वे समूह की असह्य अवस्थाओं को सुधारने हेतु सत्ता में आते हैं।उनमें लोगों की भावनाओं को परखने की तीक्ष्ण बुद्धि होती है।उन्हें नए मामलों का व्यावहारिक ज्ञान होता है।
  • संस्थागत नेता की भाँति वह कार्यनीति बनाता है,सुझाव देता है और उन्हीं के अनुरूप लोगों को चलाता है।परंतु संस्थागत नेता के विपरीत,प्रभावी नेता अधिक संख्या में लोगों को प्रभावित करने वाले परिणामों की प्राप्ति हेतु कोई भी खतरा ले लेगा।प्रभावी नेता विभिन्न उप-समूहों के विवादग्रस्त हितों के प्रति संवेदनशील नहीं होता है।वह विवादग्रस्त मामलों तथा विचारधाराओं का दमन करके एकता की स्थापना करता है।
  • तानाशाह तथा नेपोलियन,हिटलर,स्टालिन,नासर तथा दूसरे जैसे स्वेच्छाचारी शासक जब सत्ता में आते हैं तो वह समस्त राजनीतिक दलों का दमन करने का प्रयास करते हैं और अपने समूह के सामने योजनाओं को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं जिससे कि वे जनता के प्रिय बन जाते हैं।वे उन लोगों के साथ भी संतुष्ट नहीं रहते जो उन्हें सतर्क रहने के लिए परामर्श देते हैं।वे सभी प्रकार के संदेह तथा शंकाओं का समाधान कर देते हैं।
  • (3.)प्रेरक नेता (Persuasive Leader):सभी प्रकार के नेताओं में,प्रेरक नेता ही ऐसा होता है जो अनुयायियों के साथ अधिक से अधिक संपर्क में रहता है।वह लोगों के साथ ही हिल मिल जाता है,उनकी समस्याओं को समझता है और उनकी आवश्यकताओं तथा भावनाओं की अनुभूति रखता है।
  • इसके विपरीत संस्थागत नेता,प्रभावी नेता तथा विशेषज्ञ,ये सबके सब अपेक्षतया भावशून्य,अवैयक्तिक तथा दूर से रहते हैं।इस तुलना में,प्रेरक नेता सौहार्दपूर्ण होता है तथा उसमें लोगों के लिए बड़ा प्यार होता है।वह लोगों के विचारों तथा आकांक्षाओं के प्रति सतर्क रहता है,उनकी आकांक्षाओं के आधार पर क्रियाशील कार्यक्रमों को तैयार करता है जिससे कि लोग ये सोचें कि उसने जो योजनाएं बनाई है वे वास्तव में समूह की आकांक्षाओं के अनुरूप ही बनाई गई हैं।वह सामान्य लक्ष्यों को मनवाने के लिए जनता को स्थिर-रूपों तथा विशेष प्रकार की अपीलों द्वारा समझाता-बुझाता है।वह लोगों के उत्साह को जगाता है।मानव जीवन के इतिहास में महात्मा गांधी,गौतम बुद्ध,सरदार पटेल आदि का अनुनयी नेता के रूप में सर्वोत्कृष्ट उदाहरण मौजूद है।
  • (4.)विशेषज्ञ नेता (Expert Leader):गणित,विज्ञान,ज्ञान,शिल्प विद्या,कला तथा इसी प्रकार के दूसरे क्षेत्रों में दक्षता होने के कारण,विशेषज्ञ नेता बन जाता है।परंतु उसका प्रभाव क्षेत्र संकुचित रहता है।यह क्षेत्र उन्हीं लोगों तक सीमित रहता है जो उससे परामर्श लेते हैं और उसके पास आते-जाते हैं।प्रायः विशेषज्ञ अपनी मृत्यु के काफी समय बाद ही समूह को प्रभावित करता है।उसके जीवित रहते हुए शायद ही लोग उसके लेखन-कार्य की कीमत समझ सकें।
  • विशेषज्ञ अपनी कला द्वारा लोगों की आकांक्षाओं तथा उसके रहन-सहन की अवस्थाओं में परिवर्तन ला सकता है।कवियों,विचारकों तथा शिल्प-वैज्ञानिकों ने जीवन के तौर-तरीकों में तथा मूल्यों में विशाल परिवर्तन किया है।इस प्रकार विशेषज्ञ सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है।उसका जनता से कोई संपर्क नहीं रहता है।
  • इन चार प्रकार के नेताओं के वर्णन यद्यपि नेताओं को समझने के लिए लाभदायक हैं तो भी नेतृत्व की व्याख्या के लिए संतोषजनक नहीं है।वे एक-दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग श्रेणियां के नहीं होते हैं। संस्थागत नेता प्रभावी अथवा प्रेरक नेता भी हो सकता है।वह विशेषज्ञ भी हो सकता है।इसी प्रकार परिस्थितियों में परिवर्तन हो जाने के कारण प्रेरक नेता प्रभावी नेता भी हो सकता है।मिसाल के तौर पर गांधीजी को कई अवसरों पर प्रभावी नेता के रूप में पाया गया।इसी प्रकार नेहरू जी प्रेरक नेता थे।

