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Intellectual Value of Mathematics

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1.गणित के बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value of Mathematics),गणित से बौद्धिक विकास (Intellectual development from mathematics):

  • गणित के बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value of Mathematics) से तात्पर्य है छात्र-छात्राओं का गणित के द्वारा बौद्धिक विकास करना। छात्र-छात्राओं के बौद्धिक विकास के लिए गणित सर्वोत्तम एवं शक्तिशाली साधन है।बहुत से छात्र-छात्राओं की समस्या होती है कि उनकी बुद्धि का विकास कैसे किया जा सकता है?इस आर्टिकल में बताया जाएगा कि बुद्धि क्या है तथा बुद्धि का विकास किस प्रकार किया जा सकता है?यह सर्वविदित है कि यांत्रिक बल,धनबल,शारीरिक बल,आत्मिक बल,बुद्धि बल इत्यादि में आत्मिक बल तथा बुद्धि बल सर्वश्रेष्ठ होता है।बुद्धि बल के द्वारा हम अन्य बलों पर नियंत्रण करते हैं।चाणक्य नीति में कहा है कि:
  • “बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेश्च कुतो बलम।”
    अर्थात् जिसके पास बुद्धि है,उसी के पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल नहीं है।
    भगवद्गीता में बुद्धि तीन प्रकार की बताई गई है :सात्विक बुद्धि,राजसिक बुद्धि और तामसिक बुद्धि
    “प्रवृत्ति च निवृत्ति च कार्याकार्ये भयाभये।
    बेधं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धि: सा पार्थ सात्त्विकी।।”
  • अर्थात् किस काम से हित होगा,किससे अहित होगा,क्या काम करना चाहिए,क्या नहीं करना चाहिए,भय कौनसी चीज है और निर्भयता क्या है,बन्धन किन बातों से होता है और स्वतंत्रता या मोक्ष किन बातों से मिलती है यह जिससे जाना जाता है वह उत्तम अर्थात् सात्त्विकी बुद्धि है।इस प्रकार सात्त्विक बुद्धि अष्टांग योग यम (अहिंसा, सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह),नियम (शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय,भगवद् भक्ति),आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि का पालन करने वाली,धर्माचरण,तर्क,युक्तिसंगत,स्थिर,विवेकयुक्त,धैर्य,अनासक्ति,स्नेह,वात्सल्य,श्रद्धा,हर्ष,आनंद,भक्ति,मेघा,स्मृति,एकाग्रता,सुदृढ़ता,मनन-चिंतन आदि गुणों को धारण करने वाली होती है।यदि छात्र-छात्राओं में सात्त्विक बुद्धि होती है अथवा सात्त्विक बुद्धि के विकास की ओर अग्रसर होती है तो ऐसे छात्र-छात्राओं में ईमानदारी,सच्चरित्रता, कठिन परिश्रम करके परीक्षा में उत्तीर्ण होने की प्रवृत्ति,सरलता,निष्कपटता,परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग न करना,अध्यापकों का सम्मान करना,विद्याध्ययन में रुचि,अहंकाररहित होकर विद्या ग्रहण करना,नम्रता,परीक्षा में नकल न करना,बोर्ड अंक तालिका में अनैतिक तरीके से अंक बढ़ाने का प्रयास ना करना,गुंडागर्दी न करना, अनुशासन प्रिय,सर्जनात्मक चिंतन का विकास करने का प्रयास करना इत्यादि कार्य को करने में रुचि लेते हैं।
  • राजसिक बुद्धि में चंचलता,अस्थिरता होती है जिससे ऐसे छात्र-छात्राओं में काम,क्रोध,लोभ,मोह,भय, शोक, ईर्ष्या,राग-द्वेष,निंदा,अभिमान,जल्दबाज,चिंतन के बजाय चिंता करना,परीक्षा में नकल करना,परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग करना,बोर्ड अंक तालिका में येन केन प्रकारेण अंक बढ़ाने की जुगत भिड़ाना,अनुशासनहीनता,अध्यापक तथा गुरुजनों के साथ यार दोस्त जैसा बर्ताव करना,अध्यापकों,माता-पिता का सम्मान न करना,बड़ों से मुँहजोरी करना,बड़ों की आज्ञा का पालन न करना इत्यादि कार्यों को करने में लिप्त होते हैं।
  • तामसिक बुद्धि वाले छात्र-छात्राओं को सही मायने में विद्यार्थी कहा ही नहीं जा सकता है बल्कि ऐसे छात्र-छात्राएं विद्यार्थी के वेश में राक्षस वृत्ति के होते हैं।इस प्रकार की बुद्धि वाले छात्र-छात्राएं गुंडागर्दी करना,लूटपाट करना,चोरी करना,डकैती डालना,हिंसा फैलाना,हड़ताल करना,आलस्य,प्रमाद करना,शराब पीना,मांस तथा अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करना,यौन कार्यों में लिप्त होना,अय्याशी करना,अध्यापकों को डराना धमकाना व मारपीट करना आदि दुष्ट व निकृष्ट कार्यो में लिप्त पाए जाते हैं।
  • दरअसल ‘बोधनात बुद्धि’ के अनुसार जो ज्ञान,विवेक,विद्या को धारण करने वाली,बोध कराने वाली तथा विद्या-अविद्या,भले-बुरे,न्याय-अन्याय,सत्य-असत्यका ज्ञान कराएं उसे बुद्धि कहते हैं।इस प्रकार मौलिक रूप से बुद्धि के दो भेद किए जा सकते हैं सात्विक बुद्धि और राजसिक व तमोगुण बुद्धि।
  • राजसिक और तामसिक बुद्धि वाला व्यक्ति कितना ही साधन संपत्ति वाला,ताकतवर हो वह न तो खुद का भला कर सकता है और न ही दूसरों का भला कर सकता है।इस प्रकार की बुद्धि से स्वयं अपना अहित करता है।साधन संपत्ति तथा ताकत का दुरुपयोग करता है।असहाय, निर्बल,कमजोर छात्र-छात्राओं को अध्ययन करने में बाधा डालता है।
    इस प्रकार केवल बुद्धि के होने से ही कोई भी छात्र-छात्रा उन्नति,विकास,उत्थान तथा अध्ययन कार्य नहीं कर सकता है।इसलिए बुद्धि के साथ विवेक (ज्ञान) को धारण करें अर्थात सद्बुद्धिपूर्वक विद्याध्ययन करें तभी वह सदाचारी,गुणवान,योग्य,कुशल तथा पारंगत हो सकता है।बुद्धि विकास के निम्नलिखित उपाय करने चाहिए अर्थात् सद्बुद्धि को धारण करना चाहिए:
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(1.)गणित का अध्ययन (Study of Mathematics):

