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How Do Mathematics Students Be Happy?

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1.गणित के विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Mathematics Students Be Happy?),विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Students Be Happy?):

  • गणित के विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Mathematics Students Be Happy?) क्योंकि उन्हें गणित,विज्ञान इत्यादि का अध्ययन करते समय अनेक समस्याओं व जटिलताओं से जूझना पड़ता है ऐसी स्थिति में मानसिक संतुलन बनाए रख पाना तथा खुश रहना बहुत मुश्किल कार्य होता है।वस्तुतः गणित में विकास करने,ज्ञान प्राप्ति,सांसारिक प्रगति,बौद्धिक प्रगति आदि प्रत्येक क्षेत्र में चित्त की प्रसन्नता को एक आवश्यक अवयव माना जाता है।साधक उसे मुदिता कहते हैं और षट्संपत्ति सम्पत्ति (शम,दम,उपरति,तितिक्षा,श्रद्धा और समाधान) के अंतर्गत मुदिता अर्थात् चित्त की प्रसन्नता को प्रमुख स्थान देते हैं।
  • प्रसन्न रहने से मन में अच्छे विचार आते हैं और मन शुभ कार्यों में लगा रहता है क्योंकि प्रसन्नचित्त रहने के लिए हम अपने चित्त में उन्हीं विचारों को स्थान और जन्म देते हैं जो हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं।चित्त के प्रसन्न रहने से दुःख का अभाव हो जाता है। जिसे प्रसन्नता मिल जाती है,उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है।
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2.खुश न रहने के कारण (Reasons for Not Being Happy):