3.नेतृत्व के गुण (Leadership Qualities):

  • नेतृत्व में किस प्रकार की दक्षता है चाहे ऐसी दक्षता दूसरों की अपेक्षा अधिक ऊंचा और अधिक तेज बोलने की ही हो।परंतु वह केवल एक ही प्रकार की ऐसी दक्षता नहीं होती जो उसे सभी प्रकार की परिस्थितियों में तथा सभी प्रकार के लोगों में नेतृत्व प्रदान करें।
  • नेतृत्व के लिए निम्न में से कुछ या अधिक गुणों की आवश्यकता होती है:कम स्वार्थी,अधिक साहसी,कम भावुक,आक्रामक,उदीयमान,गौरवपूर्ण,खर्चीले,मित्रवत,ईमानदार,न्यायप्रिय,विश्वसनीय,स्वनियंत्रित,समाज-प्रिय,सम्मोहनीय,बातूनी,ओजस्वी,मौलिक,स्वावलंबी,व्यवहार कुशल,उत्साहपूर्ण,साफ-स्वच्छ,आत्मविश्वासी,सहानुभूति पूर्ण,बहिर्मुखी,विनोदशीलता,समझदार,बुद्धिमान,भावात्मक-परिपक्व,विचारशील,विमर्शित,अमन्द-बुद्धि,सुरक्षित रहने वाला,उद्यमी,मानसिक रूप से सतर्क आदि।इनमें नकारात्मक अथवा समाज-विरोधी गुणों अथवा लक्षणों का वर्णन नहीं है।
  • नेता की प्रज्ञा और उनके अनुयायियों की प्रज्ञा में बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिए क्योंकि नेता तथा अनुगामी की बुद्धि का अधिक अंतर नेतृत्व में बाधा डालता है,शायद ऐसे गहरे मतभेद उन लोगों के एकीकृत उद्देश्य को असंभव बना देते हैं।
  • नेताओं का एक आवश्यक कार्य समस्याओं को ही सुलझाना होता है।अतः यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि केवल प्रज्ञा ही नेतृत्व में सहायक तत्त्व के रूप में एक बहुत आवश्यक भाग अदा करती है।
  • परंतु प्रजातांत्रिक समाज में जहां की नेता को जनता-जनार्दन का प्रतिनिधित्व करना होता है वह उस समूह में सबसे अधिक बुद्धिमान व्यक्ति नहीं हो सकता।इसीलिए प्रजातंत्र राज्य में सर्वाधिक बुद्धिमान लोगों को विधानमंडल में स्थान नहीं मिल पाता है।
  • परंतु यह कहना उचित है कि नेता को समूह के जन-साधारण से अधिक बुद्धिमान अवश्य ही होना चाहिए।यह एक महत्त्वपूर्ण बात है।अन्यथा वह एक कामयाब नेता नहीं बन सकेगा।

4.श्रेष्ठ कार्य के लिए टीम की आवश्यकता (Team Needed for Best Work):