  • बुद्धि विकास के लिए जिज्ञासा और एकाग्रता से बुद्धि प्रखर व तेजस्वी बनती है।गणित के सवालों व समस्याओं को हल करते हैं तथा उसमें ज्यों-ज्यों सफलता मिलती है तो हमारी जिज्ञासा बढ़ती जाती है।हमें गणित के सवालों को हल करने की प्रेरणा मिलती है।इस प्रकार गणित के सवाल हल करने,सवालों को हल करने में दक्षता बढ़ने से अनायास ही एकाग्रता बढ़ने लगती है।गणित के सवालों व समस्याओं को हल करने में असमर्थ रहने पर हताश होने के बजाय उसको अलग-अलग तरीके से हल करने का प्रयास करना चाहिए।
  • पुस्तक के उदाहरणों का हल करना चाहिए फिर भी सवाल हल नहीं होते हैं तो अपने मित्रों व अध्यापक की सहायता लेनी चाहिए।इसके पश्चात हल सवाल से मूल्यांकन करना चाहिए कि उसे ऐसी कौनसी त्रुटि हो गई है जिसे वह सवाल को हल नहीं कर पाया।
  • इस प्रकार बार-बार अभ्यास,स्मरण,मनन-चिन्तन तथा रिव्यू (Review) करते रहने से धीरे-धीरे गणित में रुचि व जिज्ञासा जागृत होती जाती है। इसमें सबसे बड़ी बात यही है कि गणित के सवालों को धैर्यपूर्वक हल करें।धैर्य धारण करने का अर्थ केवल प्रतीक्षा करना नहीं होता है बल्कि परीक्षा के समय आपका सवालों को हल करने का दृष्टिकोण क्या है?अर्थात् आप हताश होकर गणित के सवालों को हल करने को छोड़ सकते हैं।अथवा प्रतीक्षा के समय आप यह मनन करते हैं कि यह सवाल ओर किस तरीके से हो सकता है?क्या यह किसी उदाहरण की सहायता से हो सकता है?अथवा इसके लिए किसी अन्य की सहयोग की आवश्यकता है।
  • इस प्रकार गणित का अध्ययन करने से आपमें तार्किक चिंतन,निर्णय करने की शक्ति,सर्जनात्मक चिन्तन,कल्पना शक्ति,एकाग्रता,धैर्य,गणित के सवालों को हल करने की योग्यता,दक्षता का विकास होता है।वस्तुतः गणित शिक्षा प्राप्त करना,गणित के सवालों को हल करना,गणित की समस्याओं को हल करना तो गौण लक्ष्य है।मुख्य लक्ष्य तो छात्र-छात्राओं की मानसिक शक्तियों का विकास करना है।यदि आपमें तर्कशक्ति,कल्पनाशक्ति,योग्यता,धैर्य,एकाग्रता,मनन-चिंतन इत्यादि गुणों का विकास हो जाता है तो आप जीवन में आने वाली किसी भी प्रकार की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो जाते हैं।
  • गणित विषय से आप विशिष्ट ज्ञान,योग्यता,दक्षता,कुशलता तथा प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं जिसके आधार पर आप जॉब प्राप्त करते हैं।परंतु व्यावहारिक ज्ञान,योग्यता,कुशलता तथा जीवन की समस्याओं को हल करने की निपुणता प्राप्त करना भी उतना ही आवश्यक है।

