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4 Tips for Students to Follow Celibacy

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1.छात्र-छात्राओं के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Celibacy),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें? (How Do Students Follow Celibacy to Study Mathematics?):

  • छात्र-छात्राओं के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Celibacy) के आधार पर ब्रह्मचर्य की उपयोगिता,ब्रह्मचर्य से लाभ तथा ब्रह्मचर्य का पालन न करने के दुष्परिणाम को जान सकेंगे। ब्रह्मचर्य पर अनेक पुस्तकें तथा लेख लिखें जा चुके हैं और लिखे जाते रहेंगे।इसके बावजूद आधुनिक जीवन शैली,उन्मुक्त आचरण,भौतिकता तथा पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव के कारण बहुत से छात्र-छात्राएं ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी नहीं समझते हैं।आधुनिक युग में अनेक छात्र-छात्राएं ब्रह्मचर्य की बात करना,ब्रह्मचर्य का पालन करना दकियानूसी,अव्यावहारिक और आउट ऑफ डेट मानते हैं परंतु इससे ब्रह्मचर्य की महत्ता और उपयोगिता कम नहीं हो जाती है।
  • भारतीय छात्र-छात्राएं पश्चिमी सभ्यता,रहन-सहन और तौर-तरीकों से प्रभावित होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी नहीं समझते हैं।उस पर टीवी चैनलों,फिल्मों तथा अश्लील पुस्तकों में ही ऐसी बातें दिखाई और परोसी जाती है कि वे आग में घी का काम कर रही है।ऐसे माहौल में ब्रह्मचर्य की बात करना अटपटा और अप्रासंगिक लग सकता है।भारतीय महान् संस्कृति,सभ्यता,नीति,उपदेश,धर्म इत्यादि को लोग भूलते जा रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता,संस्कृति के रंग में रंगते जा रहे हैं।
    ऐसे हालात में कुछ छात्र-छात्राएं तो हंसी उड़ाएंगे,कुछ छात्र-छात्राएं इसके टाइटल (Title) को देखकर ऐसे बिदकेगे जैसे साँड को लाल कपड़ा दिखा दिया हो तथा कुछ छात्र-छात्राएं पढ़ने को ही राजी नहीं होंगे।परंतु इन सब कारणों की वजह से छात्र-छात्राओं के जीवन के लिए बेहद उपयोगी ब्रह्मचर्य की चर्चा न करें तो यह उचित नहीं होगा।
  • ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ होता है ब्रह्म के जैसा आचरण व व्यवहार करना अर्थात् मन के विकारों काम,क्रोध,लोभ इत्यादि से मुक्त होकर अध्ययन तथा अन्य कार्य निष्काम भाव से करना,साक्षी भाव से अनासक्त होकर कर्म करना।जैसे भगवान् कर्तापन से मुक्त होकर कर्म करते हैं इसलिए भोक्ता भी नहीं है।परंतु ब्रह्मचर्य का अर्थ स्त्री से सहवास न करना,सम्भोग न करना,वीर्य रक्षा करने से लगाया जाता है जो कि इसका संकुचित अर्थ है।
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2.ब्रह्मचर्य और विद्याध्ययन (Celibacy and Study):

