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How Do Students Solve Maths Problems?

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1.छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को स्वयं कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राओं द्वारा समस्याओं को स्वयं हल करने की 3 टिप्स (3 Tips for Solving Problems by Mathematics Students Themselves):

  • छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को स्वयं कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?) इसके लिए उन्हें अपने व्यक्तित्व,योग्यताओं तथा क्षमताओं को पहचानना होगा।अपना निरीक्षण करना ही वास्तविक सत्संग,स्वाध्याय और अध्ययन है।निरीक्षण के बिना आप अपनी क्षमताओं,योग्यताओं और विशेषताओं को नहीं जान सकते हैं।निरीक्षण के बिना आप अपनी त्रुटियों,कमजोरियों को नहीं जान सकते हैं।निरीक्षण के आधार पर ही आप गणित की प्रकृति,विशेषताओं को जान सकते हैं।गणित की प्रकृति और विशेषताओं से अपनी योग्यता व क्षमताओं से तुलना करके जान सकते हैं कि गणित के कौनसे पक्ष में आप मजबूत है और कौनसे पक्ष में आप कमजोर हैं।अपनी योग्यता बढ़ाने तथा आत्म-निरीक्षण करने के लिए अध्ययन तथा कठिन परिश्रम करना आवश्यक है।आत्मनिरीक्षण में बाधक तत्त्व हैं निराशा,आलस्य,हताशा तथा असफलता से हतोत्साहित होना।
  • गणित का अध्ययन करने में कदम-कदम पर कठिन सवालों,समस्याओं,प्रमेयों व सिद्धान्तों का सामना करना पड़ता है।कठिन सवालों व समस्याओं को छात्र-छात्राएं हल नहीं कर पाते हैं तो निराश,हताश हो जाते हैं।परीक्षा में,प्रवेश परीक्षा में,प्रतियोगिता परीक्षा में अथवा जाॅब प्राप्त करने में असफलता से हतोत्साहित होने पर आगे उन्नति करना असंभव हो जाता है।अन्तःप्रेरणा से अपने आपको उत्साहित करते रहने से निराश व हताश नहीं होंगे।एक-दो बार असफलता मिल जाए तो गणित का अध्ययन करना न छोड़कर अध्ययन,ओर अधिक अध्ययन तथा अभ्यास करते रहें।
  • आत्म-निरीक्षण करके अपनी कमजोरियों को पहचानना है तो कठिन कार्य परंतु महान् गणितज्ञों और मनस्वी लोगों ने इसी मार्ग का अनुसरण किया है।अपनी कमजोरियों को ढूंढकर उखाड़ फेंकने से मूर्ख,मंदबुद्धि तथा सामान्य छात्र-छात्राएं भी गणित में प्रखर,तेजस्वी और ओजस्वी हो सकते हैं।परंतु आम तौर पर विद्यार्थी आलस्य,प्रमाद एवं कर्कश स्वभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं।प्रगतिशील तथा उन्नतिशील लोगों ने अपनी एक-एक कमजोरियों को ढूंढ निकाला है और उन्हें दूर किया है इस प्रकार वे अपने मार्ग को साफ कर सके हैं।
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2.गणित में विकास हेतु क्रमिक विकास और कठिन परिश्रम करें (Gradual Development and Hard work for Development in Mathematics):