  • वे विद्यार्थी तथा व्यक्ति खुश नहीं रहते हैं जिनका नकारात्मक नजरिया होता है।जैसे विद्यार्थी को गणित में 70% अंक प्राप्त हो गए तो उनकी नजर जो 30% अंक नहीं मिले उस पर रहती है।इसलिए वे खुश नहीं रह पाते हैं।ऐसे विद्यार्थी जीवन के हर क्षेत्र में यही देखते-रहते हैं कि उन्हें क्या-क्या नहीं मिला,उनके साथ क्या-क्या गलत हो रहा है?
  • नकारात्मक सोच हमारे जीवन में दुःख,असंतोष व अशान्ति का संचार करते हैं जबकि सकारात्मक सोच हमें आन्तरिक खुशी,संतोष व शान्ति देते हैं।
  • आमतौर पर विद्यार्थी अच्छी नौकरी,पद,कोई सम्मान (रिवार्ड),अच्छा वेतन मिलने में खुशी ढूंढते हैं।और जब ये चीजें नहीं मिलती तो वे खुश नहीं रह पाते हैं,अपने आपको कोसते रहते हैं।उनकी नजर उन्हें मिलनेवाली छोटी-छोटी उपलब्धियों,छोटी-छोटी खुशियों की तरफ जाती ही नहीं है और ऐसी छोटी-छोटी खुशियां उन्हें अक्सर मिलती रहती है।
  • विद्यार्थी तथा व्यक्ति बहुत धन-संपत्ति,भौतिक सुख-सुविधाओं,अच्छे प्राप्तांक इत्यादि के होते हुए भी खुश नहीं रह पाते हैं जबकि कुछ विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिनके पास ज्यादा कुछ नहीं होता है जैसे अच्छे से विद्यालय में नहीं पढ़ते हैं,घर पर पढ़ने लिखने के लिए भी अच्छी-सी व्यवस्था नहीं है,कोचिंग नहीं कर सकते हैं,भौतिक सुख-सुविधाओं का अभाव है फिर भी वे खुश रहते हैं।वस्तुतः खुशी कहीं बाजार में या भौतिक साधनों में नहीं है बल्कि यह तो हमारे अंदर हमेशा मौजूद रहती है,आवश्यकता है तो अपने दृष्टिकोण को बदलने और इसे महसूस करने की।
  • खुश न रहने का एक कारण यह भी है कि हमारी आदतें।जैसे विद्यार्थी गणित को हल करते समय सोचता है कि यह तो बहुत बड़ी मुसीबत है,यह तो बहुत बड़ी बला है।संकट विपत्ति के समय इस प्रकार कहना और सोचना हमारी आदत बन जाती है।सबके सामने यही प्रदर्शित करते हैं कि क्या बताएं परीक्षा में अच्छे अंक ला सकते हैं परंतु गणित और विज्ञान हमारे लिए बहुत बड़ी मुसीबत है इत्यादि।परंतु प्रतिकूल स्थिति आने पर हम ऐसा भी सोच सकते हैं कि इस प्रतिकूल स्थिति से भी बड़ा संकट,प्रतिकूल स्थिति आ सकती थी तो हमारा नजरिया बदल जाएगा।
  • किसी विषय,गणित में,अध्ययन में अथवा जीवन में प्रतिकूल स्थिति आती है तो वह हमारे व्यक्तित्त्व,योग्यता व क्षमता को तराशने,निखारने व परिपक्व बनाने के लिए आती है।
  • जब तक हमारी दृष्टि हमेशा सांसारिक होती है,बाहर की ओर होती है तथा अपने अंतर को निरीक्षण करने की तरफ नहीं होती है,अंदर की ओर नहीं मुड़ती है तब तक हम खुशी का अनुभव नहीं कर सकते हैं।
  • हमारे मन के विकार काम,क्रोध,लोभ,निराशा,हताशा,ईर्ष्या,भय,चिन्ता,तृष्णा,लोभ इत्यादि के कारण भी हम खुश नहीं रह सकते हैं।जब तक मन शुद्ध,विकाररहित,पवित्र नहीं होता है तब तक ये विकार हमें खुश रहने नहीं देते हैं।
  • उदाहरणार्थ कोई विद्यार्थी या व्यक्ति उदास रहता है,तो वह वास्तव में मन में कुढ़ता रहता है।ऐसे विद्यार्थी तथा व्यक्ति अपने कष्टों,परेशानियों को बहुत बढ़ाकर देखते हैं अथवा पराए सुख से दुःखी रहते हैं।हमारे मायूस चेहरा देखकर कोई पूछ बैठे कि क्यों क्या बात हो गई तो अपनी विपत्तियों,आफतों को बढ़ाकर बखान करने लगते हैं।सुनने वाले व्यक्ति यही सोचेगा कि उससे दूर रहना ही अच्छा है।
  • खुश न रह पाने का एक कारण यह भी है कि हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं।यह तुलना सात्त्विक ढंग से की जाए तब तो प्रगति और विकास में सहायक है परन्तु ईर्ष्या व द्वेष के वशीभूत की जाए तो हमारे पतन का कारण बन जाती है।ऐसी स्थिति में हम स्वयं अपने आपको श्रेष्ठ समझते हैं और दूसरे को तुच्छ समझते हैं।परीक्षा में किसी के अच्छे अंक प्राप्त हो जाते हैं हम सोचते हैं कि उससे अधिक अंक तो मुझे प्राप्त होने चाहिए।दूसरे की उन्नति देखकर खुश नहीं होते हैं।

3.खुश रहने के उपाय (Ways to be Happy):