(2.)अनुभव प्राप्त करना (Gain Experience):

  • गणित की पुस्तकें पढ़ने,अध्ययन करने से सैद्धान्तिक ज्ञान तो प्राप्त हो जाता है परंतु व्यावहारिक ज्ञान के लिए प्रैक्टिकल ज्ञान अर्थात् अनुभव अर्जित करना भी उतना ही जरूरी है।बुद्धि सत्त्वबुद्धि तभी आती है जबकि आप अनुभव अर्जित करते हैं।
  • जैसे यदि आप कंप्यूटर इंजीनियरिंग का कोर्स कर रहे हैं तो पुस्तकों से कंप्यूटर इंजीनियरिंग का सैद्धांतिक ज्ञान तो प्राप्त हो जाएगा लेकिन यदि कंप्यूटर चलाना,कंप्यूटर चलाने की तकनीक नहीं सीखेंगे तब तक कंप्यूटर चलाना नहीं सीख सकते हैं।बिना अनुभव से गुजरे सैद्धांतिक बातें हमारी अनुभूति नहीं बनती है।और बिना अनुभूति के सत्त्वबुद्धि नहीं आती है।
  • इसलिए सदैव सक्रिय,सजग व चौकस रहकर अनुभव प्राप्त करना ही चाहिए।सैद्धांतिक ज्ञान के बजाय प्रैक्टिकल ज्ञान का अधिक महत्त्व है। फलतः आजकल गणित शिक्षा में गणित प्रयोगशाला का प्रचलन शुरू हो गया है।गणित के विद्यार्थियों को गणित प्रयोगशाला में प्रैक्टिकल करवाए जाते हैं।जिस प्रकार एक किसान अपने व्यावहारिक ज्ञान के आधार पर फसल उगाता है, तैयार करता है।लेकिन एग्रीकल्चर विषय से डिग्री लेने वाला छात्र कृषि कार्य करने में असमर्थ रहता है।