  • गणित ही क्या किसी भी विषय में विकास,उन्नति और प्रगति के लिए नीचे से ऊपर की ओर चढ़ना चाहिए।जैसे यदि एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करना चाहते हैं तो उससे पहले एमएससी प्रीवियस तक की परीक्षाएं उत्तीर्ण करना आवश्यक है।पहाड़े सीखने के लिए गिनती सीखना प्रारंभ करना आवश्यक है।जोड़,गुणा,भाग,बाकी इत्यादि के सवाल हल करने के लिए गिनती,पहाड़े तथा संख्याओं का ज्ञान होना आवश्यक है।यदि आप 10वीं-12वीं कक्षा की गणित हल करने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं तो उसका एक कारण यह भी होता है कि आप पिछली कक्षाओं की मूलभूत बातों और कठिन टाॅपिक को ठीक से हल नहीं किया है।
  • आपके मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती होगी कि संख्याओं की उत्पत्ति कैसे हुई,संख्याओं का विकास कैसे हुआ? गणित की इतनी विषय-सामग्री कैसे इकट्ठी हुई? गणित की विषयवस्तु अर्थात् गणित के अध्ययन करने का क्या उद्देश्य है? इस प्रकार की जिज्ञासा का उठना और जानने की कोशिश करना गणित की प्रारंभिक कक्षा की पढ़ाई है।
  • गहन अध्ययन तथा गणित के अभ्यास से धीरे-धीरे गणित में उत्तरोत्तर आगे बढ़ते जाते हैं।गणित का अध्ययन करते समय कई ऐसी बातें सामने आती हैं जो प्रेरणास्पद होती है परन्तु सामान्य छात्र-छात्राएं उन पर नजर ही नहीं डालते हैं अथवा सरसरी तौर पर देखते हैं।परंतु गणित का सच्चा अध्येता उनको बड़े गौर से देखता है और अध्ययन करता है भले ही वे परीक्षा के दृष्टिकोण से उपयोगी न हो परंतु गणित का ज्ञान बढ़ाने में तथा विकास करने के लिए आवश्यक होती है।
  • किसी भी विषय का अध्ययन करने में मन सबसे बड़ा साधक है तो सबसे बड़ा बाधक भी है।मन इंद्रियों पर शासन करता है।हमारी दुष्प्रवृत्तियाँ,बुरी आदतें,आलस्य,अकर्मण्यता,ढिलाई इत्यादि अध्ययन में सबसे बड़ी बाधक हैं।परंतु इसी मन पर लगाम लगाकर अर्थात् पकड़कर इसे साधक बनाया जा सकता है।मन को पकड़ने का तात्पर्य है कि मन को एकाग्र करना तथा ध्यान की स्थिति को प्राप्त करना।एकाग्र मन से गणित का अध्ययन करने पर उससे गणित के सवाल इस तरह से हल किए जा सकते हैं जैसे गिनती-पहाड़े सीख रहे हों।एकाग्र मन से हमारी आंतरिक कमजोरियां ऐसे दिखाई दे देती है जैसे साफ दर्पण में हमारा प्रतिबिम्ब दिखाई दे देता है।
  • हम हमारी दुष्प्रवृत्तियों,बुरी आदतों को दूर करके अध्ययन तथा गणित का अध्ययन करने में लगाते हैं तो यही तप है।तप से अध्ययन में गहन रुचि,सीखने की ललक उत्पन्न होती है तथा दुष्प्रवृत्तियाँ दूर होती जाती हैं।तप से हमारी सुप्त योग्यताएं,क्षमताएं तथा शक्तियों का जागरण होता है।

3.गणित की समस्याओं को स्वयं कैसे हल करें? (How to Solve Mathematics Problems Yourself?):

  • आत्म-निरीक्षण करने का स्वभाव बना लेना चाहिए।पुस्तकों का तथा नोट्स व अन्य सामग्री का अध्ययन करते समय जो सवाल,समस्याएं व प्रमेय हल हो जाएं उनके नोट्स बना लें।जो सवाल,समस्याएं,प्रमेय और सिद्धांत समझ में न आएं,हल नहीं हो पा रही हो उनको पुस्तक में चिन्हित कर लें।संबंधित टाॅपिक की सन्दर्भ पुस्तकें देखें तथा उस टाॅपिक का गहन अध्ययन करें।उस टाॅपिक की बारीक से बारीक बात को समझने की कोशिश करें।सन्दर्भ पुस्तकों से टाॅपिक को अच्छी तरह समझने के पश्चात् जो सवाल,समस्याएं हल नहीं हुई हों उनका मनन-चिंतन करके हल करने की कोशिश करें।इस तरह से धीरे-धीरे वे सवाल व समस्याएं हल हो जाती हैं।ध्यान रहे एकांत व पूर्ण एकाग्रता के साथ ही उन सवालों व समस्याओं पर मनन-चिंतन करें।
  • हम आत्म-निरीक्षण द्वारा अपने दोषों,दुर्गुणों और विकारों की पहचान कर लेते हैं तो उन्हें विवेक,बुद्धि,आत्मबल से जितना दूर करते जाते हैं गणित के सवालों को हल करने में मनन-चिंतन द्वारा उतनी ही अधिक सफलता मिलती जाती है।दुर्गुणों,विकारों तथा दोषों को छिपाने से ओर अधिक बढ़ती हैं और वे हमारे मन पर जोंक की तरह चिपक जाती हैं।अध्ययन में तथा गणित के अध्ययन में कमजोरियों को तटस्थ और निष्पक्ष भाव से दूर करना चाहिए।उनसे मोह व लगाव रखने से वे आगे अध्ययन करने,विकास करने,उन्नति और प्रगति में बाधक हैं।
How Do Students Solve Maths Problems?