  • अपनी सोच सदैव सकारात्मक रखनी चाहिए। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने का उपाय यह है कि यदि विद्यार्थी को भूतकाल में परीक्षा में कम अंक प्राप्त हुए,असफलता मिली है आदि तो उन कारणों को ढूंढकर वर्तमान काल में उन कमियों को दूर करने का प्रयास करें।धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों आपको सफलता व उपलब्धि प्राप्त होती जाएगी तो आपका आत्म-विश्वास बढ़ता जाएगा।
  • आत्म-विश्वास से भविष्य में प्रगति करने का मनोबल प्राप्त होगा और आपका साहस बढ़ेगा।बढ़े हुए आत्मविश्वास न केवल संतुष्टि का आधार प्रदान करेगा बल्कि वह खुशी भी प्रदान करेगा जिसे प्राप्त करने का स्वप्न आपने देखा है।
  • हमेशा अपने से प्रेम करें।जब हम स्वयं को प्रेम करते,पसंद करते हैं तभी दूसरों को प्रेम कर पाने में और आत्मीयता दे पाने में समर्थ होते हैं।हमेशा अपने अंदर कमियां ही कमियां न देखते रहें।यदि ऐसा करेंगे तो आपमें आत्मविश्वास की कमी बनी रहती है और वे दूसरों को भी प्रोत्साहित नहीं कर पाते हैं।उनकी अपनी असुरक्षा उन्हें दूसरों को भी संरक्षण और सुरक्षा में नाकामयाब रहती हैं।
  • अपनी योग्यताओं,क्षमताओं और विशेषताओं पर अपने ध्यान को केंद्रित करें।धीरे-धीरे अपनी योग्यताओं,क्षमताओं व सद्गुणों को देखने से उनको बढ़ाने का प्रोत्साहन मिलेगा और आप सद्गुणों में वृद्धि करने के लिए प्रयत्नशील होंगे।
  • हर विद्यार्थी तथा व्यक्ति में कोई न कोई खास गुण होता है जिसे पहचाने,ढूंढे और उसे तराशने,निखारने और उभारने का प्रयास करें।हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति इस संसार में अद्वितीय है और भगवान ने उसके जैसा किसी ओर को नहीं बनाया है।इसलिए विद्यार्थी तथा हरेक व्यक्ति यही दृष्टिकोण रखकर अपने व्यक्तित्त्व की विशेषताओं पर ध्यान देते हुए उनको विकसित करने का प्रयास करें तो धीरे-धीरे व्यक्तित्त्व ऐसी अनगिनत विशेषताओं से पूर्ण हो जाएगा और हम अपनी एक विशिष्ट पहचान बना पाने में भी सफल हो जाते हैं।
  • अपनी विशेषताओं पर ध्यान देने का अर्थ दूसरों के व्यक्तित्त्व में कमियां निकालना या दूसरों से अपनी तुलना करना नहीं है।इसका अर्थ मात्र अपने जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना और उसे अपने अनुरूप विकसित करना है।
  • मन में आत्मविश्वास पैदा करने का तरीका यह भी है कि विद्यार्थियों व व्यक्तियों को भूतकाल में जो शानदार सफलता प्राप्त हुई है उसे याद करें।भूतकाल में मिली कामयाबियों व जटिल संघर्षों को याद करने से मन में आत्म-विश्वास पैदा होगा कि हम भविष्य में भी इसी तरह सफलता अर्जित कर सकते हैं,अच्छे कार्य कर सकते हैं।
  • अपने आपको अध्ययन में अथवा जो भी कार्य आप करते हैं उसमें इतना व्यस्त रखें कि आपको बुरी बातें,अशुभ बातें सोचने और चिंता करने का अवकाश ही न मिले।प्रसन्नता तथा समृद्धि के शत्रुओं (दुःख,चिंता और निराशाजनक विचार) को आपके मन में प्रवेश करने का अवसर ही न मिले।जो छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति अपने आपको हर वक्त किसी न किसी काम में लगाए रखता है,वह सदा प्रसन्न रहता है।इसके विपरीत जो बेकार पड़ा रहता है,कोई काम नहीं करता,उसके मन में बुरे विचार आते रहते हैं और वह चिंताजनक तथा भटकाव से ग्रसित रहता है।
  • हमेशा सजग रहें ताकि हर्ष व उल्लास के अपने जन्मसिद्ध अधिकार को अपने शत्रुओं से,जो हर समय इस खजाने की चोरी की ताक में लगे रहते हैं,सुरक्षित रख सकें।हमारा कर्त्तव्य है कि हम पूरे बल तथा शक्ति के साथ हर ऐसे विचार,हर ऐसी बात और अपने मन तथा मस्तिष्क के हर जानी दुश्मन का वीरों की भांति सामना कर सकें,जो हमारे दिमाग में चिंता उत्पन्न करें,जिनसे हमें दुःख पहुंचे,जो मानसिक संतुलन से उस निर्मल संतोष को नष्ट-भ्रष्ट कर दे।
  • आपके अंदर सोई पड़ी हुई शक्तियों को (जिनके द्वारा बड़े-बड़े कार्य कर सकते हैं) क्रियाशील करने तथा सजग करने की आवश्यकता है।प्रसन्नचित्त रहने के लिए यह आवश्यक है कि अपने मन को किसी श्रेष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति के साथ जोड़ दें।

4.खुश रहने के लाभ (Benefits of Being Happy):