(3.)सत्संगति (Satsangati):

  • छात्र-छात्राओं को ऐसे लोगों की संगति ही करनी चाहिए जिससे उनको अध्ययन करने में सहायता मिलती है।गणित विषय ऐसा अवसर हमें उपलब्ध कराता है।गणित के सवालों को हल करने में कठिनाई महसूस होती है।तब हम सवालों को हल करने में सहायता का अनुभव करते हैं।जाहिर है हम हमारे से श्रेष्ठ लोगों का साथ प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।इस प्रकार श्रेष्ठ लोगों का साथ करने से हमारी जड़ता,अज्ञान दूर होता है।क्योंकि श्रेष्ठ लोगों से हमें केवल सवाल का हल ही नहीं मिलता है बल्कि उनसे हम कई अन्य गुणों को धारण करते हैं।
  • बुरी संगति करने से अच्छा-भला आदमी भी शोभा नहीं पाता है बल्कि उसकी निंदा की जाती है।जैसे विधवा स्त्री के मस्तक में सिंदूर का बिंदु शोभा नहीं देता है,तूंबीफल के बिना वीणादंड शोभा नहीं देती है।
    भगवद्गीता में कहा है कि “
    “यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
    स यत्प्रमाणं लोकस्तदनुवर्तते।।”(अध्याय-3)
  • अर्थात् विद्वान (श्रेष्ठ पुरुष) जैसा आचरण करते हैं वैसा ही साधारण व्यक्ति करते हैं।श्रेष्ठ पुरुष (नेता) जिस विषय को प्रमाण मानता है,साधारण जन भी उसी का अनुसरण करते हैं।
  • हालांकि श्रेष्ठजन विकार रहित तथा अहंकारशून्य होते हैं इसलिए उनके जैसा आचरण तो करना मुश्किल है परंतु उनके मार्ग का थोड़ा बहुत भी पालन कर लिया जाए तो छात्र-छात्राओं का कल्याण हो सकता है।
  • इसलिए छात्र-छात्राओं को गुरुजनों तथा अपने से श्रेष्ठ,निपुण छात्र-छात्राओं का संग करना चाहिए।हम जैसे लोगों के साथ रहते हैं हमारे वैसे ही संस्कार सक्रिय हो जाते हैं।यदि धूम्रपान करने,शराब पीने वाले,फैशन परस्ती,अय्याश तबीयत,आलसी छात्र-छात्राओं का संग करेंगे तो संग करने वाले छात्र-छात्राओं के बुरे संस्कार सक्रिय हो जाते हैं।

(4.)स्वाध्याय तथा अच्छी पुस्तकों का अध्ययन (Swadhyaya and Studying Good Books):