  • अथर्ववेद में ब्रह्मचर्य के बारे में काफी कुछ कहा गया है यहाँ दो मंत्रों का उल्लेख किया जा रहा है जो ब्रह्मचर्य की महत्ता और उपयोगिता बताते हैंः
    “ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रं वि रक्षति।
    आचार्यो ब्रह्मचर्येण ब्रह्मचारिणामिच्छते”।।
  • अर्थात् ब्रह्मचर्य को धारण करने वाला राजा प्रजापालन में निपुण होता है और ब्रह्मचर्य के कारण अध्यापक (आचार्य) विद्या वृद्धि के लिए और इन्द्रिय-निग्रह के कारण वेद विचारने वाले जितेन्द्रिय पुरुष से प्रेम करता है।अर्थात् ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण ब्रह्मचारी विद्या,ज्ञान और अभ्यास की सीमा तक पहुंच जाता है।
  • “आचार्यस्ततक्ष नभसी उभे इमे उर्वी गम्भीरे पृथिवी दिवं च।
    ते रक्षति तपसा ब्रह्मचारी तस्मिन देवाः संमनसो भवन्ति।।
  • अर्थात् आचार्य और ब्रह्मचारी श्रवण,मनन और निदिध्यासन से विद्या प्राप्त करके संसार के पृथ्वी,सूर्य आदि सब पदार्थों को जानकर उन्हें उपयोगी बनाते हैं।
  • ब्रह्मचारी दो प्रकार के कहे गए हैंःउपकुर्वाण जो विद्याध्ययन करने तक ब्रह्मचर्य को धारण करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करता है और सन्तानोत्पत्ति के लिए स्त्री से सहवास करता है।दूसरा नैष्ठिक ब्रह्मचारी जो मृत्युपर्यन्त विवाह नहीं करता है।इस प्रकार जीवनभर ब्रह्मचारी रह जाने की भावना अति प्राचीन काल से ही है।नैष्ठिक ब्रह्मचारी परमानन्द प्राप्त करता है और उसकी मुक्ति हो जाती है।
  • ब्रह्मचर्य धारण करने पर कठिन से कठिन विषय में शीघ्र सफलता प्राप्त कर लेता है।ब्रह्मचर्य से भगवत्-चिंतन,विद्या-अध्ययन,ज्ञानोपार्जन और वीर्य रक्षा का सीधा संबंध है।जो विद्यार्थी ब्रह्मचर्य को धारण करता है उसकी मेधा तीव्र गति से बढ़ती है। जो छात्र-छात्राएं ब्रह्मचर्य की महत्ता और उपयोगिता नहीं समझते हैं वे ब्रह्मचर्य के लाभों से तो वंचित रहते ही हैं साथ ही वे कई प्रकार की हानियाँ भी उठाते हैं।
  • आजकल के कॉलेज और स्कूलों के विद्यार्थी ऐशआराम करके विद्या प्राप्त करते हैं उनकी विद्या सफल नहीं होती है और न स्वयं व देश के लिए लाभदायक है इसका कारण यही है कि वे ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते हैं और उपयोगी तथा व्यावहारिक विद्या का अध्ययन नहीं कराया जाता है।

3.ब्रह्मचर्य और वीर्यरक्षा (Celibacy and Semen Protection):