  • प्रसन्न रहने से जीवन के प्रति रवैया और विभिन्न जटिल परिस्थितियों में स्वयं को संतुलित रखने की क्षमता प्राप्त होती है।हमारा स्वास्थ्य,हमारे मित्रों के साथ व्यवहार अच्छा रहता है।हमारा आत्म-सम्मान तथा दूसरों के लिए स्वयं की आकांक्षाओं को उत्सर्ग करने की प्रेरणा मिलती है।
  • यदि आपका मन विपत्तियों तथा कष्टों से छलनी हो चुका है,संकट तथा संताप से आपका जीवन दूभर हो गया है,फिर भी यदि आप प्रसन्न है,विनम्र बने रहें तो आप जीवन में क्रांति का अनुभव करेंगे।आपके जीवन के उपवन में सदाबहार फूल खिलने लगेंगे।
  • जो यथासंभव प्रसन्न रहने का प्रयत्न कर रहा है,जो सर्वथा प्रसन्नता तथा हर्ष की बातें सोचता है तो यह उसके मन के लिए सर्वश्रेष्ठ खुराक है।यह शरीर के लिए सर्वश्रेष्ठ पौष्टिक औषधि है और यही सबसे अच्छा स्वास्थ्यवर्धक भोजन है,जो अब तक ज्ञात है।
  • यदि आपमें यह शक्ति विद्यमान है कि हर घड़ी विनम्रता और प्रसन्नताचित्तता का प्रकाश अपने अंतर में रख सकें,हर समय अपने मन में उज्जवल दीप जलाए रखें तो आपका मार्ग चाहे कितना ही कठिन हो,आपका बोझ कितना ही भारी हो,आप समय आने पर उस बोझ को उठा लेंगे और अभीष्ट स्थान का मार्ग दुर्गम हो,उसे तय कर लेंगे और सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते चले जाएंगे।
  • जिन लोगों के चेहरों पर हर्ष और होठों पर मुस्कुराहट होती है हम उन्हें बेहद पसंद करते हैं,हम उनके चेहरों को,उनकी आंखों को,उनकी मुस्कान को देखते हैं,बार-बार देखते हैं और थकते नहीं।उन्हें देख कर हमारे विचार और भावनाओं में ताजगी आ जाती है।
  • मानवता पर उनका दृढ़ विश्वास हो जाता है।स्वभावतः और स्वयंमेव हमारा झुकाव उस ओर मुड़ जाता है।ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार सूरजमुखी का फूल उसी ओर मुड़ता है,जिस ओर सूर्य होता है।हर्ष तथा उल्लास व्यक्ति की हर स्थान पर प्रतीक्षा करते हैं।वह जहां कहीं जाए,घर में हो या बाहर,दफ्तर में हो या दुकान पर,स्कूल में हो या खेत पर,सुख और आह्लाद उसके साथ जाते हैं।हर कोई उसके साथ कृपालुता तथा नम्रता से व्यवहार करता है।हर कोई उससे मिलकर प्रसन्न होता है,उससे बातें करके,उसकी सहायता करके उसके मन को संतुष्टि का अनुभव होता है।
  • प्रसन्नतापूर्वक चिंतन पद्धति हमको दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करती है तथा मन को उत्साह एवं प्रसन्नता से भी भर देती है।प्रसन्नता आत्मा को शक्ति प्रदान करती है और जीवन को सार्थक बनाने में सहायक है।
  • प्रसन्नचित्त रहकर हम अपनी असफलता को सार्वजनिक होने से बचाते हैं और साथ ही आत्मविश्वास को प्रकट करते हैं।आत्म-विश्वास का धारणकर्ता सदैव प्रयत्नशील बना रहता है और सफलता सदैव उसके सामने प्रस्तुत रहती है।

5.खुश रहने का दृष्टान्त (The Vision of Being Happy):