  • छात्र-छात्राओं को गणित की पाठ्यपुस्तकें पढ़ने के साथ-साथ गणित की संदर्भ पुस्तकों,गणित की सहायक पुस्तकों तथा अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन भी करते रहना चाहिए।गणित की पाठ्यपुस्तक के अलावा अन्य सहायक पुस्तकें,सन्दर्भ पुस्तकें पढ़ने तथा उनके सवाल व समस्याओं को हल करने से दिमाग खुलता है,बुद्धि का विकास तीव्र गति से होता है।
  • पाठ्यपुस्तक को पढ़ने तथा पुनरावृत्ति करने से सवालों को हल करने का ढंग याद हो जाता है। जबकि संदर्भ पुस्तकों व सहायक पुस्तकों में पाठ्यपुस्तक से अलग हटकर मस्तिष्क व बुद्धि को विकसित करने वाली समस्याएँ होती है।जब छात्र-छात्राएं नवीन तथा अपनी क्षमता से कुछ अधिक जटिल समस्याओं को हल करता है तो दिमाग का विकास होता है।
  • पुस्तकों में धर्म,ज्ञान,सदाचरण,नीति,व्यावहारिक आदि की सारगर्भित विवेचना होती है।इन पुस्तकों को केवल पढ़ने से ही बुद्धि का विकास नहीं होता है बल्कि उनका चिंतन-मनन करना तथा आचरण में उतारना चाहिए।जिस प्रकार यदि हम पुस्तकों में सत्य बोलना को पढ़कर सत्य बोलना नहीं सीख सकते जब तक कि लोगों से व्यवहार करते समय सत्य बोलने का व्यवहार नहीं करेंगे।केवल पुस्तकें पढ़कर विद्यार्थी गुणवान् तथा दक्ष नहीं हो सकता है जब तक कि उस पर अमल न किया जाए।पुस्तकें धर्म,नीति,ज्ञान,व्यवहार,अनुभव व सदाचार का पालन करने में सहायक हो सकती है,साध्य या साधन नहीं बन सकती है।
  • संसार में बड़े-बड़े दार्शनिक,गणितज्ञ,कवि,वैज्ञानिक,योगी,संत,विद्वान हुए हैं उन्होंने पुस्तकों का निरंतर अध्ययन,मनन-चिंतन किया है।उनके पास स्वयं की लाइब्रेरी रहती है जिसमें वे स्वाध्याय करते रहते हैं।
  • आजकल के स्कूल-काॅलेजों के छात्र-छात्राएं पुस्तकें पढ़ने के बजाय मोबाइल फोन,इंटरनेट पर गाॅसिप,सैक्सी,गपशप करना,अपराध,कामुक साहित्य तथा इंटरनेट पर इस प्रकार की सामग्री पढ़ने में मशगूल रहते हैं जो दिल व दिमाग में उत्तेजना पैदा करती है।इस प्रकार का साहित्य पढ़ने पर बौद्धिक पतन होता है।ऐसे युवा दुर्बुद्धि,तामसिक बुद्धि की ओर अग्रसर होकर अनेक अनैतिक व दुराचरण करते पाए जाते हैं। विद्यालय व काॅलेजों में व्यावहारिक शिक्षा के बजाय सैद्धांतिक शिक्षा प्रदान की जाती है।
  • छात्र-छात्राएं ऐसी शिक्षा में डिग्री लेने को प्राथमिकता देते हैं।उन्हें किसी प्रकार का कौशल,दक्षता व योग्यता सीखने को नहीं मिलती है।पुस्तकों का स्वाध्याय नहीं करते हैं।गाइडो व साल्वड पेपर्स से कुछ प्रश्नों के उत्तर रटकर उत्तीर्ण हो जाते हैं।इसलिए माता-पिता,अभिभावक व शिक्षकों को चाहिए कि बालक को शुरू से ही पुस्तकों का स्वाध्याय करने की आदत डालें।

(5.)सदाचार का पालन करना (Follow the Virtue):

  • चंदन,तगर,कमल या जूही इन सभी पुष्पों की गंध उसी तरफ फैलती है जिस तरफ हवा का रुख होता है।परंतु सदाचारी व्यक्ति की सुगंध चारों दिशाओं में फैलती है।वह सभी जगह सम्मानित होता है।केवल शास्त्रों,पुस्तकों को पढ़ लेना,उनका अध्ययन कर लेना अथवा पाठ करना व्यसन और मूर्खता है जब तक उन उपदेशों पर अमल न किया जाए।कुछ लोग मात्र रोजाना धर्मग्रंथों का पाठ करते रहते हैं परंतु उन पर मनन-चिंतन नहीं करते हैं और न ही उनको आचरण में उतारते हैं।इससे उनके जीवन का रूपांतरण नहीं हो सकता है।
  • आजकल शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है जिससे शिक्षित बेरोजगारों तथा अकर्मण्य युवाओं की संख्या बढ़ रही है।उनमें किसी प्रकार की स्किल व योग्यता होती ही नहीं है और न ही उनकी बुद्धि का विकास होता है।ऐसे युवा डिग्रियां हासिल करके कोई छोटा-मोटा धंधा नहीं करना चाहते हैं।उन्हें नौकरियाँ चाहिए परंतु सोचने वाली बात है कि सरकार कितने युवाओं को सरकारी नौकरी दे सकती है।पढ़ने वाले,पढ़ाने वाले और शास्त्रों का अध्ययन करने वाले व्यसनी और मूर्ख हैं जब तक उसको आचरण में नहीं उतारते हैं।हालांकि कुछ विषय ऐसे हैं जिनमें सैद्धांतिक ज्ञान ही आवश्यक होता है।
  • जैसे प्राध्यापकों,लेखको,वित्त विशेषज्ञों और अनुवादको के लिए सैद्धांतिक ज्ञान (किताबी ज्ञान) अधिक महत्वपूर्ण है परंतु खिलाड़ियों,सैनिकों,प्रबंधकों इत्यादि के लिए व्यावहारिक ज्ञान का अधिक महत्त्व है।तो भी विद्वानो,प्राध्यापकों,संतो तथा श्रेष्ठ व्यक्तियों इत्यादि का चरित्र उज्जवल,निष्कलंक होगा तो ही छात्र-छात्राओं पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