  • वीर्यरक्षा विद्यार्थी का प्रमुख कर्तव्य है।हम जो भोजन करते हैं उससे कई प्रकार के रस तैयार होने के बाद मुख्य धातु वीर्य तैयार होता है।यह वीर्य शरीर का राजा है।इसी से विद्यार्थी तथा मनुष्य की शक्ति और ओज कायम रहता है।विद्यार्थी तथा मनुष्य के शरीर से वीर्य निकल जाता है तो वह निस्तेज हो जाता है।अध्ययन करने में रुचि नहीं रहती है,मन की एकाग्रता कायम नहीं रहती है।
  • विद्यार्थी यदि अपने वीर्य को शरीर के अंदर धारण किए रहता है तो उसकी शारीरिक और मानसिक उन्नति होती रहती है।शरीर और मन में स्फूर्ति रहती है।
  • अथर्ववेद में कहा गया है कि “ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाघ्नता”।अर्थात् ब्रह्मचर्य और तप के बल पर ही देवता लोग मृत्यु को जीत लेते हैं।पितामह भीष्म का वृतांत आप सभी को मालूम है कि उन्होंने ब्रह्मचर्य के बल पर ही इच्छा मरण की शक्ति प्राप्त की थी।रामभक्त हनुमान बाल ब्रह्मचारी थे जिन्होंने महान पराक्रम दिखाया।
  • जो छात्र-छात्रा वीर्यरक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं वे अपने कीमती जीवन को नष्ट कर रहे होते हैं।कहा है कि “मरणं बिन्दुपातेन जीवनं बिन्दुधारणात्”।अर्थात् वीर्य का एक बूंद भी शरीर से गिरा देना मरण है और एक बूंद की भी अपने अंदर रक्षा कर लेना जीवन है।मनुष्य जो प्रतिदिन नियमित आहार करता है,एक मास उसका अंतिम रस अर्थात् वीर्य तैयार होता है,उसकी पूर्ण यत्न से रक्षा करनी चाहिए क्योंकि उसके क्षय होने पर अनेक रोग आ घेरते हैं।इसलिए छात्र-छात्राओं को ब्रह्मचर्य की रक्षा प्रत्येक दशा में करनी चाहिए।वीर्य को नाश करने वाले अर्थात् कामवासना को भड़काने वाले 8 कारण बताए गए हैंः
  • “दर्शनं स्पर्शनं केलिः प्रेक्षणं गुह्यभाषणम्।
    संकल्पोअध्यवसायश्च क्रियानिष्पत्तिरेव च”।।
    एतन्मैथुनमष्टांगं प्रवदन्ति मनीषिणः।
    विपरीतं ब्रह्मचर्य जह्यातन्न कदाचन”।।
  • अर्थात् (1.)सम्भोग करते हुए देखना या स्पर्श करना,पूर्व काल में किए गए संभोग को याद करना।
  • (2.)कामक्रीड़ा एवं अश्लील साहित्य पढ़ना और विचार करना।
  • (3.)सैक्स सम्बन्धी छेड़छाड़,हँसी मजाक करना,ईशारा करना।
  • (4.)गुप्त रूप से ऐसे व्यक्ति या दृश्य देखना जिससे कामाग्नि भड़कती हो।
  • (5.)छिपकर सैक्स और कामक्रीड़ा संबंधित बातें करना।
  • (6.)कामक्रीड़ा का संकल्प करना।
  • (7.)संभोग करने का प्रयत्न करना,उपाय करना और इसके लिए अनेक प्रकार के साधनों का प्रयोग करना।
  • (8.)जानबूझकर ऐसे काम करना जिससे वीर्यपात हो।
  • इनसे बचकर रहना ब्रह्मचर्य है और ब्रह्मचर्य को किसी भी स्थिति में छोड़ना नहीं चाहिए।क्योंकि ब्रह्मचर्य न धारण करने से आयु,बल,वीर्य,बुद्धि,लक्ष्मी,तेज,यश,पुण्य,प्रेम इत्यादि सब अच्छे-अच्छे गुणों का नाश हो जाता है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन केवल विद्यार्थी काल तक ही नहीं बल्कि विवाह के पश्चात भी करना चाहिए।जो व्यक्ति विवाह के पश्चात सिर्फ सन्तानोत्पत्ति के उद्देश्य से स्त्रीसंग करता है और इन्द्रिय-सुख के लिए वीर्य का नाश नहीं करता वह भी ब्रह्मचारी ही होता है।
  • महाबली मेघनाथ को वही मार सकता था जिसने बारह वर्ष ब्रह्मचर्य धारण किया हो।लक्ष्मण जी बारह वर्ष से पूर्ण ब्रह्मचारी थे।उनके मन में कोई अपवित्र भाव नहीं उठा था।लक्ष्मणजी ने ब्रह्मचर्य के बल पर ही मेघनाथ पर विजय प्राप्त की थी।महाभारत में चित्ररथ गन्धर्व को अर्जुन द्वारा जीते जाने की कथा है।तब चित्ररथ ने कहा था कि “हे पार्थ,ब्रह्मचर्य ही परमधर्म है।इसका तुमने साधन किया है और इसी कारण तुम मुझको युद्ध में पराजित कर सके हो।

4.ब्रह्मचर्य की उयोगिता और लाभ (Utility and Benefits of Celibacy):