How Do Students Solve Maths Problems?

  • गणित विषय में पारंगत होना,विषय पर मजबूत पकड़ कायम करना कठोर परिश्रम,समयसाध्य और निष्ठासाध्य अवश्य है परंतु असंभव नहीं है।ऐसे कई गणितज्ञ हुए हैं जो प्रारंभ में गणित में फिसड्डी,कमजोर थे परंतु कठिन परिश्रम,अनवरत अध्ययन तथा लगातार अभ्यास करके संसार के महान् गणितज्ञ बन गए।इसी प्रकार ऐसे गणित अध्येता भी मिल जाएंगे जो प्रारंभ में बहुत प्रतिभाशाली थे,गणित में शीर्ष पर विराजमान थे परंतु आलस्य,प्रमाद तथा घटिया चिंतन से गणित में निम्न स्तर पर लुढ़क गए।
    गणित की समस्याओं और सवालों को हल करने का दूसरा तरीका यह है कि यदि सवाल एक तरीके से हल नहीं हो रहा हो तो उसे दूसरे तरीके,तीसरे तरीके से हल करने की कोशिश करें।परंतु एक से अधिक तरीके निरंतर अध्ययन और अभ्यास करने से ही सीखे जा सकते हैं।
  • गणित के कठिन सवालों और समस्याओं को हल करने का तीसरा तरीका यह है कि अपने मस्तिष्क पर थोड़ा दबाव बनाकर उसको हल करने की चेष्टा करें।मस्तिष्क पर थोड़ा दबाव डालने से मस्तिष्क अधिक सक्रिय और जागरूक हो जाता है।
  • गणित के सवालों को हल करने का चौथा तरीका यह है कि अपनी त्रुटियों,कमजोरियों को पहचानकर नियमित रूप से उनमें सुधार करते रहें।अपने दृष्टिकोण और सोचने और विचार करने के तरीके को परिवर्तित करें।अपने दृष्टिकोण और चिन्तन करने की पद्धति में परिवर्तित करना बौद्धिक कौशल और साहस का कार्य है परंतु असंभव नहीं है।

4.गणित की समस्याओं को हल करने का दृष्टांत (Illustration of Solving Mathematics Problems):