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(6.)निष्कर्ष (Conclusion of Intellectual Value of Mathematics):

  • बुद्धि के विकास से छात्र-छात्राओं में विवेकशील चिन्तन (Rational Thinking) तथा अमूर्त चिंतन (Abstract Thinking) करने में मदद मिलती है। तात्पर्य यह है कि सद्बुद्धि वाले छात्र-छात्राओं के सोचने एवं चिंतन-मनन करने का तरीका विवेकपूर्ण होता है।ऐसे छात्र-छात्राएँ तर्कपूर्ण एवं युक्तिसंगत कार्यप्रणाली अपनाते हैं।इस प्रकार के छात्र-छात्राओं में अमूर्त चिंतन करने से गणित की समस्याओं को सरलता से हल कर पाते हैं।गणित के कठिन व जटिल सवालों,समस्याओं को समझकर हल करते हैं जिससे बुद्धि का विकास तीव्र गति से होता है।बुद्धि के विकास में शिक्षण,प्रशिक्षण तथा पूर्व अनुभूति (Past Experiences) का भी काफी प्रभाव पड़ता है तथा इनसे बुद्धि तीव्र गति से विकसित होती है।
  • उपर्युक्त विवरण में गणित के बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value of Mathematics),गणित से बौद्धिक विकास (Intellectual development from mathematics) के बारे में बताया गया है।

7.सच्चा स्टूडेंट (हास्य-व्यंग्य) (True Student) (Humor-sattire):

  • अध्यापक (शिक्षा अधिकारी से):श्रीमान!क्या आदेश है?औचक स्कूल में कैसे आना हुआ?
    शिक्षा अधिकारी:स्कूल के बच्चों का निरीक्षण करना है.
  • अध्यापक:श्रीमान! यह हरीश बहुत ही सच्चा विद्यार्थी है.जब भी मैं इससे गणित के टेस्ट,परीक्षा के बारे में पूछता हूं बिल्कुल सच्चा उतरता है.अध्यापक बार-बार हरीश की तारीफ करते हैं.
    शिक्षा अधिकारी:हरीश के सच्चा होने का क्या मतलब है?
  • अध्यापक:श्रीमान!जब कभी मैं पूछता हूं कि पेपर कैसा हुआ?तब-तब हमेशा यह बताता है कि मैंने एक भी सवाल सही नहीं किया है और सचमूच इसने आज तक झूंठ नहीं बोला क्योंकि हमेशा इसके जीरो नम्बर ही आता है.मैने हर तरह से इसकी जांच कर ली है.यह एक भी सवाल सही नहीं करके आता है.इसने दसवीं में पांच बार एक्जाम दे दी है.यह कभी झूंठा साबित नहीं हुआ.
  • सीख:सफलता का राजमार्ग असफलताओं से ही गुजरता है.अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को अनेक बार असफलता मिली.पत्नी ने साथ छोड़ दिया.बहुत से चुनावों में हार गये.परंतु आखिर में राष्ट्रपति के चुनाव में सफलता मिली.असफलता से निराश न होकर असफलता के कारणों का पता लगाकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए.