  • चार आश्रमों ब्रह्मचर्य,गृहस्थाश्रम,संन्यास और वानप्रस्थाश्रम में ब्रह्मचर्य सभी आश्रमों की जड़ है।इसी से पता चलता है कि ब्रह्मचर्य कितना महत्त्वपूर्ण है।ब्रह्मचर्य जीवन का आरम्भिक काल है जो नींव का कार्य करता है।नींव जितनी मजबूत व सुदृढ़ होती है उतना ही भवन टिकाऊ होता है।इस काल में विद्या अर्जन करके अपने को मजबूत आधार दे सकते हैं।इसी से जीवन का संपूर्ण निर्माण होता है।ब्रह्मचर्य को धारण करने से ऊर्जा संचित होती है और जागती है जिससे व्यक्ति उर्ध्वरेता बन जाता है।
  • इन्द्रियाँ शक्तिशाली और बलवान बनती है।बुद्धि का तीव्र गति से विकास होता है।छात्र-छात्राएं बुद्धि और ज्ञान,पुरुषार्थ और परिश्रम करने की दृष्टि से समर्थ बन जाते हैं।ब्रह्मचर्य के आधार पर छात्र-छात्राएं सच्चे अध्येता,कर्मयोगी,पुरुषार्थी और प्रगति,उन्नति की ओर बढ़ने वाले बन जाते हैं।ब्रह्मचर्य का पालन करने से मनुष्य जीवन का भरपूर फायदा उठा सकते हैं।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने से इंद्रिय निग्रह करने की आदत पड़ जाती है और संयम का पालन करना सरल हो जाता है।ध्यान रहे इंद्रिय-निग्रह इन्द्रियों को दबाना,कुचलना तथा बलपूर्वक दबाना नहीं है बल्कि इंद्रियों को नियंत्रित करके,वश में करने तथा उचित दिशा में इन्द्रियों का उपयोग करने से है।इन्द्रियों को दबाने से कुण्ठा,घुटन पैदा होती है।इन्द्रिय-निग्रह मन की एकाग्रता,मन को साधने से होता है क्योंकि इंद्रियों का स्वामी मन ही होता है।जिन छात्र-छात्राओं की इंद्रियां और मन वश में नहीं है उनका अध्ययन कार्य व्यर्थ ही चला जाता है।केवल डिग्री प्राप्त करने से सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त होता है और ऐसे छात्र-छात्रा ज्ञान को उपयोग में नहीं ले सकता है।जब ज्ञान का उपयोग नहीं कर सकता है तो जाहिर सी बात है कि वह ज्ञान से होने वाले लाभों से वंचित रहता है।

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5.ब्रह्मचर्य का दृष्टांत (Parable of Celibacy):

  • भारतीय संस्कृति में जीवन के प्रारंभिक 25 वर्ष नियम,संयम,सदाचार तथा उचित आचरण के लिए निर्धारित किए थे।तप करके कठिनाइयों के अनुभवों से गुजरने का अभ्यास जरूरी था।कठिन संघर्ष और कठिन परिश्रम करने से शेष जीवन सरल मालूम पड़ता था।जो छात्र-छात्राएं विद्यार्थी जीवन को सुख-सुविधाओं में गुजारते हैं वे शेष जीवन में थोड़ी सी कठिनाई आते ही घबरा जाते हैं।लेकिन जो विद्यार्थी तप,परिश्रम और संकटों से जूझने में गुजारता है वह शेष जीवन कुशल खिलाड़ी की तरह गुजार देता है।परन्तु आधुनिक युग में कई छात्र-छात्राएं नियम,संयम,इन्द्रिय-निग्रह,ब्रह्मचर्य को दकियानूसी और आउट ऑफ डेट इसलिए भी कहते हैं ताकि मनमाना आचरण कर सकें,मौज-मस्ती कर सकें और विद्यार्थी काल में कामवासना की पूर्ति कर सकें।
  • एक बार शिक्षा संस्थान में गणित के अध्यापक ने कक्षा के विद्यार्थियों को गणित के सवाल हल करने को दिया।एक विद्यार्थी सवालों को हल नहीं कर सका।इससे उसे चिन्ता होने लगी।उसे अच्छा जाॅब मिलना,प्रगति करना और उन्नति करना भी गणित में मेधावी होने पर निर्भर था।अभी वह सवाल हल कर ही रहा था कि गणित अध्यापक ने ऊंची आवाज में कहा कि कुछ समय ही बाकी है इसके बाद उत्तर पुस्तिका ले ली जाएंगी।इस पर उसे इतना तनाव और चिंता हुई कि उसे उसी समय वीर्यपात हो गया।
  • यह हालत है आज के छात्र-छात्राओं की।उस युवक को यह बताया,सीखाया और अभ्यास ही नहीं कराया गया कि संयम,इंद्रिय-निग्रह और ब्रह्मचर्य की क्या महत्ता और उपयोगिता है और उसको जीवन में कैसे धारण किया जाए?
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Celibacy),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें? (How Do Students Follow Celibacy to Study Mathematics?) के बारे में बताया गया है।

6.गणित और पिटाई (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics and Beating) (Humour-Satire):