  • गणित की पुस्तकों का अध्ययन करने,स्वाध्याय तथा गणितज्ञों से विचार-विमर्श करने से आत्म-निरीक्षण की प्रवृत्ति जागृत होती है।महान् गणितज्ञों तथा उनके द्वारा की गई गणित की खोजों का अध्ययन करके स्वयं से तुलना करने पर हम समझ पाते हैं कि गणितज्ञ बनने,गणित की समस्याओं को हल करने के मापदंड से अभी हम कितने पीछे हैं।प्रगति करने के लिए जिन गुणों की कमी दिखाई देती है उनको धारण करने की कोशिश करता है।जब तक हम अपनी त्रुटियाँ व कमियां नहीं देख पाएंगे तब तक उनको दूर नहीं किया जा सकता है।
  • प्रगति व उन्नति तभी होती है जब अध्ययन के लिए आवश्यक गुणों को ग्रहण किया जाए और अध्ययन में बाधक दुर्गुणों को छोड़ा जाए।साधारण गणित का छात्र-छात्रा अपने आपका निरीक्षण नहीं कर पाता है इसलिए स्वयं की त्रुटियों और कमजोरियों का दोष दूसरों पर मढ़ता रहता है।वस्तुतः दूसरों में दोष देखने,दूसरों पर दोष मढ़ने का मार्ग अवनति का मार्ग है और स्वयं के दोष देखने तथा उन्हें दूर करना,दूसरों की अच्छाईयाँ देखना उन्नति का मार्ग है।जिनमें आत्म-निरीक्षण करने की कला आ जाती है और चिन्तन-मनन तथा विवेक से उन्हें दूर करना आ जाता है उनकी गणित की तथा अध्ययन की आधी समस्या हल हो जाती हैं।गणित में अध्ययन कर्म को छोड़ते नहीं रहना चाहिए बल्कि निरन्तर अध्ययन कर्म में लगे रहना चाहिए।
  • एक गणितज्ञ कोचिंग सेंटर में गणित पढ़ाया करते थे।उसके कोचिंग सेन्टर में पर्याप्त संख्या में छात्र-छात्राएं पढ़ने के लिए आया करते थे।अचानक छात्र-छात्राओं के मन में विचार आया कि यदि हम कोचिंग सेन्टर में नहीं आएंगे तो गुरुजी किसी को गणित का अध्यापन करा ही नहीं पाएंगे।कोचिंग सेन्टर हमारे पीछे ही चल रहा है।उन्होंने कोचिंग सेंटर में पढ़ना बंद कर दिया।
  • अचानक छात्र-छात्राओं के कोचिंग सेंटर में न आने से गणितज्ञ को घबराहट हुई।वे अपने कमरे में इधर-उधर टहलने लगे।जैसे मछली पानी के बिना तड़पती है,ऐसे ही उनका हृदय तड़प रहा था।तभी अन्तःप्रेरणा से उन्होंने महसूस किया कि यदि वे अपने मूल कर्म गणित अध्यापन को छोड़ देंगे तो अध्यापन करना ही भूल जाएंगे।उन्हें गीता का श्लोक याद आया कि “तेरा कर्म करने पर ही अधिकार है,उसके फल की चिंता करना नहीं।फल को भगवान पर छोड़ दो और आगे बढ़ो।
  • उन्होंने स्वयं ही गणित के सवाल और समस्याओं का हल करना व चिन्तन-मनन करना जारी रखा।जो लोग उनसे मिलने आते थे तो पूछते कि अब छात्र-छात्राएं तो आते नहीं है फिर इतनी पुस्तके पास में क्यों रख रखी है? गणितज्ञ बोले यदि इनका अभ्यास करना जारी नहीं रखूंगा तो अध्यापन कार्य करना भूल जाऊंगा।फिर छात्र-छात्राएं आ गए तो यह कर्म कैसे याद रहेगा? वह बोले,आपकी बात तो सच है।वास्तव में हमें अपना कर्म करते रहना चाहिए।
  • सभी छात्र-छात्राओं को आश्चर्य हुआ कि जब हम पढ़ने नहीं जा रहे हैं तो फिर गणितज्ञ गणित को पढ़ने में क्यों लगे हुए हैं? एक दिन कुछ छात्र-छात्राओं से नहीं रहा गया।वे गणितज्ञ के पास आकर बोले कि हम आएंगे नहीं तो आप किसको पढ़ाने के लिए गणित का अध्ययन कर रहे हो? गणितज्ञ बोले कि आप लोग अपना कर्म (अध्ययन करने का) करें या न करें परंतु मेरे लिए तो कर्म ही पूजा है।कर्म ही भगवान है।भगवान् ने हमें कर्म करने के लिए ही जीवन दिया है।
    कर्म ही सबसे बड़ा है,शेष सब छोटे हैं।छात्र-छात्राओं को अपनी गलती का एहसास हुआ और धीरे-धीरे वे आने लगे।हर व्यक्ति को यथा समय अपना कर्म करते रहना चाहिए।फल भगवान के विधि-विधान के अनुसार मिलता है।संसार में अनासक्त कर्म ही सबसे बड़ा है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को स्वयं कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राओं द्वारा समस्याओं को स्वयं हल करने की 3 टिप्स (3 Tips for Solving Problems by Mathematics Students Themselves) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित शिक्षक और प्रतीक्षा कक्ष (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Teacher and Waiting Room) (Humour-Satire):