  • प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी एक कार्य को एकांत में बिना किसी की सहायता के आसानी से कर सकता है,लेकिन यदि प्रश्न एक बड़े स्तर पर कार्य को पूरा करने का हो तो उसे उन सभी गुणों की आवश्यकता पड़ेगी जिसमें दूसरों को प्रेरित एवं उत्साहित करने की जरूरत पड़े और यह कार्य पूरा करना उसके वश की बात नहीं भी हो सकती है।
  • हर व्यक्ति की कार्यक्षमता कार्यकुशलता सीमित है।कार्यक्षमता व कार्यकुशलता की सीमा के पार व्यक्ति कार्य करने में स्वयं को असमर्थ पाता है।हर व्यक्ति 24 घंटे में यदि किसी कार्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त मेहनत कर रहा है तो उसको अपनी भूख को मिटाने के लिए पर्याप्त भोजन ग्रहण करना जरूरी है और अपनी थकान मिटाने के लिए पर्याप्त विश्राम की जरूरत है।भूख मिटाने के लिए जब हम भोजन करते हैं तो यह एक तरह से शरीर को मिलने वाला ईंधन ही है,जिससे शरीर चलता है और अपनी नींद पूरी करके हम अपने शरीर व मन को पुनः तरोताजा व सक्रिय करते हैं।यदि कोई व्यक्ति अपनी भूख व नींद को त्यागकर किसी काम को कर रहा है तो वह ज्यादा लंबे समय तक कार्य नहीं कर पाएगा और उसकी कार्यकुशलता में कमी आएगी।
  • इसी तरह यह स्पष्ट है कि यदि हमें किसी उच्च स्तर पर बड़े काम को पूरा करना है तो यह किसी एक योग्य व्यक्ति के माध्यम से समय पर पूरा होने वाला नहीं है।इसके लिए हमें कई योग्य व्यक्तियों का साथ चाहिए होता है और जब वे सभी व्यक्ति मिलकर उस कार्य को पूरा करने का प्रयास करते हैं तो वह कार्य अवश्य पूरा होता है।इसके लिए नेतृत्वकर्त्ता (कार्य का मार्गदर्शन करने वाला व्यक्ति) को एक आदर्श टीम की जरूरत पड़ती है।
  • आदर्श टीम वह है,जिसमें कार्य से संबंधित विविध प्रतिभाओं वाले व्यक्तियों को अपने-अपने जिम्मे के कार्य करने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित किया जाता है और हर व्यक्ति अपने कार्य के प्रति पूरी तरह से जिम्मेदार होता है व अपने लक्ष्य को पूरा करने तक साथ देने के लिए ईमानदार होता है।एक आदर्श टीम में विभिन्न विचारों वाले व्यक्ति हो सकते हैं लेकिन उनका लक्ष्य एक ही होता है।
  • एक अच्छी टीम की खासियत होती है की टीम के सभी सदस्यों का आपस में बेहतर संवाद होता है।हर व्यक्ति को कार्यशैली के अनुरूप अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है और योजना के अनुसार संवाद किया जाता है।इसके अतिरिक्त संवाद में दूसरों के विचारों को सुनना व उन्हें अहमियत देना भी मुख्य होता है और महत्त्वपूर्ण निर्णय,योजना के अनुरूप लिए जाते हैं और उन निर्णयों का स्पष्टीकरण भी किया जाता है।संवाद के माध्यम से कभी किसी की भावनाएं चोटिल नहीं होती है क्योंकि संवाद वह है जिसके द्वारा एक व्यक्ति के विचार व भाव दूसरों तक संप्रेषित किए जाते हैं,जबकि विवाद में संप्रेषण नहीं हो पाता और विचार तर्क-वितर्क करने में उलझ जाते हैं।