2.गणित के बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value of Mathematics),गणित से बौद्धिक विकास (Intellectual development from mathematics) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गणित के बौद्धिक मूल्य कैसे सहायता करते हैं? (How help Intellectual Value of Mathematics?):

उत्तर:मनोवैज्ञानिक मूल्य गणित सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है जैसे कि खुले दिमाग,तर्क आदि गणित का अध्ययन मनोविज्ञान के मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है जैसे कि अनुभवों और समस्या को हल करने आदि के माध्यम से सीखना।

प्रश्न:2.गणित का मूल्य क्या है? (What is the value of maths?):

उत्तर:गणित में,मूल्य एक संख्या है जो गणना या फ़ंक्शन के परिणाम को दर्शाती है।इसलिए,ऊपर दिए गए उदाहरण में,आप अपने शिक्षक को बता सकते हैं कि 5 x 6 का मान 30 है या x + y का मान यदि x = 6 और y = 3 तो 9 है।मूल्य एक चर या स्थिरांक को भी संदर्भित कर सकता है।
मनोवैज्ञानिक मूल्यों • गणित सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है जैसे कि खुले दिमाग, तर्क आदि। गणित का सीखना मनोविज्ञान के मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है जैसे कि अनुभवों और समस्या को हल करने आदि के माध्यम से सीखना आदि।

प्रश्न:3.बौद्धिक विकास में गणित की क्या भूमिका है? (What is the role of mathematics in intellectual development?):

उत्तर:बौद्धिक विकास का उद्देश्य गणित को पढ़ाने में: गणित समस्या को हल करने,निगमनात्मक और आगमनात्मक तर्क,रचनात्मक सोच और संचार में महत्वपूर्ण बौद्धिक कौशल विकसित करने के अवसर प्रदान करता है।

प्रश्न:4.गणित कहां है और गणित हमारी दुनिया में क्या भूमिका निभाता है? (Where is mathematics and what role does mathematics play in our world?):

उत्तर:ज्ञान और अभ्यास का शरीर जिसे गणित के रूप में जाना जाता है,युगों और दुनिया भर में विचारकों के योगदान से लिया गया है।यह हमें पैटर्न को समझने,रिश्तों को मापने और भविष्य की भविष्यवाणी करने का एक तरीका देता है।गणित हमें दुनिया को समझने में मदद करता है-और हम गणित को समझने के लिए दुनिया का उपयोग करते हैं।

प्रश्न:5.बौद्धिक विकास में गणित की क्या भूमिका है? (What is the role of mathematics in intellectual development?):

उत्तर:बौद्धिक विकास का उद्देश्य गणित को पढ़ाने में: गणित समस्या को हल करने,निगमनात्मक और आगमनात्मक तर्क,रचनात्मक सोच और संचार में महत्वपूर्ण बौद्धिक कौशल विकसित करने के अवसर प्रदान करता है।

प्रश्न:6.गणित का सामाजिक मूल्य क्या है? (What is the social value of mathematics?):

उत्तर:उनके अनुसार,गणितीय मूल्यों में तर्कवाद (बिशप 1988) शामिल है,जबकि सामाजिक मूल्यों को उन धारणाओं के रूप में परिभाषित किया गया है जो वास्तविक जीवन की सेटिंग्स और समस्या-समाधान में समाज में मौजूद हैं (शिमाडा और बाबा 2015)।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value of Mathematics),गणित से बौद्धिक विकास (Intellectual development from mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Intellectual Value of Mathematics

गणित के बौद्धिक मूल्य
(Intellectual Value of Mathematics)

Intellectual Value of Mathematics

गणित के बौद्धिक मूल्य (Intellectual Value of Mathematics) से तात्पर्य है
छात्र-छात्राओं का गणित के द्वारा बौद्धिक विकास करना।
छात्र-छात्राओं के बौद्धिक विकास के लिए गणित सर्वोत्तम एवं शक्तिशाली साधन है।
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