  • एक बार संत तुकाराम को नगर के लड़कों ने पकड़ लिया।उनका सिर मुंडवा दिया।उन्हें नगर में चारों ओर भ्रमण कराया।गले में जूतों की माला पहना दी।उनका जुलूस निकालकर वे लड़के उनके घर ले आए।उनकी पत्नी (जीजाई) ने उनकी दशा देखी तो द्रवित हो गई।उसने घर में से लट्ठ निकालकर उन लड़कों को भगाया।
  • संत तुकाराम न तो क्रोधित हुए और पत्नी को भी समझाया कि तुम्हें क्रोधित होने की कोई आवश्यकता नहीं है।वे मेरे बाल बड़े हो गए थे तो मुफ्त में कटवा दिए।मैंने नगर का कभी भ्रमण नहीं किया था।परन्तु उन्होंने आज मुझे सारे नगर का दर्शन करा दिया।एक-एक गली दिखा दी।
  • पहनने के लिए अब जूतों की कोई कमी नहीं रहेगी।यह कहकर पत्नी जीजाई को शान्त किया।ऐसे व्यक्ति को कोई दुःखी कर सकता है क्या? स्वयं भगवान भी ऊपर से नीचे आ जाए तो नहीं कर सकते।ऐसे व्यक्ति हमेशा खुश रहते हैं,किसी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं रहती।
  • परंतु हम जैसे लोगों को तो स्वयं भगवान भी खुश नहीं कर सकते हैं।हमें चाहे जितना मिल जाए तो भी दुःखी,परेशान होते रहते हैं,कभी खुश नहीं रहते।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Mathematics Students Be Happy?),विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Students Be Happy?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित और अकेला छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Math and Lonely Student) (Humour-Satire):

  • मां:क्या बात है,जब तुम स्कूल में एडमिशन लेने गए थे,तो बहुत अकड़ रहे थे।परंतु अब रोजाना डरते-डरते स्कूल क्यों जाते हो?
  • पुत्र:गणित विषय लेने के समय बहुत से छात्र मेरे साथ थे।परन्तु अब समझ में आ गया है कि गणित को अकेले ही पढ़ना पड़ेगा और हल करना पड़ेगा।

7.गणित के विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Mathematics Students Be Happy?),विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Students Be Happy?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.महान व्यक्तियों को देखकर प्रसन्नता क्यों होती है? (Why are You Happy to See Great People?):

उत्तर:महान व्यक्ति इस संसार को निरक्षरता और अमानुषिकता के अंधेरे से निकालकर विद्या तथा सभ्यता के प्रकाश में लाए हैं,जिन लोगों ने संसार को अवनति के मार्ग से निकालकर उन्नति के शिखर पर पहुंचा दिया है,वे शूरवीर है जिनके नेत्र यथार्थ को पहचानते हैं,जो इस सृष्टि को उसी दृष्टिकोण से देखते हैं जिस दृष्टि से सृष्टा ने इसे बनाया है।उन्हें हर स्थान पर सौन्दर्य दिखाई देता है जिसकी किरणें प्रकाश और प्रताप,हर्ष एवं आशा का संदेश दिलाती है।वे प्रसन्नता तथा सन्तोष से चमकते हुए प्रतापी मानव हैं जिनको देखकर ही किसी थके-मांदे व्यक्ति और यात्री को सन्तोष मिलता है।

प्रश्न:2.असफलता में हमारी क्या स्थिति होती है? (What is Our Position in Failure?):

उत्तर:किसी भी परीक्षा में,जाॅब में या काम में असफलता प्राप्त होने पर हम मुँह लटका लेते हैं।लोग हमारी शक्ल देखकर ही अनुमान लगा लेते हैं कि हम एक असफल व्यक्ति हैं।असफलता के प्रति लोग थोड़ी देर तक हमारे प्रति सहानुभूति भले ही दिखाएं परंतु अंततः वे हमको एक असफल व्यक्ति के रूप में ही देखते हैं।क्या यह उचित नहीं है कि हम अपनी असफलता की वेदना को अपने मन के भीतर ही रहने दें और अपनी त्रुटि को जानकर अधिक निष्ठा एवं गंभीरता के साथ पुनः प्रयास करें।

प्रश्न:3.गीता में प्रसन्नचित्त व्यक्ति के बारे में क्या कहा गया है? (What Does the Gita Say About a Happy Person?):

उत्तर:गीता के द्वितीय अध्याय में कहा गया है किः
“प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते”।।
अर्थात् मन के प्रसन्न अथवा शांत होने पर मनुष्य के समस्त दुःख नष्ट हो जाते हैं एवं प्रसन्नचित्त व्यक्ति की बुद्धि शीघ्र ही परमात्मा में प्रतिष्ठित हो जाती है।
मनुष्य प्रसन्नता के लिए स्वयं उत्तरदायी है।हमें स्मरण रखना चाहिए कि प्रसन्न रहने में कुछ प्रयत्न करने की आवश्यकता होती है।अपने आपको प्रसन्न रखना भी एक कला है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Mathematics Students Be Happy?),विद्यार्थी खुश कैसे रहें? (How Do Students Be Happy?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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