  • इसलिए एक आदर्श टीम के सदस्यों में संवाद होना चाहिए,विवाद नहीं।यदि कहीं विवाद होता भी है तो उसे आपस में सुलझा लेना चाहिए,अन्यथा विवाद का परिणाम टीम वर्क के लिए हितकर नहीं होता और कभी-कभी किसी एक व्यक्ति की अहंतुष्टि की पूर्ति में पूरी टीम का नुकसान हो जाता है।विवादों को सुलझाने में टीम के सदस्यों के अतिरिक्त नेतृत्वकर्त्ता की भूमिका प्रधान होती है।
  • किसी भी टीम का नेतृत्वकर्त्ता ऐसा होना चाहिए जिसकी कार्यशैली से टीम के सभी सदस्य प्रेरणा ले सकें,जिसके व्यवहार की सभी सराहना करें,जिसकी वाक्पटुता से सभी मंत्रमुग्ध हों।नेतृत्वकर्त्ता की जीवनशैली व कार्य पद्धति स्वयं में एक आदर्श होनी चाहिए तभी उसके मार्गदर्शन में कार्य करने वाले व्यक्तियों का उसके प्रति समर्पण होगा।
  • नेतृत्वकर्त्ता के अन्दर कभी भी अपने अंतर्गत कार्य करने वाले सदस्यों के प्रति भेदभाव,छल या धोखे का भाव नहीं होना चाहिए।नेतृत्वकर्त्ता का जीवन प्रामाणिक होना चाहिए,उसके अन्दर विनम्रता होनी चाहिए।
  • एक आदर्श नेतृत्वकर्त्ता वह है,जो अपने अंतर्गत कार्य करनेवाले सभी सदस्यों की प्रतिभाओं से भली प्रकार परिचित होता है।उसके अन्दर यह योग्यता होती है कि वह बड़े से बड़े कार्य करने वाले व्यक्तियों से छोटे-छोटे कार्य तथा छोटे-छोटे कार्य करने वाले व्यक्तियों से बड़े स्तर के कार्य करवा सकता है।एक आदर्श नेतृत्वकर्त्ता के अन्दर यह गुण होता है कि वह अपने टीम सदस्यों की योग्यताओं को निखारने में उनका सहयोग करता है और उन्हें एक सूत्र में बाँधे रखता है।इसलिए तो कहा जाता है कि एक आदर्श व सफल टीम कई हाथ व एक दिमाग वाला समूह होती है।
  • टीम चाहे कितनी भी आदर्श हो उसको सही दिशा देने का कार्य एक अच्छा नेता ही कर सकता है,जो नेतृत्व क्षमता के सभी गुणों से सम्पन्न हो।जो अपने जीवन को सही दिशा दे पाने में समर्थ नहीं है,उससे अन्य व्यक्तियों को दिशा दे पाने की इच्छा रखना अनावश्यक ही है।हममें से हरेक का यह कर्त्तव्य है कि हम अपने जीवन को सही लक्ष्य,सही दिशा,सही उद्देश्य एवं सही दृष्टिकोण से अभिपूरित रखें,ताकि हम न केवल अपना जीवन-पथ निर्धारित कर सकें,वरन उन सभी को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने में सक्षम हो सके,जिन्हें यह सौभाग्य नहीं मिल पाया हो।