  • टीनाःगणित विषय लेना खतरे से खाली नहीं है यह मुझसे बेहतर कोई नहीं जान सकता है।गणित विषय की वजह से मेरी कई सालों तक पिटाई हुई।
    ममताःकई सालों तक क्यों?
  • टीनाःपहले तो गणित अध्यापक मुझे पीटते थे।बाद में घर वालों ने मुझे यह कहकर पीटना चालू कर दिया कि तुम्हें इतने साल हो गए लेकिन अभी भी तुम गणित में बिल्कुल कमजोर हो।

7.छात्र-छात्राओं के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करने की 4 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4 Tips for Students to Follow Celibacy),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें? (How Do Students Follow Celibacy to Study Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1.ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए क्या-क्या वर्जित हैं? (What is the Taboo to Practice Celibacy?):

उत्तर:दर्शन,स्पर्श,केलि (कामक्रीड़ा,हँसी-मजाक),नेत्रकटाक्ष,एकांत में भाषण,संकल्प,कार्य निष्पत्ति ये आठ प्रकार के स्त्री प्रसंग वर्जित हैं।अश्लील साहित्य,सिनेमा,सुगन्धित तेल,पाउडर ये मस्तिष्क को भड़काते हैं इसलिए वर्जित हैं।परस्त्री गमन नहीं करना चाहिए।चाय,कॉफी,पान,तंबाकू,सिगरेट,भाँग,शराब,माँस तथा नशीले पदार्थों (अफीम,चरस इत्यादि) का सेवन नहीं करना चाहिए,ये उत्तेजक हैं तथा ब्रह्मचर्य का नाश करने वाले हैं।

प्रश्न:2.ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए क्या करना चाहिए? (What Should One Do to Follow Celibacy?):

उत्तरःजल्दी उठना,जल्दी सोना,सोते हुए मुँह न ढकना,शौच नियमित रूप से जाना,पेट साफ रखना,दातुन करना,योगासन-प्राणायाम करना,स्नान करना तथा संध्या आदि करना चाहिए।सत्साहित्य पढ़ना चाहिए।नियमित रूप से स्वाध्याय करना चाहिए।सदाचार,धार्मिक,नीति तथा आचरण से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।अपने कमरे में महावीर हनुमान,पितामह भीष्म जैसे महापुरुषों के चित्र लगाइए।श्रीमद्भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि “यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति”।(अध्याय-8) अर्थात् भगवान् की प्राप्ति के इच्छुक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।तात्पर्य यह है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने वाले को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।छात्र-छात्राओं का लक्ष्य अध्ययन करना तथा विद्या ग्रहण करना है अतः ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

प्रश्न:3.संयम से क्या तात्पर्य है और संयम कैसे रखा जा सकता है? (What is Meant by Restraint and How Can Restraint be Maintained?):

उत्तरःयम के पाँच अंगों का पालन करने और उन पर अमल करने को संयम कहा जाता है।यम के पाँच अंग हैंःअहिंसा,सत्य,अस्तेय (चोरी न करना),ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना)।जो व्यक्ति और छात्र-छात्राएं इन पाँच अंगों का पालन करता है उसे संयम साधना नहीं पड़ता है बल्कि उस व्यक्ति तथा छात्र-छात्राओं के लिए संयम रखना स्वभाव में शामिल हो जाता है।
विनोबा भावे के अनुसार विद्यार्थी अवस्था में संयम की महान् विद्या सीख लेनी चाहिए।जब आप संयम की शक्ति का संग्रह कर लेंगे तो एकाग्रता भी,जो जीवन की एक महान शक्ति है,पा लेंगे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Celibacy),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें? (How Do Students Follow Celibacy to Study Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Tips for Students to Follow Celibacy

छात्र-छात्राओं के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करने की 4 टिप्स
(4 Tips for Students to Follow Celibacy)

4 Tips for Students to Follow Celibacy

छात्र-छात्राओं के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Follow Celibacy)
के आधार पर ब्रह्मचर्य की उपयोगिता,ब्रह्मचर्य से लाभ तथा ब्रह्मचर्य
का पालन न करने के दुष्परिणाम को जान सकेंगे।
ब्रह्मचर्य पर अनेक पुस्तकें तथा लेख लिखें जा चुके हैं और लिखे जाते रहेंगे।

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