  • गणित का कालांश शुरु हो चुका था।काफी देर तक भी जब गणित शिक्षक नहीं आए तो छात्र-छात्राओं को चिंता हुई।वे उन्हें खोजने निकले तो गणित शिक्षक प्रतीक्षा कक्ष में आराम फरमा रहे थे।यह देखते ही छात्र-छात्राएं जोर से चिल्लाए-अच्छा।गणित के सवाल बताने के डर से यहाँ घुसकर लेटे हुए हो।गणित के डर से अच्छे-अच्छों की घिग्घी बँध जाती है।मुसीबतों का सामना करने से हल होती है आप ही तो कहते हो।अब खुद डरकर अंदर बैठे हो।बाहर आओ और हमें गणित पढ़ाओ,हमें गणित पढ़ना है।

6.छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को स्वयं कैसे हल करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राओं द्वारा समस्याओं को स्वयं हल करने की 3 टिप्स (3 Tips for Solving Problems by Mathematics Students Themselves) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.गणित में स्वाध्याय और सत्संग का क्या महत्त्व है? (What is the Importance of Self-study and Good Company in Mathematics?):

उत्तरःस्वाध्याय और सत्संग से गणित के जटिल से जटिल गुत्थियों को हल निकल सकता है।चिंतन एवं मनन के साथ उन्हें जीवन का आवश्यक कर्त्तव्य समझना चाहिए।जो गणित के छात्र-छात्राएं तथा गणित के अध्येता स्वाध्याय-सत्संग नहीं करते हैं वे गणित में आगे बढ़ने के बजाय अपने पतन का रास्ता चुनते हैं।गणित के अध्ययन में ही नहीं बल्कि आत्मिक प्रगति के लिए भी स्वाध्याय-सत्संग आवश्यक है।

प्रश्न:2.गणित में आत्म-निरीक्षण का क्या महत्त्व है? (What is the Importance of Self-observation in Mathematics?):

उत्तर:गणित का अध्येता अपनी वर्तमान स्थिति का जितना सूक्ष्म निरीक्षण करता है उतना ही उसे अपनी कमजोरियों का ज्ञान होता है।कमजोरियों का ज्ञान होने पर उन्हें हटाया जा सकता है।आलस्य,प्रमाद,लापरवाही इत्यादि के कारण हम अपना आत्म-निरीक्षण नहीं कर पाते हैं जिससे गणित में आगे प्रगति व उन्नति नहीं कर सकते हैं।फलतः अपनी कमजोरियों,दोषों के लिए दूसरों को जिम्मेदार समझते हैं।अपना आत्म-निरीक्षण करना ही वास्तविक सत्संग-स्वाध्याय और अध्ययन करना है।

प्रश्न:3.अपने को जानने की क्यों जरूरत है? (Why do You Need to Know Yourself?):

उत्तर:अपने आपको न जानने से हमारी चेतना सोई हुई पड़ी रहती है।शरीर से अध्ययन-अध्यापन का काम लेना चेतना के द्वारा ही संभव है।अपने को जानने से तात्पर्य अपना नाम,पता,जाति,धर्म,देश,व्यवसाय,धन-संपत्ति इत्यादि से नहीं है।वस्तुतः हम अपने बारे में उतना ही जानते हैं जितना शरीर के पालन पोषण,निर्वाह और व्यवहार के लिए आवश्यक है।यह सब तो चेतना का 1% भी नहीं है।कारण शरीर,स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर को ही असल में जानना है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को स्वयं कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?),गणित के छात्र-छात्राओं द्वारा समस्याओं को स्वयं हल करने की 3 टिप्स (3 Tips for Solving Problems by Mathematics Students Themselves) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं को स्वयं कैसे हल करें? (How Do Students Solve Maths Problems?)
इसके लिए उन्हें अपने व्यक्तित्व,योग्यताओं तथा क्षमताओं को पहचानना होगा।
अपना निरीक्षण करना ही वास्तविक सत्संग,स्वाध्याय और अध्ययन है।

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