5.नेतृत्वकर्त्ता के मुख्य कार्य (The Main Functions of Leadership):

  • एक समूह के नेता को,चाहे वह सेना में हो,कार्यालय में हो,फैक्ट्री में हो,यह देखना होता है की नीतियां कार्यान्वित हो रही है या नहीं।कभी-कभी नेता शायद यह महसूस न कर सके कि वह दूसरों को अपनी जिम्मेदारियां सौंप सकता है।वह खुद भी कार्य करने की आवश्यकता अनुभव कर सकता है।इसके परिणामस्वरूप कार्यान्वयन में कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं।वह दूसरे सदस्यों की सामूहिक उत्तरदायित्वों की भावनाओं तथा कठिनाइयों में हस्तक्षेप कर सकता है।
  • नेता को आवश्यक रूप से आयोजन-कर्त्ता होना चाहिए तथा अपने समूह को तात्कालिक तथा दीर्घकालीन कार्यक्रमों के निश्चित करने में सहायता करनी चाहिए।उसके पास समूह को मार्गदर्शन करने की पर्याप्त सूचना और दक्षता होनी चाहिए।परंतु आज विशिष्टिकरण इतना आगे बढ़ गया है कि कोई भी नेता उन समस्त विभिन्न कार्यों में विशेषज्ञ नहीं हो सकता जो उसके समूह को अपने हाथों में लेने होते हैं।इसके परिणामस्वरूप विशेषज्ञ से मंत्रणा की जरूरत पड़ती है।
  • नेता को आन्तरिक संबंधों को नियंत्रित करना पड़ता है।उसे समूह-संरचना का संचालन करना होता है तथा अनुशासनात्मक कार्यवाही भी करनी होती है।उसे सदस्यों को पारितोषिक भी देने चाहिए तथा दण्ड भी अवश्य देना चाहिए।उसे द्वन्द्वों तथा मतभेदों में पंच तथा मध्यस्थ भी बनना पड़ता है जो समूह के सदस्यों में अवश्यभावी तौर पर उत्पन्न हो जाते हैं।उसे एक निष्पक्ष जज होना चाहिए परन्तु वह समझौता कराने वाला भी अवश्य हो जो समूह के अन्दर अन्तरा-सम्बन्ध पुन: स्थापित कर सके।
  • यद्यपि कार्य दूसरे लोगों द्वारा किया जाता है फिर भी कार्य का दायित्व उसे स्वयं अपने ऊपर लेना चाहिए।कार्य के बिगड़ जाने पर अपने अनुगामियों को दोष नहीं दे सकता और न ही कार्य की सफलता पर श्रेय ले सकता है।सफल नेता वही होता है जो अपने अनुयायियों को पूर्ण श्रेय देता है और समूह द्वारा किसी कार्य के बिगड़ जाने पर उसका पूर्ण दोष अपने ऊपर लेता है।वह इस प्रकार से अपने सारे समूह को एक टीम के रूप में रखने में सफलीभूत हो सकता है।
  • उसे सही निर्णय लेने में तथा शुरुआत करने में पहल अवश्य ही करनी चाहिए।यदि हमारा निर्णय सही है तो हम सही दिशा में आगे बढ़ते हैं।निर्णय लेने की क्षमता हमारी तभी सही हो सकती है,जब हमारी दृष्टि,समझने व विचार करने की शैली दूरदर्शी हो।
  • इसके अभाव में हमारे द्वारा लिए गए निर्णय गलत हो सकते हैं,जिसका परिणाम हमें केवल पछतावे के रूप में मिलता है; क्योंकि लिए गए गलत निर्णय से व उस पर कार्य करने से एक तो हमारा समय बर्बाद होता है और दूसरा हमारी शक्तियों व अन्य साधनों का खर्च भी होता हैं।अतः सबसे पहले हमें अपनी निर्णय-क्षमता को सुधारना होगा,जो हमें स्वयं के अनुभव के माध्यम से या किसी अनुभवी मार्गदर्शक के द्वारा मिल सकती है।समूह के लक्ष्य प्राप्ति के पहुंचने में निर्णय की नाकामयाबी पर समूह को दोष नहीं देना चाहिए,अपितु उस निर्णय की अंतिम जिम्मेदारी स्वयं अपने ऊपर लेनी चाहिए।
  • निर्णय द्वारा चुने गए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कार्ययोजना का निर्धारण व उस पर क्रियान्वयन।यह कार्य अकेले भी किया जा सकता है और एक टीम के साथ भी।हमारे जीवन में कुछ कार्य ऐसे होते हैं,जिन्हें हमें स्वयं पूरा करना पड़ता है,पर इसमें दूसरों की मदद भी ली जा सकती है,लेकिन कुछ कार्य ऐसे होते हैं,जो समूह के अंतर्गत ही पूरे होते हैं।
  • छोटे उद्यम से लेकर बड़ी कंपनियों के प्रोजेक्ट तक ऐसे अनगिनत कार्य हैं,जो समूह की मदद से किए जाते हैं।ऐसे किए जाने वाले कार्य में किसी एक व्यक्ति के कार्य को नहीं देखा जाता बल्कि समूह के कार्य का आकलन किया जाता है,लेकिन सामूहिक कार्यों में एक व्यक्ति की अच्छी या खराब अभिव्यक्ति या कार्य निष्पादन का पूरे समूह पर प्रभाव पड़ता है,इसलिए समूह में शामिल हर सदस्य खास होता है और अपने सहयोग से ही समूह की शक्ति व स्तर को ऊँचा उठा सकता है।

6.नेतृत्व-प्रशिक्षण (Leadership Training):

  • हालांकि व्यक्ति में नेतृत्व की जन्मजात प्रतिभा होती है परन्तु प्रशिक्षण से उसे उभारा व तराशा जा सकता है।कृष्ण,राम,युधिष्ठिर तथा दूसरे राजकुमारों के प्रशिक्षण का इतिहास में विस्तार से उल्लेख है।नेता में जन्मजात नेतृत्व की क्षमता होती है उसमें नेतृत्व के सभी गुण विद्यमान होते हैं और उसे प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है।ऐसी विचारधाराएं ही अधिकतम अयोग्यताओं के लिए उत्तरदायी रही है।परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि केवल प्रशिक्षण से ही कोई व्यक्ति एक सफल नेता बन सकता है।प्रशिक्षण का केवल एकमात्र लाभ यह होता है कि व्यक्ति प्रशिक्षण प्राप्त करने से पहले की अपेक्षा अधिक अच्छा नेता बन जाता है।
  • समूह में हर तरह के व्यक्ति हो सकते हैं; इनमें से कुछ कार्यकुशल हो भी सकते हैं और नहीं भी।समूह छोटा भी हो सकता है और बड़ा भी और समूह के कार्य का स्तर भी छोटा सा बड़ा हो सकता है,लेकिन इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है:समूह के लोग,इनका चयन और इनका प्रशिक्षण।इसके साथ ही समय-समय पर इन्हें उत्साहित करने,चुनौतियों को समझने व कार्यशैली की दिशाधारा का निर्धारण करने में सही नेतृत्व की आवश्यकता पड़ती है।इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनमें नेता अपने कार्य को पूरा करने के लिए सशक्त टीम (समूह) का निर्माण करते हैं और उसे प्रशिक्षित करते हैं।
  • प्रशिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें टीम के सदस्यों को निर्धारित कार्य करने के लिए पहले से सिखाया जाता है,जिससे वे कार्य करने के ढंग को अधिक कुशलतापूर्वक,चयनात्मक ढंग से कर सकें।बिना प्रशिक्षण के किसी भी कार्य को कुशलतापूर्वक,समय पर पूरा नहीं किया जा सकता।प्रशिक्षण व अभ्यास वह कला है,जो हमें अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचने में सहारा देती है।
  • व्यक्ति में ज्ञान व दक्षता होनी चाहिए; व्यक्ति को कार्यों को सफलतापूर्वक निभाने के लिए प्रासंगिक ज्ञान तथा आवश्यक दक्षता अवश्य होनी चाहिए जिससे कि वह समूह की समस्याओं का समाधान कर सके।परन्तु दूसरी समस्या अधिक आवश्यक है वह है मानव-सम्बन्धों की।नेता के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को यह तो अवश्य ही जानना चाहिए कि उसे अपने समूह के सदस्यों के साथ कैसा बर्ताव करना है।उसमें भी प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership),अभ्यर्थियों के लिए कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership for Candidates) के बारे में बताया गया है।

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7.पुस्तकें क्यों चुराई? (हास्य-व्यंग्य) (Why Steal Books?) (Humour-Satire):

  • जज (चोर विद्यार्थी से):तुमने दुकान से पुस्तकें क्यों चुराई?
  • चोर विद्यार्थी:जज साहब बुक डिपो के बाहर लिखा था कि सुनहरा मौका हाथ से न जाने दें।

8.कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Best Tips for Efficient Leadership),अभ्यर्थियों के लिए कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership for Candidates) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.समूह में आपस में लड़ाई-झगड़ों से निपटने के लिए नेता की क्या भूमिका है? (What is the Role of the Leader in Dealing with Fights in the Group?):

उत्तर:कई बार समूह के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्य में कई तरह की बाधाएँ आती हैं,जैसे-झगड़े-लड़ाइयाँ,आपसी वैर-भाव,ईर्ष्या-द्वेष आदि।इनके कारण समूह के सदस्यों में आपस में खींचातानी बनी रहती है और एक-दूसरे को बेहतर समझ न पाने के वे लक्ष्य से भटक जाते हैं,असहयोग करते हैं और लक्ष्य प्राप्ति में अवरोध डालते हैं।ऐसी परिस्थिति को नियंत्रित करने के लिए नेतृत्व करने वाले की सही भूमिका और मार्गदर्शन ही बिगड़ते कार्य को बना सकते हैं।यदि इसके बाद भी समूह में अराजकता फैलाने वाले व्यक्ति मौजूद हैं तो फिर उनसे सावधान रहने की जरूरत है; क्योंकि ये समूह में होकर भी समूह के नहीं होते और इनकी उपस्थिति से समूह को नुकसान ही पहुँचता हैं।इनसे निपटने का एक ही उपाय है कि या तो इन्हें समझाया जाय या इन्हें कुछ ऐसे दूसरे कार्य दे दिए जाएँ,जिससे जरूरी कार्य प्रभावित न हो।

प्रश्न:2.समूह में असहयोग करने वाले व्यक्तियों से कैसे निपटा जाए? (How to Deal with Non-cooperating Individuals in the Group?):

उत्तर:समूह का नेतृत्व करने वाले को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि समूह में असहयोग करने वाले लोगों का न तो किसी भी तरह अपमान किया जाए और न इन्हें समूह से बाहर किया जाए; क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में शक्ति बहुत होती है और चूँकि ये दिशा भटक गए होते हैं,इसलिए सहयोग नहीं करते और समूह से बाहर निकाले जाने पर किसी न किसी तरह से नुकसान ही पहुंचाते हैं,ऐसे लोगों को अपने विश्वास में लेना समूह की शक्ति को कई गुना बढ़ा देता है,पर यह कार्य आसान नहीं होता है; क्योंकि इसके लिए बहुत समझदारी,व्यावहारिकता और विवेक की आवश्यकता पड़ती है,लेकिन यह कार्य असली नेता कर सकता है,इसलिए तो कहा जाता है की असली नेता वह है जो लोगों के दिलोदिमाग पर राज करता है।

प्रश्न:3.लोकतांत्रिक तथा सत्तावादी नेतृत्व में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Democratic and Authoritarian Leadership?):

उत्तर:प्रजातांत्रिक नेतृत्व अपने आप ही समूह से शक्ति-स्रोत प्राप्त करता है परंतु साम्राज्यवाद तथा तानाशाही में,सत्तावादी शक्ति समूह के बाहर से उत्पन्न होती है।प्रजातांत्रिक नेतृत्व में सलाह तथा परामर्श के बाद ही निर्णय किए जाते हैं।जबकि सत्तावादी स्वरूप में,नेतागण बिना किसी की सलाह तथा परामर्श के ही निर्णय देते हैं।सत्तावादी नेता लोगों की प्रतीपगामी,आदिम तथा अचेतन आवश्यकताओं से अनुचित लाभ उठाता है और समूह को ऐसा बना देता है कि समूह उसी पर पूर्णतः निर्भर रहे।वह इस बात पर अधिक जोर देता है कि लोग एकदम उसके आज्ञाकारी बने रहे और समूचे समूह का ध्यानाकर्षण केवल उसी पर रहे।प्रजातांत्रिक प्रणाली में समूह के सदस्यों के अंदर सृजनात्मकता लाने की काफी सुविधा होती है जबकि सत्तावादी नेता समस्त ज्ञान तथा प्रत्येक कार्य की शुरुआत करने का एकाधिकार लेने का प्रयास करता है।सत्तावादी नेता सृजनात्मक कार्यों का गला तो नहीं घोटता है।परंतु यह अवश्य संभव हो सकता है कि वह गिने-चुने लोगों में सृजनात्मक भावना को प्रोत्साहित करता है।6 Best Tips for Efficient Leadership

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership),अभ्यर्थियों के लिए कुशल नेतृत्व की 6 बेहतरीन टिप्स (6 Best Tips for Efficient Leadership for Candidates) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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